समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अपनी अवधारणाओं को परखें!
तैयारी के इस सफर में, आपकी समझ को तीक्ष्ण बनाना सर्वोपरि है! आज का समाजशास्त्र प्रश्नोत्तरी आपको प्रमुख समाजशास्त्रियों, मूलभूत अवधारणाओं और भारतीय समाज की जटिलताओं पर अपनी पकड़ को मजबूत करने का अवसर देता है। आइए, देखें कि आप आज कितना अच्छा प्रदर्शन करते हैं और अपनी ज्ञान की सीमाओं का विस्तार करते हैं!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘मैजिक, साइंस एंड रिलिजन’ पुस्तक के लेखक कौन हैं, जिन्होंने समाजशास्त्र में ज्ञानमीमांसा (Epistemology) के महत्व पर प्रकाश डाला?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- ब्रॉनिस्लॉ मालिनोवस्की
- कार्ल मार्क्स
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ब्रॉनिस्लॉ मालिनोवस्की, एक मानवशास्त्री, ने अपनी पुस्तक ‘मैजिक, साइंस एंड रिलिजन’ (1948) में जादू, धर्म और विज्ञान के बीच के अंतर और समाज में उनकी भूमिकाओं का विश्लेषण किया। उन्होंने तर्क दिया कि ये अलग-अलग तरीके ज्ञान प्राप्त करने और दुनिया को समझने के लिए समाज के सदस्यों द्वारा उपयोग किए जाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मालिनोवस्की ने अपने फील्डवर्क, विशेष रूप से ट्रोब्रियांड द्वीप समूह के लोगों पर, के आधार पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने जादू को विशेष रूप से उन परिस्थितियों में उपयोगी बताया जहाँ विज्ञान असमर्थ होता है, जैसे कि अनिश्चित और खतरनाक कार्य।
- अincorrect विकल्प: एमिल दुर्खीम ने ‘द एलिमेंट्री फॉर्म्स ऑफ रिलीजियस लाइफ’ में धर्म के सामाजिक कार्यों का विश्लेषण किया। मैक्स वेबर ने धर्म के समाजशास्त्रीय विश्लेषण में योगदान दिया, लेकिन यह पुस्तक उनकी नहीं है। कार्ल मार्क्स ने धर्म को ‘जनता की अफीम’ कहा और उसे सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में देखा।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा मैक्स वेबर द्वारा प्रस्तुत की गई है, जो नौकरशाही की तर्कसंगत-कानूनी सत्ता (Rational-Legal Authority) के आदर्श प्रारूप (Ideal Type) का वर्णन करती है?
- सामूहिक चेतना (Collective Conscience)
- अलगाव (Alienation)
- तर्कसंगतता (Rationality)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मैक्स वेबर ने सत्ता (Authority) के तीन प्रकारों का वर्णन किया: करिश्माई, पारंपरिक और तर्कसंगत-कानूनी। तर्कसंगतता (Rationality) वह मुख्य अवधारणा है जिसके आधार पर तर्कसंगत-कानूनी सत्ता आधारित होती है, जहाँ शक्ति नियमों, प्रक्रियाओं और पदों के माध्यम से लागू होती है। नौकरशाही इसी तर्कसंगत-कानूनी सत्ता का आदर्श प्रारूप है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर के अनुसार, आधुनिक समाज का लक्षण ‘तर्कसंगतता का प्रसार’ (Disenchantment of the World) है, जिसमें पारंपरिक और करिश्माई सत्ताएँ धीरे-धीरे तर्कसंगत-कानूनी सत्ता से प्रतिस्थापित हो जाती हैं। उनकी पुस्तक ‘इकॉनमी एंड सोसाइटी’ में इसका विस्तृत विश्लेषण है।
- अincorrect विकल्प: ‘सामूहिक चेतना’ एमिल दुर्खीम की अवधारणा है। ‘अलगाव’ कार्ल मार्क्स की प्रमुख अवधारणा है। ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ जॉर्ज हर्बर्ट मीड और चार्ल्स कर्टिस कोलमैन से जुड़ा है।
प्रश्न 3: भारत में जाति व्यवस्था के संदर्भ में, ‘अविस्थापन’ (Non-Usurpation) का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया?
- जी.एस. घुरिये
- एम.एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
- ई.टी. थॉम्पसन
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ई.टी. थॉम्पसन (E.T. Thompson) ने जाति व्यवस्था के संदर्भ में ‘अविस्थापन’ (Non-Usurpation) के सिद्धांत पर काम किया। इसका अर्थ है कि भारतीय समाज में, जन्म से प्राप्त एक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और उससे जुड़े अधिकार या विशेषाधिकार, उसके द्वारा किसी अन्य व्यक्ति की स्थिति को ‘ले लेने’ (usurp) से नहीं छीने जा सकते।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत विशेष रूप से उन परिस्थितियों पर प्रकाश डालता है जहाँ सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) की प्रक्रियाएं भी जन्म-आधारित संरचना को पूरी तरह से नहीं बदल पातीं, क्योंकि विशेषाधिकारों और भूमिकाओं का आवंटन कठोरता से तय होता है।
- अincorrect विकल्प: जी.एस. घुरिये ने जाति की छह विशिष्ट विशेषताओं का वर्णन किया। एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) और ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) जैसी अवधारणाएं दीं। इरावती कर्वे ने भारत में नातेदारी (Kinship) व्यवस्था पर महत्वपूर्ण कार्य किया।
प्रश्न 4: एमिल दुर्खीम के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन सी स्थिति सामाजिक व्यवस्था के विघटन और व्यक्तियों के अनियंत्रित होने का कारण बनती है?
- संविभाजन (Division of Labour)
- एकता (Solidarity)
- अराजकता (Anomie)
- धर्म (Religion)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘अराजकता’ (Anomie) की अवधारणा को समझाया। यह समाज में नैतिक और सामाजिक नियमों की कमी या अनिश्चितता की स्थिति को दर्शाता है, जहाँ व्यक्ति के व्यवहार के लिए कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं होते, जिससे अत्यधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक विघटन होता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी कृतियों ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ और ‘सुसाइड’ में इस अवधारणा का उपयोग किया। उन्होंने बताया कि आधुनिक समाजों में, जहाँ पारंपरिक बंधनों का क्षरण होता है, एनोमी का खतरा बढ़ जाता है।
- अincorrect विकल्प: ‘संविभाजन’ समाज को एकीकृत करने में मदद करता है (यांत्रिक एकता से जैविक एकता की ओर)। ‘एकता’ (Solidarity) सामाजिक बंधन को दर्शाती है। ‘धर्म’ दुर्खीम के अनुसार समाज को एकीकृत करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है।
प्रश्न 5: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) के किस दृष्टिकोण के अनुसार, समाज को व्यवस्थित रखने के लिए असमानता आवश्यक है क्योंकि यह व्यक्तियों को महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाने के लिए प्रेरित करती है?
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- कार्यात्मकतावाद (Functionalism)
- विनिमय सिद्धांत (Exchange Theory)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्यात्मकतावाद (Functionalism) दृष्टिकोण, विशेष रूप से किंग्सले डेविस और विल्बर्ट मूर के कार्य में, बताता है कि सामाजिक स्तरीकरण समाज के लिए कार्यात्मक है। यह मानता है कि महत्वपूर्ण पदों को भरने के लिए, समाज को सबसे योग्य व्यक्तियों को आकर्षित करने के लिए पुरस्कार (जैसे धन, प्रतिष्ठा) के माध्यम से प्रोत्साहन देना चाहिए, जिससे असमानता उत्पन्न होती है।
- संदर्भ और विस्तार: डेविस और मूर के अनुसार, समाज को यह सुनिश्चित करने के लिए स्तरीकरण की आवश्यकता है कि सबसे अधिक क्षमता वाले व्यक्ति सबसे महत्वपूर्ण भूमिकाओं को स्वीकार करें। यह सिद्धांत सामाजिक व्यवस्था और स्थिरता बनाए रखने पर जोर देता है।
- अincorrect विकल्प: ‘संघर्ष सिद्धांत’ (जैसे मार्क्स) मानता है कि असमानता समाज में संघर्ष और शोषण का कारण बनती है। ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ सामाजिक अंतःक्रियाओं और अर्थों के निर्माण पर केंद्रित है। ‘विनिमय सिद्धांत’ सामाजिक व्यवहार को पुरस्कार और लागत के आदान-प्रदान के रूप में देखता है।
प्रश्न 6: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में, उत्पादन के साधनों पर किसका स्वामित्व होता है?
- सर्वहारा (Proletariat)
- बुर्जुआ (Bourgeoisie)
- बुद्धिजीवी वर्ग (Intelligentsia)
- किसान वर्ग (Peasantry)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी समाज को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया: बुर्जुआ (Bourgeoisie), जो उत्पादन के साधनों (जैसे कारखाने, भूमि, मशीनें) के मालिक होते हैं, और सर्वहारा (Proletariat), जो अपने श्रम को बेचकर जीवन यापन करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, बुर्जुआ वर्ग सर्वहारा वर्ग का शोषण करता है, क्योंकि वह उनके श्रम से उत्पन्न अतिरिक्त मूल्य (Surplus Value) पर कब्जा कर लेता है। यह शोषण वर्ग संघर्ष का मूल कारण है।
- अincorrect विकल्प: सर्वहारा वर्ग वह वर्ग है जिसके पास उत्पादन के साधन नहीं होते। बुद्धिजीवी वर्ग और किसान वर्ग भी पूंजीवादी समाज के अन्य अंग हो सकते हैं, लेकिन उत्पादन के साधनों के मालिक मुख्य रूप से बुर्जुआ होते हैं।
प्रश्न 7: ‘अन्य का आईना’ (The Looking-Glass Self) की अवधारणा किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?
- चार्ल्स हॉर्टन कूली
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- हरबर्ट ब्लूमर
- एर्विंग गॉफमैन
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: चार्ल्स हॉर्टन कूली ने ‘अन्य का आईना’ (The Looking-Glass Self) की अवधारणा प्रस्तुत की। इसके अनुसार, व्यक्ति का आत्म-बोध (Self-Concept) इस बात पर निर्भर करता है कि वह दूसरों को कैसा दिखता है या दूसरों की नज़रों में वह कैसा है। इसमें तीन मुख्य चरण होते हैं: हम अपनी कल्पना करते हैं कि हम दूसरों की नज़रों में कैसे दिखते हैं; हम कल्पना करते हैं कि दूसरे हमारे बारे में क्या निर्णय लेते हैं; और हम इन निर्णयों के आधार पर अपने बारे में भावनाएं (जैसे गर्व या निराशा) विकसित करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा कूली की पुस्तक ‘ह्यूमन नेचर एंड द सोशल आर्डर’ (1902) में पाई जाती है और प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के विकास में महत्वपूर्ण है।
- अincorrect विकल्प: जॉर्ज हर्बर्ट मीड ने ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) की अवधारणा विकसित की, जो आत्म (Self) के विकास से संबंधित है। हरबर्ट ब्लूमर ने ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ शब्द गढ़ा। एर्विंग गॉफमैन ने ‘नाटकीयता’ (Dramaturgy) का सिद्धांत दिया।
प्रश्न 8: भारतीय समाज में, ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया का अर्थ है:
- पश्चिमी संस्कृति को अपनाना
- उच्च जातियों की प्रथाओं, अनुष्ठानों और विश्वासों को अपनाना
- शहरी जीवन शैली को अपनाना
- धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा गढ़ी गई ‘संस्कृतिकरण’ की अवधारणा का अर्थ है कि निम्न और मध्य जातियों के समूह, उच्च जातियों (विशेषकर द्विजातियों) के आचार-विचार, रीति-रिवाजों, पूजा-पद्धतियों और जीवन शैली को अपनाते हैं, ताकि वे जाति पदानुक्रम में अपनी स्थिति को ऊपर उठा सकें।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ (1952) में इस अवधारणा को पहली बार प्रस्तुत किया। यह सांस्कृतिक गतिशीलता (Cultural Mobility) का एक रूप है।
- अincorrect विकल्प: ‘पश्चिमी संस्कृति को अपनाना’ पश्चिमीकरण (Westernization) कहलाता है। ‘शहरी जीवन शैली को अपनाना’ नगरीकरण (Urbanization) का एक पहलू हो सकता है। ‘धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना’ संस्कृतिकरण का एक हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह पूर्ण परिभाषा नहीं है।
प्रश्न 9: एल.टी. हॉबहाउस (L.T. Hobhouse) ने समाज के विकास के किस सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जो संघर्ष से सामंजस्य की ओर परिवर्तन पर बल देता है?
- विकासवाद (Evolutionism)
- सांस्कृतिक सापेक्षवाद (Cultural Relativism)
- प्रगतिवाद (Progressivism)
- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एल.टी. हॉबहाउस एक ब्रिटिश समाजशास्त्री थे जिन्होंने ‘प्रगतिवाद’ (Progressivism) के सिद्धांत का समर्थन किया। उनके अनुसार, समाज का विकास सरल से जटिल की ओर, और संघर्ष से सामंजस्य, बर्बरता से सभ्यता की ओर बढ़ता है। उन्होंने समाज को एक ‘लगातार विकसित होने वाले तंत्र’ (Dynamically Evolving Mechanism) के रूप में देखा।
- संदर्भ और विस्तार: हॉबहाउस ने अपनी पुस्तक ‘डेमोक्रेसी एंड प्रोग्रेस’ में तर्क दिया कि तर्क और विवेक के बढ़ते उपयोग से समाज अधिक न्यायपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण बनता है।
- अincorrect विकल्प: ‘विकासवाद’ (Evolutionism) आमतौर पर सामाजिक विकास के चरणबद्ध दृष्टिकोण को संदर्भित करता है (जैसे स्पेंसर)। ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ विभिन्न संस्कृतियों के अपने संदर्भ में मूल्यांकन पर जोर देता है। ‘द्वंद्वात्मक भौतिकवाद’ कार्ल मार्क्स का सिद्धांत है।
प्रश्न 10: दुर्खीम के अनुसार, समाज में ‘यांत्रिक एकता’ (Mechanical Solidarity) कहाँ पाई जाती है?
- आधुनिक औद्योगिक समाजों में
- सरल, जनजातीय समाजों में
- बड़े, जटिल समाजों में
- पूंजीवादी समाजों में
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘यांत्रिक एकता’ (Mechanical Solidarity) को उन समाजों में पाया जहाँ सदस्य अत्यधिक समान होते हैं, समान विश्वास, भावनाएं और अनुभव साझा करते हैं। यह विशेषता सरल, जनजातीय और पारंपरिक समाजों में प्रमुख होती है, जहाँ श्रम का विभाजन न्यूनतम होता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ में ‘यांत्रिक एकता’ के विपरीत ‘जैविक एकता’ (Organic Solidarity) की अवधारणा प्रस्तुत की, जो आधुनिक, जटिल समाजों में श्रम के विभाजन के कारण उत्पन्न होती है।
- अincorrect विकल्प: आधुनिक औद्योगिक और पूंजीवादी समाज ‘जैविक एकता’ प्रदर्शित करते हैं, जहाँ विभिन्न विशेषज्ञता वाले लोग एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।
प्रश्न 11: भारतीय समाज में ‘पैट्रिलीनियल’ (Patrilineal) वंशानुक्रम से क्या तात्पर्य है?
- वंश पिता से पुत्र को चलता है।
- वंश माता से पुत्री को चलता है।
- वंश पिता और माता दोनों से समान रूप से चलता है।
- वंश का निर्धारण माता-पिता के पेशे से होता है।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘पैट्रिलीनियल’ (Patrilineal) वंशानुक्रम का अर्थ है कि परिवार का वंश, संपत्ति और उपाधियाँ पिता से पुत्रों को हस्तांतरित होती हैं। यह भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- संदर्भ और विस्तार: भारत के अधिकांश समुदायों में, चाहे वे कृषि पर आधारित हों या गैर-कृषि पर, पैट्रिलीनियल वंशानुक्रम और निवास (Patrilocal residence) का प्रचलन है, जहाँ विवाह के बाद पत्नी अपने पति के परिवार के साथ रहती है।
- अincorrect विकल्प: ‘वंश माता से पुत्री को चलना’ मैट्रिलीनियल (Matrilineal) है। ‘माता-पिता दोनों से समान रूप से चलना’ द्विपक्षीय (Bilateral) या कॉलेटरल (Collateral) वंशानुक्रम हो सकता है। ‘माता-पिता के पेशे से निर्धारण’ वंशानुक्रम का प्रकार नहीं है।
प्रश्न 12: सामाजिक अनुसंधान में ‘पैटर्न’ (Pattern) की पहचान करना किस पद्धति का मुख्य उद्देश्य है?
- क्षेत्रीय कार्य (Fieldwork)
- सांख्यिकीय विश्लेषण (Statistical Analysis)
- मात्रात्मक अनुसंधान (Quantitative Research)
- गुणात्मक अनुसंधान (Qualitative Research)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मात्रात्मक अनुसंधान (Quantitative Research) का प्राथमिक उद्देश्य चर (Variables) के बीच संबंधों का पता लगाना और व्यवस्थित पैटर्न (Patterns) की पहचान करना है। इसमें अक्सर सांख्यिकीय विधियों का उपयोग करके बड़े डेटा सेट का विश्लेषण किया जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: मात्रात्मक अनुसंधान में सर्वेक्षण, प्रयोग और मौजूदा सांख्यिकीय डेटा का विश्लेषण जैसी विधियाँ शामिल हैं, जो सामान्यीकरण (Generalization) और भविष्य कहनेवाला (Predictive) निष्कर्षों पर जोर देती हैं।
- अincorrect विकल्प: ‘क्षेत्रीय कार्य’ (Fieldwork) गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों हो सकता है, लेकिन पैटर्न की पहचान मात्रात्मक का मुख्य उद्देश्य है। ‘सांख्यिकीय विश्लेषण’ मात्रात्मक अनुसंधान की एक विधि है, लेकिन स्वयं पद्धति नहीं। ‘गुणात्मक अनुसंधान’ गहराई से समझ बनाने पर केंद्रित होता है, न कि संख्यात्मक पैटर्न पर।
प्रश्न 13: हर्बर्ट स्पेंसर ने समाज के विकास को किस जैविक अवधारणा के अनुरूप बताया?
- विकास (Evolution)
- प्राकृतिक चयन (Natural Selection)
- जैविक अनुकूलन (Biological Adaptation)
- सामाजिक डार्विनवाद (Social Darwinism)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: हर्बर्ट स्पेंसर, जिन्हें अक्सर ‘सामाजिक डार्विनवाद’ (Social Darwinism) का अग्रदूत माना जाता है, ने समाज के विकास को चार्ल्स डार्विन के जैविक विकासवाद के सिद्धांतों के अनुरूप देखा। उन्होंने ‘सबसे योग्यतम की उत्तरजीविता’ (Survival of the Fittest) के विचार को समाज पर लागू किया, यह तर्क देते हुए कि समाज प्राकृतिक चयन के माध्यम से सरल से जटिल रूपों में विकसित होता है।
- संदर्भ और विस्तार: स्पेंसर ने अपनी कृतियों जैसे ‘प्रिंसिपल्स ऑफ सोशियोलॉजी’ में औद्योगिक समाजों को सैन्य समाजों से श्रेष्ठ माना, क्योंकि वे अधिक स्वतंत्र और प्रतिस्पर्धी थे।
- अincorrect विकल्प: ‘विकास’ (Evolution) एक सामान्य शब्द है। ‘प्राकृतिक चयन’ डार्विन का जैविक सिद्धांत है, जिसे स्पेंसर ने समाज पर लागू किया। ‘जैविक अनुकूलन’ भी डार्विन से संबंधित है।
प्रश्न 14: किस समाजशास्त्री ने ‘असामान्य’ (Abnormal) व्यवहार की सामाजिक उत्पत्ति का विश्लेषण करते हुए तर्क दिया कि ‘एक कार्य को सामान्य माना जाता है जब वह समाज के औसत में योगदान देता है’?
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- इर्विंग गॉफमैन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘द रूल्स ऑफ सोशियोलॉजिकल मेथड’ में तर्क दिया कि समाजशास्त्र को ‘सामाजिक तथ्यों’ (Social Facts) का अध्ययन करना चाहिए, जो व्यक्ति से बाह्य और बाध्यकारी होते हैं। उन्होंने ‘सामान्य’ (Normal) और ‘रोगग्रस्त’ (Pathological) सामाजिक तथ्यों के बीच अंतर किया। उनके अनुसार, ‘एक कार्य को सामान्य माना जाता है जब वह समाज के औसत में योगदान देता है, या जब वह समाज के औसत के विकास में सहायक होता है।’
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के लिए, अपराध, उदाहरण के लिए, एक सामान्य सामाजिक तथ्य है क्योंकि यह सामाजिक एकता को मजबूत करने में मदद कर सकता है, यह याद दिलाकर कि समुदाय के नियम क्या हैं और सामूहिक भावना को मजबूत कर सकता है।
- अincorrect विकल्प: मैक्स वेबर ने व्यक्तिपरक अर्थों को समझने पर जोर दिया। कार्ल मार्क्स ने शोषण और संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया। इर्विंग गॉफमैन ने सामाजिक अंतःक्रियाओं की सूक्ष्मताओं का विश्लेषण किया।
प्रश्न 15: भारत में ‘जाति’ (Caste) के अध्ययन के संदर्भ में, ‘जजमानी प्रणाली’ (Jajmani System) से क्या तात्पर्य है?
- जाति के आधार पर राजनीतिक शक्ति का वितरण
- सेवाओं और वस्तुओं के परस्पर आदान-प्रदान पर आधारित पारंपरिक ग्राम व्यवस्था
- जाति के भीतर विवाह की व्यवस्था
- धार्मिक अनुष्ठानों का विभाजन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘जजमानी प्रणाली’ (Jajmani System) एक पारंपरिक भारतीय ग्राम व्यवस्था है जहाँ विभिन्न जातियों के लोग एक-दूसरे के साथ अनुष्ठानिक रूप से शुद्ध या अशुद्ध सेवाएं प्रदान करते हैं और बदले में भुगतान (अक्सर अनाज या अन्य वस्तुओं के रूप में) प्राप्त करते हैं। यह ग्राम अर्थव्यवस्था और सामाजिक संबंधों का एक जटिल नेटवर्क था।
- संदर्भ और विस्तार: इस प्रणाली में, ‘जजमान’ (उच्च जाति का संरक्षक) विभिन्न ‘जाजमानों’ (सेवा प्रदाता, जैसे नाई, कुम्हार, धोबी) को सेवाएं प्रदान करने के लिए नियुक्त करता है, जो बदले में उनके कौशल का उपयोग करते हैं। यह जाति-आधारित श्रम विभाजन और परस्पर निर्भरता का एक उदाहरण है।
- अincorrect विकल्प: यह राजनीतिक शक्ति, विवाह या धार्मिक अनुष्ठानों के मात्र विभाजन से कहीं अधिक है; यह एक व्यापक आर्थिक और सामाजिक आदान-प्रदान की व्यवस्था है।
प्रश्न 16: ‘संस्थागत परिवार’ (Institutional Family) की तुलना में ‘तर्कसंगत परिवार’ (Companionate Family) की विशेषता क्या है?
- यह प्रजनन और बाल पालन पर अधिक जोर देता है।
- यह प्रेम, दोस्ती और भावनात्मक समर्थन पर अधिक जोर देता है।
- यह आर्थिक उत्पादन इकाई के रूप में कार्य करता है।
- यह वंश और विरासत के हस्तांतरण पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘संस्थागत परिवार’ (Institutional Family) वह रूप है जहाँ परिवार की मुख्य भूमिकाएं प्रजनन, आर्थिक उत्पादन, शिक्षा और सामाजिक नियंत्रण होती हैं, और विवाह अक्सर आर्थिक या सामाजिक व्यवस्था पर आधारित होता है। इसके विपरीत, ‘तर्कसंगत परिवार’ (Companionate Family) या ‘साथी परिवार’ प्रेम, दोस्ती, भावनात्मक समर्थन और व्यक्तिगत संतुष्टि पर अधिक जोर देता है, जहाँ विवाह व्यक्तिगत पसंद और साझा हितों पर आधारित होता है।
- संदर्भ और विस्तार: जैसे-जैसे समाज का आधुनिकीकरण होता है, परिवार संस्थागत भूमिकाओं से हटकर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समर्थन की इकाई के रूप में अधिक विकसित होता है, जिसे ‘तर्कसंगत परिवार’ कहा जाता है।
- अincorrect विकल्प: प्रजनन और बाल पालन दोनों ही परिवारों के कार्य हैं, लेकिन तर्कसंगत परिवार में ये भावनात्मक जुड़ाव से अधिक प्रेरित होते हैं। आर्थिक उत्पादन इकाई के रूप में कार्य करना और विरासत हस्तांतरण संस्थागत परिवार की विशेषताएँ हैं।
प्रश्न 17: भारत में ‘दलित’ (Dalit) शब्द का प्रयोग किस सामाजिक समूह को संदर्भित करने के लिए किया जाता है?
- उच्च जातियाँ
- पिछड़ी जातियाँ
- वे जातियाँ जिन्हें ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत और उत्पीड़ित किया गया है
- आदिवासी समुदाय
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘दलित’ शब्द का अर्थ है ‘कुचले हुए’ या ‘दबे हुए’। यह उन सामाजिक समूहों को संदर्भित करता है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से जाति व्यवस्था में सबसे नीचे रखा गया था, अछूत माना जाता था, और उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भेदभाव का सामना करना पड़ा।
- संदर्भ और विस्तार: यह शब्द ‘हरिजन’ जैसे पुराने शब्दों की तुलना में आत्म-सम्मान और सशक्तिकरण का प्रतीक है, जिसे महात्मा गांधी ने गढ़ा था। दलित आंदोलन सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता है।
- अincorrect विकल्प: उच्च जातियों, पिछड़ी जातियों और आदिवासी समुदायों की अपनी विशिष्ट सामाजिक पहचान और इतिहास हैं। दलित मुख्य रूप से उन जातियों को संदर्भित करते हैं जो ऐतिहासिक रूप से अस्पृश्यता और भेदभाव से पीड़ित रही हैं।
प्रश्न 18: ‘अविभाज्य संपत्ति’ (Inalienable Property) का सिद्धांत, जो सामाजिक असमानता की निरंतरता में भूमिका निभाता है, किस समाजशास्त्रीय अवधारणा से जुड़ा है?
- सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)
- सामाजिक पूंजी (Social Capital)
- आर्थिक वर्ग (Economic Class)
- सांस्कृतिक पूंजी (Cultural Capital)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) ने ‘सांस्कृतिक पूंजी’ (Cultural Capital) की अवधारणा विकसित की, जिसमें शिक्षा, ज्ञान, भाषा, अभिरुचि और व्यवहार के तरीके शामिल हैं जो व्यक्ति को समाज में लाभ पहुंचाते हैं। ‘अविभाज्य संपत्ति’ (Inalienable Property) से तात्पर्य उन गुणों (जैसे ज्ञान, शिष्टाचार) से है जो व्यक्ति का अभिन्न अंग बन जाते हैं और जिन्हें आसानी से हस्तांतरित या बेचा नहीं जा सकता, जैसे कि भौतिक संपत्ति। सांस्कृतिक पूंजी, खासकर जब वह जन्मजात हो, पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होकर सामाजिक असमानता को बनाए रखने में भूमिका निभाती है।
- संदर्भ और विस्तार: बॉर्डियू का तर्क है कि सांस्कृतिक पूंजी, आर्थिक पूंजी की तरह, सामाजिक स्तरीकरण में भूमिका निभाती है और शैक्षिक सफलता व सामाजिक प्रतिष्ठा को प्रभावित करती है।
- अincorrect विकल्प: ‘सामाजिक गतिशीलता’ समाज में लोगों की स्थिति में परिवर्तन है। ‘सामाजिक पूंजी’ सामाजिक नेटवर्क से प्राप्त लाभ है। ‘आर्थिक वर्ग’ उत्पादन के साधनों पर आधारित है।
प्रश्न 19: ‘एस्केपिज्म’ (Escapism) या पलायनवाद, एक सामाजिक समस्या के रूप में, किस क्रियाकलाप से सबसे अधिक संबंधित है?
- राजनीतिक सक्रियता
- स्वैच्छिक सामुदायिक सेवा
- मनोरंजन माध्यमों (जैसे फिल्में, खेल) में अत्यधिक संलग्नता
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘एस्केपिज्म’ या पलायनवाद का अर्थ है वास्तविक दुनिया की समस्याओं, जिम्मेदारियों या तनावों से बचने के लिए काल्पनिक या मनोरंजक गतिविधियों में खो जाना। मनोरंजन माध्यमों (जैसे फिल्में, टीवी शो, वीडियो गेम) में अत्यधिक संलग्नता अक्सर इस प्रवृत्ति को दर्शाती है, जहाँ व्यक्ति अपनी चिंताओं को भूलने के लिए काल्पनिक दुनिया में डूब जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, पलायनवाद को कभी-कभी निष्क्रियता या सामाजिक परिवर्तन के प्रति उदासीनता के संकेत के रूप में देखा जाता है।
- अincorrect विकल्प: राजनीतिक सक्रियता, सामुदायिक सेवा और विज्ञान-प्रौद्योगिकी का विकास समस्याओं से बचना नहीं, बल्कि उनका सामना करना या हल करना है।
प्रश्न 20: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय गांवों के अध्ययन में ‘सब-डॉमिनेंट’ (Sub-dominant) जाति के महत्व पर प्रकाश डाला। इसका क्या अर्थ है?
- ग्राम में सबसे शक्तिशाली जाति
- ग्राम में सबसे निम्न जाति
- ग्राम में वह जाति जो संख्या में प्रमुख हो लेकिन आर्थिक या राजनीतिक रूप से उतनी प्रभावशाली न हो जितनी कोई छोटी, लेकिन प्रभावशाली जाति।
- ग्राम में दूसरी सबसे प्रभावशाली जाति
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय गांवों में शक्ति संरचना को समझने के लिए ‘सब-डॉमिनेंट’ (Sub-dominant) जाति की अवधारणा का उपयोग किया। यह वह जाति होती है जो संख्या में कम या उतनी प्रभावशाली न होने के बावजूद, आर्थिक, राजनीतिक या सामाजिक रूप से ग्राम पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखती है, और अक्सर ग्राम में प्रमुख जाति को चुनौती दे सकती है। हालाँकि, व्यापक रूप से ‘सब-डॉमिनेंट’ का अर्थ अक्सर ‘दूसरी सबसे प्रभावशाली’ जाति से लिया जाता है, जो कभी-कभी प्रमुख जाति को चुनौती देती है। (नोट: यहाँ विकल्प ‘d’ ‘दूसरी सबसे प्रभावशाली’ के अर्थ में अधिक उपयुक्त है, हालांकि श्रीनिवास के कार्य में यह अवधारणा अधिक सूक्ष्म है)।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने दिखाया कि गांवों में सत्ता का संतुलन केवल संख्या पर आधारित नहीं होता, बल्कि आर्थिक संसाधन, भूमि स्वामित्व और सामाजिक प्रभाव जैसे कारकों पर भी निर्भर करता है।
- अincorrect विकल्प: ‘सबसे शक्तिशाली’ या ‘सबसे निम्न’ जातियाँ प्रमुख या उप-प्रमुख की परिभाषा में नहीं आतीं। ‘संख्या में प्रमुख लेकिन आर्थिक रूप से प्रभावशाली नहीं’ का अर्थ स्पष्ट नहीं है, जबकि ‘दूसरी सबसे प्रभावशाली’ उप-प्रमुख के कार्य को बेहतर ढंग से दर्शाता है।
प्रश्न 21: किस समाजशास्त्री ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा दी, जो समाज में प्रौद्योगिकी के तेजी से परिवर्तन और सामाजिक मूल्यों और मानदंडों के धीमे अनुकूलन के बीच अंतर को दर्शाती है?
- विलियम एफ. ओगबर्न
- डेविड ह्यूम
- इमाइल दुर्खीम
- हरबर्ट ब्लूमर
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विलियम एफ. ओगबर्न (William F. Ogburn) ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा दी। उन्होंने तर्क दिया कि आधुनिक समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी, मशीनें) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मूल्य, रीति-रिवाज, कानून, नैतिकता) की तुलना में बहुत तेजी से बदलती है। इस अंतर के कारण सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं क्योंकि अभौतिक संस्कृति भौतिक संस्कृति के साथ तालमेल बिठाने में पीछे रह जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: ओगबर्न की प्रसिद्ध पुस्तक ‘सोशल चेंज विद स्पेशल रेफरेंस टू चेंजिंग इन性’ (1922) में इस अवधारणा का वर्णन है। उदाहरण के लिए, ऑटोमोबाइल का आविष्कार भौतिक संस्कृति में एक परिवर्तन था, लेकिन सड़क सुरक्षा नियम और ड्राइविंग नैतिकता (अभौतिक संस्कृति) को इसके साथ तालमेल बिठाने में समय लगा।
- अincorrect विकल्प: इमाइल दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों और एकता पर काम किया। हरबर्ट ब्लूमर ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का विकास किया। डेविड ह्यूम एक दार्शनिक थे।
प्रश्न 22: पश्चिमी समाज में ‘अभिजन सिद्धांत’ (Elite Theory) के प्रमुख प्रतिपादकों में कौन शामिल हैं?
- कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स
- विलफ्रेडो पैरेटो और गैटानो मोस्का
- एमिल दुर्खीम और मैक्स वेबर
- हरबर्ट स्पेंसर और जॉन स्टुअर्ट मिल
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विल्फ्रेडो पैरेटो (Vilfredo Pareto) और गैटानो मोस्का (Gaetano Mosca) को पश्चिमी समाजशास्त्र में अभिजन सिद्धांत (Elite Theory) के प्रमुख प्रतिपादकों में गिना जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि इतिहास हमेशा एक अल्पसंख्यक शासक वर्ग (अभिजन) द्वारा बहुसंख्यक शासितों पर शासन की कहानी है, और अभिजन वर्ग अपने सदस्यों को बदलने की एक चक्रीय प्रक्रिया से गुजरता है।
- संदर्भ और विस्तार: पैरेटो ने ‘शासक अभिजन’ (Ruling Elite) और ‘गैर-शासक अभिजन’ (Non-ruling Elite) के बीच अंतर किया, और मोस्का ने कहा कि समाज हमेशा दो वर्गों में विभाजित होता है: शासक और शासित।
- अincorrect विकल्प: कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने वर्ग संघर्ष और सर्वहारा की अधिनायकता पर ध्यान केंद्रित किया। दुर्खीम और वेबर ने शक्ति और सत्ता के विभिन्न रूपों का विश्लेषण किया, लेकिन वे सीधे तौर पर अभिजन सिद्धांत के संस्थापक नहीं माने जाते। स्पेंसर विकासवादी दृष्टिकोण रखते थे।
प्रश्न 23: सामाजिक शोध में ‘गुणात्मक विधि’ (Qualitative Method) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
- सांख्यिकीय डेटा का विश्लेषण करना
- चरों के बीच कारण-कार्य संबंधों को स्थापित करना
- लोगों के व्यवहार, अनुभवों और अर्थों की गहराई से समझ प्राप्त करना
- एक बड़े जनसमूह का सामान्यीकरण करना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: गुणात्मक विधि (Qualitative Method) का मुख्य उद्देश्य सामाजिक घटनाओं की गहराई, जटिलता और व्यक्तिपरक अनुभवों को समझना है। यह ‘क्यों’ और ‘कैसे’ जैसे प्रश्नों का उत्तर देने पर केंद्रित होती है, और इसमें साक्षात्कार, फोकस समूह, अवलोकन और केस स्टडी जैसी विधियाँ शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: गुणात्मक अनुसंधान विचारों, भावनाओं, प्रेरणाओं और सामाजिक प्रक्रियाओं की बारीकियों को पकड़ने के लिए भाषा, वर्णन और व्याख्या पर निर्भर करता है।
- अincorrect विकल्प: ‘सांख्यिकीय डेटा का विश्लेषण’, ‘कारण-कार्य संबंध स्थापित करना’ और ‘सामान्यीकरण करना’ मुख्य रूप से मात्रात्मक अनुसंधान (Quantitative Research) के उद्देश्य हैं।
प्रश्न 24: किस समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के अनुसार, समाज एक जटिल प्रणाली है जिसके विभिन्न भाग एक साथ काम करते हैं ताकि स्थिरता और संतुलन बना रहे?
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- संरचनात्मक कार्यात्मकतावाद (Structural Functionalism)
- नारकीयतावाद (Nihilism)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: संरचनात्मक कार्यात्मकतावाद (Structural Functionalism) का मानना है कि समाज एक जीवित जीव की तरह है, जिसके विभिन्न अंग (संस्थाएं, संरचनाएं) एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और सामूहिक रूप से समाज के अस्तित्व और स्थिरता में योगदान करते हैं। प्रत्येक संरचना का एक विशिष्ट कार्य (Function) होता है जो समाज को बनाए रखने में मदद करता है।
- संदर्भ और विस्तार: एमिल दुर्खीम, टालकोट पार्सन्स और हरबर्ट स्पेंसर जैसे समाजशास्त्री इस दृष्टिकोण से जुड़े हैं। वे सामाजिक व्यवस्था, एकीकरण और सामंजस्य पर जोर देते हैं।
- अincorrect विकल्प: ‘संघर्ष सिद्धांत’ समाज को संघर्ष और सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा के रूप में देखता है। ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ व्यक्ति-स्तरीय अंतःक्रियाओं और अर्थों के निर्माण पर केंद्रित है। ‘नारकीयतावाद’ किसी भी सामाजिक या नैतिक मूल्य को अस्वीकार करता है।
प्रश्न 25: भारत में ‘नगरीकरण’ (Urbanization) की प्रक्रिया के कारण निम्नलिखित में से कौन सा सामाजिक परिवर्तन सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देखा गया है?
- पारिवारिक संरचनाओं का मजबूत होना
- पारंपरिक सामुदायिक बंधनों का कमजोर होना
- जाति व्यवस्था का पूरी तरह से उन्मूलन
- धार्मिक सहिष्णुता में वृद्धि
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: भारत में औद्योगीकरण और आर्थिक अवसरों की तलाश में बड़े पैमाने पर ग्रामीण आबादी शहरों की ओर पलायन कर रही है, जिससे नगरीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई है। इसके परिणामस्वरूप, पारंपरिक, घनिष्ठ सामुदायिक बंधन, जो अक्सर ग्रामीण समुदायों में मजबूत होते हैं, शहरी वातावरण में कमजोर पड़ जाते हैं, जहाँ व्यक्ति अधिक गुमनाम और अलग-थलग महसूस कर सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: शहरी जीवन शैली, जो अधिक व्यक्तिगत, प्रतिस्पर्धी और गतिशील होती है, अक्सर पारंपरिक सामाजिक नियंत्रणों और नातेदारी प्रणालियों को चुनौती देती है।
- अincorrect विकल्प: नगरीकरण से अक्सर पारिवारिक संरचनाओं में परिवर्तन (जैसे संयुक्त परिवार से नाभिकीय परिवार) देखे गए हैं, न कि उनका मजबूत होना। जाति व्यवस्था अभी भी प्रासंगिक है, हालांकि इसके रूपों में परिवर्तन आया है; इसका पूर्ण उन्मूलन नहीं हुआ है। धार्मिक सहिष्णुता में वृद्धि या कमी नगरीकरण का प्रत्यक्ष और निश्चित परिणाम नहीं है।