भारत-अमेरिका टैरिफ युद्ध: कूटनीतिक रिश्तों पर छाए संकट के बादल और भारत का अडिग जवाब
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में एक नया मोड़ आया है। अमेरिकी प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) को लेकर चल रहे विवाद के बीच, भारत ने जवाबी कार्रवाई की चेतावनी देते हुए कड़ा रुख अपनाया है। इस स्थिति ने दोनों देशों के बीच वर्षों से पनप रहे रणनीतिक और कूटनीतिक संबंधों पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। यह टैरिफ युद्ध न केवल दो विशाल अर्थव्यवस्थाओं के बीच द्विपक्षीय व्यापार को प्रभावित कर रहा है, बल्कि वैश्विक व्यापार परिदृश्य और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति पर भी दूरगामी प्रभाव डाल सकता है। ऐसे में, यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए इस जटिल मुद्दे की जड़ों, इसके विभिन्न पहलुओं और भविष्य की राह को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
समझने की पहली सीढ़ी: टैरिफ युद्ध क्या है? (The First Step: What is a Tariff War?)
सरल शब्दों में, टैरिफ युद्ध तब शुरू होता है जब एक देश दूसरे देश द्वारा लगाए गए टैरिफ के जवाब में अपने स्वयं के टैरिफ बढ़ाता है। यह एक तरह की आर्थिक “आंख के बदले आंख” वाली स्थिति है। जब कोई देश किसी दूसरे देश से आयात होने वाले सामानों पर अतिरिक्त शुल्क लगाता है, तो उस आयातित सामान की कीमत बढ़ जाती है। इससे उपभोक्ताओं के लिए वह महंगा हो जाता है और उस देश के उत्पादकों के लिए प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाता है।
दूसरे देश के लिए, यह आर्थिक नुकसान का कारण बनता है, जिसके जवाब में वह भी पहले देश के निर्यात पर टैरिफ बढ़ा सकता है। यह चक्र दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि इससे व्यापार कम हो जाता है, व्यवसायों के लिए अनिश्चितता बढ़ती है, और उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों का सामना करना पड़ता है।
एक उपमा: कल्पना कीजिए कि दो पड़ोसी घरों के बीच एक छोटी सी ज़मीन को लेकर विवाद है। एक पड़ोसी अपनी ज़मीन पर बाड़ लगा देता है (यह पहला टैरिफ है)। दूसरा पड़ोसी, चिढ़कर, उस बाड़ पर पत्थर फेंकता है (यह जवाबी टैरिफ है)। इसके जवाब में, पहला पड़ोसी दूसरे के घर के सामने कूड़ा फेंक देता है (एक और टैरिफ)। यह तब तक चलता रहता है जब तक दोनों के घर गंदे और रहने लायक नहीं रह जाते (दोनों अर्थव्यवस्थाएं खराब हो जाती हैं)।
भारत-अमेरिका के बीच टैरिफ तनाव की जड़ें (Roots of India-US Tariff Tension):
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध जटिल रहे हैं, और टैरिफ विवाद कोई नई घटना नहीं है। इस विशिष्ट तनाव के पीछे कई प्रमुख कारण हैं:
- अमेरिकी टैरिफ और “मेड इन अमेरिका” नीति: अमेरिकी राष्ट्रपति की “अमेरिका फर्स्ट” और “मेड इन अमेरिका” जैसी नीतियों ने वैश्विक व्यापार पर एक बड़ा प्रभाव डाला है। इस नीति के तहत, अमेरिकी प्रशासन ने अपनी घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने और व्यापार घाटे को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाए हैं। भारत से कुछ विशेष वस्तुओं, जैसे स्टील और एल्यूमीनियम पर भी अमेरिका ने टैरिफ लगाए थे।
- भारत का व्यापार अधिशेष (Trade Surplus) और बाजार पहुंच: अमेरिका भारत के साथ अपने व्यापार घाटे को लेकर चिंतित रहा है। उनका तर्क है कि भारत में अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार पहुंच (Market Access) सीमित है और भारतीय उत्पादों पर कम टैरिफ लागू होते हैं। वे चाहते हैं कि भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों, विशेष रूप से डेयरी उत्पादों, के लिए अपने बाजार खोले और कुछ ऑटोमोबाइल तथा इलेक्ट्रॉनिक्स पर शुल्क कम करे।
- “जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज” (GSP) का निलंबन: 2019 में, अमेरिका ने भारत को GSP कार्यक्रम से बाहर कर दिया था। GSP एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत विकासशील देशों को कुछ विशेष उत्पादों पर अमेरिका में शुल्क-मुक्त आयात की सुविधा मिलती है। अमेरिका ने इस कदम का कारण बताते हुए कहा कि भारत अमेरिकी उत्पादों को उचित बाजार पहुंच प्रदान नहीं कर रहा है। GSP से बाहर होने से भारत के निर्यात पर $6 बिलियन मूल्य के सामान प्रभावित हुए थे।
- डेटा स्थानीयकरण (Data Localization) की मांग: डिजिटल अर्थव्यवस्था के बढ़ते महत्व के साथ, भारत ने वित्तीय सेवा क्षेत्र में डेटा स्थानीयकरण को अनिवार्य करने की दिशा में कदम उठाए हैं। अमेरिका और अन्य देश इसे अपने व्यवसायों के लिए बाधा मानते हैं, क्योंकि इससे उन्हें स्थानीय सर्वर में अपना डेटा स्टोर करना पड़ता है।
- डिजिटल सेवाओं पर कर (Digital Services Tax – DST): कुछ भारतीय राज्यों ने डिजिटल सेवाओं पर कर लगाने की घोषणा की है। इसे अमेरिकी तकनीकी कंपनियों, जैसे गूगल, फेसबुक और अमेज़ॅन, को लक्षित करने वाले कदम के रूप में देखा गया। अमेरिका का मानना है कि यह उन अमेरिकी कंपनियों के साथ भेदभाव है जो भारत में काम करती हैं।
भारत का कड़ा रुख: क्यों और कैसे? (India’s Firm Stance: Why and How?)
जब अमेरिका ने ऊपर बताए गए कारणों को लेकर टैरिफ या अन्य व्यापार बाधाएं खड़ी कीं, तो भारत ने आसानी से झुकने के बजाय एक मजबूत प्रतिक्रिया दी। भारत के कड़े रुख के पीछे कई रणनीतिक और आर्थिक कारण थे:
- राष्ट्रीय हितों की रक्षा: किसी भी संप्रभु राष्ट्र का यह प्राथमिक कर्तव्य है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों, अपनी अर्थव्यवस्था और अपने उत्पादकों की रक्षा करे। भारत ने महसूस किया कि अमेरिकी कदम अनुचित थे और उन्होंने भारतीय उद्योगों को नुकसान पहुंचाया।
- “डंपिंग” का मुकाबला: कुछ मामलों में, अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ को कुछ देशों द्वारा अपने उत्पादों को सस्ते दामों पर भारत में “डंप” करने से रोकने के उपाय के रूप में भी देखा गया।
- WTO के नियमों का पालन: भारत ने तर्क दिया कि अमेरिकी कदम विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के अनुरूप नहीं थे। जवाबी कार्रवाई को अक्सर WTO के नियमों के तहत अनुमन्य माना जाता है, खासकर जब किसी देश को अनुचित व्यापार प्रथाओं का सामना करना पड़ता है।
- बहुपक्षवाद का समर्थन: भारत ने हमेशा बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली और WTO की भूमिका का समर्थन किया है। अमेरिकी एकतरफा कार्रवाई की प्रवृत्ति के जवाब में, भारत ने अपनी स्थिति को स्पष्ट रूप से सामने रखा।
- आत्मनिर्भर भारत की भावना: आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत, भारत घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने पर जोर दे रहा है। ऐसे में, विदेशी दबाव के आगे झुकना इस लक्ष्य के विपरीत होता।
भारत की प्रतिक्रियाओं में शामिल थे:
“हमने अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के जवाब में भारत में आयात होने वाले कुछ अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लागू किए। यह हमारी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक आवश्यक कदम था।”
यह सिर्फ टैरिफ तक सीमित नहीं था। भारत ने GSP निलंबन के जवाब में भी जवाबी टैरिफ लगाने पर विचार किया था, हालांकि अंततः उस पर अमल नहीं हुआ। साथ ही, भारत ने डिजिटल सेवाओं पर कर और डेटा स्थानीयकरण जैसे मुद्दों पर अपनी नीतियों को मजबूती से बनाए रखा।
कूटनीतिक रिश्तों पर मंडराता खतरा (Threat to Diplomatic Relations):
यह व्यापार युद्ध केवल आर्थिक आंकड़ों तक सीमित नहीं है। भारत और अमेरिका के संबंध सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता, और वैश्विक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मिलकर काम करते हैं। ऐसे में, व्यापारिक विवादों का कूटनीतिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
संभावित नकारात्मक प्रभाव:
- विश्वास में कमी: बार-बार के व्यापारिक मतभेद दोनों देशों के बीच विश्वास को कम कर सकते हैं, जिससे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग करना मुश्किल हो सकता है।
- रणनीतिक समन्वय में बाधा: जब आर्थिक संबंध तनावपूर्ण होते हैं, तो यह रक्षा, विदेश नीति और अन्य सामरिक क्षेत्रों में सहयोग को भी प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए, क्षेत्रीय सुरक्षा पर चर्चा करते समय, व्यापारिक मुद्दे पृष्ठभूमि में बने रह सकते हैं।
- अन्य देशों पर प्रभाव: भारत और अमेरिका दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। उनके बीच व्यापार युद्ध अन्य देशों को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है और अनिश्चितता बढ़ सकती है।
- बहुपक्षीय संस्थानों का कमजोर होना: यदि बड़े देश WTO जैसे संस्थानों के नियमों का पालन करने के बजाय एकतरफा कार्रवाई करते हैं, तो ये संस्थान कमजोर पड़ते हैं, जो वैश्विक व्यवस्था के लिए हानिकारक है।
ट्रेड वॉर के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of the Trade War):
किसी भी युद्ध की तरह, इस टैरिफ युद्ध के भी फायदे और नुकसान हैं, हालांकि नुकसान अक्सर फायदे से ज्यादा होते हैं:
फायदे (Pros):
- घरेलू उद्योगों को सुरक्षा: टैरिफ बढ़ने से आयातित सामान महंगे हो जाते हैं, जिससे घरेलू उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा में फायदा मिल सकता है।
- व्यापार घाटे में कमी (संभावित): यदि आयात कम हो जाते हैं, तो कुछ हद तक व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिल सकती है (हालांकि यह हमेशा प्रभावी नहीं होता)।
- राष्ट्रीय हितों पर जोर: यह दर्शाता है कि देश अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
नुकसान (Cons):
- बढ़ी हुई कीमतें: उपभोक्ताओं को आयातित सामानों के लिए अधिक भुगतान करना पड़ता है।
- कम प्रतिस्पर्धा और नवाचार: घरेलू उद्योगों को बाहरी प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता, जिससे नवाचार और दक्षता में कमी आ सकती है।
- निर्यात पर असर: जवाबी टैरिफ के कारण निर्यातकों को नुकसान उठाना पड़ता है।
- आर्थिक अनिश्चितता: व्यवसायों के लिए योजना बनाना मुश्किल हो जाता है, जिससे निवेश प्रभावित होता है।
- कूटनीतिक तनाव: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में खटास आ जाती है।
- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हो सकती हैं।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam):
यह मुद्दा यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:
- प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, टैरिफ, गैर-टैरिफ बाधाएं।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) और इसके नियम।
- भारत की विदेश व्यापार नीति।
- “अमेरिका फर्स्ट” जैसी वैश्विक व्यापारिक प्रवृत्तियाँ।
- GSP (Generalized System of Preferences) जैसी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाएँ।
- डेटा स्थानीयकरण और डिजिटल सेवाओं पर कर जैसे उभरते मुद्दे।
- मुख्य परीक्षा (Mains):
- GS-II (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): भारत-अमेरिका संबंध, द्विपक्षीय वार्ता, कूटनीति, वैश्विक संगठन।
- GS-III (अर्थव्यवस्था): भारतीय अर्थव्यवस्था पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रभाव, व्यापार घाटा, टैरिफ नीति, आत्मनिर्भर भारत, FDI, वैश्विक व्यापार के रुझान।
- GS-IV (निबंध/केस स्टडी): ऐसे मुद्दों पर विश्लेषणात्मक निबंध लिखे जा सकते हैं, जिसमें राष्ट्रीय हितों और कूटनीतिक संबंधों के बीच संतुलन बनाना एक महत्वपूर्ण विषय हो सकता है।
यह मुद्दा ‘भारत की विदेश नीति’ और ‘अंतर्राष्ट्रीय संगठन’ के सिलेबस को सीधे तौर पर कवर करता है, साथ ही ‘भारतीय अर्थव्यवस्था’ के हिस्से में भी इसकी गहरी प्रासंगिकता है।
आगे की राह: समाधान के विकल्प (The Way Forward: Options for Resolution):
इस टैरिफ युद्ध को सुलझाने और कूटनीतिक संबंधों को पटरी पर लाने के लिए दोनों देशों को सक्रिय रूप से काम करना होगा। कुछ संभावित समाधान:
- जारी वार्ता और संवाद: दोनों देशों के व्यापार मंत्रियों और अधिकारियों को नियमित रूप से बातचीत करनी चाहिए ताकि गलतफहमियों को दूर किया जा सके और साझा आधार खोजा जा सके।
- WTO का सहारा: यदि कोई देश WTO के नियमों का उल्लंघन कर रहा है, तो पीड़ित देश WTO के विवाद समाधान तंत्र का उपयोग कर सकता है।
- द्विपक्षीय व्यापार समझौते: समय के साथ, एक व्यापक द्विपक्षीय व्यापार समझौता (FTA) दोनों देशों के बीच व्यापार के नियमों और शर्तों को स्पष्ट कर सकता है।
- समझौते पर पहुंचना: भारत और अमेरिका को उन क्षेत्रों में रियायतें देनी पड़ सकती हैं जहाँ वे असहमत हैं, जैसे बाजार पहुंच या कुछ विशिष्ट उत्पाद।
- पारदर्शिता और पूर्वानुमान: दोनों सरकारों को अपनी व्यापार नीतियों में अधिक पारदर्शिता लानी चाहिए ताकि व्यवसायों को अनिश्चितता का सामना न करना पड़े।
- डिजिटल व्यापार पर नियम: वैश्विक स्तर पर डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए स्पष्ट नियम और मानक विकसित करने की आवश्यकता है, जिसमें डेटा प्रवाह और डिजिटल सेवाओं पर कर जैसे मुद्दे शामिल हों।
“कूटनीति का अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी मांगों को छोड़ दें, बल्कि यह है कि हम उन मांगों को इस तरह से प्रस्तुत करें कि दूसरा पक्ष भी उन्हें समझे और स्वीकार कर सके। व्यापार युद्ध एक ऐसी स्थिति है जहाँ दोनों पक्षों को कुछ खोना पड़ता है।”
निष्कर्ष (Conclusion):
भारत-अमेरिका टैरिफ युद्ध एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है जिसके गहरे आर्थिक और कूटनीतिक निहितार्थ हैं। जहाँ भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए अडिग रुख अपनाए हुए है, वहीं अमेरिका भी अपनी व्यापारिक नीतियों को प्राथमिकता दे रहा है। इस स्थिति का अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों देश कितनी प्रभावी ढंग से कूटनीति और बातचीत के माध्यम से अपने मतभेदों को सुलझा पाते हैं। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए, यह न केवल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे आर्थिक हित और कूटनीतिक संबंध आपस में गुंथे हुए हैं, और कैसे एक राष्ट्र को अपने हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक व्यवस्था में अपनी भूमिका निभानी होती है। भविष्य में, ऐसे मुद्दों के समाधान के लिए न केवल द्विपक्षीय प्रयास, बल्कि बहुपक्षीय संस्थानों को मजबूत करने की आवश्यकता भी होगी।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. टैरिफ युद्ध तब शुरू होता है जब एक देश दूसरे देश के टैरिफ के जवाब में अपने टैरिफ बढ़ाता है।
2. टैरिफ हमेशा उपभोक्ता कीमतों को कम करते हैं।
3. WTO (विश्व व्यापार संगठन) टैरिफ युद्धों को सुलझाने में भूमिका निभाता है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 सत्य है। कथन 2 असत्य है, क्योंकि टैरिफ आमतौर पर उपभोक्ता कीमतों को बढ़ाते हैं। कथन 3 सत्य है, क्योंकि WTO विवाद समाधान तंत्र प्रदान करता है। - प्रश्न: GSP (Generalized System of Preferences) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौता है जो कुछ विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को तरजीही शुल्क प्रदान करता है।
2. भारत को अमेरिका द्वारा GSP कार्यक्रम से बाहर कर दिया गया था।
3. GSP से बाहर होने से भारत के निर्यात पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद थी।
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2
(d) केवल 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 सत्य है। कथन 2 सत्य है, जैसा कि समाचार में बताया गया है। कथन 3 असत्य है, क्योंकि GSP से बाहर होने से निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। - प्रश्न: हाल के भारत-अमेरिका व्यापार तनाव के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा मुद्दा अमेरिका द्वारा उठाया गया एक प्रमुख कारण नहीं था?
(a) भारत में अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए बाजार पहुंच।
(b) भारत का व्यापार अधिशेष।
(c) भारतीय आईटी कंपनियों द्वारा अमेरिकी सर्वरों का उपयोग।
(d) कुछ भारतीय राज्यों द्वारा डिजिटल सेवाओं पर कर।
उत्तर: (c)
व्याख्या: भारतीय आईटी कंपनियों द्वारा अमेरिकी सर्वरों का उपयोग सीधे तौर पर प्रमुख व्यापारिक तर्कों में से एक नहीं रहा है, जबकि अन्य सभी अमेरिका द्वारा उठाए गए मुद्दे रहे हैं। - प्रश्न: “आत्मनिर्भर भारत” अभियान का संबंध निम्नलिखित में से किससे है?
(a) केवल रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देना।
(b) घरेलू विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना।
(c) केवल विदेशी निवेश को आकर्षित करना।
(d) भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: आत्मनिर्भर भारत का उद्देश्य समग्र रूप से घरेलू विनिर्माण, नवाचार और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना है। - प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में “बाजार पहुंच” (Market Access) से क्या तात्पर्य है?
(a) किसी देश की सीमा पर मुक्त आवागमन।
(b) एक देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी सामानों और सेवाओं के प्रवेश की आसानी।
(c) केवल पर्यटन को बढ़ावा देना।
(d) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय दरें।
उत्तर: (b)
व्याख्या: बाजार पहुंच का मतलब है कि विदेशी कंपनियों के लिए किसी देश के बाजार में अपने उत्पाद और सेवाएं बेचना कितना आसान है, जिसमें टैरिफ, गैर-टैरिफ बाधाएं और नियम शामिल होते हैं। - प्रश्न: WTO (विश्व व्यापार संगठन) के किस अंग का कार्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के उल्लंघन से संबंधित विवादों का समाधान करना है?
(a) व्यापार संवर्धन परिषद (Trade Promotion Council)
(b) विवाद निपटान निकाय (Dispute Settlement Body – DSB)
(c) व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD)
(d) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
उत्तर: (b)
व्याख्या: WTO का विवाद निपटान निकाय (DSB) सदस्य देशों के बीच व्यापार विवादों को हल करने के लिए जिम्मेदार है। - प्रश्न: “डंपिंग” (Dumping) शब्द का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में तब किया जाता है जब कोई देश:
(a) किसी उत्पाद को अपने घरेलू बाजार से बहुत कम कीमत पर दूसरे देशों को निर्यात करता है।
(b) अपने घरेलू बाजार में उत्पाद की कीमत बढ़ाता है।
(c) अन्य देशों से अपने बाजार में आयात पर प्रतिबंध लगाता है।
(d) व्यापार के लिए नई प्रौद्योगिकियों का विकास करता है।
उत्तर: (a)
व्याख्या: डंपिंग एक अनुचित व्यापार प्रथा है जहाँ एक कंपनी या देश अपने उत्पादों को विदेशी बाजारों में उत्पादन लागत या घरेलू कीमत से कम कीमत पर बेचता है। - प्रश्न: भारत-अमेरिका के बीच कूटनीतिक तनाव के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा क्षेत्रीय/वैश्विक मुद्दा दोनों देशों के लिए साझा हित का हो सकता है?
(a) परमाणु ऊर्जा का प्रसार।
(b) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा।
(c) आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर: (d)
व्याख्या: भारत और अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा, आतंकवाद से लड़ने और परमाणु प्रसार को रोकने जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर मिलकर काम करते हैं। - प्रश्न: भारत सरकार ने अपने घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए किस प्रकार की नीतियों को अपनाया है?
1. उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ।
2. “मेक इन इंडिया” पहल।
3. कुछ आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: PLI योजनाएं, मेक इन इंडिया पहल और आयात पर टैरिफ बढ़ाना – ये सभी घरेलू विनिर्माण और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीतियाँ हैं। - प्रश्न: निम्नलिखित कथनों में से कौन सा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में “गैर-टैरिफ बाधाओं” (Non-Tariff Barriers – NTBs) का एक उदाहरण है?
(a) आयात पर लगाए गए प्रतिशत-आधारित शुल्क।
(b) कोटा (निर्यात या आयात की मात्रा पर सीमा)।
(c) निर्यात सब्सिडी।
(d) सीमा शुल्क।
उत्तर: (b)
व्याख्या: गैर-टैरिफ बाधाओं में कोटा, आयात लाइसेंस, गुणवत्ता मानक, स्वास्थ्य और सुरक्षा नियम आदि शामिल होते हैं, जो टैरिफ के अलावा व्यापार को बाधित करते हैं। सीमा शुल्क (tariff) एक टैरिफ बाधा है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों में हाल के वर्षों में उत्पन्न टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं का विश्लेषण करें। राष्ट्रीय हितों की रक्षा और कूटनीतिक संबंधों को बनाए रखने के बीच भारत द्वारा अपनाए गए संतुलित दृष्टिकोण की विवेचना करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 2: “अमेरिका फर्स्ट” जैसी संरक्षणवादी व्यापार नीतियों का वैश्विक व्यापार व्यवस्था और बहुपक्षीय संस्थानों, जैसे WTO, पर क्या प्रभाव पड़ता है? भारत जैसे देशों के लिए इन नीतियों से निपटना क्यों महत्वपूर्ण है, और इसके लिए क्या रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं? (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 3: भारत-अमेरिका के बीच बढ़ते व्यापारिक तनावों के मद्देनजर, दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी के भविष्य पर प्रकाश डालें। क्या आर्थिक मतभेद द्विपक्षीय कूटनीतिक और सामरिक सहयोग को गंभीर रूप से बाधित कर सकते हैं? अपने उत्तर का समर्थन साक्ष्य के साथ करें। (लगभग 150 शब्द)
- प्रश्न 4: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर टैरिफ युद्धों के प्रभाव का वर्णन करें। भारत की “आत्मनिर्भर भारत” पहल को देखते हुए, ऐसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार तनावों से कैसे लाभ उठाया जा सकता है या उनसे कैसे निपटा जा सकता है? (लगभग 150 शब्द)