Get free Notes

सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Click Here

Transforming Gems: भारत का प्रयोगशाला-निर्मित हीरों पर रणनीतिक दांव – UPSC के लिए एक विस्तृत मार्गदर्शिका

Transforming Gems: भारत का प्रयोगशाला-निर्मित हीरों पर रणनीतिक दांव – UPSC के लिए एक विस्तृत मार्गदर्शिका

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव के तौर पर, केंद्र सरकार ने प्रयोगशाला में निर्मित हीरों (Lab-Grown Diamonds – LGDs) के उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन और नीतियाँ घोषित की हैं। इस पहल को “Doubling Down on Diamond” के रूप में देखा जा रहा है, जिसका अर्थ है हीरे के क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए दोगुना प्रयास करना, खासकर प्रयोगशाला-निर्मित खंड में। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर III – अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और GS पेपर II – शासन (नीति निर्माण) से संबंधित है। यह भारत की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों को भी सीधे तौर पर प्रभावित करता है।


प्रयोगशाला-निर्मित हीरे: भारत के लिए एक गेम-चेंजर?

विषय का परिचय

सदियों से, हीरे विलासिता, प्रतिष्ठा और निवेश का प्रतीक रहे हैं। पारंपरिक रूप से, ये पृथ्वी की गहराइयों से निकाले जाते हैं, जो एक श्रम-गहन, पूंजी-गहन और अक्सर पर्यावरणीय रूप से विवादास्पद प्रक्रिया है। हालाँकि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उदय ने एक नए प्रकार के हीरे को जन्म दिया है: प्रयोगशाला-निर्मित हीरे (LGDs)। ये हीरे प्रयोगशाला में अत्यंत नियंत्रित परिस्थितियों में, प्राकृतिक हीरों के समान रासायनिक, भौतिक और ऑप्टिकल गुणों के साथ बनाए जाते हैं। इन्हें सिंथेटिक हीरे भी कहा जाता है, लेकिन यह शब्द कभी-कभी उनकी उच्च गुणवत्ता को कम आंकने वाला लग सकता है, क्योंकि वे वास्तविक हीरे ही हैं, बस उनकी उत्पत्ति भिन्न है।

भारत दुनिया में हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग का एक प्रमुख केंद्र रहा है, जो वैश्विक हीरे के व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सूरत, जिसे ‘भारत की डायमंड सिटी’ के रूप में जाना जाता है, इस उद्योग का केंद्र है। अब, वैश्विक बाजार में LGDs की बढ़ती लोकप्रियता और पर्यावरणीय व नैतिक चिंताओं के कारण प्राकृतिक हीरों की घटती आपूर्ति के बीच, भारत ने LGDs के उत्पादन में अपनी विशेषज्ञता को “दुगुना करने” का निर्णय लिया है। यह न केवल देश को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक नया स्थान दिलाएगा, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी बढ़ावा देगा और रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा। यह एक ऐसा रणनीतिक कदम है जो भारत को सिर्फ ‘कटिंग और पॉलिशिंग’ हब से आगे बढ़कर ‘उत्पादन और नवाचार’ हब में बदलने की क्षमता रखता है।

प्रमुख प्रावधान / मुख्य बिंदु: प्रयोगशाला-निर्मित हीरों की दुनिया

LGDs का उदय कई तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक कारकों का परिणाम है। इन्हें मुख्य रूप से दो तरीकों से बनाया जाता है:

  • हाई प्रेशर-हाई टेम्परेचर (HPHT) विधि: यह विधि पृथ्वी के अंदर प्राकृतिक हीरे बनने की प्रक्रिया की नकल करती है। इसमें कार्बन को उच्च तापमान (लगभग 1300-1600 डिग्री सेल्सियस) और उच्च दबाव (लगभग 5.5 GPa) में रखकर हीरे का क्रिस्टल उगाया जाता है। यह विधि औद्योगिक हीरों और छोटे रत्नों के उत्पादन के लिए व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।
  • केमिकल वेपर डिपोजिशन (CVD) विधि: यह एक अधिक आधुनिक और लचीली विधि है, जो उच्च गुणवत्ता वाले रत्नों के उत्पादन के लिए बेहतर मानी जाती है। इसमें एक छोटे हीरे के ‘सीड’ (बीज) को एक बंद चेंबर में रखा जाता है जिसमें मीथेन जैसे कार्बन-समृद्ध गैसें होती हैं। माइक्रोवेव प्लाज्मा का उपयोग करके गैसों को गर्म किया जाता है, जिससे कार्बन परमाणु सीड पर जमा होकर परत-दर-परत हीरा बनाते हैं। यह विधि नियंत्रित विकास और वांछित आकार के हीरों के निर्माण की अनुमति देती है।

भारत सरकार ने LGDs को बढ़ावा देने के लिए कई प्रमुख पहलें की हैं, जिनमें हाल ही में घोषित केंद्रीय बजट में प्रावधान भी शामिल हैं:

  • कस्टम ड्यूटी में कमी: LGDs के निर्माण में उपयोग होने वाले “सीड” (बीज) पर कस्टम ड्यूटी में कटौती की गई है। यह LGDs के उत्पादन लागत को कम करने और उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद करेगा। पहले इन पर 5% कस्टम ड्यूटी लगती थी, जिसे अब शून्य कर दिया गया है।
  • अनुसंधान एवं विकास (R&D) को प्रोत्साहन: LGDs के लिए स्वदेशी उत्पादन क्षमता और तकनीकी विशेषज्ञता को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान और विकास (R&D) पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में से एक को LGDs के अनुसंधान और विकास के लिए 5 साल का अनुसंधान अनुदान प्रदान किया जाएगा। यह कदम नई तकनीकों के विकास, दक्षता में सुधार और उत्पादन लागत को और कम करने में सहायक होगा।
  • ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल का समर्थन: LGDs का उत्पादन भारत में होने से देश की आयात पर निर्भरता कम होगी और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। यह विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी पैदा करेगा।
  • स्किल डेवलपमेंट: LGDs उद्योग को कुशल कार्यबल की आवश्यकता होगी। सरकार और उद्योग साझेदारी में कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की योजना है ताकि आवश्यक विशेषज्ञता विकसित की जा सके।

ये कदम भारत को वैश्विक LGD उत्पादन और नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं। यह पारंपरिक हीरा उद्योग के साथ-साथ एक समानांतर, उच्च-तकनीकी उद्योग का विकास करेगा, जो भारत की आर्थिक विविधता और लचीलेपन को बढ़ाएगा।

पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)

सकारात्मक पहलू (Positives)

प्रयोगशाला-निर्मित हीरे भारत और वैश्विक उद्योग के लिए कई सकारात्मक पहलू प्रस्तुत करते हैं:

  • आर्थिक विकास और रोजगार सृजन: LGDs का उत्पादन एक नया, उच्च-विकास वाला उद्योग है। यह विनिर्माण, अनुसंधान, कटिंग, पॉलिशिंग और विपणन में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करेगा, खासकर सूरत जैसे पारंपरिक हीरा केंद्रों में।

    उदाहरण: जिस प्रकार आईटी क्षेत्र ने भारत में लाखों रोजगार पैदा किए, उसी प्रकार LGDs उद्योग भी उच्च-कुशल और अर्ध-कुशल श्रमिकों के लिए नए रास्ते खोल सकता है, विशेषकर उन युवाओं के लिए जो पारंपरिक उद्योगों में अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं।

  • निर्यात संवर्धन और व्यापार संतुलन: LGDs का उत्पादन और निर्यात बढ़ने से भारत का व्यापार संतुलन बेहतर होगा। भारत पहले से ही हीरों का एक प्रमुख निर्यातक है, और LGDs के जुड़ने से यह स्थिति और मजबूत होगी। यह ‘मेक इन इंडिया’ उत्पादों को वैश्विक बाजार में एक नई पहचान देगा।
  • पर्यावरणीय लाभ: प्राकृतिक हीरे की खुदाई से बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति होती है, जिसमें भूमि का क्षरण, वनोन्मूलन, जल प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन शामिल हैं। LGDs का उत्पादन इन पर्यावरणीय प्रभावों को काफी हद तक कम करता है, क्योंकि यह खनन पर निर्भर नहीं करता। हालाँकि, LGDs के उत्पादन में भी ऊर्जा का उपयोग होता है, लेकिन कार्बन फुटप्रिंट खनन की तुलना में काफी कम होता है।
  • नैतिकता और संघर्ष-मुक्त: प्राकृतिक हीरों के खनन से अक्सर “संघर्ष हीरे” या “ब्लड डायमंड” की चिंताएं जुड़ी रहती हैं, जो सशस्त्र संघर्षों को वित्तपोषित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। LGDs इस चिंता से पूरी तरह मुक्त हैं, क्योंकि वे नियंत्रित प्रयोगशाला वातावरण में निर्मित होते हैं, जिससे उपभोक्ता को नैतिक रूप से जिम्मेदार विकल्प मिलता है।

    केस स्टडी: हॉलीवुड फिल्म ‘ब्लड डायमंड’ ने सिएरा लियोन जैसे देशों में हीरों के खनन से जुड़े संघर्षों को उजागर किया, जिससे वैश्विक उपभोक्ता जागरूकता बढ़ी। LGDs इस तरह की चिंताओं को समाप्त करते हैं।

  • तकनीकी नवाचार और अनुसंधान: LGDs के उत्पादन के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी और निरंतर अनुसंधान की आवश्यकता होती है। भारत में LGDs के R&D को बढ़ावा देने से वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञता बढ़ेगी, जिससे अन्य उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भी नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • किफायती और सुलभ: LGDs आमतौर पर समान गुणवत्ता वाले प्राकृतिक हीरों की तुलना में 30-40% अधिक किफायती होते हैं। यह उन्हें उपभोक्ताओं की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए सुलभ बनाता है, जिससे बाजार का विस्तार होता है।

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns)

LGDs के कई फायदे हैं, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियाँ और चिंताएँ भी जुड़ी हैं:

  • बाजार में व्यवधान और प्राकृतिक हीरा उद्योग पर प्रभाव: LGDs की बढ़ती लोकप्रियता से प्राकृतिक हीरा उद्योग को चुनौती मिल सकती है। प्राकृतिक हीरों की मांग कम होने से उन समुदायों और देशों पर नकारात्मक आर्थिक प्रभाव पड़ सकता है जो मुख्य रूप से हीरे के खनन पर निर्भर हैं।

    चिंता: अफ्रीका में कई देश और रूस जैसे बड़े हीरा उत्पादक देश, जिनकी अर्थव्यवस्था हीरों पर निर्भर है, LGDs के उदय से प्रभावित हो सकते हैं। भारत के सूरत में भी प्राकृतिक हीरे का काम करने वाले कारीगरों को संक्रमणकालीन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

  • भेदभाव और उपभोक्ता विश्वास: हालांकि LGDs और प्राकृतिक हीरों के बीच अंतर करना कठिन है, उपभोक्ता को यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि उन्हें उत्पादों के बारे में पूरी जानकारी मिले। ‘नैसर्गिक’ और ‘कृत्रिम’ के बीच पारदर्शिता बनाए रखना उपभोक्ता विश्वास के लिए महत्वपूर्ण है। गलत लेबलिंग या धोखाधड़ी से उद्योग की प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है।
  • ऊर्जा की खपत: HPHT और CVD दोनों विधियों में हीरे उगाने के लिए महत्वपूर्ण मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यदि यह ऊर्जा गैर-नवीकरणीय स्रोतों से आती है, तो LGDs के ‘पर्यावरण-अनुकूल’ दावे पर सवाल उठ सकते हैं। हालाँकि, कई LGD उत्पादक अब नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं।
  • पूंजी-गहन उद्योग: LGDs उत्पादन इकाइयों की स्थापना के लिए भारी प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है। यह छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिए प्रवेश बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • कौशल अंतराल: LGDs के उत्पादन, कटाई, पॉलिशिंग और प्रमाणन के लिए विशेष कौशल और ज्ञान की आवश्यकता होती है। भारत को इस नए क्षेत्र के लिए कुशल कार्यबल तैयार करने में समय लग सकता है।
  • प्रमाणन और मानकीकरण: LGDs के लिए एक मजबूत और विश्वसनीय प्रमाणन प्रणाली विकसित करना महत्वपूर्ण है ताकि उनकी गुणवत्ता और उत्पत्ति सुनिश्चित की जा सके। यह अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होना चाहिए।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

भारत के LGDs उद्योग के लिए एक उज्ज्वल भविष्य है, लेकिन इस क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिए कुछ प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना होगा:

इस पहल/नीति/घटना के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कि:

  • प्रौद्योगिकी और R&D का अभाव: भारत को अभी भी LGDs उत्पादन में उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिए विदेशी निर्भरता कम करनी है। स्वदेशी R&D को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।
  • उच्च ऊर्जा लागत: LGDs उत्पादन एक ऊर्जा-गहन प्रक्रिया है। उच्च ऊर्जा लागतें भारतीय निर्माताओं के लिए एक चुनौती बन सकती हैं, विशेषकर वैश्विक प्रतिस्पर्धा के माहौल में।
  • कुशल कार्यबल की कमी: नए सिरे से इस उद्योग के लिए आवश्यक विशिष्ट कौशल वाले श्रमिकों की कमी एक बड़ी बाधा है। पारंपरिक हीरा उद्योग के कौशल LGDs के लिए पूरी तरह से हस्तांतरणीय नहीं हो सकते हैं।
  • मार्केटिंग और ब्रांडिंग: LGDs को प्राकृतिक हीरों के बराबर स्वीकार्यता दिलाने के लिए मजबूत मार्केटिंग और ब्रांडिंग रणनीतियों की आवश्यकता है, ताकि उपभोक्ता विश्वास और जागरूकता बढ़े।
  • पारदर्शिता और प्रकटीकरण: यह सुनिश्चित करना कि LGDs को हमेशा उनकी ‘प्रयोगशाला-निर्मित’ उत्पत्ति के साथ बेचा जाए, उपभोक्ता विश्वास के लिए महत्वपूर्ण है। स्पष्ट लेबलिंग और प्रमाणन अनिवार्य हैं।
  • छोटे पैमाने के उद्योगों का समावेश: यह सुनिश्चित करना कि LGDs क्षेत्र का लाभ केवल बड़े खिलाड़ियों तक ही सीमित न रहे, बल्कि छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) को भी इसमें शामिल होने का अवसर मिले।

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित उपाय शामिल होने चाहिए:

  • स्वदेशी R&D और नवाचार को बढ़ावा: IITs और अन्य अनुसंधान संस्थानों में LGDs पर केंद्रित अनुसंधान उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए जाएं। सरकार को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर R&D निवेश को बढ़ाना चाहिए ताकि उत्पादन विधियों में दक्षता बढ़े और लागत कम हो। एक ‘डायमंड टेक्नोलॉजी फंड’ का निर्माण किया जा सकता है।
  • हरित ऊर्जा पर ध्यान: LGDs उत्पादन इकाइयों को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन) का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे न केवल कार्बन फुटप्रिंट कम होगा, बल्कि दीर्घकालिक परिचालन लागत भी स्थिर होगी और ‘पर्यावरण-अनुकूल’ छवि मजबूत होगी।
  • कौशल विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रम: उद्योग, अकादमिक और सरकार के बीच साझेदारी (PPP मॉडल) में विशेष प्रशिक्षण संस्थान और पाठ्यक्रम स्थापित किए जाएं। पारंपरिक हीरा श्रमिकों को LGDs उत्पादन की नई तकनीकों में पुनर्कौशल (reskilling) और उन्नयन (upskilling) कार्यक्रम प्रदान किए जाएं।
  • मजबूत प्रमाणन और मानकीकरण: भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और अंतर्राष्ट्रीय निकायों के सहयोग से LGDs के लिए कठोर गुणवत्ता और प्रमाणन मानक विकसित किए जाएं। यह उपभोक्ता विश्वास बनाए रखने और उत्पादों की वैश्विक स्वीकार्यता सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
  • वैश्विक मार्केटिंग और ब्रांडिंग: ‘भारतीय LGD’ को एक प्रीमियम और नैतिक उत्पाद के रूप में वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए व्यापक मार्केटिंग अभियान चलाए जाएं। इसमें डिजिटल मार्केटिंग, व्यापार मेले और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल हो सकते हैं।
  • नीतिगत स्थिरता और प्रोत्साहन: LGDs उद्योग को दीर्घकालिक विकास के लिए एक स्थिर और सहायक नीतिगत वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए, जिसमें PLI (उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन) जैसी योजनाएं शामिल हो सकती हैं। निर्यात प्रोत्साहन और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए स्पष्ट नीतियां हों।
  • एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण: LGDs के लिए एक पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना आवश्यक है जिसमें अनुसंधान से लेकर उत्पादन, कटाई, पॉलिशिंग, प्रमाणन, मार्केटिंग और पुनर्चक्रण तक सभी पहलू शामिल हों।

संक्षेप में, प्रयोगशाला-निर्मित हीरे भारत के लिए आर्थिक विकास, तकनीकी प्रगति और पर्यावरणीय स्थिरता के एक नए युग का प्रतिनिधित्व करते हैं। सही रणनीतिक निवेश और नीतिगत समर्थन के साथ, भारत वैश्विक LGD बाजार में अग्रणी बन सकता है, जिससे ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना और भी चमकीला हो जाएगा। यह केवल एक उद्योग का विस्तार नहीं है, बल्कि एक व्यापक आर्थिक परिवर्तन की दिशा में एक कदम है।


UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रयोगशाला-निर्मित हीरों (LGDs) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. LGDs के रासायनिक और ऑप्टिकल गुण प्राकृतिक हीरों के समान होते हैं।
    2. इन्हें मुख्य रूप से हाई प्रेशर-हाई टेम्परेचर (HPHT) और केमिकल वेपर डिपोजिशन (CVD) विधियों द्वारा निर्मित किया जाता है।
    3. प्राकृतिक हीरों की तुलना में LGDs के उत्पादन में हमेशा कम ऊर्जा की खपत होती है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: कथन I और II सही हैं। LGDs के गुण प्राकृतिक हीरों के समान होते हैं और वे HPHT तथा CVD विधियों से बनते हैं। कथन III गलत है; जबकि LGDs उत्पादन का कार्बन फुटप्रिंट खनन से कम हो सकता है, उनके उत्पादन में भी महत्वपूर्ण ऊर्जा की खपत होती है, और यह ‘हमेशा कम’ नहीं होती, बल्कि स्रोत पर निर्भर करती है।

  2. हाल ही में, भारत सरकार ने प्रयोगशाला-निर्मित हीरों (LGDs) को बढ़ावा देने के लिए LGD ‘सीड’ पर कस्टम ड्यूटी को शून्य कर दिया है। यह कदम किस योजना/पहल के अनुरूप है?

    • (a) प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना
    • (b) उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना
    • (c) आत्मनिर्भर भारत अभियान
    • (d) मेक इन इंडिया पहल

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: LGDs के उत्पादन को बढ़ावा देने और उन्हें भारत में विनिर्मित करने का लक्ष्य सीधे तौर पर ‘मेक इन इंडिया’ पहल के अनुरूप है। हालांकि यह आत्मनिर्भर भारत का भी हिस्सा है, ‘मेक इन इंडिया’ अधिक प्रत्यक्ष रूप से विनिर्माण पर केंद्रित है। PLI एक व्यापक योजना है लेकिन LGDs के लिए विशिष्ट PLI अभी घोषित नहीं हुई है, जबकि कस्टम ड्यूटी में कमी एक प्रत्यक्ष प्रोत्साहन है।

  3. “ब्लड डायमंड” शब्द अक्सर _______ से जुड़ा होता है।

    • (a) प्रयोगशाला में निर्मित हीरों का अवैध व्यापार
    • (b) संघर्ष क्षेत्रों से प्राप्त हीरे जो सशस्त्र संघर्षों को वित्तपोषित करते हैं
    • (c) हीरों का व्यापार जिसमें मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है
    • (d) (b) और (c) दोनों

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: “ब्लड डायमंड” या “संघर्ष हीरे” वे रत्न हैं जिनकी उत्पत्ति युद्ध क्षेत्रों से होती है और जिनका उपयोग अक्सर सशस्त्र आंदोलनों और उनके अत्याचारों को वित्तपोषित करने के लिए किया जाता है, जिसमें मानव अधिकारों का गंभीर उल्लंघन शामिल होता है।

  4. भारत में हीरे की कटिंग और पॉलिशिंग का प्रमुख केंद्र कौन सा शहर है?

    • (a) मुंबई
    • (b) जयपुर
    • (c) सूरत
    • (d) कोलकाता

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: सूरत, गुजरात को ‘भारत की डायमंड सिटी’ के रूप में जाना जाता है और यह दुनिया में हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग का सबसे बड़ा केंद्र है।

  5. निम्नलिखित में से कौन सा LGDs के उत्पादन का एक लाभ नहीं है?

    • (a) कम पर्यावरणीय प्रभाव (खनन की तुलना में)
    • (b) प्राकृतिक हीरों की तुलना में अधिक किफायती
    • (c) संघर्ष-मुक्त होने की गारंटी
    • (d) प्राकृतिक हीरा उद्योग पर कोई प्रभाव नहीं

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: LGDs की बढ़ती लोकप्रियता और उपलब्धता से प्राकृतिक हीरा उद्योग पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और बाजार में बदलाव आ सकता है। अन्य विकल्प LGDs के लाभ हैं।

  6. केमिकल वेपर डिपोजिशन (CVD) विधि के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

    • (a) यह विधि उच्च दबाव और उच्च तापमान का उपयोग करती है।
    • (b) इसमें एक छोटे हीरे के ‘सीड’ पर कार्बन-समृद्ध गैसों को जमा करके हीरा बनाया जाता है।
    • (c) यह मुख्य रूप से औद्योगिक हीरों के उत्पादन के लिए उपयोग की जाती है।
    • (d) इसमें पृथ्वी के अंदर प्राकृतिक हीरे बनने की प्रक्रिया की नकल की जाती है।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: CVD विधि में एक हीरे के ‘सीड’ पर कार्बन-समृद्ध गैसों को जमा करके परत-दर-परत हीरा बनाया जाता है। विकल्प (a), (c) और (d) HPHT विधि से संबंधित हैं।

  7. LGDs के उत्पादन में भारत सरकार के R&D प्रोत्साहन का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

    • (a) केवल निर्यात बढ़ाना
    • (b) स्वदेशी उत्पादन क्षमता और तकनीकी विशेषज्ञता विकसित करना
    • (c) प्राकृतिक हीरे के खनन को बंद करना
    • (d) LGDs को औद्योगिक उपयोग तक सीमित करना

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: R&D का मुख्य उद्देश्य भारत को LGDs उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना और नई तकनीकों को विकसित करना है, जिससे लागत कम हो और गुणवत्ता बेहतर हो। निर्यात बढ़ाना इसका परिणाम हो सकता है, लेकिन प्राथमिक उद्देश्य तकनीकी क्षमता विकसित करना है।

  8. यदि LGDs का उत्पादन बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके किया जाए, तो यह निम्नलिखित में से किस सतत विकास लक्ष्य (SDG) के साथ सबसे अधिक संगत होगा?

    • (a) SDG 1: कोई गरीबी नहीं
    • (b) SDG 7: सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा
    • (c) SDG 10: असमानताओं को कम करना
    • (d) SDG 16: शांति, न्याय और मजबूत संस्थाएँ

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: LGDs उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग सीधे तौर पर SDG 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) के लक्ष्य को पूरा करता है। हालांकि इसके अन्य SDGs पर अप्रत्यक्ष प्रभाव हो सकते हैं, प्रत्यक्ष संबंध ऊर्जा उपयोग से है।

  9. भारत सरकार द्वारा LGDs के ‘सीड’ पर कस्टम ड्यूटी कम करने का तात्कालिक प्रभाव क्या होगा?

    • (a) LGDs का आयात बढ़ेगा।
    • (b) LGDs का उत्पादन महंगा होगा।
    • (c) LGDs के उत्पादन की लागत कम होगी।
    • (d) प्राकृतिक हीरों के आयात में वृद्धि होगी।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: ‘सीड’ एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है। इस पर कस्टम ड्यूटी कम करने से LGDs के उत्पादन की लागत में कमी आएगी, जिससे भारतीय निर्माताओं को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिलेगा।

  10. निम्नलिखित में से कौन सा कथन LGDs उद्योग के लिए एक संभावित चुनौती नहीं है?

    • (a) उच्च प्रारंभिक पूंजी निवेश
    • (b) उपभोक्ता जागरूकता और स्वीकृति का अभाव
    • (c) प्राकृतिक हीरा उद्योग से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं
    • (d) कुशल कार्यबल की आवश्यकता

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: LGDs उद्योग को प्राकृतिक हीरा उद्योग से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, जो इसकी एक प्रमुख चुनौती है। इसलिए, ‘कोई प्रतिस्पर्धा नहीं’ कथन गलत है। अन्य सभी विकल्प LGDs उद्योग के लिए संभावित चुनौतियाँ हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “भारत सरकार का प्रयोगशाला-निर्मित हीरों (LGDs) पर ध्यान केंद्रित करना देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक रणनीतिक बदलाव का संकेत है।” इस कथन के आलोक में, LGDs के उत्पादन को बढ़ावा देने के निहितार्थों और चुनौतियों का विस्तार से विश्लेषण करें। (250 शब्द)
  2. भारत में LGDs उद्योग के उदय को ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ पहलों के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है? इस उद्योग के पर्यावरणीय, आर्थिक और नैतिक लाभों का मूल्यांकन करें। (150 शब्द)
  3. प्रयोगशाला-निर्मित हीरों को प्राकृतिक हीरों के विकल्प के रूप में स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए भारत को किन कदमों को अपनाना चाहिए? उपभोक्ता विश्वास और उद्योग के लिए दीर्घकालिक स्थिरता बनाए रखने में प्रमाणन और मानकीकरण की भूमिका पर प्रकाश डालें। (200 शब्द)

Leave a Comment