ईडी की ‘बदमाशी’: सुप्रीम कोर्ट की वो ‘सुप्रीम’ टिप्पणी जिसने हिला दी व्यवस्था
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के कामकाज पर एक ऐसी कड़ी टिप्पणी की है, जिसने देश भर में गहन चर्चा छेड़ दी है। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि ईडी “बदमाशों की तरह काम नहीं कर सकता” और इसे “कानून के दायरे में रहना होगा”। यह टिप्पणी न केवल ईडी के संचालन की विधि को बल्कि भारत में कानून के शासन और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों को भी रेखांकित करती है। यह ब्लॉग पोस्ट इसी महत्वपूर्ण घटनाक्रम का गहराई से विश्लेषण करेगा, इसके पीछे के कारणों, इसके निहितार्थों और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसके महत्व को उजागर करेगा।
कल्पना कीजिए एक ऐसी दुनिया की जहाँ कानून का रखवाला ही कानून तोड़ने लगे, या जहाँ किसी भी कार्रवाई के लिए कोई सीमा न हो। कुछ ऐसा ही भाव सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी उस टिप्पणी में व्यक्त किया है, जहाँ उसने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के तौर-तरीकों पर सवाल उठाया। यह कोई सामान्य टिप्पणी नहीं थी, बल्कि यह एक ऐसी चेतावनी थी जो शक्ति के दुरुपयोग के प्रति आगाह करती है और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करती है कि कोई भी संस्था, चाहे वह कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, जवाबदेही से परे न हो।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) का परिचय: शक्ति और जिम्मेदारी
प्रवर्तन निदेशालय, भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अंतर्गत एक बहु-अनुशासनात्मक प्रवर्तन एजेंसी है। इसकी स्थापना 1 मई 1956 को हुई थी। मूल रूप से, इसका उद्देश्य विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) के उल्लंघन से निपटना था। समय के साथ, इसका कार्यक्षेत्र बढ़ता गया और अब यह मुख्य रूप से दो प्रमुख कानूनों को लागू करता है:
- प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA), 2002: यह कानून मनी लॉन्ड्रिंग (काले धन को सफेद बनाना) से संबंधित अपराधों को रोकने और मनी लॉन्ड्रिंग से प्राप्त संपत्ति को जब्त करने के लिए एक मजबूत ढाँचा प्रदान करता है।
- The Foreign Exchange Management Act (FEMA), 1999: यह कानून विदेशी मुद्रा लेनदेन और बाज़ारों को सुगम बनाने, व्यवस्थित करने और विनियमित करने के उद्देश्य से बनाया गया है, जिसका उद्देश्य देश के विदेशी मुद्रा बाज़ार का व्यवस्थित विकास है।
ईडी का मुख्य कार्य मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा से जुड़े कानूनों के उल्लंघन की जांच करना, अपराधियों पर मुकदमा चलाना और इन अपराधों से प्राप्त संपत्ति को जब्त करना है। इस प्रकार, यह आर्थिक अपराधों से लड़ने और देश की वित्तीय अखंडता को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
‘ईडी बदमाशों की तरह काम नहीं कर सकता’: न्यायालय की चिंता का मूल
सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी अक्सर उन मामलों में आती है जहाँ ईडी द्वारा की गई गिरफ्तारियाँ, कुर्की या अन्य कार्रवाईयाँ विधिवत कानूनी प्रक्रिया का पालन न करने या शक्तियों के दुरुपयोग का संकेत देती हैं। न्यायालय की चिंता के कुछ मुख्य बिंदु हो सकते हैं:
- अपर्याप्त सबूत या गलत आधार पर कार्रवाई: कई बार ऐसे आरोप लगते हैं कि ईडी कमजोर या अपर्याप्त सबूतों के आधार पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेती है या उसकी संपत्ति जब्त कर लेती है।
- अनावश्यक उत्पीड़न: न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना होता है कि जाँच एजेंसियाँ अपनी शक्तियों का उपयोग अभियुक्तों को अनावश्यक रूप से परेशान करने या दंडित करने के लिए न करें, खासकर जब तक अपराध सिद्ध न हो जाए।
- प्रक्रियात्मक अनियमितताएँ: किसी भी जाँच या गिरफ्तारी में उचित कानूनी प्रक्रियाओं (जैसे गिरफ्तारी के कारण बताना, वकील से मिलने का अधिकार आदि) का पालन न करना न्यायालयों के लिए चिंता का विषय होता है।
- समान व्यवहार का अभाव: यह सुनिश्चित करना कि कानून सभी पर समान रूप से लागू हो, और ईडी की कार्रवाईयाँ राजनीतिक या व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से प्रेरित न हों।
जब न्यायालय यह कहता है कि ईडी “बदमाशों की तरह काम नहीं कर सकता”, तो इसका तात्पर्य यह है कि ईडी को एक स्थापित कानूनी ढाँचे के भीतर ही काम करना होगा। “बदमाश” शब्द यहाँ किसी भी ऐसी गतिविधि को दर्शाता है जो कानून, नियमों और स्थापित प्रक्रियाओं से परे हो, जिसमें बल प्रयोग, अनुचित दबाव या मनमानी शामिल हो सकती है।
‘कानून के दायरे में रहना होगा’: शक्तियों पर लगाम
न्यायालय की यह चेतावनी ईडी जैसे शक्तिशाली जाँच एजेंसियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका अर्थ है कि:
- प्रक्रिया का पालन: ईडी को PMLA, FEMA और अन्य संबंधित कानूनों में वर्णित सभी प्रक्रियात्मक नियमों का कड़ाई से पालन करना होगा। इसमें FIR दर्ज करने से लेकर, तलाशी, जब्ती, गिरफ्तारी और अभियोजन तक की सभी प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
- सबूतों का महत्व: किसी भी व्यक्ति को दंडित करने या उसकी संपत्ति जब्त करने के लिए पुख्ता और स्वीकार्य सबूतों का होना आवश्यक है। केवल शक के आधार पर या अप्रत्यक्ष तथ्यों के बल पर कठोर कार्रवाई करना अनुचित हो सकता है।
- न्यायिक समीक्षा का अधिकार: ईडी की किसी भी कार्रवाई को अदालतों द्वारा चुनौती दी जा सकती है, और न्यायालय यह सुनिश्चित करेंगे कि कार्रवाई कानून सम्मत हो।
- निष्पक्षता और स्वतंत्रता: जाँच एजेंसियों को निष्पक्ष रहना चाहिए और किसी भी बाहरी दबाव या प्रभाव से मुक्त होकर काम करना चाहिए।
सरल शब्दों में, ईडी को यह समझना होगा कि वह कानून के शासन के अधीन है, न कि उससे ऊपर। किसी भी शक्तिशाली संस्था को निरंकुश होने से रोकना, लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। जैसे एक डॉक्टर को दवा देने से पहले रोगी की जाँच करनी चाहिए, उसी तरह ईडी को भी कार्रवाई से पहले पुख्ता आधार खोजना होगा।
सर्वोच्च न्यायालय की ‘सुप्रीम’ टिप्पणी के निहितार्थ
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई यह टिप्पणी दूरगामी प्रभाव डाल सकती है:
- अन्य जाँच एजेंसियों के लिए मिसाल: यह टिप्पणी न केवल ईडी, बल्कि सीबीआई, पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण दिशानिर्देश का काम करेगी। यह सुनिश्चित करेगा कि सभी एजेंसियाँ शक्तियों के दुरुपयोग से बचें।
- नागरिक अधिकारों का संरक्षण: यह आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा। जब जाँच एजेंसियाँ कानून के दायरे में काम करती हैं, तो निर्दोष लोगों को उत्पीड़न से बचाया जा सकता है।
- कानून के शासन को मजबूत करना: यह भारत में कानून के शासन के सिद्धांत को और मजबूत करेगा। यह याद दिलाता है कि कोई भी संस्था, चाहे वह कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, संविधान और कानून से ऊपर नहीं है।
- प्रक्रियात्मक सुधारों की आवश्यकता: यह ईडी को अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं और प्रशिक्षण पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है, ताकि भविष्य में ऐसी टिप्पणियों से बचा जा सके।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण पर प्रभाव: अक्सर ईडी जैसी एजेंसियों पर राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के आरोप लगते हैं। न्यायालय की यह टिप्पणी ऐसी अटकलों को भी संबोधित करती है और निष्पक्षता पर जोर देती है।
यह टिप्पणी किसी संस्था की शक्ति को कम करने के बारे में नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के बारे में है कि उस शक्ति का प्रयोग सही तरीके से हो। जैसे एक तेज तलवार अगर कुशल हाथों में हो तो वह रक्षा करती है, लेकिन अनाड़ी या दुर्भावनापूर्ण हाथों में वह नुकसान पहुँचा सकती है।
ईडी की कुछ हालिया महत्वपूर्ण कार्रवाइयाँ और विवाद
ईडी ने हाल के वर्षों में कई हाई-प्रोफाइल मामलों में सक्रियता दिखाई है। इनमें मनी लॉन्ड्रिंग, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के वित्तपोषण से जुड़े मामले शामिल हैं। कुछ प्रमुख उदाहरणों में शामिल हैं:
- विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के खिलाफ मामले: कई राज्यों में विपक्षी नेताओं और उनसे जुड़े लोगों के खिलाफ ईडी की कार्रवाइयों को अक्सर राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया गया है।
- कॉर्पोरेट घोटालों की जाँच: बड़े कॉर्पोरेट घोटालों, जैसे कि विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे भगोड़ों से जुड़े मामले, जिनमें बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग शामिल थी।
- फेक न्यूज और टेरर फंडिंग: कुछ मामलों में, ईडी ने फेक न्यूज फैलाने वाले और आतंकवादी समूहों को वित्त पोषित करने वाले संगठनों के खिलाफ भी कार्रवाई की है।
हालांकि ईडी की कार्रवाईयों का उद्देश्य आर्थिक अपराधों को रोकना और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना है, लेकिन कई बार इसकी कार्यप्रणाली, विशेषकर गिरफ्तारियों और कुर्की की प्रक्रियाओं को लेकर कानूनी और राजनीतिक विवाद भी खड़े हुए हैं। ऐसे ही विवादों के चलते सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण हो जाता है।
उदाहरण: PMLA के तहत गिरफ्तारी और जमानत
PMLA के तहत ईडी को व्यक्तियों को गिरफ्तार करने की व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं। हालाँकि, न्यायालयों ने अक्सर इस बात पर जोर दिया है कि ये शक्तियाँ मनमानी नहीं होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, PMLA के तहत जमानत प्राप्त करना विशेष रूप से कठिन है, क्योंकि कानून में ऐसे प्रावधान हैं जो जमानत को प्रतिबंधित करते हैं, जब तक कि अभियोजन पक्ष संतुष्ट न हो जाए कि आरोपी दोषी नहीं है।
“PMLA एक कठोर कानून है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ईडी कानून के बजाय अपनी मर्जी से काम करे। हर कार्रवाई का एक तार्किक आधार और कानूनी औचित्य होना चाहिए।” – सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश (काल्पनिक उद्धरण)
यह स्थिति, जहाँ जमानत मिलना मुश्किल है, कभी-कभी ईडी को एक प्रकार का “अस्थायी दंड” देने का अवसर प्रदान कर सकती है, जहाँ आरोपी को सुनवाई से पहले ही लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है। न्यायालयों की चिंता अक्सर इसी पहलू पर होती है कि क्या गिरफ्तारी अंतिम सजा का एक रूप बन गई है, न कि केवल जाँच का एक चरण।
चुनौतियाँ और आगे की राह
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद, ईडी और अन्य एजेंसियों के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियाँ होंगी:
- साक्ष्य-आधारित जाँच: ईडी को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी सभी जाँचें ठोस सबूतों पर आधारित हों, न कि केवल अटकलों या अपर्याप्त सूचनाओं पर।
- प्रक्रियात्मक परिशुद्धता: गिरफ्तारी, तलाशी और कुर्की जैसी महत्वपूर्ण कार्रवाइयों में सभी निर्धारित प्रक्रियाओं का कड़ाई से पालन करना होगा।
- पारदर्शिता: जाँच की प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता लाने की आवश्यकता हो सकती है, ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: ईडी के अधिकारियों को कानूनी प्रक्रियाओं, साक्ष्य संग्रह और मानवीय अधिकारों के बारे में निरंतर प्रशिक्षण देना महत्वपूर्ण है।
भविष्य में, यह महत्वपूर्ण होगा कि ईडी अपनी शक्तियों का प्रयोग जिम्मेदारी और संयम से करे। यह टिप्पणी एक चेतावनी के साथ-साथ एक अवसर भी है – एजेंसियों के लिए अपनी कार्यप्रणाली को सुधारने और कानून के शासन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करने का अवसर।
UPSC परीक्षा के लिए इसका महत्व
यह मुद्दा UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए अत्यंत प्रासंगिक है, खासकर भारतीय राजनीति, शासन और कानून अनुभागों में। उम्मीदवारों को निम्नलिखित पहलुओं को समझना चाहिए:
- कानून का शासन: यह टिप्पणी कानून के शासन के महत्व को रेखांकित करती है, जो भारतीय संविधान का एक मूल ढाँचागत सिद्धांत है।
- शक्तियों का पृथक्करण: यह न्यायपालिका की भूमिका को उजागर करती है कि कैसे वह विधायिका और कार्यपालिका द्वारा बनाई गई शक्तियों की निगरानी करती है।
- जाँच एजेंसियों की भूमिका और सीमाएँ: ईडी जैसी एजेंसियों की भूमिका, उनके अधिकार क्षेत्र और उनकी सीमाओं को समझना महत्वपूर्ण है।
- नागरिक अधिकार: यह सीधे तौर पर नागरिकों के मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 20, 21 और 22 से जुड़ा हुआ है, जो गिरफ्तारी, सजा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित हैं।
- आर्थिक अपराध और राष्ट्रीय सुरक्षा: मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा से जुड़े कानूनों का प्रवर्तन किस प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता से जुड़ा है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि न्यायालय केवल ईडी की शक्तियों को सीमित नहीं कर रहा है, बल्कि यह सुनिश्चित कर रहा है कि ये शक्तियाँ संविधान और कानून के अनुसार ही प्रयोग हों। यह भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता का प्रतीक है, जहाँ शक्तिशाली संस्थाएँ भी जवाबदेही से बची नहीं हैं।
निष्कर्ष: एक संतुलनकारी कार्य
सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी एक अनुस्मारक है कि शक्ति, चाहे वह कितनी भी आवश्यक क्यों न हो, हमेशा कानून और न्याय के दायरे में ही रहनी चाहिए। प्रवर्तन निदेशालय जैसे संगठनों की देश की आर्थिक सुरक्षा और वित्तीय अखंडता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है। हालाँकि, यह भूमिका उन्हें मनमानी या अनुचित कार्यों का लाइसेंस नहीं देती।
न्यायालय का यह हस्तक्षेप एक आवश्यक संतुलनकारी कार्य है। यह जाँच एजेंसियों को उनकी शक्तियों के महत्व और उनकी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है, साथ ही यह नागरिकों को आश्वस्त करता है कि कानून का राज सर्वोपरि है। यह सुनिश्चित करना कि ईडी “बदमाशों की तरह” नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार “कानून के प्रवर्तक” की तरह काम करे, भारत के संवैधानिक ढांचे की मजबूती के लिए अत्यंत आवश्यक है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. निम्नलिखित में से कौन से कानून प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा लागू किए जाते हैं?
(a) प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA), 2002 और FEMA, 1999
(b) नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट, 1985
(c) प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट, 1988
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (a)
व्याख्या: ईडी मुख्य रूप से PMLA, 2002 और FEMA, 1999 को लागू करता है। NDPS एक्ट नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट CBI द्वारा मुख्य रूप से लागू किया जाता है।
2. प्रवर्तन निदेशालय (ED) भारत सरकार के किस मंत्रालय के अंतर्गत आता है?
(a) गृह मंत्रालय
(b) वित्त मंत्रालय
(c) रक्षा मंत्रालय
(d) कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय
उत्तर: (b)
व्याख्या: ईडी वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग का एक हिस्सा है।
3. सर्वोच्च न्यायालय की हालिया टिप्पणी के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कैसे काम नहीं करना चाहिए?
(a) एक स्वायत्त संस्था के रूप में
(b) एक स्वतंत्र जाँच एजेंसी के रूप में
(c) बदमाशों की तरह
(d) कानून के दायरे में
उत्तर: (c)
व्याख्या: न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि ईडी “बदमाशों की तरह काम नहीं कर सकता”।
4. PMLA, 2002 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकना
(b) मनी लॉन्ड्रिंग (काले धन को सफेद बनाना) को रोकना
(c) विदेशी मुद्रा से संबंधित उल्लंघनों को नियंत्रित करना
(d) संगठित अपराध से निपटना
उत्तर: (b)
व्याख्या: PMLA, 2002 का प्राथमिक उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित अपराधों को रोकना और मनी लॉन्ड्रिंग से प्राप्त संपत्ति को जब्त करना है।
5. FEMA, 1999 का उद्देश्य निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
(a) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा देना
(b) विदेशी मुद्रा लेनदेन और बाज़ारों को सुगम बनाना और विनियमित करना
(c) देश के बाहर धन के हस्तांतरण पर रोक लगाना
(d) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों पर बातचीत करना
उत्तर: (b)
व्याख्या: FEMA का उद्देश्य विदेशी मुद्रा लेनदेन और बाज़ारों को सुगम बनाने, व्यवस्थित करने और विनियमित करने के माध्यम से देश के विदेशी मुद्रा बाज़ार का व्यवस्थित विकास करना है।
6. “कानून का शासन” (Rule of Law) सिद्धांत का भारतीय संविधान में क्या महत्व है?
(a) यह सरकार की शक्तियों को असीमित बनाता है।
(b) यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था कानून से ऊपर नहीं है।
(c) यह केवल कार्यपालिका की जवाबदेही तय करता है।
(d) यह केवल विधायिका की शक्तियों को सीमित करता है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: कानून का शासन एक मौलिक सिद्धांत है जो सुनिश्चित करता है कि सभी, सरकार सहित, कानून के अधीन हैं और कानून के अनुसार ही कार्य करेंगे।
7. सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के संदर्भ में, जाँच एजेंसियों की मनमानी कार्रवाइयों से किसे खतरा हो सकता है?
(a) केवल राजनेता
(b) केवल बड़े व्यवसायी
(c) केवल सरकारी अधिकारी
(d) निर्दोष नागरिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता
उत्तर: (d)
व्याख्या: मनमानी कार्रवाइयाँ किसी भी नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों का हनन कर सकती हैं, भले ही वह किसी भी पेशे या वर्ग से हो।
8. प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत जमानत प्राप्त करना आमतौर पर क्यों कठिन माना जाता है?
(a) क्योंकि ईडी के पास जमानत देने का अधिकार है।
(b) क्योंकि इसमें ऐसे प्रावधान हैं जो जमानत को प्रतिबंधित करते हैं जब तक कि अभियोजन पक्ष संतुष्ट न हो जाए।
(c) क्योंकि जमानत के लिए केवल राजनीतिक नेताओं की अनुमति आवश्यक है।
(d) क्योंकि PMLA के तहत कोई जमानत प्रावधान नहीं है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: PMLA में जमानत के संबंध में कठोर प्रावधान हैं, जो गिरफ्तारी और दोषसिद्धि की संभावना के बारे में गंभीर चिंताओं को जन्म देते हैं।
9. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाँच एजेंसियों पर नियंत्रण रखना किस संवैधानिक सिद्धांत का उदाहरण है?
(a) शक्तियों का केन्द्रीकरण
(b) शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers)
(c) लोकलुभावनवाद (Populism)
(d) संघवाद (Federalism)
उत्तर: (b)
व्याख्या: न्यायपालिका का कार्यपालिका (जाँच एजेंसियों सहित) की शक्तियों की निगरानी करना शक्तियों के पृथक्करण और नियंत्रण व संतुलन (Checks and Balances) का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
10. हाल के वर्षों में ईडी की किन कार्रवाइयों को लेकर विवाद रहा है?
(a) केवल आर्थिक अपराधों की जाँच
(b) राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के आरोप
(c) बड़ी कॉर्पोरेट संस्थाओं के साथ सांठगांठ
(d) केवल विदेशी मुद्रा के मामलों की जाँच
उत्तर: (b)
व्याख्या: ईडी की कई कार्रवाइयों, विशेषकर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में, राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के आरोप लगे हैं, जो विवाद का विषय रहे हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “प्रवर्तन निदेशालय (ED) एक शक्तिशाली जाँच एजेंसी है, लेकिन इसकी शक्तियाँ असीमित नहीं हैं।” सर्वोच्च न्यायालय की हालिया टिप्पणी के आलोक में, ED की शक्तियों, उनके दुरुपयोग की संभावनाओं और न्यायपालिका द्वारा उन पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। (250 शब्द)
2. भारत में आर्थिक अपराधों से लड़ने में ED की भूमिका महत्वपूर्ण है। हालाँकि, इसकी कार्यप्रणाली पर अक्सर सवाल उठते हैं। ED की शक्तियों, PMLA जैसे कानूनों के तहत इसके संचालन की विधि, और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणियों के व्यापक निहितार्थों पर विस्तार से चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
3. भारतीय संविधान का “कानून का शासन” (Rule of Law) एक मूल ढाँचागत सिद्धांत है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी जाँच एजेंसियों के संदर्भ में, शक्तियों के पृथक्करण, जवाबदेही और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के महत्व को सर्वोच्च न्यायालय की उस टिप्पणी के माध्यम से समझाइए जिसमें कहा गया है कि “ED बदमाशों की तरह काम नहीं कर सकता, कानून के दायरे में रहना होगा”। (250 शब्द)
4. ED के संचालन में “मनमानी” और “प्रक्रियात्मक अनियमितता” जैसे आरोप अक्सर लगते रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय की “सुप्रीम” टिप्पणी के आलोक में, ED के कामकाज को अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष और कानून के दायरे में रखने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? (150 शब्द)