परिवार
( Family )
विश्व का ऐसा कोई भी समाज नहीं है , जहाँ परिवार नाम की संस्था नहीं है । यह प्रत्येक समाज में किसी – न – किसी रूप में अवश्य पाया जाता है । परिवार के द्वारा मनुष्य की जिन – जिन आवश्यकताओं की पूर्ति होती है वह अन्य समूहों अथवा संस्थाओं के द्वारा सम्भव नहीं है । यही कारण है कि मनुष्य परिवार की आवश्यकता का अनुभव करता है और परिवार में रहता है । व्यक्ति इस संसार में असहाय रूप में जन्म लेता है , किन्तु परिवार में उसका भरण – पोषण होता है और धीरे – धीरे वह समाज के रीति – रिवाजों को सीखता है । अर्थात् परिवार में ही व्यक्ति का समाजीकरण होता है और वह एक सामाजिक प्राणी बन जाता है । वैसे व्यक्ति आजीवन कुछ – न – कुछ सीखता ही रहता है , किन्तु परिवार में उसे सामाजिक जीवन की प्रारम्भिक शिक्षा मिलती है । अतः परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण केन्द्र है । समाज का अस्तित्व बहुत हद तक परिवार नाम की संस्था पर ही निर्भर है । प्रत्येक समाज की अपनी संस्कृति होती है , जिन्हें परिवार ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित करता है । समाज एवं उसकी संस्कृति की निरन्तरता बनाये रखने का कार्य परिवार के द्वारा ही होता है । इस प्रकार परिवार एक सार्वभौमिक संस्था के रूप में हर समाज में पाया जाता है ।
परिवार का अर्थ एवं परिभाषा
( Meaning and Definition of Family )
परिवार ( Family ) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘ Famulus ‘ शब्द से हुई है जिसके अन्तर्गत माता – पिता . बच्चे , नौकर और गुलाम भी सम्मिलित किये जाते है । सामान्य तौर पर परिवार में माता – पिता एवं उनके बच्चे सम्मिलित किये जाते है । विभिन्न समाज में परिवार के लिए भिन्न – भिन्न शब्दों का प्रयोग होता रहा है । परिवार की परिभाषा के सम्बन्ध में भी समाजशास्त्रियों के बीच एक मत नहीं है । विभिन्न विद्वानों ने अपने – अपने शब्दों में अपने विचारों को व्यक्त किया है । यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण परिभा षाओं का उलेख किया जा रहा है
मेकाइवर एवं पेज ( Maclver and Page ) के अनुसार , ” परिवार एक समूह है , जो यौन सम्बन्धों पर आधारित होता है । इसका आकार छोटा होता है और यह बच्चों के जन्म एवं पालन – पोषण की व्यवस्था करता मेकाइवर की परिभाषा में चार प्रमुख बातें कही गई हैं – ( ) यौन सम्बन्धों पर आधारित समूह ( ii ) सीमित आकार ( iii ) बच्चों का जन्म तथा ( iv ) उनका लालन – पालन । इस परिभाषा से परिवार की संरचना एवं उसके प्रकार्यों के विषय में भी जानकारी होती है ।
( Ogburn and Nimcoff ) के अनुसार , ” परिवार पति – पत्नी का बच्चों सहित स्थायी संघ है या फिर एक स्त्री अथवा पुरुष का अकेले बच्चों के साथ रहने का स्थायी संघ है । इस परिभाषा में परिवार को एक संघ बताया गया है जिसमें पति – पत्नी तथा बच्चे होते हैं अथवा एक स्त्री या पुरुष बच्चे के साथ रहते हैं । अर्थात् पति – पत्नी में से किसी एक के नहीं रहने पर भी बच्चों के साथ का संघ परिवार कहलाता है ।
किंग्सले डेविस ( Kingsley Davis ) ने परिवार की परिभाषा देते हुए कहा है कि परिवार व्यक्तियों का समूह है , जिसमें वैवाहिक सम्बन्ध के आधार पर लोग एक – दूसरे से सम्बद्ध होते हैं तथा वे एक दूसरे के रक्त – सम्बन्धी भी होते है ।
जिस्बर्ट ( Gisbert ) ने भी ऑगबर्न के समान ही परिवार की परिभाषा देते हुए कहा कि ” साधारणतया परिवार में एक स्त्री और पुरुष का एक या एक से अधिक बच्चों के साथ स्थायी सम्बन्ध होता है ।
बर्गेस तथा लॉक ( Burgess and Locke ) के अनुसार , ‘ परिवार व्यक्तियों का समूह है , जो विवाह , रक्त या गोद लेने के सम्बन्धों द्वारा संगठित होता है , एक गृहस्थी का निर्माण करता है , जिसमें पति – पत्नी , माता – पिता , पुत्र – पुत्री तथा भाई – बहन अपने सामाजिक कार्यों के लिए एक – दूसरे के साथ अन्तःक्रिया करते हैं और एक सामान्य संस्कृति का निर्माण करते हैं तथा उसे बनाये रखते हैं ।
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि परिबार व्यक्तियों का एक समूह है जो विवाह तथा रक्त – सम्बन्धों द्वारा संगठित होता है । इनके बीच प्रत्यक्ष तथा प्राथमिक सम्बन्ध होते हैं । यह एक स्थायी संगठन है , जिसमें लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है और वे परस्पर हम की भावना से बँधे होते हैं । मेकाइवर ने अपनी परिभा षा मे यौन सम्बन्ध को परिवार का आधार बताया है । विवाह – संस्था के द्वारा पति – पत्नी को परिवार में यौन सम्बन्ध रखने की स्वीकृति मिलती है , जिसके फलस्वरूप बच्चों का जन्म होता है और समाज की निरन्तरता बनी रहती है ।
परिवार की विशेषताएँ
( Characteristics of Family )
भावनात्मक आधार ( Emotional Basis ) – परिवार के सदस्यों के बीच भावनात्मक सम्बन्ध पाये जाते हैं । इनके बीच प्रेम , सहयोग , सहानुभूति , त्याग एवं स्नेह की भावना उमड़ती रहती है । ये गुण अन्य किसी समिति या संगठन में देखने को नहीं मिलते । परिवार इन्हीं भावनात्मक आधारों पर टिका हआ है । परिवार के सभी सदस्यों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध का आधार भी यही है जो इसे स्थायित्व प्रदान करता है ।
सीमित आकार ( Limited Size ) – परिवार का आकार सीमित होता है । साधारणतया परिवार में पति – पत्नी एवं उनके बच्चे होते हैं किन्तु इनके अतिरिक्त अन्य नजदीक के रक्त – सम्बन्धी भी होते हैं । परिवार का आकार समाज की संरचना पर निर्भर करता है । ग्रामीण एवं सरल समाज में परिवार का आकार अपेक्षाकृत बड़ा हाता है , किन्तु आधुनिक एवं जटिल समाज में परिवार का आकार दिनोदिन छोटा होता जा रहा है । इसमें सिर्फ पति – पत्नी एवं उनके अविवाहित बच्चे ही रहते
रचनात्मक प्रभाव(Eormative Influence ) – परिवार का रचनात्मक प्रभाव होता है । व्यक्ति के तत्व के निर्माण में परिवार की बहुत बड़ी भूमिका होती है । प्रत्येक समाज के अपने नियम एवं तरीके होते जिसे व्यक्ति परिवार के माध्यम से सीखता है । परिवार व्यक्ति को समाज के अनुकूल बनाता है । यह व्यक्ति को जैवकीय प्राणी से सामाजिक प्राणी के रूप में बदल देता है । जीवन के प्रारम्भिक स्तर पर व्यक्ति जिन आदतो एवं व्यवहारो को अपनाता है उसे जीवन भर नहीं भूलता । यह उसके व्यक्तित्व का गुण बन जाता है । परिवार के सभी सदस्य एक – दूसरे के ऊपर रचनात्मक प्रभाव डालते है ।
विवाह सम्बन्ध ( A mating relationship ) – विवाह सम्बन्ध के द्वारा ही एक स्त्री – पुरुष परिवार का निर्माण करते हैं । यह सम्बन्ध थोड़े समय के लिए या जीवन भर के लिए होता है । संसार के विभिन्न समाज में विवाह का कोई – न – कोई रूप अवश्य होता है । वैवाहिक सम्बन्ध के द्वारा स्त्री – पुरुष , पति – पत्नी के रूप में बँध जाते हैं और समाज के दायित्वों को निभाते हैं । वैवाहिक सम्बन्ध टूटने पर परिवार में विघटन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है
विवाह का एक स्वरूप ( A form of marriage ) – प्रत्येक समाज में विवाह का एक स्वरूप होता है । यह भिन्न स्थानों में भिन्न स्वरूप में पाया जाता है । उदाहरण के लिए किसी समाज में एक विवाही परिवार का प्रचलन है तो किसी समाज में बहुविवाही परिवार का । इससे स्पष्ट होता है कि विवाह संस्था का एक स्वरूप होता है , जो समाज विशेष में प्रचलित होता है । (
वंशनाम की व्यवस्था ( A system of nomenclature ) प्रत्येक परिवार एक नाम के द्वारा जाना जाता है । इस नाम को उपनाम या वंशनाम कहते हैं । परिवार व्यक्ति के वंशनाम का आधार होता है । यह वंशनाम पिता व माता के वंश के आधार पर चलता है ।
सामान्य निवास ( A common habitation ) प्रत्येक परिवार का एक सामान्य निवास स्थान होता है , जहाँ इसके सभी सदस्य निवास करते है । सामान्य स्थान में निवास करने पर ही उनके बीच पारस्परिक सम्बन्ध एवं घनिष्ठता बनी रहती है । उनके बीच कर्त्तव्य एवं दायित्व की भावना भी क्रियाशील रहती है । सामान्य स्थान पर निवास करने के कारण पति – पत्नी बच्चों का जन्म तथा उनका लालन – पालन करने में समर्थ होते हैं । परिवार के सभी सदस्य ‘ हम की भावना ‘ से प्रेरित होकर कार्य करते हैं ।
सार्वभौमिकता ( Universality ) – परिवार एक सार्वभौमिक समूह है । विश्व का कोई भी समाज , चाहे वह आधुनिक हो या परम्परागत , शहरी हो या ग्रामीण , जटिल हो या सरल , वहाँ परिवार अवश्य पाया जाता है । विभिन्न स्थानों पर परिवार के स्वरूप में अन्तर हो सकता है , किन्तु यह किसी – न – किसी रूप में अवश्य पाया जाता है । परिवार के बिना मानव – समाज की कल्पना नहीं की जा सकती । इसके द्वारा मनुष्य की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है , जिनकी पूर्ति किसी अन्य समूह के द्वारा सम्भव नहीं है । अत : परिवार एक सार्वभौमिक समूह
परिवार की स्थायी व अस्थायी प्रकृति ( Permanent and temporary nature of Family ) परिवार को जब व्यक्ति का समूह मानते हैं तब वह अस्थायी है और यदि इसे नियमों का संकलन मानते है तब यह स्थायी है । परिवार के नियम , जैसे विवाह , सम्पत्ति के उत्तराधिकार के नियम इत्यादि को ध्यान में रखते हैं , तो पाते है कि ये नियम सदैव वर्तमान रहते है । इस अर्थ में परिवार स्थायी प्रकृति का है । किन्तु जब उसर्क सदस्यता को ध्यान में रखते हैं तो इसके सदस्य समाप्त व नष्ट हो सकते हैं , जैसे – विवाह – विच्छेद , मृत्यु इत्यादि । इस दृष्टिकोण से परिवार अस्थायी है । कहने का तात्पर्य यह है कि परिवार संस्था के रूप में स्थायी है जकि समिति के रूप में अस्थायी ।