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अपना समाजशास्त्रीय ज्ञान परखें: दैनिक परीक्षा

अपना समाजशास्त्रीय ज्ञान परखें: दैनिक परीक्षा

समाजशास्त्र के उम्मीदवारों, अपनी वैचारिक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को धार देने के लिए तैयार हो जाइए! आज की दैनिक प्रश्नोत्तरी आपके ज्ञान की परीक्षा लेगी और आपको प्रमुख समाजशास्त्रीय सिद्धांतों, विचारकों और अवधारणाओं की दुनिया में गहराई तक ले जाएगी। आइए, इस बौद्धिक चुनौती का सामना करें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूँजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिकों का अपनी मेहनत के उत्पाद से अलग हो जाना क्या कहलाता है?

  1. अलगाव (Alienation)
  2. विमुखता (Estrangement)
  3. अभाव (Deprivation)
  4. उत्पीड़न (Exploitation)

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: कार्ल मार्क्स ने ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा दी, जिसके अनुसार पूँजीवादी व्यवस्था में श्रमिक अपने श्रम के उत्पाद, अपनी उत्पादन प्रक्रिया, अपनी मानव प्रजाति प्रकृति (species-being) और अन्य मनुष्यों से अलग-थलग महसूस करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह मार्क्स के प्रारंभिक लेखन, विशेष रूप से ‘इकोनॉमिक एंड फिलोसोफिक मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ में एक केंद्रीय विचार है। यह बताता है कि कैसे श्रम वस्तु बन जाता है और श्रमिक को अपने ही काम से पराया कर देता है।
  • गलत विकल्प: ‘विमुखता’ एक व्यापक शब्द हो सकता है, लेकिन मार्क्स द्वारा प्रयुक्त विशिष्ट अवधारणा ‘अलगाव’ है। ‘अभाव’ और ‘उत्पीड़न’ अलगाव के परिणाम हो सकते हैं, लेकिन वे स्वयं अलगाव की मूल समाजशास्त्रीय अवधारणा नहीं हैं।

प्रश्न 2: मैक्स वेबर ने किस शब्द का प्रयोग यह समझाने के लिए किया कि समाजशास्त्री को सामाजिक क्रियाओं को उनके कर्ताओं द्वारा दिए गए व्यक्तिपरक अर्थों के संदर्भ में समझना चाहिए?

  1. कलेक्टिव कॉन्शियसनेस (Collective Consciousness)
  2. वर्टेहेन (Verstehen)
  3. एमी (Anomie)
  4. ब्यूरोक्रेसी (Bureaucracy)

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: ‘वर्टेहेन’ (Verstehen) जर्मन शब्द है जिसका अर्थ है ‘समझना’। मैक्स वेबर ने इस पद्धति पर जोर दिया कि समाजशास्त्री को उन सामाजिक क्रियाओं के पीछे छिपे व्यक्तिपरक अर्थों, प्रेरणाओं और इरादों को समझना चाहिए जिन्हें कर्ता अपनी क्रियाओं में रखता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह वेबर के व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Interpretive Sociology) का मुख्य आधार है। उनका मानना था कि सामाजिक वास्तविकता को केवल बाह्य रूप से मापा नहीं जा सकता, बल्कि उसके आंतरिक अर्थों को भी समझना आवश्यक है।
  • गलत विकल्प: ‘कलेक्टिव कॉन्शियसनेस’ एमिल दुर्खीम की अवधारणा है। ‘एमी’ भी दुर्खीम की अवधारणा है जो सामाजिक मानदंडों के कमजोर पड़ने से उत्पन्न होती है। ‘ब्यूरोक्रेसी’ वेबर द्वारा अध्ययन की गई एक महत्वपूर्ण संस्था है, लेकिन यह समझने की विधि नहीं है।

प्रश्न 3: एमिल दुर्खीम के अनुसार, जब समाज के सदस्यों के बीच सामाजिक मानदंडों और मूल्यों का एकीकरण कमजोर पड़ जाता है, तो उत्पन्न होने वाली स्थिति क्या कहलाती है?

  1. अलगाव (Alienation)
  2. विसंस्थानीकरण (Desectionalization)
  3. एमी (Anomie)
  4. विलगाव (Disintegration)

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: ‘एमी’ (Anomie) दुर्खीम की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह एक ऐसी सामाजिक स्थिति को दर्शाती है जहाँ सामाजिक नियंत्रण के नियम शिथिल पड़ जाते हैं, जिससे व्यक्ति में दिशाहीनता, अनिश्चितता और अव्यवस्था की भावना पैदा होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने इसे अपनी पुस्तक ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ और ‘सुसाइड’ में विस्तार से समझाया है। यह विशेष रूप से तेजी से होने वाले सामाजिक परिवर्तनों या आर्थिक संकटों के दौरान उत्पन्न हो सकती है।
  • गलत विकल्प: ‘अलगाव’ मार्क्स की अवधारणा है। ‘विसंस्थानीकरण’ और ‘विलगाव’ सामान्य शब्द हैं जो सामाजिक विघटन का संकेत दे सकते हैं, लेकिन ‘एमी’ दुर्खीम द्वारा परिभाषित एक विशिष्ट समाजशास्त्रीय स्थिति है।

प्रश्न 4: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा गढ़ी गई किस अवधारणा का अर्थ है कि निम्न जातियों या जनजातियों का उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और विश्वासों को अपनाकर सामाजिक पदानुक्रम में अपनी स्थिति को ऊपर उठाने की प्रक्रिया?

  1. पश्चिमीकरण (Westernization)
  2. आधुनिकीकरण (Modernization)
  3. पवित्रता-अपवित्रता (Purity-Pollution)
  4. संस्कृतीकरण (Sanskritization)

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) एम.एन. श्रीनिवास की एक प्रमुख अवधारणा है। यह भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण रूप है, जहाँ निचली जातियाँ उच्च जातियों के व्यवहार प्रतिमानों को अपनाकर अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा श्रीनिवास की पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में पहली बार प्रस्तुत की गई थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है, न कि संरचनात्मक।
  • गलत विकल्प: ‘पश्चिमीकरण’ पश्चिमी संस्कृतियों के तत्वों को अपनाने से संबंधित है। ‘आधुनिकीकरण’ एक व्यापक प्रक्रिया है जो तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन से जुड़ी है। ‘पवित्रता-अपवित्रता’ जाति व्यवस्था का एक अंतर्निहित सिद्धांत है, न कि परिवर्तन की प्रक्रिया।

प्रश्न 5: टैलकोट पार्सन्स के सामाजिक व्यवस्था सिद्धांत (Social System Theory) के अनुसार, व्यवस्था को जीवित रहने के लिए किन चार आवश्यक कार्यात्मक उप-प्रणालियों की आवश्यकता होती है? (AGIL पैटर्न)

  1. अनुकूलन, लक्ष्य-प्राप्ति, एकीकरण, विनियामकता
  2. अनुकूलन, लक्ष्य-प्राप्ति, एकीकरण, व्यवस्थारक्षण
  3. अनुकूलन, लक्ष्य-निर्धारण, संबंध, विनियामकता
  4. लक्ष्य-प्राप्ति, एकीकरण, संरक्षण, संज्ञान

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: पार्सन्स के AGIL मॉडल में A का अर्थ है Adaptation (अनुकूलन – बाहरी वातावरण के अनुकूल होना), G का अर्थ है Goal Attainment (लक्ष्य-प्राप्ति – सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करना), I का अर्थ है Integration (एकीकरण – व्यवस्था के विभिन्न भागों के बीच सामंजस्य), और L का अर्थ है Latency (विनियामकता/व्यवस्था-रक्षण – पैटर्न को बनाए रखना और तनाव को प्रबंधित करना)।
  • संदर्भ और विस्तार: यह मॉडल दर्शाता है कि किसी भी सामाजिक व्यवस्था (जैसे परिवार, राज्य) को संचालित करने और जीवित रहने के लिए इन चार मूलभूत कार्यों को पूरा करना होता है।
  • गलत विकल्प: अन्य विकल्प AGIL के सही घटकों को या तो गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं या ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जो मॉडल में नहीं हैं (जैसे ‘विनियामकता’ L का सटीक अनुवाद नहीं है, ‘व्यवस्था-रक्षण’ या ‘आदर्श अनुपालन’ अधिक उपयुक्त हैं)।

प्रश्न 6: रॉबर्ट किंग मर्टन ने ‘कार्य’ (Function) की अवधारणा का विस्तार करते हुए, समाज में प्रत्यक्ष और स्पष्ट रूप से प्रकट होने वाले परिणामों को क्या कहा?

  1. प्रकट कार्य (Manifest Functions)
  2. अव्यक्त कार्य (Latent Functions)
  3. पदानुक्रमित कार्य (Hierarchical Functions)
  4. अनैच्छिक कार्य (Unintended Functions)

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: रॉबर्ट मर्टन ने समाजशास्त्रीय विश्लेषण के लिए ‘प्रकट कार्य’ (Manifest Functions) और ‘अव्यक्त कार्य’ (Latent Functions) के बीच अंतर किया। प्रकट कार्य वे होते हैं जो किसी सामाजिक प्रथा, संस्था या व्यवहार के प्रत्यक्ष, इच्छित और मान्यता प्राप्त परिणाम होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, एक विश्वविद्यालय का प्रकट कार्य शिक्षित व्यक्तियों का निर्माण करना है। अव्यक्त कार्य वे अनपेक्षित या अनजाने परिणाम होते हैं, जैसे कि नेटवर्क बनाना या नए सामाजिक संबंधों का विकास।
  • गलत विकल्प: ‘अव्यक्त कार्य’ अनपेक्षित परिणामों को संदर्भित करते हैं। ‘पदानुक्रमित कार्य’ और ‘अनैच्छिक कार्य’ समाजशास्त्रीय शब्दावली में मर्टन द्वारा परिभाषित विशिष्ट कार्य अवधारणाएँ नहीं हैं।

प्रश्न 7: जॉर्ज हर्बर्ट मीड के अनुसार, व्यक्ति का ‘स्व’ (Self) कैसे विकसित होता है?

  1. केवल जैविक प्रवृत्तियों से
  2. समाज के साथ अंतःक्रिया से, विशेष रूप से भाषा और प्रतीकों के माध्यम से
  3. जन्म से ही निश्चित होता है
  4. सामाजिक संरचना द्वारा पूरी तरह निर्धारित होता है

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, जो प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) के प्रमुख विचारकों में से एक थे, का मानना था कि ‘स्व’ (Self) कोई जन्मजात चीज़ नहीं है, बल्कि यह सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से विकसित होता है। व्यक्ति दूसरों की भूमिका लेकर और समाज द्वारा दूसरों के प्रति अपनी समझ को आंतरिक बनाकर अपने ‘स्व’ का निर्माण करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘मी’ (Me) और ‘आई’ (I) का भेद बताया। ‘मी’ वह सामाजिकित ‘स्व’ है जो दूसरों की अपेक्षाओं को समाहित करता है, जबकि ‘आई’ वह प्रतिक्रियात्मक और मौलिक ‘स्व’ है।
  • गलत विकल्प: ‘स्व’ केवल जैविक प्रवृत्तियों से नहीं, बल्कि सामाजिक सीखने से विकसित होता है। यह जन्म से निश्चित नहीं होता और न ही यह केवल सामाजिक संरचना द्वारा पूरी तरह निर्धारित होता है; व्यक्ति की सक्रिय भूमिका भी होती है।

प्रश्न 8: समाजशास्त्रीय शोध पद्धति में, ‘वस्तुनिष्ठता’ (Objectivity) का क्या अर्थ है?

  1. शोधकर्ता के व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों और भावनाओं से स्वतंत्र होकर तथ्यों का अध्ययन करना।
  2. अध्ययन किए जा रहे विषय के दृष्टिकोण को पूरी तरह से अपनाना।
  3. केवल मात्रात्मक डेटा का उपयोग करना।
  4. जटिल सामाजिक घटनाओं को सरल बनाना।

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: समाजशास्त्रीय शोध में वस्तुनिष्ठता का अर्थ है कि शोधकर्ता अपने व्यक्तिगत विश्वासों, मूल्यों, भावनाओं या पूर्वाग्रहों को अपने शोध की प्रक्रिया और निष्कर्षों को प्रभावित न करने दे। यह तथ्यों का निष्पक्ष रूप से अवलोकन और विश्लेषण करने का प्रयास है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सुनिश्चित करता है कि शोध के निष्कर्ष व्यक्तिपरक प्रभावों से मुक्त हों और वैज्ञानिक मानकों को पूरा करें।
  • गलत विकल्प: ‘अध्ययन किए जा रहे विषय के दृष्टिकोण को अपनाना’ व्यक्तिपरकता (Subjectivity) की ओर ले जा सकता है, न कि वस्तुनिष्ठता की ओर। केवल मात्रात्मक डेटा का उपयोग वस्तुनिष्ठता की गारंटी नहीं है, और यह शोध के दायरे को सीमित कर सकता है। जटिल घटनाओं को सरल बनाना (Reductionism) भी वस्तुनिष्ठता से भिन्न है।

प्रश्न 9: भारतीय समाज में, जाति व्यवस्था का आधार निम्न में से किस पर सबसे अधिक टिका है?

  1. व्यक्ति की आय और धन
  2. जन्म और वंशानुक्रम
  3. शिक्षा और व्यवसाय
  4. व्यक्ति की योग्यता और कौशल

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: भारतीय जाति व्यवस्था पारंपरिक रूप से जन्म (जन्म से निर्धारित सदस्यता) और वंशानुक्रम (पीढ़ी-दर-पीढ़ी वही जाति बनी रहती है) पर आधारित है। व्यक्ति की जाति उसके जन्म से तय हो जाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: जाति व्यवस्था के मुख्य लक्षण हैं – अंतर्विवाह (Endogamy), व्यावसायिक प्रतिबंध (Occupational Restrictions), खान-पान के नियम (Rules of Food and Drink), और सामाजिक प्रतिष्ठा का पदानुक्रम (Hierarchy of Social Status)।
  • गलत विकल्प: आय, धन, शिक्षा, व्यवसाय, योग्यता और कौशल जाति व्यवस्था के निर्धारण के प्राथमिक कारक नहीं हैं, हालांकि ये आधुनिक समाज में सामाजिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।

प्रश्न 10: ग्रामीण समाजशास्त्र में ‘ग्रामीण-शहरी सातत्य’ (Rural-Urban Continuum) की अवधारणा का क्या अर्थ है?

  1. ग्रामीण और शहरी समुदाय पूरी तरह से भिन्न और स्वतंत्र हैं।
  2. ग्रामीण और शहरी जीवन शैली के बीच कोई संबंध नहीं है।
  3. ग्रामीण और शहरी समुदायों के बीच एक सतत स्पेक्ट्रम (spectrum) है, जहाँ कुछ समुदाय दोनों की विशेषताओं को साझा करते हैं।
  4. शहरीकरण के कारण ग्रामीण समाज पूरी तरह से शहरी समाज में विलीन हो गया है।

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: ‘ग्रामीण-शहरी सातत्य’ की अवधारणा का अर्थ है कि ग्रामीण और शहरी जीवन के बीच एक स्पष्ट विभाजन रेखा खींचना कठिन है। इसके बजाय, यह एक स्पेक्ट्रम है जिस पर समुदाय ग्रामीण विशेषताओं से लेकर शहरी विशेषताओं तक फैले हो सकते हैं। कई उपनगरीय और अर्ध-शहरी क्षेत्र दोनों की विशेषताओं को धारण करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा मानती है कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन एक रैखिक (linear) प्रक्रिया नहीं है, बल्कि एक क्रमिक (gradual) प्रक्रिया है।
  • गलत विकल्प: यह अवधारणा ग्रामीण और शहरी समुदायों को पूरी तरह से भिन्न या स्वतंत्र नहीं मानती, और न ही यह मानती है कि उनमें कोई संबंध नहीं है। यह पूरी तरह से शहरी समाज में विलय होने का भी दावा नहीं करती।

प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘सामाजिक संस्थान’ (Social Institution) का उदाहरण है?

  1. जाति (Caste)
  2. परिवार (Family)
  3. जातिगत उप-समूह (Jati Sub-group)
  4. सगोत्र (Lineage)

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: ‘परिवार’ एक प्राथमिक सामाजिक संस्थान है जो विवाह, वंश, पालन-पोषण और घरेलू व्यवस्था से संबंधित मानदंडों, मूल्यों और भूमिकाओं का एक स्थापित ढाँचा है।
  • संदर्भ और विस्तार: अन्य सामाजिक संस्थानों में विवाह, धर्म, शिक्षा, सरकार और अर्थव्यवस्था शामिल हैं। ये समाज के बुनियादी कार्यों को पूरा करने के लिए संगठित संरचनाएँ हैं।
  • गलत विकल्प: ‘जाति’ एक सामाजिक स्तरीकरण प्रणाली है, हालांकि यह संस्थागत तत्वों को धारण करती है। ‘जातिगत उप-समूह’ और ‘सगोत्र’ परिवार या जाति के भीतर के अधिक विशिष्ट संबंध या समूह हैं, न कि प्राथमिक सामाजिक संस्थान।

प्रश्न 12: समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य (Sociological Perspective) का सबसे महत्वपूर्ण पहलू क्या है?

  1. व्यक्तिगत अनुभवों पर ध्यान केंद्रित करना।
  2. सामाजिक संदर्भों में मानव व्यवहार को समझना।
  3. केवल ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन करना।
  4. मानव मनोविज्ञान का गहन विश्लेषण करना।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य का मूल यह है कि मानव व्यवहार को उसके सामाजिक संदर्भों – जैसे कि सामाजिक संरचना, संस्कृति, संस्थाएँ, और समूह – के भीतर समझा जाए। यह ‘सामूहिक’ (societal) को ‘व्यक्तिगत’ (individual) से जोड़ता है।
  • संदर्भ और विस्तार: सी. राइट मिल्स ने ‘समाजशास्त्रीय कल्पनाशक्ति’ (Sociological Imagination) की बात की, जो व्यक्तिगत समस्याओं को व्यापक सामाजिक मुद्दों से जोड़ती है।
  • गलत विकल्प: समाजशास्त्र व्यक्तिगत अनुभवों का अध्ययन करता है, लेकिन उन्हें बड़े सामाजिक पैटर्न के हिस्से के रूप में। यह केवल इतिहास या मनोविज्ञान का अध्ययन नहीं है, बल्कि उन विषयों से अंतर्संबंध रखता है।

प्रश्न 13: मैक्स वेबर ने शक्ति (Power) और अधिकार (Authority) के बीच क्या अंतर किया? उन्होंने कितने प्रकार के ‘वैध अधिकार’ (Legitimate Authority) बताए?

  1. शक्ति बिना किसी औचित्य के थोपी जाती है; तीन प्रकार के वैध अधिकार।
  2. अधिकार दूसरों को आदेश देने की क्षमता है; दो प्रकार के वैध अधिकार।
  3. शक्ति बल से प्राप्त होती है; चार प्रकार के वैध अधिकार।
  4. अधिकार वह है जिसे लोग स्वेच्छा से स्वीकार करते हैं; तीन प्रकार के वैध अधिकार।

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: वेबर के अनुसार, शक्ति (Power) वह क्षमता है जिससे एक कर्ता अपनी इच्छा दूसरों पर थोप सकता है, भले ही वे इसका विरोध करें। अधिकार (Authority) शक्ति का वह रूप है जिसे प्राप्तकर्ता द्वारा वैध और उचित माना जाता है, यानी लोग स्वेच्छा से इसका पालन करते हैं। वेबर ने तीन प्रकार के वैध अधिकार बताए: पारंपरिक (Traditional), करिश्माई (Charismatic), और कानूनी-तर्कसंगत (Legal-Rational)।
  • संदर्भ और विस्तार: यह वेबर के शक्ति और अधिकार के विश्लेषण का एक केंद्रीय बिंदु है, जो उनकी नौकरशाही (Bureaucracy) की समझ से भी जुड़ा है।
  • गलत विकल्प: अन्य विकल्प या तो शक्ति और अधिकार को गलत परिभाषित करते हैं या वैध अधिकारों की संख्या को गलत बताते हैं।

प्रश्न 14: सामाजिक परिवर्तन (Social Change) के संदर्भ में, ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा को किसने विकसित किया?

  1. एम.एन. श्रीनिवास
  2. ई.बी. हैवेलॉक एलिस
  3. अमर्त्य सेन
  4. रंजीत गुहा

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज के अध्ययन के दौरान ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा का प्रयोग किया। इसका अर्थ है पश्चिमी देशों की संस्कृति, जीवन शैली, प्रौद्योगिकी, और विचारों को अपनाना, जो औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय समाज में व्यापक रूप से हुआ।
  • संदर्भ और विस्तार: यह ‘संस्कृतीकरण’ के विपरीत एक प्रक्रिया है, जहाँ निम्न जातियाँ उच्च जातियों के तौर-तरीके अपनाती हैं। पश्चिमीकरण अधिक बाहरी और संरचनात्मक हो सकता है।
  • गलत विकल्प: अन्य विद्वानों ने भारतीय समाज या सामाजिक परिवर्तन के अन्य पहलुओं पर काम किया है, लेकिन पश्चिमीकरण की अवधारणा को विशेष रूप से एम.एन. श्रीनिवास ने प्रमुखता से विकसित किया।

प्रश्न 15: समाजशास्त्रीय शोध में ‘विश्वसनीयता’ (Reliability) का क्या अर्थ है?

  1. यह मापता है कि अध्ययन की गई चीज़ को कितनी सटीकता से मापा गया है।
  2. यह मापता है कि शोध के परिणाम कितनी बार सुसंगत (consistent) होंगे यदि शोध को दोहराया जाए।
  3. यह मापता है कि क्या शोध उसी चीज़ को मापता है जिसे वह मापने का दावा करता है।
  4. यह मापता है कि शोध के निष्कर्षों को कितना सामान्यीकृत (generalized) किया जा सकता है।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: शोध में विश्वसनीयता (Reliability) का अर्थ है कि यदि एक ही शोध विधि का उपयोग विभिन्न समयों या विभिन्न शोधकर्ताओं द्वारा किया जाए, तो उसके परिणाम कितने सुसंगत और समान होंगे। यह माप की स्थिरता (stability) से संबंधित है।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, एक माप विश्वसनीय होगा यदि यह बार-बार उपयोग किए जाने पर एक ही परिणाम देता है, भले ही वह परिणाम सही न हो।
  • गलत विकल्प: (a) ‘वैधता’ (Validity) से संबंधित है। (c) भी ‘वैधता’ से संबंधित है। (d) ‘सामान्यीकरण’ (Generalizability) से संबंधित है।

प्रश्न 16: निम्नलिखित में से कौन सी एक ‘सामाजिक समस्या’ (Social Problem) के समाजशास्त्रीय विश्लेषण की विशेषता है?

  1. यह केवल व्यक्तिगत नैतिक पतन का परिणाम है।
  2. यह व्यक्तिगत या समूह के व्यवहार का परिणाम हो सकता है, जिसे समाज नकारात्मक रूप से देखता है और सुधारना चाहता है।
  3. यह हमेशा आर्थिक असमानता के कारण होता है।
  4. यह प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पन्न होता है।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: समाजशास्त्र में, एक सामाजिक समस्या वह स्थिति या व्यवहार है जिसे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा नकारात्मक मानता है और जिसे सामूहिक रूप से सुधारने या संबोधित करने की आवश्यकता महसूस करता है। यह केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचनाओं, प्रक्रियाओं और मूल्यों से जुड़ी हो सकती है।
  • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक समस्याएं (जैसे गरीबी, अपराध, भेदभाव) केवल व्यक्तिगत विफलताएं नहीं हैं, बल्कि अक्सर सामाजिक व्यवस्था की खामियों का प्रतिबिंब होती हैं।
  • गलत विकल्प: सामाजिक समस्याओं को केवल व्यक्तिगत नैतिक पतन, आर्थिक असमानता या प्राकृतिक आपदाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता; ये जटिल सामाजिक घटनाएँ होती हैं।

प्रश्न 17: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) से आपका क्या तात्पर्य है?

  1. समाज के व्यक्तियों को उनकी आय और धन के आधार पर वर्गों में बाँटना।
  2. समाज के सदस्यों को उनकी योग्यता और शिक्षा के आधार पर श्रेणियों में व्यवस्थित करना।
  3. समाज के सदस्यों को सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित, वांछनीय और दुर्लभ संसाधनों तक पहुँच के आधार पर पदानुक्रमित (hierarchical) स्तरों या परतों में व्यवस्थित करना।
  4. व्यक्तियों के बीच केवल प्राथमिक समूहों का निर्माण।

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: सामाजिक स्तरीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज अपने सदस्यों को विभिन्न स्तरों या परतों (strata) में व्यवस्थित करता है। इन स्तरों में संसाधनों (जैसे धन, शक्ति, प्रतिष्ठा, शिक्षा) तक पहुँच असमान होती है, और यह पदानुक्रमित होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण के मुख्य रूप जाति, वर्ग, लिंग और आयु पर आधारित हो सकते हैं। यह एक सार्वभौमिक सामाजिक घटना है, हालांकि इसके रूप भिन्न होते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) वर्गों में बाँटना स्तरीकरण का एक रूप हो सकता है (विशेषकर मार्क्सवादी दृष्टिकोण में), लेकिन स्तरीकरण केवल आय/धन पर आधारित नहीं है। (b) योग्यता/शिक्षा आधुनिक समाजों में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन स्तरीकरण केवल इन पर आधारित नहीं है; यह अक्सर जन्म और विरासत से भी प्रभावित होता है। (d) प्राथमिक समूहों का निर्माण स्तरीकरण का परिणाम नहीं, बल्कि सामाजिक संबंध का एक रूप है।

प्रश्न 18: समाज में ‘सामाजिक नियंत्रण’ (Social Control) की क्या भूमिका है?

  1. लोगों को नियमों और मानदंडों के अनुसार व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  2. समाज में व्यवस्था और स्थिरता बनाए रखना।
  3. अस्थिरता और अराजकता को बढ़ावा देना।
  4. व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पूरी तरह से समाप्त करना।

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: सामाजिक नियंत्रण उन तरीकों का एक समूह है जिनके द्वारा समाज अपने सदस्यों को सामाजिक मानदंडों, नियमों और मूल्यों के अनुसार व्यवहार करने के लिए निर्देशित और प्रेरित करता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य समाज में व्यवस्था, पूर्वानुमान (predictability) और स्थिरता बनाए रखना है।
  • संदर्भ और विस्तार: इसमें औपचारिक (जैसे कानून, पुलिस) और अनौपचारिक (जैसे सामाजिक दबाव, जनमत, शिक्षा) दोनों तंत्र शामिल होते हैं।
  • गलत विकल्प: सामाजिक नियंत्रण का उद्देश्य अस्थिरता या अराजकता को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि उन्हें कम करना है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है, लेकिन पूरी तरह से समाप्त नहीं करता; बल्कि, यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सीमाएँ निर्धारित करता है।

प्रश्न 19: इरावती कर्वे (Irawati Karve) ने भारतीय समाज के अध्ययन में किस पर जोर दिया?

  1. केवल जाति व्यवस्था पर
  2. आधुनिक शहरीकरण की प्रक्रिया पर
  3. जनजातीय समाजों के आर्थिक विकास पर
  4. क्षेत्र, नातेदारी, विवाह और जाति के आधार पर भारतीय समाज के नृवंशविज्ञान (Ethnographic) अध्ययन पर

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: इरावती कर्वे भारत की एक प्रमुख मानवविज्ञानी और समाजशास्त्री थीं। उन्होंने भारतीय समाज को क्षेत्र, नातेदारी, विवाह व्यवस्था और जाति व्यवस्था के व्यापक नृवंशविज्ञान (Ethnographic) और समाजशास्त्रीय विश्लेषण के माध्यम से समझने पर जोर दिया। उनकी पुस्तक ‘Hindu Society: An Interpretation’ अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने विशेष रूप से विवाह और परिवार संरचनाओं पर काम किया और भारत को भाषाई और सांस्कृतिक क्षेत्रों में विभाजित करने का प्रयास किया।
  • गलत विकल्प: जबकि उन्होंने जाति का अध्ययन किया, उनका काम इससे कहीं अधिक व्यापक था। उन्होंने शहरीकरण या जनजातीय अर्थव्यवस्थाओं पर भी लिखा, लेकिन उनका मुख्य योगदान भारतीय समाज की समग्र संरचना को समझने में था।

प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन एक ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का उदाहरण है?

  1. एक व्यक्ति का एक ही गाँव में रहना।
  2. एक व्यक्ति का उच्च वर्ग से निम्न वर्ग में आना।
  3. एक ही सामाजिक समूह के सदस्यों के बीच अंतःक्रिया।
  4. परिवार के सदस्यों के बीच संबंध।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है कि व्यक्ति या समूह अपनी सामाजिक स्थिति (जैसे वर्ग, दर्जा) को बदलते हैं। उच्च वर्ग से निम्न वर्ग में आना ‘ऊर्ध्वाधर गतिशीलता’ (Vertical Mobility) का एक उदाहरण है, जो सामाजिक गतिशीलता का एक प्रकार है।
  • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक गतिशीलता ऊर्ध्वाधर (ऊपर/नीचे जाना), क्षैतिज (एक ही स्तर पर एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना), अंतः-पीढ़ी (एक ही पीढ़ी में) या अंतर-पीढ़ी (एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में) हो सकती है।
  • गलत विकल्प: (a) एक ही गाँव में रहना गतिशीलता नहीं है। (c) सामाजिक समूह के सदस्यों के बीच अंतःक्रिया सामाजिक संरचना का हिस्सा है, गतिशीलता नहीं। (d) परिवार के सदस्यों के बीच संबंध नातेदारी है, गतिशीलता नहीं।

प्रश्न 21: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के मुख्य प्रस्तावक कौन हैं?

  1. कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स
  2. एमिल दुर्खीम और मैक्स वेबर
  3. जॉर्ज हर्बर्ट मीड और चार्ल्स कूली
  4. अगस्त कॉम्टे और हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद एक प्रमुख समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य है जो मानता है कि समाज प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से होने वाली अंतःक्रियाओं का परिणाम है। इसके मुख्य प्रस्तावक जॉर्ज हर्बर्ट मीड (जिन्होंने ‘स्व’ और ‘मी’ की अवधारणा विकसित की) और चार्ल्स कूली (जिन्होंने ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ की अवधारणा दी) हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति अपने पर्यावरण और दूसरों के साथ अपनी अंतःक्रियाओं से अर्थ कैसे बनाते हैं।
  • गलत विकल्प: अन्य विकल्प अलग-अलग समाजशास्त्रीय स्कूलों से संबंधित हैं: (a) मार्क्सवाद, (b) क्लासिकल समाजशास्त्र (विशेष रूप से संरचनात्मक-प्रकार्यवाद और सत्तामीमांसा), (d) समाजशास्त्र के संस्थापक।

प्रश्न 22: भारतीय समाज में, ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secularism) की अवधारणा के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

  1. यह राज्य का किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देना है।
  2. यह राज्य का सभी धर्मों के प्रति तटस्थ होना और सभी को समान सम्मान देना है।
  3. यह सभी धार्मिक प्रथाओं को पूरी तरह से समाप्त करना है।
  4. यह केवल हिंदू धर्म के सिद्धांतों पर आधारित है।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में मान्यता नहीं देगा, सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करेगा, और नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता होगी। राज्य सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहता है और किसी एक धर्म का पक्ष नहीं लेता।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा सामाजिक सद्भाव और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
  • गलत विकल्प: (a) यह राजकीय धर्मवाद (State Religion) का अर्थ है। (c) यह नास्तिकता (Atheism) या अधार्मिकता (Irreligion) का अर्थ है। (d) यह भारतीय धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विपरीत है।

प्रश्न 23: निम्नांकित में से कौन सी संस्था ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का एक प्रमुख आधार रही है, विशेषकर भारतीय संदर्भ में?

  1. परिवार
  2. विवाह
  3. जाति
  4. पड़ोस

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: ‘जाति’ भारतीय समाज में सामाजिक स्तरीकरण का एक सबसे प्रमुख और स्थायी आधार रही है। यह जन्म पर आधारित एक कठोर पदानुक्रमित व्यवस्था है जो सदस्यों के सामाजिक दर्जा, व्यवसाय, खान-पान और अंतर्विवाह को निर्धारित करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: अन्य विकल्प (परिवार, विवाह) सामाजिक संस्थाएं हैं जो स्तरीकरण को प्रभावित कर सकती हैं या उससे प्रभावित हो सकती हैं, लेकिन जाति अपने आप में एक स्तरीकरण व्यवस्था है। ‘पड़ोस’ एक भौगोलिक/सामाजिक क्षेत्र है, न कि स्तरीकरण का आधार।
  • गलत विकल्प: परिवार और विवाह महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएँ हैं, लेकिन वे स्तरीकरण का प्राथमिक आधार नहीं हैं। पड़ोस भी स्तरीकरण का आधार नहीं है।

प्रश्न 24: अगस्ट कॉम्त (Auguste Comte) ने समाज का वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए किस पद्धति का प्रस्ताव दिया?

  1. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
  2. संरचनात्मक-प्रकार्यवाद
  3. प्रत्यक्षवाद (Positivism)
  4. संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: अगस्ट कॉम्त को अक्सर ‘समाजशास्त्र का जनक’ कहा जाता है। उन्होंने समाज के अध्ययन के लिए ‘प्रत्यक्षवाद’ (Positivism) नामक वैज्ञानिक पद्धति का प्रस्ताव दिया। उनका मानना था कि समाज को प्राकृतिक विज्ञानों की तरह वस्तुनिष्ठ रूप से अध्ययन किया जा सकता है।
  • संदर्भ और विस्तार: प्रत्यक्षवाद अवलोकन, प्रयोग और तुलना जैसे अनुभवजन्य (empirical) तरीकों पर जोर देता है।
  • गलत विकल्प: (a) प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद बाद में विकसित हुआ। (b) संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Parsons, Merton) और (d) संघर्ष सिद्धांत (Marx) अन्य प्रमुख समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण हैं, लेकिन ये कॉम्त के प्रत्यक्षवाद से भिन्न हैं।

प्रश्न 25: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) से आपका क्या तात्पर्य है?

  1. समाज में होने वाली घटनाओं का अस्थायी प्रवाह।
  2. समाज के विभिन्न भागों (जैसे संस्थाएँ, समूह, वर्ग) के बीच अपेक्षाकृत स्थायी पैटर्न और संबंध।
  3. व्यक्तिगत भावनाओं और विचारों का समुच्चय।
  4. समाज में लोगों की दिन-प्रतिदिन की अंतःक्रियाएँ।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही उत्तर: सामाजिक संरचना समाज का अंतर्निहित ढाँचा है। यह समाज के विभिन्न घटकों, जैसे सामाजिक संस्थाओं (परिवार, शिक्षा, सरकार), सामाजिक समूहों (कक्षा, लिंग, आयु), और सामाजिक वर्गों के बीच अपेक्षाकृत स्थायी और व्यवस्थित पैटर्न, संबंधों और व्यवस्थाओं को संदर्भित करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह संरचनाएँ व्यक्तियों के व्यवहार और अवसरों को प्रभावित करती हैं। दुर्खीम, पार्सन्स और अन्य समाजशास्त्रियों ने संरचना के महत्व पर जोर दिया है।
  • गलत विकल्प: (a) घटनाओं का अस्थायी प्रवाह ‘सामाजिक प्रक्रिया’ (Social Process) से अधिक संबंधित है। (c) व्यक्तिगत भावनाएँ और विचार ‘मनोविज्ञान’ का विषय हैं, न कि सामाजिक संरचना का। (d) दिन-प्रतिदिन की अंतःक्रियाएँ ‘सामाजिक प्रक्रिया’ या ‘सांस्कृतिक व्यवहार’ का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन वे स्वयं ‘संरचना’ का निर्माण करती हैं, न कि संरचना का अर्थ।

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