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गाज़ा: एक राष्ट्र की त्रासदी – इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष का UPSC हेतु संपूर्ण विश्लेषण

गाज़ा: एक राष्ट्र की त्रासदी – इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष का UPSC हेतु संपूर्ण विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?): गाज़ा पट्टी, एक छोटा सा, सघन आबादी वाला क्षेत्र, दशकों से इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष का केंद्र बिंदु बना हुआ है। हाल ही में, 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इज़राइल पर किए गए अभूतपूर्व हमले और उसके बाद इज़राइल द्वारा गाज़ा में की गई जवाबी सैन्य कार्रवाई ने इस क्षेत्र को एक भयानक मानवीय त्रासदी के कगार पर ला खड़ा किया है। यह संघर्ष न केवल क्षेत्र की स्थिरता बल्कि वैश्विक भू-राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों पर भी गहरा प्रभाव डालता है। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर I (विश्व इतिहास), GS पेपर II (अंतर्राष्ट्रीय संबंध, भारत की विदेश नीति, वैश्विक समूह और उनकी भूमिका, भारतीय प्रवासियों पर प्रभाव), तथा GS पेपर IV (नैतिकता और अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता) से संबंधित है।


गाज़ा: एक चिरस्थायी संघर्ष की गाथा

विषय का परिचय

गाज़ा पट्टी भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित एक संकीर्ण भूभाग है, जिसकी सीमाएँ दक्षिण-पश्चिम में मिस्र और पूर्व व उत्तर में इज़राइल से लगती हैं। यह दुनिया के सबसे सघन आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है, जहाँ लगभग 2.3 मिलियन फ़िलिस्तीनी एक छोटे से क्षेत्र में रहते हैं। गाज़ा की पहचान केवल उसकी भौगोलिक स्थिति से नहीं, बल्कि उसकी जटिल और अक्सर हिंसक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से भी है, जो इसे इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष का एक महत्वपूर्ण घटक बनाती है।

वर्तमान संकट कोई अचानक हुई घटना नहीं है, बल्कि यह दशकों से चले आ रहे ऐतिहासिक, धार्मिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय दावों के संघर्ष का परिणाम है। यह संघर्ष केवल दो राज्यों के बीच भूमि विवाद नहीं है, बल्कि यह पहचान, आत्मनिर्णय, सुरक्षा और अस्तित्व की लड़ाई है। गाज़ा इस जटिलता का एक सूक्ष्म जगत है, जहाँ नाकेबंदी, आर्थिक अभाव और लगातार संघर्ष ने लाखों लोगों के जीवन को तबाह कर दिया है, जिससे यह वास्तव में एक ‘पीड़ित राष्ट्र’ की त्रासदी बन गया है।

प्रमुख प्रावधान / मुख्य बिंदु

गाज़ा संकट को समझने के लिए इसके विभिन्न आयामों और ऐतिहासिक पड़ावों को जानना आवश्यक है:

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उद्भव:
    • ओटोमन साम्राज्य का पतन (प्रथम विश्व युद्ध के बाद): 1917 में ओटोमन साम्राज्य के पतन के बाद, फ़िलिस्तीन क्षेत्र ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया, जिसे ब्रिटिश जनादेश (British Mandate) कहा गया।
    • बालफोर घोषणा (1917): ब्रिटेन ने यहूदियों के लिए फ़िलिस्तीन में ‘राष्ट्रीय घर’ (National Home) बनाने का समर्थन किया, जिसने अरब-यहूदी तनावों की नींव रखी।
    • संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना (1947): संयुक्त राष्ट्र ने फ़िलिस्तीन को अरब और यहूदी राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया। जेरूसलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर के रूप में प्रस्तावित किया गया। अरबों ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया।
    • 1948 का अरब-इज़राइल युद्ध और ‘नकबा’: इज़राइल की स्थापना के तुरंत बाद, पड़ोसी अरब देशों ने उस पर हमला कर दिया। युद्ध के परिणामस्वरूप, इज़राइल ने अपनी सीमाओं का विस्तार किया, जबकि सैकड़ों हज़ारों फ़िलिस्तीनी विस्थापित हुए (जिसे ‘नकबा’ या ‘आपदा’ के रूप में जाना जाता है)। इस दौरान गाज़ा पट्टी मिस्र के नियंत्रण में आ गई।
    • 1967 का छह-दिवसीय युद्ध: इज़राइल ने मिस्र, सीरिया और जॉर्डन के खिलाफ युद्ध में गाज़ा पट्टी, वेस्ट बैंक (पूर्वी जेरूसलम सहित), गोलन हाइट्स और सिनाई प्रायद्वीप पर कब्ज़ा कर लिया। इस समय से गाज़ा इज़राइली सैन्य कब्जे में रहा।
  • ओस्लो समझौता (1990 के दशक) और फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण का गठन:
    • इज़राइल और फ़िलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) के बीच हुए समझौतों ने फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (Palestinian Authority – PA) की स्थापना की, जिसे वेस्ट बैंक और गाज़ा के कुछ हिस्सों में सीमित स्व-शासन दिया गया।
    • यह समझौता ‘दो-राज्य समाधान’ (Two-State Solution) की दिशा में एक कदम था, जहाँ एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य इज़राइल के साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहेगा।
  • इज़राइली विघटन (2005) और हमास का उदय:
    • 2005 में, इज़राइल ने गाज़ा पट्टी से अपनी सेना और यहूदी बस्तियों को पूरी तरह से हटा लिया।
    • 2006 में, फ़िलिस्तीनी विधान परिषद चुनावों में हमास (इस्लामिक रेसिस्टेंस मूवमेंट), एक इस्लामी राजनीतिक और सैन्य संगठन ने बहुमत हासिल किया।
    • 2007 में, हमास ने गाज़ा पट्टी का पूर्ण नियंत्रण ले लिया, फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण को निष्कासित कर दिया, जिससे वेस्ट बैंक और गाज़ा के बीच राजनीतिक विभाजन हो गया।
  • गाज़ा पर नाकेबंदी (Blockade):
    • हमास के नियंत्रण के बाद, इज़राइल (और मिस्र द्वारा भी आंशिक रूप से) ने गाज़ा पट्टी पर एक कठोर नाकेबंदी लगा दी। इज़राइल का तर्क है कि यह नाकेबंदी हमास द्वारा हथियार और अन्य सैन्य सामग्री के प्रवेश को रोकने के लिए आवश्यक है, जबकि आलोचक इसे सामूहिक दंड और मानवीय आपदा का कारण मानते हैं।
    • इस नाकेबंदी ने गाज़ा की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है, जिससे यहाँ भोजन, पानी, ईंधन, बिजली और चिकित्सा आपूर्ति की गंभीर कमी हो गई है। संयुक्त राष्ट्र ने गाज़ा को “खुली हवा वाली जेल” बताया है।
  • प्रमुख खिलाड़ी और उनके हित:
    • इज़राइल: अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना, हमास की सैन्य क्षमताओं को नष्ट करना, बंधकों को छुड़ाना, और भविष्य में गाज़ा से हमलों को रोकना।
    • हमास: इज़राइली कब्जे का प्रतिरोध करना, फ़िलिस्तीनी अधिकारों के लिए लड़ना, और एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना।
    • फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (PA): वेस्ट बैंक में शासन, अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना, और सभी फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों पर अधिकार।
    • मिस्र: अपनी सीमा सुरक्षा, गाज़ा से शरणार्थियों के बड़े पैमाने पर प्रवाह को रोकना, और क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखना।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: इज़राइल का एक प्रमुख सहयोगी, क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखना, और शांति प्रक्रिया का समर्थन करना।
    • संयुक्त राष्ट्र: मानवीय सहायता प्रदान करना, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन सुनिश्चित करना, और शांतिपूर्ण समाधान खोजना।
    • अन्य अरब देश: फ़िलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति, लेकिन इज़राइल के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना (जैसे अब्राहम एकॉर्ड्स)।
  • हालिया संघर्ष (7 अक्टूबर 2023 के बाद):
    • 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़राइल पर एक बड़ा हमला किया, जिसमें सैकड़ों इज़राइली नागरिक मारे गए और बड़ी संख्या में बंधक बनाए गए।
    • इज़राइल ने ‘ऑपरेशन आयरन स्वॉर्ड्स’ के तहत गाज़ा पर बड़े पैमाने पर हवाई और जमीनी हमले किए, जिसका उद्देश्य हमास को खत्म करना था।
    • इस संघर्ष ने गाज़ा में एक अभूतपूर्व मानवीय संकट पैदा कर दिया है, जहाँ लाखों लोग विस्थापित हुए हैं, और मूलभूत सेवाओं तक पहुँच लगभग समाप्त हो गई है।

पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)

यह समझना महत्वपूर्ण है कि गाज़ा संघर्ष में “पक्ष” और “विपक्ष” की अवधारणा जटिल है, क्योंकि इसमें विभिन्न हितधारक अपने-अपने तर्क और वैध चिंताएँ रखते हैं। यहाँ हम विभिन्न दृष्टिकोणों और उनके निहितार्थों पर चर्चा करेंगे:

सकारात्मक पहलू (Positives – *विभिन्न दृष्टिकोणों से*)

हालांकि गाज़ा की स्थिति में सीधे तौर पर ‘सकारात्मक’ पहलू खोजना मुश्किल है, फिर भी कुछ ऐसे बिंदु हैं जिन्हें विभिन्न पक्ष अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए “आवश्यक” या “सही” मानते हैं, या जिनसे भविष्य के लिए कुछ उम्मीदें बंधती हैं:

  • इज़राइल की सुरक्षा चिंताएँ: इज़राइल के लिए, गाज़ा में हमास की उपस्थिति और उसकी सैन्य क्षमताएँ एक गंभीर सुरक्षा खतरा हैं। इज़राइल का तर्क है कि उसकी सैन्य कार्रवाई और नाकेबंदी आत्मरक्षा के लिए आवश्यक हैं ताकि हमास द्वारा रॉकेट हमलों और घुसपैठ को रोका जा सके। इस दृष्टिकोण से, हमास की सैन्य क्षमताओं को नष्ट करना इज़राइली नागरिकों की सुरक्षा के लिए एक सकारात्मक कदम है।
  • फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध का दृष्टिकोण: हमास और उसके समर्थक गाज़ा में अपने कार्यों को इज़राइली कब्जे और नाकेबंदी के खिलाफ “प्रतिरोध” के रूप में देखते हैं। वे इसे फ़िलिस्तीनी आत्मनिर्णय के अधिकार और इज़राइली दमन के विरोध के रूप में पेश करते हैं। उनके लिए, यह संघर्ष फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के अस्तित्व और पहचान की लड़ाई है।
  • अंतर्राष्ट्रीय ध्यान और मानवीय सहायता के लिए दबाव: वर्तमान संकट ने गाज़ा की गंभीर मानवीय स्थिति पर वैश्विक ध्यान केंद्रित किया है। इससे विभिन्न देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा मानवीय सहायता पहुंचाने और युद्धविराम के लिए दबाव बनाने के प्रयासों में वृद्धि हुई है, भले ही ये प्रयास पर्याप्त न हों।
  • दो-राज्य समाधान पर पुन: विचार: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस संकट ने ‘दो-राज्य समाधान’ की आवश्यकता को फिर से प्रमुखता से सामने लाया है। यह संघर्ष समाधान के लिए एक नई, अधिक ठोस अंतरराष्ट्रीय पहल का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति मौजूद हो।

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns)

गाज़ा संघर्ष के नकारात्मक पहलू और चिंताएँ व्यापक और गहरे हैं, जो न केवल क्षेत्र बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता को भी प्रभावित करते हैं:

  • अभूतपूर्व मानवीय त्रासदी: यह सबसे प्रमुख चिंता है। गाज़ा में लाखों लोग विस्थापित हुए हैं, हज़ारों नागरिक मारे गए हैं (जिनमें बड़ी संख्या में बच्चे शामिल हैं), और बुनियादी ढाँचा पूरी तरह से नष्ट हो गया है। भोजन, पानी, चिकित्सा आपूर्ति और बिजली की भारी कमी ने एक विकट मानवीय संकट पैदा कर दिया है।
  • क्षेत्रीय अस्थिरता और संघर्ष का विस्तार: गाज़ा संघर्ष में लेबनान (हिज़बुल्लाह), सीरिया, ईरान और यमन (हूती विद्रोही) जैसे अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ी शामिल हो रहे हैं, जिससे पूरे मध्य पूर्व में संघर्ष के विस्तार का खतरा बढ़ गया है। यह वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और व्यापार मार्गों को भी प्रभावित कर सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानवाधिकारों का उल्लंघन: दोनों पक्षों पर युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगाए गए हैं। गाज़ा में नागरिकों को निशाना बनाना, घेराबंदी के दौरान मानवीय सहायता रोकना, और बिना चेतावनी के हमले जैसे मुद्दे अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन की गंभीर चिंताएँ पैदा करते हैं।
  • कट्टरपंथ और चरमपंथ का बढ़ना: निरंतर हिंसा और उत्पीड़न का चक्र युवा फ़िलिस्तीनियों और इज़राइल में भी चरमपंथ और कट्टरपंथ को बढ़ावा दे सकता है, जिससे भविष्य में शांति की संभावनाएँ और भी कम हो जाएँगी।
  • दो-राज्य समाधान की संभावनाओं को नुकसान: हिंसा और अविश्वास के वर्तमान स्तर ने पहले से ही कमजोर ‘दो-राज्य समाधान’ की संभावनाओं को और भी धूमिल कर दिया है, जिससे दीर्घकालिक शांति का मार्ग अवरुद्ध हो गया है।
  • भारत पर अप्रत्यक्ष प्रभाव:
    • ऊर्जा सुरक्षा: मध्य पूर्व में अस्थिरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र से आयात करता है।
    • व्यापार और निवेश: क्षेत्रीय तनाव व्यापार मार्गों और भारत के मध्य पूर्व में निवेश को प्रभावित कर सकता है।
    • प्रवासी भारतीय: मध्य पूर्व में लाखों भारतीय काम करते हैं। संघर्ष का विस्तार उनके सुरक्षा और आर्थिक हितों को खतरे में डाल सकता है।
    • भू-राजनीतिक संतुलन: भारत को इज़राइल और फ़िलिस्तीन दोनों के साथ अपने पारंपरिक मैत्रीपूर्ण संबंधों के बीच संतुलन बनाए रखने में चुनौती का सामना करना पड़ता है।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

गाज़ा संकट और इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष का समाधान दशकों से एक जटिल चुनौती बना हुआ है। इसमें कई अंतर्निहित मुद्दे हैं जो किसी भी स्थायी शांति प्रयास को बाधित करते हैं:

  • विश्वास की कमी और ऐतिहासिक घाव: दशकों की हिंसा, विस्थापन और अविश्वास ने दोनों पक्षों के बीच गहरी खाई खोद दी है, जिससे किसी भी समझौते तक पहुंचना अत्यंत कठिन हो गया है।
  • हमास की भूमिका और सुरक्षा चिंताएँ: इज़राइल के लिए, हमास एक आतंकवादी संगठन है जिसे सैन्य रूप से पराजित करना आवश्यक है। हमास की उपस्थिति इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाती है, जबकि हमास खुद को फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के रूप में देखता है।
  • राजनीतिक नेतृत्व का अभाव: दोनों पक्षों में एक ऐसा नेतृत्व मिलना मुश्किल है जो कड़े फैसले ले सके और शांति के लिए रियायतें दे सके, खासकर जब चरमपंथी ताकतें मजबूत हों।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की विभाजनकारी भूमिका: विभिन्न देशों और गुटों के अपने-अपने भू-राजनीतिक हित हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक एकजुट और प्रभावी दबाव बनाने में विफल रहा है।
  • पुनर्निर्माण की विशाल आवश्यकता: गाज़ा का पुनर्निर्माण एक विशाल कार्य होगा, जिसके लिए भारी वित्तीय संसाधनों और एक स्थिर राजनीतिक वातावरण की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान में अनुपलब्ध है।
  • गाज़ा का भविष्य (नियंत्रण और शासन): संघर्ष के बाद गाज़ा का शासन कौन संभालेगा, यह एक बड़ा प्रश्न है। क्या यह फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण के अधीन होगा, या कोई अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षण होगा, या इज़राइल का कोई नया मॉडल?

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक, बहुआयामी और संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित उपाय शामिल होने चाहिए:

  1. तत्काल युद्धविराम और मानवीय सहायता का निर्बाध प्रवाह: सबसे पहले, नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और गाज़ा में मानवीय स्थिति को तत्काल राहत देने के लिए एक पूर्ण और स्थायी युद्धविराम आवश्यक है। मानवीय सहायता, भोजन, पानी, ईंधन और चिकित्सा आपूर्ति की तत्काल और निर्बाध पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  2. बंधकों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई: सभी बंधकों की सुरक्षित रिहाई मानवीय अनिवार्यता है और यह संघर्ष को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
  3. ‘दो-राज्य समाधान’ को पुनर्जीवित करना और उस पर काम करना: इज़राइल के बगल में एक व्यवहार्य और स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य का निर्माण ही दीर्घकालिक शांति का एकमात्र विश्वसनीय मार्ग है। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सक्रिय रूप से मध्यस्थता करनी चाहिए और दोनों पक्षों को एक निश्चित समय-सीमा के साथ सार्थक वार्ता में शामिल करना चाहिए।
  4. गाज़ा के लिए एक स्थायी शासन मॉडल: एक बार जब हमास की सैन्य क्षमताएँ समाप्त हो जाती हैं, तो गाज़ा के लिए एक वैध और प्रभावी शासन व्यवस्था स्थापित करना महत्वपूर्ण होगा, संभवतः फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण को मजबूत करके या एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षण तंत्र के साथ।
  5. पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास: गाज़ा को मानवीय संकट से उबारने के लिए बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण प्रयासों और आर्थिक विकास परियोजनाओं की आवश्यकता होगी। नाकेबंदी में ढील दी जानी चाहिए ताकि गाज़ा के लोग अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण कर सकें और गरिमापूर्ण जीवन जी सकें।
  6. अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन और जवाबदेही: अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और मानवीय कानून के उल्लंघन के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करना आवश्यक है। यह भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने और न्याय स्थापित करने में मदद करेगा।
  7. क्षेत्रीय सहयोग और सामान्यीकरण: मध्य पूर्व के देशों को इजराइल और फ़िलिस्तीनियों के बीच शांति प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अब्राहम एकॉर्ड्स जैसे समझौते क्षेत्रीय सामान्यीकरण की संभावना दिखाते हैं, लेकिन फ़िलिस्तीनी मुद्दे का समाधान किए बिना स्थायी शांति संभव नहीं है।
  8. भारत की भूमिका: भारत, जो इज़राइल और फ़िलिस्तीन दोनों के साथ ऐतिहासिक रूप से अच्छे संबंध रखता है, शांति के लिए रचनात्मक भूमिका निभा सकता है। भारत संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर ‘दो-राज्य समाधान’ का समर्थन जारी रख सकता है और मानवीय सहायता में योगदान दे सकता है। भारत को अपने संतुलित दृष्टिकोण को बनाए रखना चाहिए और सभी पक्षों से संयम बरतने का आह्वान करना चाहिए।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन ‘बालफोर घोषणा (Balfour Declaration)’ के संबंध में सही है/हैं?

    1. यह प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन द्वारा जारी किया गया था।
    2. इसमें फ़िलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिए एक राष्ट्रीय घर की स्थापना का समर्थन किया गया था।
    3. यह संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना का आधार बनी।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: बालफोर घोषणा 1917 में ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर बालफोर द्वारा जारी की गई थी, जिसने फ़िलिस्तीन में यहूदी राष्ट्रीय घर के लिए ब्रिटिश समर्थन व्यक्त किया। यह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जारी हुई, न कि बाद में। यह संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना का सीधा आधार नहीं थी, बल्कि यहूदी राज्य की अवधारणा की नींव में से एक थी।

  2. ‘नकबा’ शब्द, जो अक्सर इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष के संदर्भ में उपयोग किया जाता है, निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?

    • (a) 1967 के छह-दिवसीय युद्ध में इज़राइल की जीत।
    • (b) 1948 के अरब-इज़राइल युद्ध के दौरान फ़िलिस्तीनियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन।
    • (c) गाज़ा पट्टी पर इज़राइल द्वारा लगाई गई आर्थिक नाकेबंदी।
    • (d) ओस्लो समझौते के तहत फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण का गठन।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: ‘नकबा’ (अरबी में ‘आपदा’) 1948 के अरब-इज़राइल युद्ध के दौरान और उसके परिणामस्वरूप लाखों फ़िलिस्तीनियों के विस्थापन और उनकी भूमि से पलायन को संदर्भित करता है।

  3. गाज़ा पट्टी की सीमाएँ निम्नलिखित में से किन देशों/संस्थाओं से लगती हैं?

    1. इज़राइल
    2. जॉर्डन
    3. मिस्र
    4. भूमध्य सागर

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल I, III और IV
    • (c) केवल II, III और IV
    • (d) I, II, III और IV

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: गाज़ा पट्टी की सीमाएँ पूर्व और उत्तर में इज़राइल से, दक्षिण-पश्चिम में मिस्र से, और पश्चिम में भूमध्य सागर से लगती हैं। जॉर्डन की सीमा गाज़ा से नहीं लगती।

  4. ओस्लो समझौते, जो इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थे, का प्राथमिक परिणाम क्या था?

    • (a) इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच एक पूर्ण शांति संधि पर हस्ताक्षर।
    • (b) फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) का गठन और वेस्ट बैंक तथा गाज़ा के कुछ हिस्सों में सीमित फ़िलिस्तीनी स्व-शासन।
    • (c) गाज़ा पट्टी से इज़राइली सेना और बस्तियों की पूर्ण वापसी।
    • (d) हमास को एक आधिकारिक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: ओस्लो समझौते (1993 और 1995) के परिणामस्वरूप फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) का गठन हुआ, जिसने वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी के कुछ हिस्सों में सीमित स्व-शासन प्राप्त किया। यह एक पूर्ण शांति संधि नहीं थी, न ही इसने गाज़ा से पूर्ण इज़राइली वापसी का प्रावधान किया (जो 2005 में हुई)। हमास को मान्यता नहीं मिली थी।

  5. निम्नलिखित में से कौन सा संगठन 2007 से गाज़ा पट्टी का नियंत्रण कर रहा है?

    • (a) फ़िलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO)
    • (b) फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (PA)
    • (c) फ़तह (Fatah)
    • (d) हमास (Hamas)

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: 2006 के फ़िलिस्तीनी चुनावों में जीत के बाद और उसके बाद फ़तह के साथ संघर्ष के बाद, हमास ने 2007 में गाज़ा पट्टी का पूर्ण नियंत्रण ले लिया।

  6. ‘दो-राज्य समाधान’ पदबंध, जो इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष के संदर्भ में अक्सर चर्चा में रहता है, का क्या अर्थ है?

    • (a) इज़राइल और जॉर्डन के बीच एक शांति समझौता।
    • (b) एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य का इज़राइल के साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व।
    • (c) इज़राइल और फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों का एक ही, एकजुट राज्य में विलय।
    • (d) गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक के लिए दो अलग-अलग फ़िलिस्तीनी प्रशासन।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: ‘दो-राज्य समाधान’ एक प्रस्ताव है जिसमें इज़राइल के साथ-साथ एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना की कल्पना की गई है, जो एक-दूसरे के साथ शांति और सुरक्षा में रहेंगे।

  7. गाज़ा पट्टी पर लगाई गई नाकेबंदी का प्राथमिक उद्देश्य, इज़राइल के दृष्टिकोण से, क्या है?

    • (a) गाज़ा में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
    • (b) हमास को हथियार और सैन्य सामग्री प्राप्त करने से रोकना।
    • (c) फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण को गाज़ा में सत्ता बहाल करने में मदद करना।
    • (d) गाज़ा पट्टी को इज़राइल में एकीकृत करना।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: इज़राइल का प्राथमिक तर्क है कि नाकेबंदी हमास को हथियार, विस्फोटक और अन्य दोहरे उपयोग वाली सामग्री प्राप्त करने से रोकने के लिए आवश्यक है, जिसका उपयोग इज़राइल के खिलाफ हमलों में किया जा सकता है।

  8. ‘सिक्स-डे युद्ध’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह 1967 में लड़ा गया था।
    2. इस युद्ध के परिणामस्वरूप इज़राइल ने सिनाई प्रायद्वीप और गोलन हाइट्स पर कब्ज़ा कर लिया।
    3. इसने गाज़ा पट्टी को मिस्र के नियंत्रण से हटाकर इज़राइली सैन्य कब्जे में ला दिया।

    ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: सिक्स-डे युद्ध 1967 में लड़ा गया था। इस युद्ध में इज़राइल ने सिनाई प्रायद्वीप (मिस्र से), गोलन हाइट्स (सीरिया से), वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम (जॉर्डन से), और गाज़ा पट्टी (मिस्र से) पर कब्ज़ा कर लिया। सभी कथन सही हैं।

  9. निम्नलिखित में से कौन सा संयुक्त राष्ट्र निकाय विशेष रूप से फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को सहायता और विकास कार्यक्रम प्रदान करता है?

    • (a) UNHRC (संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद)
    • (b) UNHCR (शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त का कार्यालय)
    • (c) UNRWA (संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी)
    • (d) UNDP (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम)

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: UNRWA (United Nations Relief and Works Agency for Palestine Refugees in the Near East) एक विशेष संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है जिसे 1949 में स्थापित किया गया था ताकि फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को मानवीय सहायता और विकास कार्यक्रम प्रदान किए जा सकें।

  10. गाज़ा पट्टी की पहचान अक्सर एक ‘खुली हवा वाली जेल’ के रूप में की जाती है। यह पदबंध मुख्य रूप से किस कारण से प्रयोग किया जाता है?

    • (a) यहाँ अत्यधिक आपराधिक गतिविधियाँ होती हैं।
    • (b) यहाँ के निवासियों को इज़राइल और मिस्र द्वारा लगाई गई कड़ी नाकेबंदी के कारण आवाजाही और आर्थिक गतिविधियों में अत्यधिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
    • (c) यहाँ प्राकृतिक संसाधनों की भारी कमी है।
    • (d) यहाँ कोई उचित कानून और व्यवस्था नहीं है।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: ‘खुली हवा वाली जेल’ पदबंध गाज़ा पट्टी के निवासियों द्वारा अनुभव की जाने वाली गंभीर आवाजाही प्रतिबंधों और आर्थिक नाकेबंदी को संदर्भित करता है, जिससे वे प्रभावी रूप से अपने क्षेत्र में फँस गए हैं और बुनियादी आवश्यकताओं की कमी का सामना कर रहे हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. गाज़ा में हालिया मानवीय संकट की ऐतिहासिक जड़ों और भू-राजनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण करें। इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष के दीर्घकालिक समाधान के लिए ‘दो-राज्य समाधान’ की प्रासंगिकता और चुनौतियों पर प्रकाश डालें। (250 शब्द)
  2. “गाज़ा पट्टी एक खुली हवा वाली जेल है।” इस कथन की समालोचनात्मक जांच करें और इज़राइल द्वारा लगाई गई नाकेबंदी के मानवीय, आर्थिक और सुरक्षा प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करें। क्या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार है? (250 शब्द)
  3. इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष में भारत की विदेश नीति के ऐतिहासिक और समकालीन आयामों का मूल्यांकन करें। भारत इस जटिल और संवेदनशील भू-राजनीतिक स्थिति में अपने राष्ट्रीय हितों को साधते हुए किस प्रकार संतुलन बनाए रख सकता है? (250 शब्द)

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