समाजशास्त्र की दैनिक कसौटी: ज्ञान की गहराई में उतरें
नमस्कार, भावी समाजशास्त्रियों! प्रतियोगिता परीक्षाओं के इस सफर में आपकी वैचारिक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को लगातार तेज करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज की हमारी विशेष प्रश्नोत्तरी आपको समाजशास्त्र के विभिन्न आयामों, प्रमुख विचारकों और गहन सिद्धांतों की दुनिया में एक रोमांचक यात्रा पर ले जाएगी। क्या आप अपनी तैयारी को परखने और ज्ञान को मजबूत करने के लिए तैयार हैं?
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘मैजिक, साइंस एंड रिलिजन’ नामक पुस्तक में, ब्राउन का यह तर्क कि समाजशास्त्रीय अध्ययन केवल अमूर्त सामाजिक संरचनाओं के बजाय ठोस, अवलोकन योग्य मानव व्यवहार पर केंद्रित होना चाहिए, निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्रीय पद्धति से सबसे अधिक मेल खाता है?
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Verstehen)
- अवलोकनवाद (Positivism)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: अवलोकनवाद (Positivism) वह समाजशास्त्रीय पद्धति है जो समाज को वैज्ञानिक नियमों के अधीन मानती है और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के लिए प्राकृतिक विज्ञानों की विधियों का उपयोग करती है। यह अवलोकन योग्य तथ्यों और उनके बीच संबंध स्थापित करने पर जोर देता है, न कि अमूर्त संरचनाओं पर।
- संदर्भ और विस्तार: ऑगस्ट कॉम्ते को अवलोकनवाद का जनक माना जाता है। यह मानता है कि समाज का अध्ययन उसी प्रकार किया जा सकता है जैसे प्राकृतिक दुनिया का अध्ययन किया जाता है, यानी अनुभवजन्य डेटा और तार्किक विश्लेषण के माध्यम से। ‘मैजिक, साइंस एंड रिलिजन’ पुस्तक में इवान्स-प्रिचार्ड ने नूएर (Nuer) लोगों पर अपने फील्डवर्क के आधार पर यह तर्क दिया था।
- गलत विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तिपरक अर्थों और प्रतीकों पर केंद्रित है। संरचनात्मक प्रकार्यवाद सामाजिक संरचनाओं और उनके कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है। व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Verstehen) वेबर द्वारा प्रतिपादित है, जो व्यक्तिपरक अर्थों को समझने पर जोर देता है, लेकिन अवलोकनवाद की तरह प्रत्यक्ष अवलोकन पर इसका प्राथमिक ध्यान नहीं होता।
प्रश्न 2: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा निम्नलिखित में से किस प्रक्रिया का वर्णन करती है?
- निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और विश्वासों को अपनाकर सामाजिक स्थिति में सुधार करने की प्रक्रिया।
- पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में आकर जीवन शैली में परिवर्तन।
- आधुनिक तकनीकी और संस्थागत परिवर्तनों को अपनाना।
- शहरी जीवन शैली का ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ की अवधारणा दी, जिसमें निम्न सामाजिक या सांस्कृतिक समूह उच्च जातियों की परंपराओं, अनुष्ठानों, विचारधाराओं और जीवन शैलियों को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊंचा उठाने का प्रयास करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा श्रीनिवास की पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में पहली बार प्रस्तुत की गई थी। यह भारतीय समाज में जाति व्यवस्था के भीतर सांस्कृतिक गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- गलत विकल्प: पश्चिमीकरण पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से संबंधित है। आधुनिकीकरण एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन शामिल हैं। शहरी जीवन शैली का प्रसार शहरीकरण का हिस्सा है।
प्रश्न 3: दुर्खीम के अनुसार, समाजशास्त्रीय अध्ययन का मूल विषय क्या है?
- व्यक्तिगत चेतना और व्यवहार
- सामाजिक तथ्य (Social Facts)
- वर्ग संघर्ष
- सामाजिक व्यवस्था और उसके कार्य
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित करते हुए ‘सामाजिक तथ्यों’ को इसके अध्ययन का केंद्रीय विषय घोषित किया। सामाजिक तथ्य बाहरी, बाध्यकारी और सामूहिक चेतना से उत्पन्न होने वाले व्यवहार के तरीके हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘The Rules of Sociological Method’ में सामाजिक तथ्यों को परिभाषित किया। उन्होंने तर्क दिया कि समाजशास्त्र का अध्ययन इन तथ्यों के गुणों और संबंधों पर केंद्रित होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं पर।
- गलत विकल्प: व्यक्तिगत चेतना और व्यवहार का अध्ययन मनोविज्ञान का विषय है। वर्ग संघर्ष कार्ल मार्क्स की प्रमुख अवधारणा है। सामाजिक व्यवस्था और उसके कार्य संरचनात्मक प्रकारवाद का केंद्र बिंदु हैं, लेकिन दुर्खीम के लिए यह ‘सामाजिक तथ्यों’ के माध्यम से ही संभव है।
प्रश्न 4: निम्नांकित में से कौन सी संकल्पना जॉर्ज सिमेल (Georg Simmel) द्वारा समाज को गतिशील रूप से समझने के लिए प्रयोग की गई है?
- सामाजिक संरचना
- सामाजिक अंतःक्रियाओं के पैटर्न (Forms of Social Interaction)
- अनुकूलन (Adaptation)
- सामूहिक चेतना (Collective Consciousness)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जॉर्ज सिमेल ने समाजशास्त्र के अध्ययन में ‘रूपों’ (Forms) पर जोर दिया, जो विभिन्न प्रकार की सामाजिक अंतःक्रियाओं के पैटर्न को संदर्भित करते हैं। उन्होंने समाज को इन निरंतर बदलते अंतःक्रियात्मक रूपों के योग के रूप में देखा।
- संदर्भ और विस्तार: सिमेल ने ‘The Philosophy of Money’ और ‘Sociology’ जैसी अपनी रचनाओं में इस बात पर जोर दिया कि सामाजिक जीवन को समझने के लिए हमें उन अंतःक्रियाओं के ‘रूपों’ का विश्लेषण करना चाहिए जो समाज को संभव बनाते हैं, जैसे कि प्रतियोगिता, सहयोग, प्रभुत्व आदि।
- गलत विकल्प: सामाजिक संरचना (Social Structure) का अध्ययन आमतौर पर संरचनात्मक दृष्टिकोणों का हिस्सा है। अनुकूलन (Adaptation) सामाजिक जीव विज्ञान और कुछ प्रकार्यात्मक सिद्धांतों से जुड़ा है। सामूहिक चेतना (Collective Consciousness) दुर्खीम की अवधारणा है।
प्रश्न 5: ‘प्रतिष्ठा की असमानता’ (Status Inequality) की अवधारणा, जो शक्ति (Power) और संपत्ति (Property) से भिन्न है, किसके समाजशास्त्रीय विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- टैल्कॉट पार्सन्स
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) के अपने बहुआयामी सिद्धांत में ‘प्रतिष्ठा’ (Status) को एक स्वतंत्र आयाम के रूप में पहचाना, जो संपत्ति (वर्ग) और शक्ति (दल) से अलग है। प्रतिष्ठा सामाजिक सम्मान, सामाजिक जीवन शैली और पहचान से जुड़ी होती है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘Economy and Society’ में वर्ग (Class), प्रतिष्ठा (Status) और दल (Party) के आधार पर समाज के विभाजन का विश्लेषण किया। प्रतिष्ठा का संबंध अक्सर जीवन शैली, शिक्षा, व्यवसाय और सामाजिक उपाधियों से होता है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने मुख्य रूप से वर्ग संघर्ष और संपत्ति संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया। दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता (Social Solidarity) पर अधिक ध्यान दिया। पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था और विभिन्न व्यवस्थाओं के एकीकरण पर बल दिया।
प्रश्न 6: भारतीय समाज में, ‘पदानुक्रम’ (Hierarchy) और ‘अस्पृश्यता’ (Untouchability) निम्नलिखित में से किस संस्था की प्रमुख विशेषताएं हैं?
- परिवार
- धर्म
- जाति व्यवस्था
- राजनीति
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जाति व्यवस्था भारतीय समाज की एक प्रमुख सामाजिक संस्था है, जिसकी मुख्य विशेषताएं जन्म आधारित पदानुक्रम, व्यवसायों का विभाजन, अंतर्विवाह (endogamy) और छुआछूत या अस्पृश्यता का सिद्धांत हैं।
- संदर्भ और विस्तार: जाति व्यवस्था ने सामाजिक संबंधों, आर्थिक गतिविधियों और राजनीतिक शक्ति के वितरण को गहराई से प्रभावित किया है। अस्पृश्यता ऐतिहासिक रूप से उन जातियों से जुड़ी रही है जिन्हें निम्नतर माना जाता था।
- गलत विकल्प: परिवार, धर्म और राजनीति भी सामाजिक संस्थाएं हैं, लेकिन पदानुक्रम और अस्पृश्यता जैसी विशेषताएं विशेष रूप से जाति व्यवस्था के लिए अनूठी हैं।
प्रश्न 7: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक मानदंडों के कमजोर पड़ने या अनुपस्थिति की स्थिति को दर्शाती है, किस समाजशास्त्रीय विचार से जुड़ी है?
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- चार्ल्स हॉर्टन कूले
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ की अवधारणा का प्रयोग सामाजिक विघटन की उस स्थिति का वर्णन करने के लिए किया जब व्यक्ति और समाज के बीच संबंध कमजोर हो जाते हैं, और सामाजिक मानदंड स्पष्ट या बाध्यकारी नहीं रह जाते।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी कृतियों ‘The Division of Labour in Society’ और ‘Suicide’ में एनोमी का उल्लेख किया। उन्होंने इसे आत्महत्या के एक प्रकार (anomic suicide) के कारण के रूप में भी पहचाना, जो तब होती है जब व्यक्ति के लक्ष्य और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच तालमेल नहीं बैठ पाता।
- गलत विकल्प: वेबर का ‘Verstehen’ और ‘Bureaucracy’ से संबंध है। मार्क्स का ‘Alienation’ और ‘Class Conflict’ से संबंध है। कूले का ‘Looking-glass self’ से संबंध है।
प्रश्न 8: समाजशास्त्रीय शोध में, ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) मुख्य रूप से किस पर केंद्रित होता है?
- स्थिर सामाजिक संरचनाओं का विश्लेषण
- बड़े पैमाने पर सामाजिक संस्थानों का अध्ययन
- व्यक्तियों के बीच सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं और उनके द्वारा निर्मित अर्थों का अध्ययन
- सामाजिक परिवर्तन के व्यापक पैटर्न का विश्लेषण
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जिसका श्रेय मुख्य रूप से जॉर्ज हर्बर्ट मीड को जाता है, व्यक्तियों के बीच होने वाली सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं, भाषा, प्रतीकों और स्वयं (self) के निर्माण पर केंद्रित है। यह मानता है कि व्यक्ति अपने व्यवहार और सामाजिक वास्तविकता को इन अंतःक्रियाओं के माध्यम से निर्मित करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मीड के विचारों को उनके छात्र हर्बर्ट ब्लूमर ने व्यवस्थित किया। यह सिद्धांत मानता है कि मानव व्यवहार सामाजिक अंतःक्रिया से उत्पन्न होता है, जिसमें व्यक्ति अपने व्यवहार को दूसरे के प्रति उनकी प्रतिक्रिया के अनुसार समायोजित करते हैं।
- गलत विकल्प: स्थिर सामाजिक संरचनाओं का विश्लेषण, बड़े पैमाने पर संस्थानों का अध्ययन और सामाजिक परिवर्तन के व्यापक पैटर्न का विश्लेषण क्रमशः प्रकार्यवाद, संरचनात्मक-मार्क्सवाद और अन्य बृहत्-स्तरीय दृष्टिकोणों के दायरे में आता है।
प्रश्न 9: भारतीय समाज में ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया ने निम्नलिखित में से किस संस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए हैं?
- केवल परिवार की संरचना
- केवल शिक्षा प्रणाली
- विभिन्न सामाजिक संस्थाएं जैसे परिवार, विवाह, धर्म और अर्थव्यवस्था
- केवल जाति व्यवस्था
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: आधुनिकीकरण एक व्यापक प्रक्रिया है जो औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, शिक्षा के प्रसार, वैज्ञानिक सोच के विकास और लोकतंत्रीकरण से जुड़ी है। इसने भारतीय समाज की लगभग सभी प्रमुख संस्थाओं जैसे परिवार (संयुक्त से एकाकी परिवार की ओर), विवाह (व्यवस्थित से पसंद के विवाह की ओर), धर्म (अनुष्ठानों में परिवर्तन) और अर्थव्यवस्था (कृषि से उद्योग की ओर) को प्रभावित किया है।
- संदर्भ और विस्तार: यह एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है जो पारंपरिक समाजों को ‘आधुनिक’ समाजों में बदलने से संबंधित है।
- गलत विकल्प: आधुनिकीकरण का प्रभाव केवल एक संस्था तक सीमित नहीं रहा है; इसने पूरे सामाजिक ताने-बाने को छुआ है।
प्रश्न 10: अगस्ट कॉम्ते (Auguste Comte) ने समाज को समझने के लिए किस ‘तीन अवस्थाओं के नियम’ (Law of Three Stages) का प्रस्ताव दिया?
- प्रागैतिहासिक, ऐतिहासिक, समकालीन
- आदिम, पारंपरिक, आधुनिक
- धार्मिक (Theological), तात्विक (Metaphysical), और प्रत्यक्षवादी (Positive)
- आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: अगस्ट कॉम्ते, जिन्हें समाजशास्त्र का जनक माना जाता है, के अनुसार मानव समाज तीन मुख्य अवस्थाओं से गुजरा है: धार्मिक अवस्था (जहां अलौकिक शक्तियों को हर चीज का कारण माना जाता था), तात्विक अवस्था (जहां अमूर्त शक्तियों या विचारों को कारण माना गया), और प्रत्यक्षवादी अवस्था (जहां वैज्ञानिक अवलोकन और तर्क को ज्ञान का आधार माना जाता है)।
- संदर्भ और विस्तार: कॉम्ते का मानना था कि समाजशास्त्र को प्रत्यक्षवादी अवस्था में प्रवेश करना चाहिए ताकि समाज का वैज्ञानिक अध्ययन किया जा सके। यह विचार उनकी पुस्तक ‘The Course of Positive Philosophy’ में प्रस्तुत किया गया है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प सामाजिक विकास या कालानुक्रमिक वर्गीकरण के अन्य रूप प्रस्तुत करते हैं, लेकिन वे कॉम्ते के विशिष्ट ‘तीन अवस्थाओं के नियम’ से मेल नहीं खाते।
प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन सी संकल्पना सामाजिक व्यवस्था (Social Order) बनाए रखने में ‘प्रकार्यात्मक एकता’ (Functional Unity) के विचार पर बल देती है?
- संघर्ष सिद्धांत
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- नारीवाद
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) मानता है कि समाज विभिन्न परस्पर संबंधित संरचनाओं से बना है, और प्रत्येक संरचना समाज की समग्र स्थिरता और व्यवस्था बनाए रखने में एक विशिष्ट ‘कार्य’ (function) करती है। प्रकार्यात्मक एकता का अर्थ है कि ये सभी अंग मिलकर एक सुसंगत इकाई बनाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: एमिल दुर्खीम, ए. आर. रैडक्लिफ-ब्राउन और ए.एल. क्रॉइब जैसे समाजशास्त्रियों ने इस दृष्टिकोण में योगदान दिया। टैल्कॉट पार्सन्स इसके प्रमुख आधुनिक प्रस्तावक थे।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत सामाजिक व्यवस्था के बजाय संघर्ष और परिवर्तन पर केंद्रित है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं पर ध्यान देता है। नारीवाद सामाजिक व्यवस्था में लिंग आधारित असमानताओं और शक्ति संबंधों का विश्लेषण करता है।
प्रश्न 12: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, विशेष रूप से उत्पादन की प्रक्रिया से श्रमिक के अलगाव का विश्लेषण, कार्ल मार्क्स के समाजशास्त्रीय चिंतन का केंद्रीय तत्व है। इसके कितने रूप मार्क्स ने बताए?
- दो
- तीन
- चार
- पांच
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 13: भारतीय संदर्भ में, ‘सब-ऑल्टरन अध्ययन’ (Subaltern Studies) समूह मुख्य रूप से किस पर ध्यान केंद्रित करता है?
- भारत के शासक वर्गों का इतिहास
- आम लोगों, कृषकों, आदिवासियों और वंचित समुदायों के इतिहास और अनुभवों को सामने लाना
- औपनिवेशिक प्रशासन की नीतियां
- भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सब-ऑल्टरन अध्ययन समूह का मुख्य उद्देश्य भारतीय इतिहास और समाज के उन पहलुओं को उजागर करना है जो पारंपरिक इतिहास-लेखन में उपेक्षित रहे हैं, विशेष रूप से निम्न वर्ग, आदिवासी, महिलाएं और अन्य हाशिए पर पड़े समुदायों की आवाजें और संघर्ष।
- संदर्भ और विस्तार: इस आंदोलन के प्रमुख विचारकों में रणजीत गुहा, डेविड हार्डिमैन, दीपक नागरज आदि शामिल हैं। यह समूह मानता है कि मुख्यधारा के इतिहास-लेखन में अक्सर शक्ति अभिजात वर्ग के दृष्टिकोण का ही प्रतिनिधित्व होता है।
- गलत विकल्प: यह अध्ययन शासक वर्गों, औपनिवेशिक नीतियों या आर्थिक वैश्वीकरण के बजाय आम लोगों के अनुभवों पर केंद्रित है।
प्रश्न 14: “लुक़िंग-ग्लास सेल्फ” (Looking-glass Self) की अवधारणा, जिसमें व्यक्ति अपनी स्वयं की छवि दूसरों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर बनाता है, किसने विकसित की?
- सिगमंड फ्रायड
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- चार्ल्स हॉर्टन कूले
- अर्नेस्ट बर्गेस
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: चार्ल्स हॉर्टन कूले ने ‘लुक़िंग-ग्लास सेल्फ’ की अवधारणा दी, जिसके अनुसार हम खुद को वैसे ही देखते हैं जैसे हमें लगता है कि दूसरे हमें देखते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तीन मुख्य तत्व होते हैं: हम अपनी कल्पना करते हैं कि हम दूसरों की नजरों में कैसे दिखते हैं; हम कल्पना करते हैं कि वे हमारे बारे में क्या निर्णय लेते हैं; और हम स्वयं के बारे में उन निर्णयों के आधार पर एक भावना विकसित करते हैं (जैसे गर्व या शर्म)।
- संदर्भ और विस्तार: यह विचार उनकी पुस्तक ‘Human Nature and the Social Order’ (1902) में प्रस्तुत किया गया है और यह आत्म (self) के निर्माण में सामाजिक अंतःक्रिया के महत्व को रेखांकित करता है।
- गलत विकल्प: फ्रायड ने मन के ‘इड, ईगो, सुपर-ईगो’ मॉडल पर काम किया। मीड ने ‘I’ और ‘Me’ के सिद्धांत से स्वयं के विकास को समझाया, जो कूले के विचार से निकटता से संबंधित है लेकिन अलग है। बर्गेस ने परिवार के अध्ययन में योगदान दिया।
प्रश्न 15: पश्चिमी भारत में, विशेषकर गुजरात और महाराष्ट्र में, 19वीं शताब्दी में समाज सुधार के आंदोलनों का मुख्य लक्ष्य क्या था?
- सामंतवाद का उन्मूलन
- जाति व्यवस्था को मजबूत करना
- अनटचेबिलिटी, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध जैसे सामाजिक कुरीतियों को दूर करना
- धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: 19वीं सदी के समाज सुधार आंदोलनों, जिनमें ज्योतिबा फुले, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, राजा राम मोहन राय जैसे सुधारक शामिल थे, का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास, अस्पृश्यता, जातिगत भेदभाव, बाल विवाह, सती प्रथा और महिलाओं की दयनीय स्थिति जैसी कुरीतियों को समाप्त कर सामाजिक समानता और न्याय स्थापित करना था।
- संदर्भ और विस्तार: इन आंदोलनों ने शिक्षा के प्रसार, महिलाओं के अधिकारों और विधवाओं की स्थिति सुधारने पर भी जोर दिया।
- गलत विकल्प: सामंतवाद मुख्य रूप से उत्तरी भारत की समस्या थी, जाति को मजबूत करना सुधार का लक्ष्य नहीं था, और धार्मिक कट्टरता का विरोध ही अक्सर किया गया।
प्रश्न 16: निम्नांकित में से कौन सी समाजशास्त्रीय संकल्पना उन सामाजिक मानदंडों और मूल्यों के उल्लंघन को दर्शाती है जो किसी व्यक्ति या समूह को उसकी सामाजिक भूमिकाओं से अलग करते हैं?
- सामाजीकरण (Socialization)
- संस्थानीकरण (Institutionalization)
- विध्रुवीकरण (Polarization)
- विलगाव (Alienation)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलगाव (Alienation) वह स्थिति है जहाँ व्यक्ति अपनी सामाजिक भूमिकाओं, समाज, या स्वयं से कटा हुआ या अलग-थलग महसूस करता है। यह तब होता है जब व्यक्ति उन सामाजिक मानदंडों या मूल्यों को महसूस करता है जो उसके जीवन को अर्थहीन या नियंत्रित बनाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: कार्ल मार्क्स ने उत्पादन की प्रक्रिया में श्रमिक के विलगाव का वर्णन किया। यह एक व्यापक समाजशास्त्रीय अवधारणा है जो व्यक्ति के शक्तिहीनता, अर्थहीनता, अलगाव और स्वयं से दूरी की भावनाओं को व्यक्त करती है।
- गलत विकल्प: सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति समाज के मानदंड और मूल्य सीखते हैं। संस्थानीकरण स्थापित सामाजिक पैटर्न को संदर्भित करता है। विध्रुवीकरण समाज में ध्रुवों के बीच बढ़ते अलगाव को दर्शाता है, लेकिन विलगाव व्यक्ति की आंतरिक भावना पर अधिक केंद्रित है।
प्रश्न 17: मैन्सफिल्ड (Mansfield) के अनुसार, ‘संस्थाएँ’ (Institutions) क्या हैं?
- व्यक्तियों का एक समूह जो समान हित साझा करते हैं।
- सामूहिक व्यवहार के ऐसे व्यवस्थित, स्थापित पैटर्न जो समाज की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- अस्थायी सामाजिक संगठन।
- केवल सरकारी एजेंसियां।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्र में, संस्थाओं को आमतौर पर सामाजिक व्यवहार के ऐसे स्थायी, व्यवस्थित और स्वीकृत पैटर्न के रूप में परिभाषित किया जाता है जो समाज की मुख्य आवश्यकताओं (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म, अर्थव्यवस्था, सरकार) को पूरा करते हैं। ये पैटर्न नियमों, रीति-रिवाजों और प्रतीकों द्वारा परिभाषित होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मैन्सफिल्ड, जैसे कई अन्य समाजशास्त्रियों ने, संस्थाओं को समाज के लिए आवश्यक मूलभूत संरचनाओं के रूप में देखा है जो सामाजिक व्यवस्था और निरंतरता बनाए रखती हैं।
- गलत विकल्प: व्यक्तियों का समूह, अस्थायी संगठन, या केवल सरकारी एजेंसियां संस्थाओं की पूर्ण परिभाषा नहीं हैं।
प्रश्न 18: निम्नलिखित में से कौन सी समाजशास्त्रीय विधि, सामाजिक घटनाओं की व्याख्या करने के लिए व्यक्तियों के व्यक्तिपरक अर्थों और प्रेरणाओं को समझने पर जोर देती है?
- सांख्यिकीय विश्लेषण
- साक्षात्कार (Interviews)
- वर्टेहेन (Verstehen)
- नृवंशविज्ञान (Ethnography)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘वर्टेहेन’ (Verstehen) एक जर्मन शब्द है जिसका अर्थ है ‘समझना’ या ‘अर्थ लगाना’। मैक्स वेबर ने इस पद्धति का प्रस्ताव दिया, जो समाजशास्त्रियों को सामाजिक कार्यों को उनके अंतर्निहित अर्थों और प्रेरणाओं के संदर्भ में समझने का प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर का मानना था कि सामाजिक क्रियाओं को केवल बाहरी रूप से नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे व्यक्तिपरक अर्थों को समझकर ही पूरी तरह से विश्लेषण किया जा सकता है।
- गलत विकल्प: सांख्यिकीय विश्लेषण मात्रात्मक डेटा से संबंधित है। साक्षात्कार और नृवंशविज्ञान वर्टेहेन प्राप्त करने के तरीके हो सकते हैं, लेकिन वर्टेहेन स्वयं वह समझ की प्रक्रिया है।
प्रश्न 19: भारतीय समाज में, ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा को आमतौर पर निम्नलिखित में से किस चीज के साथ जोड़ा जाता है?
- केवल पश्चिमी फैशन और खान-पान को अपनाना।
- पश्चिमी देशों की राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था को अपनाना।
- पश्चिमी जीवन शैली, विचार, मूल्य और संस्थाओं के प्रभाव में आकर भारतीय समाज में होने वाले परिवर्तन।
- ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों का प्रसार।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘पश्चिमीकरण’ शब्द का प्रयोग भारतीय समाज में उन परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया जो ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप पश्चिमी (मुख्यतः ब्रिटिश) जीवन शैली, मूल्यों, संस्थाओं, प्रौद्योगिकी और विचारों के संपर्क में आने से हुए।
- संदर्भ और विस्तार: यह केवल बाहरी अनुकरण नहीं है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और संस्थागत स्तर पर होने वाले गहरे बदलावों को भी दर्शाता है।
- गलत विकल्प: यह केवल फैशन या राजनीतिक-आर्थिक व्यवस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि एक व्यापक सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव है।
प्रश्न 20: पारसनियन प्रकार्यवाद (Parsonsian Functionalism) के अनुसार, समाज के चार प्रमुख ‘कार्यात्मक पूर्व-आवश्यकताओं’ (Functional Prerequisites) में से कौन सी एक नहीं है?
- लक्ष्य-प्राप्ति (Goal Attainment)
- अनुकूलन (Adaptation)
- एकीकरण (Integration)
- रूपांतरण (Transformation)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: टैल्कॉट पार्सन्स ने AGIL मॉडल (Adaptation, Goal Attainment, Integration, Latency/Pattern Maintenance) प्रस्तुत किया, जो समाज या किसी उप-प्रणाली द्वारा कार्य करने के लिए आवश्यक चार मौलिक आवश्यकताओं को बताता है। रूपांतरण (Transformation) उनकी मॉडल का हिस्सा नहीं है।
- संदर्भ और विस्तार: अनुकूलन (Adaptation) का अर्थ है पर्यावरण से निपटना। लक्ष्य-प्राप्ति (Goal Attainment) का अर्थ है सामूहिक लक्ष्यों को परिभाषित करना और प्राप्त करना। एकीकरण (Integration) का अर्थ है समाज के विभिन्न भागों को एक साथ जोड़ना। लेटेंसी (Latency) या पैटर्न रखरखाव (Pattern Maintenance) का अर्थ है सामाजिक मूल्यों और संरचनाओं को बनाए रखना।
- गलत विकल्प: ये पारसन के AGIL मॉडल के चार घटक हैं, जिनमें रूपांतरण शामिल नहीं है।
प्रश्न 21: निम्न में से कौन सी अवधारणा समाज में सामाजिक असमानता और वर्ग विभाजन के कारणों को समझने में मदद करती है?
- सामाजीकरण
- सामाजिक गतिशीलता
- सामाजिक स्तरीकरण
- सांस्कृतिक भिन्नता
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) समाज में लोगों को उनकी स्थिति, शक्ति, धन और विशेषाधिकारों के आधार पर विभिन्न स्तरों या परतों में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया या पैटर्न है। यह सामाजिक असमानता का मूल आधार है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा हमें यह समझने में मदद करती है कि समाज में अवसर, संसाधन और शक्ति कैसे असमान रूप से वितरित होते हैं, और यह वितरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी कैसे बना रहता है।
- गलत विकल्प: सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जो मूल्यों को सिखाती है। सामाजिक गतिशीलता स्थिति में परिवर्तन है। सांस्कृतिक भिन्नता समाज के भीतर विभिन्न समूहों की जीवन शैली का वर्णन करती है, लेकिन सीधे तौर पर असमानता के स्रोत को नहीं समझाती।
प्रश्न 22: अर्बन सोशियोलॉजी (Urban Sociology) में, ‘गमेन्सचैफ्ट’ (Gemeinschaft) और ‘गेसेलस्चैफ्ट’ (Gesellschaft) की अवधारणाएं क्रमशः किस प्रकार के समाजों का प्रतिनिधित्व करती हैं?
- औद्योगिक और औद्योगिक-पूर्व
- पारंपरिक, समुदाय-आधारित समाज और आधुनिक, व्यक्तिवादी समाज
- सैन्यवादी और नागरिक
- गरीब और अमीर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: फर्डिनेंड टोनीज़ (Ferdinand Tönnies) ने गमेन्सचैफ्ट (Gemeinschaft) को घनिष्ठ, अंतरंग, और पारंपरिक समुदाय-आधारित संबंधों (जैसे परिवार, पड़ोस) के रूप में वर्णित किया, जहाँ इच्छाएं स्वाभाविक और भावनात्मक रूप से जुड़ी होती हैं। गेसेलस्चैफ्ट (Gesellschaft) को उन्होंने आधुनिक, औपचारिक, यांत्रिक और स्वार्थी संबंधों (जैसे बड़े शहरों, बड़े निगमों) के रूप में परिभाषित किया, जहाँ संबंध अनुबंधात्मक और उद्देश्य-उन्मुख होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह द्वंद्व शहरीकरण के सामाजिक प्रभावों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण शुरुआती ढाँचा प्रदान करता है, जहाँ समुदाय-आधारित जीवन शैली व्यक्तिवादी और औपचारिक जीवन शैली में परिवर्तित हो जाती है।
- गलत विकल्प: यह द्वंद्व समाज की प्रकृति में अंतर करता है, विशेषकर समुदायों और आधुनिक समाजों के बीच, न कि केवल औद्योगिक अवस्थाओं या आय के स्तर के आधार पर।
प्रश्न 23: भारतीय समाज में, ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secularism) की अवधारणा को किस रूप में समझा जाता है?
- सभी धर्मों को प्रतिबंधित करना।
- राज्य का किसी भी धर्म से विशेष संबंध न रखना और सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहना।
- केवल एक प्रमुख धर्म को बढ़ावा देना।
- धर्म को निजी मामला मानना और सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह हटा देना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय संविधान के अनुसार, धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों को समान सम्मान देगा और किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में मान्यता नहीं देगा। राज्य सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने, अभ्यास करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेगा।
- संदर्भ और विस्तार: यह पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से थोड़ा भिन्न है जहाँ राज्य धर्म से पूरी तरह अलग हो जाता है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है ताकि सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके (जैसे कि छुआछूत को समाप्त करना)।
- गलत विकल्प: धर्मों को प्रतिबंधित करना, किसी एक धर्म को बढ़ावा देना, या धर्म को सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह हटा देना भारतीय धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या नहीं है।
प्रश्न 24: निम्नांकित में से कौन सी सामाजिक समस्या गरीबी, बेरोजगारी, अपराध, और नशीली दवाओं के सेवन जैसी कई अन्य समस्याओं का मूल कारण मानी जाती है?
- असमानता
- सामाजिक विचलन (Social Deviance)
- अनुकूलन (Adaptation)
- सामूहिकता (Collectivism)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: असमानता (Inequality), चाहे वह आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक हो, अक्सर गरीबी, बेरोजगारी, सामाजिक विचलन, और अपराध जैसी कई अन्य सामाजिक समस्याओं का मूल कारण बनती है। जब संसाधनों, अवसरों और शक्ति का वितरण अत्यधिक असमान होता है, तो यह समाज में तनाव, निराशा और बहिष्कार को जन्म देती है।
- संदर्भ और विस्तार: विभिन्न समाजशास्त्रीय सिद्धांत, विशेष रूप से संघर्ष सिद्धांत, यह मानते हैं कि असमानता ही सामाजिक समस्याओं की जड़ है।
- गलत विकल्प: सामाजिक विचलन स्वयं एक समस्या या परिणाम है। अनुकूलन एक प्रक्रिया है। सामूहिकता समुदाय के महत्व पर जोर देती है।
प्रश्न 25: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो समाज में प्रौद्योगिकी या भौतिक संस्कृति में तेजी से होने वाले परिवर्तनों और अभौतिक संस्कृति (जैसे मानदंड, मूल्य, विश्वास) में होने वाले धीमे परिवर्तनों के बीच अंतराल को दर्शाती है, किसने प्रस्तुत की?
- एमिल दुर्खीम
- विलियम ग्राहम समनर
- एल्बर्ट आइंस्टीन
- विलियम ओगबर्न
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम ओगबर्न (William Ogburn) ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘Social Change with Respect to Culture and Original Nature’ में ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा पेश की। उन्होंने तर्क दिया कि जब प्रौद्योगिकी और भौतिक संस्कृति में परिवर्तन अभौतिक संस्कृति (जैसे रीति-रिवाज, कानून, नैतिकता) में परिवर्तन की तुलना में तेजी से होते हैं, तो समाज में असंतुलन और समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, नई तकनीकों (जैसे इंटरनेट) का आगमन समाज में तेजी से हुआ, लेकिन इससे संबंधित सामाजिक मानदंड, गोपनीयता कानून और नैतिक दिशानिर्देशों को विकसित होने में समय लगा, जिससे ‘सांस्कृतिक विलंब’ की स्थिति पैदा हुई।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ‘सामाजिक तथ्यों’ और ‘एनोमी’ से जुड़े हैं। समनर ‘लोकप्रिय रीति-रिवाज’ (Folkways) और ‘रूढ़ियाँ’ (Mores) से जुड़े हैं। आइंस्टीन भौतिक विज्ञानी थे।