समाजशास्त्र की गहन समझ: अपनी तैयारी को परखें!
नमस्कार, युवा समाजशास्त्रियों! आज का दिन समाजशास्त्र के आपके ज्ञान को निखारने और आपकी विश्लेषणात्मक क्षमता को चुनौती देने का है। ये 25 प्रश्न आपके वैचारिक आधार को मजबूत करेंगे और आपको प्रमुख प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए तैयार करेंगे। तो, कमर कस लें और इस बौद्धिक यात्रा पर निकल पड़ें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) की अवधारणा किसने विकसित की?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- जी. एच. मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा को प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य व्यवहार करने, सोचने और महसूस करने के ऐसे तरीके हैं जो व्यक्ति के लिए बाहरी होते हैं और उस पर एक बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में इस अवधारणा को विस्तार से समझाया है। उन्होंने सामाजिक तथ्यों को ‘वस्तुओं’ के रूप में अध्ययन करने की वकालत की, जो व्यक्तिपरक चेतना से स्वतंत्र होते हैं।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य जोर वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर था। मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) या व्याख्यात्मक समाजशास्त्र पर बल दिया। जी. एच. मीड ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) का विकास किया।
प्रश्न 2: मैक्स वेबर के अनुसार, सत्ता (Authority) के तीन आदर्श प्रकार कौन से हैं?
- नौकरशाही, करिश्माई, पारंपरिक
- पारंपरिक, करिश्माई, कानूनी-तर्कसंगत
- वर्ग, स्थिति, दल
- आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन आदर्श प्रकार बताए: पारंपरिक सत्ता (जो परंपराओं और रीति-रिवाजों पर आधारित हो), करिश्माई सत्ता (जो किसी व्यक्ति के असाधारण गुणों पर आधारित हो), और कानूनी-तर्कसंगत सत्ता (जो नियमों और प्रक्रियाओं पर आधारित हो)।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने इन प्रकारों का विश्लेषण अपनी पुस्तक ‘अर्थव्यवस्था और समाज’ (Economy and Society) में किया था। उनका मानना था कि आधुनिक समाज में कानूनी-तर्कसंगत सत्ता का प्रभाव बढ़ रहा है, खासकर नौकरशाही के उदय के साथ।
- गलत विकल्प: नौकरशाही वेबर के विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन वह सत्ता का प्रकार नहीं, बल्कि कानूनी-तर्कसंगत सत्ता का एक प्रमुख रूप है। वर्ग, स्थिति, दल (Class, Status, Party) वेबर द्वारा सामाजिक स्तरीकरण को समझने के लिए प्रयुक्त तीन प्रमुख आयाम हैं।
प्रश्न 3: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज की एकता, जो अत्यधिक श्रम विभाजन वाले समाजों में पाई जाती है, उसे क्या कहा जाता है?
- यांत्रिक एकता (Mechanical Solidarity)
- साव्यवी एकता (Organic Solidarity)
- सामूहिक चेतना (Collective Conscience)
- सामाजिक तथ्य (Social Facts)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: दुर्खीम ने ‘साव्यवी एकता’ (Organic Solidarity) शब्द का प्रयोग उन समाजों के लिए किया जहाँ श्रम विभाजन अत्यधिक होता है, और जहाँ लोग अपनी विभिन्न भूमिकाओं और परस्पर निर्भरता के माध्यम से जुड़े होते हैं, जैसे शरीर के विभिन्न अंग।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक ‘समाज में श्रम विभाजन’ (The Division of Labour in Society) में प्रस्तुत की गई है। इसके विपरीत, ‘यांत्रिक एकता’ कम श्रम विभाजन वाले, सजातीय समाजों में पाई जाती है। ‘सामूहिक चेतना’ उन विश्वासों और भावनाओं का योग है जो एक औसत सदस्य के लिए समान होती है और यह यांत्रिक एकता का आधार है।
- गलत विकल्प: यांत्रिक एकता निम्न-विभाजित समाजों से संबंधित है। सामूहिक चेतना यांत्रिक एकता का आधार है, न कि उच्च-विभाजित समाजों की एकता का प्रकार। सामाजिक तथ्य एक व्यापक अवधारणा है।
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा रॉबर्ट मर्टन द्वारा ‘नियोजित कार्य’ (Manifest Function) के विपरीत ‘अनैच्छिक कार्य’ (Latent Function) का वर्णन करने के लिए उपयोग की गई है?
- विसंगति (Anomie)
- अलगाव (Alienation)
- संभाव्य उद्देश्य (Prospective Purpose)
- अनायास परिणाम (Unintended Consequences)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट मर्टन ने ‘अनैच्छिक कार्य’ (Latent Function) को ‘अनायास परिणाम’ (Unintended Consequences) के रूप में परिभाषित किया। ये वे परिणाम होते हैं जो किसी सामाजिक संरचना या प्रथा के प्रत्यक्ष या इच्छित परिणाम नहीं होते हैं, बल्कि अप्रत्यक्ष या अनपेक्षित होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने यह अवधारणा ‘सामाजिक संरचना और विसंगति’ (Social Theory and Social Structure) पुस्तक में प्रस्तुत की। ‘नियोजित कार्य’ (Manifest Function) किसी सामाजिक संस्था के स्पष्ट और अभीष्ट परिणाम होते हैं। ‘विसंगति’ (Anomie) और ‘अलगाव’ (Alienation) क्रमशः दुर्खीम और मार्क्स की प्रमुख अवधारणाएँ हैं।
- गलत विकल्प: विसंगति सामाजिक विघटन की स्थिति है। अलगाव उत्पादन के साधनों से श्रमिक का अलगाव है। संभाव्य उद्देश्य कोई मानक समाजशास्त्रीय शब्द नहीं है।
प्रश्न 5: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रवर्तक कौन माने जाते हैं?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- जी. एच. मीड
- अगस्त कॉम्टे
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जी. एच. मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के प्रमुख संस्थापकों में से एक माना जाता है। यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति अपने आसपास की दुनिया को प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से अर्थ प्रदान करते हैं और इसी अर्थ-निर्माण की प्रक्रिया के माध्यम से सामाजिक अंतःक्रिया होती है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड ने कभी अपना कोई कार्य प्रकाशित नहीं किया, लेकिन उनके छात्रों ने उनके व्याख्यानों को संकलित करके ‘मन, स्व और समाज’ (Mind, Self, and Society) नामक पुस्तक प्रकाशित की। उनके विचारों ने हर्बर्ट ब्लूमर को इस सिद्धांत को व्यवस्थित रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- गलत विकल्प: दुर्खीम कार्यात्मकता (Functionalism) से जुड़े हैं। वेबर ने व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Interpretive Sociology) का विकास किया। कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है और उन्होंने प्रत्यक्षवाद (Positivism) की वकालत की।
प्रश्न 6: निम्न में से कौन सी विशेषता जजमानी प्रणाली (Jajmani System) की नहीं है?
- सेवाओं का वस्तु-विनिमय
- पारिवारिक श्रम का उपयोग
- पुनरुत्पादक संबंध
- सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देना
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जजमानी प्रणाली पारंपरिक भारतीय ग्रामीण समाज में एक आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था थी जिसमें विभिन्न जातियों के परिवार (जजमान और प्रजात) सेवा-वस्तु विनिमय संबंधों में बंधे होते थे। यह प्रणाली सामाजिक गतिशीलता को सीमित करती थी, न कि उसे बढ़ावा देती थी।
- संदर्भ और विस्तार: इस प्रणाली में, ‘प्रजात’ (सेवा प्रदाता) ‘जजमानों’ (सेवा प्राप्तकर्ताओं) को सेवाएं देते थे और बदले में उन्हें वस्तु (अनाज, कपड़े आदि) या अन्य लाभ प्राप्त होते थे। ये संबंध प्रायः वंशानुगत होते थे और उनमें पारिवारिक श्रम का उपयोग होता था।
- गलत विकल्प: सेवाओं का वस्तु-विनिमय, पारिवारिक श्रम का उपयोग और पुनरुत्पादक संबंध (जो वंशानुगतता को दर्शाते हैं) सभी जजमानी प्रणाली की विशेषताएँ हैं। सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देना इसकी विशेषता नहीं है, बल्कि यह एक स्थिर और पदानुक्रमित व्यवस्था थी।
प्रश्न 7: भारतीय समाज में ‘हरिजन’ (Harijan) शब्द का प्रयोग किसके द्वारा किया गया?
- बी. आर. अम्बेडकर
- एम. के. गांधी
- एन. सी. बॉस
- एम. एन. श्रीनिवास
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: महात्मा गांधी ने भारत में अछूतों के लिए ‘हरिजन’ (ईश्वर के लोग) शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने दलितों को समाज की मुख्यधारा में लाने और उनके उत्थान के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए।
- संदर्भ और विस्तार: गांधीजी का मानना था कि अछूतों को ‘हरिजन’ कहकर उन्हें सम्मान और समानता का भाव देना चाहिए। बी. आर. अम्बेडकर ने इस शब्द की आलोचना की और ‘दलित’ (पिसा हुआ, कुचला हुआ) शब्द को वरीयता दी, जो उनके अनुसार उनकी सामाजिक स्थिति का अधिक यथार्थवादी चित्रण करता है।
- गलत विकल्प: अम्बेडकर ने ‘दलित’ शब्द का प्रयोग किया। एन. सी. बॉस एक समाजशास्त्री थे। एम. एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) जैसी अवधारणाएँ दीं।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन दुर्खीम के अनुसार समाज में ‘विसंगति’ (Anomie) का कारण नहीं बनता?
- तीव्र आर्थिक परिवर्तन
- सामाजिक मानदंडों का क्षरण
- अत्यधिक व्यक्तिवाद
- पारंपरिक सामाजिक नियंत्रण का सुदृढ़ीकरण
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 9: भारतीय संदर्भ में ‘पाणिग्रहण’ (Marriage) से संबंधित कौन सी अवधारणा ‘एक से अधिक पुरुष से विवाह’ को दर्शाती है?
- बहुपत्नीत्व (Polygyny)
- बहुपतित्व (Polyandry)
- एकविवाह (Monogamy)
- समूह विवाह (Group Marriage)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: बहुपतित्व (Polyandry) वह विवाह प्रथा है जिसमें एक महिला के एक से अधिक पति होते हैं। भारतीय समाज के कुछ हिस्सों, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में, यह प्रथा प्रचलित रही है।
- संदर्भ और विस्तार: बहुपत्नीत्व (Polygyny) में एक पुरुष के एक से अधिक पत्नियाँ होती हैं। एकविवाह में एक व्यक्ति का एक ही समय में एक ही जीवनसाथी होता है। समूह विवाह में कई पुरुष और कई स्त्रियाँ एक-दूसरे से विवाहित होते हैं।
- गलत विकल्प: बहुपत्नीत्व गलत है क्योंकि वह पुरुष से संबंधित है। एकविवाह और समूह विवाह भी गलत हैं क्योंकि वे प्रश्न के विवरण से मेल नहीं खाते।
प्रश्न 10: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, ‘परिवार’ (Family) को प्रायः किस प्रकार की संस्था माना जाता है?
- प्राथमिक समूह
- द्वितीयक समूह
- अधिकार समूह
- रूढ़िवादी समूह
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: चार्ल्स कूली के वर्गीकरण के अनुसार, परिवार को एक ‘प्राथमिक समूह’ (Primary Group) माना जाता है। प्राथमिक समूह वे होते हैं जहाँ आमने-सामने का संबंध, घनिष्ठता और सहयोग पाया जाता है, जो व्यक्तिगत विकास और समाजीकरण के लिए महत्वपूर्ण होता है।
- संदर्भ और विस्तार: परिवार में सदस्य घनिष्ठ, भावनात्मक और दीर्घकालिक संबंध साझा करते हैं। द्वितीयक समूह वे होते हैं जो अधिक औपचारिक, अनौपचारिक और उद्देश्य-उन्मुख होते हैं, जैसे कार्यस्थल या क्लब।
- गलत विकल्प: परिवार द्वितीयक समूह नहीं है। अधिकार समूह (Reference Group) वह समूह होता है जिससे व्यक्ति अपनी तुलना करता है। रूढ़िवादी समूह कोई मानक समाजशास्त्रीय वर्गीकरण नहीं है।
प्रश्न 11: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का सबसे पुराना और सबसे कठोर रूप कौन सा है?
- वर्ग (Class)
- जाति (Caste)
- गुलामी (Slavery)
- स्टेटस समूह (Status Group)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय संदर्भ में, जाति व्यवस्था सामाजिक स्तरीकरण का सबसे पुराना, सबसे कठोर और अनुष्ठानात्मक रूप रही है। यह जन्म पर आधारित होती है और इसमें सामाजिक गतिशीलता अत्यंत सीमित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: जाति व्यवस्था में विभिन्न जातियाँ पदानुक्रम में स्थित होती हैं, जिनके बीच सामाजिक संपर्क, विवाह और व्यवसाय पर कड़े नियम होते हैं। वर्ग व्यवस्था अधिक लचीली होती है और आर्थिक स्थिति पर आधारित होती है। गुलामी एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ व्यक्ति को संपत्ति माना जाता है। स्टेटस समूह वेबर द्वारा प्रस्तुत सामाजिक स्तरीकरण का एक आयाम है।
- गलत विकल्प: वर्ग व्यवस्था, गुलामी और स्टेटस समूह भी स्तरीकरण के रूप हैं, लेकिन जाति व्यवस्था अपनी कठोरता और जन्म-आधारित प्रकृति के कारण सबसे पुराना और सबसे प्रमुख रूप मानी जाती है।
प्रश्न 12: वेबर के अनुसार, नौकरशाही (Bureaucracy) की क्या विशेषता है?
- अस्पष्ट अधिकार पदानुक्रम
- अनिर्धारित जिम्मेदारियाँ
- तर्कसंगत-कानूनी सत्ता
- व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित निर्णय
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर के अनुसार, आधुनिक नौकरशाही की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता ‘तर्कसंगत-कानूनी सत्ता’ (Rational-Legal Authority) है। यह नियमों, विनियमों और पद-सोपान पर आधारित एक निष्पक्ष और व्यवस्थित प्रणाली है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने नौकरशाही को दक्षता और तर्कसंगतता को बढ़ावा देने वाले एक आदर्श प्रकार के रूप में वर्णित किया, जिसमें स्पष्ट अधिकार क्षेत्र, लिखित नियम, विशेषज्ञता और गैर-व्यक्तिगत संबंध होते हैं।
- गलत विकल्प: अस्पष्ट अधिकार पदानुक्रम, अनिर्धारित जिम्मेदारियाँ और व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित निर्णय नौकरशाही की विशेषताएँ नहीं हैं; बल्कि ये अनौपचारिक या अकुशल प्रणालियों की पहचान हैं।
प्रश्न 13: ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?
- ई. वी. रामास्वामी पेरियार
- एम. एन. श्रीनिवास
- आंद्रे बेतेई
- अमतागा कासने
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम. एन. श्रीनिवास, एक प्रमुख भारतीय समाजशास्त्री, ने ‘संस्कृतीकरण’ की अवधारणा प्रस्तुत की। इसका अर्थ है कि निम्न जातियाँ या जनजातियाँ उच्च, विशेष रूप से ब्राह्मणवादी, जातियों की प्रथाओं, अनुष्ठानों, रीति-रिवाजों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में पहली बार सामने आई। यह एक प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता है जो जाति व्यवस्था में देखी जाती है।
- गलत विकल्प: ई. वी. रामास्वामी पेरियार द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे। आंद्रे बेतेई ने ‘The Gift’ पुस्तक लिखी। अमिनतागा कासने भारत में परिवार की संरचना पर काम करते हैं।
प्रश्न 14: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में, ‘गुणात्मक विधि’ (Qualitative Method) का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
- संख्यात्मक डेटा एकत्र करना
- कारण-कार्य संबंध स्थापित करना
- सामाजिक घटनाओं के अर्थ और संदर्भ को समझना
- विशाल जनसंख्या का सर्वेक्षण करना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: गुणात्मक विधि का प्राथमिक उद्देश्य सामाजिक घटनाओं की गहराई, जटिलता, अर्थ और संदर्भ को समझना है। यह व्यक्तियों के अनुभवों, दृष्टिकोणों और व्याख्याओं पर ध्यान केंद्रित करती है।
- संदर्भ और विस्तार: गुणात्मक अनुसंधान विधियों में साक्षात्कार, फोकस समूह, नृवंशविज्ञान (ethnography) और केस स्टडी जैसी तकनीकें शामिल हैं। इसके विपरीत, मात्रात्मक विधि (Quantitative Method) का उद्देश्य संख्यात्मक डेटा एकत्र करना, सांख्यिकीय विश्लेषण करना और व्यापक सामान्यीकरण (generalizations) करना होता है।
- गलत विकल्प: संख्यात्मक डेटा एकत्र करना मात्रात्मक विधि का काम है। कारण-कार्य संबंध स्थापित करना दोनों विधियों का लक्ष्य हो सकता है, लेकिन गुणात्मक विधि से संदर्भ की समझ अधिक होती है। विशाल जनसंख्या का सर्वेक्षण मात्रात्मक विधि की विशेषता है।
प्रश्न 15: निम्न में से कौन सी सामाजिक संस्था (Social Institution) ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Conscience) को सबसे अधिक सुदृढ़ करती है, जैसा कि दुर्खीम ने बताया?
- परिवार
- शिक्षा
- धर्म
- अर्थव्यवस्था
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम के अनुसार, ‘धर्म’ (Religion) समाज में सामूहिक चेतना और एकजुटता को सुदृढ़ करने वाली सबसे शक्तिशाली संस्था है। धर्म पवित्र और अपवित्र के बीच भेद करके, साझा अनुष्ठानों और विश्वासों के माध्यम से समुदाय की भावना को बढ़ावा देता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘धर्म का प्रारंभिक रूप’ (The Elementary Forms of Religious Life) में तर्क दिया कि धर्म समाज का ही एक रूप है, और इसके माध्यम से समाज स्वयं की पूजा करता है। साझा अनुष्ठान और विश्वास लोगों को एक साथ लाते हैं और सामाजिक बंधन को मजबूत करते हैं।
- गलत विकल्प: परिवार, शिक्षा और अर्थव्यवस्था भी सामाजिक एकजुटता में योगदान करते हैं, लेकिन दुर्खीम के अनुसार, धर्म में सामूहिक चेतना को व्यक्त और सुदृढ़ करने की विशेष शक्ति होती है।
प्रश्न 16: ‘प्रतीक’ (Symbol) के बारे में जी. एच. मीड का क्या दृष्टिकोण था?
- प्रतीक सामाजिक अंतःक्रिया के लिए अनावश्यक हैं।
- प्रतीक व्यक्ति को स्वयं और दूसरों को समझने में मदद करते हैं।
- प्रतीक केवल भाषा तक सीमित हैं।
- प्रतीक केवल शासक वर्ग द्वारा नियंत्रित होते हैं।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जी. एच. मीड ने माना कि ‘प्रतीक’ (Symbols) सामाजिक अंतःक्रिया के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। विशेष रूप से, प्रतीकों (जैसे भाषा) के माध्यम से व्यक्ति अपनी चेतना (Self) का विकास करता है और दूसरों के दृष्टिकोण को समझकर समाज में भूमिकाएँ निभाता है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड के अनुसार, ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) के द्वंद्व के माध्यम से व्यक्ति समाज में अपनी जगह बनाता है। ‘मुझे’ वह सामाजिक ‘मैं’ है जो दूसरों के दृष्टिकोणों और अपेक्षाओं को आत्मसात करता है। प्रतीकों के बिना यह प्रक्रिया संभव नहीं है।
- गलत विकल्प: मीड के अनुसार, प्रतीक सामाजिक अंतःक्रिया के लिए मौलिक हैं, न कि अनावश्यक। प्रतीक भाषा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हावभाव, वस्तुएँ आदि भी प्रतीक हो सकते हैं। उनका विचार प्रतीकों पर केवल शासक वर्ग के नियंत्रण के बारे में नहीं था।
प्रश्न 17: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवाद (Capitalism) का अंतर्निहित अंतर्विरोध क्या है?
- उत्पादन की विधियों पर राज्य का नियंत्रण
- पूंजीपतियों और सर्वहारा वर्ग के बीच बढ़ता संघर्ष
- पारंपरिक मूल्यों का आधुनिकरण
- कृषि का औद्योगिकरण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) के अनुसार, पूंजीवादी व्यवस्था का मुख्य अंतर्विरोध उत्पादन के साधनों के स्वामी (पूंजीपति या बुर्जुआ) और अपने श्रम को बेचने वाले मजदूरों (सर्वहारा) के बीच बढ़ता हुआ संघर्ष है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स का मानना था कि पूंजीवाद में, पूंजीपति लगातार लाभ बढ़ाने के लिए श्रमिकों का शोषण करते हैं, जिससे वर्ग चेतना (Class Consciousness) विकसित होती है और अंततः क्रांति होती है। यह संघर्ष ही पूंजीवाद को समाप्त करेगा।
- गलत विकल्प: उत्पादन पर राज्य का नियंत्रण समाजवाद या साम्यवाद की विशेषता है, पूंजीवाद की नहीं। पारंपरिक मूल्यों का आधुनिकरण और कृषि का औद्योगिकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाएँ हैं, लेकिन मार्क्स के अनुसार पूंजीवाद का अंतर्निहित अंतर्विरोध वर्ग संघर्ष ही है।
प्रश्न 18: ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) के अध्ययन में, ‘प्रौद्योगिकी’ (Technology) को एक महत्वपूर्ण कारक किसने माना?
- इमाइल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- ऑगस्टे कॉम्ते
- विलियम ओग्बर्न
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम ओग्बर्न (William Ogburn) ने सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन में ‘प्रौद्योगिकी’ (Technology) को एक प्रमुख चालक माना। उन्होंने ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा भी प्रस्तुत की, जिसके अनुसार भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे मान्यताएँ, नियम) की तुलना में तेजी से बदलती है, जिससे सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: ओग्बर्न ने अपनी पुस्तक ‘Social Change with Respect to Culture and Original Nature’ में इस पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने प्रौद्योगिकी को सामाजिक परिवर्तनों का एक महत्वपूर्ण कारण माना, जो जीवन शैली, सामाजिक संरचना और मूल्यों को प्रभावित करती है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने श्रम विभाजन पर जोर दिया। मार्क्स ने आर्थिक उत्पादन संबंधों को केंद्रीय माना। कॉम्ते ने प्रत्यक्षवाद और सामाजिक विकास के तीन चरणों का सिद्धांत दिया।
प्रश्न 19: भारतीय समाज में ‘पित्रवंशीय’ (Patrilineal) वंशानुक्रम का क्या अर्थ है?
- संपत्ति और वंश पिता से पुत्री को प्राप्त होती है।
- संपत्ति और वंश माता से पुत्र को प्राप्त होती है।
- संपत्ति और वंश पिता से पुत्र को प्राप्त होती है।
- संपत्ति और वंश माता से पुत्री को प्राप्त होती है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पित्रवंशीय (Patrilineal) वंशानुक्रम का अर्थ है कि परिवार में संपत्ति, पद और वंश पिता से पुत्र को हस्तांतरित होता है। भारतीय समाज में यह वंशानुक्रम का सबसे आम रूप है।
- संदर्भ और विस्तार: इसके विपरीत, मातृवंशीय (Matrilineal) वंशानुक्रम में संपत्ति और वंश माता से पुत्र या पुत्री को प्राप्त होता है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a) और (d) मातृवंशीय व्यवस्था का वर्णन करते हैं, और विकल्प (b) भी एक प्रकार की मातृवंशीय व्यवस्था का वर्णन करता है (जो अक्सर माता से पुत्र को जाता है)। विकल्प (c) ही पित्रवंशीय व्यवस्था का सही अर्थ है।
प्रश्न 20: ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) के प्रमुख विचारकों में कौन शामिल हैं?
- इमाइल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- कर्ट लेविन
- कार्ल मैन्हेम
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मैन्हेम (Karl Mannheim) को ‘ज्ञान के समाजशास्त्र’ का प्रमुख विचारक माना जाता है। उन्होंने इस बात का अध्ययन किया कि सामाजिक परिस्थितियाँ और समूह ज्ञान के निर्माण और प्रसार को कैसे प्रभावित करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मैन्हेम ने अपनी पुस्तक ‘Ideology and Utopia’ में “Relating Intellect to Social Existence” का विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि ज्ञान केवल तार्किक या निष्पक्ष नहीं होता, बल्कि अक्सर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों से प्रभावित होता है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम, मार्क्स और लेविन महत्वपूर्ण समाजशास्त्रीय विचारक हैं, लेकिन ज्ञान के समाजशास्त्र से उनका सीधा जुड़ाव मैन्हेम जितना प्रमुख नहीं है।
प्रश्न 21: निम्न में से कौन सी प्रक्रिया ‘सामाजिक नियंत्रण’ (Social Control) का उदाहरण नहीं है?
- कानूनों का निर्माण और प्रवर्तन
- जनसंचार माध्यमों द्वारा मूल्यों का प्रसार
- नैतिकता और परंपराओं का पालन
- व्यक्तिगत आकांक्षाओं का अनियंत्रित विस्तार
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: व्यक्तिगत आकांक्षाओं का अनियंत्रित विस्तार सामाजिक नियंत्रण का उदाहरण नहीं है, बल्कि यह तब हो सकता है जब सामाजिक नियंत्रण कमजोर हो। सामाजिक नियंत्रण का उद्देश्य समाज के सदस्यों के व्यवहार को विनियमित करना और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखना है।
- संदर्भ और विस्तार: कानूनों का निर्माण, जनसंचार माध्यमों द्वारा मूल्यों का प्रसार, और नैतिकता व परंपराओं का पालन सभी सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक या अनौपचारिक रूप हैं जो व्यक्तियों के व्यवहार को निर्देशित करते हैं।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b), और (c) सभी सामाजिक नियंत्रण की विधियाँ हैं। विकल्प (d) एक ऐसी स्थिति का वर्णन करता है जब सामाजिक नियंत्रण का अभाव होता है।
प्रश्न 22: ‘सामुदायिकता’ (Gemeinschaft) और ‘साहचर्य’ (Gesellschaft) की अवधारणाएं किसने विकसित कीं?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- फर्डिनेंड टोनीज़
- अगस्त कॉम्टे
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जर्मन समाजशास्त्री फर्डिनेंड टोनीज़ (Ferdinand Tönnies) ने ‘सामुदायिकता’ (Gemeinschaft) और ‘साहचर्य’ (Gesellschaft) की अवधारणाएं प्रस्तुत कीं। ये दो प्रकार के समाज और सामाजिक संबंधों का वर्णन करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: ‘सामुदायिकता’ उन समाजों को दर्शाती है जहाँ संबंध घनिष्ठ, भावनात्मक और व्यक्तिगत होते हैं, जैसे परिवार, ग्राम या मित्र मंडली। ‘साहचर्य’ उन समाजों को दर्शाता है जहाँ संबंध अधिक औपचारिक, व्यक्तिवादी और उद्देश्य-आधारित होते हैं, जैसे आधुनिक शहर या व्यावसायिक संबंध।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने यांत्रिक और साव्यवी एकता पर काम किया। वेबर ने सत्ता और नौकरशाही जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। कॉम्टे समाजशास्त्र के जनक हैं।
प्रश्न 23: निम्नलिखित में से कौन सा ‘असली सामाजिक आंदोलन’ (Real Social Movement) का उदाहरण है, जैसा कि सामाजिक आंदोलनों के वर्गीकरण में माना जाता है?
- एकीकरण आंदोलन (Reformative Movement)
- क्रांतिकारी आंदोलन (Revolutionary Movement)
- अलगाववादी आंदोलन (Separatist Movement)
- राष्ट्रीय आंदोलन (Nationalist Movement)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘क्रांतिकारी आंदोलन’ (Revolutionary Movement) को अक्सर ‘असली सामाजिक आंदोलन’ (Real Social Movement) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि ये आंदोलन मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदलने या उखाड़ फेंकने का लक्ष्य रखते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक आंदोलन के अन्य प्रकारों में एकीकरण आंदोलन (जो केवल सामाजिक संरचना में छोटे-मोटे परिवर्तन चाहते हैं), सुधारवादी आंदोलन (जो सामाजिक और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर परिवर्तन चाहते हैं), और क्रांतिकारी आंदोलन (जो दोनों स्तरों पर पूर्ण परिवर्तन चाहते हैं) शामिल हैं। (यहां एक वर्गीकरण का उदाहरण दिया गया है, विभिन्न समाजशास्त्री इसे अलग-अलग ढंग से वर्गीकृत कर सकते हैं, लेकिन क्रांतिकारी आंदोलन अक्सर सबसे परिवर्तनकारी माना जाता है)।
- गलत विकल्प: एकीकरण आंदोलन, अलगाववादी आंदोलन और राष्ट्रीय आंदोलन भी सामाजिक आंदोलन हो सकते हैं, लेकिन क्रांतिकारी आंदोलन का लक्ष्य प्रणालीगत और संपूर्ण परिवर्तन होता है।
प्रश्न 24: समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में, ‘पलायनवाद’ (Escapism) को किस रूप में देखा जा सकता है?
- एक सामाजिक समस्या का समाधान
- व्यक्ति का अपनी वास्तविक दुनिया की समस्याओं से बचने का प्रयास
- सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख चालक
- समूह एकता को सुदृढ़ करने की प्रक्रिया
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, पलायनवाद (Escapism) को व्यक्ति द्वारा अपनी वास्तविक दुनिया की कठिनाइयों, तनावों या अप्रियताओं से बचने के प्रयास के रूप में देखा जाता है। यह अक्सर मनोरंजन, काल्पनिक दुनिया या अन्य गतिविधियों के माध्यम से होता है।
- संदर्भ और विस्तार: जबकि पलायनवाद अस्थायी राहत प्रदान कर सकता है, इसे स्वयं एक सामाजिक समस्या के समाधान के रूप में नहीं देखा जाता है। यह अक्सर समाज में अंतर्निहित समस्याओं को हल करने के बजाय उनसे बचने की एक रणनीति है। यह सामाजिक परिवर्तन का चालक नहीं है, बल्कि अक्सर निष्क्रियता का प्रतीक है।
- गलत विकल्प: पलायनवाद समस्या का समाधान नहीं है। यह सामाजिक परिवर्तन का चालक या समूह एकता को सुदृढ़ करने की प्रक्रिया नहीं है।
प्रश्न 25: ‘पंडित’ (Pandit) को भारतीय ग्राम समाज में किस प्रकार का संबंध माना जाता है?
- आर्थिक
- पारिवारिक
- धार्मिक/सांस्कृतिक
- राजनीतिक
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पारंपरिक भारतीय ग्राम समाज में, ‘पंडित’ (या पुरोहित) मुख्य रूप से ‘धार्मिक/सांस्कृतिक’ (Religious/Cultural) भूमिका निभाता था। वे अनुष्ठान, पूजा, विवाह, जन्म और मृत्यु संस्कार जैसे धार्मिक कृत्य संपन्न कराते थे।
- संदर्भ और विस्तार: यद्यपि पंडितों का समाज में एक निश्चित सामाजिक दर्जा और प्रभाव होता था, उनकी प्राथमिक भूमिका धर्म और संस्कृति के संरक्षण और अनुष्ठानिक कार्यों से जुड़ी थी। कभी-कभी वे शिक्षा या परामर्श भी देते थे, लेकिन यह उनकी मुख्य भूमिका का विस्तार था।
- गलत विकल्प: पंडित की भूमिका सीधे तौर पर आर्थिक, पारिवारिक या राजनीतिक नहीं होती थी, हालाँकि उनके कार्य अप्रत्यक्ष रूप से इन क्षेत्रों को प्रभावित कर सकते थे।