35 मिनट की कॉल: भारत-पाक मध्यस्थता, अमेरिकी आमंत्रण और PM का जवाब – ट्रम्प की नाराज़गी के पीछे क्या है?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, एक समाचार माध्यम ने एक सनसनीखेज दावा किया है कि भारत के प्रधान मंत्री (PM) की एक 35 मिनट की फोन कॉल हुई थी, जिसमें पाकिस्तान के साथ मध्यस्थता और अमेरिका द्वारा भेजे गए एक विशेष आमंत्रण का ज़िक्र था। खबर के अनुसार, इस बातचीत पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने नाराज़गी भी व्यक्त की थी। यह दावा, चाहे इसकी सत्यता कुछ भी हो, भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलता, अमेरिका की क्षेत्रीय भूमिका और वैश्विक कूटनीति की बारीकियों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु बन जाता है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, ऐसे दावों का विश्लेषण करना, उनके पीछे के भू-राजनीतिक संदर्भ को समझना और भारत की विदेश नीति के सिद्धांतों को जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह घटना हमें सिखाती है कि कूटनीति की दुनिया में एक साधारण सी लगने वाली बातचीत भी बड़े भू-राजनीतिक विचारों को जन्म दे सकती है।
यह ब्लॉग पोस्ट इसी दावे के विभिन्न पहलुओं का गहराई से विश्लेषण करेगा। हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि ऐसी कॉल का क्या महत्व हो सकता है, मध्यस्थता के मुद्दे क्या हैं, अमेरिका की भूमिका कैसी रही है, और भारत अपनी विदेश नीति के तहत ऐसे मामलों को कैसे देखता है।
दावे का मूल: 35 मिनट की बातचीत और उसके निहितार्थ (The Core of the Claim: The 35-Minute Conversation and Its Implications):**
समाचार में यह दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री की 35 मिनट की यह फोन कॉल कई संवेदनशील मुद्दों पर केंद्रित थी:
- भारत-पाकिस्तान मध्यस्थता: इस कॉल का एक मुख्य बिंदु भारत और पाकिस्तान के बीच किसी प्रकार की मध्यस्थता का प्रस्ताव या चर्चा बताया गया है। यह स्वतः ही भारत की दशकों पुरानी ‘द्विपक्षीय समाधान’ की नीति पर सवाल उठाता है।
- अमेरिकी आमंत्रण: खबर के अनुसार, इस बातचीत में अमेरिका से आए एक ‘आमंत्रण’ का भी ज़िक्र था। यह आमंत्रण किस संदर्भ में था – द्विपक्षीय, बहुपक्षीय, या किसी विशेष बैठक के लिए – यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसने कूटनीतिक हलकों में उत्सुकता ज़रूर जगाई है।
- ट्रम्प की नाराज़गी: सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि इस कॉल और उसके संभावित निष्कर्षों पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने नाराज़गी व्यक्त की। यह नाराज़गी कई बातें दर्शा सकती है – या तो उन्हें बातचीत के तरीके पर आपत्ति थी, या मध्यस्थता के प्रस्ताव से, या फिर उन्हें लगा कि अमेरिका को दरकिनार किया जा रहा है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये सभी “दावे” हैं, और इनकी आधिकारिक पुष्टि या खंडन अक्सर कूटनीतिक संवेदनशीलता के कारण नहीं किया जाता है। लेकिन, एक UPSC उम्मीदवार के तौर पर, हमें ऐसे दावों के पीछे छिपे भू-राजनीतिक समीकरणों को समझना होता है।
भारत-पाकिस्तान संबंध: एक ऐतिहासिक और जटिल ताना-बाना (India-Pakistan Relations: A Historical and Complex Tapestry)
भारत और पाकिस्तान के संबंध दुनिया के सबसे जटिल और संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में से एक हैं। 1947 में विभाजन के बाद से, दोनों देशों के बीच कई युद्ध, सीमा पर तनातनी, और आतंकवाद को लेकर निरंतर तनाव रहा है। इस रिश्ते की मूल जड़ें कश्मीर का मुद्दा, सीमा विवाद, और विचारधारात्मक भिन्नताएँ हैं।
“भारत-पाकिस्तान संबंधों को अक्सर ‘विभाजन की विरासत’ के रूप में देखा जाता है। यह एक ऐसा रिश्ता है जिसमें अविश्वास, संदेह और कूटनीतिक गतिरोध का लंबा इतिहास रहा है।”
ऐतिहासिक रूप से, भारत ने हमेशा यह रुख अपनाया है कि पाकिस्तान के साथ सभी मुद्दे ‘द्विपक्षीय’ आधार पर ही सुलझाए जाने चाहिए। शिमला समझौते (1972) और लाहौर घोषणा (1999) जैसे द्विपक्षीय समझौतों ने इसी सिद्धांत को रेखांकित किया है। भारत का यह मानना रहा है कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता, विशेष रूप से उन देशों की जो स्वयं पक्षपातपूर्ण हो सकते हैं, से समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकलता, बल्कि यह मामले को और जटिल बना सकता है।
दूसरी ओर, पाकिस्तान अक्सर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का हवाला देते हुए या किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की वकालत करता रहा है, खासकर कश्मीर मुद्दे पर। यह भारत की द्विपक्षीय नीति के बिल्कुल विपरीत है।
मध्यस्थता का मुद्दा: भारत का दृष्टिकोण (The Issue of Mediation: India’s Stance)
मध्यस्थता (Mediation) एक ऐसी कूटनीतिक प्रक्रिया है जिसमें एक तटस्थ तीसरा पक्ष दो विरोधी पक्षों के बीच बातचीत को सुगम बनाने में मदद करता है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में, मध्यस्थता अक्सर तब अपनाई जाती है जब दोनों पक्ष सीधे बातचीत करने में असमर्थ होते हैं या जब बातचीत किसी गतिरोध पर पहुँच जाती है।
भारत की ‘द्विपक्षीय’ नीति का महत्व:
- संप्रभुता का प्रश्न: भारत के लिए, द्विपक्षीयता का सिद्धांत उसकी संप्रभुता और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त रहने की इच्छा का प्रतीक है।
- विश्वास का अभाव: भारत का मानना है कि पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करने से बाज नहीं आता, इसलिए किसी मध्यस्थ की उपस्थिति में भी पाकिस्तान की मंशा पर संदेह बना रहता है।
- कश्मीर एक आंतरिक मामला: भारत कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानता है, और इसलिए उस पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अपने आंतरिक मामले में हस्तक्षेप के रूप में देखता है।
पाकिस्तान और मध्यस्थता:
पाकिस्तान, इसके विपरीत, भारत के साथ किसी भी महत्वपूर्ण द्विपक्षीय प्रगति को सीमित पाता है और अक्सर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने मुद्दों को उठाता है। हाल के वर्षों में, पाकिस्तान ने अमेरिका और चीन जैसे देशों से भारत के साथ मध्यस्थता करने का आग्रह किया है।
ट्रम्प प्रशासन की भूमिका:
डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश की थी। उन्होंने कई बार कहा था कि वे कश्मीर जैसे मुद्दों को सुलझाने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, भारत ने हमेशा इस प्रस्ताव को विनम्रता से अस्वीकार किया है, जबकि पाकिस्तान ने इसका स्वागत किया है। यह इस दावे को एक विशिष्ट संदर्भ देता है, जहाँ अमेरिका की मध्यस्थता की पेशकश और भारत के इनकार के बीच एक कूटनीतिक खेल चल रहा था।
अमेरिकी आमंत्रण और ट्रम्प की नाराज़गी: संभावित कारण (US Invitation and Trump’s Displeasure: Potential Reasons)
यह दावा कि एक ‘अमेरिकी आमंत्रण’ का ज़िक्र था और उस पर ‘ट्रम्प नाराज़’ थे, कई संभावित परिदृश्यों की ओर इशारा करता है:
1. आमंत्रण का स्वरूप:
- क्या यह सीधे PM को था? या किसी अन्य भारतीय अधिकारी को?
- किसलिए था? क्या यह अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा के लिए था (जहाँ भारत और अमेरिका के हित जुड़े थे)? या फिर सीधे भारत-पाकिस्तान संबंधों पर?
- क्या यह गुप्त था? या सार्वजनिक?
यदि आमंत्रण भारत-पाकिस्तान के मुद्दे पर केंद्रित था, और प्रधान मंत्री ने इसे ऐसे तरीके से स्वीकार किया जो ट्रम्प को गवारा नहीं था, तो उनकी नाराज़गी समझी जा सकती है।
2. ट्रम्प की नाराज़गी के संभावित कारण:
- ‘डील मेकर’ वाली सोच: ट्रम्प की पहचान एक ‘डील मेकर’ के रूप में थी। यदि वे किसी बातचीत में अपनी मध्यस्थता को महत्वपूर्ण मानते थे और उन्हें लगा कि प्रधान मंत्री ने उस बातचीत को ऐसे मोड़ दिया जिससे उनकी ‘डील’ को नुकसान पहुँच रहा था, तो वे नाराज़ हो सकते थे।
- अप्रत्यक्ष अपमान: हो सकता है कि बातचीत के दौरान प्रधान मंत्री ने सीधे तौर पर अमेरिका की मध्यस्थता को खारिज कर दिया हो, या किसी ऐसे तीसरे देश का ज़िक्र किया हो जिससे अमेरिका असहज हो। यह ट्रम्प के लिए एक व्यक्तिगत अपमान जैसा महसूस हो सकता था।
- सूचना का अभाव: संभव है कि ट्रम्प को उस 35 मिनट की कॉल के सटीक विवरण की जानकारी न हो, या उन्हें गलत जानकारी मिली हो, जिससे उनकी नाराज़गी बढ़ गई हो।
- सामरिक बढ़त की चिंता: यदि इस बातचीत से भारत को पाकिस्तान के साथ किसी संबंध में थोड़ी भी बढ़त मिलती, तो अमेरिका, जो क्षेत्र में अपनी भूमिका बनाए रखना चाहता है, वह इसे अपनी सामरिक बढ़त के लिए एक खतरे के रूप में देख सकता था।
- घरेलू राजनीति: कभी-कभी, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ घरेलू राजनीतिक समीकरणों से भी जुड़ी होती हैं। यदि ट्रम्प को लगा कि उनकी मध्यस्थता की स्थिति को कमज़ोर किया जा रहा है, तो वे अपनी छवि बचाने के लिए नाराज़गी व्यक्त कर सकते थे।
इसे ऐसे समझें जैसे एक शिक्षक ने छात्रों को एक प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए कहा है, और एक छात्र दूसरे छात्र से कहता है कि वह शिक्षक की बजाय किसी और की मदद लेगा। शिक्षक, जो खुद को मुख्य मार्गदर्शक मानता है, इस पर नाराज़ हो सकता है।
भारत की विदेश नीति के सिद्धांत और इस दावे का विश्लेषण (Principles of India’s Foreign Policy and Analysis of this Claim)
भारत की विदेश नीति कुछ प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है, जो इस दावे के विश्लेषण में हमारी मदद करते हैं:
- पंचशील: शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत (एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप, समानता और परस्पर लाभ)।
- सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy): अपनी विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों के निर्धारण में स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता। यह भारत को किसी भी सैन्य गठबंधन या गुटबंदी से दूर रखने और अपनी स्वतंत्र राह चुनने की शक्ति देता है।
- ‘नेशनल इंटरेस्ट’ सर्वोपरि: भारत अपनी विदेश नीति के सभी निर्णय अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर लेता है।
यदि यह दावा सच है, तो:
- PM का जवाब: यह संभव है कि प्रधान मंत्री ने किसी भी मध्यस्थता प्रस्ताव को भारत की द्विपक्षीय नीति के अनुरूप ही जवाब दिया हो। यदि अमेरिका ने मध्यस्थता का प्रस्ताव दिया था, तो भारत का इसे विनम्रता से अस्वीकार करना या इसे ‘हमारे नियंत्रण में’ बताना, भारत की सामरिक स्वायत्तता के सिद्धांत के अनुरूप है।
- 35 मिनट की कॉल: इस अवधि में, कई मुद्दों पर चर्चा हो सकती थी, जिनमें अफगानिस्तान, क्षेत्रीय सुरक्षा, या यहाँ तक कि पाकिस्तान के साथ संभावित बातचीत के तरीके भी शामिल हो सकते थे।
- ट्रम्प की नाराज़गी: यह इस बात का संकेत हो सकता है कि भारत अपनी विदेश नीति में कितना स्वतंत्र है और वह किसी भी बाहरी दबाव में आने के बजाय अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है। यदि अमेरिका मध्यस्थता के माध्यम से क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था, और भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया, तो ट्रम्प का नाराज़ होना स्वाभाविक था।
भारत-पाकिस्तान संबंधों में मध्यस्थता के लाभ और हानियाँ (Pros and Cons of Mediation in India-Pakistan Relations)
लाभ (Pros):
- तनाव कम करना: एक तटस्थ मध्यस्थ तनाव को कम करने और बातचीत के लिए मंच प्रदान कर सकता है।
- संकट निवारण: गंभीर संकटों के समय, मध्यस्थता युद्ध को रोकने में मदद कर सकती है।
- समझौता: मध्यस्थ दोनों पक्षों के बीच सामान्य आधार खोजने में मदद कर सकता है।
हानियाँ (Cons):
- भारत का रुख: जैसा कि हमने चर्चा की, भारत मध्यस्थता को अपने संप्रभुता पर हस्तक्षेप मानता है।
- मध्यस्थ का पूर्वाग्रह: मध्यस्थ देश के अपने राष्ट्रीय हित हो सकते हैं, जो उसे पक्षपातपूर्ण बना सकते हैं।
- स्थायित्व का अभाव: मध्यस्थ के हटने के बाद, द्विपक्षीय संबंध फिर से पहले जैसे हो सकते हैं यदि मूल मुद्दे न सुलझे हों।
- पाकिस्तान का इस्तेमाल: पाकिस्तान अक्सर मध्यस्थता का इस्तेमाल अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को घेरने या अपने पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए करता है।
ऐतिहासिक रूप से, जब भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता हुई है (जैसे कि कारगिल युद्ध के बाद), परिणाम अक्सर अस्थायी या सीमित रहे हैं, और अंततः भारत अपनी द्विपक्षीय नीति पर ही लौटता है।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)
यह समाचार और इससे जुड़ा दावा UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए कई दृष्टिकोणों से प्रासंगिक है:
1. अंतर्राष्ट्रीय संबंध (GS-II):
- भारत-पाकिस्तान संबंध: यह विषय सीधे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का हिस्सा है। आपको दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक, राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों को समझना होगा।
- मध्यस्थता की भूमिका: अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में मध्यस्थता की प्रक्रिया, इसके प्रकार, और प्रभावशीलता को समझना महत्वपूर्ण है।
- अमेरिका की विदेश नीति: क्षेत्र में अमेरिका की भूमिका, विशेषकर ट्रम्प प्रशासन के दौरान, एक महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय है।
- बहुपक्षीयता बनाम द्विपक्षीयता: यह सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में कैसे कार्य करता है, यह समझना आवश्यक है।
2. विदेश नीति (GS-II):
- भारत की सामरिक स्वायत्तता: प्रधान मंत्री की किसी भी कार्रवाई का मूल्यांकन इस सिद्धांत के आलोक में किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय हित: भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए क्या कदम उठाता है, यह हमेशा परीक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है।
- कूटनीतिक दांव-पेंच: कैसे भारत जैसे देश, बड़ी शक्तियों के बीच अपनी जगह बनाते हुए, अपने हितों को साधते हैं।
3. समाचार पत्र विश्लेषण (Prelims & Mains):
यह घटना समसामयिक घटनाओं को समझने और उनका विश्लेषण करने की आपकी क्षमता को दर्शाती है। आपको दावों पर भरोसा करने के बजाय, उनके पीछे के कारणों, संदर्भों और निहितार्थों को खोजना होगा।
4. सुरक्षा (GS-III):
- आतंकवाद: भारत-पाकिस्तान संबंधों में आतंकवाद का मुद्दा हमेशा केंद्रीय रहा है। मध्यस्थता के प्रस्तावों में इसका अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष प्रभाव हो सकता है।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and Future Path)
भारत-पाकिस्तान संबंधों में किसी भी स्थायी शांति के लिए कई बड़ी चुनौतियाँ हैं:
- विश्वास की पूर्ण अनुपस्थिति: दशकों के अविश्वास को दूर करना अत्यंत कठिन है।
- आतंकवाद का मुद्दा: जब तक पाकिस्तान अपनी धरती से संचालित होने वाले आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता, तब तक विश्वसनीय बातचीत संभव नहीं है।
- कश्मीर का विवादास्पद दर्जा: दोनों देशों के दावों के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है।
- क्षेत्रीय भू-राजनीतिक बदलाव: अफगानिस्तान, चीन का उदय, और अमेरिका की बदलती नीतियाँ भी इस समीकरण को प्रभावित करती हैं।
भविष्य की राह भारत के लिए अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है। इसका अर्थ है:
- ‘इंगेजमेंट विदाउट एंगेजमेंट’ की नीति: पाकिस्तान से सीधे बात करने के बजाय, अप्रत्यक्ष माध्यमों से संवाद बनाए रखना, जब तक कि पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद को लेकर कोई ठोस बदलाव न दिखे।
- रणनीतिक संयम: उकसावे वाली कार्रवाइयों का जवाब देते समय भी संयम बरतना, ताकि स्थिति और न बिगड़े।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों का उपयोग: वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान की करतूतों (जैसे आतंकवाद को समर्थन) को उजागर करना।
- आंतरिक सुरक्षा और विकास पर ध्यान: देश की आंतरिक शक्ति और विकास पर ध्यान केंद्रित करना, जो विदेश नीति को मज़बूती प्रदान करता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
35 मिनट की फोन कॉल, भारत-पाकिस्तान मध्यस्थता का दावा, अमेरिकी आमंत्रण और ट्रम्प की नाराज़गी – यह सब मिलकर अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की एक जटिल और बहुस्तरीय तस्वीर पेश करते हैं। एक UPSC उम्मीदवार के तौर पर, हमें ऐसे दावों को सतही तौर पर नहीं लेना चाहिए, बल्कि उनके पीछे छिपे राजनीतिक, सामरिक और कूटनीतिक अर्थों को समझना चाहिए।
भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धांत अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है। प्रधान मंत्री का किसी भी ऐसे प्रस्ताव पर जवाब, जो भारत की विदेश नीति के सिद्धांतों के अनुरूप न हो, देश के स्वतंत्र विदेश नीति के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भले ही यह किसी बड़ी शक्ति के प्रमुख को नाराज़ कर दे, भारत अपनी राह पर अडिग रहता है।
अंततः, भारत-पाकिस्तान संबंधों का भविष्य दोनों देशों के बीच विश्वास निर्माण, आतंकवाद का उन्मूलन और बातचीत के माध्यम से मुद्दों को सुलझाने पर ही निर्भर करेगा, न कि बाहरी मध्यस्थताओं पर। ऐसे दावों का विश्लेषण हमें सिखाता है कि कैसे वैश्विक कूटनीति, व्यक्तिगत नेतृत्व, और राष्ट्रीय हित आपस में गुंथे होते हैं, और कैसे एक छोटी सी बातचीत भी बड़े भू-राजनीतिक प्रभाव डाल सकती है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. भारत अपनी विदेश नीति में किस सिद्धांत का पालन करता है, जिसके अनुसार वह पाकिस्तान के साथ सभी मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से हल करने पर ज़ोर देता है?
(a) पंचशील
(b) गुटनिरपेक्षता
(c) सामरिक स्वायत्तता
(d) बहुध्रुवीयता
उत्तर: (a) पंचशील (हालांकि सामरिक स्वायत्तता भी महत्वपूर्ण है, द्विपक्षीयता का सिद्धांत पंचशील के “एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप” और “समानता” के सिद्धांतों से जुड़ा है, और भारत की पाकिस्तान नीति का केंद्रीय स्तंभ रहा है।)
व्याख्या: भारत लंबे समय से शिमला समझौते (1972) और अन्य द्विपक्षीय समझौतों के तहत पाकिस्तान के साथ सभी मुद्दों को सीधे बातचीत से सुलझाने की वकालत करता रहा है। यह सिद्धांत पंचशील के सिद्धांतों, विशेषकर संप्रभुता और अहस्तक्षेप का सम्मान, से मेल खाता है।
2. निम्नलिखित में से कौन सा देश आमतौर पर भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश करता रहा है, जबकि भारत अक्सर इसे अस्वीकार करता है?
(a) रूस
(b) चीन
(c) संयुक्त राज्य अमेरिका
(d) फ्रांस
उत्तर: (c) संयुक्त राज्य अमेरिका
व्याख्या: डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, अमेरिका ने कई बार भारत-पाकिस्तान के बीच, विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे पर, मध्यस्थता की पेशकश की थी। भारत ने इन प्रस्तावों को हमेशा अस्वीकार किया है।
3. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में, “मध्यस्थता” (Mediation) का क्या अर्थ है?
(a) एक तीसरा पक्ष जो दोनों पक्षों के बीच शांति संधि लागू करता है।
(b) एक तीसरा पक्ष जो दोनों पक्षों के बीच बातचीत को सुगम बनाने में मदद करता है, बिना उन पर किसी समाधान को थोपे।
(c) एक तीसरा पक्ष जो संघर्ष में एक पक्ष का समर्थन करता है।
(d) एक तीसरा पक्ष जो अंतरराष्ट्रीय कानून लागू करता है।
उत्तर: (b) एक तीसरा पक्ष जो दोनों पक्षों के बीच बातचीत को सुगम बनाने में मदद करता है, बिना उन पर किसी समाधान को थोपे।
व्याख्या: मध्यस्थता का मुख्य उद्देश्य एक तटस्थ भूमिका निभाते हुए दोनों पक्षों के बीच संचार की सुविधा प्रदान करना है, न कि समाधान थोपना।
4. भारत की विदेश नीति का वह सिद्धांत जो उसे किसी भी बाहरी दबाव या गठबंधन से स्वतंत्र होकर निर्णय लेने की शक्ति देता है, क्या कहलाता है?
(a) गुटनिरपेक्षता
(b) सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy)
(c) राष्ट्रवाद
(d) कूटनीतिक तटस्थता
उत्तर: (b) सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy)
व्याख्या: सामरिक स्वायत्तता भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के हितों के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार देती है, भले ही वह बड़े वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित करता हो।
5. ऐतिहासिक रूप से, भारत ने कश्मीर को किस दर्जे का माना है?
(a) एक अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र
(b) एक विवादित क्षेत्र जिस पर जनमत संग्रह होना चाहिए
(c) भारत का अभिन्न अंग
(d) संयुक्त राष्ट्र के अधीन एक क्षेत्र
उत्तर: (c) भारत का अभिन्न अंग
व्याख्या: भारत सरकार कश्मीर को अपना अविभाज्य अंग मानती है, जिसके एकीकरण को भारतीय संविधान में विशेष प्रावधानों (जैसे अनुच्छेद 370, जो अब निरस्त हो गया है) के माध्यम से सुनिश्चित किया गया था।
6. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. भारत-पाकिस्तान के बीच किसी भी मध्यस्थता के प्रस्ताव पर भारत का मुख्य विरोध तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को अपनी संप्रभुता पर हमला मानना है।
2. पाकिस्तान का रुख अक्सर भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत के बजाय तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का समर्थन करना रहा है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (c) 1 और 2 दोनों
व्याख्या: ये दोनों ही कथन भारत-पाकिस्तान संबंधों के संदर्भ में बिल्कुल सटीक हैं। भारत द्विपक्षीयता पर ज़ोर देता है, जबकि पाकिस्तान तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का पक्षधर रहा है।
7. डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के दौरान, मध्यस्थता के प्रस्तावों के संबंध में भारत का सामान्य रुख क्या था?
(a) मध्यस्थता का सक्रिय रूप से स्वागत किया
(b) मध्यस्थता के प्रस्तावों को विनम्रता से अस्वीकार किया
(c) मध्यस्थता की पेशकश करने वाले देशों के साथ सैन्य अभ्यास रद्द कर दिए
(d) मध्यस्थता के लिए अपनी शर्तें रखीं
उत्तर: (b) मध्यस्थता के प्रस्तावों को विनम्रता से अस्वीकार किया
व्याख्या: भारत ने हमेशा संयुक्त राज्य अमेरिका सहित किसी भी देश द्वारा भारत-पाकिस्तान मुद्दों में मध्यस्थता की पेशकश को अस्वीकार किया है, और द्विपक्षीय समाधान पर अपना रुख बनाए रखा है।
8. ‘नेशनल इंटरेस्ट’ (National Interest) विदेश नीति के निर्माण में एक महत्वपूर्ण कारक है। भारत के राष्ट्रीय हितों में निम्नलिखित में से कौन सा सबसे महत्वपूर्ण है?
(a) पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना, चाहे कुछ भी हो।
(b) अपने पड़ोस में अस्थिरता को रोकना और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना।
(c) संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हमेशा संरेखित रहना।
(d) चीन के साथ सहयोग पर पूर्ण निर्भरता।
उत्तर: (b) अपने पड़ोस में अस्थिरता को रोकना और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना।
व्याख्या: भारत का प्राथमिक राष्ट्रीय हित क्षेत्रीय स्थिरता, अपनी संप्रभुता की रक्षा, और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। पाकिस्तान से संबंधित मुद्दे सीधे तौर पर इससे जुड़े हैं।
9. निम्नलिखित में से कौन सी कूटनीतिक प्रक्रिया में एक तीसरा पक्ष दोनों पक्षों के बीच विश्वास निर्माण और बातचीत को सुगम बनाने की कोशिश करता है, लेकिन समाधान नहीं थोपता?
(a) मध्यस्थता (Mediation)
(b) मध्यस्थता (Conciliation)
(c) अनिवार्य मध्यस्थता (Compulsory Arbitration)
(d) प्रवर्तन (Enforcement)
उत्तर: (a) मध्यस्थता (Mediation)
व्याख्या: मध्यस्थता (Mediation) में तीसरा पक्ष केवल सुविधा प्रदान करता है। अनिवार्य मध्यस्थता (Compulsory Arbitration) में, तीसरा पक्ष एक बाध्यकारी निर्णय देता है। Conciliation भी बातचीत को सुगम बनाने की प्रक्रिया है, लेकिन ‘mediation’ यहाँ सबसे सटीक शब्द है जो आम तौर पर इस्तेमाल होता है।
10. भारत-पाकिस्तान संबंधों में “विश्वास की कमी” (Lack of Trust) का सबसे बड़ा कारण क्या रहा है?
(a) कश्मीर मुद्दे पर असहमति
(b) सीमा विवाद
(c) पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन
(d) आर्थिक प्रतिस्पर्धा
उत्तर: (c) पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन
व्याख्या: भारत लगातार पाकिस्तान पर आतंकवादी समूहों को अपनी धरती से संचालित होने देने का आरोप लगाता रहा है, जिसने दोनों देशों के बीच विश्वास की खाई को बहुत गहरा किया है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “भारत की विदेश नीति में सामरिक स्वायत्तता का सिद्धांत, विशेष रूप से भारत-पाकिस्तान संबंधों के संदर्भ में, किस प्रकार प्रासंगिक है? उन तरीकों का विश्लेषण करें जिनसे भारत इस सिद्धांत का प्रयोग करके अंतर्राष्ट्रीय दबावों का सामना करता है।”
(लगभग 250 शब्द)
2. भारत-पाकिस्तान संबंधों में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के औचित्य और सीमाओं पर चर्चा करें। भारत की द्विपक्षीय समाधान की नीति के ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान प्रासंगिकता का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
(लगभग 150 शब्द)
3. अमेरिकी विदेश नीति, विशेष रूप से मध्यस्थता के प्रस्तावों के संबंध में, भारत-पाकिस्तान गतिरोध को कैसे प्रभावित करती है? एक अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान (जैसे ट्रम्प प्रशासन) के उदाहरणों का उपयोग करते हुए, विश्लेषण करें कि कैसे विभिन्न अमेरिकी नीतियाँ दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं।
(लगभग 250 शब्द)
4. “भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने के लिए, विश्वास निर्माण के उपाय (CBMs) महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख ने इन उपायों को लगातार बाधित किया है।” इस कथन के प्रकाश में, विश्वास निर्माण के हालिया प्रयासों और आतंकवाद के मुद्दे पर भारत की चिंताओं का विश्लेषण करें।
(लगभग 150 शब्द)