अमेरिका-भारत व्यापार: 50% शुल्क को मात देने के लिए निर्यातकों की भाग-दौड़
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा कुछ आयातित वस्तुओं पर 50% तक के भारी सीमा शुल्क (tariff) लगाने की घोषणा ने वैश्विक व्यापार परिदृश्य में हलचल मचा दी है। विशेष रूप से, भारतीय निर्यातकों के बीच इसे लेकर एक नई रणनीति देखी जा रही है: अमेरिकी बाजारों में अपने माल की डिलीवरी को तेज करना ताकि बढ़ी हुई शुल्क दरें लागू होने से पहले ही शिपमेंट अमेरिका पहुंच जाएं। यह स्थिति भारत के निर्यात क्षेत्र, द्विपक्षीय व्यापार संबंधों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है, जो इसे UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंध, अर्थव्यवस्था और समसामयिक मामले जैसे विषयों के लिहाज से अत्यंत प्रासंगिक बनाती है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस घटना के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डालेगी, जिसमें सीमा शुल्क क्या होते हैं, ट्रम्प प्रशासन की व्यापार नीतियां, निर्यातकों की प्रतिक्रिया के पीछे की रणनीति, इसके संभावित परिणाम और UPSC परीक्षा के लिए इसकी प्रासंगिकता शामिल है।
सीमा शुल्क (Tariffs) क्या हैं? एक बुनियादी समझ
इससे पहले कि हम इस विशेष घटना में गहराई से उतरें, यह समझना महत्वपूर्ण है कि सीमा शुल्क क्या होते हैं। सरल शब्दों में, सीमा शुल्क एक प्रकार का कर (tax) है जो सरकारें आयातित वस्तुओं पर लगाती हैं। यह विदेशी सामानों को घरेलू बाजार में अधिक महंगा बनाकर घरेलू उद्योगों की सुरक्षा करने, सरकारी राजस्व बढ़ाने या राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने का एक उपकरण हो सकता है।
उपमा: कल्पना कीजिए कि आप एक स्थानीय फल की दुकान से सेब खरीद रहे हैं। यदि सरकार विदेशी सेब पर एक अतिरिक्त शुल्क लगाती है, तो वे सेब अब आपके लिए अधिक महंगे हो जाएंगे। इससे आप संभवतः स्थानीय सेब खरीदने के लिए प्रेरित होंगे, जिससे स्थानीय सेब उत्पादकों को लाभ होगा।
सीमा शुल्क के कई रूप हो सकते हैं:
- विशिष्ट शुल्क (Specific Duties): यह प्रति इकाई (जैसे प्रति किलोग्राम, प्रति लीटर, प्रति पीस) एक निश्चित राशि होती है।
- मूल्य-आधारित शुल्क (Ad Valorem Duties): यह आयातित वस्तु के मूल्य का एक प्रतिशत होता है (जैसे 10% या 50%)। वर्तमान मामले में 50% की बात इसी श्रेणी में आती है।
- मिश्रित शुल्क (Compound Duties): यह विशिष्ट और मूल्य-आधारित शुल्क का संयोजन हो सकता है।
ट्रम्प प्रशासन की व्यापार नीतियां: “अमेरिका फर्स्ट” और टैरिफ का हथियार
डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, “अमेरिका फर्स्ट” (America First) की नीति को प्रमुखता दी गई, जिसका उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों और श्रमिकों की रक्षा करना था। इस नीति के तहत, ट्रम्प प्रशासन ने कई देशों पर, जिनमें भारत भी शामिल है, आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाए। इन टैरिफ को अक्सर व्यापार घाटे को कम करने, अनुचित व्यापार प्रथाओं का मुकाबला करने और अमेरिकी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के एक तरीके के रूप में प्रस्तुत किया गया।
मुख्य विशेषताएं:
- इस्पात और एल्यूमीनियम पर टैरिफ: राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर कई देशों से आयातित इस्पात और एल्यूमीनियम पर टैरिफ लगाए गए।
- चीन के साथ व्यापार युद्ध: चीन से आयातित लाखों डॉलर के सामानों पर भारी टैरिफ लगाए गए, जिससे दोनों देशों के बीच एक पूर्ण व्यापार युद्ध छिड़ गया।
- चुनिंदा देशों पर टैरिफ: अन्य देशों के साथ व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए चुनिंदा वस्तुओं पर टैरिफ लगाए गए।
UPSC प्रासंगिकता: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, भू-राजनीति, आर्थिक कूटनीति, द्विपक्षीय संबंध, व्यापार समझौते (जैसे WTO नियम) और भारत की विदेश नीति को समझने के लिए ट्रम्प प्रशासन की इन नीतियों का अध्ययन महत्वपूर्ण है।
50% ड्यूटी का मामला: निर्यातकों की तत्काल प्रतिक्रिया
जब संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी एक प्रमुख अर्थव्यवस्था किसी भी उत्पाद पर 50% तक का सीमा शुल्क लगाती है, तो इसका सीधा प्रभाव उस देश के निर्यातकों पर पड़ता है जो उन उत्पादों को अमेरिका में बेचते हैं। 50% का आंकड़ा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लागत को लगभग डेढ़ गुना बढ़ा देता है, जिससे वस्तुएं अंतरराष्ट्रीय बाजार में अप्रतिस्पर्धी हो जाती हैं।
उदाहरण: मान लीजिए कि कोई भारतीय निर्यातक अमेरिका को 100 डॉलर मूल्य का उत्पाद बेच रहा था। नई 50% ड्यूटी के साथ, उस उत्पाद पर 50 डॉलर का अतिरिक्त शुल्क लगेगा। अब, अमेरिकी आयातक को उस उत्पाद के लिए 150 डॉलर का भुगतान करना होगा (उत्पाद मूल्य + शुल्क)।
इस भारी लागत वृद्धि से बचने के लिए, निर्यातकों द्वारा अपनाई जा रही “तेजी से शिपमेंट” की रणनीति को “टाइमिंग आर्बिट्रेज” (Timing Arbitrage) या “ड्यूटी-शॉक एवैजन” (Duty-Shock Evasion) के रूप में देखा जा सकता है।
निर्यातकों की भाग-दौड़ के कारण:
- लागत में भारी वृद्धि से बचना: 50% शुल्क लगने के बाद, उत्पाद की कीमत इतनी बढ़ जाएगी कि वह अमेरिकी बाजार में अन्य प्रतिस्पर्धियों (स्थानीय या अन्य देशों से) से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएगा।
- बाजार हिस्सेदारी बनाए रखना: यदि वे बढ़ी हुई लागत का बोझ ग्राहकों पर नहीं डाल सकते, तो उनकी बाजार हिस्सेदारी कम हो जाएगी, और हो सकता है कि वे कभी भी उस खोई हुई हिस्सेदारी को वापस न पा सकें।
- अनुबंधों को पूरा करना: कुछ निर्यातकों के पास पहले से ही अमेरिकी खरीदारों के साथ ऐसे अनुबंध हो सकते हैं जिनकी डिलीवरी नई शुल्क दरें लागू होने से ठीक पहले होनी है।
- अस्थायी लाभ उठाना: यदि शिपमेंट नई शुल्क लागू होने से पहले पहुँच जाता है, तो वे अभी भी पुराने, कम शुल्क दर (या शून्य शुल्क, यदि लागू हो) का लाभ उठा सकते हैं।
रणनीति कैसे काम करती है:
- तत्काल उत्पादन और शिपिंग: निर्यातक अपने उत्पादन को गति देते हैं और माल को बंदरगाहों तक पहुंचाते हैं।
- एयर कार्गो का उपयोग: भले ही समुद्री मार्ग सस्ता हो, समय बचाने के लिए वे महंगे लेकिन तेज एयर कार्गो का सहारा ले सकते हैं।
- शिपिंग लाइनों के साथ समन्वय: वे शिपिंग कंपनियों से आग्रह करते हैं कि जहाजों को प्राथमिकता पर रवाना किया जाए ताकि वे निर्धारित समय सीमा के भीतर अमेरिका पहुंच सकें।
- सीमा शुल्क निकासी में तेजी: अमेरिकी बंदरगाहों पर कस्टम निकासी प्रक्रियाओं को भी तेज करने का प्रयास किया जाता है।
“यह एक दौड़ है – समय के खिलाफ, नियमों के खिलाफ नहीं। यदि माल नियत समय से पहले अमेरिका पहुंच जाता है, तो उसे पुरानी, कम दरों पर मंजूरी मिल जाएगी। यह लाखों डॉलर बचा सकता है।” – एक प्रमुख भारतीय निर्यातक।
भारत-अमेरिका व्यापार संबंध: एक जटिल नृत्य
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाएं हैं, और उनके बीच व्यापार संबंध महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि, यह संबंध हमेशा सुचारू नहीं रहा है। अतीत में, दोनों देशों के बीच कई व्यापारिक विवादों के कारण शुल्क वृद्धि और जवाबी कार्रवाई देखी गई है।
ऐतिहासिक संदर्भ:
- आम की निर्यात नीति: भारत से आम और अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात को लेकर अमेरिकी नियमों में बदलाव विवादित रहा है।
- जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (GSP): अमेरिका ने भारत को दिए जाने वाले तरजीही व्यापार दर्जे (GSP) को समाप्त कर दिया था, जिससे भारतीय निर्यातकों को झटका लगा था।
- डेटा लोकलाइजेशन आवश्यकताएं: भारत की डेटा लोकलाइजेशन की आवश्यकताएं भी अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए चिंता का विषय रही हैं।
वर्तमान स्थिति:
- व्यापार संतुलन: भारत का अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन आम तौर पर सकारात्मक रहा है, जिसका अर्थ है कि भारत अमेरिका को अमेरिका की तुलना में अधिक निर्यात करता है। अमेरिकी प्रशासन अक्सर इस व्यापार घाटे को कम करने पर जोर देता है।
- महत्वपूर्ण निर्यात क्षेत्र: भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों में फार्मास्यूटिकल्स, रत्न और आभूषण, कपड़ा, इंजीनियरिंग सामान और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) सेवाएं शामिल हैं। इन क्षेत्रों में से किसी पर भी भारी टैरिफ का सीधा असर पड़ता है।
- रणनीतिक साझेदारी: इन व्यापारिक मतभेदों के बावजूद, भारत और अमेरिका दोनों एक-दूसरे को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में देखते हैं, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में।
UPSC प्रासंगिकता: अंतर्राष्ट्रीय संबंध, भू-राजनीति, आर्थिक कूटनीति, व्यापार वार्ता, बहुपक्षीय मंच (जैसे WTO), और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भारत-अमेरिका संबंधों का अध्ययन आवश्यक है।
50% ड्यूटी का प्रभाव: एक बहुआयामी विश्लेषण
50% जैसे भारी सीमा शुल्क का प्रभाव केवल निर्यातकों की तत्काल प्रतिक्रिया तक सीमित नहीं है; इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं:
निर्यातकों के लिए प्रभाव:
- बढ़ी हुई परिचालन लागत: यदि निर्यातकों को समय पर शिपमेंट नहीं मिल पाता है, तो उन्हें बढ़ी हुई लागत वहन करनी पड़ सकती है, जिससे उनके लाभ मार्जिन पर गंभीर असर पड़ेगा।
- बाजार में प्रतिष्ठा का नुकसान: समय पर डिलीवरी न कर पाने या कीमतों में भारी वृद्धि के कारण ग्राहक संबंध खराब हो सकते हैं।
- उत्पादन में कमी: अमेरिकी बाजार के बंद होने या कम आकर्षक होने पर, निर्यातकों को अपने उत्पादन को कम करना पड़ सकता है, जिससे छंटनी और आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ सकता है।
- वैकल्पिक बाजारों की तलाश: निर्यातकों को अमेरिका के अलावा अन्य बाजारों में अवसरों की तलाश करनी पड़ सकती है, जो एक लंबी और अनिश्चित प्रक्रिया हो सकती है।
अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों पर प्रभाव:
- बढ़ी हुई कीमतें: जब आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, तो अंतिम उपभोक्ता को भी अधिक कीमत चुकानी पड़ती है।
- घरेलू उद्योगों को लाभ: सिद्धांत रूप में, टैरिफ घरेलू उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा से बचाते हैं, जिससे उन्हें अधिक बाजार हिस्सेदारी मिल सकती है। हालांकि, यदि घरेलू उद्योग मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं या उनकी लागतें अधिक हैं, तो यह हमेशा प्रभावी नहीं होता।
- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान: कुछ अमेरिकी व्यवसाय आयातित घटकों पर निर्भर हो सकते हैं। टैरिफ इन व्यवसायों के लिए भी लागत बढ़ा सकते हैं या उन्हें वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
वैश्विक व्यापार और WTO पर प्रभाव:
- संरक्षणवाद में वृद्धि: एक प्रमुख अर्थव्यवस्था द्वारा इस तरह के टैरिफ वैश्विक स्तर पर संरक्षणवादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे मुक्त व्यापार के सिद्धांत कमजोर पड़ते हैं।
- व्यापार युद्ध का बढ़ना: दूसरे देश जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं, जिससे एक व्यापक व्यापार युद्ध छिड़ सकता है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है।
- WTO की भूमिका: विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे बहुपक्षीय व्यापार निकाय ऐसे टैरिफ को चुनौती देने का मंच प्रदान करते हैं। लेकिन, यदि प्रमुख शक्तियां WTO के नियमों का पालन नहीं करती हैं, तो यह संगठन की प्रासंगिकता को कमजोर कर सकता है।
UPSC प्रासंगिकता: अर्थव्यवस्था (समष्टि अर्थशास्त्र, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, मौद्रिक नीति), भू-राजनीति (वैश्विक शक्तियाँ, गुटबाजी) और शासन (व्यापार नियम, नीतियां) जैसे विषयों के लिए इन प्रभावों का विश्लेषण महत्वपूर्ण है।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह
निर्यातकों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:
- अनिश्चितता: यह अनिश्चितता कि ऐसे टैरिफ कितने समय तक लागू रहेंगे या भविष्य में क्या नीतियां आएंगी, योजना बनाना मुश्किल बनाती है।
- परिवहन लागत और क्षमता: एयर कार्गो या प्राथमिकता शिपिंग की लागत अधिक होती है, और इसकी एक निश्चित क्षमता होती है। सभी निर्यातकों के लिए इस विकल्प का उपयोग करना संभव नहीं है।
- बाजारों का डायवर्सिफिकेशन: अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करना एक दीर्घकालिक रणनीति है, जिसके लिए नए उत्पाद विकास, विपणन और वितरण नेटवर्क के निर्माण की आवश्यकता होती है।
सरकारी भूमिका और आगे की राह:
भारत सरकार के लिए:
- कूटनीतिक प्रयास: अमेरिका के साथ कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी रखना ताकि टैरिफ को कम या समाप्त किया जा सके।
- आयातकों के साथ समन्वय: अमेरिकी आयातकों को स्थिति को समझने और संभावित समाधान खोजने में मदद करना।
- निर्यात प्रोत्साहन: अन्य देशों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सहायता पैकेज या प्रोत्साहन योजनाएं शुरू करना।
- व्यापार समझौतों को मजबूत करना: नए और मजबूत द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौते करना।
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा: “मेक इन इंडिया” जैसी पहलों के माध्यम से घरेलू उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता में सुधार करना ताकि वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकें।
UPSC प्रासंगिकता: सरकारी नीतियां, आर्थिक सुधार, राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और भारत की आर्थिक वृद्धि रणनीतियों को समझने के लिए इन चुनौतियों और समाधानों का अध्ययन आवश्यक है।
निष्कर्ष
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% के भारी सीमा शुल्क के जवाब में भारतीय निर्यातकों द्वारा अमेरिकी शिपमेंट को तेज करने की यह भाग-दौड़, वैश्विक व्यापार की नाजुकता और उसके पीछे की आर्थिक वास्तविकताओं को दर्शाती है। यह घटना न केवल निर्यातकों के लिए एक तात्कालिक चुनौती प्रस्तुत करती है, बल्कि यह भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार संबंधों, संरक्षणवाद के बढ़ते वैश्विक चलन और बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के भविष्य पर भी महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े करती है।
UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐसी घटनाएं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, आर्थिक नीतियों और भू-राजनीतिक शक्तियों के जटिल जाल का एक हिस्सा हैं। इस घटना का विश्लेषण करते समय, केवल सतही समाचारों को देखने के बजाय, इसके मूल कारणों, निर्यातकों की रणनीतियों, संभावित दीर्घकालिक प्रभावों और सरकारी प्रतिक्रियाओं को समझना आवश्यक है। यह व्यापक दृष्टिकोण आपको परीक्षा में पूछे जाने वाले विश्लेषणात्मक प्रश्नों का उत्तर देने में मदद करेगा।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सा सीमा शुल्क (tariff) का एक प्रकार है जिसमें आयातित वस्तु के मूल्य का एक निश्चित प्रतिशत कर के रूप में लगाया जाता है?
(a) विशिष्ट शुल्क (Specific Duty)
(b) मूल्य-आधारित शुल्क (Ad Valorem Duty)
(c) मिश्रित शुल्क (Compound Duty)
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर: (b) मूल्य-आधारित शुल्क (Ad Valorem Duty)
व्याख्या: मूल्य-आधारित शुल्क सीधे तौर पर आयातित वस्तु के मूल्य पर प्रतिशत के रूप में लगाया जाता है, जो कि 50% शुल्क के मामले में लागू होता है। विशिष्ट शुल्क प्रति इकाई पर लगता है, और मिश्रित शुल्क दोनों का संयोजन होता है। - प्रश्न 2: “अमेरिका फर्स्ट” (America First) नीति के संदर्भ में, निम्नलिखित में से किस पर ट्रम्प प्रशासन ने विशेष रूप से टैरिफ लगाए थे?
(a) केवल चीन से आयातित वस्तुएँ
(b) राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर इस्पात और एल्यूमीनियम
(c) यूरोपीय संघ से आयातित कारें
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: ट्रम्प प्रशासन ने चीन पर बड़े पैमाने पर टैरिफ लगाए, राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर इस्पात और एल्यूमीनियम पर भी टैरिफ लगाए, और अन्य देशों से आयातित विभिन्न वस्तुओं, जैसे कारों पर भी शुल्क बढ़ाए। - प्रश्न 3: निर्यातकों द्वारा “तत्काल शिपमेंट” की रणनीति का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) अमेरिकी शिपिंग कंपनियों को लाभ पहुंचाना
(b) नई, उच्च आयात शुल्क दरें लागू होने से पहले माल पहुंचाना
(c) शिपिंग लागत को कम करना
(d) अमेरिकी बंदरगाहों पर भीड़ बढ़ाना
उत्तर: (b) नई, उच्च आयात शुल्क दरें लागू होने से पहले माल पहुंचाना
व्याख्या: इस रणनीति का प्राथमिक लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि माल नई, अधिक महंगी शुल्क दरों के लागू होने से पहले ही अमेरिका में प्रवेश कर जाए, ताकि पुरानी, कम दरों का लाभ मिल सके। - प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों में से एक है जो अमेरिका के साथ व्यापार में महत्वपूर्ण है?
(a) भारी मशीनरी
(b) कच्चा तेल
(c) फार्मास्यूटिकल्स और रत्न एवं आभूषण
(d) कोयला
उत्तर: (c) फार्मास्यूटिकल्स और रत्न एवं आभूषण
व्याख्या: भारत फार्मास्यूटिकल्स, रत्न एवं आभूषण, आईटी सेवाएं, कपड़ा और इंजीनियरिंग सामानों का एक प्रमुख निर्यातक है, जिनका अमेरिका के साथ महत्वपूर्ण व्यापार है। - प्रश्न 5: “टाइमिंग आर्बिट्रेज” (Timing Arbitrage) का अर्थ क्या है, जैसा कि निर्यातकों द्वारा वर्तमान संदर्भ में उपयोग किया गया है?
(a) भविष्य की कीमतों में वृद्धि का अनुमान लगाना
(b) अलग-अलग देशों में अलग-अलग कीमतों का लाभ उठाना
(c) शुल्क या कर में बदलाव से पहले समय का लाभ उठाकर लागत बचाना
(d) किसी विशेष समय पर सर्वोत्तम विनिमय दर का उपयोग करना
उत्तर: (c) शुल्क या कर में बदलाव से पहले समय का लाभ उठाकर लागत बचाना
व्याख्या: टाइमिंग आर्बिट्रेज का तात्पर्य किसी नियम या दर में बदलाव से पहले समय का लाभ उठाकर एक वित्तीय या आर्थिक लाभ प्राप्त करना है, जैसे कि यहां उच्च शुल्क लागू होने से पहले शिपमेंट करना। - प्रश्न 6: विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. WTO सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों का प्रशासन करता है।
2. यह व्यापार विवादों के समाधान के लिए एक मंच प्रदान करता है।
3. WTO सदस्य देशों पर टैरिफ बढ़ाने के लिए बाध्य कर सकता है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a) केवल 1 और 2
व्याख्या: WTO व्यापार नियमों का प्रशासन करता है और विवाद समाधान की सुविधा देता है। हालांकि, WTO सदस्य देशों को सीधे तौर पर टैरिफ बढ़ाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता; यह नियमों का उल्लंघन करने पर प्रतिक्रियाएं सुनिश्चित करता है। - प्रश्न 7: 50% जैसे उच्च सीमा शुल्क का प्राथमिक उद्देश्य क्या होता है?
(a) विदेशी कंपनियों को सीधे सब्सिडी देना
(b) घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना
(c) घरेलू उपभोक्ताओं के लिए कीमतें कम करना
(d) अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अधिक निर्यात को प्रोत्साहित करना
उत्तर: (b) घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना
व्याख्या: उच्च टैरिफ आयातित वस्तुओं को महंगा बनाकर घरेलू उत्पादकों के लिए एक अधिक अनुकूल प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण बनाने के लिए लगाए जाते हैं। - प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा “संरक्षणवाद” (Protectionism) का एक उदाहरण है?
(a) मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements)
(b) आयात पर उच्च टैरिफ लगाना
(c) सीमा पार निवेश को प्रोत्साहित करना
(d) विदेशी बाजारों में निर्यात को बढ़ावा देना
उत्तर: (b) आयात पर उच्च टैरिफ लगाना
व्याख्या: संरक्षणवाद उन नीतियों को संदर्भित करता है जो घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए लागू की जाती हैं, जैसे कि आयात पर टैरिफ या कोटा। - प्रश्न 9: भारत के जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (GSP) की समाप्ति का भारतीय निर्यातकों पर क्या प्रभाव पड़ा?
(a) उनके उत्पादों पर कम शुल्क लगना
(b) अमेरिका में तरजीही बाजार पहुंच खोना
(c) अमेरिकी ग्राहकों द्वारा अधिक मांग
(d) बेहतर व्यापार अवसर
उत्तर: (b) अमेरिका में तरजीही बाजार पहुंच खोना
व्याख्या: GSP से बाहर होने का मतलब है कि भारत को अमेरिका में अपने कुछ निर्यातों पर तरजीही, कम शुल्क दरें नहीं मिलेंगी, जिससे वे कम प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे। - प्रश्न 10: “मेक इन इंडिया” पहल का प्राथमिक लक्ष्य क्या है?
(a) भारत को एक सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था बनाना
(b) भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देना और इसे वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना
(c) केवल विदेशी निवेश को आकर्षित करना
(d) भारत से निर्यात को पूरी तरह से रोकना
उत्तर: (b) भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देना और इसे वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना
व्याख्या: “मेक इन इंडिया” का उद्देश्य विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करना, रोजगार सृजित करना और भारत को एक प्रमुख विनिर्माण हब के रूप में स्थापित करना है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ की बढ़ती प्रवृत्ति का वैश्विक व्यापार व्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? भारत के संदर्भ में इस प्रवृत्ति का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 2: 50% जैसे उच्च सीमा शुल्क आयातकों और निर्यातकों की रणनीतियों को कैसे प्रभावित करते हैं? इस घटना में निर्यातकों द्वारा अपनाई जा रही “तत्काल शिपमेंट” की रणनीति की व्याख्या करें और इसके संभावित दीर्घकालिक परिणामों पर चर्चा करें। (लगभग 150 शब्द)
- प्रश्न 3: संरक्षणवाद (Protectionism) और मुक्त व्यापार (Free Trade) के बीच द्वंद्व को समझाएं। हाल के वर्षों में वैश्विक स्तर पर संरक्षणवाद में वृद्धि के कारणों और भारत जैसे विकासशील देशों पर इसके प्रभावों पर प्रकाश डालें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 4: भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में मौजूद तनावों और सहयोगात्मक क्षेत्रों का विश्लेषण करें। दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन और टैरिफ विवादों को हल करने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए जा सकने वाले नीतिगत कदमों पर चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)