संसद का मॉनसून रण: इन 5 मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष की सीधी टक्कर, विश्लेषण।

संसद का मॉनसून रण: इन 5 मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष की सीधी टक्कर, विश्लेषण।

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

भारतीय संसद का आगामी मॉनसून सत्र राजनीतिक गरमाहट और गहन चर्चाओं का केंद्र बनने की संभावना है। लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार पूर्ण बजट पेश किया जाएगा, और एक नई सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के पहले बड़े विधायी एजेंडे के साथ सदन में उतरेगी। विश्लेषक और राजनीतिक पंडित पहले से ही अनुमान लगा रहे हैं कि यह सत्र कितना हंगामेदार हो सकता है। पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी-अपनी रणनीति और मुद्दों के साथ मैदान में उतरने को तैयार हैं। यह सत्र न केवल देश के विधायी भविष्य को आकार देगा, बल्कि भारत के संसदीय लोकतंत्र की जीवंतता और चुनौतियों को भी परखेगा।

संसदीय सत्र क्या हैं और क्यों महत्वपूर्ण हैं? (What are Parliamentary Sessions and why are they important?)

भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला उसकी संसद है, और संसदीय सत्र वह मंच हैं जहाँ राष्ट्र का भाग्य निर्धारित होता है। संविधान के अनुच्छेद 85 के तहत, राष्ट्रपति को समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को बुलाने का अधिकार है। हालांकि, दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए। आमतौर पर, भारत में एक वर्ष में तीन प्रमुख सत्र होते हैं:

  • बजट सत्र (फरवरी-मई): यह सबसे लंबा और महत्वपूर्ण सत्र होता है, जिसमें केंद्रीय बजट पेश किया जाता है और उस पर विस्तार से चर्चा होती है।
  • मॉनसून सत्र (जुलाई-सितंबर): यह आमतौर पर तीन से चार सप्ताह का होता है और विभिन्न विधेयकों पर विचार-विमर्श के लिए महत्वपूर्ण होता है।
  • शीतकालीन सत्र (नवंबर-दिसंबर): यह सबसे छोटा सत्र होता है, जो वर्ष के अंत में महत्वपूर्ण विधायी कार्यों को पूरा करता है।

संसदीय कार्यवाही का महत्व:

संसदीय सत्र केवल कानून बनाने के लिए ही नहीं होते, बल्कि वे लोकतंत्र के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को भी सुदृढ़ करते हैं:

  1. कानून निर्माण (Law Making): संसद देश के लिए नए कानून बनाती है, मौजूदा कानूनों में संशोधन करती है या उन्हें निरस्त करती है।
  2. कार्यपालिका पर नियंत्रण (Control over Executive): संसद प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव और विभिन्न समितियों के माध्यम से सरकार (कार्यपालिका) को उसके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराती है। यह सरकार की मनमानी पर अंकुश लगाने का एक प्रभावी तरीका है।
  3. वित्तीय नियंत्रण (Financial Control): संसद सरकार के वित्त पर नियंत्रण रखती है। कोई भी कर या व्यय बिना संसदीय अनुमोदन के नहीं किया जा सकता। बजट सत्र में यह भूमिका प्रमुख होती है।
  4. बहस और विचार-विमर्श (Debate and Deliberation): संसद विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस और विचार-विमर्श का मंच प्रदान करती है, जिससे विभिन्न दृष्टिकोण सामने आते हैं और व्यापक सहमति बनाने में मदद मिलती है।
  5. जनता की आवाज (Voice of the People): सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों और देश की जनता की आवाज को संसद में उठाते हैं, उनकी समस्याओं और आकांक्षाओं को सरकार तक पहुंचाते हैं।

“संसद लोकतंत्र का मंदिर है, और बहस उसकी प्रार्थना।”

यह वाक्य संसदीय कार्यवाही के महत्व को उजागर करता है, जहाँ विचारों का आदान-प्रदान और चर्चा ही नीतियों को परिपक्व बनाती है।

मॉनसून सत्र 2024: संभावित मुद्दे (Monsoon Session 2024: Potential Issues)

आगामी मॉनसून सत्र में पक्ष और विपक्ष के बीच ‘रण’ किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा, यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है। कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो पिछले सत्रों से चले आ रहे हैं, जबकि कुछ नए घटनाक्रमों के कारण सुर्खियों में आए हैं। यहाँ उन 5 प्रमुख मुद्दों पर एक विस्तृत विश्लेषण है, जिन पर सदन में सीधी टक्कर देखने को मिल सकती है:

1. महंगाई और बेरोजगारी: आम आदमी की पीड़ा

क्या है मुद्दा:

महंगाई और बेरोजगारी, ये दो मुद्दे हर चुनाव और हर संसदीय सत्र में केंद्र में रहते हैं। खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि, ईंधन के दाम, और आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें आम आदमी के बजट पर सीधा असर डाल रही हैं। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर चिंताजनक बनी हुई है, खासकर युवाओं में। विपक्ष सरकार को घेरने के लिए इन मुद्दों को हथियार बनाएगा, क्योंकि ये सीधे तौर पर जनता के दैनिक जीवन से जुड़े हैं। वे पूछेंगे कि सरकार महंगाई रोकने और रोजगार सृजित करने में विफल क्यों रही है।

पक्ष की स्थिति:

सत्ता पक्ष वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों, भू-राजनीतिक तनावों (जैसे यूक्रेन-रूस युद्ध), और अप्रत्याशित मौसमी घटनाओं (जैसे खराब मॉनसून) को महंगाई का कारण बता सकता है। वे अपनी सरकार द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश, और विभिन्न रोजगारोन्मुखी योजनाओं (जैसे पीएम-स्वनिधि, मुद्रा योजना, मेक इन इंडिया) का हवाला देकर अपनी नीतियों का बचाव करेंगे। सरकार यह भी बता सकती है कि किस तरह उन्होंने कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को संभाला है।

विश्लेषण:

यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सरकार को ठोस जवाब देना होगा। आंकड़े बताते हैं कि कुछ क्षेत्रों में महंगाई अभी भी उच्च स्तर पर है, और बेरोजगारी, विशेषकर गुणवत्तापूर्ण रोजगार की कमी, एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। विपक्ष इस पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव या स्थगन प्रस्ताव ला सकता है ताकि सरकार से विस्तृत चर्चा और कार्रवाई की मांग की जा सके।

2. कानून-व्यवस्था और सामाजिक सद्भाव: संघीय ताने-बाने पर सवाल

क्या है मुद्दा:

देश के विभिन्न हिस्सों में हाल की घटनाएं, जैसे जातीय हिंसा, सांप्रदायिक तनाव, या महिलाओं के खिलाफ अपराध, कानून-व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। विपक्ष राज्यों में (जहाँ उनकी सरकारें नहीं हैं) बिगड़ती कानून-व्यवस्था को लेकर केंद्र सरकार पर हमला करेगा, जबकि केंद्र सरकार उन राज्यों को घेरने की कोशिश करेगी जहाँ विपक्ष की सरकारें हैं। इसके अलावा, हेट स्पीच और सामाजिक ध्रुवीकरण के मुद्दे भी चर्चा का विषय बन सकते हैं, क्योंकि ये देश के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करते हैं।

पक्ष की स्थिति:

केंद्र सरकार कानून-व्यवस्था को राज्य सूची का विषय बताएगी और राज्य सरकारों को अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए कहेगी। वे यह भी तर्क दे सकते हैं कि केंद्र ने राज्यों को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर संभव सहायता प्रदान की है। सामाजिक सद्भाव के मुद्दे पर, वे अपनी “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” की नीति को दोहराएंगे और विपक्ष पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप लगा सकते हैं।

विश्लेषण:

यह मुद्दा अक्सर ‘जीरो आवर’ या ‘प्रश्नकाल’ में उठाया जाता है, और कई बार इससे सदन में भारी हंगामा भी होता है। यह राज्यों की स्वायत्तता और केंद्र के हस्तक्षेप की सीमा को लेकर भी बहस छेड़ सकता है। विपक्ष इस पर अविश्वास प्रस्ताव की मांग भी कर सकता है यदि स्थिति गंभीर मानी जाती है।

3. संघीय ढांचा और केंद्र-राज्य संबंध: वित्तीय स्वायत्तता की मांग

क्या है मुद्दा:

भारत एक संघीय राष्ट्र है, जहां केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन है। हाल के दिनों में, कई राज्य सरकारों ने केंद्र पर वित्तीय संसाधनों के असमान वितरण, GST मुआवजे में देरी, और केंद्रीय योजनाओं में राज्यों की भूमिका को कम करने का आरोप लगाया है। गैर-भाजपाई शासित राज्य अक्सर राज्यपालों की भूमिका और केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग का मुद्दा भी उठाते हैं। यह मुद्दा राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता और उनके संवैधानिक अधिकारों से संबंधित है।

पक्ष की स्थिति:

केंद्र सरकार यह तर्क देगी कि वित्तीय आवंटन और GST परिषद के निर्णय राज्यों के साथ विस्तृत परामर्श के बाद लिए जाते हैं। वे यह भी बता सकते हैं कि विभिन्न केंद्रीय योजनाएं राज्यों के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं और संघीय ढांचे को मजबूत करती हैं। जांच एजेंसियों के मुद्दे पर, वे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को रोकने के लिए उनकी कार्रवाई को आवश्यक ठहराएंगे।

विश्लेषण:

यह मुद्दा संसद में राज्यों के हितों के प्रतिनिधित्व का सीधा प्रतीक है। इस पर बहस केंद्र-राज्य संबंधों की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालेगी और भविष्य में सहकारी संघवाद की दिशा तय करने में सहायक होगी। यह बजट सत्र में वित्तीय चर्चाओं के दौरान भी उठ सकता है, जब वित्त विधेयक पर विचार-विमर्श होगा।

4. महत्वपूर्ण विधेयक और विधायी एजेंडा: UCC से लेकर डेटा सुरक्षा तक

क्या है मुद्दा:

सरकार के पास इस सत्र के लिए कई महत्वपूर्ण विधेयक हो सकते हैं, जिनमें से कुछ पर पहले से ही सार्वजनिक बहस छिड़ी हुई है। उदाहरण के लिए:

  • समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC): यह एक विवादास्पद मुद्दा है जिसका उद्देश्य विवाह, तलाक, विरासत और उत्तराधिकार जैसे मामलों में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू करना है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। विपक्ष इसे धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए खतरा मान सकता है।
  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (Digital Personal Data Protection Bill): यह विधेयक नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इस पर डेटा गवर्नेंस, निगरानी और निजता के अधिकार पर विस्तृत बहस हो सकती है।
  • जनजातीय और वन अधिकार संबंधित संशोधन विधेयक: आदिवासियों और वनवासियों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले किसी भी विधेयक पर तीखी बहस हो सकती है।
  • आर्थिक सुधारों से संबंधित विधेयक: यदि सरकार कृषि, श्रम, या अन्य क्षेत्रों में नए आर्थिक सुधारों के लिए विधेयक लाती है, तो उन पर भी पक्ष-विपक्ष के बीच मतभेद उभर सकते हैं।

पक्ष की स्थिति:

सरकार अपने विधायी एजेंडे को ‘राष्ट्र हित’ और ‘जन कल्याण’ के रूप में प्रस्तुत करेगी। UCC के मामले में, वे इसे लैंगिक न्याय और समानता के लिए एक आवश्यक कदम बता सकते हैं। डेटा संरक्षण विधेयक को वे नागरिकों की निजता सुनिश्चित करने और डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण मानेंगे। सरकार विपक्ष से रचनात्मक सहयोग की अपील करेगी ताकि महत्वपूर्ण विधेयक पारित हो सकें।

विश्लेषण:

विधेयकों पर चर्चा न केवल उनकी कानूनी बारीकियों को सामने लाएगी, बल्कि उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभावों पर भी प्रकाश डालेगी। विपक्ष इन विधेयकों को रोकने या उनमें संशोधन कराने की पूरी कोशिश करेगा, जिससे सदन में गरमागरम बहस और संभवतः व्यवधान भी देखने को मिल सकता है। विधेयकों को स्थायी समितियों को भेजने की मांग भी उठ सकती है ताकि उन पर गहन विचार-विमर्श हो सके।

5. संसदीय लोकतंत्र की मर्यादा और संस्थागत स्वायत्तता: अध्यक्ष की भूमिका और विपक्षी अधिकार

क्या है मुद्दा:

लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के बाद से ही संसदीय प्रक्रिया और परंपराओं को लेकर बहस तेज हो गई है। विपक्ष लगातार सदन में अपनी आवाज दबाए जाने, पर्याप्त बहस का अवसर न मिलने, और विधेयकों को बिना पर्याप्त चर्चा के पारित किए जाने का आरोप लगाता रहा है। केंद्रीय जांच एजेंसियों (CBI, ED) के कथित दुरुपयोग, चुनावी बॉन्ड जैसे मुद्दों पर पारदर्शिता की कमी, और संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर भी सवाल उठाए गए हैं। यह मुद्दा भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा है।

पक्ष की स्थिति:

सरकार यह तर्क देगी कि सदन नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार चलता है, और विपक्ष बेवजह व्यवधान उत्पन्न करता है। वे जोर देंगे कि सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए सभी संवैधानिक संस्थाएं स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं। जांच एजेंसियों की कार्रवाई को वे भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान का हिस्सा बताएंगे।

विश्लेषण:

यह एक गंभीर मुद्दा है जो भारत के संसदीय लोकतंत्र के भविष्य को प्रभावित करता है। सार्थक बहस के लिए सदन के भीतर पर्याप्त स्थान और विपक्ष की चिंताओं को सुनने की तत्परता आवश्यक है। अध्यक्ष की भूमिका इस सत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण होगी कि वे सदन को सुचारु रूप से चलाने और सभी पक्षों को बोलने का अवसर देने में कैसे संतुलन स्थापित करते हैं।

पक्ष और विपक्ष की रणनीति (Strategy of Ruling Party and Opposition)

संसद का मॉनसून रण केवल मुद्दों का नहीं, बल्कि रणनीति का भी खेल है। दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी ताकत और कमजोरियों को ध्यान में रखकर मैदान में उतरेंगे:

सत्ता पक्ष की रणनीति (Ruling Party’s Strategy):

  • विधायी एजेंडा पर जोर: सरकार अपनी प्राथमिकता वाले विधेयकों को जल्द से जल्द पारित कराने की कोशिश करेगी। इसके लिए वे सदन में शांतिपूर्ण और उत्पादक कार्यवाही पर जोर देंगे।
  • सरकार की उपलब्धियों का प्रदर्शन: वे अपनी पिछली योजनाओं और नीतियों की सफलताओं को उजागर करेंगे, विशेषकर आर्थिक विकास और कल्याणकारी कार्यक्रमों के मोर्चे पर।
  • विपक्ष पर पलटवार: विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सरकार डेटा और तथ्यों के साथ पलटवार करेगी, और विपक्ष पर संसद में बाधा डालने का आरोप लगा सकती है।
  • बहुमत का उपयोग: लोकसभा में अपने स्पष्ट बहुमत का उपयोग कर सरकार प्रमुख विधेयकों को पारित कराने का प्रयास करेगी, लेकिन राज्यसभा में उन्हें विपक्षी दलों के समर्थन की आवश्यकता होगी।

विपक्ष की रणनीति (Opposition’s Strategy):

  • सरकार को घेरना: विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था और संघीय मुद्दों पर सरकार को घेरने की पूरी कोशिश करेगा। वे जन-सरोकार के मुद्दों को प्रमुखता देंगे।
  • जनता का ध्यान आकर्षित करना: संसद में उठाए गए मुद्दों और सरकार के जवाबों के माध्यम से वे जनता का ध्यान आकर्षित करने और सरकार की कमजोरियों को उजागर करने का प्रयास करेंगे।
  • संयुक्त रणनीति: विभिन्न विपक्षी दल एकजुट होकर साझा मुद्दों पर सरकार का मुकाबला करने की रणनीति बना सकते हैं ताकि उनकी आवाज अधिक प्रभावी ढंग से सुनी जा सके।
  • संसदीय प्रक्रियाओं का उपयोग: विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव और प्रश्नकाल जैसे संसदीय उपकरणों का सक्रिय रूप से उपयोग करेगा ताकि सरकार को जवाबदेह ठहराया जा सके।

हंगामे और व्यवधान का प्रभाव (Impact of Tumult and Disruption)

संसदीय सत्र में हंगामा और व्यवधान कोई नई बात नहीं है, लेकिन इसकी बढ़ती आवृत्ति लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। इसके कई नकारात्मक प्रभाव होते हैं:

  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर: संसद बहस और विचार-विमर्श का मंच है। हंगामे के कारण महत्वपूर्ण विधेयकों पर पर्याप्त चर्चा नहीं हो पाती, जिससे कानून की गुणवत्ता प्रभावित होती है और सरकार की जवाबदेही कम होती है।
  • समय और संसाधनों की बर्बादी: संसद चलाने में जनता के पैसे का उपयोग होता है। व्यवधान के कारण सदन का कीमती समय बर्बाद होता है, जिससे करदाताओं के पैसे का नुकसान होता है।
  • जनता के विश्वास में कमी: जब जनता देखती है कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि हंगामा कर रहे हैं और सार्थक बहस में शामिल नहीं हो रहे हैं, तो लोकतंत्र में उनका विश्वास कम होता है।
  • विधायी कार्य में बाधा: व्यवधानों के कारण कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित नहीं हो पाते या उनमें जल्दबाजी में संशोधन किए जाते हैं, जिससे देश की प्रगति बाधित होती है।

“एक स्वस्थ लोकतंत्र में संसद एक अखाड़ा नहीं, बल्कि एक कार्यशाला है जहाँ समस्याओं को हल करने के लिए विचार गढ़े जाते हैं।”

सार्थक बहस और समाधान की आवश्यकता (Need for Constructive Debate and Resolution)

आगे की राह (Way Forward):

मॉनसून सत्र 2024 भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा होगी। चुनौतियों के बावजूद, आशा की किरण हमेशा बनी रहती है कि पक्ष और विपक्ष मिलकर देश हित में काम करेंगे। सार्थक बहस और उत्पादक सत्र सुनिश्चित करने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. नियमों का पालन: सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को संसदीय नियमों और प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए। अध्यक्ष को भी नियमों के अनुसार सभी सदस्यों को बोलने का उचित अवसर प्रदान करना चाहिए।
  2. चर्चा और संवाद: मुद्दों को उठाने और हल करने के लिए बातचीत और संवाद को प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि केवल व्यवधान को।
  3. स्थायी समितियों की भूमिका: महत्वपूर्ण विधेयकों को गहन जांच के लिए स्थायी समितियों को भेजा जाना चाहिए ताकि उन पर विशेषज्ञ राय ली जा सके और व्यापक सहमति बन सके।
  4. जनता के प्रति जवाबदेही: सभी सांसदों को यह याद रखना चाहिए कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं और उनका मुख्य कर्तव्य जनता के हितों की रक्षा करना है।
  5. अध्यक्ष की सक्रिय भूमिका: अध्यक्ष को सदन को सुचारु रूप से चलाने के लिए सक्रिय और निष्पक्ष भूमिका निभानी चाहिए, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर सर्वदलीय बैठकें बुलाना भी शामिल है।

निष्कर्ष (Conclusion)

संसद का आगामी मॉनसून सत्र निश्चित रूप से कई ज्वलंत मुद्दों पर पक्ष और विपक्ष के बीच एक ‘रण’ का मैदान बनेगा। यह देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों को सामने लाएगा और उनसे निपटने के लिए सरकार की रणनीति को परखेगा। हालांकि, एक परिपक्व लोकतंत्र में यह ‘रण’ केवल जीत-हार का नहीं, बल्कि सार्थक बहस, विचारों के आदान-प्रदान और अंततः राष्ट्र के लिए सर्वोत्तम मार्ग खोजने का होना चाहिए। आशा है कि इस सत्र में हंगामे के बजाय रचनात्मक चर्चाओं को प्राथमिकता मिलेगी, और संसद भारत के उज्ज्वल भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण विधायी कदम उठाएगी। अंततः, यह सत्र भारत के संसदीय लोकतंत्र की शक्ति और लचीलेपन का एक और प्रमाण होगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कीजिए और दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए।)

1. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति संसद के सत्रों को बुलाता है?
(a) अनुच्छेद 84
(b) अनुच्छेद 85
(c) अनुच्छेद 86
(d) अनुच्छेद 87
उत्तर: (b)

व्याख्या: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 85 राष्ट्रपति को समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को बुलाने, सत्रावसान करने और लोकसभा को भंग करने का अधिकार देता है।

2. संसद के दो सत्रों के बीच अधिकतम कितने महीने का अंतराल हो सकता है?
(a) तीन महीने
(b) चार महीने
(c) पांच महीने
(d) छह महीने
उत्तर: (d)

व्याख्या: संविधान के अनुसार, संसद के दो सत्रों के बीच अधिकतम छह महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि संसद को एक वर्ष में कम से कम दो बार मिलना चाहिए।

3. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रस्ताव कार्यपालिका पर संसदीय नियंत्रण का एक उपकरण है?
1. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव
2. स्थगन प्रस्ताव
3. अविश्वास प्रस्ताव
4. धन्यवाद प्रस्ताव
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (c)

व्याख्या: ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव सभी कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने और उसकी नीतियों पर नियंत्रण रखने के संसदीय उपकरण हैं। धन्यवाद प्रस्ताव राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के लिए होता है, जिसका सीधा संबंध कार्यपालिका पर नियंत्रण से नहीं है।

4. समान नागरिक संहिता (UCC) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में निहित है।
2. यह धर्म, जाति, लिंग या पंथ के बावजूद सभी नागरिकों पर लागू होता है।
3. यह विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे व्यक्तिगत कानूनों को नियंत्रित करता है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)

व्याख्या: समान नागरिक संहिता (UCC) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में एक राज्य नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) के रूप में वर्णित है, जो राज्य से भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करने का आग्रह करता है। यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर आधारित है और व्यक्तिगत कानूनों (जैसे विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेना) को नियंत्रित करता है।

5. ‘शून्यकाल’ (Zero Hour) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह प्रश्नकाल के ठीक बाद शुरू होता है।
2. संसदीय प्रक्रियाओं में इसका उल्लेख नहीं है।
3. इसमें सदस्य बिना किसी पूर्व सूचना के महत्वपूर्ण मुद्दे उठा सकते हैं।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)

व्याख्या: शून्यकाल भारतीय संसदीय नवाचार है जो प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है। इसका उल्लेख नियम पुस्तिका में नहीं है। सदस्य इस दौरान बिना पूर्व सूचना के अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे उठा सकते हैं।

6. भारतीय संसद में ‘ध्यानाकर्षण प्रस्ताव’ (Calling Attention Motion) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) सरकार में अविश्वास व्यक्त करना।
(b) किसी मंत्री से सार्वजनिक महत्व के किसी तात्कालिक मामले पर बयान मांगना।
(c) बजट पर विस्तृत चर्चा करना।
(d) किसी सदस्य को लंबे समय तक बोलने की अनुमति देना।
उत्तर: (b)

व्याख्या: ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के तहत, कोई सदस्य अध्यक्ष की अनुमति से किसी मंत्री का ध्यान सार्वजनिक महत्व के किसी तात्कालिक मामले पर आकर्षित कर सकता है और मंत्री से उस पर एक संक्षिप्त बयान मांग सकता है।

7. भारतीय संघवाद के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा विषय आमतौर पर राज्य सूची का हिस्सा है?
(a) रक्षा
(b) रेलवे
(c) कानून और व्यवस्था
(d) नागरिकता
उत्तर: (c)

व्याख्या: भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ हैं – संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। ‘कानून और व्यवस्था’ (पुलिस सहित) राज्य सूची का विषय है। रक्षा, रेलवे और नागरिकता संघ सूची के विषय हैं।

8. किसी भी विधेयक को कानून बनने से पहले संसद में कौन-कौन से चरणों से गुजरना पड़ता है?
1. प्रथम वाचन
2. द्वितीय वाचन
3. समिति अवस्था
4. तृतीय वाचन
सही क्रम का चयन कीजिए:
(a) 1-2-3-4
(b) 1-3-2-4
(c) 2-1-3-4
(d) 4-3-2-1
उत्तर: (a)

व्याख्या: विधेयक को कानून बनने से पहले मुख्य रूप से पाँच चरणों से गुजरना पड़ता है: प्रथम वाचन (पेश करना), द्वितीय वाचन (सामान्य बहस, समिति अवस्था और खंड-वार विचार), समिति अवस्था (यदि विधेयक को समिति के पास भेजा जाता है), तृतीय वाचन (विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार करना) और फिर दूसरे सदन में जाना।

9. भारतीय संसद में ‘कोरम’ (Quorum) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(a) यह सदन की कुल सदस्यता का एक-दसवां हिस्सा होता है।
(b) यह केवल लोकसभा में लागू होता है, राज्यसभा में नहीं।
(c) यह केवल प्रश्नकाल के दौरान अनिवार्य है।
(d) यह सदन की कुल सदस्यता का एक-चौथाई होता है।
उत्तर: (a)

व्याख्या: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 100(3) के अनुसार, किसी भी सदन की बैठक के लिए कोरम कुल सदस्यों की संख्या का दसवां हिस्सा होता है, जिसमें पीठासीन अधिकारी भी शामिल होता है। यह लोकसभा और राज्यसभा दोनों पर लागू होता है।

10. ‘स्थगन प्रस्ताव’ (Adjournment Motion) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) किसी विशिष्ट और तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा के लिए सदन के सामान्य कामकाज को बाधित करना।
(b) सरकार के खिलाफ अविश्वास व्यक्त करना।
(c) किसी सदस्य को सदन में अपनी राय प्रस्तुत करने का अवसर देना।
(d) वित्तीय मामलों पर सरकार की नीतियों की आलोचना करना।
उत्तर: (a)

व्याख्या: स्थगन प्रस्ताव सदन के सामान्य कामकाज को बाधित करने के लिए लाया जाता है ताकि किसी विशिष्ट, निश्चित, तत्काल और सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा की जा सके। इसे स्वीकार करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150-250 शब्दों में दें।)

1. भारतीय संसद में बढ़ते हंगामे और व्यवधानों के कारणों का विश्लेषण कीजिए। क्या आपको लगता है कि ऐसे व्यवधान लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करते हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

2. केंद्र-राज्य संबंधों में वित्तीय स्वायत्तता की बढ़ती मांग भारतीय संघवाद की किस चुनौती को दर्शाती है? मॉनसून सत्र में इस मुद्दे के संभावित प्रभावों पर चर्चा कीजिए।

3. “संसद एक अखाड़ा नहीं, बल्कि एक कार्यशाला है।” इस कथन के आलोक में, भारत में संसदीय विपक्ष की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। क्या केवल आलोचना तक सीमित रहकर विपक्ष अपनी भूमिका को न्याय दे पाता है? विस्तार से समझाइए।

4. मॉनसून सत्र 2024 में ‘महंगाई और बेरोजगारी’ जैसे मुद्दे केंद्र में रहने की संभावना है। इन आर्थिक चुनौतियों से निपटने में संसद की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए और इसमें सरकार तथा विपक्ष दोनों की जिम्मेदारियों का उल्लेख कीजिए।

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