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लोकतंत्र दांव पर? चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग, लोकसभा में ‘वोट चोर’ के नारे और वोटर वेरिफिकेशन पर बवाल!

लोकतंत्र दांव पर? चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग, लोकसभा में ‘वोट चोर’ के नारे और वोटर वेरिफिकेशन पर बवाल!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**

हाल ही में, भारतीय राजनीति में चुनाव आयुक्तों की निष्पक्षता और कार्यप्रणाली को लेकर गरमागरम बहस छिड़ गई है। लोकसभा में विपक्ष द्वारा “वोट चोर” और “गद्दी छोड़” जैसे नारे लगाए गए, जो सीधे तौर पर चुनाव प्रक्रिया और उसमें शामिल संस्थानों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं। इस हंगामे के बीच, बिहार में वोटर वेरिफिकेशन (मतदाता सत्यापन) प्रक्रिया को लेकर भी विवाद सामने आया, जिसने स्थिति को और जटिल बना दिया। इन घटनाओं ने एक बार फिर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के स्तंभ, चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) की भूमिका, उसकी स्वतंत्रता और जवाबदेही पर गहन चिंतन की आवश्यकता को रेखांकित किया है। विपक्ष ने तो यहां तक संकेत दे दिया है कि वे एक चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग (Impeachment) लाने पर भी विचार कर सकते हैं। यह पूरा घटनाक्रम UPSC उम्मीदवारों के लिए भारतीय शासन प्रणाली, चुनावी सुधारों और संवैधानिक संस्थानों के महत्व को समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है।

चुनाव आयुक्त: भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ (Election Commissioners: The Backbone of Indian Democracy)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324, चुनाव आयोग की स्थापना और उसके कार्यों का प्रावधान करता है। यह एक संवैधानिक निकाय है जिसे निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से चुनावों का संचालन करने का अधिकार है। चुनाव आयोग का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करना है, ताकि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे।

चुनाव आयोग की संरचना (Structure of the Election Commission):

  • मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner – CEC): इनके पास अन्य चुनाव आयुक्तों से अधिक शक्तियां होती हैं।
  • चुनाव आयुक्त (Election Commissioners – ECs): इनकी सहायता के लिए दो अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं।

इन सभी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। आयोग के निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाते हैं, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि इन नियुक्तियों और निर्णयों की प्रक्रिया निष्पक्ष बनी रहे।

विपक्ष का आरोप: ‘वोट चोर’ और ‘गद्दी छोड़’ के नारे क्यों? (Opposition’s Allegations: Why the Slogans of ‘Vote Chor’ and ‘Gaddi Chhod’?)

लोकसभा में लगे ये नारे केवल तात्कालिक विरोध का प्रतीक नहीं थे, बल्कि चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी के प्रति गहरी चिंता को व्यक्त करते थे। विपक्ष के आरोप कई मुद्दों पर केंद्रित थे:

  • मतदाता सूची में विसंगतियां: अक्सर विपक्षी दलों द्वारा यह आरोप लगाया जाता है कि मतदाता सूचियों में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम हटा दिए जाते हैं या गलत तरीके से दर्ज किए जाते हैं। यह प्रक्रिया विशेष रूप से तब विवादित हो जाती है जब किसी विशेष क्षेत्र या वर्ग के मतदाताओं को निशाना बनाने का संदेह होता है।
  • चुनावी नियमों का उल्लंघन: नेताओं द्वारा आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) के उल्लंघन के मामलों में चुनाव आयोग की कार्रवाई की गति और प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाए जाते हैं। विपक्ष का मानना ​​है कि सत्ताधारी दल के नेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की जाती, जिससे चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता प्रभावित होती है।
  • तकनीकी खामियां और पारदर्शिता: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से लेकर मतदाता सत्यापन (Voter Verification) तक, हर चरण पर तकनीकी खामियों या पारदर्शिता की कमी को लेकर चिंताएं उठाई जाती रही हैं।

‘वोट चोर’ का नारा सीधे तौर पर चुनावी धोखाधड़ी या वोटों की हेराफेरी के आरोपों की ओर इशारा करता है, जबकि ‘गद्दी छोड़’ का नारा सत्ताधारी दल की जवाबदेही तय करने और उन्हें सत्ता से हटाने की मांग का एक जोशीला अभिव्यक्तिकरण है, खासकर तब जब चुनाव प्रक्रिया पर संदेह हो।

बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर हंगामा: एक केस स्टडी (Hoo-ha over Bihar Voter Verification: A Case Study)

बिहार में मतदाता सत्यापन (Voter Verification) की प्रक्रिया हाल के विवादों का एक प्रमुख केंद्र रही है। इस प्रक्रिया में, बीएलओ (Booth Level Officers) द्वारा घर-घर जाकर मतदाताओं के विवरण की जांच की जाती है। इस प्रक्रिया को लेकर मुख्य आपत्तियां निम्नलिखित थीं:

क्या था मामला? (What was the Issue?):

  1. ‘डुप्लीकेट’ या ‘लिविंग’ न होने के आधार पर नाम हटाना: कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, बीएलओ द्वारा घर का पता बदलने या किसी व्यक्ति के ‘लिविंग’ (जीवित) न होने जैसी जानकारी के आधार पर मतदाता सूची से नाम काटे जा रहे थे। विपक्ष का आरोप था कि यह प्रक्रिया राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित थी और इसके माध्यम से विशेष समुदायों या क्षेत्रों के मतदाताओं को लक्षित किया जा रहा था।
  2. राजनीतिकरण का आरोप: विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया का इस्तेमाल सत्ताधारी दल द्वारा अपने विरोधियों के वोट बैंक को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है। उनका कहना था कि बीएलओ राजनीतिक दबाव में काम कर रहे हैं।
  3. पारदर्शिता की कमी: मतदाता सत्यापन की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को लेकर भी सवाल उठे। लोगों को यह स्पष्ट नहीं था कि उनके नाम क्यों काटे जा रहे हैं और इसके खिलाफ अपील करने की प्रक्रिया कितनी सुगम है।

इस विवाद का महत्व (Significance of this Controversy):

यह मामला भारत की सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में से एक – मतदाता सूची की शुद्धता – के महत्व को उजागर करता है। यदि मतदाता सूची में ही धांधली होती है, तो पूरी चुनाव प्रक्रिया की अखंडता खतरे में पड़ जाती है।

“एक निष्पक्ष चुनाव का आधार एक त्रुटिहीन और समावेशी मतदाता सूची है। यदि सूची में ही समस्याएं हैं, तो परिणाम हमेशा संदेह के घेरे में रहेंगे।”

यह घटना इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि कैसे जमीनी स्तर पर काम करने वाले अधिकारियों (जैसे बीएलओ) की भूमिका को राजनीतिक चश्मे से देखा जा सकता है, और कैसे यह चुनावी संस्थानों की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है।

महाभियोग की प्रक्रिया: एक संवैधानिक प्रावधान (The Process of Impeachment: A Constitutional Provision)

विपक्ष द्वारा चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग लाने का संकेत, इस प्रक्रिया को समझने की आवश्यकता को बढ़ाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए महाभियोग की प्रक्रिया निर्धारित है। हालांकि, चुनाव आयुक्तों को हटाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 324(5) में उल्लिखित है।

चुनाव आयुक्तों को हटाने का आधार: (Grounds for Removal of Election Commissioners):

संविधान के अनुच्छेद 324(5) के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति द्वारा उसी प्रक्रिया और उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा जिन पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है। ये आधार हैं:

  • सिद्ध कदाचार (Proven Misbehaviour)
  • अक्षमता (Incapacity)

हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चुनाव आयुक्तों (मुख्य चुनाव आयुक्त को छोड़कर) को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।

महाभियोग की प्रक्रिया (The Impeachment Process):

  1. आरोप का प्रस्ताव: संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में आरोप का एक प्रस्ताव पेश किया जाता है।
  2. जांच समिति का गठन: यदि प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है, तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति द्वारा एक तीन-सदस्यीय जांच समिति का गठन किया जाता है। इस समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश (या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश), उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित jurist (विधि विशेषज्ञ) शामिल होते हैं।
  3. जांच और रिपोर्ट: समिति आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट सदन को सौंपती है।
  4. सदन में प्रस्ताव: यदि समिति यह पाती है कि कदाचार या अक्षमता सिद्ध हुई है, तो प्रस्ताव को उसी सदन में फिर से लाया जाता है जहां यह शुरू हुआ था।
  5. विशेष बहुमत से पारित: प्रस्ताव को दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत और उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत) से पारित होना चाहिए।
  6. राष्ट्रपति का आदेश: दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद, राष्ट्रपति उस व्यक्ति को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं।

क्या वर्तमान विवाद महाभियोग के योग्य है? (Is the Current Controversy Worthy of Impeachment?):

यह सवाल बहुत जटिल है। ‘सिद्ध कदाचार’ या ‘अक्षमता’ जैसे आरोपों को स्थापित करना एक उच्च कानूनी और तथ्यात्मक मानक है। केवल राजनीतिक असहमति या प्रक्रियात्मक चिंताओं के आधार पर महाभियोग लाना मुश्किल होता है। विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दे (जैसे वोटर वेरिफिकेशन में पक्षपात का आरोप) यदि तथ्यात्मक रूप से सिद्ध होते हैं और चुनाव आयोग के पद की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं, तो वे महाभियोग की प्रक्रिया को गति दे सकते हैं। हालांकि, इस स्तर पर, यह अधिक संभावना है कि यह विपक्ष द्वारा सरकार और चुनाव आयोग पर दबाव बनाने का एक प्रयास है।

चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और जवाबदेही: एक नाजुक संतुलन (Independence and Accountability of the Election Commission: A Delicate Balance)

चुनाव आयोग की स्वतंत्रता भारतीय लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए, संविधान में कई प्रावधान किए गए हैं:

  • निश्चित कार्यकाल: चुनाव आयुक्तों का एक निश्चित कार्यकाल होता है, और उन्हें आसानी से हटाया नहीं जा सकता।
  • वेतन और भत्ते: उनके वेतन और भत्ते संसद द्वारा तय किए जाते हैं और वे भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं, जिससे वे राजनीतिक हस्तक्षेप से सुरक्षित रहते हैं।
  • स्वतंत्र नियुक्ति प्रक्रिया: यद्यपि वर्तमान में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की जाती है, लेकिन भविष्य में कॉलेजियम प्रणाली जैसे सुधारों पर भी विचार किया जा रहा है ताकि नियुक्तियों में अधिक पारदर्शिता और निष्पक्षता आ सके। (हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक समिति की सिफारिश की है जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल हों। हालांकि, सरकार ने इसे कानून बनाने के लिए एक नया बिल पेश किया है।)

वहीं दूसरी ओर, किसी भी संस्था को पूर्ण रूप से अनियंत्रित नहीं छोड़ा जा सकता। चुनाव आयोग की जवाबदेही भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। इस जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए:

  • संवैधानिक ढांचा: संविधान ने महाभियोग और हटाने की प्रक्रियाएं प्रदान की हैं।
  • संसदीय निगरानी: संसद प्रश्नकाल, चर्चाओं और समितियों के माध्यम से आयोग के कार्यों की निगरानी कर सकती है।
  • न्यायिक समीक्षा: आयोग के निर्णयों को अदालतों में चुनौती दी जा सकती है।
  • सार्वजनिक जांच: मीडिया और नागरिक समाज आयोग के कार्यों पर नजर रखते हैं और चिंताओं को व्यक्त करते हैं।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and the Way Forward)

वर्तमान विवाद कई अंतर्निहित चुनौतियों को उजागर करते हैं जिनका सामना भारतीय चुनाव प्रणाली कर रही है:

प्रमुख चुनौतियाँ (Key Challenges):

  • नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया को अधिक स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने की आवश्यकता है। हालिया सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन कानून का रूप लेना बाकी है।
  • तकनीकी प्रगति और सुरक्षा: EVMs की सुरक्षा, मतदाता सत्यापन की सटीकता और डेटा गोपनीयता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
  • भ्रामक सूचना (Misinformation) और दुष्प्रचार (Disinformation): सोशल मीडिया के युग में, चुनावों के दौरान फैलाई जाने वाली भ्रामक सूचनाओं से निपटना एक बड़ी चुनौती है।
  • बीएलओ प्रणाली का राजनीतिकरण: बीएलओ जैसे जमीनी कार्यकर्ताओं को राजनीतिक दबाव से मुक्त रखना आवश्यक है।
  • आदर्श आचार संहिता का प्रवर्तन: सत्ताधारी दल द्वारा आचार संहिता के उल्लंघन पर आयोग की कार्रवाई की गति और प्रभावशीलता में सुधार की गुंजाइश है।

भविष्य की राह (Way Forward):

UPSC उम्मीदवारों के लिए इन चुनौतियों को समझना और संभावित समाधानों पर विचार करना महत्वपूर्ण है:

  1. नियुक्ति कॉलेजियम: जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया है, एक स्वतंत्र कॉलेजियम (जिसमें न्यायपालिका और विपक्ष शामिल हों) चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए अधिक उपयुक्त हो सकता है।
  2. प्रौद्योगिकी का विवेकपूर्ण उपयोग: मतदाता सूचियों को अद्यतन करने और सत्यापित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसमें मानवीय निरीक्षण और पारदर्शिता आवश्यक है।
  3. बीएलओ का प्रशिक्षण और मानदेय: बीएलओ को निष्पक्ष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और उनका मानदेय बढ़ाया जाना चाहिए ताकि वे दबाव में काम न करें।
  4. आचार संहिता के उल्लंघन पर त्वरित कार्रवाई: आयोग को आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में अधिक तेजी से और निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए, चाहे वह किसी भी दल का नेता हो।
  5. नागरिक जुड़ाव और जागरूकता: नागरिकों को चुनावी प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने और चिंताओं को उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  6. चुनाव आयोग की भूमिका को स्पष्ट करना: आयोग को अपनी शक्तियों और सीमाओं के बारे में स्पष्टता बनाए रखनी चाहिए और राजनीतिक बहसों से ऊपर उठकर कार्य करना चाहिए।

चुनाव आयोग भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण संरक्षक है। इसके कामकाज पर उठने वाले सवाल, भले ही विवादास्पद हों, अंततः हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने के अवसर प्रदान करते हैं। इन मुद्दों की गहराई से समझ UPSC परीक्षा के सामाजिक, राजनीतिक और शासन से संबंधित वर्गों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग की स्थापना और कार्यों का प्रावधान करता है?
(a) अनुच्छेद 315
(b) अनुच्छेद 324
(c) अनुच्छेद 280
(d) अनुच्छेद 356
उत्तर: (b) अनुच्छेद 324
व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारतीय संविधान में चुनाव आयोग की स्थापना, उसके कार्यों, शक्तियों और संरचना का प्रावधान करता है।

2. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
I. भारत का मुख्य चुनाव आयुक्त राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
II. चुनाव आयुक्तों को केवल सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है।
III. मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, होता है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
(a) केवल I
(b) I और II
(c) I और III
(d) I, II और III
उत्तर: (c) I और III
व्याख्या: कथन I सत्य है। कथन II आंशिक रूप से सत्य है; मुख्य चुनाव आयुक्त को उसी आधार पर हटाया जाता है जैसे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को, लेकिन चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर हटाया जा सकता है। कथन III सत्य है, जैसा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है, जो भी पहले हो।

3. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के संबंध में हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन सी समिति भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश करेगी?
(a) प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा अध्यक्ष।
(b) प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश।
(c) राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता।
(d) भारत के मुख्य न्यायाधीश, भारत के अटॉर्नी जनरल और लोकसभा अध्यक्ष।
उत्तर: (b) प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश।
व्याख्या: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय दिया है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक कॉलेजियम द्वारा की जाएगी जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे।

4. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324(5) के अनुसार, निम्नलिखित में से किसे राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है?
(a) केवल मुख्य चुनाव आयुक्त
(b) मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त
(c) केवल चुनाव आयुक्त (मुख्य चुनाव आयुक्त को छोड़कर)
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (a) केवल मुख्य चुनाव आयुक्त
व्याख्या: अनुच्छेद 324(5) के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति उसी प्रक्रिया और आधार पर हटाएंगे जिन पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाया जाता है। चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर हटाया जा सकता है।

5. ‘मतदाता सत्यापन’ (Voter Verification) प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) नए मतदाताओं का पंजीकरण करना।
(b) मतदाता सूची में डुप्लीकेट या अयोग्य नामों को हटाना और शुद्धता सुनिश्चित करना।
(c) चुनावी धोखाधड़ी को रोकना।
(d) मतदाताओं को उनके मतदान केंद्र की जानकारी देना।
उत्तर: (b) मतदाता सूची में डुप्लीकेट या अयोग्य नामों को हटाना और शुद्धता सुनिश्चित करना।
व्याख्या: मतदाता सत्यापन का प्राथमिक उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन, शुद्ध और त्रुटि मुक्त बनाना है, जिसमें डुप्लीकेट या मृत व्यक्तियों के नाम हटाना शामिल है।

6. लोकसभा में ‘वोट चोर’ नारे का तात्पर्य आमतौर पर निम्नलिखित में से किस चिंता से है?
(a) सत्ताधारी दल का बहुमत।
(b) चुनावी प्रक्रिया में धांधली या हेराफेरी की आशंका।
(c) विपक्ष की कमजोर स्थिति।
(d) चुनाव आयोग का पक्षपाती रवैया।
उत्तर: (b) चुनावी प्रक्रिया में धांधली या हेराफेरी की आशंका।
व्याख्या: ‘वोट चोर’ का नारा सीधे तौर पर चुनावी प्रक्रिया में हेराफेरी, वोटों की चोरी या धांधली के आरोपों को दर्शाता है।

7. निम्नलिखित में से कौन भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण संवैधानिक निकाय है?
(a) नीति आयोग
(b) केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC)
(c) चुनाव आयोग (ECI)
(d) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
उत्तर: (c) चुनाव आयोग (ECI)
व्याख्या: चुनाव आयोग (ECI) भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का संचालन करने के लिए जिम्मेदार संवैधानिक निकाय है।

8. चुनाव आयुक्तों को निम्नलिखित में से किस आधार पर हटाया जा सकता है?
(a) राजनीतिक असहमति
(b) सिद्ध कदाचार या अक्षमता
(c) खराब प्रदर्शन
(d) बहुमत के फैसले का विरोध
उत्तर: (b) सिद्ध कदाचार या अक्षमता
व्याख्या: मुख्य चुनाव आयुक्त को सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है, जो एक लंबी न्यायिक और संसदीय प्रक्रिया है।

9. यदि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों को कानून में बदला जाता है, तो निम्नलिखित में से कौन नियुक्ति समिति का हिस्सा नहीं होगा?
(a) प्रधानमंत्री
(b) लोकसभा में विपक्ष के नेता
(c) भारत के मुख्य न्यायाधीश
(d) भारत के राष्ट्रपति
उत्तर: (d) भारत के राष्ट्रपति
व्याख्या: नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे, लेकिन राष्ट्रपति, जो नियुक्ति की औपचारिक घोषणा करते हैं, समिति का हिस्सा नहीं होंगे।

10. बिहार वोटर वेरिफिकेशन विवाद में विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों में से कौन सा सबसे प्रमुख था?
(a) बीएलओ की नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितता।
(b) राजनीतिक उद्देश्यों के लिए मतदाता सूची से नाम हटाना।
(c) मतदाता सत्यापन के लिए शुल्क लेना।
(d) डेटा की चोरी के लिए नई तकनीक का उपयोग।
उत्तर: (b) राजनीतिक उद्देश्यों के लिए मतदाता सूची से नाम हटाना।
व्याख्या: बिहार वोटर वेरिफिकेशन विवाद में मुख्य चिंता यह थी कि राजनीतिक दुर्भावना या पक्षपात के कारण मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जा रहे थे।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव आयोग की भूमिका और स्वतंत्रता के महत्व पर प्रकाश डालें। हालिया विवादों के आलोक में, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया और आयोग की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संवैधानिक और संस्थागत सुधारों का विश्लेषण करें।
2. “वोट चोर” और “गद्दी छोड़” जैसे नारे चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास को दर्शाते हैं, जो अक्सर मतदाता सूचियों की शुद्धता, आदर्श आचार संहिता के प्रवर्तन और चुनावी मशीनरी की निष्पक्षता से संबंधित चिंताओं से उपजे होते हैं। इस कथन के आलोक में, हाल के बिहार वोटर वेरिफिकेशन विवाद और चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग की चर्चा का विश्लेषण करें, और बताएं कि यह भारतीय चुनावी प्रणाली की अखंडता को कैसे प्रभावित करता है।
3. चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण निकाय माना जाता है। हालांकि, हालिया घटनाएं इसके कामकाज और निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न उठा रही हैं। चर्चा करें कि किस प्रकार के आरोप चुनाव आयुक्तों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया को प्रेरित कर सकते हैं, और बताएं कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं में विश्वास बनाए रखने के लिए किन सुधारों की आवश्यकता है।
4. लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, खासकर चुनावी प्रक्रियाओं की निगरानी और सुधारों की वकालत करने में। हाल के राजनीतिक हंगामों का विश्लेषण करते हुए, बताएं कि कैसे विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दे (जैसे वोटर वेरिफिकेशन विवाद, ‘वोट चोर’ के नारे) भारत की चुनावी मशीनरी की पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करने में योगदान कर सकते हैं, भले ही वे विवादास्पद हों।

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