शपथ पत्र बनाम संविधान की शपथ: क्या है राहुल गांधी के दावों और चुनाव आयोग के रुख का पूरा सच?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक बयान को लेकर राजनीतिक गरमागरमी तेज हो गई है। चुनाव आयोग (EC) ने राहुल गांधी के एक दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यदि उनके दावे सही हैं, तो उन्हें एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करना चाहिए, अन्यथा देश से माफी मांगनी चाहिए। वहीं, राहुल गांधी का जवाब है कि उन्होंने संसद में संविधान की शपथ ली है। यह बयानबाजी न केवल एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र के कुछ मूलभूत स्तंभों – नागरिक स्वतंत्रता, संवैधानिक नैतिकता और चुनाव आयोग की भूमिका – पर भी सवाल खड़े करती है। यह पूरा मामला UPSC उम्मीदवारों के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक है, क्योंकि यह सीधे तौर पर भारतीय संविधान, राज व्यवस्था, और लोकतंत्र की कार्यप्रणाली से जुड़ा है।
राहुल गांधी का दावा: क्या था और क्या नहीं?
राहुल गांधी ने हाल ही में विभिन्न सार्वजनिक मंचों पर कुछ ऐसे दावे किए हैं, जिन्हें चुनाव आयोग ने विशुद्ध रूप से तथ्यों पर आधारित नहीं माना है। हालांकि, इन दावों की विस्तृत प्रकृति और उनके विशिष्ट शब्दों का सार्वजनिक रूप से चुनाव आयोग द्वारा उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि आयोग को उनके बयानों में कुछ ऐसी बातें मिली हैं जो उन्हें तथ्यात्मक रूप से गलत या भ्रामक लगती हैं।
“जब कोई नागरिक, विशेषकर एक सार्वजनिक व्यक्ति, कोई दावा करता है, तो उस दावे की सत्यता और उसके प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण होता है। चुनाव आयोग का यह रुख इस सिद्धांत पर आधारित है कि सार्वजनिक प्रवचन, विशेष रूप से चुनावों के दौरान, तथ्यात्मक रूप से सही होना चाहिए।”
राहुल गांधी के पक्ष का तर्क यह है कि वे अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र हैं, और उन्होंने जो कहा है वह उनके विचारों या मान्यताओं पर आधारित है, न कि तथ्यात्मक रूप से गलत जानकारी पर। उनका यह भी कहना है कि उन्होंने संसद में संविधान की रक्षा की शपथ ली है, जो उनके हर कार्य और वक्तव्य का मार्गदर्शन करती है।
चुनाव आयोग का रुख: शपथ पत्र की मांग क्यों?
चुनाव आयोग (EC) की भूमिका भारतीय लोकतंत्र में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करना है। यह सुनिश्चित करने के लिए, आयोग को अक्सर ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ता है जहाँ चुनावी प्रक्रिया या सार्वजनिक प्रवचन को नुकसान पहुँचाया जा सकता है। इस मामले में, चुनाव आयोग का “शपथ पत्र” की मांग का तरीका अनूठा है।
शपथ पत्र का महत्व (Significance of Affidavit):** भारतीय कानूनी और संवैधानिक व्यवस्था में, शपथ पत्र एक औपचारिक घोषणा होती है जो सत्य मानी जाती है। जब कोई व्यक्ति किसी आरोप या दावे को सत्यापित करने के लिए शपथ पत्र देता है, तो वह कानूनी रूप से उस पर जवाबदेह होता है। यदि दावा झूठा साबित होता है, तो झूठी गवाही के लिए कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
चुनाव आयोग की यह मांग यह दर्शाती है कि वे राहुल गांधी के दावों की गंभीरता को समझते हैं और चाहते हैं कि वे उन दावों की सत्यता की पुष्टि करें। यदि राहुल गांधी अपने दावों पर अडिग हैं और उन्हें सही मानते हैं, तो उन्हें एक हलफनामा (Affidavit) प्रस्तुत कर यह प्रमाणित करना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सार्वजनिक रूप से जो कहा जा रहा है, वह उस व्यक्ति की व्यक्तिगत जवाबदेही के अंतर्गत है।
माफी की मांग का संदर्भ (Context of Seeking Apology):** यदि राहुल गांधी हलफनामा प्रस्तुत नहीं करते हैं, या यदि उनके दावे गलत साबित होते हैं, तो चुनाव आयोग का कहना है कि उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए। यह मांग इस बात पर जोर देती है कि सार्वजनिक झूठ या भ्रामक बयानों से राष्ट्र को ठेस पहुँच सकती है और सार्वजनिक विश्वास कम हो सकता है।
राहुल गांधी का जवाब: “संसद में संविधान की शपथ”
राहुल गांधी का यह कहना कि उन्होंने “संसद में संविधान की शपथ ली है” एक बहुत ही महत्वपूर्ण और रणनीतिक बिंदु है। यह उनके जवाब को एक अलग आयाम देता है।
संविधान की शपथ का अर्थ (Meaning of Oath to the Constitution):** भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही यह उल्लेख है कि हम, भारत के लोग, संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य को सभी नागरिकों के लिए सुनिश्चित करने का संकल्प लेते हैं। सांसद के रूप में, प्रत्येक सदस्य संसद सदस्य के रूप में पद या पुष्टि ग्रहण करते समय संविधान के प्रति निष्ठा और निष्ठा की शपथ लेता है। इस शपथ का अर्थ है कि वे संविधान के सिद्धांतों, कानूनों और आदर्शों का पालन करेंगे।
राहुल गांधी का तर्क यह हो सकता है कि उनकी पहली और सर्वोपरि निष्ठा संविधान के प्रति है, और उन्होंने जो भी कहा है, वह संविधान के दायरे में और उसके प्रति उनकी निष्ठा को ध्यान में रखते हुए कहा है। उनका यह भी अर्थ हो सकता है कि चुनाव आयोग के ऐसे निर्देशों का पालन करना, जो उनके विचार में असंवैधानिक या अनुचित हैं, उनकी संविधान की शपथ का उल्लंघन होगा।
यह तर्क दो स्तरों पर काम करता है:
- संवैधानिक अधिकार: वे यह जता रहे हैं कि उनके पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, जो कि संविधान द्वारा प्रदत्त है।
- चुनाव आयोग के अधिकार की सीमा: वे अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव आयोग के उस अधिकार पर सवाल उठा रहे हैं कि वह उन्हें हलफनामा देने या माफी मांगने के लिए कैसे मजबूर कर सकता है, खासकर जब वे संविधान की शपथ का हवाला दे रहे हों।
भारतीय राज व्यवस्था और यह मामला
यह पूरा घटनाक्रम भारतीय राज व्यवस्था के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करता है:
1. चुनाव आयोग (EC) की भूमिका और शक्तियाँ:
- भूमिका: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत, चुनाव आयोग को भारत में सभी चुनावों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव) के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्राप्त है।
- प्रेरक शक्ति: चुनाव आयोग को “मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट” (MCC) को लागू करने और उल्लंघन होने पर कार्रवाई करने का अधिकार है। MCC में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के व्यवहार के लिए दिशानिर्देश शामिल हैं।
- शक्तियाँ: आयोग किसी उम्मीदवार को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर सकता है, सार्वजनिक भाषणों पर रोक लगा सकता है, या जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 के तहत उल्लंघन के लिए चुनाव रद्द करने की सिफारिश कर सकता है।
- इस मामले में: क्या चुनाव आयोग को सीधे तौर पर किसी नागरिक (भले ही वह सार्वजनिक हस्ती हो) से शपथ पत्र की मांग करने का अधिकार है? यह एक विवादास्पद बिंदु हो सकता है। आयोग का रुख यह दर्शाता है कि वे सार्वजनिक प्रवचन में सत्यता बनाए रखने को कितना महत्व देते हैं।
2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) बनाम सार्वजनिक हित:
- संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a): सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है।
- तर्कसंगत प्रतिबंध: इस अधिकार पर संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत कुछ तर्कसंगत प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जैसे कि भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, या मानहानि या न्यायालय की अवमानना से संबंधित मामले।
- चुनाव आयोग का तर्क: आयोग का मानना होगा कि राहुल गांधी के दावे इन प्रतिबंधों के दायरे में आ सकते हैं, खासकर यदि वे सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने वाले या भ्रामक पाए जाते हैं।
- राहुल गांधी का तर्क: वे अपनी बात रखने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा मानते हैं, और चुनाव आयोग की कार्रवाई इस स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास हो सकता है।
3. संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality) और सार्वजनिक जवाबदेही:
- संवैधानिक नैतिकता: यह केवल संविधान के अक्षरों का पालन करना नहीं है, बल्कि उसकी भावना और उसके अंतर्निहित मूल्यों का भी पालन करना है। इसमें निष्पक्षता, समानता, न्याय और लोक कल्याण जैसे सिद्धांत शामिल हैं।
- राहुल गांधी की शपथ: उनकी “संविधान की शपथ” इसी संवैधानिक नैतिकता का प्रतीक है। वे यह जता रहे हैं कि उनकी निष्ठा उन सिद्धांतों के प्रति है।
- चुनाव आयोग की मांग: आयोग की मांग इस संदर्भ में सार्वजनिक जवाबदेही से जुड़ी है। क्या सार्वजनिक व्यक्तियों के बयानों के लिए अधिक जवाबदेही होनी चाहिए, खासकर जब वे संभावित रूप से समाज को प्रभावित कर सकते हैं?
पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)
चुनाव आयोग के रुख के पक्ष में तर्क:
- तथ्यात्मकता सुनिश्चित करना: सार्वजनिक प्रवचन में, विशेष रूप से चुनावों के आसपास, तथ्यात्मक सटीकता बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
- भ्रामक सूचना से बचाव: भ्रामक सूचनाएं मतदाताओं को गुमराह कर सकती हैं और चुनावी प्रक्रिया को विकृत कर सकती हैं।
- जवाबदेही तय करना: सार्वजनिक व्यक्तियों को अपने बयानों के लिए जवाबदेह ठहराना लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
- विश्वास बनाए रखना: जब सार्वजनिक हस्तियां तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती हैं, तो जनता का संस्थानों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास कम होता है।
चुनाव आयोग के रुख के विपक्ष में तर्क:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन: हलफनामा प्रस्तुत करने की बाध्यता या माफी की मांग भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनावश्यक अंकुश लगा सकती है।
- चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र: क्या चुनाव आयोग के पास किसी व्यक्ति से औपचारिक रूप से हलफनामा मांगने का अधिकार है, या यह एक अति-विस्तारित व्याख्या है?
- राजनीतिक रूप से प्रेरित कार्रवाई: विपक्ष यह आरोप लगा सकता है कि चुनाव आयोग एक विशेष राजनीतिक दल या व्यक्ति को लक्षित कर रहा है।
- “शपथ पत्र” की असंवैधानिकता: संविधान में ऐसी कोई विशिष्ट प्रक्रिया नहीं है जहां चुनाव आयोग किसी व्यक्ति को उसके दावों के लिए हलफनामा देने को मजबूर कर सके।
- संवैधानिक शपथ का महत्व: जब एक निर्वाचित प्रतिनिधि संविधान की शपथ लेता है, तो उसकी पहली जवाबदेही उसी के प्रति होती है।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and Way Forward)
चुनौतियाँ:
- स्पष्ट कानूनी ढाँचा: सार्वजनिक प्रवचन में तथ्यात्मक सटीकता और जवाबदेही के संबंध में स्पष्ट कानूनी और नियामक ढाँचे का अभाव।
- चुनाव आयोग की शक्तियों की सीमा: चुनाव आयोग को अपनी शक्तियों का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिए ताकि वे अपनी निष्पक्षता और स्वतंत्रता बनाए रख सकें।
- राजनीतिकरण: ऐसी कार्रवाइयाँ आसानी से राजनीतिक रंग ले सकती हैं, जिससे सार्वजनिक बहस और चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा दोनों पर असर पड़ता है।
- “फेक न्यूज” का बढ़ता जाल: सोशल मीडिया के युग में, तथ्यात्मक दावों का सत्यापन और गलत सूचनाओं का प्रसार एक बड़ी चुनौती है।
भविष्य की राह:
- नियामक स्पष्टता: सरकार और चुनाव आयोग को मिलकर यह स्पष्ट करना चाहिए कि सार्वजनिक प्रवचन में गलत सूचनाओं से कैसे निपटा जाए, और इसके लिए क्या प्रक्रियाएं हों।
- न्यायिक व्याख्या: इस तरह के विवादों को अंततः अदालतों द्वारा तय किया जा सकता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक व्यवस्था के बीच संतुलन को स्पष्ट करेंगे।
- जागरूकता और शिक्षा: मतदाताओं को भ्रामक सूचनाओं को पहचानने और सत्यापित करने के लिए शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
- स्व-नियमन: राजनीतिक दलों और नेताओं को स्वयं अपने बयानों की सटीकता के लिए अधिक जिम्मेदार बनना चाहिए।
- चुनाव आयोग की जवाबदेही: यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का प्रयोग निष्पक्ष और गैर-पक्षपाती तरीके से करे।
निष्कर्ष (Conclusion)
राहुल गांधी के दावे और चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया एक जटिल परिदृश्य को जन्म देती है जहाँ संवैधानिक दायित्व, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और सार्वजनिक जवाबदेही के बीच की रेखाएं धुंधली हो जाती हैं। जहाँ चुनाव आयोग सार्वजनिक प्रवचन में सत्यता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन करने का प्रयास कर रहा है, वहीं यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि ऐसी कार्रवाइयाँ लोकतांत्रिक अधिकारों पर अंकुश न लगाएं। राहुल गांधी का “संविधान की शपथ” का हवाला देना एक महत्वपूर्ण संवैधानिक तर्क प्रस्तुत करता है। यह मामला भारतीय राज व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण है, जो भविष्य में सार्वजनिक प्रवचन के नियमों और चुनाव आयोग की शक्तियों की सीमाओं को परिभाषित करने में मदद कर सकता है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह भारतीय संविधान, चुनावी सुधारों, और नागरिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन को समझने का एक उत्कृष्ट अवसर है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद भारत के चुनाव आयोग की स्थापना से संबंधित है?
(a) अनुच्छेद 320
(b) अनुच्छेद 324
(c) अनुच्छेद 315
(d) अनुच्छेद 326
उत्तर: (b) अनुच्छेद 324
व्याख्या: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324, भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग की स्थापना, शक्तियों और कार्यों का प्रावधान करता है।
2. भारतीय संविधान में “भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का अधिकार किस अनुच्छेद के तहत दिया गया है?
(a) अनुच्छेद 19(1)(a)
(b) अनुच्छेद 21
(c) अनुच्छेद 14
(d) अनुच्छेद 25
उत्तर: (a) अनुच्छेद 19(1)(a)
व्याख्या: अनुच्छेद 19(1)(a) भारतीय नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
3. “संवैधानिक नैतिकता” (Constitutional Morality) का क्या अर्थ है?
(a) केवल संविधान के शाब्दिक अर्थ का पालन करना।
(b) संविधान की भावना और उसके अंतर्निहित मूल्यों जैसे निष्पक्षता, समानता और न्याय का पालन करना।
(c) सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करना।
(d) अदालतों के आदेशों का पालन करना।
उत्तर: (b) संविधान की भावना और उसके अंतर्निहित मूल्यों जैसे निष्पक्षता, समानता और न्याय का पालन करना।
व्याख्या: संवैधानिक नैतिकता संविधान की लिखित सामग्री से परे जाकर उसके मूल सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति निष्ठा को संदर्भित करती है।
4. चुनाव आयोग (EC) निम्नलिखित में से किस पर कार्रवाई कर सकता है?
1. चुनावी प्रचार के दौरान भ्रामक सूचना फैलाना।
2. मतदाताओं को रिश्वत देना।
3. जाति या धर्म के आधार पर वोट मांगना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 1, 2 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (c) 1, 2 और 3
व्याख्या: चुनाव आयोग जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और आदर्श आचार संहिता के तहत उपरोक्त सभी गतिविधियों पर कार्रवाई कर सकता है।
5. एक सार्वजनिक व्यक्ति द्वारा दिए गए बयान के संबंध में, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(2) किस पर “तर्कसंगत प्रतिबंध” (Reasonable Restrictions) की अनुमति देता है?
(a) केवल सार्वजनिक व्यवस्था
(b) भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, या मानहानि या न्यायालय की अवमानना से संबंधित मामले।
(c) केवल राष्ट्रीय सुरक्षा
(d) केवल मानहानि
उत्तर: (b) भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, या मानहानि या न्यायालय की अवमानना से संबंधित मामले।
व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) में वे सभी आधार सूचीबद्ध हैं जिन पर भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता है।
6. “शपथ पत्र” (Affidavit) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
(a) किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत राय व्यक्त करना।
(b) किसी दावे या तथ्य को सत्यापित करना, जिसकी सत्यता की पुष्टि शपथ लेने वाला व्यक्ति करता है।
(c) सरकार की नीतियों की आलोचना करना।
(d) चुनाव प्रचार का एक रूप।
उत्तर: (b) किसी दावे या तथ्य को सत्यापित करना, जिसकी सत्यता की पुष्टि शपथ लेने वाला व्यक्ति करता है।
व्याख्या: शपथ पत्र एक कानूनी दस्तावेज है जिसमें व्यक्ति शपथ लेता है कि प्रस्तुत जानकारी सत्य है।
7. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. संसद सदस्य के रूप में, वे संसद में संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं।
2. यह शपथ उन्हें संविधान के प्रति निष्ठावान रहने और उसके सिद्धांतों का पालन करने के लिए बाध्य करती है।
उपरोक्त कथनों के संबंध में क्या सही है?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (c) 1 और 2 दोनों
व्याख्या: संसद सदस्य के रूप में, संविधान के प्रति निष्ठा और निष्ठा की शपथ लेना एक महत्वपूर्ण संवैधानिक दायित्व है।
8. चुनाव आयोग (EC) का मुख्य कार्य क्या है?
(a) राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण करना।
(b) देश में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करना।
(c) न्यायपालिका के निर्णयों की समीक्षा करना।
(d) केंद्रीय बैंक के रूप में कार्य करना।
उत्तर: (b) देश में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करना।
व्याख्या: अनुच्छेद 324 के तहत यह चुनाव आयोग का प्राथमिक संवैधानिक कार्य है।
9. “मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट” (MCC) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
(a) यह चुनाव आयोग द्वारा लागू किया जाता है।
(b) यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का हिस्सा है।
(c) यह केवल चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद ही लागू होता है।
(d) यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के आचरण के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है।
उत्तर: (b) यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का हिस्सा है।
व्याख्या: मॉडल आचार संहिता (MCC) जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का हिस्सा नहीं है, बल्कि चुनाव आयोग द्वारा पार्टियों और उम्मीदवारों से चुनाव के दौरान अनुपालन करने के लिए कहा गया एक स्वैच्छिक दिशानिर्देश है। हालांकि, आयोग इसका उल्लंघन करने पर कार्रवाई कर सकता है।
10. यदि किसी व्यक्ति के सार्वजनिक बयानों में तथ्यात्मक त्रुटियाँ पाई जाती हैं, तो चुनाव आयोग क्या कार्रवाई कर सकता है?
1. स्पष्टीकरण मांगना।
2. भविष्य के लिए चेतावनी जारी करना।
3. उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करना (गंभीर मामलों में)।
4. शपथ पत्र प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 4
(c) 1, 2, 3 और 4
(d) 1 और 2
उत्तर: (a) 1, 2 और 3
व्याख्या: आयोग आमतौर पर स्पष्टीकरण मांगता है, चेतावनी जारी करता है, और गंभीर मामलों में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत कार्रवाई कर सकता है। किसी से हलफनामा प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करना प्रत्यक्ष रूप से आयोग की शक्तियों में नहीं है, जैसा कि इस मामले में सामने आया है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “शपथ पत्र” बनाम “संविधान की शपथ” के संदर्भ में, भारतीय राज व्यवस्था में एक सार्वजनिक व्यक्ति के लिए सत्यता, जवाबदेही और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन को स्पष्ट कीजिए। चुनाव आयोग की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
(प्रश्न का मुख्य भाग: 250 शब्द)
2. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) अपने आप में पूर्ण नहीं है। अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाए गए “तर्कसंगत प्रतिबंधों” की प्रासंगिकता का वर्णन करें, और यह बताएं कि चुनाव आयोग जैसे निकाय सार्वजनिक प्रवचन में गलत सूचनाओं से निपटने के लिए इन प्रतिबंधों का उपयोग कैसे कर सकते हैं।
(प्रश्न का मुख्य भाग: 150 शब्द)
3. चुनाव आयोग की भूमिका भारत में निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में, “मॉडल आचार संहिता” (MCC) के प्रवर्तन और सार्वजनिक प्रवचन में तथ्यात्मक सटीकता बनाए रखने में आयोग की शक्तियों और चुनौतियों का विश्लेषण करें।
(प्रश्न का मुख्य भाग: 200 शब्द)
4. “संवैधानिक नैतिकता” एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो लोकतांत्रिक शासन को निर्देशित करती है। एक सार्वजनिक व्यक्ति के दावों और चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया के हालिया मामले के आलोक में, यह समझाएं कि संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन क्या हो सकता है और ऐसे उल्लंघन से निपटने में चुनाव आयोग की क्या भूमिका होनी चाहिए।
(प्रश्न का मुख्य भाग: 150 शब्द)