उत्तराकाशी आपदा: 300 की फंसे होने की आशंका, लापता व्यक्तियों की गणना में भारी अनिश्चितता
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हुई विनाशकारी आपदा ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। धराली क्षेत्र में भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाओं ने तबाही मचाई है, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों के फंसे होने की आशंका जताई जा रही है। वहीं, लापता व्यक्तियों की संख्या को लेकर अधिकारियों और स्थानीय लोगों के बीच गहरा असमंजस बना हुआ है। यह घटना न केवल मानवीय त्रासदी का प्रतीक है, बल्कि आपदा प्रबंधन, भौगोलिक संवेदनशीलता और सरकारी तैयारियों की पोल भी खोलती है। UPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सीधे तौर पर भूगोल, पर्यावरण, आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक न्याय जैसे जीएस पेपर के मुख्य अंशों से जुड़ा हुआ है।
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यह हिमालयी क्षेत्र भूगर्भीय रूप से अत्यंत संवेदनशील भी है। यहाँ बार-बार होने वाली आपदाएँ इस संवेदनशीलता का परिणाम हैं। उत्तरकाशी में हुई यह घटना इसी क्रम की एक और कड़ी है, जिसने हमें प्रकृति की शक्ति और मानव निर्मित योजनाओं की सीमाओं को फिर से याद दिलाया है।
आपदा का विस्तृत अवलोकन: क्या हुआ और कहाँ?
यह आपदा उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली नामक क्षेत्र में घटित हुई। धराली, अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील है। हालिया घटना में, भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन और संभवतः बादल फटने जैसी घटनाओं ने इलाके में तबाही मचाई। इस घटना के कारण:
- बड़े पैमाने पर भूस्खलन: पहाड़ी ढलानों से भारी मात्रा में मलबा और चट्टानें नीचे बह आईं।
- बुनियादी ढांचे का विनाश: सड़कें, पुल और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए, जिससे बचाव और राहत कार्यों में बाधा उत्पन्न हुई।
- लोगों का फंसना: भूस्खलन के कारण कई लोग मलबे में दब गए या अलग-थलग पड़ गए।
- लापता व्यक्तियों की संख्या में अनिश्चितता: प्रारंभिक रिपोर्टों और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के बीच लापता लोगों की संख्या को लेकर भारी अंतर है। अधिकारियों का अनुमान 300 लोगों के आसपास फंसे होने का है, जबकि स्थानीय लोगों का मानना है कि यह संख्या कहीं अधिक हो सकती है।
यह अनिश्चितता कई कारणों से उत्पन्न हुई है:
- संचार का अभाव: प्रभावित क्षेत्र में संचार व्यवस्था ठप होने से सटीक जानकारी जुटाना मुश्किल हो गया है।
- अव्यवस्था: आपदा के तुरंत बाद की अफरातफरी और अनियोजित प्रतिक्रिया ने भी स्थिति को जटिल बना दिया।
- स्थानीय जानकारी का महत्व: स्थानीय लोग उन अनौपचारिक बस्तियों और यात्रा करने वाले समूहों के बारे में अधिक जानते हैं जिनका सरकारी रिकॉर्ड में उल्लेख नहीं हो सकता है।
एक उपमा: इसे ऐसे समझें जैसे किसी बड़े शहर में अचानक बिजली चली जाए। शुरुआत में, लोगों को यह नहीं पता होता कि कितने लोग लिफ्ट में फंसे हैं, कितने लोग अंधेरे में हैं, और कितने लोग बस घर तक पहुँचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हर कोई अपने स्तर पर जानकारी दे रहा है, लेकिन कोई एक केंद्रीय, सटीक आंकड़ा नहीं है।
भूगोल और भूविज्ञान: खतरे की जड़ें
उत्तराखंड हिमालय का हिस्सा है, जो विश्व की सबसे युवा और सबसे सक्रिय पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। इसकी भूगर्भीय अस्थिरता कई कारकों का परिणाम है:
- टेक्टोनिक प्लेटों की टक्कर: भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकरा रही है, जिससे लगातार भूकंपीय गतिविधि होती रहती है। यह दरारें और अस्थिरता पैदा करता है।
- तीव्र ढलान और भारी वर्षा: हिमालयी क्षेत्र की तीव्र ढलानें भूस्खलन के लिए अत्यंत अनुकूल हैं, और मानसून के दौरान भारी वर्षा इसे और बढ़ा देती है।
- मानव निर्मित कारक: अनियोजित विकास, सड़कों का निर्माण, और वनोन्मूलन जैसी गतिविधियाँ भी भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाती हैं।
धराली जैसे क्षेत्र, जो अक्सर पर्वतीय नदियों के किनारे या तीव्र ढलानों पर बसे होते हैं, ऐसे खतरों से अधिक प्रभावित होते हैं। यहाँ की मिट्टी और चट्टानें, विशेष रूप से यदि वे विकृत या अपक्षयित (weathered) हों, तो पानी के साथ मिलकर कमजोर पड़ जाती हैं, जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है।
“हिमालयी क्षेत्र एक ‘गतिशील’ भूवैज्ञानिक क्षेत्र है, जहाँ लगातार विकास और क्षरण की प्रक्रियाएँ चलती रहती हैं। मानवीय हस्तक्षेप अक्सर इन प्राकृतिक प्रक्रियाओं को अप्रत्याशित और विनाशकारी तरीकों से बाधित कर सकता है।”
आपदा प्रबंधन: चुनौतियाँ और सीख
इस तरह की आपदाओं से निपटने में भारत का आपदा प्रबंधन तंत्र लगातार विकसित हो रहा है, लेकिन इसमें अभी भी कई चुनौतियाँ हैं:
चुनौतियाँ:
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: हालाँकि कुछ हद तक सुधार हुआ है, फिर भी भूस्खलन और बादल फटने जैसी विशिष्ट घटनाओं के लिए प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता है, खासकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में।
- समन्वय की कमी: विभिन्न सरकारी एजेंसियों (NDRF, SDRF, स्थानीय प्रशासन, सेना) के बीच प्रभावी समन्वय हमेशा एक चुनौती रही है।
- दुर्गम क्षेत्र: पहाड़ी इलाकों में बचाव अभियान अत्यंत कठिन होते हैं, खासकर जब सड़कें अवरुद्ध हो जाती हैं। उपकरण और कर्मियों को पहुँचाना एक बड़ी बाधा है।
- डेटा की सटीकता: लापता व्यक्तियों की सही संख्या का पता लगाना और फंसे हुए लोगों के ठिकाने का अनुमान लगाना अक्सर अनिश्चितता के कारण कठिन होता है।
- स्थानीय समुदायों की भेद्यता: ऐसे समुदाय अक्सर विकास और सुरक्षा योजनाओं से अछूते रह जाते हैं।
सीख:
- जोखिम मूल्यांकन: ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों और जोखिम-आधारित विकास योजना को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: ड्रोन, उपग्रह इमेजरी और संचार उपकरणों का प्रभावी उपयोग बचाव और निगरानी कार्यों को बढ़ा सकता है।
- सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को आपदा तैयारी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में शामिल करना महत्वपूर्ण है।
- नीति निर्माण: स्थायी विकास और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने वाली मजबूत नीतियों की आवश्यकता है।
UPSC के लिए प्रासंगिकता: विभिन्न जीएस पेपरों का संगम
यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:
जीएस पेपर I: भूगोल
- भौतिक भूगोल: हिमालय का भूविज्ञान, भूस्खलन, बादल फटना, भूकंपीय गतिविधि।
- प्राकृतिक आपदाएँ: भूस्खलन और बाढ़ के कारण, प्रभाव और प्रबंधन।
- क्षेत्रीय भूगोल: उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों की विशिष्ट भौगोलिक विशेषताएँ और चुनौतियाँ।
जीएस पेपर II: शासन और सामाजिक न्याय
- सरकार की नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास: आपदा प्रबंधन नीतियाँ, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF)।
- संस्थाएँ और संगठन: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका और कार्यप्रणाली।
- समस्याएँ और समाधान: आपदाओं से प्रभावित कमजोर वर्गों के लिए सरकारी सहायता, पुनर्वास और राहत कार्य।
जीएस पेपर III: पर्यावरण और आपदा प्रबंधन
- पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन: अनियोजित विकास का पर्यावरण पर प्रभाव, वनोन्मूलन और भूस्खलन के बीच संबंध।
- आपदा प्रबंधन: भारत में आपदा प्रबंधन का ढाँचा, रोकथाम, शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति।
- पर्यावरण संरक्षण: पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में टिकाऊ विकास की आवश्यकता।
जीएस पेपर IV: नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिवृत्ति
- सार्वजनिक जीवन में नैतिकता: सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रभावित लोगों के प्रति सहानुभूति।
- निर्णय लेना: संकट के समय त्वरित और प्रभावी निर्णय लेने का महत्व।
- मानवीय मूल्य: बचाव कार्यों में शामिल लोगों का बलिदान और समर्पण, स्वयंसेवकों की भूमिका।
संकट से उबरना: भावी राह
इस आपदा से उबरने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी:
- तत्काल बचाव और राहत: फंसे हुए लोगों को बचाना और प्रभावितों को तत्काल चिकित्सा और अन्य सहायता प्रदान करना सर्वोच्च प्राथमिकता है।
- स्थायी पुनर्वास: बेघर हुए लोगों के लिए सुरक्षित आश्रयों और आजीविका के साधनों की व्यवस्था करना।
- पुनर्निर्माण: क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे का सुरक्षित और स्थायी तरीके से पुनर्निर्माण, भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए।
- जोखिम न्यूनीकरण: भविष्य की ऐसी आपदाओं से बचने के लिए जोखिम मूल्यांकन, बेहतर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, और टिकाऊ विकास को प्राथमिकता देना।
- जन जागरूकता: स्थानीय समुदायों को भूस्खलन और अन्य खतरों के बारे में शिक्षित करना और उन्हें तैयारी के लिए प्रशिक्षित करना।
एक उदाहरण: 2013 की केदारनाथ बाढ़ के बाद, उत्तराखंड ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में कुछ सबक सीखे हैं। हालाँकि, उत्तरकाशी की यह घटना दर्शाती है कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है, विशेष रूप से प्रारंभिक चेतावनी और स्थानीय समुदायों के बीच जागरूकता फैलाने के मामले में।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: हाल ही में उत्तरकाशी में हुई आपदा का मुख्य कारण निम्नलिखित में से कौन सा है?
(a) भूकंप
(b) भूस्खलन और बादल फटना
(c) ज्वालामुखी विस्फोट
(d) तीव्र हवाएँ
उत्तर: (b)
व्याख्या: उत्तरकाशी आपदा मुख्य रूप से भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाओं से संबंधित है। - प्रश्न 2: उत्तराखंड राज्य निम्नलिखित में से किस भूगर्भीय खतरे के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है?
(a) सूखा
(b) भूस्खलन और भूकंप
(c) सुनामी
(d) चक्रवात
उत्तर: (b)
व्याख्या: उत्तराखंड हिमालयी क्षेत्र में स्थित है, जो टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधि के कारण भूकंप और तीव्र ढलानों के कारण भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। - प्रश्न 3: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) निम्नलिखित में से किस मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है?
(a) गृह मंत्रालय
(b) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(c) पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
(d) रक्षा मंत्रालय
उत्तर: (a)
व्याख्या: NDMA, भारत में आपदा प्रबंधन के लिए एक शीर्ष वैधानिक और योजना, नीति, और कार्यान्वयन निकाय है, जो गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। - प्रश्न 4: भूस्खलन के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक जिम्मेदार नहीं है?
(a) तीव्र ढलान
(b) भारी वर्षा
(c) वनस्पति आवरण में वृद्धि
(d) भूगर्भीय अस्थिरता
उत्तर: (c)
व्याख्या: वनस्पति आवरण, विशेष रूप से गहरी जड़ों वाले पेड़, मिट्टी को स्थिर करने में मदद करते हैं और भूस्खलन के जोखिम को कम करते हैं। वनस्पति आवरण में कमी भूस्खलन को बढ़ावा देती है। - प्रश्न 5: ‘बादल फटना’ (Cloudburst) की घटना को कैसे परिभाषित किया जाता है?
(a) किसी भी सामान्य वर्षा को बादल फटना कहा जाता है।
(b) किसी निश्चित क्षेत्र में एक घंटे में 100 मिमी से अधिक वर्षा का होना।
(c) किसी छोटे से क्षेत्र में बहुत कम समय (जैसे 15-20 मिनट) में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होना।
(d) गरज के साथ भारी ओलावृष्टि होना।
उत्तर: (c)
व्याख्या: बादल फटना एक ऐसी घटना है जिसमें बहुत कम समय में (आमतौर पर एक घंटे के भीतर) एक बहुत छोटे से क्षेत्र (लगभग 10 वर्ग किलोमीटर) में 100 मिमी से अधिक वर्षा होती है। - प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में आपदा प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार है?
(a) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
(b) सीमा सुरक्षा बल (BSF)
(c) केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF)
(d) केवल राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF)
उत्तर: (a)
व्याख्या: NDRF विशेष रूप से आपदाओं और आपदा प्रतिक्रिया के लिए प्रशिक्षित एक विशेष बल है, जो NDMA के तहत कार्य करता है। SDRF राज्यों की अपनी प्रतिक्रिया इकाई है, लेकिन NDRF मुख्य केंद्रीय निकाय है। - प्रश्न 7: उत्तरकाशी आपदा के संदर्भ में, लापता व्यक्तियों की संख्या को लेकर असमंजस का मुख्य कारण क्या हो सकता है?
(a) केवल सरकारी रिकॉर्ड का अधूरा होना
(b) संचार व्यवस्था का ठप होना और स्थानीय जानकारी का अभाव
(c) अत्यधिक संख्या में पर्यटक, जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं
(d) (b) और (c) दोनों
उत्तर: (d)
व्याख्या: संचार का अभाव सटीक डेटा संग्रह को बाधित करता है, और पहाड़ी क्षेत्रों में अनौपचारिक यात्राओं और स्थानीय समुदायों के बारे में अपूर्ण जानकारी से लापता लोगों की संख्या को लेकर असमंजस पैदा होता है। - प्रश्न 8: हिमालयी क्षेत्र की भूवैज्ञानिक अस्थिरता के लिए निम्नलिखित में से कौन सा प्रमुख कारण जिम्मेदार है?
(a) वायुमंडलीय दबाव में अचानक परिवर्तन
(b) महाद्वीपीय प्लेटों का टकराव
(c) सौर ज्वालाएँ
(d) पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन
उत्तर: (b)
व्याख्या: भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट से टकराना ही हिमालय के निर्माण और उसकी भूवैज्ञानिक अस्थिरता का मुख्य कारण है। - प्रश्न 9: भूस्खलन को रोकने या कम करने के उपायों में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल है?
(a) पहाड़ी ढलानों पर सघन वृक्षारोपण
(b) अनियंत्रित निर्माण
(c) जल निकासी प्रणालियों को बंद करना
(d) भारी मशीनरी का उपयोग बढ़ाना
उत्तर: (a)
व्याख्या: सघन वृक्षारोपण, विशेष रूप से गहरी जड़ों वाली प्रजातियों का, ढलानों को स्थिर करता है और भूस्खलन के जोखिम को कम करता है। - प्रश्न 10: GS-III के दृष्टिकोण से, उत्तरकाशी जैसी आपदाएँ किस क्षेत्र से संबंधित हैं?
(a) पर्यावरण का क्षरण और आपदा प्रबंधन
(b) आंतरिक सुरक्षा और रक्षा
(c) विज्ञान और प्रौद्योगिकी
(d) भारतीय अर्थव्यवस्था
उत्तर: (a)
व्याख्या: ये आपदाएँ सीधे तौर पर पर्यावरण के क्षरण (जैसे कि अनियोजित विकास के कारण) और प्रभावी आपदा प्रबंधन की आवश्यकता से जुड़ी हैं, जो GS-III का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: उत्तरकाशी में हाल ही में हुई भूस्खलन आपदा के कारणों का विश्लेषण करें और भारतीय हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन की घटनाओं को रोकने और उनसे निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए जाने वाले बहु-आयामी उपायों पर प्रकाश डालें। (250 शब्द)
- प्रश्न 2: ‘आपदा प्रबंधन’ के संदर्भ में, उत्तरकाशी आपदा ने प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, समन्वय और दुर्गम क्षेत्रों में प्रतिक्रिया क्षमताओं में किन कमियों को उजागर किया है? इन चुनौतियों से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी और सामुदायिक भागीदारी की भूमिका का समालोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द)
- प्रश्न 3: उत्तराखंड जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में तीव्र विकास की आवश्यकता और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच संतुलन कैसे बनाया जा सकता है? उत्तरकाशी की घटना के आलोक में, टिकाऊ विकास और भूस्खलन जोखिम न्यूनीकरण के लिए नीतियों का सुझाव दें। (250 शब्द)
- प्रश्न 4: भूस्खलन और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं? उत्तरकाशी आपदा के पीड़ितों के पुनर्वास और पुनर्निर्माण में शासन की भूमिका और जवाबदेही का परीक्षण करें। (150 शब्द)