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दिल्ली का ‘बाबा’ मामला: 32 छात्रों को अनुपालन के लिए मजबूर करने में महिला स्टाफ की भूमिका

दिल्ली का ‘बाबा’ मामला: 32 छात्रों को अनुपालन के लिए मजबूर करने में महिला स्टाफ की भूमिका

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में दिल्ली के एक तथाकथित ‘बाबा’ से जुड़े मामले ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। इस मामले में, 32 छात्रों को कथित तौर पर अनुपालन के लिए मजबूर किया गया था, और चौंकाने वाली बात यह है कि इस प्रक्रिया में महिला स्टाफ की संलिप्तता और दबाव की भूमिका सामने आई है। यह घटना न केवल एक गंभीर अपराध को उजागर करती है, बल्कि समाज में सत्ता के दुरुपयोग, महिलाओं की भूमिका और संस्थागत कमजोरियों पर भी सवाल खड़े करती है। यह मामला UPSC परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण, कानून और व्यवस्था, और नैतिक शासन जैसे महत्वपूर्ण विषयों के अध्ययन के लिए एक केस स्टडी प्रदान करता है।

मामले की तह तक: क्या हुआ?

दिल्ली का यह मामला एक आध्यात्मिक गुरु या ‘बाबा’ के इर्द-गिर्द घूमता है, जिस पर अपने आश्रम या संस्थान में छात्रों का यौन शोषण और मानसिक उत्पीड़न करने का आरोप है। प्रारंभिक जांच और पीड़ितों के बयानों से पता चलता है कि यह कोई एकाकी घटना नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित ढांचा था जहाँ छात्रों को शारीरिक और मानसिक रूप से तोड़ा गया ताकि वे ‘बाबा’ के आदेशों का पालन करें।

  • शोषण का तंत्र: यह केवल शारीरिक शोषण तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें मानसिक, भावनात्मक और कभी-कभी वित्तीय दबाव भी शामिल था। छात्रों को समाज से काटा गया, उनके बाहरी संपर्कों को सीमित किया गया, और उन्हें यह विश्वास दिलाया गया कि ‘बाबा’ ही उनके जीवन का एकमात्र मार्गदर्शक हैं।
  • महिला स्टाफ की भूमिका: मामले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इस भयावह कृत्य में महिला स्टाफ की सक्रिय भागीदारी पाई गई है। ये महिला स्टाफ सदस्य, जो स्वयं पीड़ित हो सकती हैं या किसी अन्य कारण से सिस्टम का हिस्सा बन गई हों, पीड़ितों को ‘बाबा’ के निर्देशों का पालन करने के लिए प्रेरित करती थीं, दबाव डालती थीं, और शायद शोषण को सुविधाजनक बनाने में भी मदद करती थीं।
  • 32 छात्रों का अनुपालन: 32 छात्रों का आंकड़ा यह दर्शाता है कि यह समस्या बड़े पैमाने पर थी। इन छात्रों की उम्र, पृष्ठभूमि और भेद्यता अलग-अलग हो सकती है, लेकिन वे सभी एक ही जाल में फंस गए थे।

क्यों महत्वपूर्ण है यह मामला?

यह मामला कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है:

  • सामाजिक न्याय और मानवाधिकार: यह सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन है। किसी भी व्यक्ति, विशेष रूप से कमजोर छात्रों को उनकी इच्छा के विरुद्ध कुछ भी करने के लिए मजबूर करना अनैतिक और गैरकानूनी है।
  • महिलाओं की भूमिका और भेद्यता: इस मामले में महिला स्टाफ की संलिप्तता महिलाओं की जटिल भूमिकाओं पर प्रकाश डालती है। क्या वे भी पीड़ित थीं, या वे किसी कारणवश सत्ता का हिस्सा बन गईं? यह सवाल समाज में महिलाओं के उत्पीड़न और सशक्तिकरण दोनों के मुद्दों को उठाता है।
  • कानून और व्यवस्था: इस तरह के मामलों में कानून के प्रभावी प्रवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया जाता है। दोषी को सजा मिले और पीड़ितों को न्याय मिले, यह सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है।
  • संस्थागत और धार्मिक संस्थानों में जवाबदेही: यह मामला धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थानों में जवाबदेही की कमी और दुरुपयोग की संभावना पर चिंता पैदा करता है। इन संस्थानों को समाज में सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए, न कि शोषण का अड्डा बनना चाहिए।

महिला स्टाफ ने ‘बाबा’ के अनुपालन में छात्रों को कैसे मजबूर किया? (The ‘How’)

यह वह पहलू है जहाँ मामला और भी गंभीर हो जाता है। महिला स्टाफ की भूमिका केवल मूकदर्शक की नहीं, बल्कि सक्रिय सूत्रधार की बताई जा रही है। इसके कई संभावित तरीके हो सकते हैं:

“यह कृत्य जितना भयावह है, उतनी ही विचलित करने वाली महिला स्टाफ की संलिप्तता है। यह दर्शाता है कि कैसे व्यवस्था, या व्यक्तिगत भय, या कोई अन्य अज्ञात कारण किसी को ऐसे कार्यों में शामिल कर सकता है जो पीड़ितों को और नुकसान पहुँचाते हैं।”

  • मनोवैज्ञानिक दबाव: महिला स्टाफ, जो संभवतः छात्रों की अपेक्षाओं में एक नरम छवि पेश कर सकती थीं, ने मनोवैज्ञानिक दबाव का इस्तेमाल किया। वे छात्रों को ‘बाबा’ के प्रति ‘आज्ञाकारी’ और ‘भक्त’ बनने के लिए प्रेरित करती होंगी। यह ‘प्यार’, ‘देखभाल’ या ‘आध्यात्मिक प्रगति’ के नाम पर किया जा सकता था।
  • धमकी और भय: यदि भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक दबाव काम नहीं आया, तो धमकी का सहारा लिया गया होगा। यह परिवार को नुकसान पहुँचाने की धमकी, संस्थान से निकाले जाने की धमकी, या सामाजिक बहिष्कार की धमकी हो सकती है। महिला स्टाफ, अक्सर छात्रों के अधिक निकट होती हैं, इसलिए वे इस तरह की धमकियों को अधिक प्रभावी ढंग से लागू कर सकती थीं।
  • अकेलेपन का फायदा उठाना: अक्सर ऐसे संस्थानों में छात्रों को बाहरी दुनिया से अलग कर दिया जाता है। महिला स्टाफ ने इस अकेलेपन और भेद्यता का फायदा उठाकर छात्रों को यह विश्वास दिलाया होगा कि ‘बाबा’ ही उनके एकमात्र सहारा हैं और उनके आदेशों का पालन करना ही उनके हित में है।
  • गुप्त सूचना का आदान-प्रदान: वे ‘बाबा’ के लिए गुप्त सूचनाओं का आदान-प्रदान भी कर सकती थीं, जैसे कि कौन छात्र विद्रोही हो रहा है, कौन भागने की कोशिश कर रहा है, या कौन पूछताछ करने की कोशिश कर रहा है।
  • शारीरिक मजबूरी की व्याख्या: कभी-कभी, महिला स्टाफ ने सीधे तौर पर शारीरिक मजबूरी में भाग नहीं लिया हो, लेकिन उन्होंने ‘बाबा’ के आदेशों को ऐसे प्रस्तुत किया हो कि छात्रों को लगे कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है। उदाहरण के लिए, ‘यह आपकी आध्यात्मिक परीक्षा है’, या ‘बाबा जो कर रहे हैं, उसका गहरा अर्थ है।’
  • व्यक्तिगत लाभ या मजबूरी: यह भी संभव है कि महिला स्टाफ ने व्यक्तिगत लाभ (जैसे पदोन्नति, या अधिक अधिकार) के लिए ऐसा किया हो, या वे स्वयं किसी प्रकार के दबाव या धमकी के अधीन हों।

UPSC उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिकता:

यह मामला UPSC परीक्षा के विभिन्न चरणों में महत्वपूर्ण है:

  • प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
    • सामाजिक मुद्दे: लैंगिक समानता, महिलाओं के विरुद्ध अपराध, बाल शोषण, मानव तस्करी।
    • कानून: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएं जो यौन अपराधों, अपहरण, धोखाधड़ी, और आपराधिक साजिश से संबंधित हैं।
    • समाजशास्त्र: संस्थागत भ्रष्टाचार, पंथ और संप्रदाय, सामाजिक भेद्यता।
  • मुख्य परीक्षा (Mains):
    • निबंध (Essay): ‘धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थानों में जवाबदेही’, ‘लैंगिक शक्ति गतिशीलता और शोषण’, ‘समाज में भेद्यता और उत्पीड़न के पैटर्न’।
    • सामान्य अध्ययन (GS) पेपर I (समाज): भारतीय समाज की विशेषताएँ, महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन।
    • सामान्य अध्ययन (GS) पेपर II (शासन): सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी हस्तक्षेप। शासन में नागरिक समाज की भूमिका।
    • सामान्य अध्ययन (GS) पेपर IV (नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि): नैतिक दुविधाएँ, लोक सेवकों के लिए नैतिकता, धर्मार्थ संस्थानों में नैतिकता, शक्ति का दुरुपयोग।

कारणों का विश्लेषण: समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य

इस तरह के संस्थानों में शोषण के तंत्र को समझने के लिए समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य महत्वपूर्ण हैं:

  • सत्ता का भयावह समीकरण (The Power Imbalance):

    धार्मिक या आध्यात्मिक गुरु अक्सर अपने अनुयायियों पर अत्यधिक आध्यात्मिक और नैतिक अधिकार रखते हैं। यह शक्ति असंतुलन शोषण के लिए एक उपजाऊ जमीन तैयार करता है। अनुयायी अक्सर गुरु को ईश्वर तुल्य मानते हैं और उनके आदेशों को ईश्वरीय इच्छा के रूप में स्वीकार करते हैं।

    “जब आस्था शक्ति में बदल जाती है, और शक्ति अंधभक्ति में, तो शोषण का द्वार खुल जाता है।”

  • पहचान का क्षरण (Erosion of Identity):

    ऐसे संस्थानों में, व्यक्तिगत पहचान को मिटाने और अनुयायियों को एक सामूहिक पहचान में ढालने का प्रयास किया जाता है। यह उन्हें बाहरी दुनिया से अलग-थलग कर देता है और उन्हें संस्था पर अत्यधिक निर्भर बना देता है।

  • सामूहिक उन्माद और समूह सोच (Groupthink):

    समूह में रहने से व्यक्ति सामूहिक उन्माद का शिकार हो सकता है। जब एक बार शोषण का चक्र शुरू हो जाता है, तो समूह की चुप्पी और समूह की सोच (groupthink) इसे जारी रखने में मदद करती है। जो लोग सवाल उठाते हैं, उन्हें अक्सर बहिष्कृत कर दिया जाता है या दंडित किया जाता है।

  • महिला स्टाफ की भेद्यता और सहभागिता:

    यह समझना महत्वपूर्ण है कि महिला स्टाफ स्वयं क्यों शामिल हो सकती है:

    • पीड़ित से उत्पीड़क: कई बार, जो महिलाएँ स्वयं किसी स्तर पर पीड़ित रही हों, वे बाहरी दबाव या मनोवैज्ञानिक कंडीशनिंग के कारण, अन्य पीड़ितों पर समान व्यवहार लागू करने लगती हैं।
    • पदानुक्रम और डर: इन संस्थानों में एक कठोर पदानुक्रम होता है। महिला स्टाफ भी ‘बाबा’ के कड़े निर्देशों के अधीन हो सकती हैं और अवज्ञा करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
    • सामाजिक कंडीशनिंग: पारंपरिक समाज में महिलाओं को अक्सर ‘सेवा’, ‘समर्पण’, और ‘त्याग’ सिखाया जाता है। इन गुणों का दुरुपयोग करके, उन्हें दूसरों का शोषण करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, खासकर यदि यह ‘बाबा’ की सेवा के नाम पर हो।
    • वित्तीय निर्भरता: कुछ मामलों में, महिला स्टाफ इन संस्थानों पर अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए निर्भर हो सकती हैं, जो उन्हें समझौता करने के लिए मजबूर कर सकती है।

महिलाओं की भूमिका: एक जटिल तस्वीर

यह मामला महिलाओं की भूमिका को केवल पीड़ितों के रूप में देखने की हमारी प्रवृत्ति को चुनौती देता है। इस मामले में, वे एक जटिल भूमिका में दिखाई देती हैं:

  • संभावित पीड़ित: यह पूरी तरह से संभव है कि महिला स्टाफ स्वयं भी शोषण के अधीन रही हों और वे किसी बड़े, व्यवस्थागत उत्पीड़न का हिस्सा हों।
  • सह-साजिशकर्ता: यदि वे स्वेच्छा से या दबाव में छात्रों को अनुपालन के लिए मजबूर कर रही थीं, तो वे सह-साजिशकर्ता बन जाती हैं।
  • शक्ति का हस्तांतरण: कभी-कभी, उत्पीड़न करने वाले अपने उत्पीड़न से बचने के लिए दूसरों को उत्पीड़ित करते हैं। महिला स्टाफ, जो स्वयं शक्तिहीन महसूस कर रही होंगी, ने ‘बाबा’ से प्राप्त शक्ति का हस्तांतरण छात्रों पर किया हो।

यह स्थिति हमें सिखाती है कि किसी भी सामाजिक मुद्दे का विश्लेषण करते समय, हमें हमेशा मानवीय अनुभवों की जटिलताओं को स्वीकार करना चाहिए।

कानूनी और संस्थागत प्रतिक्रिया

इस तरह के मामलों में, प्रभावी कानूनी और संस्थागत प्रतिक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं:

  • जांच और अभियोजन: पुलिस और न्यायपालिका को निष्पक्ष और त्वरित जांच सुनिश्चित करनी चाहिए, और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।
  • पीड़ितों का पुनर्वास: पीड़ितों को मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए। उन्हें सुरक्षित वातावरण में रखना और उनके पुनर्वास पर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • नियमन और निगरानी: ऐसे धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थानों के लिए स्पष्ट नियम और दिशा-निर्देश होने चाहिए। सरकार को इन संस्थानों की गतिविधियों पर नज़र रखने और उनकी निगरानी के लिए तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • जागरूकता अभियान: समाज में इस तरह के शोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाना और लोगों को इन जाल में न फँसने के लिए शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।

भविष्य की राह: निवारण और समाधान

इस तरह की घटनाओं को भविष्य में होने से रोकने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं:

  • मजबूत कानून और प्रवर्तन: शोषण और जबरन वसूली के खिलाफ सख्त कानून बनाना और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना।
  • संस्थागत जवाबदेही: सभी धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थानों को पारदर्शिता और जवाबदेही के उच्च मानकों को बनाए रखना चाहिए। उन्हें बाहरी ऑडिट और निरीक्षण के लिए खुला रहना चाहिए।
  • मानसिक स्वास्थ्य और परामर्श: संस्थानों में परामर्श सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि छात्र अपनी समस्याओं को खुलकर व्यक्त कर सकें।
  • मीडिया की भूमिका: मीडिया को ऐसे मामलों को उजागर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए, लेकिन साथ ही पीड़ितों की गोपनीयता और गरिमा का भी सम्मान करना चाहिए।
  • शिक्षा और जागरूकता: बच्चों और युवाओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करना और उन्हें सिखाना कि कब और कैसे मदद माँगनी है।
  • महिला सशक्तीकरण: महिलाओं को शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और आवाज उठाने का अधिकार देकर सशक्त बनाना, ताकि वे न तो पीड़ित बनें और न ही उत्पीड़क।

निष्कर्ष

दिल्ली का ‘बाबा’ मामला एक दुखद अध्याय है जो समाज के उन अंधेरे कोनों को उजागर करता है जहाँ विश्वास का दुरुपयोग होता है और भेद्यता का फायदा उठाया जाता है। महिला स्टाफ की संलिप्तता मामले की जटिलता को बढ़ाती है और हमें महिलाओं की भूमिकाओं को सतही तौर पर न देखने की याद दिलाती है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह मामला सामाजिक न्याय, नैतिकता, शासन और मानवीय गरिमा जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर विचार करने का अवसर प्रदान करता है। ऐसे मुद्दों को गहराई से समझना और उनका विश्लेषण करना, भविष्य में एक जिम्मेदार नागरिक और लोक सेवक के रूप में निर्णय लेने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. दिल्ली के ‘बाबा’ मामले में, कथित तौर पर 32 छात्रों को अनुपालन के लिए मजबूर करने में किसकी भूमिका सामने आई है?
    1. केवल पुरुष अनुयायी
    2. केवल बाहरी मीडिया
    3. महिला स्टाफ
    4. केवल पीड़ित छात्र

    उत्तर: (c) महिला स्टाफ
    व्याख्या: मामले की रिपोर्टों के अनुसार, महिला स्टाफ की संलिप्तता छात्रों को अनुपालन के लिए मजबूर करने में एक प्रमुख कारक बताई गई है।

  2. इस तरह के संस्थानों में शोषण का तंत्र अक्सर किस पर आधारित होता है?
    1. केवल उच्च शिक्षा का अभाव
    2. आध्यात्मिक अधिकार का दुरुपयोग और शक्ति असंतुलन
    3. सरकारी हस्तक्षेप की कमी
    4. अंतरराष्ट्रीय दबाव

    उत्तर: (b) आध्यात्मिक अधिकार का दुरुपयोग और शक्ति असंतुलन
    व्याख्या: धार्मिक या आध्यात्मिक गुरु अपने अनुयायियों पर अत्यधिक अधिकार रखते हैं, जिसका दुरुपयोग शोषण का कारण बन सकता है।

  3. जब अनुयायी बाहरी दुनिया से कट जाते हैं और संस्था पर अत्यधिक निर्भर हो जाते हैं, तो किस सामाजिक-मनोवैज्ञानिक घटना का अनुभव किया जाता है?
    1. व्यक्तिगत स्वायत्तता में वृद्धि
    2. पहचान का क्षरण और सामूहिक निर्भरता
    3. आलोचनात्मक सोच का उदय
    4. सामाजिक जुड़ाव में वृद्धि

    उत्तर: (b) पहचान का क्षरण और सामूहिक निर्भरता
    व्याख्या: संस्थाओं का उद्देश्य अक्सर अनुयायियों की व्यक्तिगत पहचान को मिटाना और उन्हें संस्था पर निर्भर बनाना होता है।

  4. IPC की कौन सी धाराएँ यौन अपराधों से संबंधित हैं?
    1. धारा 302
    2. धारा 376
    3. धारा 420
    4. धारा 144

    उत्तर: (b) धारा 376
    व्याख्या: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 दुष्कर्म से संबंधित है।

  5. ‘ग्रुपथिंक’ (Groupthink) की अवधारणा निम्नलिखित में से किस स्थिति का वर्णन करती है?
    1. एक समूह में व्यक्तिगत मतभेद का उदय
    2. एक समूह में असहमति को दबाना और सर्वसम्मति की ओर बढ़ना, भले ही वह गलत हो
    3. स्वतंत्र आलोचनात्मक मूल्यांकन को प्रोत्साहित करना
    4. समूह के सदस्यों के बीच स्वस्थ बहस

    उत्तर: (b) एक समूह में असहमति को दबाना और सर्वसम्मति की ओर बढ़ना, भले ही वह गलत हो
    व्याख्या: ग्रुपथिंक एक ऐसी स्थिति है जहाँ समूह के सदस्य असहमति को दबाते हैं ताकि समूह की एकता बनी रहे, भले ही निर्णय गलत हो।

  6. निम्नलिखित में से कौन सा कार्य ‘संस्थागत जवाबदेही’ (Institutional Accountability) को बढ़ावा देता है?
    1. गुप्त संचालन और गोपनीयता
    2. खुलापन, पारदर्शिता और बाहरी निरीक्षण
    3. निर्णय लेने में मनमानी
    4. शिकायतों का दमन

    उत्तर: (b) खुलापन, पारदर्शिता और बाहरी निरीक्षण
    व्याख्या: संस्थागत जवाबदेही के लिए पारदर्शिता, खुलापन और बाहरी निगरानी आवश्यक है।

  7. यौन शोषण के पीड़ितों के पुनर्वास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व महत्वपूर्ण है?
    1. उनसे उनके अनुभवों के बारे में बार-बार पूछना
    2. उन्हें सामाजिक अलगाव में रखना
    3. मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और वित्तीय सहायता प्रदान करना
    4. उन्हें तुरंत सामान्य जीवन में लौटने के लिए मजबूर करना

    उत्तर: (c) मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और वित्तीय सहायता प्रदान करना
    व्याख्या: पीड़ितों के प्रभावी पुनर्वास के लिए बहुआयामी सहायता आवश्यक है।

  8. महिला स्टाफ की संलिप्तता के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा एक संभावित कारण हो सकता है?
    1. केवल शिक्षा का अभाव
    2. वे स्वयं बड़े व्यवस्थागत उत्पीड़न का हिस्सा हो सकती हैं
    3. स्वतंत्र सोच की अधिकता
    4. बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अलगाव

    उत्तर: (b) वे स्वयं बड़े व्यवस्थागत उत्पीड़न का हिस्सा हो सकती हैं
    व्याख्या: यह मामला महिला स्टाफ की जटिल भूमिकाओं और उनकी अपनी भेद्यताओं को समझने की आवश्यकता पर जोर देता है।

  9. UPSC सामान्य अध्ययन पेपर IV (नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि) के लिए, यह मामला किस सिद्धांत से संबंधित है?
    1. केवल राष्ट्रीय सुरक्षा
    2. केवल आर्थिक विकास
    3. नैतिक दुविधाएँ, शक्ति का दुरुपयोग, और संस्थानों में नैतिकता
    4. अंतरराष्ट्रीय संबंध

    उत्तर: (c) नैतिक दुविधाएँ, शक्ति का दुरुपयोग, और संस्थानों में नैतिकता
    व्याख्या: यह मामला स्पष्ट रूप से नैतिक सिद्धांतों, शक्ति के दुरुपयोग और संस्थानों के भीतर नैतिक आचरण से संबंधित है।

  10. ऐसे आध्यात्मिक संस्थानों में ‘सत्ता का भयावह समीकरण’ (The Power Imbalance) क्यों उत्पन्न होता है?
    1. जब अनुयायी गुरु को ईश्वर तुल्य मानने लगते हैं
    2. जब संस्थाओं में अधिक पारदर्शिता होती है
    3. जब अनुयायी स्वतंत्र रूप से सवाल पूछते हैं
    4. जब गुरु निष्पक्ष और तटस्थ होते हैं

    उत्तर: (a) जब अनुयायी गुरु को ईश्वर तुल्य मानने लगते हैं
    व्याख्या: गुरु के प्रति अत्यधिक श्रद्धा और ईश्वर तुल्य मानना शक्ति असंतुलन को जन्म देता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. दिल्ली के ‘बाबा’ मामले में महिला स्टाफ की भूमिका, शोषण के तंत्र और संस्थागत कमजोरियों का समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करें। इस तरह की घटनाओं को भविष्य में रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? (लगभग 250 शब्द)
  2. धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थानों में जवाबदेही का मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिल्ली ‘बाबा’ मामले के आलोक में, ऐसे संस्थानों में पारदर्शिता, निगरानी और नैतिक आचरण सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपायों पर चर्चा करें। (लगभग 150 शब्द)
  3. यौन शोषण और उत्पीड़न के मामलों में, केवल व्यक्तिगत अपराधियों को दंडित करना पर्याप्त नहीं है। इस दिल्ली ‘बाबा’ मामले के संदर्भ में, पीड़ितों के पुनर्वास, सामाजिक कलंक को दूर करने और समाज में ऐसे कृत्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के महत्व पर प्रकाश डालें। (लगभग 150 शब्द)

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