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चुनाव आयोग का राहुल पर पलटवार: ‘वोटों की चोरी’ का आरोप और 2018 का SC फैसला – पूरी कहानी

चुनाव आयोग का राहुल पर पलटवार: ‘वोटों की चोरी’ का आरोप और 2018 का SC फैसला – पूरी कहानी

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के बीच चुनावी बयानबाजी का एक नया दौर देखने को मिला, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी के “वोटों की चोरी” वाले बयान पर चुनाव आयोग (EC) ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। आयोग ने इस तरह के बयानों को “थके हुए स्क्रिप्ट” (tired script) का हिस्सा बताया और इसे 2018 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए खारिज कर दिया। इस घटना ने एक बार फिर स्वतंत्र संस्थाओं की भूमिका, चुनावी निष्पक्षता और राजनीतिक दलों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के इर्द-गिर्द महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े कर दिए हैं। यह मामला न केवल वर्तमान चुनावी परिदृश्य के लिए प्रासंगिक है, बल्कि UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों, संवैधानिक निकायों की शक्तियों और चुनावी प्रक्रियाओं की जटिलताओं को उजागर करता है।

‘वोटों की चोरी’ का आरोप: एक पुरानी चाल?

राहुल गांधी द्वारा “वोटों की चोरी” का आरोप कोई नया नहीं है। यह एक ऐसा नारा रहा है जिसे राजनीतिक दल अक्सर चुनावी नतीजों से असंतुष्ट होने पर इस्तेमाल करते आए हैं। यह आरोप भारतीय चुनावी प्रणाली की वैधता पर सवाल उठाता है और मतदाताओं के विश्वास को ठेस पहुंचा सकता है। ऐसे आरोपों के पीछे मुख्य रूप से यह धारणा होती है कि चुनाव में गड़बड़ी हुई है, या परिणाम जनता की इच्छा के अनुरूप नहीं हैं।

“जब कोई राजनीतिक दल जनता के समर्थन से चुनाव हार जाता है, तो उसे जनता के फैसले को स्वीकार करना चाहिए। बार-बार ‘वोटों की चोरी’ का आरोप लगाना न केवल अनुचित है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र की नींव को कमजोर करता है।”

चुनाव आयोग का “थकी हुई स्क्रिप्ट” वाला बयान इसी बात को रेखांकित करता है कि इस तरह के आरोप अक्सर बिना ठोस सबूतों के लगाए जाते हैं और इनका उद्देश्य मतदाताओं को भ्रमित करना तथा अपनी हार को न्यायोचित ठहराना होता है।

चुनाव आयोग की भूमिका और शक्तियाँ

चुनाव आयोग (EC) भारत के संविधान द्वारा स्थापित एक स्वायत्त निकाय है, जिसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और संसद तथा राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के चुनाव का संचालन करता है। आयोग के पास चुनावों को स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए व्यापक अधिकार हैं। इनमें शामिल हैं:

  • चुनावों की तारीखों की घोषणा करना।
  • चुनाव आचार संहिता (Model Code of Conduct – MCC) लागू करना और उसका उल्लंघन होने पर कार्रवाई करना।
  • मतदाताओं की सूची तैयार करना और उनका नवीनीकरण करना।
  • चुनाव प्रचार पर नियंत्रण रखना, जिसमें रैलियों, भाषणों और विज्ञापनों की निगरानी शामिल है।
  • चुनावों में गड़बड़ी होने पर मतदान रद्द करना या पुनः मतदान कराना।
  • चुनावों से संबंधित किसी भी विवाद का निपटारा करना।

चुनाव आयोग का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि “जनता की आवाज” को बिना किसी बाधा या अनुचित प्रभाव के व्यक्त किया जा सके। जब कोई राजनीतिक दल आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है या उसके निर्देशों का उल्लंघन करता है, तो यह आयोग की संप्रभुता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए सीधी चुनौती मानी जाती है।

2018 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला: संदर्भ क्या है?

चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के बयान को खारिज करते हुए 2018 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र किया। हालांकि, इस विशिष्ट मामले में किस फैसले का उल्लेख किया गया, यह सार्वजनिक रूप से बहुत स्पष्ट नहीं किया गया है। लेकिन, चुनावी मामलों से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं जो इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हो सकते हैं:

1. मतदाता पंजीकरण और चुनावी धोखाधड़ी से संबंधित मामले:

सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर मतदाता सूचियों में गड़बड़ी, पहचान की चोरी और धोखाधड़ी के माध्यम से मतदान जैसे मुद्दों पर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने हमेशा यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया है कि प्रत्येक वैध मतदाता को वोट देने का अधिकार मिले और कोई भी फर्जी वोट न डाला जाए।

2. चुनाव प्रचार और भाषण:

चुनावी भाषणों में इस्तेमाल होने वाली भाषा को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए हैं। अदालत ने राजनीतिक दलों और नेताओं को जिम्मेदार और सम्मानजनक भाषा का उपयोग करने की सलाह दी है, ताकि मतदाताओं को गुमराह न किया जाए और चुनावी प्रक्रिया की गरिमा बनी रहे।

3. राजनीतिक दलों द्वारा मिथ्या सूचना का प्रसार:

समय-समय पर, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि राजनीतिक दलों को जनता के बीच मिथ्या सूचना या दुष्प्रचार नहीं फैलाना चाहिए। ऐसे बयान जो तथ्यों पर आधारित न हों और केवल जनमत को प्रभावित करने के उद्देश्य से दिए जाएं, उन्हें हतोत्साहित किया जाना चाहिए।

संभवतः, 2018 के जिस फैसले का आयोग ने उल्लेख किया, वह चुनावी निष्पक्षता, मतदाता धोखाधड़ी को रोकने और ऐसे बयानों पर अंकुश लगाने से संबंधित रहा होगा जो लोकतंत्र की विश्वसनीयता को कमजोर करते हैं। चुनाव आयोग का मानना है कि “वोटों की चोरी” का आरोप, बिना सबूत के, इसी श्रेणी में आता है।

‘वोटों की चोरी’ के आरोप के पीछे के कारण और प्रभाव

जब कोई राजनीतिक दल “वोटों की चोरी” का आरोप लगाता है, तो इसके पीछे कई छिपे हुए कारण हो सकते हैं:

  • हार को स्वीकार न करना: सबसे आम कारण हार को स्वीकार करने में असमर्थता है। यह हार का सामना करने की बजाय बाहरी ताकतों या प्रक्रियाओं को दोषी ठहराने का एक तरीका है।
  • जनसमर्थन को भावनात्मक रूप से जुटाना: ऐसे आरोप मतदाताओं के बीच एक भावनात्मक जुड़ाव पैदा कर सकते हैं, खासकर उन समर्थकों के बीच जो पहले से ही पार्टी के प्रति निष्ठावान हैं। यह उन्हें भविष्य के संघर्षों के लिए तैयार कर सकता है।
  • विरोधी दल को बदनाम करना: यह आरोप सीधे तौर पर विरोधी दल की जीत की वैधता पर सवाल उठाता है, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है।
  • चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाना: यदि आरोप चुनाव प्रक्रिया में हेरफेर के बारे में हैं, तो यह अंततः चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाता है, जो खतरनाक हो सकता है।

इन आरोपों का प्रभाव बहुत व्यापक हो सकता है:

  • जनता के विश्वास में कमी: लगातार ऐसे आरोप लगने से जनता का चुनावी प्रक्रिया और लोकतंत्र में विश्वास कम हो सकता है।
  • हिंसा या अशांति: कुछ मामलों में, ऐसे आरोप सार्वजनिक अशांति या छोटे पैमाने पर हिंसा को भी जन्म दे सकते हैं, खासकर अगर परिणाम बहुत कड़े हों।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: यह आरोप राजनीतिक ध्रुवीकरण को और गहरा कर सकता है, जहाँ समर्थक और विरोधी खेमे एक-दूसरे पर विश्वास करना बंद कर देते हैं।

चुनाव आयोग बनाम राजनीतिक दल: एक शाश्वत संघर्ष

भारतीय चुनावी इतिहास गवाह है कि चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के बीच अक्सर तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। यह तनाव मुख्य रूप से चुनाव आचार संहिता (MCC), राजनीतिक भाषणों की सामग्री और चुनाव प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर असहमति के कारण उत्पन्न होता है।

चुनाव आयोग के लिए चुनौतियाँ:

  • शक्तियों का दुरुपयोग: आयोग को यह सुनिश्चित करना होता है कि उसके अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग न हो और वह निष्पक्ष रहे।
  • राजनीतिक दबाव: शक्तिशाली राजनीतिक दल आयोग पर अपने पक्ष में निर्णय लेने का दबाव डाल सकते हैं।
  • अधसूचना का प्रसार: सोशल मीडिया के युग में, गलत सूचना और दुष्प्रचार को रोकना एक बड़ी चुनौती है।
  • जागरूकता का अभाव: कुछ मतदाताओं में चुनावी नियमों और प्रक्रिया के बारे में जागरूकता की कमी होती है, जिसका फायदा कुछ दल उठा सकते हैं।

राजनीतिक दलों द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीतियाँ:

  • EC के फैसलों की अवहेलना: कुछ दल आयोग के निर्देशों को मानने से इंकार कर देते हैं या उन्हें दरकिनार करने का प्रयास करते हैं।
  • जनता की अदालत में जाना: आयोग के फैसलों को सीधे चुनौती देने के बजाय, वे जनता के बीच जाकर अपनी बात रखने की कोशिश करते हैं।
  • EC को पक्षपाती ठहराना: जब आयोग उनके खिलाफ कार्रवाई करता है, तो वे अक्सर आयोग पर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हैं।

चुनाव आयोग के लिए यह सुनिश्चित करना एक नाजुक संतुलनकारी कार्य है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष बना रहे, जबकि उसे अपनी शक्तियों का प्रभावी ढंग से उपयोग भी करना पड़े।

“चुनाव आयोग किसी राजनीतिक दल का विरोधी नहीं है, बल्कि वह लोकतंत्र का संरक्षक है। उसका काम यह देखना है कि किसी भी दल को अनुचित लाभ न मिले और चुनाव प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की धांधली न हो।”

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एक गहन विश्लेषण

यह पूरा विवाद UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण विषयों को छूता है:

1. भारतीय संविधान और शासन (Indian Polity & Governance):

  • संवैधानिक निकाय: चुनाव आयोग की स्थिति, शक्तियाँ और कार्य (अनुच्छेद 324)।
  • लोकतंत्र की मूल संरचना: निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की मूल संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
  • चुनाव आचार संहिता (MCC): इसका उद्देश्य, कानूनी स्थिति और प्रवर्तन।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: चुनावी प्रक्रियाओं और कदाचार से संबंधित कानून।

2. समसामयिक घटनाएँ (Current Events):

  • चुनावी राजनीति: राजनीतिक दलों द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीतियाँ और बयानबाजी।
  • मीडिया की भूमिका: मीडिया कैसे चुनावी बहसों को आकार देता है।
  • सोशल मीडिया और चुनाव: गलत सूचना और दुष्प्रचार का प्रभाव।

3. सामाजिक मुद्दे (Social Issues):

  • जनता का विश्वास: लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का विश्वास बनाए रखना।
  • राजनीतिक संचार: नेताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा का समाज पर प्रभाव।

4. नैतिकता (Ethics):

  • ईमानदारी और निष्पक्षता: राजनीतिक नेताओं और सार्वजनिक संस्थाओं के लिए नैतिकता के मानक।
  • सत्यनिष्ठा: चुनावी प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा का महत्व।

आगे की राह: निष्पक्षता और विश्वास को कैसे बनाए रखें?

इस तरह के विवादों से निपटने और चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • चुनाव आयोग को अधिक शक्तियाँ: आयोग को चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर स्वतः संज्ञान लेने और तुरंत कार्रवाई करने के लिए और अधिक शक्तियाँ दी जानी चाहिए, जिसमें ऐसे बयानों के लिए नेताओं पर दंडात्मक कार्रवाई शामिल है।
  • चुनाव आचार संहिता को कानूनी दर्जा: चुनाव आचार संहिता को एक संविधिक (statutory) दर्जा दिया जाना चाहिए, ताकि इसके उल्लंघन के लिए सख्त सजा का प्रावधान हो।
  • जागरूकता अभियान: मतदाताओं को उनकी चुनावी अधिकारों और प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।
  • सोशल मीडिया का विनियमन: चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली गलत सूचनाओं और अभद्र भाषा पर अंकुश लगाने के लिए कड़े नियम और प्रवर्तन तंत्र की आवश्यकता है।
  • राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता: राजनीतिक दलों को अपने सदस्यों के लिए एक सख्त आचार संहिता बनानी चाहिए, जिसमें चुनावी बयानबाजी के मानदंड तय हों।
  • पारदर्शिता: सभी चुनावी प्रक्रियाओं में अधिकतम पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार के संदेह की गुंजाइश न रहे।

चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय होने चाहिए। जब कोई राजनीतिक दल “वोटों की चोरी” जैसे आरोप लगाता है, तो यह केवल हार की निराशा नहीं होती, बल्कि यह उस नींव पर हमला है जिस पर हमारा लोकतंत्र टिका है। चुनाव आयोग का काम इसी नींव को मजबूत रखना है, और 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर, यह संदेश स्पष्ट कर दिया गया है कि इस तरह के निराधार आरोप अस्वीकार्य हैं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत भारत के चुनाव आयोग की स्थापना की गई है?

    (a) अनुच्छेद 320

    (b) अनुच्छेद 324

    (c) अनुच्छेद 315

    (d) अनुच्छेद 300A

    उत्तर: (b) अनुच्छेद 324

    व्याख्या: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324, भारत के चुनाव आयोग की स्थापना, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और संसद व राज्यों की विधानमंडलों के चुनावों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण करने के लिए प्रावधान करता है।
  2. प्रश्न 2: चुनाव आचार संहिता (MCC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है।

    2. चुनाव आयोग इसे लागू करता है।

    3. इसका उल्लंघन करने पर आयोग के पास स्वतः सजा देने का अधिकार है।

    उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?

    (a) केवल 1 और 2

    (b) केवल 2

    (c) केवल 2 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b) केवल 2

    व्याख्या: चुनाव आचार संहिता भारतीय संविधान में सीधे तौर पर उल्लिखित नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के बीच एक समझौता है। आयोग इसे लागू करता है और उल्लंघन पर कार्रवाई करता है, लेकिन इसकी सजा का प्रावधान कानूनी नहीं, बल्कि आयोग के अपने विवेक पर निर्भर करता है।
  3. प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में ‘चुनाव प्रबंधन’ के लिए जिम्मेदार है?

    (a) संसद

    (b) सर्वोच्च न्यायालय

    (c) चुनाव आयोग

    (d) नीति आयोग

    उत्तर: (c) चुनाव आयोग

    व्याख्या: भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का संचालन, अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है।
  4. प्रश्न 4: ‘वोटों की चोरी’ जैसे आरोप, यदि निराधार हों, तो किस सिद्धांत का उल्लंघन कर सकते हैं?

    (a) विध्या का शासन

    (b) लोकतंत्र की निष्पक्षता

    (c) सार्वजनिक जवाबदेही

    (d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d) उपरोक्त सभी

    व्याख्या: निराधार आरोप लोकतंत्र की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, विध्या के शासन (कानून का शासन) के सिद्धांत के विरुद्ध जा सकते हैं यदि यह किसी भी स्थापित कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करता है, और सार्वजनिक जवाबदेही को भी प्रभावित करते हैं।
  5. प्रश्न 5: चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति कौन करता है?

    (a) भारत के राष्ट्रपति

    (b) भारत के प्रधानमंत्री

    (c) सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश

    (d) लोकसभा अध्यक्ष

    उत्तर: (a) भारत के राष्ट्रपति

    व्याख्या: भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों की सलाह पर, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करते हैं।
  6. प्रश्न 6: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का संबंध किससे है?

    (a) पंचायती राज संस्थाएं

    (b) भारतीय प्रशासनिक सेवा

    (c) चुनाव प्रक्रियाएं और कदाचार

    (d) संघ लोक सेवा आयोग

    उत्तर: (c) चुनाव प्रक्रियाएं और कदाचार

    व्याख्या: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के चुनाव के लिए प्रक्रिया, चुनावी अपराधों और कदाचारों से संबंधित है।
  7. प्रश्न 7: चुनाव आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह एक बहु-सदस्यीय निकाय है।

    2. इसके सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।

    3. मुख्य चुनाव आयुक्त को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान अधिकार प्राप्त होते हैं।

    उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?

    (a) केवल 1 और 2

    (b) केवल 2 और 3

    (c) केवल 1 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (d) 1, 2 और 3

    व्याख्या: वर्तमान में चुनाव आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं, और मुख्य चुनाव आयुक्त का दर्जा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर होता है।
  8. प्रश्न 8: “वोटों की चोरी” का आरोप किस प्रकार के राजनीतिक कदाचार से संबंधित हो सकता है?

    (a) रिश्वतखोरी

    (b) मतदाता को धमकाना

    (c) चुनावी प्रक्रिया में हेरफेर

    (d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d) उपरोक्त सभी

    व्याख्या: “वोटों की चोरी” एक व्यापक शब्द है जो चुनावी प्रक्रिया में हेरफेर, मतदाता को धमकाने या अवैध साधनों का उपयोग करके वोट हासिल करने जैसे कई कदाचारों को शामिल कर सकता है।
  9. प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दे सकती है?

    (a) संसद

    (b) सर्वोच्च न्यायालय

    (c) राज्य विधानमंडल

    (d) इनमें से कोई नहीं

    उत्तर: (b) सर्वोच्च न्यायालय

    व्याख्या: चुनाव आयोग द्वारा पारित किसी भी आदेश या निर्णय को चुनौती सीधे सर्वोच्च न्यायालय में दी जा सकती है।
  10. प्रश्न 10: ‘मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट’ (MCC) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

    (a) राजनीतिक दलों के लिए धन जुटाना

    (b) चुनावों के दौरान सत्ताधारी दल को अनुचित लाभ से रोकना

    (c) चुनावों के लिए सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करना

    (d) मतदान प्रतिशत बढ़ाना

    उत्तर: (b) चुनावों के दौरान सत्ताधारी दल को अनुचित लाभ से रोकना

    व्याख्या: MCC का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव निष्पक्ष हों और सत्ताधारी दल अपनी सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके अनुचित लाभ न उठा सके।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। “वोटों की चोरी” जैसे निराधार आरोपों के संदर्भ में, यह बताएं कि कैसे आयोग अपनी स्वायत्तता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए संघर्ष करता है, और इस संबंध में 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का महत्व क्या हो सकता है? (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न 2: चुनाव आचार संहिता (MCC) के प्रवर्तन में चुनाव आयोग को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? “वोटों की चोरी” जैसे आरोपों के माध्यम से राजनीतिक दलों द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीतियों का विश्लेषण करें और बताएं कि वे चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। (250 शब्द, 15 अंक)
  3. प्रश्न 3: सोशल मीडिया के युग में, गलत सूचना और राजनीतिक बयानबाजी चुनावी प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करती है? “थकी हुई स्क्रिप्ट” जैसे बयानों को देखते हुए, चुनाव आयोग की भूमिका को सुदृढ़ करने और राजनीतिक संवाद में सुधार के लिए किन उपायों का सुझाव दिया जा सकता है? (150 शब्द, 10 अंक)
  4. प्रश्न 4: ‘वोटों की चोरी’ के आरोप, चाहे वे किसी भी दल द्वारा लगाए जाएं, भारतीय चुनावी प्रणाली में जनता के विश्वास पर क्या प्रभाव डालते हैं? इस विश्वास को बहाल करने और मजबूत करने के लिए सरकार, चुनाव आयोग और नागरिक समाज की संयुक्त जिम्मेदारियों पर प्रकाश डालें। (150 शब्द, 10 अंक)

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