समाजशास्त्रीय सूझबूझ: आपकी दैनिक चुनौती
समाजशास्त्र के ज्ञान को परखने और अपनी विश्लेषणात्मक क्षमता को निखारने के लिए तैयार हो जाइए! हर दिन नए प्रश्नों के साथ, अपनी अवधारणात्मक स्पष्टता को चुनौती दें और प्रमुख प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए अपनी तैयारी को मजबूत करें। यह सिर्फ एक क्विज नहीं, बल्कि समाज की गहन समझ की ओर आपका कदम है!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: “सामाजिक तथ्य” (social facts) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की, जिसे उन्होंने बाहरी, बाध्यकारी और सामूहिक चेतना से युक्त माना?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अपनी कृति “समाजशास्त्रीय विधि की नियम” (The Rules of Sociological Method) में “सामाजिक तथ्य” की अवधारणा पेश की। उनका तर्क था कि समाजशास्त्र का अध्ययन सामाजिक तथ्यों पर आधारित होना चाहिए, जो व्यक्तियों पर बाहरी दबाव डालते हैं और सामान्यतः सामूहिक चेतना से उत्पन्न होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, सामाजिक तथ्य ‘चीजों’ की तरह होते हैं जिनका अध्ययन वस्तुनिष्ठ (objective) रूप से किया जा सकता है। उदाहरणों में कानून, रीति-रिवाज, नैतिक नियम और सामूहिक भावनाएँ शामिल हैं।
- अincorrect विकल्प: कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और अलगाव पर ध्यान केंद्रित किया; मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया और ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) पर जोर दिया; हर्बर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद और सामाजिक विकास के सिद्धांत दिए।
प्रश्न 2: मैक्स वेबर के अनुसार, सत्ता (authority) के तीन आदर्श प्रकारों में से कौन सा वह है जो किसी व्यक्ति के असाधारण व्यक्तिगत गुणों या करिश्मे पर आधारित होता है?
- वैध-कानूनी सत्ता (Legal-rational authority)
- पारंपरिक सत्ता (Traditional authority)
- करिश्माई सत्ता (Charismatic authority)
- नौकरशाही सत्ता (Bureaucratic authority)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन आदर्श प्रकार बताए: पारंपरिक, वैध-कानूनी और करिश्माई। करिश्माई सत्ता का आधार नेता का असाधारण व्यक्तिगत करिश्मा, आकर्षण और अलौकिक क्षमताएँ होती हैं, जिसके कारण अनुयायी उसका अनुसरण करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सत्ता अक्सर क्रांतिकारी या संक्रमणकालीन अवधियों में उत्पन्न होती है। वेबर ने इस पर अपनी पुस्तक “अर्थव्यवस्था और समाज” (Economy and Society) में विस्तार से चर्चा की है।
- अincorrect विकल्प: वैध-कानूनी सत्ता नियमों और प्रक्रियाओं पर आधारित होती है (जैसे आधुनिक सरकारें); पारंपरिक सत्ता रीति-रिवाजों और वंशानुक्रम पर आधारित होती है (जैसे राजशाही); नौकरशाही सत्ता विशिष्ट रूप से वेबर के ‘वैध-कानूनी’ प्रकार का हिस्सा है, लेकिन प्रश्न करिश्मे पर केंद्रित है।
प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा सामाजिक संरचना (social structure) का हिस्सा नहीं है?
- सामाजिक भूमिकाएँ
- प्रतीक और भाषा
- सामाजिक संस्थाएँ
- सामाजिक वर्ग
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सामाजिक संरचना में समाज के स्थायी, व्यवस्थित पैटर्न शामिल होते हैं, जिनमें सामाजिक संस्थाएँ (जैसे परिवार, शिक्षा), सामाजिक वर्ग, सामाजिक भूमिकाएँ, स्थिति (status) और पदानुक्रम (hierarchy) आते हैं। प्रतीक और भाषा मुख्य रूप से संस्कृति (culture) का हिस्सा हैं, जो सामाजिक संरचना को प्रभावित और प्रतिबिंबित करती है, लेकिन वे स्वयं संरचना का मुख्य तत्व नहीं हैं।
- संदर्भ और विस्तार: संरचना उन ‘सांचों’ या ‘ढाँचों’ को संदर्भित करती है जो सामाजिक जीवन को आकार देते हैं, जबकि संस्कृति वह ‘सामग्री’ है जो इन ढाँचों को भरती है और उन्हें अर्थ प्रदान करती है।
- अincorrect विकल्प: सामाजिक भूमिकाएँ, संस्थाएँ और वर्ग सभी सामाजिक संरचना के महत्वपूर्ण घटक हैं।
प्रश्न 4: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवाद के तहत श्रमिकों का अलगाव (alienation) किस कारण से सबसे अधिक होता है?
- कार्य की प्रकृति के कारण
- अपने श्रम के उत्पाद से अलगाव
- सहकर्मियों से अलगाव
- स्वयं से अलगाव
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी समाज में श्रमिकों के अलगाव के चार मुख्य रूप बताए हैं। इनमें सबसे प्रमुख है “अपने श्रम के उत्पाद से अलगाव”। श्रमिक जो वस्तुएँ बनाते हैं, वे उनकी अपनी नहीं होतीं, बल्कि पूंजीपति की संपत्ति बन जाती हैं, और श्रमिक उन पर नियंत्रण नहीं रख पाते।
- संदर्भ और विस्तार: अन्य प्रकार हैं: उत्पादन की क्रिया से अलगाव (काम एक उद्देश्यपूर्ण गतिविधि न होकर एक मजबूरी है), अपनी प्रजाति-प्रकृति (species-essence) से अलगाव (काम रचनात्मक और आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं रह जाता), और अन्य मनुष्यों से अलगाव (प्रतिस्पर्धा और शोषण के कारण)।
- अincorrect विकल्प: अन्य तीनों विकल्प भी अलगाव के प्रकार हैं, लेकिन मार्क्स के अनुसार, उत्पाद से अलगाव मूल कारण है जिससे अन्य प्रकार उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 5: ‘अनमी’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक मानदंडों के कमजोर पड़ने या अनुपस्थिति की स्थिति को दर्शाती है, किसने विकसित की?
- रॉबर्ट मैरटन
- ए. एल. क्रोएबर
- ई. सी. बोगाडस
- डेविड ए. ई. सी. बोगाडस
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘अनमी’ (Anomie) की अवधारणा को मुख्य रूप से एमिल दुर्खीम ने विकसित किया था, न कि रॉबर्ट मैरटन ने (जिन्होंने अनमी के पांच प्रकार बताए)। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ सामाजिक नियम अस्पष्ट, विरोधाभासी या अनुपस्थित होते हैं, जिससे व्यक्ति में दिशाहीनता और चिंता पैदा होती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने इसे आत्महत्या की दर को समझाने के लिए प्रयोग किया, विशेषकर ‘अनॉमिक आत्महत्या’ के प्रकार में। अनमी तब उत्पन्न होती है जब सामाजिक अपेक्षाएँ और व्यक्तिगत आकांक्षाएँ मेल नहीं खातीं।
- अincorrect विकल्प: रॉबर्ट मैरटन ने दुर्खीम की अवधारणा को आगे बढ़ाया और इसे नवाचार, अनुरूपता, अनुष्ठानवाद, विद्रोह और पलायन (innovation, conformity, ritualism, retreatism, rebellion) के माध्यम से समझाया। ए. एल. क्रोएबर और ई. सी. बोगाडस समाजशास्त्र के अन्य क्षेत्रों से संबंधित हैं।
प्रश्न 6: भारतीय समाज में ‘जजमानी प्रथा’ (Jajmani System) क्या है?
- एक प्रकार की भूमि सुधार व्यवस्था
- पारंपरिक ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था जिसमें सेवा प्रदाता (नाई, धोबी, कुम्हार आदि) और सेवा प्राप्तकर्ता (किसान, जमींदार) के बीच वंशानुगत संबंध होता है।
- एक मतदान प्रणाली
- एक शहरी नियोजन मॉडल
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जजमानी प्रथा भारतीय ग्रामीण समुदायों में प्रचलित एक पारंपरिक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था है। इसमें विभिन्न जातियों के बीच एक-दूसरे को वस्तुएँ या सेवाएँ प्रदान करने का परस्पर, प्रायः वंशानुगत, संबंध होता है। सेवा प्रदाता (जैसे नाई, धोबी, कुम्हार, पुजारी, लोहार) अपनी सेवाओं के बदले सेवा प्राप्तकर्ता (जैसे किसान, जमींदार) से प्रायः कृषि उपज या अन्य लाभ प्राप्त करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रणाली सामाजिक स्तरीकरण (social stratification) और अंतर-जातीय सहयोग को दर्शाती है। इसे सामाजिक सुरक्षा के एक रूप के रूप में भी देखा जाता है, खासकर ग्रामीण समुदायों में।
- अincorrect विकल्प: यह भूमि सुधार, मतदान प्रणाली या शहरी नियोजन से संबंधित नहीं है।
प्रश्न 7: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा का क्या अर्थ है?
- पश्चिमी संस्कृति को अपनाना
- उच्च जातियों के रिवाजों और परंपराओं को निम्न जातियों द्वारा अपनाना ताकि सामाजिक स्थिति में सुधार हो सके।
- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया
- शहरीकरण का प्रभाव
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ की अवधारणा को समझाया है। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निचली या मध्यम जातियों के लोग अपनी सामाजिक स्थिति को उन्नत करने के लिए किसी उच्च जाति (विशेषकर ‘द्विजातियों’ या ‘शुद्ध’ जातियों) के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” में पहली बार प्रस्तुत की गई थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता (cultural mobility) का एक रूप है, न कि संरचनात्मक गतिशीलता (structural mobility) का।
- अincorrect विकल्प: पश्चिमीकरण पश्चिमी देशों की जीवन शैली को अपनाने से संबंधित है; आधुनिकीकरण तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन से जुड़ा है; शहरीकरण का अर्थ ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में प्रवास और जीवन शैली में बदलाव है।
प्रश्न 8: निम्न में से कौन सा एक प्रकार्यात्मक (functional) दृष्टिकोण से समाजशास्त्र के अध्ययन से संबंधित नहीं है?
- आर. के. मर्टन
- टैल्कॉट पार्सन्स
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: आर. के. मर्टन, टैल्कॉट पार्सन्स और एमिल दुर्खीम को प्रकार्यात्मक (Functionalist) दृष्टिकोण के प्रमुख विचारकों में गिना जाता है। वे समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखते हैं जिसके विभिन्न अंग (संस्थाएँ, संरचनाएँ) मिलकर स्थिरता और संतुलन बनाए रखने में योगदान करते हैं। कार्ल मार्क्स, इसके विपरीत, संघर्ष (Conflict) सिद्धांत के प्रमुख प्रणेता हैं, जो समाज को विभिन्न समूहों के बीच शक्ति और संसाधनों के लिए निरंतर संघर्ष के रूप में देखते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: प्रकार्यवाद का मानना है कि समाज के हर हिस्से का कोई न कोई ‘कार्य’ (function) होता है जो सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करता है।
- अincorrect विकल्प: मर्टन ने ‘प्रकार्य’ (function) और ‘प्रतिकार्य’ (dysfunction) के बीच अंतर किया और ‘मध्यम-श्रेणी के सिद्धांत’ (theories of middle range) पर जोर दिया; पार्सन्स ने समाज को एक ‘संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक’ (structural-functional) प्रणाली के रूप में देखा।
प्रश्न 9: डेविड ई. एपस्टीन (David E. Apter) की ‘आधुनिकीकरण के सिद्धांत’ (Theories of Modernization) में, उन्होंने किस प्रकार की आधुनिकीकरण प्रक्रिया पर जोर दिया?
- केवल आर्थिक विकास
- पश्चिमीकरण पर आधारित राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन
- सांस्कृतिक विविधता का संरक्षण
- स्थानीय परंपराओं का सुदृढ़ीकरण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: डेविड ई. एपस्टीन ने आधुनिकीकरण के सिद्धांतों पर अपने कार्यों में, विशेष रूप से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से प्रभावित राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों पर प्रकाश डाला। उन्होंने अक्सर ‘उत्तरीकरण’ (Northernization) जैसे शब्दों का प्रयोग किया, जो पश्चिमी देशों की जीवन शैली और संस्थानों को अपनाने को दर्शाता है।
- संदर्भ और विस्तार: उनका काम इस बात पर केंद्रित था कि कैसे गैर-पश्चिमी समाज पश्चिमी औद्योगिक समाजों के मॉडल का अनुसरण करके परिवर्तन से गुजरते हैं।
- अincorrect विकल्प: जबकि आर्थिक विकास एक हिस्सा हो सकता है, एपस्टीन का ध्यान व्यापक राजनीतिक और सामाजिक प्रणालियों पर था। सांस्कृतिक विविधता का संरक्षण या स्थानीय परंपराओं का सुदृढ़ीकरण अक्सर आधुनिकीकरण के समानांतर प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, न कि एपस्टीन के सिद्धांत का केंद्रीय तत्व।
प्रश्न 10: ‘सिंबॉलिक इंटरेक्शनिज़्म’ (Symbolic Interactionism) का जनक किसे माना जाता है, जिसने मानव व्यवहार को प्रतीकों (symbols) के माध्यम से समझने पर जोर दिया?
- चार्ल्स हॉर्टन कूली
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- हर्बर्ट ब्लूमर
- अल्फ्रेड शूत्ज़
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को अक्सर ‘सिंबॉलिक इंटरेक्शनिज़्म’ का संस्थापक माना जाता है, भले ही यह शब्द उनके छात्र हर्बर्ट ब्लूमर द्वारा गढ़ा गया था। मीड का तर्क था कि ‘सेल्फ’ (Self) सामाजिक संपर्क और भाषा के माध्यम से विकसित होता है, जिसमें व्यक्ति अन्य लोगों की भूमिकाओं को ग्रहण करना (taking the role of the other) सीखता है और प्रतीकों के माध्यम से संवाद करता है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘मी’ (Me) और ‘आई’ (I) की अवधारणा दी, जो आत्म (Self) के सामाजिक और प्रतिक्रियात्मक पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके विचार उनकी मरणोपरांत प्रकाशित पुस्तक “Mind, Self, and Society” में संकलित हैं।
- अincorrect विकल्प: चार्ल्स हॉर्टन कूली ने ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ (looking-glass self) की अवधारणा दी, जो मीड के काम से निकटता से जुड़ी है; हर्बर्ट ब्लूमर ने ‘सिंबॉलिक इंटरेक्शनिज़्म’ शब्द को लोकप्रिय बनाया और इसके सिद्धांतों को औपचारिक रूप दिया; अल्फ्रेड शूत्ज़ फेनोमेनोलॉजी (phenomenology) से संबंधित हैं।
प्रश्न 11: भारत में जाति व्यवस्था (Caste System) का अध्ययन करते समय, ‘धर्म’ (Dharma) की अवधारणा किस प्रकार प्रासंगिक है?
- यह जाति के बाहर विवाह को बढ़ावा देता है।
- यह व्यक्ति के जीवन में कर्तव्य और सामाजिक व्यवस्था का वर्णन करता है, जो उसकी जाति से जुड़ा होता है।
- यह सभी जातियों के लिए समान अधिकारों की वकालत करता है।
- यह जाति व्यवस्था के उन्मूलन का समर्थन करता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: भारतीय परंपराओं में, ‘धर्म’ का अर्थ केवल मजहब (religion) नहीं है, बल्कि इसमें व्यक्ति के कर्तव्य (duty), सदाचार (righteousness) और जीवन जीने का तरीका भी शामिल है। जाति व्यवस्था के संदर्भ में, प्रत्येक जाति के सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी जाति-विशिष्ट भूमिकाओं और कर्तव्यों का पालन करें, जिसे उनका ‘स्वधर्म’ (own dharma) माना जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी निर्धारित भूमिका में कार्य करने के लिए प्रेरित करने में महत्वपूर्ण रही है।
- अincorrect विकल्प: धर्म जाति के बाहर विवाह को बढ़ावा नहीं देता; यह समान अधिकारों की वकालत नहीं करता, बल्कि व्यवस्था में भूमिका का निर्धारण करता है; यह जाति व्यवस्था के उन्मूलन का समर्थन नहीं करता, बल्कि उसे पवित्रता और औचित्य प्रदान करता है।
प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन सा सामाजिक स्तरीकरण (social stratification) का एक सर्वव्यापी (universal) रूप है?
- दासता (Slavery)
- जाति व्यवस्था (Caste system)
- वर्ग (Class)
- सभी (a), (b) और (c)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जबकि दासता और जाति व्यवस्था सामाजिक स्तरीकरण के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और क्षेत्रीय रूप रहे हैं, ‘वर्ग’ (Class) को आधुनिक समाजों में सामाजिक स्तरीकरण का सबसे सर्वव्यापी और लचीला रूप माना जाता है। वर्ग-आधारित स्तरीकरण, जो मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति पर आधारित होता है, दुनिया भर के अधिकांश समाजों में पाया जाता है, भले ही इसके विशिष्ट स्वरूप अलग-अलग हों।
- संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण का तात्पर्य समाज में लोगों को असमान समूहों में व्यवस्थित करना है, जो शक्ति, विशेषाधिकार और प्रतिष्ठा में भिन्न होते हैं।
- अincorrect विकल्प: दासता और जाति व्यवस्था कुछ समाजों और अवधियों तक ही सीमित थे, जबकि वर्ग-आधारित स्तरीकरण अधिक व्यापक है।
प्रश्न 13: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा का श्रेय किस समाजशास्त्री को जाता है, जो व्यक्तियों या समूहों के बीच संबंधों के मूल्य पर जोर देता है?
- पियरे बॉर्डियू
- जेम्स कोलमन
- रॉबर्ट पाटन
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘सामाजिक पूंजी’ की अवधारणा को विकसित करने और लोकप्रिय बनाने में पियरे बॉर्डियू, जेम्स कोलमन और रॉबर्ट पाटन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बॉर्डियू ने इसे सांस्कृतिक और आर्थिक पूंजी के साथ एक प्रकार की पूंजी के रूप में देखा; कोलमन ने इसे सामाजिक संरचनाओं के एक उत्पाद के रूप में समझा जो किसी व्यक्ति को कार्य करने में सक्षम बनाती है; और पाटन ने इसे ‘लोगों की ओर से लोगों’ (people of people) के रूप में परिभाषित किया।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक पूंजी उन नेटवर्क, संबंधों, भरोसे और आपसी सहयोग को संदर्भित करती है जो व्यक्तियों या समूहों को लाभ पहुंचाते हैं।
- अincorrect विकल्प: तीनों ही विचारक इस अवधारणा के विकास में प्रमुख हैं, इसलिए सभी सही हैं।
प्रश्न 14: ‘संस्थात्मक भेदभाव’ (Institutional Discrimination) से क्या तात्पर्य है?
- व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के कारण होने वाला भेदभाव।
- समाज की संस्थाओं (जैसे शिक्षा, कानून, रोजगार) की संरचना, नीतियों और प्रथाओं में निहित भेदभाव।
- जाति या वर्ग के आधार पर होने वाला खुला भेदभाव।
- अदृश्य या अनौपचारिक पूर्वाग्रह।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: संस्थागत भेदभाव वह होता है जो समाज की प्रमुख संस्थाओं के कामकाज में अंतर्निहित होता है। यह जानबूझकर या अनजाने में हो सकता है, लेकिन इसके परिणाम किसी विशिष्ट समूह के लिए नुकसानदायक होते हैं। उदाहरण के लिए, किसी समुदाय के लिए शैक्षिक संसाधनों तक असमान पहुँच।
- संदर्भ और विस्तार: यह व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से भिन्न होता है, जो अक्सर अधिक प्रत्यक्ष और व्यक्ति-केंद्रित होते हैं। संस्थागत भेदभाव अक्सर मौजूदा सामाजिक संरचनाओं को बनाए रखता है।
- अincorrect विकल्प: (a) व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों को व्यक्तिगत भेदभाव कहा जाता है; (c) यह संस्थागत भेदभाव का एक संभावित परिणाम हो सकता है, लेकिन परिभाषा स्वयं इस पर आधारित नहीं है; (d) यह संस्थागत भेदभाव का एक पहलू हो सकता है, लेकिन यह मुख्य रूप से संस्थागत संरचनाओं से जुड़ा है।
प्रश्न 15: समाजशास्त्रीय अनुसंधान (Sociological Research) में ‘सैंपलिंग’ (Sampling) का उद्देश्य क्या है?
- सभी इकाइयों का अध्ययन करना
- पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले एक छोटे उपसमूह का चयन करना
- केवल सबसे अमीर लोगों का अध्ययन करना
- अनुसंधान प्रक्रिया को जटिल बनाना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सैंपलिंग का मुख्य उद्देश्य एक बड़ी आबादी (population) के सभी सदस्यों का अध्ययन करने के बजाय, उस आबादी के एक छोटे, प्रतिनिधि उपसमूह (sample) का चयन करना है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि उन निष्कर्षों को जो नमूने से प्राप्त होते हैं, पूरी आबादी पर लागू किया जा सके, और यह समय, धन और संसाधनों की बचत करता है।
- संदर्भ और विस्तार: एक अच्छे नमूने का चयन करना महत्वपूर्ण है ताकि वह आबादी के गुणों को सटीक रूप से दर्शा सके।
- अincorrect विकल्प: (a) यदि सभी इकाइयों का अध्ययन संभव हो तो वह जनगणना (census) कहलाती है, न कि सैंपलिंग; (c) यह पूर्वाग्रहपूर्ण सैंपलिंग का उदाहरण है; (d) सैंपलिंग का उद्देश्य अनुसंधान को सुगम बनाना है।
प्रश्न 16: ‘ग्रामिण-शहरी सातत्य’ (Rural-Urban Continuum) की अवधारणा किसने विकसित की?
- रॉबर्ट रेडफील्ड
- जी. एस. घुरिये
- डॉ. बी. आर. अंबेडकर
- एम.एन. श्रीनिवास
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: रॉबर्ट रेडफील्ड, एक अमेरिकी मानवविज्ञानी, ने ‘ग्रामिण-शहरी सातत्य’ की अवधारणा को विकसित किया। उन्होंने तर्क दिया कि ग्रामीण और शहरी जीवन शैली एक द्विभाजित (dichotomous) प्रणाली नहीं है, बल्कि एक स्पेक्ट्रम (spectrum) पर मौजूद है, जहाँ ग्रामीण और शहरी विशेषताओं का मिश्रण पाया जा सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: उन्होंने मेक्सिको में अपने नृवंशविज्ञान (ethnographic) अध्ययनों के आधार पर यह सिद्धांत दिया।
- अincorrect विकल्प: जी. एस. घुरिये ने जाति और जनजातियों का अध्ययन किया; डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने जाति व्यवस्था और सामाजिक न्याय पर जोर दिया; एम.एन. श्रीनिवास ने संस्कृतीकरण और पश्चिमीकरण जैसे सिद्धांत दिए।
प्रश्न 17: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो प्रौद्योगिकी और गैर-भौतिक संस्कृति के बीच असमान विकास को दर्शाती है, किसने प्रस्तुत की?
- विलियम ग्राहम समनर
- ऑगस्ट कॉम्टे
- अल्बर्ट आइंस्टीन
- मैक्स वेबर
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विलियम ग्राहम समनर ने अपनी पुस्तक “Folkways” (1906) में ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा प्रस्तुत की। यह तब होता है जब समाज की भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी, मशीनें) अपनी गैर-भौतिक संस्कृति (जैसे कानून, नैतिकता, संस्थाएँ, मूल्य) की तुलना में तेजी से बदलती है।
- संदर्भ और विस्तार: इस विलंब के कारण सामाजिक तनाव और समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, इंटरनेट का तीव्र विकास और उससे जुड़े नैतिक और कानूनी ढांचे का विलंबित विकास।
- अincorrect विकल्प: ऑगस्ट कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है और उन्होंने प्रत्यक्षवाद (positivism) का सिद्धांत दिया; अल्बर्ट आइंस्टीन एक भौतिक विज्ञानी थे; मैक्स वेबर ने नौकरशाही और सत्ता के प्रकारों पर कार्य किया।
प्रश्न 18: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्र का एक माइक्रो-लेवल (micro-level) दृष्टिकोण है?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- दोनों (a) और (b)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद एक माइक्रो-लेवल (सूक्ष्म-स्तरीय) दृष्टिकोण है जो व्यक्तिगत बातचीत, अर्थों के निर्माण और प्रतीकों के माध्यम से मानव व्यवहार को समझने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह छोटे समूहों और व्यक्तियों के बीच की अंतःक्रियाओं पर केंद्रित होता है।
- संदर्भ और विस्तार: इसके विपरीत, संरचनात्मक प्रकार्यवाद और संघर्ष सिद्धांत मैक्रो-लेवल (स्थूल-स्तरीय) दृष्टिकोण हैं जो पूरे समाज, उसकी संरचनाओं और बड़ी प्रणालियों का विश्लेषण करते हैं।
- अincorrect विकल्प: संरचनात्मक प्रकार्यवाद और संघर्ष सिद्धांत दोनों ही समाज को एक बड़ी इकाई के रूप में देखते हैं।
प्रश्न 19: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) से क्या तात्पर्य है?
- एक ही सामाजिक स्थिति में बने रहना।
- समाज में किसी व्यक्ति या समूह की स्थिति में ऊर्ध्वाधर (ऊपर या नीचे) या क्षैतिज (समान स्तर पर) परिवर्तन।
- केवल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा।
- सामाजिक नियमों का उल्लंघन।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सामाजिक गतिशीलता किसी व्यक्ति या समूह की सामाजिक स्तरीकरण के भीतर उसकी स्थिति में होने वाले परिवर्तन को दर्शाती है। यह ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (जैसे निम्न वर्ग से उच्च वर्ग में जाना, या इसके विपरीत) या क्षैतिज गतिशीलता (जैसे एक ही सामाजिक स्तर पर एक नौकरी से दूसरी में जाना) हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक गतिशीलता किसी समाज की खुलापन (openness) और गतिशीलता (fluidity) का सूचक होती है।
- अincorrect विकल्प: (a) यह गतिशीलता के विपरीत है; (c) व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा गतिशीलता का एक कारक हो सकती है, लेकिन यह स्वयं गतिशीलता नहीं है; (d) सामाजिक नियमों का उल्लंघन विद्रोह या अपराध हो सकता है, न कि सीधे तौर पर सामाजिक गतिशीलता।
प्रश्न 20: भारतीय समाज में ‘आदिवासी समुदाय’ (Tribal Communities) की मुख्य विशेषता क्या है?
- उच्च स्तर का शहरीकरण
- राष्ट्रीय मुख्यधारा के साथ पूर्ण एकीकरण
- अनूठी संस्कृति, भाषा, विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र और प्रायः मुख्यधारा के समाज से अलगाव।
- जाति व्यवस्था के भीतर उच्च स्थान।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: आदिवासी समुदायों को आमतौर पर उनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा, सामाजिक संरचना, प्रायः एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र और मुख्यधारा के भारतीय समाज से कुछ हद तक अलगाव (isolation) या भिन्नता से पहचाना जाता है। उनके रीति-रिवाज, विश्वास और जीवन शैली अक्सर अनूठी होती है।
- संदर्भ और विस्तार: भारत में विभिन्न आदिवासी समूह पाए जाते हैं, और उनके एकीकरण और पहचान से संबंधित मुद्दे समाजशास्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण अध्ययन क्षेत्र रहे हैं।
- अincorrect विकल्प: (a) और (b) आमतौर पर आदिवासियों के लिए सत्य नहीं है; (d) आदिवासी समुदाय जाति व्यवस्था के बाहर या उससे भिन्न माने जाते हैं।
प्रश्न 21: ‘प्रत्याशा समूह’ (Reference Group) की अवधारणा का क्या अर्थ है?
- वह समूह जिसका सदस्य कोई व्यक्ति होता है।
- वह समूह जिसके सदस्यों को समाज द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- वह समूह जिसके प्रति व्यक्ति अपने व्यवहार, विश्वासों और दृष्टिकोणों का मूल्यांकन करता है, भले ही वह उसका सदस्य न हो।
- वह समूह जो केवल प्रतीकों का उपयोग करता है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘प्रत्याशा समूह’ वह समूह होता है जिसे व्यक्ति अपने व्यवहार, मूल्यों, विश्वासों और जीवन शैली के लिए एक मानक के रूप में उपयोग करता है। यह वह समूह हो सकता है जिसका वह सदस्य बनना चाहता है या जिसका वह सम्मान करता है, भले ही वह वर्तमान में उसका हिस्सा न हो।
- संदर्भ और विस्तार: रॉबर्ट किग्सले मर्टन ने इस अवधारणा को विकसित किया। उदाहरण के लिए, एक निम्न-मध्यम वर्ग का व्यक्ति जो उच्च-मध्यम वर्ग के जीवन स्तर की आकांक्षा रखता है, उच्च-मध्यम वर्ग को अपना प्रत्याशा समूह मान सकता है।
- अincorrect विकल्प: (a) यह ‘सदस्यता समूह’ (membership group) कहलाता है; (b) यह एक अति-सरलीकृत और अस्पष्ट परिभाषा है; (d) समूह प्रतीकों का उपयोग करते हैं, लेकिन यह प्रत्याशा समूह की मुख्य विशेषता नहीं है।
प्रश्न 22: ‘आर्थिक मनुष्य’ (Economic Man) की अवधारणा, जो मानता है कि मनुष्य तर्कसंगत रूप से अपने स्वार्थ और लाभ को अधिकतम करने के लिए कार्य करता है, किस सिद्धांत से जुड़ी है?
- आदान-प्रदान सिद्धांत (Exchange Theory)
- नौकरशाही सिद्धांत (Bureaucracy Theory)
- प्रकार्यवाद (Functionalism)
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘आर्थिक मनुष्य’ की अवधारणा, जिसे कभी-कभी ‘तर्कसंगत पसंद सिद्धांत’ (Rational Choice Theory) के हिस्से के रूप में भी देखा जाता है, आदान-प्रदान सिद्धांत (Exchange Theory) का एक केंद्रीय आधार है। यह मानता है कि लोग सामाजिक अंतःक्रियाओं में लाभ और लागत का आकलन करते हैं और ऐसे कार्य करते हैं जिससे उन्हें अधिकतम लाभ हो।
- संदर्भ और विस्तार: जॉर्ज लेवेंथल (George Homans) और पीटर ब्लेऊ (Peter Blau) जैसे समाजशास्त्रियों ने आदान-प्रदान सिद्धांत को विकसित किया।
- अincorrect विकल्प: नौकरशाही का सिद्धांत (वेबर) नियमों और पदानुक्रम पर आधारित है; प्रकार्यवाद समाज के संतुलन पर केंद्रित है; संघर्ष सिद्धांत शक्ति और असमानता पर केंद्रित है, न कि विशुद्ध रूप से तर्कसंगत आर्थिक स्वार्थ पर।
प्रश्न 23: निम्नलिखित में से कौन सा ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) का एक उदाहरण है?
- किसी व्यक्ति की शिक्षा या कौशल।
- किसी व्यक्ति के पास मौजूद धन या संपत्ति।
- किसी व्यक्ति के मजबूत पारिवारिक संबंध और सामुदायिक नेटवर्क।
- किसी व्यक्ति की अच्छी सेहत।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सामाजिक पूंजी से तात्पर्य उन नेटवर्क, संबंधों, भरोसे और आपसी सहयोग से है जो व्यक्तियों या समूहों को लाभ पहुंचाते हैं। मजबूत पारिवारिक संबंध और एक सक्रिय सामुदायिक नेटवर्क सामाजिक पूंजी के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ये नेटवर्क जानकारी, समर्थन और अवसरों तक पहुँच प्रदान कर सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: बॉर्डियू, कोलमन और पाटन जैसे विचारकों ने इस अवधारणा का विस्तार से विश्लेषण किया है।
- अincorrect विकल्प: (a) यह ‘सांस्कृतिक पूंजी’ (Cultural Capital) या ‘मानव पूंजी’ (Human Capital) है; (b) यह ‘आर्थिक पूंजी’ (Economic Capital) है; (d) यह ‘मानव पूंजी’ (Human Capital) या स्वास्थ्य का हिस्सा है।
प्रश्न 24: ‘आधुनिकता’ (Modernity) की समाजशास्त्रीय अवधारणा में निम्नलिखित में से कौन सा एक प्रमुख तत्व है?
- सामूहिकता और परंपरा का महत्व।
- धार्मिक विश्वासों का प्रभुत्व।
- तर्कसंगतता, व्यक्तिवाद और औद्योगीकरण।
- स्थिर सामाजिक संरचनाएँ और पदानुक्रम।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: आधुनिकता को अक्सर तर्कसंगतता (rationality), व्यक्तिवाद (individualism), धर्मनिरपेक्षीकरण (secularization), औद्योगीकरण (industrialization), शहरीकरण (urbanization) और लोकतांत्रिक संस्थाओं के विकास से जोड़ा जाता है। यह पारंपरिक समाजों के विपरीत है।
- संदर्भ और विस्तार: यह औद्योगिक क्रांति और प्रबोधन (Enlightenment) काल के बाद हुए बड़े सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों को समाहित करता है।
- अincorrect विकल्प: (a) यह पारंपरिक समाज की विशेषता है; (b) आधुनिकता में अक्सर धर्मनिरपेक्षीकरण देखा जाता है; (d) आधुनिक समाजों में संरचनाएँ अक्सर अधिक परिवर्तनशील और कम स्थिर होती हैं।
प्रश्न 25: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) के संबंध में, रॉबर्ट पाटन (Robert Putnam) ने अपनी पुस्तक “Bowling Alone” में किस बात पर जोर दिया?
- अमेरिकी समाज में नागरिक जुड़ाव और सामुदायिक भागीदारी में वृद्धि।
- अमेरिकी समाज में नागरिक जुड़ाव और सामुदायिक भागीदारी में गिरावट।
- डिजिटल मीडिया के माध्यम से नए सामाजिक नेटवर्क का उदय।
- पारिवारिक संरचनाओं का सुदृढ़ीकरण।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: रॉबर्ट पाटन ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक “Bowling Alone: The Collapse and Revival of American Community” (2000) में तर्क दिया कि 20वीं सदी के उत्तरार्ध में अमेरिकी समाज में नागरिक जुड़ाव, स्वयंसेवी कार्य और सामुदायिक भागीदारी में एक महत्वपूर्ण गिरावट आई है, जिसे उन्होंने ‘सामाजिक पूंजी’ के क्षरण के रूप में देखा।
- संदर्भ और विस्तार: उन्होंने पारंपरिक सामुदायिक गतिविधियों, जैसे क्लबों और संघों में सदस्यता में कमी को उजागर किया, भले ही व्यक्तिगत रूप से गेंदबाजी करने वालों की संख्या बढ़ी हो।
- अincorrect विकल्प: (a), (c), और (d) पाटन के केंद्रीय तर्क के विपरीत हैं।
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