सामाजिक स्तरीकरण के आधार
( Bases of Social Stratification )
जाति ( Caste ) : सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख प्राणिशास्त्रीय आधार ‘ जाति ‘ है । भारत इसका ज्वलन्त उदाहरण है । इस जातिगत स्तरीकरण में सबसे ऊंचा ‘ ब्राह्मण ‘ को एवं निम्नतर स्थान ‘ शूद्र ‘ को प्राप्त है । इन दोनों छोरों के बीच क्रमश : अनेक जातियाँ हैं । यह स्तरीकरण बहुत कुछ स्थिर एवं दृढ़ है ।
सम्पत्ति ( Wealth ) : प्राचीन काल से ही सम्पत्ति सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार रहा है । समाज में जिन लोगों को जितनी अधिक सम्पत्ति होती है , उनकी स्थिति उतनी ऊँची मानी जाती है । वे जीवन की अनेक सुविधाओं को जुटाने में सफल होते हैं । ठीक इसके विपरीत जिन लोगों को जितनी कम सम्पत्ति होती है , उनकी स्थिति उतनी निम्न होती है । यही कारण है कि गरीबी स्थितिहीन होती है ।
व्यवसाय ( Occupation ) : व्यवसाय भी सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है । समाज में व्यवसाय की उच्चता एवं निम्नता के आधार पर उससे जुड़े लोगों की स्थिति तय होती है । जैसे – समाज में कुछ व्यवसाय को ऊँचा एवं प्रतिष्ठित माना जाता है । प्रशासक , डॉक्टर , प्राध्यापक आदि इसी में आते हैं । फिर दूसरी तरफ कुछ व्यवसाय को निम्न माना जाता है , जैसे – हजामत का काम , जूता बनाने का काम आदि । इस प्रकार जो लोग प्रशासन , चिकित्सा व शिक्षण से जुड़े हैं उनकी स्थिति ऊँची होती है । फिर जूता बनाने के काम से जुड़े लोगों की स्थिति निम्न होती है ।
लिंग ( Sex ) : सामाजिक स्तरीकरण का सबसे प्राचीन आधार लिंग – भेद है । अधिकांश समाजों में परुषों की स्थिति सियों की तलना में ऊंची मानी जाती है । जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जितनी अधिक सुविधाएं एवं स्वतंत्रता पुरुषों को प्राप्त है , उतनी स्त्रियों को नहीं ।
आय ( Age ) : सामाजिक स्तरीकरण का दूसरा प्राणिशास्त्रीय आधार आयु माना जाता रहा है । आयु प्रायः व्यक्ति की मानसिक परिपक्वता एवं अनुभव को प्रकट करती +-है । इसीलिए अधिकांश समाजों में अधिक आयु के व्यक्तियों को अधिक सम्मान , आदर – भाव एवं विशेष सुविधाएं प्रदान की जाती हैं ।
प्रजाति ( Race ) : प्रजातीय भिन्नता के आधार पर समाज में ऊंच – नीच का स्तरीकरण देखा जाता है । ऐसी मान्यता है कि प्रजातियों में श्रेष्ठ श्वेत प्रजाति ( काकेशियन ) है क्योंकि इसका रंग सफेद , रक्त उच्च स्तर का , उच्च मानसिक योग्यता एवं सभ्यता के प्रसारक हैं । इसके बाद क्रमश : योग्यता के अनुसार पीत प्रजाति ( मंगोलॉयड ) एवं सबसे नीचे श्याम प्रजाति ( नीग्रोयॉड ) हैं ।
धर्म ( Religion ) : धर्म – प्रधान समाजों में स्तरीकरण का आधार धर्म रहा है । जो व्यक्ति धर्म , धार्मिक ज्ञान , धार्मिक कर्मकाण्ड व विश्वास से अधिक जुड़े होते हैं , उनकी स्थिति आमलोगों से ऊँची होती है । भारत में धार्मिक गुरुओं . पुजारियों व धर्म – ज्ञानियों आदि की स्थिति ऊँची होने का मूल कारण उनका धर्म से जुड़ा होना है ।
राजनीति ( Politics ) : सामाजिक स्तरीकरण का एक महत्त्वपूर्ण आधार राजनीति कहा जाता है । जिसके हाथ में शासन की बागडोर होती है । उनकी स्थिति ऊँची होती है । साथ ही शासन – व्यवस्था के अन्तर्गत राजकीय सत्ता के आधार पर ऊंच – नीच का स्तरीकरण देखने को मिलता है । उदाहरणस्वरूप – भारत में शासन – व्यवस्था के अन्तर्गत सबसे ऊँचा स्थान राष्ट्रपति को प्राप्त है । फिर उसके बाद क्रमश : उप – राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , उप – प्रधानमंत्री , कैबिनेट स्तर के मंत्री व राज्य – मंत्री आदि आते हैं । इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक स्तरीकरण के अनेक आधार हैं ।
सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप
( Forms of social Stratification )
बन्द स्तरीकरण ( Closed Stratification ) : बन्द स्तरीकरण वह स्तरीकरण है जिसमें व्यक्ति की स्थिति निर्धारण जन्म के आधार पर होता है । साथ ही इसमें किसी प्रकार की गतिशीलता नहीं पाई जाती है । इस व्यवस्था अनसार जन्म से व्यक्ति के कार्य , हैसियत एवं सुविधा व असुविधा का निर्धारण हो जाता है । इस प्रकार के स्तर का सर्वोत्तम उदाहरण भारतीय जाति – व्यवस्था है । व्यक्ति की जाति का निर्धारण जन्म से होता है । लेकिन एक जाति हैसियत एवं स्थिति दसरी जाति की तलना में ऊंची या नीची होती है । जैसे — ब्राह्मण की स्थिति सबसे ऊपर की सबसे नीचे है । इन दो छोरों के बीच अनेक जातियाँ एवं उपजातियाँ हैं । फिर इनके स्थिति में परिवर्तन सा है । इसीलिए जाति को बन्द वर्ग के रूप में स्पष्ट किया जाता है । बन्द स्तरीकरण को जातिगत स्तरीकरण के नाम जाना जाता है । _
( 2 ) खुला स्तरीकरण ( Open Stratification ) : खला स्तरीकरण वह स्तरीकरण है जिसमें व्यक्ति की स्थिति निर्धारण उनकी योग्यता , क्षमता एवं कार्य – कशलता के आधार पर होता है । गतिशीलता ऐसे स्तरीकरण का एक प्रसव विशेषता है । इस व्यवस्था के अनुसार व्यक्ति अपने प्रयत्न के द्वारा उच्च या निम्न स्थिति प्राप्त कर सकता है । साथ ही एक बार जो स्थिति प्राप्त होगी , आवश्यक नहीं कि वह स्थिति बनी ही रहे । उसमें परिवर्तन संभव है । ऐसे स्तरीकरण का सर्वोत्तम उदाहरण वर्ग – व्यवस्था है । वर्ग का आधार कर्म होता है , कर्म से व्यक्ति एक उद्योगपति , मजदूर , प्राध्यापक एवं छात्र हो सकता है । इसी के अनुसार व्यक्ति का वर्ग निर्धारित होता है । साथ ही वर्ग खुला समूह है । व्यक्ति अपने वर्ग की सदस्यता बदल सकता है । जन्म के साथ व्यक्ति को अपने परिवार की वर्ग – स्थिति प्राप्त होती है । लेकिन अपनी योग्यता व क्षमता के आधार पर अपनी हैसियत में वृद्धि कर सकता है । इस प्रकार वर्ग – व्यवस्था के अन्तर्गत उच्च समह से निम्न समूह , निम्न से उच्च समूह तक पहुँचना संभव है । इसीलिए कुछ लोग खुला स्तरीकरण को वर्गगत स्तरीकरण भी कहते हैं ।
सामाजिक स्तरीकरण का महत्त्व या प्रकार्य
` ( Importance or Functions of Social Stratification )
कार्य को सरल बनाना ( Simplify the Work ) : सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था के अन्तर्गत व्यक्ति की योग्यता का निर्धारण हो जाता है । जैसे – जाति व्यवस्था के द्वारा एक खास जाति को खास योग्यता व कार्य प्राप्त होता है जिसे उसे पूरा करना होता है । उसी तरह वर्ग व्यवस्था के अन्तर्गत एक खास वर्ग की खास योग्यता व कार्य – शैली होती है जिसे उसे पूरा करना होता है । इस तरह सामाजिक स्तरीकरण के माध्यम से व्यक्ति को जानकारी मिल जाती है कि कौन – सा कार्य करना है और कैसे करना है । इससे कार्यों में सरलता होती है ।
मनोवत्तियों का निर्धारण ( Determine the Attitudes ) : सामाजिक स्तरीकरण का एक खास महत्त्व मानवाय मनोवृत्तियों का निर्धारण करना है । व्यक्ति जिस जाति , वर्ग या प्रस्थिति – समूह का सदस्य होता है , उसी के अनुसार उसका मनोवृत्तियों का विकास व निर्धारण होता है । इस दृष्टिकोण से सामाजिक स्तरीकरण व्यक्ति को अपनी मनोवृत्तियों के बारे में जागरूक बनाकर उन्हें अपना विकास स्वयं करने की प्रेरणा देता है ।
सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में सहायक ( Helpful in Maintaining SocialOrder ) : सामाजिक सारीकरण का एक महत्त्व यह है कि वह समाज में व्यवस्था बनाए रखने में सहायक होता है । इसके द्वारा जन्म व योग्यता के आधार पर समाज को विभिन्न वर्गों में बांट दिया जाता है तथा प्रत्येक वर्ग के व्यक्तियों के व्यवहार व ढंग निश्चित हो ।
साथ ही ऐसी व्यवस्था कर दी जाती है कि व्यक्ति अपने निश्चित कार्य – शैली को अपनाएं । इससे सामाजिक व्यवस्था बनी रहती है ।
सामाजिक एकीकरण में सहायक ( Helpful in Social Integration ) : सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था यो तथा समहों को विभिन्न वर्गों में बांट देती है । प्रत्येक वर्ग के व्यक्तियों के कार्य निश्चित होते हैं । एक व्यक्ति अपने कार्यों को परा कर अन्य कार्यों के सन्दर्भ में दूसरे पर निर्भर होता है । क्योंकि एक व्यक्ति की आवश्यकताएं केवल के दारा परी नहीं हो सकतीं । इससे व्यक्तियों व समूहों में आपस में पारस्परिक निर्भरता बनी रहती है । यह निर्भरता सामाजिक एकीकरण में सहायक होता है ।
सामाजिक प्रगति में सहायक ( Helpful in Social Progress ) : सामाजिक स्तरीकरण प्रगति में सहायक होता है । व्यवस्था का आधार चाहे जन्म हो ( जाति व्यवस्था ) या योग्यता ( वर्ग व्यवस्था ) दोनों ही व्यक्ति में अपने – अपने ढंग से सामाजिक मान्यता के अनुसार कार्य करने की प्रेरणा देता है । जाति – व्यवस्था के अन्तर्गत जाति – धर्म की बात कही जाती है । इस सिद्धांत के अनुसार , व्यक्ति के पिछले जन्म के कार्यों के आधार पर इस जन्म के कर्म निर्धारित हुए हैं , अत : उनका पालन अनिवार्य है । फलस्वरूप व्यक्ति स्वेच्छा से अपने कर्म को निभाता है । फिर वर्ग व्यवस्था में अधिक – से – अधिक योग्यता बढ़ाने का व्यक्ति प्रयास करता है ताकि वह उच्च स्थिति को प्राप्त कर सके । ये दोनों ही स्थितियाँ सामाजिक प्रगति में सहायक होती है । इस प्रकार उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि सामाजिक स्तरीकरण व्यक्ति व समूह दोनों ही स्तर पर अपने महत्त्व को दर्शाता है ।
आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक ( Helpful in Fulfilment ofNeeds ) : व्यक्तियों की अनेक आवश्यकताएँ होती हैं । कोई भी व्यक्ति अपनी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं नहीं कर सकता । सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था के द्वारा व्यक्तियों के कार्यों का विभाजन हो जाता है । प्रत्येक व्यक्ति अपने निश्चित कार्य को कुशलता से करके लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होता है ।
प्रस्थिति का निर्धारण ( Determination of Status ) : सामाजिक स्तरीकरण का एक खास महत्त्व यह है कि इसके द्वारा व्यक्तियों को समाज में उचित स्थान मिलता है जिसे उसकी प्रस्थिति कही जाती है । समाज में हर एक व्यक्ति की योग्यता , क्षमता एवं कार्य – कुशलता एक समान नहीं होती । एक स्वस्थ समाज के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति की योग्यता के अनुसार प्रस्थिति प्राप्त हो । इस आवश्यकता की पूर्ति सामाजिक स्तरीकरण द्वारा हो जाता है ।