80 एकड़ में पसरा मौत का मंजर: धराली त्रासदी का सच, बचाव में 4 दिन की देरी और 100+ जिंदगियों की पुकार!
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में ‘धराली’ नामक स्थान पर एक भीषण त्रासदी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक विशाल भूस्खलन या भूधंसाव (जो अभी भी जांच के दायरे में है) ने लगभग 80 एकड़ क्षेत्र को मलबे की मोटी चादर तले दबा दिया है। इस विनाशकारी घटना में 100 से अधिक लोगों के फंसे होने की आशंका जताई जा रही है। चिंताजनक बात यह है कि मलबे को हटाने और बचाव अभियान शुरू करने में अप्रत्याशित देरी हो रही है, जिसमें प्रभावित क्षेत्र तक पहुँचने और आवश्यक उपकरणों को तैनात करने में ही चार दिन का समय लग रहा है। यह घटना न केवल मानवीय संकट को उजागर करती है, बल्कि भारत में आपदा प्रबंधन, भूवैज्ञानिक भेद्यता (geological vulnerability), तथा राहत और बचाव कार्यों की प्रभावशीलता पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए, धराली त्रासदी एक महत्वपूर्ण केस स्टडी प्रस्तुत करती है। यह प्रीलिम्स और मेन्स दोनों परीक्षाओं के विभिन्न पहलुओं, जैसे आपदा प्रबंधन, पर्यावरण, भूगोल, शासन, सार्वजनिक नीति, और सामाजिक न्याय से सीधे तौर पर जुड़ती है। आइए, इस घटना के विभिन्न आयामों को गहराई से समझें और परीक्षा के दृष्टिकोण से इनका विश्लेषण करें।
धराली त्रासदी: एक भयावह परिदृश्य (The Dharaali Tragedy: A Dire Scenario)
यह कोई सामान्य प्राकृतिक आपदा नहीं है। 80 एकड़ का विशाल क्षेत्र, जो किसी छोटे गांव या बड़े पार्क के बराबर हो सकता है, भूस्खलन के मलबे से पटी हुई है। सोचिए, उस मलबे के नीचे कितने पत्थर, मिट्टी, पेड़ और सबसे महत्वपूर्ण, कितने निर्दोष इंसान दबे हो सकते हैं। प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार, 100 से अधिक लोगों के मलबे में फंसे होने की आशंका है, जिनमें स्थानीय निवासी, पर्यटक या श्रमिक शामिल हो सकते हैं। यह संख्या अपने आप में एक बड़े मानवीय संकट का संकेत देती है।
सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि इस विकट परिस्थिति में भी, बचाव और राहत टीमें प्रभावित स्थान तक पहुंचने में चार दिन लगा रही हैं। यह विलंब कई कारणों से हो सकता है:
- दुर्गम भौगोलिक स्थिति: प्रभावित क्षेत्र का पहाड़ी या दूरस्थ होना, जहाँ सड़कों का अभाव या क्षतिग्रस्त होना।
- खराब मौसम: लगातार बारिश या खराब मौसम बचाव कार्यों में बाधा डाल सकता है।
- संसाधनों की कमी: भारी मशीनरी (जैसे जेसीबी) और कुशल मानवबल की तत्काल उपलब्धता न होना।
- आगे के भूस्खलन का खतरा: मलबे को हटाने का प्रयास और अधिक अस्थिरता पैदा कर सकता है, जिससे बचाव दल की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है।
केवल तीन जेसीबी मशीनों का उल्लेख यह दर्शाता है कि 80 एकड़ जैसे विशाल क्षेत्र से भारी मात्रा में मलबा हटाने के लिए यह संख्या अपर्याप्त हो सकती है। यह संसाधनों के आवंटन और आपातकालीन प्रतिक्रिया की तैयारी पर सवाल उठाता है।
“यह केवल एक भूस्खलन नहीं है, यह एक जटिल मानवीय और रसद (logistical) चुनौती है। हमें न केवल मलबे को हटाना है, बल्कि उन जिंदगियों को भी बचाना है जो इसके नीचे फंसी हो सकती हैं, और यह सब ऐसे क्षेत्र में करना है जहाँ हर कदम पर खतरा है।”
त्रासदी के संभावित कारण और भूवैज्ञानिक पहलू (Potential Causes and Geological Aspects)
किसी भी भूस्खलन या बड़े भूधंसाव के पीछे कई कारण हो सकते हैं, अक्सर ये कई कारक मिलकर आपदा को जन्म देते हैं:
1. प्राकृतिक कारण:
- भारी वर्षा: लम्बे समय तक या अचानक हुई मूसलाधार बारिश मिट्टी को संतृप्त (saturate) कर देती है, जिससे उसका गुरुत्वाकर्षण बल कमजोर हो जाता है और वह अस्थिर हो जाती है।
- भूकंप: भूकंपीय झटके जमीन को अस्थिर कर सकते हैं, जिससे ढलान पर जमा मलबा खिसक सकता है।
- पहाड़ों का क्षरण (Erosion): नदियों या ग्लेशियरों द्वारा पहाड़ों के आधार का क्षरण, या तीव्र हवा और पानी से ऊपरी मिट्टी का हटना।
- ढलान की अस्थिरता (Slope Instability): प्राकृतिक रूप से खड़ी या अस्थिर ढलानें, जिनमें पहले से ही चट्टानों में दरारें हों।
2. मानवीय गतिविधियाँ (Anthropogenic Factors):
- वनों की कटाई: पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं। वनों की कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ता है और ढलानें अस्थिर हो जाती हैं।
- अतिक्रमित निर्माण: पहाड़ी ढलानों पर अनियोजित या अवैध निर्माण, विशेष रूप से जहाँ प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली को बाधित किया जाता है, भूस्खलनों को बढ़ावा दे सकता है।
- सड़क निर्माण और खनन: पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क निर्माण या खनन कार्य ढलानों को काटकर उन्हें अस्थिर कर देते हैं।
- बांध या जलाशय निर्माण: बड़े जलाशयों में जमा पानी का दबाव भी आसपास की भूवैज्ञानिक संरचनाओं को प्रभावित कर सकता है।
- भारी मशीनरी का उपयोग: निर्माण स्थलों पर भारी मशीनों के अनियंत्रित उपयोग से भी कंपन उत्पन्न हो सकता है।
धराली त्रासदी के मामले में, यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि क्या हाल ही में उस क्षेत्र में कोई भारी बारिश हुई थी, क्या कोई भूकंपीय गतिविधि दर्ज की गई थी, या क्या क्षेत्र में कोई नई निर्माण या विकास परियोजना चल रही थी। भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और विशेषज्ञ रिपोर्ट इन सवालों के जवाब देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
आपदा प्रबंधन की चुनौतियाँ (Challenges in Disaster Management)
धराली त्रासदी भारत में आपदा प्रबंधन की कई अंतर्निहित चुनौतियों को उजागर करती है:
1. पूर्व-चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems):
- पहाड़ी और भूस्खलन-संभावित क्षेत्रों के लिए प्रभावी पूर्व-चेतावनी प्रणालियों का अभाव।
- मौसम विभाग, भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और स्थानीय प्रशासन के बीच समन्वय की कमी।
- संभावित जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान और निगरानी का अपर्याप्त तंत्र।
2. पहुँच और रसद (Access and Logistics):
- दुर्गम इलाकों में बचाव दलों और उपकरणों को समय पर पहुँचाना एक बड़ी चुनौती है।
- क्षतिग्रस्त सड़कें, पुल और संचार लाइनें राहत कार्यों में बाधा डालती हैं।
- भारी मशीनरी (जैसे जेसीबी, क्रेन) को ऐसे स्थानों पर ले जाना अत्यधिक कठिन हो सकता है।
3. संसाधन आवंटन (Resource Allocation):
- आपदा के पैमाने की तुलना में बचाव उपकरणों (जैसे विशेष ड्रिलिंग मशीन, भारी उत्खनन यंत्र) और प्रशिक्षित कर्मियों की कमी।
- सभी राज्यों में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की समान रूप से सशक्त उपस्थिति और तत्परता का अभाव।
- स्थानीय समुदायों का प्रशिक्षण और उन्हें प्रारंभिक प्रतिक्रिया के लिए तैयार करना।
4. समन्वय और संचार (Coordination and Communication):
- विभिन्न सरकारी एजेंसियों (सेना, NDRF, SDRF, स्वास्थ्य, पुलिस, स्थानीय प्रशासन) के बीच प्रभावी समन्वय की आवश्यकता।
- जनता को सटीक और समय पर जानकारी देना ताकि अफवाहों और घबराहट को रोका जा सके।
- अंतर-एजेंसी संचार की सुचारू व्यवस्था।
5. पर्यावरणीय और भूवैज्ञानिक जोखिम (Environmental and Geological Risks):
- मलबे को हटाने का प्रयास स्वयं अतिरिक्त भूस्खलन को आमंत्रित कर सकता है।
- बचाव कार्यों के दौरान पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुँचाना।
- अस्थिर ढलानों पर बचाव कार्य करते समय बचाव कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
UPSC के लिए प्रासंगिकता: विस्तृत विश्लेषण
यह घटना UPSC की तैयारी के विभिन्न मुख्य विषयों से जुड़ती है:
1. आपदा प्रबंधन (GS-III: Disaster Management):
- भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट, चक्रवात, बाढ़, सूखा, भूस्खलन, हिमस्खलन: धराली त्रासदी भूस्खलन और बड़े पैमाने पर ढलान विफलता (slope failure) का एक उदाहरण है।
- आपदाओं की रोकथाम और शमन (Prevention and Mitigation): यह घटना प्रभावी शमन रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है, जैसे कि भूवैज्ञानिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध, वनों की कटाई को रोकना, और पहाड़ी ढलानों को स्थिर करना।
- आपदाओं के प्रति प्रतिक्रिया (Response): यह पूर्व-चेतावनी, खोज और बचाव (Search and Rescue), राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण (Rehabilitation and Reconstruction) के चरणों पर केंद्रित है। धराली में देरी इन चरणों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): NDMA की भूमिका, NDRF की तैनाती, उनके उपकरण और प्रशिक्षण, और अन्य एजेंसियों के साथ उनके समन्वय का अध्ययन महत्वपूर्ण है।
- आपदा प्रबंधन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: यदि आवश्यक हो, तो अन्य देशों से तकनीकी सहायता या विशेषज्ञता प्राप्त करना।
संभावित मेन्स प्रश्न: “भारत में भूस्खलन जैसी आपदाओं से निपटने में वर्तमान आपदा प्रबंधन संरचना कितनी प्रभावी है? धराली त्रासदी जैसी घटनाओं से सीखे गए सबक के आधार पर सुधार के लिए सुझाव दें।”
2. भूगोल (GS-I: Geography):
- भौतिक भूगोल: भू-आकृतियाँ (Geomorphology), ढलान की प्रक्रियाएँ (Slope Processes), भूस्खलन के तंत्र (Mechanisms of Landslides), और भूवैज्ञानिक संरचनाएं।
- भारत का भूगोल: हिमालयी क्षेत्र और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों की भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता।
- प्राकृतिक संसाधन: वनों की कटाई का भूस्खलन पर प्रभाव।
संभावित प्रीलिम्स प्रश्न: ‘भूस्खलन के लिए कौन से कारक उत्तरदायी हैं?’ कथन-आधारित प्रश्न के रूप में पूछा जा सकता है, जिसमें वर्षा, भूकंप, वनों की कटाई, और ढलान का कोण जैसे कारक शामिल हों।
3. पर्यावरण (GS-III: Environment):
- पर्यावरणीय क्षरण (Environmental Degradation): वनों की कटाई और अनियोजित विकास का भूस्खलन पर प्रभाव।
- पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: भूस्खलन से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश।
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA): पहाड़ी क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के लिए EIA की आवश्यकता और प्रभावशीलता।
संभावित मेन्स प्रश्न: “पहाड़ी क्षेत्रों में मानवजनित गतिविधियाँ किस प्रकार भूस्खलन के खतरे को बढ़ाती हैं? टिकाऊ विकास के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?”
4. शासन और सार्वजनिक नीति (GS-II: Governance and Public Policy):
- सरकार की भूमिका: राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर शासन की भूमिका।
- नीति निर्माण: आपदा-प्रवण क्षेत्रों के लिए प्रभावी भूमि उपयोग नीति (Land Use Policy), भवन निर्माण नियम (Building Codes) और पर्यावरण नियमों का निर्माण।
- संस्थागत क्षमता: विभिन्न सरकारी एजेंसियों की क्षमता निर्माण और जवाबदेही।
- जवाबदेही: देरी और कुप्रबंधन के लिए कौन जिम्मेदार है, इसका निर्धारण।
संभावित मेन्स प्रश्न: “आपदा प्रबंधन में अंतर-एजेंसी समन्वय की कमी को दूर करने और राहत कार्यों में दक्षता बढ़ाने के लिए सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए?”
5. सामाजिक न्याय (GS-I / GS-II):
- कमजोर वर्गों पर प्रभाव: आपदाएं अक्सर गरीबों और हाशिए पर पड़े समुदायों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं।
- पहुँच की असमानता: सबसे कमजोर लोगों तक सहायता पहुँचाने में आने वाली बाधाएँ।
- पुनर्वास और पुनर्निर्माण: प्रभावित परिवारों का पुनर्वास और आजीविका की बहाली।
संभावित मेन्स प्रश्न: “आपदाओं के संदर्भ में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए सरकार की क्या जिम्मेदारियाँ हैं? धराली त्रासदी के पीड़ितों के लिए न्याय कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है?”
भविष्य की राह: सीख और सुझाव (The Way Forward: Lessons and Suggestions)
धराली त्रासदी जैसी घटनाओं से निपटने और भविष्य में ऐसी त्रासदियों के प्रभाव को कम करने के लिए, निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
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भौगोलिक जानकारी प्रणाली (GIS) और रिमोट सेंसिंग का उपयोग:
- भूस्खलन-संभावित क्षेत्रों की मैपिंग के लिए उन्नत तकनीक का उपयोग।
- ढलान की स्थिरता की नियमित निगरानी।
- वास्तविक समय (real-time) की जानकारी के लिए ड्रोन और उपग्रह इमेजरी का उपयोग।
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मजबूत पूर्व-चेतावनी प्रणाली:
- सेंसर-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की स्थापना।
- स्थानीय समुदायों को इन प्रणालियों के बारे में शिक्षित करना और प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल पर प्रशिक्षित करना।
- मौसम पूर्वानुमान और भूवैज्ञानिक डेटा के आधार पर समय पर अलर्ट जारी करना।
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संसाधन और क्षमता निर्माण:
- NDRF और SDRF के लिए पर्याप्त और आधुनिक उपकरणों की खरीद।
- विशेष रूप से पहाड़ी और दूरस्थ क्षेत्रों में काम करने के लिए बचाव कर्मियों का विशेष प्रशिक्षण।
- स्थानीय समुदायों को प्राथमिक उपचार और बचाव कार्यों का बुनियादी प्रशिक्षण देना।
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योजनाबद्ध शहरीकरण और भूमि उपयोग:
- पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण के लिए कड़े नियम और दिशानिर्देश लागू करना।
- संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध या नियंत्रण।
- भूमि उपयोग की योजना में भूवैज्ञानिक जोखिमों को शामिल करना।
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वनीकरण और पर्यावरण संरक्षण:
- पहाड़ी ढलानों पर वनीकरण और वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।
- वन संरक्षण कानूनों को सख्ती से लागू करना।
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बेहतर समन्वय और संचार:
- सभी संबंधित एजेंसियों के बीच एक मजबूत समन्वय तंत्र स्थापित करना।
- आपदा प्रतिक्रिया के लिए एक एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र।
- जनता के लिए स्पष्ट संचार चैनल स्थापित करना।
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अनुसंधान और विकास:
- भूस्खलन और ढलान विफलता के कारणों और रोकथाम के तरीकों पर शोध को बढ़ावा देना।
- नई और प्रभावी बचाव तकनीकों का विकास।
धराली त्रासदी एक गंभीर अनुस्मारक है कि प्राकृतिक आपदाएँ अप्रत्याशित हो सकती हैं, लेकिन उनकी तैयारियों और प्रतिक्रियाओं की गुणवत्ता हमारे नियंत्रण में होती है। 80 एकड़ के मलबे और 100+ जिंदगियों की पुकार के बीच, हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम इस त्रासदी से सीखें और एक सुरक्षित, अधिक लचीला (resilient) भविष्य बनाने के लिए कार्य करें।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
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प्रश्न: भूस्खलन के लिए निम्नलिखित में से कौन से कारक जिम्मेदार हैं?
1. भारी वर्षा
2. भूकंपीय गतिविधि
3. वनों की कटाई
4. ढलान का कोण
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: भूस्खलन विभिन्न प्राकृतिक और मानवीय कारकों के संयोजन से होते हैं, जिनमें भारी वर्षा, भूकंपीय झटके, ढलान की अस्थिरता (जो ढलान के कोण से प्रभावित होती है), और मानवीय गतिविधियाँ जैसे वनों की कटाई शामिल हैं। -
प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह आपदा प्रबंधन के लिए एक शीर्ष वैधानिक (statutory) निकाय है।
2. इसका पदेन (ex-officio) अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।
3. इसका मुख्य कार्य एक ‘आपदा प्रबंधन ढाँचा’ विकसित करना है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b) केवल 2 और 3
व्याख्या: NDMA एक शीर्ष *नीति-निर्धारक* निकाय है, वैधानिक नहीं (आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित)। इसका पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है और इसका मुख्य कार्य ‘आपदा प्रबंधन ढाँचा’ विकसित करना है। -
प्रश्न: भूस्खलन शमन (mitigation) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा उपाय सबसे प्रभावी माना जाता है?
(a) पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निर्माण को बढ़ावा देना।
(b) अति-संवेदनशील क्षेत्रों में वनों को काटना।
(c) भूवैज्ञानिक रूप से स्थिर ढलानों पर प्रभावी जल निकासी प्रणाली का निर्माण।
(d) ढलानों पर अनियंत्रित खनन गतिविधियों की अनुमति देना।
उत्तर: (c) भूवैज्ञानिक रूप से स्थिर ढलानों पर प्रभावी जल निकासी प्रणाली का निर्माण।
व्याख्या: भूस्खलन को रोकने में प्रभावी जल निकासी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मिट्टी में पानी के जमाव को कम करता है, जिससे स्थिरता बढ़ती है। -
प्रश्न: ‘रिडंडेंसी’ (Redundancy) शब्द आपदा प्रबंधन के किस सिद्धांत से संबंधित है?
(a) पूर्व-चेतावनी प्रणाली
(b) राहत वितरण
(c) संचार और सूचना प्रणाली
(d) खोज और बचाव
उत्तर: (c) संचार और सूचना प्रणाली
व्याख्या: आपदा प्रबंधन में रिडंडेंसी का अर्थ है संचार और सूचना प्रणालियों की एकाधिक परतें या बैकअप होना, ताकि एक प्रणाली के विफल होने पर भी संचार जारी रह सके। -
प्रश्न: भारत में पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलनों के प्रति भेद्यता (vulnerability) को बढ़ाने में निम्नलिखित में से कौन सी मानवीय गतिविधि योगदान नहीं करती है?
(a) ढलानों की कटाई (cutting of slopes)
(b) नदी घाटी में निर्माण
(c) बाँध निर्माण
(d) समोच्च रेखाओं (contour lines) के साथ वृक्षारोपण
उत्तर: (d) समोच्च रेखाओं (contour lines) के साथ वृक्षारोपण
व्याख्या: समोच्च रेखाओं के साथ वृक्षारोपण या वानिकी (afforestation) ढलानों को स्थिर करने और भूस्खलन के खतरे को कम करने में मदद करती है, न कि बढ़ाती है। -
प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित है।
2. इसका प्राथमिक कार्य किसी भी प्रकार की प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान विशिष्ट बचाव कार्यों का संचालन करना है।
3. NDRF बटालियनें राज्य आपदा प्रतिक्रिया बलों (SDRFs) की सहायता के लिए तैनात की जाती हैं।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या: NDRF राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित एक विशिष्ट बचाव बल है और यह SDRFs की सहायता के लिए तैनात किया जाता है। -
प्रश्न: ‘शमन’ (Mitigation) शब्द आपदा प्रबंधन के किस चरण से संबंधित है?
(a) आपदा घटित होने से पूर्व (Before the disaster)
(b) आपदा के दौरान (During the disaster)
(c) आपदा के तत्काल बाद (Immediately after the disaster)
(d) आपदा के पुनर्प्राप्ति चरण में (During the recovery phase)
उत्तर: (a) आपदा घटित होने से पूर्व
व्याख्या: शमन (Mitigation) का अर्थ है आपदाओं के प्रभाव को कम करने या रोकने के लिए उठाए गए उपाय, जो आपदा घटित होने से पहले किए जाते हैं। -
प्रश्न: भारत में, निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भूस्खलन के जोखिम वाले क्षेत्रों के मानचित्रण और अध्ययन के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार है?
(a) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
(b) भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI)
(c) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
(d) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)
उत्तर: (b) भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI)
व्याख्या: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) भारत में भूवैज्ञानिक अध्ययनों, जिसमें भूस्खलन की मैपिंग और जोखिम मूल्यांकन शामिल है, के लिए नोडल एजेंसी है। -
प्रश्न: ‘लचीलापन’ (Resilience) शब्द का आपदा प्रबंधन के संदर्भ में क्या अर्थ है?
(a) किसी आपदा का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार रहना।
(b) आपदा के बाद जल्दी से सामान्य स्थिति में लौटने की क्षमता।
(c) आपदाओं को पूरी तरह से रोकना।
(d) केवल राहत सामग्री का भंडारण करना।
उत्तर: (b) आपदा के बाद जल्दी से सामान्य स्थिति में लौटने की क्षमता।
व्याख्या: लचीलापन (Resilience) किसी समुदाय या प्रणाली की आपदा के प्रभाव को झेलने, अनुकूलित होने और उससे उबरने की क्षमता है। -
प्रश्न: भूस्खलन की घटनाओं को रोकने के लिए ‘काउंटर-ग्रेविटी’ (counter-gravity) तकनीकों में निम्नलिखित में से कौन शामिल है?
1. टेरेस फार्मिंग (Terrace farming)
2. रिटेनिंग वॉल (Retaining walls) का निर्माण
3. पेड़ों की जड़ प्रणाली का विकास
4. ढलानों पर भारी मशीनरी का संचालन
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (c) केवल 1, 2 और 3
व्याख्या: टेरेस फार्मिंग, रिटेनिंग वॉल का निर्माण, और पेड़ों की जड़ प्रणाली का विकास सभी ढलान की स्थिरता में सुधार करते हैं और गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध कार्य करते हैं। ढलानों पर भारी मशीनरी का संचालन अक्सर अस्थिरता बढ़ाता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: “भारत में भूस्खलन, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र में, एक गंभीर और बढ़ती हुई समस्या है। इस घटना के कारणों का विश्लेषण करें और भूस्खलन शमन (mitigation) और प्रबंधन के लिए प्रभावी रणनीतियों का प्रस्ताव दें।” (250 शब्द)
- प्रश्न: “धराली त्रासदी जैसी घटनाएँ भारत में आपदा प्रतिक्रिया प्रणाली में मौजूद कमियों को उजागर करती हैं। प्रारंभिक चेतावनी, खोज और बचाव, और राहत वितरण के संबंध में मौजूदा चुनौतियों पर चर्चा करें और इन प्रणालियों को मजबूत करने के लिए उपायों का सुझाव दें।” (250 शब्द)
- प्रश्न: “पहाड़ी क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। भूस्खलन के बढ़ते जोखिम को देखते हुए, टिकाऊ विकास (sustainable development) को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है? अपने उत्तर में केस स्टडी (जैसे धराली त्रासदी) के निष्कर्षों को शामिल करें।” (150 शब्द)
- प्रश्न: “आपदा प्रबंधन में अंतर-एजेंसी समन्वय (inter-agency coordination) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। धराली त्रासदी जैसी घटनाओं में प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के बीच बेहतर समन्वय के लिए एक रूपरेखा (framework) प्रस्तावित करें।” (150 शब्द)