ट्रम्प के रूस टैरिफ: क्या यह चीन को फिर से महान बना देगा और भारत को निशाना बनाएगा?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल के दिनों में, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा रूस पर लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) का अप्रत्याशित प्रभाव केवल रूस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम वैश्विक अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से चीन और भारत जैसे देशों पर पड़ सकते हैं। यह नीतिगत कदम न केवल व्यापारिक संबंधों को जटिल बना रहा है, बल्कि भू-राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर रहा है। इस लेख में, हम इस जटिल मुद्दे का गहराई से विश्लेषण करेंगे, यह समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे रूस पर अमेरिकी टैरिफ चीन को लाभान्वित कर सकते हैं और भारत के लिए क्या निहितार्थ हैं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और भू-राजनीति अक्सर एक-दूसरे से गहराई से जुड़े होते हैं। जब एक प्रमुख अर्थव्यवस्था, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका, व्यापार नीतियां बदलती है, तो इसका प्रभाव वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, व्यापार घाटे और विभिन्न देशों के बीच शक्ति संतुलन को फिर से व्यवस्थित कर सकता है। डोनाल्ड ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत, टैरिफ को अक्सर एक प्रमुख हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जिसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों की रक्षा करना और व्यापार घाटे को कम करना है। हालाँकि, जब ये टैरिफ अन्य देशों के खिलाफ निर्देशित होते हैं, तो उनके अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं, जिससे अप्रत्याशित विजेता और हारने वाले सामने आते हैं।
ट्रम्प की व्यापार रणनीति: एक अवलोकन (Trump’s Trade Strategy: An Overview)
डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति कार्यकाल की सबसे परिभाषित विशेषताओं में से एक उनकी मुखर व्यापारिक नीतियां रही हैं। उन्होंने अक्सर वैश्विक व्यापार समझौतों को अमेरिका के लिए अनुचित बताया है और द्विपक्षीय व्यापार को प्राथमिकता दी है। रूस पर लगाए गए टैरिफ, चाहे वे राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं, राजनीतिक हस्तक्षेप के जवाब में, या अन्य विशिष्ट कारणों से हों, इस व्यापक रणनीति का ही एक हिस्सा हैं। इन टैरिफ का प्राथमिक उद्देश्य रूस को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाना और उसके व्यवहार को बदलना हो सकता है।
हालांकि, किसी देश पर लगाए गए टैरिफ का सीधा प्रभाव उस देश तक ही सीमित नहीं रहता। यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के माध्यम से अन्य देशों में भी फैल सकता है। उदाहरण के लिए:
- कच्चे माल की आपूर्ति: यदि रूस कच्चे माल या मध्यवर्ती वस्तुओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, तो उस पर टैरिफ लगाने से उन देशों पर असर पड़ सकता है जो इन सामग्रियों पर निर्भर हैं।
- निर्यात बाजार: यदि रूस अमेरिकी उत्पादों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्यात बाजार है, तो टैरिफ अमेरिकी निर्यातकों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे वे वैकल्पिक बाजारों की तलाश करेंगे।
- वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता: जब किसी देश पर टैरिफ लगाया जाता है, तो अन्य देश उस कमी को पूरा करने के लिए एक अवसर देख सकते हैं, जिससे व्यापार पैटर्न में बदलाव आता है।
रूस पर टैरिफ का चीन पर संभावित प्रभाव (Potential Impact of Tariffs on Russia on China)
यह समझना महत्वपूर्ण है कि “रूस पर टैरिफ” का शीर्षक थोड़ा भ्रामक हो सकता है। आमतौर पर, टैरिफ उस देश द्वारा लगाए जाते हैं जो आयात कर रहा होता है, न कि उस देश पर जिससे आयात हो रहा हो। यहाँ, “रूस पर टैरिफ” से तात्पर्य अमेरिकी नीति से हो सकता है जो रूस से आयात को लक्षित करती है, या यह रूस की निर्यात राजस्व को कम करने के लिए अप्रत्यक्ष तरीकों का संकेत दे सकता है। यदि हम यह मान लें कि अमेरिकी नीति रूस के निर्यात को बाधित करने पर केंद्रित है, तो चीन के लिए अवसर कैसे पैदा हो सकते हैं, यह देखें:
1. ऊर्जा बाजारों में बदलाव (Shift in Energy Markets):
रूस ऊर्जा, विशेष रूप से तेल और गैस का एक प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता है। यदि अमेरिकी टैरिफ रूस की ऊर्जा निर्यात क्षमता को सीमित करते हैं या रूस के लिए ऊर्जा की बिक्री को कम लाभदायक बनाते हैं, तो रूस को वैकल्पिक खरीदारों की तलाश करनी होगी। ऐसे में, चीन, जो ऊर्जा का एक बड़ा आयातक है, रूस से अधिक मात्रा में ऊर्जा खरीद सकता है, संभवतः रियायती दरों पर।
“यह एक क्लासिक ‘विन-विन’ या ‘लूज-लूज’ परिदृश्य हो सकता है, जहां अमेरिका रूस को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, लेकिन अप्रत्याशित रूप से चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी को लाभ पहुंचा देता है।”
2. धातु और खनिज आपूर्ति (Metal and Mineral Supply):
रूस विभिन्न प्रकार की धातुओं और खनिजों का भी एक महत्वपूर्ण उत्पादक है, जैसे निकेल, पैलेडियम और एल्यूमीनियम। यदि इन वस्तुओं के अमेरिकी आयात पर टैरिफ लगाए जाते हैं, या यदि रूस के उत्पादन और निर्यात में बाधा आती है, तो चीन, जो इन सामग्रियों का एक प्रमुख उपभोक्ता और प्रोसेसर है, आपूर्ति के नए स्रोतों की तलाश करेगा। चीन रूस से इन वस्तुओं को अधिक मात्रा में खरीद सकता है, जिससे उसकी अपनी औद्योगिक आपूर्ति श्रृंखलाएं मजबूत होंगी।
3. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्गठन (Restructuring of Global Supply Chains):
जब किसी विशेष देश पर व्यापार प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो वैश्विक कंपनियां वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाओं की तलाश करती हैं। यदि रूस के साथ व्यापार करना अधिक कठिन हो जाता है, तो चीनी कंपनियां उन बाजारों में प्रवेश कर सकती हैं जहां रूस पहले अपनी सेवाएं प्रदान कर रहा था। यह चीन को वैश्विक विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर दे सकता है।
4. चीनी निर्यात के लिए खुला बाजार (Open Market for Chinese Exports):
यदि रूस को अपने निर्यात आय में कमी का सामना करना पड़ता है, तो उसे अपनी अर्थव्यवस्था को संतुलित करने के लिए अन्य स्रोतों से राजस्व उत्पन्न करने की आवश्यकता होगी। साथ ही, यदि अमेरिका रूस से कुछ वस्तुओं का आयात कम कर देता है, तो रूस चीनी सामानों या अन्य देशों के सामानों की ओर मुड़ सकता है। यह चीन के लिए रूस के बाजार में अपनी निर्यात हिस्सेदारी बढ़ाने का एक अवसर हो सकता है।
भारत के लिए निहितार्थ: एक दोधारी तलवार (Implications for India: A Double-Edged Sword)
रूस पर अमेरिकी टैरिफ का भारत पर प्रभाव मिश्रित हो सकता है, जो कई कारकों पर निर्भर करेगा:
1. ऊर्जा आयात पर प्रभाव (Impact on Energy Imports):
भारत ऊर्जा का एक बड़ा आयातक है और अपनी तेल और गैस की जरूरतों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। यदि रूस अमेरिकी टैरिफ के कारण अपने ऊर्जा निर्यात को चीन जैसे देशों की ओर मोड़ता है, तो इससे वैश्विक ऊर्जा की कीमतें बढ़ सकती हैं। यदि भारत को रूस से ऊर्जा खरीदनी पड़ती है, तो उसे बढ़ती कीमतों का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी ओर, यदि रूस को अतिरिक्त आपूर्ति बेचने में कठिनाई होती है, तो वह भारत को रियायती दरों पर ऊर्जा पेश कर सकता है, जो भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है।
“यह भू-राजनीतिक शतरंज का एक खेल है, जहाँ हर चाल के अपने अप्रत्याशित परिणाम होते हैं, और भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए सावधानी से चलना होगा।”
2. रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग (Defense and Technology Cooperation):
रूस भारत का एक प्रमुख रक्षा भागीदार रहा है। भारत रूस से महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी खरीदता है। यदि रूस पर अमेरिकी टैरिफ या अन्य प्रतिबंध लगते हैं, तो इससे भारत के रूस के साथ रक्षा सौदों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है। यह रूस की उन परियोजनाओं को पूरा करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है जो भारत के साथ चल रही हैं, या रूस को नए सौदों पर बातचीत करने में झिझक पैदा कर सकता है। दूसरी ओर, अमेरिकी प्रतिबंध रूस को अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए भारत जैसे भागीदारों पर अधिक निर्भर बना सकते हैं।
3. व्यापार घाटा और प्रतिस्पर्धा (Trade Deficit and Competition):
यदि चीन रूस से सस्ती ऊर्जा और धातुओं की खरीद कर अपनी उत्पादन लागत कम करता है, तो इससे चीनी उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ सकती है। यह भारत के लिए एक चुनौती पेश कर सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां भारत और चीन दोनों एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, जैसे कि विनिर्माण और वस्त्र। भारत को अपनी निर्यात रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
4. रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध (Bilateral Relations with Russia):
भारत का रूस के साथ एक मजबूत रणनीतिक संबंध है, और यह संबंध अक्सर पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंधों से स्वतंत्र रहा है। रूस पर अमेरिकी टैरिफ को लेकर भारत को एक नाजुक संतुलन बनाना होगा। उसे अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना होगा, साथ ही अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को भी नहीं बिगाड़ना होगा।
क्यों यह “चीन को महान बना सकता है”? (Why It “Could Make China Great Again”?)
यहाँ “चीन को महान बना सकता है” का तात्पर्य अमेरिका की “अमेरिका फर्स्ट” की तर्ज पर चीन के अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने से है।
- संसाधनों तक पहुँच: रूस पर अमेरिकी दबाव चीन को रूस से रियायती दरों पर महत्वपूर्ण संसाधन (ऊर्जा, धातु) प्राप्त करने का अवसर दे सकता है। यह चीन की विशाल औद्योगिक मशीनरी को ईंधन देगा और उसकी उत्पादन लागत को कम रखेगा।
- भू-राजनीतिक लाभ: यदि अमेरिका रूस को अलग-थलग करने में सफल होता है, तो यह चीन को मध्य एशिया और यूरेशियाई क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर दे सकता है। रूस, आर्थिक दबाव में, चीन पर अधिक निर्भर हो सकता है, जिससे चीन को महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक लाभ मिल सकता है।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर नियंत्रण: यदि वैश्विक कंपनियां रूस से आपूर्ति को वैकल्पिक स्रोतों की ओर मोड़ती हैं, और वे स्रोत चीन में स्थित हैं, तो यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर चीन के नियंत्रण को और मजबूत करेगा।
- प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि: जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यदि चीन को सस्ते संसाधन मिलते हैं, तो उसके उत्पाद वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे, जिससे वह अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाएगा।
चुनौतियाँ और संभावित प्रतिक्रियाएँ (Challenges and Potential Responses)
यह स्थिति भारत और चीन दोनों के लिए कई चुनौतियाँ पेश करती है:
भारत के लिए चुनौतियाँ:
- ऊर्जा सुरक्षा: बढ़ती ऊर्जा कीमतें भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ सकती हैं, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और व्यापार घाटा बढ़ सकता है।
- रणनीतिक स्वायत्तता: भारत को अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते तनाव के बीच अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए एक नाजुक संतुलन बनाना होगा।
- प्रतिस्पर्धा: चीन की बढ़ती प्रतिस्पर्धात्मकता के सामने, भारत को अपनी निर्यात रणनीतियों और औद्योगिक नीतियों में सुधार करना होगा।
चीन के लिए चुनौतियाँ:
- अमेरिकी प्रतिशोध: यदि चीन अमेरिकी टैरिफ को दरकिनार करने या रूस से लाभ उठाने की कोशिश करता है, तो उसे अमेरिकी प्रतिशोध का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें उस पर नए टैरिफ लगाना या अन्य प्रतिबंध लगाना शामिल हो सकता है।
- रूस पर अत्यधिक निर्भरता: रूस पर बहुत अधिक निर्भरता चीन के लिए एक जोखिम हो सकती है, खासकर यदि रूस स्वयं आर्थिक अस्थिरता का सामना करता है।
- वैश्विक प्रतिक्रिया: चीन की बढ़ती शक्ति और रूस के साथ घनिष्ठ संबंध पश्चिमी देशों के बीच चिंता पैदा कर सकते हैं, जिससे चीन के लिए अंतरराष्ट्रीय संबंध जटिल हो सकते हैं।
भारत की संभावित प्रतिक्रियाएँ:
- आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण: भारत को अपनी ऊर्जा और अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए आपूर्ति स्रोतों में विविधता लानी चाहिए ताकि किसी एक देश पर निर्भरता कम हो।
- द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना: भारत को रूस के साथ अपने रक्षा और ऊर्जा संबंधों को बनाए रखते हुए, अमेरिकी चिंताओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
- आत्मनिर्भरता पर ध्यान: घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता को मजबूत करना भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में उतार-चढ़ाव से बचाने में मदद कर सकता है।
- रणनीतिक कूटनीति: भारत को सभी प्रमुख वैश्विक खिलाड़ियों के साथ सक्रिय कूटनीति में संलग्न होना चाहिए ताकि अपनी स्थिति स्पष्ट की जा सके और अपने हितों की रक्षा की जा सके।
निष्कर्ष (Conclusion)
डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा रूस पर लगाए गए टैरिफ (या ऐसे ही अन्य प्रतिबंध) अंतरराष्ट्रीय व्यापार और भू-राजनीति के जटिल जाल में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। वे दिखाते हैं कि कैसे एक देश की नीतियां अप्रत्याशित रूप से अन्य देशों को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे अप्रत्याशित विजेता और हारने वाले सामने आते हैं। इस विशिष्ट मामले में, यह संभव है कि चीन रूस से रियायती संसाधनों तक पहुंच प्राप्त करके, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी स्थिति मजबूत करके, और भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ाकर “फिर से महान” बन जाए।
भारत के लिए, यह स्थिति अवसरों और चुनौतियों का एक मिश्रण प्रस्तुत करती है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने, अपनी रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने और अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए मजबूत बनाने के लिए सावधानीपूर्वक नेविगेट करना होगा। यह समय है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करे, अपने आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाए और एक बहुध्रुवीय विश्व में अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक सक्रिय कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाए। अंतर्राष्ट्रीय संबंध हमेशा गतिशील होते हैं, और इस तरह की घटनाएं यह सुनिश्चित करती हैं कि हमें लगातार विश्लेषण और अनुकूलन की आवश्यकता है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में “टैरिफ” (Tariff) से क्या तात्पर्य है?
(a) किसी देश द्वारा अपने घरेलू उद्योगों को दी जाने वाली सब्सिडी।
(b) विदेशी वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर या शुल्क, जो आयात को महंगा बनाता है।
(c) दो देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता।
(d) किसी देश की मुद्रा का अवमूल्यन।
उत्तर: (b)
व्याख्या: टैरिफ एक प्रकार का कर है जो सरकार द्वारा आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना और सरकारी राजस्व बढ़ाना होता है। - प्रश्न: भू-राजनीतिक संदर्भ में, “आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्गठन” (Restructuring of Supply Chains) का क्या अर्थ हो सकता है?
(a) किसी देश के आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देना।
(b) वैश्विक विनिर्माण और वितरण नेटवर्क में बदलाव, अक्सर राजनीतिक या आर्थिक कारणों से।
(c) घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए आयात पर प्रतिबंध लगाना।
(d) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में नवाचार को प्रोत्साहित करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्गठन तब होता है जब कंपनियां या देश अपनी उत्पादन, sourcing और वितरण प्रक्रियाओं को बदलते हैं, अक्सर भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार युद्धों या अन्य वैश्विक घटनाओं के जवाब में। - प्रश्न: यदि अमेरिका रूस पर टैरिफ लगाता है, तो चीन के लिए अवसर कैसे उत्पन्न हो सकता है?
(a) चीन अमेरिकी उत्पादों का अधिक निर्यात कर सकता है।
(b) चीन रूस से रियायती दरों पर ऊर्जा और कच्चे माल खरीद सकता है।
(c) चीन अमेरिकी कंपनियों में निवेश बढ़ा सकता है।
(d) चीन रूस को वित्तीय सहायता देना बंद कर देगा।
उत्तर: (b)
व्याख्या: यदि रूस के निर्यात प्रभावित होते हैं, तो वह वैकल्पिक खरीदारों की तलाश करेगा। चीन, एक प्रमुख आयातक के रूप में, रूस से रियायती दरों पर ऊर्जा और अन्य संसाधन प्राप्त कर सकता है, जिससे उसकी अपनी औद्योगिक लागत कम हो सकती है। - प्रश्न: भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security) क्यों महत्वपूर्ण है?
(a) क्योंकि भारत एक बड़ा ऊर्जा उत्पादक देश है।
(b) क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है।
(c) क्योंकि भारत को ऊर्जा निर्यात से कोई आय प्राप्त नहीं होती है।
(d) क्योंकि ऊर्जा आयात से भारत का व्यापार घाटा कम होता है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: भारत अपनी ऊर्जा की अधिकांश आवश्यकताएं आयात करता है, इसलिए ऊर्जा की स्थिर और सस्ती आपूर्ति सुनिश्चित करना राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। - प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा देश भारत का एक प्रमुख रक्षा भागीदार रहा है?
(a) संयुक्त राज्य अमेरिका
(b) फ्रांस
(c) रूस
(d) इज़राइल
उत्तर: (c)
व्याख्या: रूस दशकों से भारत का सबसे बड़ा और सबसे विश्वसनीय रक्षा भागीदार रहा है, जो भारत को महत्वपूर्ण सैन्य उपकरण और प्रौद्योगिकी प्रदान करता रहा है। - प्रश्न: “अमेरिका फर्स्ट” (America First) नीति का प्राथमिक उद्देश्य क्या रहा है?
(a) वैश्विक आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना।
(b) अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना, विशेष रूप से व्यापार और आर्थिक नीतियों में।
(c) अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का पालन करना।
(d) विकासशील देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: “अमेरिका फर्स्ट” नीति अमेरिकी हितों को, विशेष रूप से आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र में, अन्य देशों के हितों से ऊपर रखने पर जोर देती है। - प्रश्न: यदि चीन को सस्ते संसाधन मिलते हैं, तो इससे उसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
(a) उसकी निर्यात लागत बढ़ जाएगी।
(b) उसके उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।
(c) वह अपने निर्यात को कम कर देगा।
(d) वह अन्य देशों से अधिक ऋण लेगा।
उत्तर: (b)
व्याख्या: उत्पादन लागत में कमी से कंपनियों को अपने उत्पादों की कीमत कम करने या उच्च लाभ मार्जिन प्राप्त करने में मदद मिलती है, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अधिक आकर्षक हो जाते हैं। - प्रश्न: भारत के लिए “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) बनाए रखने का क्या महत्व है?
(a) अन्य देशों पर पूरी तरह से निर्भर रहना।
(b) अपनी विदेश और रक्षा नीतियों को स्वतंत्र रूप से निर्धारित करने की क्षमता।
(c) केवल एक प्रमुख शक्ति के साथ गठबंधन करना।
(d) अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: सामरिक स्वायत्तता का अर्थ है किसी देश की अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के निर्णय स्वतंत्र रूप से लेने की क्षमता, बिना किसी बाहरी दबाव के। - प्रश्न: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं (Global Supply Chains) को प्रभावित करने वाले कारक क्या हो सकते हैं?
(a) केवल तकनीकी नवाचार।
(b) केवल मांग में वृद्धि।
(c) भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार युद्ध, प्राकृतिक आपदाएँ और महामारी।
(d) केवल श्रम लागत में कमी।
उत्तर: (c)
व्याख्या: आपूर्ति श्रृंखलाएं विभिन्न वैश्विक घटनाओं से प्रभावित होती हैं, जिनमें राजनीतिक अस्थिरता, व्यापार नीतियां, प्राकृतिक आपदाएं और स्वास्थ्य संकट शामिल हैं। - प्रश्न: रूस पर अमेरिकी टैरिफ का भारत के रक्षा संबंधों पर क्या संभावित प्रभाव पड़ सकता है?
(a) भारत रूस से अधिक रक्षा उपकरण खरीदेगा।
(b) अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण रूस की भारत को आपूर्ति करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
(c) भारत रूस के साथ रक्षा सहयोग पूरी तरह से बंद कर देगा।
(d) रूस भारत को मुफ्त में रक्षा उपकरण प्रदान करेगा।
उत्तर: (b)
व्याख्या: यदि रूस पर व्यापक आर्थिक प्रतिबंध लगते हैं, तो यह उसकी उत्पादन और निर्यात क्षमताओं को प्रभावित कर सकता है, जिससे भारत के साथ उसके रक्षा सौदों में बाधा आ सकती है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत लगाए गए टैरिफ, अप्रत्याशित रूप से चीन जैसे देशों के लिए अवसर कैसे पैदा कर सकते हैं? वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और भू-राजनीतिक संदर्भ में इस घटना का विश्लेषण करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न: रूस पर अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों का भारत के ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा सहयोग और समग्र आर्थिक हितों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? भारत के लिए संभावित प्रतिक्रियाओं और रणनीतियों पर चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न: यह तर्क देते हुए कि “ट्रम्प के रूस टैरिफ चीन को महान बना सकते हैं”, इस कथन के पीछे के आर्थिक और भू-राजनीतिक तर्कों का मूल्यांकन करें। इसमें भारत के लिए निहितार्थों को भी शामिल करें। (लगभग 150 शब्द)
- प्रश्न: वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में, प्रमुख शक्तियां अक्सर अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक उपकरणों (जैसे टैरिफ, प्रतिबंध) का उपयोग कैसे करती हैं? इस प्रवृत्ति का वैश्विक व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर व्यापक प्रभाव क्या है? (लगभग 150 शब्द)