संकल्पनात्मक स्पष्टता की कसौटी: समाजशास्त्र का दैनिक अभ्यास!
समाजशास्त्र के समर्पित अभ्यार्थियों, आपकी बौद्धिक यात्रा को एक नया आयाम देने के लिए हम आ गए हैं! अपनी अवधारणाओं को परखने, अपने ज्ञान को निखारने और प्रतिस्पर्धा की दौड़ में आगे बढ़ने के लिए तैयार हो जाइए। आज के इस दैनिक अभ्यास सत्र में 25 चुनिंदा प्रश्नों के माध्यम से समाजशास्त्र के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करें और अपनी विश्लेषणात्मक शक्ति का लोहा मनवाएं।
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों को हल करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में ‘अलगाव’ (Alienation) का प्रमुख कारण क्या है?
- बुर्जुआ वर्ग द्वारा सर्वहारा वर्ग का शोषण
- उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व
- राज्य का दमनकारी स्वरूप
- धार्मिक आडंबर और पाखंड
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: कार्ल मार्क्स ने ‘अलगाव’ की अवधारणा को उत्पादन की प्रक्रिया से श्रमिकों के विच्छिन्न होने के रूप में समझाया। पूंजीवादी व्यवस्था में, श्रमिक उत्पादन के साधनों (जैसे कारखाने, मशीनें) पर नियंत्रण नहीं रखते, बल्कि वे केवल अपनी श्रम शक्ति बेचते हैं। इससे वे उत्पाद (जो वे बनाते हैं), उत्पादन की प्रक्रिया, स्वयं अपनी ‘प्रजाति-सार’ (species-essence) और अन्य मनुष्यों से अलग-थलग महसूस करते हैं। उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व इस अलगाव का मूल कारण है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने अपनी कृति ‘इकोनॉमिक एंड फिलॉसॉफिकल मैनुस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ में अलगाव के चार मुख्य आयामों – उत्पाद से अलगाव, उत्पादन प्रक्रिया से अलगाव, स्वयं से अलगाव और अन्य मनुष्यों से अलगाव – का विस्तृत विश्लेषण किया है।
- गलत विकल्प: (a) बुर्जुआ वर्ग का शोषण अलगाव का परिणाम और कारण दोनों है, लेकिन मूल कारण उत्पादन के साधनों पर उनका स्वामित्व है। (c) राज्य को मार्क्स अक्सर बुर्जुआ वर्ग के हितों की रक्षा करने वाले मानते हैं, जो अलगाव को बनाए रखता है, पर वह स्वयं अलगाव का प्राथमिक कारण नहीं है। (d) धार्मिक आडंबर मार्क्स के लिए ‘जनता की अफीम’ है, जो अलगाव को छिपाने में मदद करता है, पर यह अलगाव का मूल कारण नहीं है।
प्रश्न 2: मैक्स वेबर ने ‘प्रशासनिक तर्कसंगतता’ (Bureaucratic Rationality) का विश्लेषण करते हुए किन विशेषताओं को रेखांकित किया है?
- वंशानुगत पद, व्यक्तिगत निष्ठा, और परंपरा आधारित निर्णय
- विशिष्ट अधिकार क्षेत्र, श्रेणीबद्ध संरचना, और लिखित नियम
- अनौपचारिक संबंध, भावनात्मक निर्णय, और मनमानी शक्ति
- सामुदायिक भावना, अनियंत्रित निर्णय, और गुप्त संचार
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: मैक्स वेबर ने ‘आदर्श प्रारूप’ (Ideal Type) के रूप में नौकरशाही की विशेषताओं का वर्णन किया। ये विशेषताएँ दक्षता और पूर्वानुमान क्षमता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। इनमें एक स्पष्ट श्रम विभाजन (विशिष्ट अधिकार क्षेत्र), एक पदानुक्रमित आदेश (श्रेणीबद्ध संरचना), और नियमों और प्रक्रियाओं का एक लिखित सेट (लिखित नियम) शामिल है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने अपनी कृति ‘इकोनॉमी एंड सोसाइटी’ में नौकरशाही को आधुनिक समाज में शक्ति और प्रभुत्व के सबसे तर्कसंगत और कुशल रूपों में से एक माना। उन्होंने इसे ‘वैध-तर्कसंगत अधिकार’ (Legal-Rational Authority) का एक रूप बताया।
- गलत विकल्प: (a), (c), और (d) में दी गई विशेषताएँ (जैसे व्यक्तिगत निष्ठा, परंपरा, अनौपचारिक संबंध, भावनात्मक निर्णय, मनमानी शक्ति, सामुदायिक भावना, अनियंत्रित निर्णय, गुप्त संचार) नौकरशाही की तर्कसंगत और कुशल विशेषताओं के विपरीत हैं और पारंपरिक या करिश्माई अधिकार के तत्वों से जुड़ी हो सकती हैं।
प्रश्न 3: Émile Durkheim के अनुसार, ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता क्या है?
- वे व्यक्तियों की चेतना से उत्पन्न होते हैं।
- वे व्यक्ति पर बाहरी दबाव डालते हैं और बाह्यता रखते हैं।
- वे पूरी तरह से व्यक्तिपरक अनुभव पर आधारित होते हैं।
- उनका अध्ययन केवल व्यक्तिगत मनोविज्ञान के माध्यम से किया जा सकता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्यों’ को ‘समाज के प्रत्येक तरीके’ के रूप में परिभाषित किया, जो व्यक्ति पर बाहरी दबाव डालते हैं और बाह्यता रखते हैं। इसका मतलब है कि सामाजिक तथ्य व्यक्ति की इच्छा, विचारों या भावनाओं से स्वतंत्र रूप से मौजूद होते हैं और व्यक्ति को उनके अनुरूप व्यवहार करने के लिए बाध्य करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में इस अवधारणा को पेश किया। उन्होंने सामाजिक तथ्यों को ‘वस्तुओं’ की तरह अध्ययन करने पर जोर दिया। उदाहरण के लिए, कानून, रीति-रिवाज, नैतिक नियम, फैशन, मुद्रा आदि सामाजिक तथ्य हैं।
- गलत विकल्प: (a) सामाजिक तथ्य व्यक्तियों की चेतना से नहीं, बल्कि समाज से उत्पन्न होते हैं। (c) वे व्यक्तिपरक न होकर वस्तुनिष्ठ होते हैं। (d) उनका अध्ययन समाजशास्त्रीय है, व्यक्तिगत मनोविज्ञान का नहीं, क्योंकि वे सामूहिक चेतना का परिणाम होते हैं।
प्रश्न 4: जॉर्ज सिमेल (Georg Simmel) ने ‘सूक्ष्म समाजशास्त्र’ (Micro-sociology) के क्षेत्र में विशेष रूप से किन संबंधों का अध्ययन किया?
- बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचनाएँ और संस्थाएँ
- वर्ग संघर्ष और सामाजिक स्तरीकरण
- व्यक्तियों के बीच छोटी, अंतरंग बातचीत और संबंध
- राज्य की भूमिका और राजनीतिक व्यवस्था
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: जॉर्ज सिमेल को अक्सर माइक्रो-समाजशास्त्र के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने विशेष रूप से व्यक्तियों के बीच होने वाली छोटी, क्षणिक और अंतरंग बातचीत (जैसे बातचीत, स्नेह, प्रतिद्वंद्विता) का अध्ययन किया, जो सामाजिक जीवन को आकार देते हैं। उन्होंने ‘रूप’ (Form) पर अधिक ध्यान केंद्रित किया, बजाय ‘सामग्री’ (content) के।
- संदर्भ और विस्तार: उनकी प्रसिद्ध कृतियों में ‘द फिलॉसॉफी ऑफ मनी’ और ‘सोशियोलॉजी’ शामिल हैं, जहाँ उन्होंने सामाजिक रूपों, अमूर्तता, शहरी जीवन के प्रभाव और सामाजिक अंतःक्रियाओं का विश्लेषण किया।
- गलत विकल्प: (a) बड़े पैमाने पर संरचनाओं का अध्ययन मैक्रो-समाजशास्त्र का विषय है, जैसा कि मार्क्स या वेबर ने किया। (b) वर्ग संघर्ष मार्क्स का मुख्य सरोकार था। (d) राज्य और राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन भी मैक्रो-स्तरीय है।
प्रश्न 5: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा ‘सांस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा को किस संदर्भ में समझाया गया है?
- निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, परंपराओं और देवताओं को अपनाना।
- पश्चिम के जीवन शैली, मूल्यों और व्यवहारों का अनुकरण।
- आधुनिक शिक्षा, प्रौद्योगिकी और लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाना।
- शहरी जीवन शैली का ग्रामीण जीवन पर प्रभाव।
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘सांस्कृतिकरण’ शब्द का प्रयोग भारतीय संदर्भ में किया, जहाँ निम्न जातियों या जनजातियों के समूह अक्सर उच्च जातियों (विशेषकर ‘द्विजों’) के धार्मिक अनुष्ठानों, खान-पान, वेशभूषा और जीवन शैली का अनुकरण करते हैं ताकि वे सामाजिक पदानुक्रम में अपनी स्थिति को सुधार सकें।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में पहली बार प्रस्तुत की गई थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है।
- गलत विकल्प: (b) ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) पश्चिमी संस्कृति को अपनाने से संबंधित है। (c) ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) एक व्यापक अवधारणा है जो तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों से संबंधित है। (d) यह शहरीकरण (Urbanization) या ग्रामीण-शहरी अंतःक्रिया का वर्णन है।
प्रश्न 6: टैल्कॉट पार्सन्स (Talcott Parsons) द्वारा प्रतिपादित ‘सामाजिक व्यवस्था’ (Social System) के चार प्रमुख क्रियात्मक पूर्व-आवश्यकताएँ (Functional Pre-requisites) कौन सी हैं?
- लक्ष्य प्राप्ति, एकीकरण, व्यवस्था बनाए रखना, अनुपालन
- अनुपालन, सामंजस्य, अनुकूलन, व्यवस्था बनाए रखना
- अनुकूलन, लक्ष्य प्राप्ति, एकीकरण, व्यवस्था बनाए रखना
- लक्ष्य प्राप्ति, सामंजस्य, अनुकूलन, अनुपालन
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: पार्सन्स ने अपने AGIL मॉडल (Adaptation, Goal Attainment, Integration, Latency/Pattern Maintenance) में किसी भी सामाजिक व्यवस्था के चार आवश्यक कार्यों का वर्णन किया है। ‘अनुकूलन’ (Adaptation) पर्यावरण से निपटने की क्षमता है, ‘लक्ष्य प्राप्ति’ (Goal Attainment) सामूहिक लक्ष्यों को परिभाषित करने और प्राप्त करने की क्षमता है, ‘एकीकरण’ (Integration) व्यवस्था के विभिन्न भागों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है, और ‘व्यवस्था बनाए रखना’ (Latency/Pattern Maintenance) व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता और उसके मूल्यों को बनाए रखना है।
- संदर्भ और विस्तार: यह मॉडल सामाजिक व्यवस्था को स्थिर रखने वाले अंतर्निहित कार्यों पर केंद्रित है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्पों में कार्यों का मिश्रण या गलत नामकरण है। उदाहरण के लिए, ‘सामंजस्य’ (Harmony) एकीकरण (Integration) का हिस्सा है, लेकिन अपने आप में एक अलग पूर्व-आवश्यकता नहीं है। ‘अनुपालन’ (Compliance) भी एकीकरण या व्यवस्था बनाए रखने का हिस्सा हो सकता है।
प्रश्न 7: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘मान्यता’ (Validity) से क्या तात्पर्य है?
- अनुसंधान के निष्कर्षों की स्थिरता और पुनरुत्पादकता।
- माप उपकरण द्वारा वास्तव में वही मापना जो मापा जाना है।
- अनुसंधान प्रक्रिया का निष्पक्षतापूर्ण अवलोकन।
- विभिन्न चरों के बीच कारण-कार्य संबंध की स्थापना।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: मान्यता (Validity) यह सुनिश्चित करती है कि कोई माप उपकरण (जैसे प्रश्नावली, पैमाना) वही मापे जिसके लिए उसे बनाया गया है। यदि आप गरीबी का अध्ययन कर रहे हैं और आपका उपकरण आय को माप रहा है, लेकिन आय गरीबी का केवल एक पहलू है, तो उपकरण की मान्यता संदिग्ध हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में, एक विश्वसनीय (reliable) उपकरण वह है जो बार-बार एक ही परिणाम देता है, जबकि एक वैध (valid) उपकरण वह है जो वास्तव में उस अवधारणा को मापता है जिसे वह मापने का दावा करता है।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘विश्वसनीयता’ (Reliability) की परिभाषा है। (c) यह अनुसंधान की निष्पक्षता (Objectivity) से संबंधित है। (d) यह कार्य-कारण संबंध (Causality) की स्थापना से संबंधित है, जो केवल एक विशेष प्रकार की मान्यता (आंतरिक मान्यता) के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 8: भारतीय समाज में ‘पवित्र’ (Sacred) और ‘अपवित्र’ (Profane) की अवधारणा का संबंध किस समाजशास्त्री से है?
- डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
- एम.एन. श्रीनिवास
- ई. ई. इवांस-प्रिचार्ड
- एमिल दुर्खीम
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘द एलिमेन्ट्री फॉर्म्स ऑफ रिलीजियस लाइफ’ (The Elementary Forms of Religious Life) में धर्म के समाजशास्त्रीय अध्ययन के दौरान ‘पवित्र’ और ‘अपवित्र’ की द्वंद्वात्मकता का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि समाज धर्म को दो मौलिक श्रेणियों में विभाजित करता है: पवित्र (revered, sacred) और अपवित्र (mundane, profane)।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, पवित्र वस्तुएँ वे होती हैं जिन्हें समाज द्वारा विशेष सम्मान और अलगाव प्रदान किया जाता है, जबकि अपवित्र वे रोजमर्रा की वस्तुएँ हैं। धर्म इन दोनों के बीच एक संबंध स्थापित करता है।
- गलत विकल्प: (a) अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था और सामाजिक न्याय पर विस्तार से लिखा। (b) श्रीनिवास ने भारतीय गाँव, जाति और धर्म का अध्ययन किया, लेकिन पवित्र/अपवित्र की मूल अवधारणा दुर्खीम की है। (c) इवांस-प्रिचार्ड एक मानवविज्ञानी थे जिन्होंने न्देर (Nuer) और ज़ूनी (Zuni) जनजातियों का अध्ययन किया।
प्रश्न 9: ‘सामुदायिक संगठन’ (Community Organization) की अवधारणा, जिसमें ‘गेमेन्शाफ्ट’ (Gemeinschaft) और ‘गेसेलशाफ्ट’ (Gesellschaft) जैसे विचार शामिल हैं, किस समाजशास्त्री के कार्य से मुख्य रूप से जुड़ी है?
- मैक्स वेबर
- फर्डिनेंड टोनीज़
- आगस्ट कॉम्ते
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: फर्डिनेंड टोनीज़ ने अपनी पुस्तक ‘Gemeinschaft und Gesellschaft’ (Community and Society) में इन दो प्रकार के सामाजिक संगठनों का विश्लेषण किया। गेमेन्शाफ्ट (समुदाय) घनिष्ठ, व्यक्तिगत और भावनात्मक संबंधों पर आधारित होता है, जैसे कि परिवार या पारंपरिक गाँव। गेसेलशाफ्ट (सोसाइटी) या समाज, अमूर्त, यांत्रिक और स्वार्थी संबंधों पर आधारित होता है, जैसे कि आधुनिक बड़े शहर या निगम।
- संदर्भ और विस्तार: यह विश्लेषण समुदाय से समाज की ओर संक्रमण को समझने में मदद करता है।
- गलत विकल्प: (a) वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता पर काम किया। (c) कॉम्ते को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है और उन्होंने प्रत्यक्षवाद (Positivism) का सिद्धांत दिया। (d) स्पेंसर ने विकासवाद (Evolutionism) और सामाजिक डार्विनवाद (Social Darwinism) पर काम किया।
प्रश्न 10: जाति व्यवस्था के अध्ययन में ‘प्रभु जाति’ (Dominant Caste) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?
- इरावती कर्वे
- जी. एस. घुरिये
- एम. एन. श्रीनिवास
- ए. आर. देसाई
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एम. एन. श्रीनिवास ने भारतीय गांवों के अपने गहन अध्ययन के आधार पर ‘प्रभु जाति’ की अवधारणा विकसित की। प्रभु जाति वह जाति होती है जो किसी गांव में संख्या में अधिक होती है, आर्थिक और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली होती है, और पारंपरिक रूप से उच्च स्थान रखती है, जो गांव के सामाजिक और आर्थिक जीवन को काफी हद तक नियंत्रित करती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा ग्रामीण सामाजिक संरचना में शक्ति और प्रभुत्व को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: (a) इरावती कर्वे ने भारतीय समाज में नातेदारी (Kinship) पर काम किया। (b) घुरिये ने जाति, जनजाति और भारतीय संस्कृति पर महत्वपूर्ण कार्य किया, लेकिन ‘प्रभु जाति’ श्रीनिवास की अवधारणा है। (d) देसाई ने भारतीय समाज में पूंजीवाद और कृषक अर्थव्यवस्था पर लिखा।
प्रश्न 11: हर्बर्ट ब्लूमर (Herbert Blumer) ने किस समाजशास्त्रीय उपागम (Approach) को विकसित किया?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism)
- घटना विज्ञान (Phenomenology)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: हर्बर्ट ब्लूमर ने जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) के विचारों को व्यवस्थित और लोकप्रिय बनाया और ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ शब्द गढ़ा। यह उपागम मानता है कि व्यक्ति प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से अंतःक्रिया करते हैं, और इन अंतःक्रियाओं के माध्यम से वे अपने अर्थ और स्वयं की अवधारणा का निर्माण करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: ब्लूमर ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के तीन प्रमुख अभिगृहीत (postulates) बताए: (1) मनुष्य अपनी वस्तु-निर्माता (thing-making) क्षमता के आधार पर अन्य मनुष्यों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा वे उन वस्तुओं के लिए करते हैं; (2) इन वस्तुओं के लिए मनुष्य द्वारा अपनाई जाने वाली क्रियाओं का आधार वे अर्थ होते हैं जो ये वस्तुएँ उनके लिए रखती हैं; (3) ये अर्थ उनके अंतःक्रियात्मक होने की प्रक्रिया में उत्पन्न और संशोधित होते हैं।
- गलत विकल्प: (a) संरचनात्मक प्रकार्यवाद पार्सन्स और मर्टन से जुड़ा है। (c) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद मार्क्स से जुड़ा है। (d) घटना विज्ञान श्युत्ज़ (Schutz) जैसे विचारकों से संबंधित है।
प्रश्न 12: आर. के. मर्टन (Robert K. Merton) के अनुसार, ‘प्रकट कार्य’ (Manifest Functions) से क्या अभिप्राय है?
- सामाजिक संरचना या संस्था के वे अनपेक्षित और अचेतन परिणाम।
- सामाजिक संरचना या संस्था के वे इच्छित और प्रत्यक्ष परिणाम।
- समाज के लिए हानिकारक या विघटनकारी परिणाम।
- व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: रॉबर्ट मर्टन ने पार्सन्स के प्रकार्यात्मक विश्लेषण को परिष्कृत करते हुए ‘प्रकट कार्य’ और ‘अव्यक्त कार्य’ (Latent Functions) के बीच अंतर किया। प्रकट कार्य किसी सामाजिक संस्था या प्रथा के वे प्रत्यक्ष, स्पष्ट और इच्छित परिणाम होते हैं जो व्यवस्था को बनाए रखने में योगदान करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, शिक्षा प्रणाली का प्रकट कार्य ज्ञान और कौशल प्रदान करना है। इसके विपरीत, अव्यक्त कार्य अनपेक्षित होते हैं, जैसे कि सामाजिक नेटवर्क का निर्माण या साथियों के बीच विवाह।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘अव्यक्त कार्य’ (Latent Functions) की परिभाषा है। (c) यह ‘कुकार्य’ (Dysfunctions) से संबंधित है। (d) यह मनोविश्लेषण या व्यक्तिगत मनोविज्ञान का विषय है।
प्रश्न 13: भारतीय समाज में ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secularism) की अवधारणा के संदर्भ में ‘सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता’ (Positive Secularism) का क्या अर्थ है?
- सभी धर्मों को समान दूरी पर रखना।
- राज्य द्वारा सभी धर्मों को समान संरक्षण और प्रोत्साहन देना।
- राज्य और धर्म का पूर्ण पृथक्करण।
- नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने या न करने की स्वतंत्रता।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: भारतीय धर्मनिरपेक्षता को अक्सर ‘सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता’ के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि राज्य किसी एक धर्म का पक्ष नहीं लेता, बल्कि सभी धर्मों का सम्मान करता है और उन्हें समान अवसर प्रदान करता है। राज्य सभी धार्मिक समुदायों की स्वतंत्रता की रक्षा करता है और उनके विकास में सहायता कर सकता है, बशर्ते यह दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन न करे।
- संदर्भ और विस्तार: यह पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से भिन्न है, जहाँ अक्सर राज्य और धर्म के बीच पूर्ण पृथक्करण (Negative Secularism) पर जोर दिया जाता है।
- गलत विकल्प: (a) सभी धर्मों को ‘समान दूरी’ पर रखना एक प्रकार का अलगाव है, न कि सकारात्मक प्रोत्साहन। (c) राज्य और धर्म का पूर्ण पृथक्करण पश्चिमी मॉडल का हिस्सा है, भारतीय संदर्भ का नहीं। (d) यह स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन ‘सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता’ का पूरा अर्थ नहीं समझाता।
प्रश्न 14: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) के संदर्भ में, ‘ऊर्ध्वाधर गतिशीलता’ (Vertical Mobility) का क्या अर्थ है?
- किसी व्यक्ति या समूह का अपनी स्थिति, पद या आय के स्तर में बदलाव।
- एक ही सामाजिक वर्ग या स्तर के भीतर स्थान बदलना।
- अपेक्षाकृत छोटे भौगोलिक क्षेत्र में स्थान बदलना।
- अस्थायी या अल्पकालिक सामाजिक स्थिति में बदलाव।
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: ऊर्ध्वाधर गतिशीलता से तात्पर्य सामाजिक स्तरीकरण की पदानुक्रमित सीढ़ी पर ऊपर या नीचे की ओर बढ़ना है। इसमें आय, धन, शक्ति, प्रतिष्ठा या व्यावसायिक स्थिति में परिवर्तन शामिल है। उदाहरण के लिए, एक गरीब व्यक्ति का अमीर बनना या एक मजदूर का प्रबंधक बनना ऊर्ध्वाधर गतिशीलता के उदाहरण हैं।
- संदर्भ और विस्तार: इसके विपरीत, ‘क्षैतिज गतिशीलता’ (Horizontal Mobility) में व्यक्ति एक सामाजिक स्तर पर एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाता है, जैसे कि एक स्कूल शिक्षक का दूसरे स्कूल में शिक्षक बनना।
- गलत विकल्प: (b) यह क्षैतिज गतिशीलता का वर्णन करता है। (c) यह भौगोलिक गतिशीलता (Geographic Mobility) का वर्णन है। (d) यह अस्थायी गतिशीलता का संकेत दे सकता है, लेकिन ऊर्ध्वाधर गतिशीलता एक अधिक स्थायी परिवर्तन का संकेत देती है।
प्रश्न 15: चार्ल्स कूली (Charles Horton Cooley) द्वारा प्रतिपादित ‘प्राथमिक समूह’ (Primary Group) की सबसे प्रमुख विशेषता क्या है?
- औपचारिक नियम और प्रक्रियाएँ
- अनामिक और अमूर्त संबंध
- आमने-सामने का संबंध, घनिष्ठता और सहयोग
- व्यापक सदस्यता और गुमनामी
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: चार्ल्स कूली ने ‘समाजशास्त्र के सिद्धांत’ (Social Organization) में ‘प्राथमिक समूह’ की अवधारणा पेश की। ये वे समूह हैं जिनमें आमने-सामने का संबंध, घनिष्ठता, सहयोग और ‘हम’ की भावना होती है। परिवार, पड़ोस और खेल समूह प्राथमिक समूहों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
- संदर्भ और विस्तार: कूली के अनुसार, प्राथमिक समूह व्यक्ति के व्यक्तित्व और सामाजिक आदतों के विकास के लिए मौलिक होते हैं।
- गलत विकल्प: (a) यह द्वितीयक समूहों (Secondary Groups) की विशेषता है। (b) यह भी द्वितीयक समूहों की विशेषता है। (d) यह बड़े संगठनों या जनसमूह (Crowds) की विशेषता हो सकती है।
प्रश्न 16: सामाजिक अनुसंधान में ‘गुणात्मक उपागम’ (Qualitative Approach) का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
- संख्याओं और आँकड़ों के माध्यम से सामाजिक घटनाओं का वर्णन करना।
- सामाजिक घटनाओं के अर्थ, अनुभव और संदर्भ को गहराई से समझना।
- जनसंख्या के एक बड़े समूह के व्यवहार को सामान्यीकृत करना।
- कारण-कार्य संबंधों को मापना।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: गुणात्मक उपागम गैर-संख्यात्मक डेटा (जैसे साक्षात्कार, अवलोकन, केस स्टडी) पर केंद्रित होता है ताकि सामाजिक घटनाओं की गहराई, जटिलता और व्यक्तिपरक अर्थों को समझा जा सके। यह ‘क्यों’ और ‘कैसे’ जैसे प्रश्नों पर अधिक ध्यान देता है।
- संदर्भ और विस्तार: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, नृवंशविज्ञान (Ethnography) और घटना विज्ञान (Phenomenology) जैसे उपागम गुणात्मक अनुसंधान के प्रमुख उदाहरण हैं।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘मात्रात्मक उपागम’ (Quantitative Approach) की विशेषता है। (c) यह भी मात्रात्मक अनुसंधान का लक्ष्य होता है। (d) कारण-कार्य संबंधों को मापना मुख्य रूप से मात्रात्मक उपागम का लक्ष्य होता है, यद्यपि गुणात्मक उपागम कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
प्रश्न 17: भारतीय संदर्भ में, ‘आदिवासी समाज’ (Tribal Society) के अध्ययन में ‘अलगाव’ (Isolation) के बजाय ‘आत्मसातीकरण’ (Assimilation) की प्रक्रिया पर किस विद्वान ने अधिक बल दिया?
- डॉ. घुरिये
- एन. के. बोस
- एल. पी. विद्यार्थी
- वर्जियर कूरियन
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एन. के. बोस ( Nirmal Kumar Bose) ने आदिवासी समूहों के भारतीय समाज में आत्मसात होने की प्रक्रिया पर जोर दिया, बजाय इसके कि वे पूरी तरह से अलग-थलग रहें। उन्होंने तर्क दिया कि आदिवासी समूह धीरे-धीरे हिंदू समाज की मान्यताओं, प्रथाओं और संस्थानों को अपना रहे हैं, जो एक प्रकार का सांस्कृतिक समामेलन है।
- संदर्भ और विस्तार: बोस ने भारत में राष्ट्रवाद, जाति और नृविज्ञान जैसे विभिन्न विषयों पर काम किया।
- गलत विकल्प: (a) घुरिये ने आदिवासियों को ‘पिछड़ा हिंदू’ (Backward Hindus) कहा और अलगाव तथा एकीकरण के जटिल पहलुओं पर चर्चा की। (c) एल. पी. विद्यार्थी ने भी भारतीय जनजातियों पर व्यापक काम किया और उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बांटा, लेकिन बोस का जोर आत्मसातीकरण पर अधिक था। (d) वर्जियर कूरियन भारतीय समाज और विकास पर काम करने वाले एक प्रमुख समाजशास्त्री हैं।
प्रश्न 18: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) की अवधारणा को ‘समाज के निर्माण खंड’ (Building Blocks of Society) के रूप में किसने देखा, जो व्यक्तियों के बीच अपेक्षाकृत स्थायी संबंधों को दर्शाता है?
- अल्फ्रेड श्रुट्ज़
- ई. ई. इवांस-प्रिचार्ड
- टेल्कॉट पार्सन्स
- जी. एच. मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: टेल्कॉट पार्सन्स ने सामाजिक संरचना को सामाजिक व्यवस्था के उन मूलभूत घटकों के रूप में परिभाषित किया जो व्यक्तियों के बीच अपेक्षाकृत स्थायी और व्यवस्थित संबंधों का निर्माण करते हैं। उन्होंने भूमिकाओं (Roles), स्थिति (Status) और सामाजिक मानदंडों (Norms) को संरचना के प्रमुख तत्वों के रूप में देखा।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स का संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक उपागम मानता है कि सामाजिक संरचना समाज को एक एकीकृत और स्थिर इकाई के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाती है।
- गलत विकल्प: (a) श्रुट्ज़ घटना विज्ञान से जुड़े थे, जो व्यक्तिपरक अर्थों पर केंद्रित है। (b) इवांस-प्रिचार्ड ने नृविज्ञान में संरचना का अध्ययन किया, लेकिन पार्सन्स का दृष्टिकोण व्यापक और मैक्रो-स्तरीय है। (d) मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से जुड़े थे, जो सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है।
प्रश्न 19: ‘अराजकता’ (Anomie) की दुर्खीमियन अवधारणा, जैसा कि ‘अपराध’ (Crime) के संदर्भ में भी लागू होता है, क्या इंगित करती है?
- सामाजिक नियंत्रण का अभाव, जहाँ सामाजिक नियम या तो अनुपस्थित हैं या अस्पष्ट हो गए हैं।
- धर्म और नैतिकता का पूर्ण पतन।
- व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक विघटन।
- समाज का अत्यधिक नियंत्रण और दमन।
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: दुर्खीम के अनुसार, अराजकता (Anomie) एक ऐसी स्थिति है जब समाज में सामान्य नैतिक दिशा-निर्देशों और नियमों का अभाव हो जाता है। ऐसे में व्यक्तियों को यह पता नहीं चलता कि उन्हें क्या करना चाहिए, जिससे वे दिशाहीन महसूस करते हैं। अपराध भी अराजकता की स्थिति को इंगित कर सकता है, क्योंकि यह सामाजिक मानदंडों के उल्लंघन का एक रूप है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने ‘द डिवीजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ और ‘सुसाइड’ जैसी अपनी रचनाओं में अराजकता की अवधारणा का प्रयोग किया। यह सामाजिक विघटन की एक स्थिति है।
- गलत विकल्प: (b) धर्म का पतन अराजकता का एक संभावित परिणाम हो सकता है, लेकिन यह स्वयं अराजकता की परिभाषा नहीं है। (c) यह ‘अराजकता’ का एक मनोवैज्ञानिक परिणाम है, न कि समाजशास्त्रीय परिभाषा। (d) यह ‘अति-नियंत्रण’ (Over-socialization) या अधिनायकवाद (Authoritarianism) का वर्णन है, न कि नियंत्रण के अभाव का।
प्रश्न 20: ग्रामीण समाजशास्त्र (Rural Sociology) के संदर्भ में, ‘ग्राम-नगर सातत्य’ (Rural-Urban Continuum) की अवधारणा क्या दर्शाती है?
- शहरों और गांवों के बीच स्पष्ट विभाजन।
- गांवों और शहरों के बीच कठोर सामाजिक और सांस्कृतिक अंतर।
- यह विचार कि ग्रामीण और शहरी जीवन शैलियाँ एक स्पेक्ट्रम पर मौजूद हैं, न कि अलग-थलग श्रेणियाँ।
- ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी जीवन शैली का पूर्ण प्रभुत्व।
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: ‘ग्राम-नगर सातत्य’ की अवधारणा, जिसे रॉबर्ट रेडफील्ड जैसे विद्वानों ने विकसित किया, यह मानती है कि ग्रामीण और शहरी समाज दो पूर्णतः भिन्न और असंबद्ध ध्रुव नहीं हैं, बल्कि एक निरंतरता (spectrum) पर मौजूद हैं। इसका मतलब है कि विभिन्न समुदाय ग्रामीण और शहरी विशेषताओं का मिश्रण प्रदर्शित कर सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा ग्रामीण और शहरी जीवन के बीच अंतर-संबंधों और परिवर्तनों को समझने में मदद करती है।
- गलत विकल्प: (a) और (b) सातत्य की अवधारणा के विपरीत हैं, जो विभाजन के बजाय निरंतरता पर जोर देती है। (d) यह अति-सरलीकरण है और सातत्य की जटिलता को नहीं दर्शाता।
प्रश्न 21: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) की व्याख्या में, ‘वर्ग’ (Class) की मार्क्सवादी अवधारणा का मुख्य आधार क्या है?
- शिक्षा और व्यवसाय
- आय और संपत्ति का स्तर
- उत्पादन के साधनों के साथ संबंध
- जाति और धार्मिक संबद्धता
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: कार्ल मार्क्स के अनुसार, वर्ग की पहचान उत्पादन के साधनों (जैसे भूमि, कारखाने, मशीनें) के स्वामित्व या स्वामित्व की अनुपस्थिति पर आधारित होती है। पूंजीवादी समाज में, मुख्य वर्ग बुर्जुआ (उत्पादन के साधनों के मालिक) और सर्वहारा (जो केवल अपनी श्रम शक्ति बेचते हैं) हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स का मानना था कि वर्ग संघर्ष (Class Struggle) इतिहास का इंजन है और वर्ग पहचान मुख्य रूप से आर्थिक संबंधों से निर्धारित होती है।
- गलत विकल्प: (a) शिक्षा और व्यवसाय (जैसा कि वेबर ने माना) या (d) जाति और धर्म (जैसा कि भारतीय संदर्भ में महत्वपूर्ण है) मार्क्स के वर्ग विश्लेषण के प्राथमिक निर्धारक नहीं हैं, यद्यपि वे परोक्ष रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
प्रश्न 22: ‘संस्कृति’ (Culture) के समाजशास्त्रीय अध्ययन में, ‘भौतिक संस्कृति’ (Material Culture) से क्या तात्पर्य है?
- विश्वास, मूल्य, आदर्श और भाषा।
- कला, साहित्य, संगीत और दर्शन।
- मनुष्य द्वारा निर्मित भौतिक वस्तुएं जैसे उपकरण, भवन, वस्त्र।
- सामाजिक मानदंड और संस्थाएँ।
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: संस्कृति के दो प्रमुख पहलू होते हैं: भौतिक और अभौतिक। भौतिक संस्कृति से तात्पर्य समाज में मनुष्यों द्वारा बनाई गई सभी मूर्त या भौतिक वस्तुओं से है, जैसे कि प्रौद्योगिकी, वास्तुकला, कलाकृतियाँ, उपकरण, वस्त्र आदि।
- संदर्भ और विस्तार: यह उन ठोस अभिव्यक्तियों को संदर्भित करती है जो समाज के मूल्यों और जीवन शैली को दर्शाती हैं।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘अभौतिक संस्कृति’ (Non-material Culture) का हिस्सा है। (b) यह भी अभौतिक संस्कृति या उसके मूर्त रूपांतरों का हिस्सा है। (d) यह सामाजिक संरचना या संस्थाओं का वर्णन है, जो अभौतिक संस्कृति के अधीन आते हैं।
प्रश्न 23: ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) के अध्ययन में, ‘प्रौद्योगिकी’ (Technology) की भूमिका को किस उपागम में केंद्रीय माना गया है?
- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism)
- तकनीकी नियतिवाद (Technological Determinism)
- सांस्कृतिक विलंब (Cultural Lag)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: तकनीकी नियतिवाद एक ऐसा दृष्टिकोण है जो मानता है कि प्रौद्योगिकी सामाजिक परिवर्तन का प्राथमिक या सबसे महत्वपूर्ण चालक है। यह उपागम मानता है कि नई प्रौद्योगिकियाँ समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं को आकार देती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: इस विचार के समर्थक अक्सर मानते हैं कि प्रौद्योगिकी में प्रगति अनिवार्य रूप से समाज में प्रगति की ओर ले जाती है।
- गलत विकल्प: (a) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद में, उत्पादन के बल (forces of production) और उत्पादन के संबंध (relations of production) में द्वंद्व परिवर्तन का मुख्य चालक है, प्रौद्योगिकी उसका एक हिस्सा है। (c) सांस्कृतिक विलंब (ऑगबर्न) यह बताता है कि भौतिक संस्कृति (प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (मानदंड, मूल्य) से तेज़ी से बदलती है, जो परिवर्तन की प्रक्रिया का एक पहलू है, न कि चालक। (d) संरचनात्मक प्रकार्यवाद परिवर्तन को व्यवस्था के विघटन या अनुकूलन के रूप में देखता है, न कि केवल प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित।
प्रश्न 24: भारतीय समाज में ‘जाति व्यवस्था’ (Caste System) के संबंध में ‘अंतर्विवाह’ (Endogamy) का क्या अर्थ है?
- किसी व्यक्ति का अपनी जाति के भीतर ही विवाह करना।
- किसी व्यक्ति का अपनी जाति के बाहर विवाह करना।
- किसी व्यक्ति का अपनी उप-जाति (sub-caste) में विवाह करना।
- किसी व्यक्ति का अपनी गोत्र (gotra) के बाहर विवाह करना।
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: अंतर्विवाह (Endogamy) का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को अपने ही समूह के भीतर विवाह करना चाहिए। भारतीय जाति व्यवस्था में, यह एक प्रमुख नियम रहा है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी मूल जाति के भीतर ही जीवन साथी ढूंढना होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह जाति व्यवस्था की अखंडता और अलगाव को बनाए रखने में मदद करता है। इसके विपरीत, बहिर्विवाह (Exogamy) का अर्थ है समूह के बाहर विवाह करना (जैसे गोत्र बहिर्विवाह)।
- गलत विकल्प: (b) यह बहिर्विवाह (Exogamy) है। (c) उप-जाति में विवाह करना भी अंतर्विवाह का एक रूप है, लेकिन ‘जाति’ शब्द अधिक व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, और (a) इसे अधिक सटीक रूप से दर्शाता है। (d) गोत्र बहिर्विवाह एक अलग नियम है जो अंतर्विवाह के पूरक के रूप में काम करता है।
प्रश्न 25: ‘उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण’ (LPG) के बाद भारतीय समाज में देखे गए सामाजिक परिवर्तनों में से कौन सा एक प्रमुख परिणाम है?
- पारंपरिक संयुक्त परिवार व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण।
- क्षेत्रीय भाषाओं का ह्रास और अंग्रेजी का अप्रतिरोध्य प्रभुत्व।
- महिलाओं की भूमिका में सीमित परिवर्तन और पारंपरिक व्यवसायों का पुनरुद्धार।
- सामुदायिक संबंधों का मजबूत होना और साझा पहचान का उदय।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एलपीजी (1991 के बाद) की नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को खोला, जिससे वैश्विक संचार, मीडिया और शिक्षा के संपर्क में वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप, अंग्रेजी का प्रयोग, विशेष रूप से शहरी और अभिजात वर्ग में, व्यापार, शिक्षा और प्रशासन में तेज़ी से बढ़ा, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व पर कुछ हद तक दबाव पड़ा, यद्यपि यह एक जटिल प्रक्रिया है।
- संदर्भ और विस्तार: एलपीजी ने उपभोक्तावाद, शहरीकरण, और कार्यबल में बदलाव जैसी अन्य सामाजिक परिवर्तनों को भी बढ़ावा दिया है।
- गलत विकल्प: (a) एलपीजी ने शहरीकरण, परमाणु परिवारों (nuclear families) को बढ़ावा दिया, जिससे पारंपरिक संयुक्त परिवार व्यवस्था कमजोर हुई है। (c) एलपीजी ने निश्चित रूप से महिलाओं की भूमिकाओं में कुछ बदलाव लाए हैं (जैसे रोज़गार के नए अवसर) और इसने पारंपरिक व्यवसायों के साथ-साथ नए प्रकार के व्यवसायों को भी जन्म दिया है। (d) वैश्वीकरण ने कुछ हद तक व्यक्तिगत पहचान और उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया है, जिससे पारंपरिक सामुदायिक संबंधों में बदलाव आया है।
सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
[कोर्स और फ्री नोट्स के लिए यहाँ क्लिक करें]