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40 लाख फर्जी वोटर? राहुल गांधी का EC पर बड़ा आरोप, चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल!

40 लाख फर्जी वोटर? राहुल गांधी का EC पर बड़ा आरोप, चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल!

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने एक चौंकाने वाला आरोप लगाते हुए दावा किया है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने चुनाव आयोग (EC) के साथ मिलकर चुनाव “चुराए” हैं। उन्होंने महाराष्ट्र की मतदाता सूची में 40 लाख संदिग्ध नामों और कर्नाटक में भी फर्जीवाड़े का आरोप लगाते हुए, स्क्रीन पर वोटर लिस्ट के प्रमाण प्रस्तुत किए। यह आरोप चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है, खासकर UPSC उम्मीदवारों के लिए यह विषय चुनावी सुधारों, मतदाता सूची प्रबंधन, और लोकतांत्रिक संस्थाओं की भूमिका को समझने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भारतीय चुनावी प्रणाली: एक विहंगम दृष्टि

भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते, अपनी चुनावी प्रक्रिया की शुचिता पर बहुत अधिक निर्भर करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित, भारत का चुनाव आयोग (EC) एक स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय है जिसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व सौंपा गया है। इसमें मतदाताओं का पंजीकरण, चुनावी क्षेत्रों का परिसीमन, चुनाव अधिसूचना जारी करना, चुनाव प्रचार पर नियंत्रण रखना, और मतदान तथा मतगणना की निगरानी करना शामिल है।

“लोकतंत्र केवल चुनाव कराना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक नागरिक का वोट गिना जाए और चुनाव निष्पक्ष हों।” – एक चुनावी विश्लेषक

वोटर लिस्ट, जिसे ‘निर्वाचक नामावली’ भी कहा जाता है, किसी भी चुनाव की रीढ़ होती है। यह सुनिश्चित करती है कि केवल पात्र नागरिक ही मतदान कर सकें और प्रत्येक पात्र नागरिक को अपना मत डालने का अधिकार मिले। इस सूची में एक भी अवांछित या दोहराव वाला नाम चुनावी अखंडता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।

राहुल गांधी का आरोप: विस्तार से विश्लेषण

राहुल गांधी के आरोपों को कई प्रमुख बिंदुओं में विभाजित किया जा सकता है:

  • 40 लाख संदिग्ध नाम (महाराष्ट्र): यह सबसे गंभीर आरोपों में से एक है, जिसमें दावा किया गया है कि महाराष्ट्र की मतदाता सूची में लगभग 40 लाख ऐसे नाम हैं जो या तो डुप्लिकेट हैं, गलत पते वाले हैं, या मृत व्यक्तियों के नाम हैं।
  • कर्नाटक में फर्जीवाड़ा: महाराष्ट्र के अलावा, उन्होंने कर्नाटक में भी मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाया है, हालांकि विशिष्ट संख्या या विवरण अभी तक उतने स्पष्ट नहीं हैं जितने महाराष्ट्र के मामले में।
  • EC की मिलीभगत का आरोप: सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इन कथित अनियमितताओं के लिए उन्होंने सीधे तौर पर चुनाव आयोग पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ मिलकर काम करने और चुनाव “चुराने” का आरोप लगाया है।
  • सबूत के तौर पर स्क्रीन शॉट: अपने दावों के समर्थन में, उन्होंने कथित तौर पर मतदाता सूची के स्क्रीनशॉट या डेटा प्रस्तुत किए हैं, जो संभावित डुप्लिकेट या संदिग्ध प्रविष्टियों को दर्शाते हैं।

यह आरोप केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह भारतीय चुनावी व्यवस्था की नींव पर एक सीधा प्रहार है। यदि ये आरोप सत्य साबित होते हैं, तो यह न केवल चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर, बल्कि पूरे चुनावी प्रक्रिया की अखंडता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाएगा।

वोटर लिस्ट में संदिग्ध नाम: क्या हो सकता है?

वोटर लिस्ट में संदिग्ध नामों का पाया जाना कई कारणों से हो सकता है, और प्रत्येक कारण के अपने निहितार्थ होते हैं:

  • तकनीकी खामियां/डेटाबेस त्रुटियां: कभी-कभी, डेटाबेस अपडेट करते समय, डुप्लीकेशन या गलत प्रविष्टियाँ हो सकती हैं। यह मानवीय त्रुटि या सॉफ्टवेयर की खामियों के कारण हो सकता है।
  • डुप्लिकेट पंजीकरण: नागरिक अनजाने में या जानबूझकर कई जगहों पर पंजीकरण करा सकते हैं। यदि डेटाबेस को ठीक से सिंक नहीं किया जाता है, तो ऐसे नाम सूची में बने रह सकते हैं।
  • मृत व्यक्तियों के नाम: यह एक आम समस्या है। जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो उसका नाम मतदाता सूची से हटाया जाना चाहिए। यदि स्थानीय अधिकारियों या चुनाव आयोग को मृत्यु का पता नहीं चलता है, या सूचना तंत्र ठीक से काम नहीं करता है, तो ऐसे नाम सूची में बने रह सकते हैं।
  • स्थानीय स्थानांतरण: यदि कोई मतदाता किसी अन्य निर्वाचन क्षेत्र में चला जाता है, तो उसे पुराने पते से हटाकर नए पते पर पंजीकृत किया जाना चाहिए। यदि यह प्रक्रिया ठीक से पूरी नहीं होती है, तो वह दो जगहों पर मतदाता हो सकता है।
  • जानबूझकर धोखाधड़ी (Intended Fraud): यह सबसे गंभीर पहलू है, जहाँ एक राजनीतिक दल या उसके समर्थक वोटिंग की संख्या बढ़ाने, या दूसरों के वोट को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने के लिए फर्जी नाम या डुप्लिकेट नामों का उपयोग करने की कोशिश कर सकते हैं।

वोटर लिस्ट की शुचिता सुनिश्चित करने की प्रक्रिया:

चुनाव आयोग मतदाता सूची को अद्यतन और शुद्ध रखने के लिए कई कदम उठाता है:

  • नियमित संशोधन: हर साल, मतदाता सूची का नियमित संशोधन किया जाता है, जिसमें नए मतदाताओं को जोड़ना, मृत या स्थानांतरित मतदाताओं को हटाना शामिल है।
  • घर-घर सत्यापन: कुछ मामलों में, बूथ स्तर के अधिकारी (BLOs) घर-घर जाकर मतदाताओं के विवरण का सत्यापन करते हैं।
  • नागरिकों की शिकायतें: नागरिक मतदाता सूची में किसी भी विसंगति की रिपोर्ट कर सकते हैं।
  • डेटाबेस का डी-डुप्लीकेशन: उन्नत तकनीकों का उपयोग करके डुप्लिकेट प्रविष्टियों को खोजने और हटाने का प्रयास किया जाता है।

हालांकि, इन प्रक्रियाओं के बावजूद, विशेष रूप से बड़े राज्यों में, मतदाता सूची को 100% शुद्ध रखना एक दुर्जेय कार्य है।

चुनाव आयोग की भूमिका और स्वतंत्रता

चुनाव आयोग की स्वतंत्रता भारतीय लोकतंत्र का एक आधार स्तंभ है। संविधान ने इसे अन्य सरकारी निकायों से स्वतंत्र रखने के लिए कई सुरक्षा उपाय प्रदान किए हैं:

  • नियुक्ति: मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • सेवा शर्तें: उनकी सेवा की शर्तें संसद द्वारा तय की जाती हैं और उनके कार्यकाल के दौरान उनमें कोई प्रतिकूल परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
  • निष्कासन: मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल उसी प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए होती है (संसद के दोनों सदनों द्वारा महाभियोग)। चुनाव आयुक्तों को भी कुछ हद तक इसी तरह की सुरक्षा प्राप्त है।
  • कार्यकारी शक्ति से अलगाव: आयोग को अपने कार्यों को निष्पक्ष रूप से करने के लिए सरकार के प्रभाव से मुक्त रखा गया है।

“एक स्वतंत्र चुनाव आयोग एक मजबूत लोकतंत्र की नींव है। यह सुनिश्चित करता है कि सत्ताधारी दल या विपक्ष किसी भी अनुचित लाभ के लिए चुनावी प्रक्रिया में हेरफेर न कर सके।” – सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्त

राहुल गांधी का यह आरोप कि EC ने BJP के साथ मिलकर चुनाव चुराए, सीधे तौर पर आयोग की निष्पक्षता पर हमला है। यह एक गंभीर आरोप है जिसके लिए मजबूत, अकाट्य सबूत की आवश्यकता होगी।

राजनीतिक निहितार्थ और चुनावी सुधारों की आवश्यकता

इस तरह के आरोप चुनावी राजनीति में नई बहसें छेड़ते हैं और चुनावी सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं:

  • विश्वास का संकट: यदि मतदाता नेताओं के बयानों या आरोपों के कारण चुनावी प्रक्रिया पर विश्वास खो देते हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
  • पारदर्शिता की मांग: ऐसे आरोप अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग को जन्म देते हैं। मतदाता सूची की सार्वजनिक पहुंच और त्रुटियों को ठीक करने के लिए अधिक कुशल तंत्र की आवश्यकता है।
  • चुनाव आयोग की जवाबदेही: हालांकि आयोग स्वतंत्र है, लेकिन उसे अपनी प्रक्रियाओं में जनता के प्रति अधिक जवाबदेह होना चाहिए।
  • तकनीक का उपयोग: डेटाबेस को शुद्ध करने और डुप्लिकेट को पहचानने के लिए उन्नत तकनीकों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। हालाँकि, तकनीक अपने आप में पूर्ण नहीं है और इसमें भी हेरफेर की संभावना होती है, यदि उचित सुरक्षा उपाय न किए जाएं।
  • राजनीतिक दलों की भूमिका: राजनीतिक दलों की भी यह जिम्मेदारी है कि वे किसी भी आरोप को बिना पर्याप्त सबूत के न उछालें, क्योंकि इससे जनता का विश्वास कम होता है।

UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से प्रासंगिकता

यह विषय UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय शासन, राजनीति और चुनाव प्रणाली से संबंधित है। यहाँ कुछ प्रमुख क्षेत्र दिए गए हैं जहाँ यह विषय प्रासंगिक है:

  1. भारतीय राजव्यवस्था (GS-II):
    • चुनाव आयोग की शक्तियाँ, कार्य और स्वतंत्रता।
    • चुनावी प्रक्रिया में सुधार।
    • वोटर लिस्ट का महत्व और प्रबंधन।
    • लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका।
    • चुनावों की अखंडता को बनाए रखने वाली संस्थाएं।
  2. समसामयिक मामले (Current Affairs):
    • देश की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण।
    • विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए मुद्दे।
    • चुनावों को प्रभावित करने वाले कारक।
  3. शासन (Governance):
    • सरकारी नीतियों का कार्यान्वयन।
    • नागरिकों के अधिकार और उनकी सुरक्षा।
    • डेटा प्रबंधन और सुरक्षा।

“एक राष्ट्र, एक मतदाता सूची” की अवधारणा:

यह आरोप “एक राष्ट्र, एक मतदाता सूची” जैसी पहलों की आवश्यकता को भी सामने लाता है, जहाँ राष्ट्रीय मतदाता सूची को अद्यतन और त्रुटि मुक्त रखने के लिए एक मजबूत, केंद्रीकृत प्रणाली हो। हालांकि, यह कई तकनीकी और प्रशासनिक चुनौतियों के साथ आता है।

चुनौतियां और आगे की राह

वोटर लिस्ट को पूरी तरह से त्रुटि मुक्त रखना एक सतत चुनौती है। इसके लिए न केवल चुनाव आयोग, बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों, स्थानीय अधिकारियों और नागरिकों के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है।

आगे की राह में शामिल हो सकते हैं:

  • तकनीकी उन्नयन: मतदाता सूची प्रबंधन के लिए अधिक परिष्कृत डेटाबेस और डी-डुप्लीकेशन तकनीकों का उपयोग।
  • प्रशासनिक सुधार: मृत्यु प्रमाण पत्र और स्थानांतरण सूचनाओं को मतदाता सूची से जोड़ने के लिए एक मजबूत तंत्र।
  • नागरिक जुड़ाव: मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • राजनीतिक सहमति: चुनावी सुधारों पर राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाना।
  • समय पर शिकायत निवारण: मतदाता सूची में त्रुटियों के संबंध में शिकायतों के निवारण के लिए एक कुशल और समयबद्ध प्रणाली।

जब तक ये सुधार प्रभावी ढंग से लागू नहीं किए जाते, तब तक राहुल गांधी जैसे नेताओं द्वारा उठाए गए सवाल लोकतांत्रिक व्यवस्था को चिंतित करते रहेंगे। चुनाव आयोग के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह न केवल निष्पक्ष रूप से काम करे, बल्कि अपनी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाकर जनता का विश्वास भी अर्जित करे।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद भारत के चुनाव आयोग की स्थापना से संबंधित है?

a) अनुच्छेद 320

b) अनुच्छेद 324

c) अनुच्छेद 328

d) अनुच्छेद 330

उत्तर: b) अनुच्छेद 324

व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारतीय संविधान के तहत भारत के चुनाव आयोग की स्थापना, उसकी शक्तियों, कार्यों और स्वतंत्रता से संबंधित है।

2. निम्नलिखित में से कौन भारत में मतदाता सूची के संशोधन और अद्यतन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है?

a) स्थानीय नगरपालिका निकाय

b) भारत का चुनाव आयोग

c) राष्ट्रीय मतदाता पंजीकरण प्राधिकरण (National Electoral Registration Authority)

d) राज्य सरकार के गृह मंत्रालय

उत्तर: b) भारत का चुनाव आयोग

व्याख्या: भारत का चुनाव आयोग मतदाता सूची तैयार करने, संशोधित करने और अद्यतन करने के लिए सर्वोच्च निकाय है, हालांकि यह अपने बूथ स्तर के अधिकारियों (BLOs) जैसे स्थानीय तंत्र का उपयोग करता है।

3. मतदाता सूची में “डुप्लिकेट पंजीकरण” (Duplicate Registration) का क्या अर्थ है?

a) एक ही व्यक्ति का मतदाता सूची में दो अलग-अलग नामों से दर्ज होना।

b) एक ही व्यक्ति का दो अलग-अलग मतदान केंद्रों पर मतदाता के रूप में दर्ज होना।

c) एक ही व्यक्ति का एक ही निर्वाचन क्षेत्र में दो बार मतदाता के रूप में दर्ज होना।

d) उपरोक्त सभी

उत्तर: d) उपरोक्त सभी

व्याख्या: डुप्लिकेट पंजीकरण का अर्थ है एक ही व्यक्ति का विभिन्न तरीकों से मतदाता सूची में एक से अधिक बार दर्ज होना, जो चुनावी अखंडता को प्रभावित करता है।

4. भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) को पद से कैसे हटाया जा सकता है?

a) केवल राष्ट्रपति के आदेश से

b) प्रधानमंत्री की सिफारिश पर

c) संसद के दोनों सदनों द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा

d) सर्वोच्च न्यायालय द्वारा

उत्तर: c) संसद के दोनों सदनों द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा

व्याख्या: मुख्य चुनाव आयुक्त को उसी प्रक्रिया से हटाया जा सकता है जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए अपनाई जाती है, जिसमें संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करना शामिल है।

5. निम्नलिखित में से कौन सा एक चुनाव सुधार से संबंधित मुद्दा नहीं है?

a) मतदाता सूची की शुद्धता

b) चुनाव प्रचार पर व्यय सीमा

c) केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की स्वायत्तता

d) इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) की विश्वसनीयता

उत्तर: c) केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की स्वायत्तता

व्याख्या: CBI की स्वायत्तता कानून और व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र से संबंधित है, न कि सीधे तौर पर चुनावी प्रक्रिया या सुधारों से।

6. “मतदाता सूची का नियमित संशोधन” (Regular Revision of Electoral Roll) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

a) नए राजनीतिक दलों को पंजीकृत करना

b) मतदाता सूची को अद्यतन, सटीक और त्रुटि मुक्त बनाना

c) मतदान प्रतिशत बढ़ाना

d) चुनावी खर्चों की निगरानी करना

उत्तर: b) मतदाता सूची को अद्यतन, सटीक और त्रुटि मुक्त बनाना

व्याख्या: नियमित संशोधन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सूची में केवल पात्र और जीवित मतदाता ही हों, और मृत या स्थानांतरित व्यक्तियों को हटाया जाए।

7. यदि कोई राजनेता चुनाव के दौरान किसी भी प्रकार की अनियमितता या चुनाव के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाता है, तो वह किस संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन कर सकता है?

a) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14)

b) जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21)

c) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(a))

d) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

उत्तर: c) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(a))

व्याख्या: हालांकि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध हैं, लेकिन यदि आरोप झूठे और दुर्भावनापूर्ण हों तो यह मानहानि का मामला बन सकता है, लेकिन आरोप लगाना स्वयं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत आता है। यहाँ प्रश्न के संदर्भ में, चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखना एक महत्वपूर्ण पहलू है। तकनीकी रूप से, चुनाव की निष्पक्षता बनाए रखना अनुच्छेद 14 (समानता) से भी जुड़ा है, जहां हर मत को समान महत्व मिलना चाहिए। लेकिन प्रत्यक्ष आरोप लगाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत है। यदि प्रश्न “किस अधिकार का हनन” के बजाय “किस अधिकार का उपयोग” होता तो अधिक स्पष्ट होता। इस प्रश्न का उत्तर संदर्भ पर निर्भर करता है, लेकिन व्यापक अर्थों में, चुनावी अखंडता का उल्लंघन अनुच्छेद 14 से जुड़ा है। हालांकि, आरोप लगाना स्वयं अभिव्यक्ति का कार्य है। यहाँ हम चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता की बात कर रहे हैं। *पुनर्विचार: यहाँ प्रश्न का आशय चुनावी अखंडता के हनन से है, जो अप्रत्यक्ष रूप से समानता और निष्पक्षता को प्रभावित करता है। आरोप लगाने वाला व्यक्ति अपनी बात रख रहा है, जिसे अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत सुरक्षा मिल सकती है, बशर्ते वह स्थापित सीमा में हो। लेकिन यदि वह चुनाव चुराने का आरोप लगाता है, तो वह चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है, जो समानता के अधिकार (हर मत की समान गिनती) से जुड़ी है। अतः, सबसे सटीक उत्तर अनुच्छेद 14 हो सकता है, क्योंकि चुनावी निष्पक्षता पर हमला प्रत्यक्ष रूप से समानता के सिद्धांत को प्रभावित करता है।* **सही उत्तर: c) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(a))** – क्योंकि आरोप लगाना स्वयं अभिव्यक्ति का कार्य है।

8. भारत में “एक राष्ट्र, एक मतदाता सूची” (One Nation, One Electoral Roll) की अवधारणा का क्या तात्पर्य है?

a) पूरे देश के लिए एक ही मतदाता पहचान पत्र

b) सभी चुनावों (लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय) के लिए एक ही मतदाता सूची का उपयोग

c) एक एकीकृत राष्ट्रीय डेटाबेस जिसमें सभी मतदाताओं का विवरण हो

d) उपरोक्त सभी

उत्तर: d) उपरोक्त सभी

व्याख्या: इस अवधारणा का उद्देश्य एक मानकीकृत, एकीकृत और अद्यतन राष्ट्रीय मतदाता सूची बनाना है जिसका उपयोग विभिन्न स्तरों के चुनावों के लिए किया जा सके, जिससे विसंगतियों को दूर किया जा सके।

9. चुनाव आयोग की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए संविधान में क्या प्रावधान हैं?

1. मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल संसद के महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है।

2. चुनाव आयुक्तों को भी मुख्य चुनाव आयुक्त के समान ही सुरक्षा प्राप्त है।

3. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई न्यूनतम योग्यता निर्धारित नहीं है।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

a) 1 और 2 केवल

b) 1 और 3 केवल

c) 2 और 3 केवल

d) 1, 2 और 3

उत्तर: a) 1 और 2 केवल

व्याख्या: मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया महाभियोग जैसी है। चुनाव आयुक्तों को भी इसी तरह की सुरक्षा प्राप्त है। हालांकि, उनकी नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता संविधान में निर्धारित नहीं है, जो एक आलोचना का बिंदु रहा है।

10. मतदाता सूची में डुप्लिकेट या गलत नाम पाए जाने से चुनावी प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

1. वोटिंग में धांधली की संभावना बढ़ जाती है।

2. चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है।

3. पात्र मतदाताओं के वोट की गिनती प्रभावित हो सकती है।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

a) 1 और 2 केवल

b) 2 और 3 केवल

c) 1 और 3 केवल

d) 1, 2 और 3

उत्तर: d) 1, 2 और 3

व्याख्या: डुप्लिकेट या गलत नामों से वोटिंग में हेरफेर संभव है, इससे चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर संदेह उत्पन्न होता है, और यदि ये नाम जानबूझकर डाले गए हों तो पात्र मतों को दबाया जा सकता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों के आलोक में, भारतीय चुनाव आयोग की भूमिका, स्वतंत्रता और मतदाता सूची के प्रबंधन में चुनौतियों का विस्तार से विश्लेषण करें। यह भी बताएं कि ऐसे आरोप चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। (250 शब्द, 15 अंक)

2. भारत में मतदाता सूची को त्रुटि मुक्त और अद्यतन रखने के लिए वर्तमान तंत्र क्या हैं? इन तंत्रों में सुधार के लिए सुझाव दें और “एक राष्ट्र, एक मतदाता सूची” जैसी अवधारणा की व्यवहार्यता पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)

3. चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वायत्तता भारतीय लोकतंत्र के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? ऐसी स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए संविधान द्वारा किए गए प्रावधानों की चर्चा करें और बताएं कि राजनीतिक दल इसे कैसे चुनौती दे सकते हैं। (150 शब्द, 10 अंक)

4. चुनावी अखंडता (Electoral Integrity) पर हाल के आरोप, जैसे कि राहुल गांधी द्वारा लगाए गए, लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता के विश्वास को कैसे प्रभावित करते हैं? ऐसे विश्वास को बहाल करने के लिए सरकार, चुनाव आयोग और नागरिक समाज की क्या भूमिका हो सकती है? (150 शब्द, 10 अंक)

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