सामुदायिक विकास योजनाएँ

सामुदायिक विकास योजनाएँ

( Community Development Programmes )

 भारत में नियोजित परिवर्तन के अन्तर्गत सामुदायिक विकास योजना का महत्त्वपूर्ण स्थान है । ग्रामीण तथा जनजातीय क्षेत्र के निवासी प्रशिक्षा , ऋण यस्तता , बेकारी , दोषपूर्ण कृषि एवं भूमि व्यवस्था से ग्रसित हैं । भारतवर्ष में यह कार्यक्रम ग्रामीण समुदाय के बहुमुखी उद्देश्य को लेकर प्रारम्भ हुआ था सामुदायिक परियोजनाएं इटावा , गोरखपुर , फरीदाबाद तथा नीलाखेड़ी आदि के परीक्षण योजनाओं के परिणाम हैं । सन् 1952 में इस आन्दोलन को प्रारम्भ किया गया । इस आन्दोलन के अन्तर्गत समुदाय की मूल आवश्यकानों को आधार मान कर कार्यक्रम बनाए जाते हैं ।

स्थानीय , मानवीय एवं प्रकृतिक साधनों का पूर्ण उपयोग किया जाता है तथा सामाजिक आर्थिक विषमतामों को समाप्त करने के लिए सफलताओं का सभी वर्गों में समान बँटवारा कर दिया जाता है । इसके अन्तर्गत लगभग 3 लाख ग्रामीण जनसंख्या के ऊपर एक विकास खण्ड की स्थापना की जाती है ।

सामुदायिक विकास खण्डों का प्रमुख कार्य कृषि में सुधार करना , भूमि – सुधार करना , उन्नत नस्ल के पशुमों को उपलब्ध कराना , गाँवों में प्राथिक , सामाजिक , साँस्कृतिक , बौद्धिक गतिविधियों द्वारा गांव वालों का जीवन – स्तर ऊँचा उठाना , लघु तथा कुटीर उद्योगों का विस्तार करना एवं उनकी स्थापना में सहायता देना है । स्वास्थ्य , सफाई , शिक्षा आदि की सुविधाएँ उपलब्ध कराना इत्यादि कार्य तथा गाँवों में सहकारी अान्दोलन को बढ़ावा देना इस कार्यक्रम के उद्देश्य हैं । प्रत्येक खण्ड में एक अधिकारी , कृषि , पशुपालन , उद्योग तथा समाज शिक्षा के विशेषज्ञ आदि होते हैं । ग्रामीण स्तर पर सम्पर्क सूत्र ग्रामीण स्तर का कार्यकर्ता होता है ।

इस कार्यक्रम ने ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों को आगे बना में काफी सहायता दी । जनजातीय क्षेत्रों की समस्याएँ ग्रामीण क्षेत्रों से भिन्न होती हैं अतः पर ट्राइबल डेवलपमेन्ट ब्लॉक्स की स्थापना की गई । जनजातीय समुदाय की आवश्यकताओं और उपलब्ध साधनों के आधार पर उनके जीवन के सर्वांगीण विकास के प्रयास इन नियोजित कार्यक्रमों के माध्यमों से किए गए । नगरीय सामुदायिक विकास कार्यक्रम इस दिशा में एक नवीन प्रयास है । इसके अन्तर्गत नगरीय समुदायों के सर्वांगीण विकास के कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए । हैं । नगरीय व्यक्तियों की अपनी समस्याएँ हैं भौतिक और सामाजिक । प्रशिक्षित सामुदायिक संगठनों की देख – रेख में ये कार्यक्रम चलाए जाते हैं ।

दिल्ली में एक अग्रगामी योजना ( 1958 ) सर्वप्रथम प्रारम्भ हुई । इसमें नगरीय समुदाय की । कई विकास मण्डलों को मिलाकर पड़ोसी परिषदें बनाई जाती हैं । प्रात्म – सहायता । के सिद्धान्त पर आवश्यक सरकारी सहायता से नागरिकों का सहयोग प्राप्त कर उनकी समस्याएँ दूर की जाती हैं तथा उनमें सामुदायिक भावनाओं को उत्पन्न किया जाता है । सड़कों की मरम्मत , बाजार , नल – बिजली , खेलकूद इत्यादि के कार्यक्रम प्रत्येक मण्डल के क्षेत्र में लिए जाते हैं । म्युनिसिपल कारपोरेशनों के । अन्तर्गत एक नगर विकास विभाग की स्थापना की जाती है । अब इस प्रकार के कार्यक्रम 1982 के पश्चात् जमशेदपुर , बम्बई , मद्रास , कलकता जैसे बड़े नगरों में । प्रारम्भ किए जा चुके हैं । इस प्रकार नगरीय , ग्रामीण तथा जनजातीय सभी क्षेत्रों में सामुदायिक विकास योजनाओं के माध्यम से परिवर्तन लाए जा रहे हैं ।

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 पंचायती राज योजना

( Panchayati Raj Yojna )

 ग्रामीण सामुदायिक विकास कार्यक्रम में यह प्राशा की गई थी कि ग्राम । विकास के अपने ही आन्दोलन में ग्रामीण जनता अपना पूरा – पूरा सहयोग देगी । 1955 में केन्द्रीय मूल्यांकन कमेटी के अध्ययन से यह स्पष्ट हया कि जन – सहयोग । प्राप्ति के लक्ष्य की पूर्ति नहीं हुई । यह पाया गया कि विकास कार्यक्रम पूर्ण रूप से । सरकारी अधिकारियों के हाथ में हैं । सरकार ही विकास सम्बन्धी नीतियाँ । निर्धारित करती है और क्रियान्वयन भी करती है ।

अतः लोकतान्त्रिक विकेन्द्रा करण के आदर्श को ध्यान में रखते हुए सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को क्रियान्वित । करने के लिए पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत सत्ता सरकारी अधिकारिया । हाथ से ग्रामीण जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में आ गई । ग्रामीण जनता के प्रतिनिधियों के अधीन खण्ड – विकास अधिकारी कार्य करने लगे । आज भारत में लगभग 2 लाख 25 हजार पंचायतें हैं । पंचायत अधिकारी गांवों के नए नेता के रूप में सामने आए । 

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