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फर्जी मतदाता सूची का खुलासा: चुनाव प्रणाली पर गहराता अविश्वास!

फर्जी मतदाता सूची का खुलासा: चुनाव प्रणाली पर गहराता अविश्वास!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक चौंकाने वाला आरोप लगाते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने चुनाव आयोग (EC) के साथ मिलकर “चुनाव चुराया” है। उन्होंने इसका सबूत स्क्रीन पर प्रदर्शित मतदाता सूची को बताते हुए दावा किया कि महाराष्ट्र में 40 लाख से अधिक मतदाता सूची में संदिग्ध नाम शामिल हैं, और कर्नाटक में भी इसी तरह के फर्जीवाड़े की बात कही। यह आरोप भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की पवित्रता और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। ऐसे आरोप, विशेष रूप से जब वे प्रमुख राजनीतिक हस्तियों द्वारा लगाए जाते हैं, तो न केवल जनता के विश्वास को हिला सकते हैं, बल्कि चुनावी व्यवस्था की अखंडता के बारे में भी गंभीर चिंताएँ पैदा करते हैं। यह ब्लॉग पोस्ट इस मामले के विभिन्न पहलुओं, इसके पीछे की राजनीति, चुनावी प्रक्रिया में डेटा की भूमिका, और ऐसे आरोपों के संभावित प्रभावों का गहराई से विश्लेषण करेगा।

चुनावों की निष्पक्षता: एक आधारशिला (Fairness of Elections: A Cornerstone)

लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण कसौटी स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव होते हैं। ये चुनाव न केवल सरकारों के गठन का आधार होते हैं, बल्कि नागरिकों को अपनी पसंद के प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार भी देते हैं। चुनावी प्रक्रिया की अखंडता पर सवाल उठने का अर्थ है सीधे तौर पर लोकतंत्र की जड़ों पर प्रहार करना। एक ऐसी प्रणाली जहाँ मतदाता सूची में अनियमितताएं या हेरफेर की आशंका हो, वह मतदाताओं के विश्वास को कम करती है और अंततः राजनीतिक भागीदारी को भी प्रभावित कर सकती है।

उपमा: चुनाव प्रणाली को एक विशाल इमारत की नींव के रूप में देखा जा सकता है। यदि नींव में दरारें हों या वह कमजोर हो, तो पूरी इमारत ढह सकती है। मतदाता सूची उस नींव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि इसमें संदिग्ध या फर्जी प्रविष्टियाँ हैं, तो यह चुनावी प्रक्रिया की नींव को कमजोर करती है।

राहुल गांधी के आरोप क्या हैं? (What are Rahul Gandhi’s Allegations?)

श्री गांधी के आरोपों के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  • “चुनाव चुराना”: उनका सीधा आरोप है कि सत्तारूढ़ दल (BJP) चुनाव आयोग के साथ मिलीभगत करके चुनावों को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहा है।
  • सबूत के तौर पर डेटा: उन्होंने अपने दावे के समर्थन में स्क्रीन पर मतदाता सूची के कुछ हिस्से दिखाए।
  • महाराष्ट्र में 40 लाख संदिग्ध नाम: यह सबसे गंभीर दावा है, जिसके अनुसार महाराष्ट्र की मतदाता सूची में इतने बड़ी संख्या में ऐसे नाम हो सकते हैं जो या तो डुप्लीकेट हैं, गैर-मौजूद हैं, या किसी अन्य प्रकार की अनियमितता से ग्रसित हैं।
  • कर्नाटक में भी फर्जीवाड़ा: उन्होंने यह भी कहा कि इसी तरह की गड़बड़ियां कर्नाटक की मतदाता सूची में भी पाई गई हैं।

इन आरोपों का सीधा अर्थ यह है कि मतदाता सूचियों में जानबूझकर ऐसी प्रविष्टियाँ की गई हैं या उन्हें बनाए रखा गया है, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं। यह “डबल वोटिंग” या “फर्जी वोटिंग” की संभावनाओं को जन्म देता है, जिससे वास्तविक मतदाताओं की आवाज कमजोर हो जाती है।

मतदाता सूची: चुनावी प्रक्रिया का DNA (Voter List: The DNA of Electoral Process)

मतदाता सूची, जिसे इलेक्टोरल रोल (Electoral Roll) भी कहा जाता है, चुनावी प्रक्रिया की रीढ़ होती है। यह उन सभी नागरिकों की एक विस्तृत सूची है जो किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में मतदान करने के पात्र हैं। इसे भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा भारत के महा-पंजीयक (Registrar General of India) और जनगणना आयुक्त (Census Commissioner) के सहयोग से तैयार और अद्यतन किया जाता है।

मतदाता सूची में शामिल मुख्य जानकारी:

  • मतदाता का नाम
  • आयु (18 वर्ष या अधिक)
  • लिंग
  • पता
  • निर्वाचन क्षेत्र में मतदान केंद्र
  • मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) नंबर

मतदाता सूची का महत्व:

  • पात्रता का निर्धारण: यह सुनिश्चित करता है कि केवल पात्र नागरिक ही मतदान कर सकें।
  • एकल वोटिंग: डुप्लीकेट प्रविष्टियों को हटाकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रत्येक नागरिक केवल एक बार ही वोट दे सके।
  • निष्पक्षता: स्वच्छ और अद्यतन मतदाता सूची निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन: जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन में भी मदद करती है।

उपमा: यदि आप एक पार्टी का आयोजन कर रहे हैं, तो आपको मेहमानों की एक सटीक सूची की आवश्यकता होगी। यदि सूची में ऐसे नाम हैं जिन्हें आपने आमंत्रित नहीं किया है, या यदि कुछ मेहमानों के नाम दो बार लिखे हैं, तो पार्टी में अव्यवस्था फैल सकती है। मतदाता सूची भी ऐसी ही एक महत्वपूर्ण ‘आमंत्रित’ लोगों की सूची है।

आरोपों की पड़ताल: महाराष्ट्र और कर्नाटक के दावे (Investigating the Allegations: Maharashtra and Karnataka Claims)

श्री गांधी द्वारा उठाए गए ये विशिष्ट आरोप, जैसे महाराष्ट्र में 40 लाख और कर्नाटक में फर्जीवाड़े की बात, सीधे तौर पर मतदाता सूचियों की डेटा अखंडता से जुड़े हैं।

संभावित मुद्दे जिन पर आरोप आधारित हो सकते हैं:

  • डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ: एक ही व्यक्ति का नाम एक से अधिक बार सूची में होना।
  • मृत या स्थानांतरित मतदाता: ऐसे मतदाता जो या तो मृत हो चुके हैं या किसी अन्य स्थान पर चले गए हैं, लेकिन अभी भी सूची में शामिल हैं।
  • गैर-मौजूद मतदाता: ऐसे नाम जो कभी अस्तित्व में ही नहीं थे या फर्जी पते पर दर्ज हैं।
  • गलत पहचान: समान नामों वाले व्यक्तियों के बीच भ्रम।
  • डेटा प्रविष्टि त्रुटियाँ: मानवीय भूल या प्रणालीगत खामियों के कारण होने वाली त्रुटियाँ।

तकनीकी पहलू: आधुनिक युग में, मतदाता सूचियों का प्रबंधन बड़े पैमाने पर डेटाबेस के माध्यम से होता है। इन डेटाबेस को नियमित रूप से साफ (cleanse) और अद्यतन (update) करने की आवश्यकता होती है। डेटा मिलान (data matching) और विसंगति का पता लगाने (anomaly detection) के लिए विभिन्न एल्गोरिदम का उपयोग किया जाता है। यदि इन प्रक्रियाओं में विफलता होती है, तो इस तरह की संदिग्ध प्रविष्टियाँ जमा हो सकती हैं।

“हमारा लक्ष्य हर चुनाव को स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना है। मतदाता सूची की शुद्धता हमारी प्राथमिकता है।”
– चुनाव आयोग (संभावित प्रतिक्रिया)

चुनाव आयोग (ECI) की भूमिका और चुनौतियाँ (Role and Challenges of the Election Commission of India)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को भारत में चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है। इसका मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव निष्पक्ष, स्वतंत्र और स्वतंत्र रूप से हों।

ECI की जिम्मेदारियाँ:

  • मतदाता सूचियों की तैयारी और अद्यतन।
  • चुनाव कार्यक्रम तय करना और उसका संचालन करना।
  • चुनाव चिन्ह आवंटित करना।
  • राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए आचार संहिता लागू करना।
  • मतदान की निष्पक्षता सुनिश्चित करना।
  • चुनाव परिणामों की घोषणा करना।

ECI के समक्ष चुनौतियाँ:

  • बड़े पैमाने पर डेटा प्रबंधन: भारत जैसे विशाल देश में करोड़ों मतदाताओं की सूची को अद्यतन रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है।
  • तकनीकी उन्नयन: नवीनतम डेटा प्रबंधन तकनीकों और सुरक्षा उपायों को अपनाना।
  • विभिन्न हितधारक: राजनीतिक दल, सरकारी एजेंसियां, और आम जनता, सभी के अपने हित और अपेक्षाएं होती हैं।
  • आरोपों का सामना: राजनीतिक दलों द्वारा लगाए गए आरोपों और शिकायतों का निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से समाधान करना।
  • गलत सूचना का प्रसार: सोशल मीडिया के युग में, गलत सूचना और अफवाहों को रोकना।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और चुनावी खेल (Political Mud-slinging and Electoral Games)

यह पहली बार नहीं है जब किसी प्रमुख राजनीतिक दल ने चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। अक्सर, विशेष रूप से चुनाव से ठीक पहले या बाद में, हारने वाले दल या कमजोर स्थिति वाले दल इस तरह के आरोप लगाकर ईवीएम, मतदाता सूची, या अन्य प्रशासनिक पहलुओं पर बहस छेड़ देते हैं।

इस तरह के आरोपों के पीछे संभावित राजनीतिक मंशाएं:

  • जनता के विश्वास को कम करना: यदि कोई दल हारता है, तो वह परिणाम की वैधता को कम करने के लिए इन मुद्दों को उठा सकता है।
  • ECI पर दबाव बनाना: चुनाव आयोग पर अपनी कार्रवाईयों में अधिक सतर्क रहने का दबाव बनाना।
  • समर्थकों का मनोबल बढ़ाना: अपने समर्थकों को यह संदेश देना कि वे चुनावी प्रक्रिया पर “नजर” रख रहे हैं।
  • मुद्दों का ध्यान भटकाना: अन्य ज्वलंत मुद्दों से ध्यान हटाकर चुनावी प्रक्रिया पर केंद्रित करना।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि ऐसे आरोप केवल राजनीतिक लाभ के लिए लगाए जाते हैं और उनके समर्थन में पुख्ता सबूत नहीं होते, तो वे केवल चुनावी विमर्श को दूषित करते हैं। दूसरी ओर, यदि वास्तव में गंभीर अनियमितताएं होती हैं, तो उन्हें उजागर करना और ठीक करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

डाटा की सत्यता: कैसे सुनिश्चित की जाए? (Data Integrity: How to Ensure?)

राहुल गांधी द्वारा उठाए गए “40 लाख संदिग्ध नाम” जैसे आरोप डेटा की सत्यता को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल देते हैं। इसे प्राप्त करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. नियमित डेटा ऑडिट: मतदाता सूचियों का स्वतंत्र और नियमित ऑडिट किया जाना चाहिए ताकि डुप्लीकेट, मृत, या अन्य गैर-पात्र प्रविष्टियों की पहचान की जा सके।
  2. आधार लिंकिंग (सावधानी से): मतदाता सूची को आधार से लिंक करने का प्रस्ताव अक्सर डेटा को डी-डुप्लीकेट करने के लिए दिया जाता है, लेकिन इसे गोपनीयता और संवैधानिक वैधता के कड़े अनुपालन के साथ किया जाना चाहिए।
  3. तकनीकी समाधान: उन्नत डेटा एनालिटिक्स और मशीन लर्निंग का उपयोग करके विसंगतियों का पता लगाया जा सकता है।
  4. सार्वजनिक भागीदारी: नागरिकों को मतदाता सूची की समीक्षा करने और त्रुटियों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। (जैसे मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त संशोधन अभियान)।
  5. पारदर्शी प्रक्रिया: डेटा अद्यतन और सफाई की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए, और राजनीतिक दलों को इसमें भाग लेने का अवसर दिया जाना चाहिए (जैसे आपत्ति दर्ज कराना)।
  6. डेमोग्राफिक डेटा का उपयोग: जनगणना और अन्य सरकारी डेटा के साथ मतदाता सूची के डेटा का मिलान करके संभावित विसंगतियों का पता लगाया जा सकता है।

केस स्टडी: कई देशों ने मतदाता सूचियों को अद्यतन और साफ रखने के लिए प्रभावी तकनीकें अपनाई हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ राज्यों में, मृत व्यक्तियों के डेटाबेस को नियमित रूप से मतदाता सूची से मिलान किया जाता है। कनाडा में, राष्ट्रीय जनांकिकी डेटाबेस (National Demographics Database) का उपयोग मतदाता सूची को अद्यतन करने में मदद करता है।

संभावित प्रभाव और निष्कर्ष (Potential Impacts and Conclusion)

राजनीतिक दलों द्वारा लगाए गए आरोप, भले ही वे कितने भी गंभीर लगें, यदि उनका निर्णायक सबूत के साथ पालन नहीं किया जाता है, तो वे जनता के मन में संदेह का बीज बो सकते हैं।

संभावित नकारात्मक प्रभाव:

  • जनता का विश्वास कम होना: यदि नागरिक यह सोचने लगते हैं कि चुनाव निष्पक्ष नहीं हैं, तो वे मतदान करने से कतरा सकते हैं, जिससे चुनावी भागीदारी कम हो सकती है।
  • लोकतंत्र का कमजोर होना: चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह पूरे लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर कर सकता है।
  • अस्थिरता: चुनावी परिणामों को चुनौती देने से राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है।

निष्कर्ष:

राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोप, यदि सत्य हैं, तो वे भारत की चुनावी प्रणाली के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। मतदाता सूची की शुद्धता और अखंडता को बनाए रखना चुनाव आयोग की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। राजनीतिक दलों की यह जिम्मेदारी है कि वे ठोस सबूत पेश करें और यदि वे आरोप लगाते हैं, तो वे उन्हें बिना आधार के न उछालें। चुनाव आयोग को इन आरोपों की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए और जनता के समक्ष पारदर्शी तरीके से अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने चाहिए। अंततः, लोकतंत्र की मजबूती तभी संभव है जब सभी हितधारक चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता में विश्वास रखें। इस तरह के आरोप हमें याद दिलाते हैं कि हमें लगातार अपनी चुनावी प्रणाली को मजबूत करने और उसकी अखंडता बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहना होगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग को चुनावी प्रक्रियाओं के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है?

    a) अनुच्छेद 315

    b) अनुच्छेद 324

    c) अनुच्छेद 280

    d) अनुच्छेद 352

    उत्तर: b) अनुच्छेद 324

    व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारतीय संविधान में चुनाव आयोग की स्थापना और शक्तियों का वर्णन करता है।
  2. प्रश्न 2: मतदाता सूची (Electoral Roll) की तैयारी और अद्यतन की मुख्य जिम्मेदारी किसकी है?

    a) भारत का महान्यायवादी

    b) गृह मंत्रालय

    c) भारत का चुनाव आयोग

    d) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

    उत्तर: c) भारत का चुनाव आयोग

    व्याख्या: भारत का चुनाव आयोग मतदाता सूचियों की तैयारी, संशोधन और अद्यतन के लिए जिम्मेदार है।
  3. प्रश्न 3: भारत में मतदाता के रूप में योग्य होने के लिए न्यूनतम आयु कितनी है?

    a) 18 वर्ष

    b) 21 वर्ष

    c) 25 वर्ष

    d) 16 वर्ष

    उत्तर: a) 18 वर्ष

    व्याख्या: 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 द्वारा मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई थी।
  4. प्रश्न 4: “मतदाता सूची में संदिग्ध नाम” से संबंधित आरोप मुख्य रूप से किस चुनावी प्रक्रिया की अखंडता पर प्रश्न उठाते हैं?

    a) चुनाव प्रचार की लागत

    b) मतदान के दिन की सुरक्षा

    c) मतदाता की पात्रता और एक व्यक्ति, एक वोट का सिद्धांत

    d) चुनाव आयोग की स्वायत्तता

    उत्तर: c) मतदाता की पात्रता और एक व्यक्ति, एक वोट का सिद्धांत

    व्याख्या: संदिग्ध नाम मतदाता की सही पहचान और एक से अधिक बार वोट देने की संभावनाओं को प्रभावित करते हैं।
  5. प्रश्न 5: चुनाव आयोग (ECI) के कार्यक्षेत्र के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य नहीं है?

    a) राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के लिए चुनावों का संचालन करना।

    b) संसद और राज्य विधानमंडलों के चुनावों के लिए मतदाता सूचियों को तैयार करना।

    c) राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय और राज्य दलों के रूप में मान्यता देना।

    d) आपातकाल की घोषणा करना।

    उत्तर: d) आपातकाल की घोषणा करना।

    व्याख्या: आपातकाल की घोषणा करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होती है, न कि चुनाव आयोग के पास।
  6. प्रश्न 6: भारत में मतदाता पहचान पत्र (EPIC) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?

    a) यह एक संवैधानिक रूप से अनिवार्य दस्तावेज है।

    b) इसका उपयोग मतदाता की पहचान स्थापित करने के लिए किया जाता है।

    c) यह सभी चुनावी राज्यों के लिए एक समान प्रारूप में होता है।

    d) इसके बिना मतदान की अनुमति नहीं है।

    उत्तर: b) इसका उपयोग मतदाता की पहचान स्थापित करने के लिए किया जाता है।

    व्याख्या: EPIC मतदाता की पहचान के लिए प्राथमिक दस्तावेज है, लेकिन मतदान के लिए वैकल्पिक पहचान पत्र भी स्वीकार किए जाते हैं। यह अनिवार्य नहीं है कि इसके बिना मतदान की अनुमति न हो।
  7. प्रश्न 7: यदि मतदाता सूची में बहुत अधिक “डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ” पाई जाती हैं, तो इसका सबसे संभावित परिणाम क्या हो सकता है?

    a) मतदान केंद्रों पर लंबी कतारें।

    b) चुनाव परिणामों में हेरफेर की संभावना।

    c) मतदाताओं को अपने मतदान केंद्र बदलने में आसानी।

    d) अधिक योग्य मतदाताओं का पंजीकरण।

    उत्तर: b) चुनाव परिणामों में हेरफेर की संभावना।

    व्याख्या: डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ फर्जी वोटिंग या “डबल वोटिंग” की सुविधा दे सकती हैं, जिससे चुनाव परिणामों में हेरफेर की आशंका बढ़ जाती है।
  8. प्रश्न 8: “मतदाता सूची का संक्षिप्त संशोधन” (Summary Revision of Electoral Rolls) का उद्देश्य क्या है?

    a) चुनावों की तारीखें बदलना।

    b) मतदाता सूची को अद्यतन करना, नए नाम जोड़ना और हटाना।

    c) चुनाव आयोग के कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना।

    d) राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाना।

    उत्तर: b) मतदाता सूची को अद्यतन करना, नए नाम जोड़ना और हटाना।

    व्याख्या: यह प्रक्रिया मतदाता सूची को ताजा और सटीक रखने के लिए की जाती है।
  9. प्रश्न 9: भारत में चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा तंत्र सबसे महत्वपूर्ण है?

    a) राजनीतिक दलों का वित्तीय योगदान।

    b) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोग।

    c) सोशल मीडिया पर निगरानी।

    d) विदेशी सहायता।

    उत्तर: b) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोग।

    व्याख्या: चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता का प्रहरी है।
  10. प्रश्न 10: यदि किसी राजनीतिक दल को मतदाता सूची में गंभीर अनियमितताओं का पता चलता है, तो उसका पहला और सबसे तार्किक कदम क्या होना चाहिए?

    a) चुनावों का बहिष्कार करना।

    b) सार्वजनिक रूप से बड़े आरोप लगाना।

    c) चुनाव आयोग के समक्ष ठोस सबूतों के साथ आपत्ति दर्ज कराना।

    d) अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग करना।

    उत्तर: c) चुनाव आयोग के समक्ष ठोस सबूतों के साथ आपत्ति दर्ज कराना।

    व्याख्या: चुनावी प्रक्रिया के भीतर शिकायत निवारण तंत्र का उपयोग करना सबसे उचित तरीका है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: हाल के वर्षों में मतदाता सूचियों की शुद्धता और अखंडता पर उठ रहे प्रश्नों के आलोक में, भारतीय चुनाव प्रणाली के समक्ष प्रमुख चुनौतियों की विवेचना कीजिए। इन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा उठाए जा सकने वाले कदमों और वर्तमान में अपनाई जा रही रणनीतियों का विश्लेषण करें। (लगभग 250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: “मतदाता सूची चुनावी लोकतंत्र का DNA है।” इस कथन के प्रकाश में, मतदाता सूची में संभावित अनियमितताओं (जैसे डुप्लीकेट या मृत मतदाताओं के नाम) के कारणों, उनके गंभीर परिणामों और उन्हें दूर करने के लिए तकनीकी और प्रशासनिक उपायों का विस्तार से वर्णन करें। (लगभग 200 शब्द)
  3. प्रश्न 3: राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव आयोग और चुनावी प्रक्रियाओं पर लगाए जाने वाले आरोपों के पीछे की राजनीतिक प्रेरणाओं और उनके संभावित प्रभाव पर चर्चा कीजिए। लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए ऐसे आरोपों से कैसे निपटा जाना चाहिए? (लगभग 150 शब्द)
  4. प्रश्न 4: डेटा सुरक्षा और गोपनीयता के अधिकार को सुनिश्चित करते हुए, मतदाता सूचियों को अद्यतन और डी-डुप्लीकेट करने के लिए आधार जैसे पहचान स्रोतों का उपयोग कितना व्यवहार्य और संवैधानिक रूप से उचित है? इस मुद्दे पर विभिन्न दृष्टिकोणों का विश्लेषण करें। (लगभग 150 शब्द)

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