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न्यायपालिका पर संकट? जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला!

न्यायपालिका पर संकट? जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एस.एन. वर्मा की एक महत्वपूर्ण याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में उन्होंने अपने खिलाफ शुरू की गई महाभियोग की प्रक्रिया को चुनौती दी थी। जस्टिस वर्मा पर कथित तौर पर एक ‘कैश कांड’ में शामिल होने और न्यायिक कदाचार का आरोप है, जिसके चलते उनके खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह घटनाक्रम भारतीय न्यायपालिका की निष्पक्षता, स्वतंत्रता और जवाबदेही पर एक गंभीर बहस को जन्म देता है, साथ ही UPSC उम्मीदवारों के लिए संवैधानिक प्रक्रियाओं और न्यायिक जवाबदेही को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।

जस्टिस वर्मा का मामला: एक विस्तृत विश्लेषण

यह मामला तब प्रकाश में आया जब जस्टिस एस.एन. वर्मा, जो एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश रहे हैं, पर गंभीर आरोप लगे। आरोपों की प्रकृति ऐसी थी कि उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई। महाभियोग, जैसा कि हम जानते हैं, किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उनके पद से हटाने के लिए एक संवैधानिक तंत्र है। जब आरोप गंभीर होते हैं और संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा कदाचार किया जाता है, तो यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण हो जाता है कि न्यायपालिका अपनी प्रतिष्ठा और जनता के विश्वास को बनाए रखे।

महाभियोग की प्रक्रिया: भारतीय संविधान क्या कहता है?

भारतीय संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 124(4) और 217, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के महाभियोग के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करता है। यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल और सावधानीपूर्वक बनाई गई है ताकि न्यायाधीशों की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सके कि कदाचार की स्थिति में उन्हें जवाबदेह ठहराया जा सके।

  • प्रक्रिया की शुरुआत: महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में पेश किया जा सकता है। प्रस्ताव को पेश करने के लिए सदन के कम से कम 50 सदस्यों (लोकसभा में) या 25 सदस्यों (राज्यसभा में) के समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • जाँच समिति का गठन: यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति एक तीन-सदस्यीय जाँच समिति का गठन करते हैं। इस समिति में आमतौर पर एक सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता शामिल होता है।
  • आरोप की जाँच: यह समिति न्यायाधीश पर लगे आरोपों की जाँच करती है और अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है।
  • संसदीय वोट: यदि जाँच समिति अपनी रिपोर्ट में आरोपों को सही पाती है, तो प्रस्ताव पर सदन में चर्चा होती है। प्रस्ताव को पारित करने के लिए प्रत्येक सदन में, कुल सदस्यता के बहुमत से और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
  • राष्ट्रपति का आदेश: संसद के दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित होने के बाद, यह राष्ट्रपति को भेजा जाता है, जो न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं।

यह प्रक्रिया न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने और न्यायाधीशों को अनुचित रूप से हटाने से रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करती है।

जस्टिस वर्मा की याचिका और सुप्रीम कोर्ट का फैसला

इस मामले में, जस्टिस वर्मा ने संभवतः महाभियोग की प्रक्रिया के किसी पहलू या उन पर लगे आरोपों की वैधता को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उनकी मुख्य दलील यह रही होगी कि महाभियोग की प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं है या उनके खिलाफ लगाए गए आरोप गलत हैं।

हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि वर्तमान में महाभियोग की प्रक्रिया को रोकने का कोई आधार नहीं है। इसका सीधा अर्थ यह है कि न्यायालय ने माना है कि महाभियोग की कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। न्यायालय का यह निर्णय कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • प्रक्रिया की निरंतरता: यह सुनिश्चित करता है कि महाभियोग की संवैधानिक प्रक्रिया बाधित न हो।
  • आरोप की गंभीरता: यह दर्शाता है कि न्यायालय ने आरोपों को प्रारंभिक स्तर पर इतना गंभीर माना है कि जाँच समिति को अपना काम करने देना चाहिए।
  • न्यायिक जवाबदेही: यह न्यायिक जवाबदेही के सिद्धांत को पुष्ट करता है, कि उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों को भी अपने कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि याचिका खारिज होने का मतलब यह नहीं है कि जस्टिस वर्मा दोषी पाए गए हैं। इसका मतलब केवल इतना है कि उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया जारी रह सकती है, और अंतिम निर्णय जाँच समिति और संसद के माध्यम से लिया जाएगा।

‘कैश कांड’ का क्या अर्थ है?

जब हम ‘कैश कांड’ शब्द का प्रयोग करते हैं, तो इसका तात्पर्य वित्तीय अनियमितताओं, रिश्वतखोरी या किसी अन्य प्रकार के अवैध वित्तीय लेनदेन से संबंधित आरोपों से है। जस्टिस वर्मा के मामले में, आरोप इसी तरह की वित्तीय कदाचार से जुड़े हो सकते हैं, जिसके कारण उनके आचरण पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगे। न्यायिक कदाचार में सिर्फ भ्रष्टाचार ही नहीं, बल्कि पक्षपातपूर्ण निर्णय, अनुचित व्यवहार, या अपनी शक्तियों का दुरुपयोग भी शामिल हो सकता है।

“न्यायपालिका की स्वतंत्रता अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन यह निरंकुश स्वतंत्रता नहीं है। स्वतंत्रता के साथ-साथ जवाबदेही का संतुलन आवश्यक है ताकि जनता का विश्वास बना रहे।”

UPSC के लिए प्रासंगिकता: क्यों यह विषय महत्वपूर्ण है?

यह मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है:

  1. संवैधानिक प्रावधान: न्यायाधीशों की नियुक्ति, महाभियोग प्रक्रिया (अनुच्छेद 124(4), 217), और न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित प्रावधान।
  2. न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जवाबदेही: इन दोनों के बीच संतुलन, जिसके लिए यह मामला एक केस स्टडी के रूप में काम कर सकता है।
  3. न्यायिक कदाचार: न्यायाधीशों के आचरण को नियंत्रित करने वाले नियम और ऐसे मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रियाएं।
  4. लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका: शक्तियों के पृथक्करण और जाँच व संतुलन (checks and balances) के सिद्धांत में न्यायपालिका का स्थान।
  5. समसामयिक मामले: वर्तमान घटनाओं को राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों से जोड़ना।

पक्ष और विपक्ष: महाभियोग प्रक्रिया के गुण और दोष

पक्ष (Arguments in Favor of Impeachment Process):**

  • जवाबदेही सुनिश्चित करना: यह सुनिश्चित करता है कि न्यायाधीश भी अपने कदाचार के लिए जिम्मेदार हों।
  • न्यायपालिका की प्रतिष्ठा की रक्षा: भ्रष्ट या पक्षपाती न्यायाधीशों को हटाकर न्यायपालिका की अखंडता को बनाए रखना।
  • संवैधानिक ढांचा: यह भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त एक स्थापित प्रक्रिया है।
  • जनता का विश्वास: पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया जनता का न्यायपालिका पर विश्वास बढ़ाती है।

विपक्ष (Arguments Against/Concerns with Impeachment Process):**

  • न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर खतरा: राजनीतिक दबाव के तहत महाभियोग की प्रक्रिया का दुरुपयोग होने की आशंका। यदि न्यायाधीशों को आसानी से हटाया जा सकता है, तो वे सरकार या शक्तिशाली व्यक्तियों के खिलाफ निष्पक्ष निर्णय लेने से डर सकते हैं।
  • लंबी और जटिल प्रक्रिया: प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल है कि यह वर्षों तक खिंच सकती है, जिससे अनिश्चितता बनी रहती है।
  • सबूत की आवश्यकता: आरोपों को सिद्ध करने के लिए पुख्ता सबूत की आवश्यकता होती है, जो कभी-कभी जुटाना मुश्किल होता है।
  • जाँच समिति की निष्पक्षता: जाँच समिति की निष्पक्षता पर भी सवाल उठ सकते हैं, खासकर यदि उसमें राजनीतिक नियुक्तियाँ हों।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह

यह मामला भारतीय न्यायपालिका के सामने कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ खड़ी करता है:

  • संतुलन बनाना: न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसकी जवाबदेही के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखना।
  • प्रक्रिया में सुधार: महाभियोग की प्रक्रिया को अधिक सुव्यवस्थित, पारदर्शी और कम समय लेने वाला बनाने के तरीकों पर विचार करना।
  • न्यायिक आचरण संहिता: न्यायाधीशों के आचरण को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने वाली एक मजबूत और बाध्यकारी न्यायिक आचरण संहिता (Judicial Conduct Code) की आवश्यकता, जिसे समय-समय पर अपडेट किया जा सके।
  • सार्वजनिक धारणा: ऐसे मामलों में सार्वजनिक धारणा को प्रबंधित करना और यह सुनिश्चित करना कि प्रारंभिक आरोप ही किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को पूरी तरह से बर्बाद न कर दें।

भविष्य में, ऐसे मामलों से निपटने के लिए एक ऐसे तंत्र की आवश्यकता है जो आरोपों की गंभीरता की निष्पक्ष जाँच करे, जबकि न्यायाधीशों को अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप से भी बचाए। कॉलेजियम प्रणाली में सुधार और न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता भी लंबी अवधि में महत्वपूर्ण हो सकती है।

निष्कर्ष

जस्टिस एस.एन. वर्मा के खिलाफ महाभियोग की याचिका को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज करना भारतीय न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। यह घटना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के साथ-साथ उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल देती है। UPSC उम्मीदवारों को इस मामले के संवैधानिक, कानूनी और नैतिक पहलुओं को समझना चाहिए, क्योंकि यह भारतीय शासन प्रणाली के एक महत्वपूर्ण स्तंभ से जुड़ा है। यह मामला दिखाता है कि चाहे पद कितना भी ऊंचा क्यों न हो, कानून के समक्ष सभी को समान रूप से जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, लेकिन इस प्रक्रिया में निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन सर्वोपरि होना चाहिए।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के महाभियोग से संबंधित है?
a) अनुच्छेद 112
b) अनुच्छेद 124(4)
c) अनुच्छेद 143
d) अनुच्छेद 217(1)
उत्तर: b) अनुच्छेद 124(4)
व्याख्या: अनुच्छेद 124(4) में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने के आधार और प्रक्रिया का वर्णन है। अनुच्छेद 217(1) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और पद से हटाने से संबंधित है, जिसमें महाभियोग का उल्लेख है।

2. किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को महाभियोग द्वारा पद से हटाने के लिए संसद के किस सदन में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है?
a) केवल लोकसभा में
b) केवल राज्यसभा में
c) लोकसभा या राज्यसभा किसी भी सदन में
d) राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से
उत्तर: c) लोकसभा या राज्यसभा किसी भी सदन में
व्याख्या: भारतीय संविधान के अनुसार, न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है, बशर्ते कि उसमें आवश्यक न्यूनतम सदस्यों का समर्थन हो।

3. न्यायाधीशों के महाभियोग की जाँच के लिए गठित तीन-सदस्यीय समिति में कौन शामिल हो सकते हैं?
i) सर्वोच्च न्यायालय का एक वर्तमान न्यायाधीश
ii) किसी उच्च न्यायालय का एक वर्तमान मुख्य न्यायाधीश
iii) एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता
iv) भारत का महान्यायवादी (Attorney General of India)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) i, ii और iii
b) ii, iii और iv
c) i, iii और iv
d) i, ii, iii और iv
उत्तर: a) i, ii और iii
व्याख्या: जाँच समिति में आम तौर पर एक सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता शामिल होता है। भारत का महान्यायवादी इस समिति का सदस्य नहीं होता।

4. न्यायाधीशों के महाभियोग प्रस्ताव को पारित करने के लिए संसद के प्रत्येक सदन में आवश्यक बहुमत क्या है?
a) साधारण बहुमत
b) सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से
c) सदन की कुल सदस्यता के दो-तिहाई बहुमत से
d) केवल उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से
उत्तर: b) सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से
व्याख्या: न्यायाधीशों के महाभियोग के लिए ‘विशेष बहुमत’ की आवश्यकता होती है, जिसमें सदन की कुल सदस्यता का बहुमत और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत दोनों शामिल हैं।

5. निम्नलिखित में से कौन सा कार्य न्यायिक कदाचार (Judicial Misconduct) की श्रेणी में आ सकता है?
i) वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त होना
ii) किसी मामले में पक्षपात दिखाना
iii) अपने पद का दुरुपयोग करना
iv) किसी वाद पर निर्णय देने में अत्यधिक देरी करना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) i, ii और iii
b) i, ii, iii और iv
c) ii, iii और iv
d) i और iv
उत्तर: b) i, ii, iii और iv
व्याख्या: ये सभी कार्य न्यायिक कदाचार के दायरे में आ सकते हैं, हालाँकि अत्यधिक देरी के मामले को अलग-अलग संदर्भों में देखा जा सकता है, लेकिन गंभीर या लगातार देरी कदाचार का रूप ले सकती है।

6. ‘कैश कांड’ शब्द का प्रयोग आमतौर पर किस प्रकार के आरोपों के संदर्भ में किया जाता है?
a) व्यक्तिगत वित्तीय प्रबंधन में गड़बड़ी
b) रिश्वतखोरी या वित्तीय गबन जैसे अवैध वित्तीय लेनदेन
c) निवेश संबंधी गलतियाँ
d) कर चोरी
उत्तर: b) रिश्वतखोरी या वित्तीय गबन जैसे अवैध वित्तीय लेनदेन
व्याख्या: ‘कैश कांड’ शब्द का तात्पर्य सीधे तौर पर भ्रष्टाचार, रिश्वत या अवैध धन के लेन-देन से जुड़े आरोपों से है।

7. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने में निम्नलिखित में से कौन सा कारक महत्वपूर्ण है?
i) न्यायाधीशों का कार्यकाल की सुरक्षा
ii) न्यायाधीशों के लिए उचित वेतन और भत्ते
iii) महाभियोग की प्रक्रिया का राजनीतिक दुरुपयोग न होना
iv) कार्यपालिका का न्यायपालिका के निर्णयों में हस्तक्षेप
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) i, ii और iii
b) i, ii और iv
c) i, iii और iv
d) i, ii, iii और iv
उत्तर: a) i, ii और iii
व्याख्या: न्यायाधीशों का कार्यकाल की सुरक्षा, उचित वेतन और महाभियोग प्रक्रिया का दुरुपयोग न होना न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण हैं। कार्यपालिका का हस्तक्षेप स्वतंत्रता के विरुद्ध है।

8. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही को रोकने वाली याचिका को खारिज करने का क्या अर्थ हो सकता है?
a) न्यायाधीश दोषी पाया गया है।
b) न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया जारी रह सकती है।
c) महाभियोग की प्रक्रिया तुरंत समाप्त हो गई है।
d) जाँच समिति को भंग कर दिया गया है।
उत्तर: b) न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया जारी रह सकती है।
व्याख्या: याचिका खारिज होने का मतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने प्रक्रिया को रोकने का कोई आधार नहीं पाया, जिससे वह आगे बढ़ सकती है। यह अंतिम निर्णय नहीं है।

9. भारतीय संविधान के संदर्भ में, ‘नियंत्रण और संतुलन’ (Checks and Balances) का क्या अर्थ है?
a) सरकार की तीनों शाखाओं (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) का आपस में पूर्ण सहयोग।
b) सरकार की प्रत्येक शाखा की शक्तियों को सीमित करना ताकि कोई भी शाखा अत्याचारी न बन सके।
c) विधायिका द्वारा कार्यपालिका पर पूर्ण नियंत्रण।
d) न्यायपालिका द्वारा सभी विधायी कार्यों की समीक्षा।
उत्तर: b) सरकार की प्रत्येक शाखा की शक्तियों को सीमित करना ताकि कोई भी शाखा अत्याचारी न बन सके।
व्याख्या: नियंत्रण और संतुलन का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की प्रत्येक शाखा दूसरी शाखाओं को नियंत्रित करे और संतुलित रखे, जिससे शक्तियों का केंद्रीकरण रोका जा सके।

10. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था न्यायाधीशों की नियुक्ति में कॉलेजियम प्रणाली से संबंधित है?
a) राष्ट्रपति
b) प्रधानमंत्री
c) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक प्रणाली
d) संसद
उत्तर: c) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक प्रणाली
व्याख्या: कॉलेजियम प्रणाली सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण से संबंधित है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक समूह निर्णय लेता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) के आलोक में, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के महाभियोग की प्रक्रिया की व्याख्या करें। इसके साथ ही, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जवाबदेही के बीच संतुलन स्थापित करने में इस प्रक्रिया की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
2. जस्टिस वर्मा के मामले के संदर्भ में, ‘न्यायिक कदाचार’ से आप क्या समझते हैं? न्यायिक कदाचार के विभिन्न रूपों और ऐसे मामलों में संवैधानिक तंत्र द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं पर चर्चा करें।
3. न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारतीय लोकतंत्र का एक आधार स्तंभ है। हालाँकि, इस स्वतंत्रता के साथ-साथ जवाबदेही भी आवश्यक है। हालिया घटनाओं (जैसे जस्टिस वर्मा का मामला) को ध्यान में रखते हुए, न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए जवाबदेही सुनिश्चित करने के तरीकों पर विचार-विमर्श करें।
4. भारत में न्यायाधीशों के महाभियोग की प्रक्रिया अक्सर जटिल, लंबी और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मानी जाती है। इस प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता पर चर्चा करें ताकि इसे अधिक कुशल, पारदर्शी और प्रभावी बनाया जा सके, जबकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता न हो।

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