उत्तराखंड की तबाही: 150 जिंदगियां दांव पर, सेना का बचाव अभियान जारी, ग्लेशियर पिघलना क्या है वजह?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में उत्तराखंड के एक दुर्गम क्षेत्र में हुई भीषण त्रासदी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। भूस्खलन और बाढ़ की इस विनाशकारी घटना में जहां अब तक 5 शव बरामद हुए हैं, वहीं 150 से अधिक लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका है। बचाव कार्य युद्धस्तर पर जारी है, जिसमें भारतीय सेना ने भी मोर्चा संभाल लिया है। इस तबाही के पीछे ग्लेशियरों के पिघलने की भूमिका को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं, जो जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे की ओर एक बार फिर इशारा कर रहा है। यह घटना न केवल तत्काल राहत और बचाव की चुनौतियाँ पेश करती है, बल्कि भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए हमारी तैयारियों पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस गंभीर घटना के विभिन्न पहलुओं को गहराई से खंगालने का प्रयास करेगा, जिसमें घटना का विस्तृत विवरण, इसके संभावित कारण, भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं का वैज्ञानिक आधार, ग्लेशियर पिघलने और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध, बचाव कार्यों की चुनौतियाँ, और सबसे महत्वपूर्ण, UPSC उम्मीदवारों के लिए इस विषय से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं का विश्लेषण शामिल होगा।
उत्तराखंड की त्रासदी: घटना का विस्तृत विवरण
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऊंचे पर्वतों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन यही पहाड़ कभी-कभी विनाश का कारण भी बन जाते हैं। इस बार की त्रासदी ने एक बार फिर पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों और वहां आने वाले पर्यटकों की असुरक्षा को उजागर किया है।
- स्थान: (यह जानकारी मूल शीर्षक में नहीं है, इसलिए इसे काल्पनिक रूप से दर्शाया गया है, लेकिन वास्तविक लेख में विशिष्ट स्थान का उल्लेख आवश्यक है।)
- घटना का स्वरूप: अचानक भारी मात्रा में भूस्खलन हुआ, जिसके बाद मलबा तेजी से नीचे बहते हुए आबादी वाले क्षेत्रों या निर्माण स्थलों से टकराया। इसके साथ ही, भारी बारिश या किसी अन्य कारण से बाढ़ भी आई हो सकती है, जिसने तबाही को और बढ़ाया।
- हताहतों की संख्या: प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, 5 शव बरामद हुए हैं, जबकि 150 से अधिक लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका है। यह संख्या बढ़ने की भी संभावना है।
- बचाव अभियान: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) के साथ-साथ भारतीय सेना भी बचाव और राहत कार्यों में जुट गई है। सेना की मौजूदगी विशेष रूप से दुर्गम इलाकों में बचाव कार्यों को गति देने और अधिक कुशलता से करने में मदद करती है।
इस तरह की आपदाएं न केवल जान-माल का भारी नुकसान करती हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवन को भी अस्त-व्यस्त कर देती हैं।
संभावित कारण: भूस्खलन और ग्लेशियर पिघलना
इस भीषण त्रासदी के पीछे कई कारक हो सकते हैं, जिनमें प्राकृतिक और मानव-जनित दोनों शामिल हैं। मूल शीर्षक के अनुसार, ग्लेशियर पिघलने का दावा एक प्रमुख संभावित कारण के रूप में उभरा है।
1. भूस्खलन (Landslides):
भूस्खलन एक भूगर्भीय घटना है जिसमें गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में मिट्टी, चट्टानें और मलबा किसी ढलान से नीचे की ओर खिसकते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं:
- भारी वर्षा: जब मिट्टी में पानी भर जाता है, तो उसकी सामंजस्य शक्ति (cohesive strength) कम हो जाती है, जिससे वह ढलान पर टिक नहीं पाती।
- भूकंप: भूकंप के झटके जमीन को हिलाते हैं, जिससे ढलानों पर अस्थिरता पैदा होती है और भूस्खलन हो सकता है।
- पर्वतीय ढलानों पर निर्माण: सड़कें, इमारतें या अन्य निर्माण कार्य करते समय प्राकृतिक ढलान को बदलने या कमजोर करने से भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- वनों की कटाई: पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं। वनों की कटाई से यह प्राकृतिक अवरोध समाप्त हो जाता है।
- हिमस्खलन (Avalanches): हालांकि यह सीधा भूस्खलन नहीं है, पर भारी बर्फ का खिसकना भी अपने साथ मलबा ले जा सकता है।
2. ग्लेशियर पिघलना (Glacier Melting):
ग्लेशियर, जो पृथ्वी पर मीठे पानी के विशाल भंडार हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण अभूतपूर्व दर से पिघल रहे हैं। ग्लेशियर पिघलने का सीधा संबंध इस प्रकार की आपदाओं से कैसे जुड़ सकता है, इसे समझना महत्वपूर्ण है:
- ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs): ग्लेशियरों के पिघलने से बनने वाली झीलें, जिन्हें ग्लेशियर झीलें कहा जाता है, कभी-कभी अस्थिर हो जाती हैं। इन झीलों में जमा पानी का अचानक भारी मात्रा में बाहर निकलना GLOFs कहलाता है। यह बाढ़ अपने साथ भारी मात्रा में मलबा, पत्थर और बर्फ लाती है, जो तबाही मचा सकती है।
- पर्वतीय ढलानों की अस्थिरता: ग्लेशियर अक्सर ढलानों को स्थिर रखने में भूमिका निभाते हैं। जब ग्लेशियर पीछे हटते हैं, तो नीचे की जमीन कम स्थिर हो सकती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना: ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में पर्माफ्रॉस्ट (स्थायी रूप से जमी हुई मिट्टी) पाया जाता है, जो भूस्खलन को रोकने में मदद करता है। वैश्विक तापमान बढ़ने से पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहा है, जिससे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं।
- बर्फ और पानी का मिश्रण: पिघलती बर्फ से बड़ी मात्रा में पानी निकलता है। यदि यह पानी मलबे या मिट्टी के साथ मिल जाता है, तो यह एक चिपचिपा और भारी मिश्रण बना सकता है जो तेजी से बहता है और विनाशकारी हो सकता है।
“जलवायु परिवर्तन केवल तापमान में वृद्धि नहीं है, बल्कि यह चरम मौसम की घटनाओं, जैसे भारी वर्षा, अचानक बाढ़ और भूस्खलन की आवृत्ति और तीव्रता को भी बढ़ाता है, जो हमारी पर्वतीय प्रणालियों के लिए विशेष रूप से खतरनाक है।”
जलवायु परिवर्तन और पर्वतीय आपदाओं का संबंध
वैश्विक जलवायु परिवर्तन, मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण, पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रहा है। इसके प्रभाव ध्रुवों और उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देते हैं। उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
1. हिमालयी ग्लेशियरों का सिकुड़ना:
वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि हिमालयी ग्लेशियर पिछले कुछ दशकों में तेजी से पिघल रहे हैं। यह न केवल भविष्य में पानी की उपलब्धता के लिए एक गंभीर खतरा है, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन के लिए भी जोखिम पैदा करता है।
2. चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि:
जलवायु परिवर्तन के कारण, हम अधिक तीव्र और अप्रत्याशित मौसम पैटर्न देख रहे हैं। इसमें शामिल हैं:
- अति-वृष्टि (Intense Rainfall): कम समय में अत्यधिक वर्षा, जो नदियों के जलस्तर को अचानक बढ़ा सकती है और भूस्खलन को ट्रिगर कर सकती है।
- सूखा और फिर भारी बारिश: लंबी अवधि के सूखे के बाद अचानक भारी बारिश होने पर जमीन पानी को ठीक से सोख नहीं पाती, जिससे सतही बहाव (surface runoff) और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
- तापमान में वृद्धि: बढ़ते तापमान से न केवल ग्लेशियर पिघलते हैं, बल्कि बर्फबारी का पैटर्न भी बदलता है, जिससे हिमस्खलन का खतरा भी प्रभावित हो सकता है।
3. मानवीय गतिविधियाँ:
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मानवीय गतिविधियों द्वारा और बढ़ाया जा सकता है:
- अनियोजित विकास: पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से हो रहा अनियोजित शहरीकरण, पर्यटन विकास और अवसंरचना परियोजनाएं (जैसे सड़कें, बांध) प्राकृतिक ढलानों को कमजोर कर सकती हैं और भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
- अति-पर्यटन: बड़ी संख्या में पर्यटकों के आने से स्थानीय पर्यावरण पर दबाव पड़ता है, और कभी-कभी लापरवाह गतिविधियाँ (जैसे कचरा फेंकना, पेड़ों को नुकसान पहुंचाना) भी समस्याएँ खड़ी कर सकती हैं।
- वनोन्मूलन: विकास कार्यों के लिए वनों की कटाई भी भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाती है, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि कई बार प्राकृतिक आपदाएं अकेले जलवायु परिवर्तन या अकेले मानवीय गतिविधियों का परिणाम नहीं होतीं, बल्कि दोनों के जटिल अंतर्संबंध का नतीजा होती हैं।
बचाव और राहत कार्यों की चुनौतियाँ
उत्तराखंड जैसे दुर्गम और पहाड़ी इलाकों में बचाव और राहत कार्य अत्यंत चुनौतीपूर्ण होते हैं। इस त्रासदी में भी कई कठिनाइयाँ सामने आ रही हैं:
- दुर्गम इलाका: प्रभावित क्षेत्र अक्सर ऊंचे पहाड़ों और खड़ी ढलानों पर स्थित होते हैं, जहाँ पहुंचना बेहद मुश्किल होता है। सड़कें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं, जिससे बचाव दलों और उपकरणों को ले जाना कठिन हो जाता है।
- खराब मौसम: लगातार बारिश, कोहरा या बर्फीले हालात बचाव कार्यों में बाधा डाल सकते हैं।
- संचार की समस्या: दूरदराज के इलाकों में संचार व्यवस्था अक्सर बाधित हो जाती है, जिससे बचाव समन्वय में मुश्किल आती है।
- मलबे की गहराई: यदि लोग गहरे मलबे में फंसे हैं, तो उन्हें निकालना एक बहुत ही जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया हो सकती है, जिसके लिए विशेष उपकरणों और प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता होती है।
- अतिरिक्त जोखिम: बचाव कार्य के दौरान, बचाव दल को भी भूस्खलन, अचानक बाढ़ या अन्य अप्रत्याशित घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है।
- संसाधनों की कमी: विशिष्ट बचाव उपकरणों, चिकित्सा आपूर्ति और प्रशिक्षित मानव संसाधनों की उपलब्धता भी एक चुनौती हो सकती है।
सेना की तैनाती इन चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण साबित होती है, क्योंकि उनके पास ऐसे दुर्गम इलाकों में काम करने का अनुभव और आवश्यक संसाधन होते हैं।
UPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। उम्मीदवार इस घटना का विश्लेषण इन दृष्टिकोणों से कर सकते हैं:
1. सामान्य अध्ययन (GS) पेपर I: भूगोल (Geography)
- भौतिक भूगोल: भूस्खलन, बाढ़, भू-आकृतियाँ (geomorphology), हिमनद (glaciers) और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएं।
- प्राकृतिक संसाधन: जल संसाधन, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव।
- प्राकृतिक खतरे और आपदा प्रबंधन: भूस्खलन, बाढ़, GLOFs, चक्रवात, भूकंप आदि।
2. सामान्य अध्ययन (GS) पेपर II: शासन (Governance) और सामाजिक न्याय (Social Justice)
- सरकारी नीतियाँ और विभिन्न सरकारी एजेंसियों की भूमिका: NDRF, SDRF, सेना, IMD (भारतीय मौसम विज्ञान विभाग), NDMA (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण)।
- आपदा प्रबंधन: नीति, योजना, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्वास।
- अंतर-एजेंसी समन्वय।
3. सामान्य अध्ययन (GS) पेपर III: पर्यावरण (Environment) और अर्थशास्त्र (Economy)
- पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण: जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग।
- पर्यावरण संरक्षण: पर्वतीय पर्यावरण संरक्षण, हिमनद संरक्षण।
- आपदा प्रबंधन: आर्थिक और सामाजिक प्रभाव।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी: जीआईएस (GIS), रिमोट सेंसिंग, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (early warning systems)।
4. सामान्य अध्ययन (GS) पेपर IV: नैतिकता (Ethics)
- आपदा के समय नैतिक दुविधाएं।
- जनता के प्रति जवाबदेही और संवेदनशीलता।
- संसाधनों का कुशल और न्यायसंगत आवंटन।
5. निबंध (Essay):
इस घटना से संबंधित विषयों पर निबंध लिखे जा सकते हैं, जैसे:
- “जलवायु परिवर्तन: पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन के लिए एक बढ़ता खतरा।”
- “आपदा प्रबंधन: भारत की तैयारी और भविष्य की राह।”
- “विकास और पर्यावरण: संतुलन की आवश्यकता।”
6. समसामयिक मामले (Current Affairs):
यह सीधे तौर पर वर्तमान घटनाओं से जुड़ा हुआ है, और उम्मीदवारों को नवीनतम विकास, सरकारी प्रतिक्रियाओं और विशेषज्ञों की राय पर अपडेट रहना चाहिए।
भविष्य की राह: तैयारी और निवारण
इस तरह की त्रासदियों से सबक सीखते हुए, हमें भविष्य के लिए अधिक तैयार रहने और ऐसी घटनाओं के जोखिम को कम करने के लिए कदम उठाने होंगे:
1. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems):
पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन और GLOFs के लिए मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों का विकास और विस्तार महत्वपूर्ण है। इसमें सेंसर, मौसम निगरानी और उपग्रह डेटा का उपयोग शामिल है।
2. पर्यावरण-अनुकूल विकास (Eco-friendly Development):
पर्वतीय क्षेत्रों में किसी भी विकास परियोजना के लिए कठोर पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment – EIA) अनिवार्य होना चाहिए। निर्माण ऐसे होने चाहिए जो स्थानीय भूविज्ञान और पर्यावरण के अनुकूल हों।
3. वन संरक्षण और पुनर्वनीकरण (Forest Conservation and Reforestation):
वनों की कटाई को रोकना और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाना, विशेष रूप से भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में, ढलानों को स्थिर करने में मदद करेगा।
4. जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन (Climate Change Mitigation and Adaptation):
जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों, यानी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों का समर्थन करना और साथ ही, इस परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने की रणनीतियाँ बनाना आवश्यक है।
5. सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता (Community Participation and Awareness):
स्थानीय समुदायों को आपदाओं के खतरों, प्रारंभिक चेतावनी संकेतों और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है। उन्हें बचाव और पुनर्वास प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
6. सुदृढ़ आपदा प्रबंधन ढाँचा (Robust Disaster Management Framework):
आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर नीतियों, योजनाओं और संसाधनों को लगातार मजबूत किया जाना चाहिए। इसमें प्रशिक्षण, उपकरण और अंतर-एजेंसी समन्वय पर जोर देना शामिल है।
7. वैज्ञानिक अनुसंधान (Scientific Research):
पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और भूस्खलन की गतिशीलता पर निरंतर शोध की आवश्यकता है ताकि हम बेहतर समझ विकसित कर सकें और प्रभावी समाधान निकाल सकें।
“भविष्य की पीढ़ियों के लिए, हमें आज ही अपने पहाड़ों को सुरक्षित करना होगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि विकास पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाकर हो।”
उत्तराखंड की यह त्रासदी एक गंभीर चेतावनी है। यह न केवल हमें जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे की याद दिलाती है, बल्कि हमारी वर्तमान तैयारी और भविष्य की योजनाओं पर भी सवाल उठाती है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह एक ऐसा विषय है जिसका हर पहलू – वैज्ञानिक, प्रशासनिक, सामाजिक और नैतिक – परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस तरह की घटनाओं का गहराई से अध्ययन करना और विभिन्न संबंधित विषयों के साथ उनके जुड़ाव को समझना, परीक्षा में सफलता के लिए आवश्यक है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
a) GLOFs तब होते हैं जब ग्लेशियर झीलों में जमा पानी अचानक बाहर निकल जाता है।
b) GLOFs मुख्य रूप से हिमनदों के पिघलने के कारण बनते हैं।
c) GLOFs हमेशा विनाशकारी नहीं होते हैं; वे कभी-कभी बाढ़ के खतरे को कम कर सकते हैं।
d) GLOFs के कारण केवल बाढ़ आती है, भूस्खलन नहीं होता।
सही कूट का चयन करें:
(1) a और b
(2) a, b और d
(3) a और c
(4) केवल a
उत्तर: (1) a और b
व्याख्या: GLOFs ग्लेशियर झीलों के अचानक फटने से होते हैं, जो हिमनदों के पिघलने से बनती हैं। ये बाढ़ और मलबा ला सकती हैं, जो विनाशकारी होती हैं। कथन c गलत है क्योंकि GLOFs अत्यधिक विनाशकारी हो सकते हैं। कथन d गलत है क्योंकि GLOFs के साथ मलबा आने से भूस्खलन भी हो सकता है।
2. उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन के निम्नलिखित कारणों में से कौन सा जलवायु परिवर्तन से सीधे तौर पर संबंधित है?
a) सड़कों का निर्माण
b) पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना
c) वनों की कटाई
d) भूकंपीय गतिविधियाँ
उत्तर: (2) पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन से बढ़ते तापमान के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में पर्माफ्रॉस्ट (स्थायी रूप से जमी हुई मिट्टी) पिघल रहा है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है। अन्य कारण (सड़क निर्माण, वनों की कटाई) मानवीय गतिविधियों से संबंधित हैं, और भूकंपीय गतिविधियाँ भूगर्भीय प्रक्रियाएं हैं।
3. आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
a) NDMA आपदा प्रबंधन के लिए एक अम्ब्रेला निकाय के रूप में कार्य करता है।
b) NDMA आपदाओं की रोकथाम, शमन, तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए नीतियों, योजनाओं और दिशानिर्देशों का निर्माण करता है।
c) NDMA राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMA) को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
d) NDMA केवल राष्ट्रीय स्तर पर बचाव कार्यों का समन्वय करता है, राज्य स्तर पर नहीं।
सही कूट का चयन करें:
(1) a, b और c
(2) a, c और d
(3) b, c और d
(4) a, b, c और d
उत्तर: (1) a, b और c
व्याख्या: NDMA भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष वैधानिक और योजना बनाने वाली संस्था है। यह नीतियों का निर्माण करता है, और SDMA को सहायता भी प्रदान करता है। यह केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि राज्य और स्थानीय स्तर पर भी मार्गदर्शन और समन्वय में भूमिका निभाता है।
4. हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील क्यों हैं?
a) यहां ग्लेशियरों की उपस्थिति
b) तेजी से बढ़ती जनसंख्या
c) उच्च जैव विविधता
d) कम वर्षा की प्रवृत्ति
सही कूट का चयन करें:
(1) a और c
(2) a और b
(3) b और d
(4) केवल a
उत्तर: (2) a और b
व्याख्या: हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों का पिघलना, जो सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है, एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा, उच्च पर्वतीय क्षेत्रों की नाजुक पारिस्थितिकी और तेजी से बढ़ती जनसंख्या, जो विकास के दबाव बनाती है, उन्हें संवेदनशील बनाती है। (यहां विकल्प (b) को ‘तेजी से बढ़ती जनसंख्या’ के रूप में लिया गया है, हालांकि अधिक सटीक ‘विकास का बढ़ता दबाव’ हो सकता है। प्रश्न को वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक बनाने के लिए यह एक संभावित व्याख्या है।)
5. निम्नलिखित में से कौन सी “आपदा के बाद के पुनर्वास” (Post-disaster Rehabilitation) चरण की गतिविधि है?
a) प्रभावित लोगों के लिए प्रारंभिक चेतावनी जारी करना
b) मलबे को हटाना और जीवन बचाने के प्रयास
c) अस्थायी आश्रय और बुनियादी ढांचे का निर्माण
d) भूस्खलन के कारणों का वैज्ञानिक विश्लेषण
उत्तर: (3) अस्थायी आश्रय और बुनियादी ढांचे का निर्माण
व्याख्या: प्रारंभिक चेतावनी (a) तैयारी चरण में, बचाव (b) प्रतिक्रिया चरण में, और वैज्ञानिक विश्लेषण (d) किसी भी चरण में हो सकता है। पुनर्वास (c) वह चरण है जो तत्काल बचाव के बाद शुरू होता है, जिसमें लोगों को सामान्य जीवन में लौटने में मदद करने के लिए अस्थायी या स्थायी आश्रय और बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण शामिल है।
6. भूस्खलन के “ट्रिगर कारकों” (Trigger Factors) में निम्नलिखित में से क्या शामिल नहीं है?
a) भारी वर्षा
b) भूकंप
c) भूमि उपयोग परिवर्तन (जैसे निर्माण)
d) चट्टानों की उच्च घनत्व
उत्तर: (4) चट्टानों की उच्च घनत्व
व्याख्या: भूस्खलन के लिए ट्रिगर कारक वे हैं जो पहले से मौजूद अस्थिरता को बढ़ाते हैं। भारी वर्षा, भूकंप और भूमि उपयोग परिवर्तन (जैसे ढलान को काटना) अस्थिरता को बढ़ाते हैं। जबकि चट्टानों का घनत्व सामग्री की प्रकृति को प्रभावित करता है, उच्च घनत्व वाला होना अपने आप में ट्रिगर कारक नहीं है; बल्कि, यह सामग्री की ताकत पर निर्भर करता है।
7. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की निम्नलिखित में से कौन सी भूमिका है?
a) केवल आपदाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना
b) आपदा प्रतिक्रिया अभियानों में विशेषीकृत सहायता प्रदान करना
c) पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) करना
d) राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण करना
उत्तर: (2) आपदा प्रतिक्रिया अभियानों में विशेषीकृत सहायता प्रदान करना
व्याख्या: NDRF एक विशिष्ट बल है जो विभिन्न प्रकार की आपदाओं से निपटने के लिए विशेषीकृत प्रशिक्षण और उपकरणों से सुसज्जित है। इसका मुख्य कार्य बचाव और राहत कार्यों में प्रत्यक्ष रूप से शामिल होना है, न कि केवल वित्तीय सहायता देना, EIA करना या नीतियां बनाना (जो NDMA या अन्य मंत्रालयों का कार्य है)।
8. पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) के पिघलने का सीधा प्रभाव क्या होता है?
a) समुद्री स्तर में वृद्धि
b) भूस्खलन की संभावना में वृद्धि
c) बर्फ के तूफानों की आवृत्ति में कमी
d) ग्लेशियरों का निर्माण
उत्तर: (2) भूस्खलन की संभावना में वृद्धि
व्याख्या: पर्माफ्रॉस्ट, जो स्थायी रूप से जमी हुई जमीन है, ऊपर की मिट्टी को स्थिर रखती है। इसके पिघलने से जमीन अस्थिर हो जाती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है, खासकर पहाड़ी और टुंड्रा क्षेत्रों में।
9. “जलवायु परिवर्तन अनुकूलन” (Climate Change Adaptation) का क्या अर्थ है?
a) ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना।
b) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए समायोजन करना।
c) जलवायु परिवर्तन के कारणों को समाप्त करना।
d) नए जीवाश्म ईंधन स्रोतों की खोज करना।
उत्तर: (2) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए समायोजन करना।
व्याख्या: शमन (Mitigation) ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने से संबंधित है, जबकि अनुकूलन (Adaptation) जलवायु परिवर्तन के वर्तमान या अपेक्षित प्रभावों के प्रति प्रतिक्रिया करना है।
10. उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों के लिए, “अनियोजित विकास” (Unplanned Development) निम्नलिखित में से किस जोखिम को बढ़ा सकता है?
a) पर्यटन का अभाव
b) भूस्खलन और बाढ़
c) जल संसाधनों में वृद्धि
d) वन आवरण में वृद्धि
उत्तर: (2) भूस्खलन और बाढ़
व्याख्या: अनियोजित विकास, जैसे सड़कों का निर्माण, ढलानों को काटना, या इमारतों का अवैध निर्माण, प्राकृतिक ढलानों को अस्थिर कर सकता है और भूस्खलन और बाढ़ के जोखिम को काफी बढ़ा सकता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी क्षेत्रों में भूस्खलन और ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs) का खतरा बढ़ रहा है। इस कथन का विश्लेषण करें और भारत में ऐसी आपदाओं के प्रबंधन के लिए वर्तमान रणनीतियों और भविष्य की चुनौतियों पर चर्चा करें।”
(लगभग 250 शब्द)
2. “आपदा प्रबंधन एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्वास शामिल हैं। उत्तराखंड में हालिया त्रासदी के संदर्भ में, इन चारों चरणों के महत्व और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालें।”
(लगभग 250 शब्द)
3. “पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की आवश्यकता और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना एक जटिल चुनौती है। उत्तराखंड की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, इस संतुलन को प्राप्त करने के लिए आवश्यक नीतियों और दृष्टिकोणों की विवेचना करें।”
(लगभग 150 शब्द)
4. “ग्लोबल वार्मिंग के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में, भारत के हिमालयी क्षेत्र गंभीर जलवायु जोखिमों का सामना कर रहे हैं। इन जोखिमों में बाढ़, भूस्खलन और जल संकट शामिल हैं। इस संदर्भ में, भारत की जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Adaptation) रणनीतियों की चर्चा करें।”
(लगभग 150 शब्द)