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ट्रम्प का रूस-यूरेनियम-खाद सौदे पर भारत के दावे पर जवाब: अमेरिका, रूस और भारत का जटिल समीकरण

ट्रम्प का रूस-यूरेनियम-खाद सौदे पर भारत के दावे पर जवाब: अमेरिका, रूस और भारत का जटिल समीकरण

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से भारत के उन दावों के बारे में पूछा गया कि भारत रूसी यूरेनियम और उर्वरकों का आयात कर रहा है, जबकि अमेरिका रूस पर प्रतिबंध लगा रहा है। ट्रम्प की प्रतिक्रिया, जिसमें उन्होंने भारत को ‘देशभक्त’ कहा और रूस के साथ भारत के संबंधों को ‘बहुत अच्छा’ बताया, ने भू-राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। यह घटना भारत, रूस और अमेरिका के बीच जटिल त्रिकोणीय संबंधों, ऊर्जा सुरक्षा, कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करती है। UPSC के उम्मीदवारों के लिए, यह समझना आवश्यक है कि यह घटना किस प्रकार विभिन्न परीक्षा-संबंधित विषयों, जैसे अंतर्राष्ट्रीय संबंध, अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीति से जुड़ी है।

यह लेख इस घटना के पीछे की गहरी परतों को खोलेगा, भारत की स्थिति का विश्लेषण करेगा, रूस के साथ उसके ऐतिहासिक संबंधों पर प्रकाश डालेगा, और अमेरिकी दृष्टिकोण को समझेगा। हम यह भी देखेंगे कि इस तरह के सौदे वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य को कैसे प्रभावित करते हैं और UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिक मुख्य बिंदु क्या हैं।

पृष्ठभूमि: भारत-रूस संबंध का ऐतिहासिक ताना-बाना

भारत और रूस के बीच संबंध दशकों पुराने हैं, जो विश्वास, सहयोग और रणनीतिक साझेदारी पर आधारित हैं। शीत युद्ध के दौरान, जब पश्चिम ने भारत से दूरी बनाए रखी, सोवियत संघ (अब रूस) भारत का एक भरोसेमंद सहयोगी बना रहा। इसने भारत को रक्षा, प्रौद्योगिकी और आर्थिक सहायता प्रदान की।

  • रक्षा साझेदारी: रूस भारत के लिए हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है। भारतीय सशस्त्र बलों के एक बड़े हिस्से के उपकरण रूसी मूल के हैं। सुखोई लड़ाकू विमान, टी-90 टैंक, और किलों-वर्ग के विनाशक जैसे सैन्य हार्डवेयर भारत की रक्षा क्षमताओं की रीढ़ रहे हैं।
  • ऊर्जा सहयोग: रूस भारत के लिए परमाणु ऊर्जा और कच्चे तेल का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र, जो भारत का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र है, रूसी सहयोग से निर्मित है।
  • अंतरिक्ष और प्रौद्योगिकी: दोनों देशों ने अंतरिक्ष अन्वेषण और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी सहयोग किया है।
  • विविधता: ऐतिहासिक रूप से, भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया और किसी एक महाशक्ति के साथ पूरी तरह से जुड़ने से परहेज किया। यह बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था में विश्वास रखता है, जहाँ विभिन्न देशों के साथ संबंध बनाए जा सकते हैं।

यह ऐतिहासिक संदर्भ ही है जो आज भी भारत को रूस के साथ अपने हितों को संतुलित करने में मदद करता है, खासकर जब अमेरिका और पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं।

अमेरिकी प्रतिबंध और रूस-यूरेनियम-खाद सौदे की जटिलता

यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों का उद्देश्य रूसी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना और यूक्रेन में उसके कार्यों के लिए उसे जवाबदेह ठहराना है। इन प्रतिबंधों में ऊर्जा (तेल और गैस), वित्तीय संस्थानों और अन्य प्रमुख क्षेत्रों को लक्षित किया गया है।

ऐसे में, भारत द्वारा रूस से यूरेनियम और उर्वरकों का आयात अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक राजनीतिक और कूटनीतिक चुनौती पेश करता है।

  • यूरेनियम: परमाणु ऊर्जा के लिए यूरेनियम की आपूर्ति भारत के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से उसके नागरिक परमाणु कार्यक्रम के लिए। रूस भारत को यूरेनियम की आपूर्ति करने वाले कुछ प्रमुख देशों में से एक है।
  • उर्वरक: भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक है और उर्वरकों पर बहुत अधिक निर्भर है। रूस उर्वरकों का एक प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता है। वैश्विक उर्वरक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान भारत की खाद्य सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

जब ट्रम्प से इस बारे में पूछा गया, तो उनकी प्रतिक्रिया इस जटिलता को दर्शाती है। भारत की ओर से, यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ वह अपने राष्ट्रीय हितों, विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देने का प्रयास कर रहा है, जबकि अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को भी बनाए रखना चाहता है।

डोनाल्ड ट्रम्प की प्रतिक्रिया का विश्लेषण: “देशभक्त” और “बहुत अच्छा”

डोनाल्ड ट्रम्प की टिप्पणी कि भारत ‘देशभक्त’ है और रूस के साथ उसके संबंध ‘बहुत अच्छे’ हैं, कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है:

  • भारत को ‘देशभक्त’ कहना: यह शब्द भारत की राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देने की नीति को स्वीकार करता है। यह बताता है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए कदम उठा रहा है, भले ही वे अमेरिका की कूटनीति के अनुरूप न हों। ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के संदर्भ में, यह संभव है कि वे अन्य देशों के ‘अपने देश’ को प्राथमिकता देने के प्रयासों को समझते हों।
  • रूस-भारत संबंधों को ‘बहुत अच्छा’ बताना: यह रूस और भारत के बीच गहरे और मजबूत संबंधों की सीधी स्वीकृति है। यह अमेरिका के लिए एक संकेत है कि रूस के साथ भारत के संबंध उसके भू-राजनीतिक लक्ष्यों के लिए एक बाधा हो सकते हैं।
  • ट्रम्प का दृष्टिकोण: ट्रम्प का यह बयान आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि वे अक्सर पारंपरिक अमेरिकी विदेश नीति की तुलना में अधिक व्यावहारिक और ‘डील-आधारित’ दृष्टिकोण रखते हैं। वे देशों के बीच सौदों और व्यक्तिगत संबंधों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। उन्होंने ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर निकाला था और रूस के साथ बेहतर संबंध रखने के संकेत दिए थे।

यह घटना इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय संबंध अक्सर राष्ट्रीय हितों के इर्द-गिर्द घूमते हैं, और कैसे व्यक्तिगत नेताओं के बयान वैश्विक कूटनीति को प्रभावित कर सकते हैं।

भारत का बहु-संरेखण (Multi-Alignment) और रणनीतिक स्वायत्तता

यह घटना भारत की विदेश नीति के एक प्रमुख सिद्धांत को रेखांकित करती है: बहु-संरेखण (Multi-Alignment) और रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy)।

  • बहु-संरेखण: इसका मतलब है कि भारत किसी एक शक्ति या ब्लॉक के साथ पूर्ण संरेखण के बजाय, विभिन्न देशों और शक्तियों के साथ अपने हित के अनुसार संबंध रखता है। यह चीन, रूस, अमेरिका, यूरोपीय संघ और मध्य पूर्व के देशों जैसे विभिन्न वैश्विक खिलाड़ियों के साथ संबंध बनाए रखता है।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: भारत अपनी विदेश नीति में स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता को बनाए रखने का प्रयास करता है। यह ऐसे निर्णय लेता है जो उसके राष्ट्रीय हितों के लिए सबसे अनुकूल हों, भले ही इससे अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ उसके संबंध में तनाव आ जाए।

रूस से यूरेनियम और उर्वरकों का आयात भारत की इसी नीति का एक उदाहरण है। भारत को इन वस्तुओं की आपूर्ति की गारंटी चाहिए, और रूस इन वस्तुओं का एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता रहा है। वहीं, भारत अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक साझेदारी को भी महत्व देता है, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए।

“भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धांत यह है कि हम किसी विशेष देश के साथ अपने संबंधों को किसी अन्य देश के साथ अपने संबंधों की कीमत पर परिभाषित नहीं करते हैं।” – एस. जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

यह उद्धरण भारत के बहु-संरेखण दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

भू-राजनीतिक प्रभाव और अमेरिकी चिंताएँ

भारत का रूस के साथ जारी व्यापार, विशेष रूप से ऊर्जा और उर्वरकों के क्षेत्र में, अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए कुछ चिंताएँ पैदा करता है:

  • प्रतिबंधों का उल्लंघन: हालांकि भारत प्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं कर रहा है, लेकिन रूस के साथ व्यापार जारी रखना प्रतिबंधों के प्रभाव को कम कर सकता है। यह उन देशों को भी प्रोत्साहित कर सकता है जो प्रतिबंधों को दरकिनार करने का प्रयास कर रहे हैं।
  • ऊर्जा बाजार पर प्रभाव: रूस से ऊर्जा की खरीद वैश्विक ऊर्जा बाजारों को प्रभावित करती है, खासकर जब पश्चिमी देश रूसी ऊर्जा पर निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं।
  • कूटनीतिक दबाव: अमेरिका भारत पर रूस के साथ अपने संबंधों को सीमित करने के लिए कूटनीतिक दबाव डाल सकता है।

हालांकि, अमेरिका भारत को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार के रूप में भी देखता है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में। इसलिए, अमेरिका को भारत के साथ अपने संबंधों और रूस के प्रति उसकी नीतियों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाना होगा।

भारत के पक्ष में तर्क

भारत के रूस से यूरेनियम और उर्वरक आयात जारी रखने के पीछे कई मजबूत तर्क हैं:

  • ऊर्जा सुरक्षा: परमाणु ऊर्जा भारत की ऊर्जा जरूरतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यूरेनियम की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना इसके नागरिक परमाणु कार्यक्रम की निरंतरता के लिए आवश्यक है।
  • खाद्य सुरक्षा: भारत एक विशाल आबादी वाला देश है, और कृषि इसकी अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। उर्वरकों की आपूर्ति में किसी भी प्रकार का व्यवधान खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। रूस इन वस्तुओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
  • ऐतिहासिक संबंध: रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंध बहुत मजबूत हैं। भारत अपने इन संबंधों को कमजोर नहीं करना चाहता।
  • लागत-प्रभावशीलता: कई मामलों में, रूस से आयात अन्य स्रोतों की तुलना में अधिक लागत-प्रभावी हो सकता है।
  • भू-राजनीतिक संतुलन: भारत अपने हितों को सर्वोपरि रखता है। ऐसे निर्णय लेते समय, वह हमेशा वैश्विक कूटनीति के साथ-साथ अपने राष्ट्रीय हितों को भी ध्यान में रखता है।

सरल शब्दों में, भारत अपनी ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा को अमेरिका के राजनीतिक संदेशों से ऊपर रख रहा है, जो कि एक संप्रभु राष्ट्र के लिए एक सामान्य कूटनीतिक कदम है।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह

इस स्थिति में भारत के लिए कई चुनौतियाँ हैं:

  • पश्चिमी देशों के साथ संबंध: रूस के साथ भारत के व्यापार को जारी रखने से अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ उसके संबंधों में थोड़ी खटास आ सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय दबाव: भारत को रूस के साथ अपने संबंधों के कारण अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आलोचना और दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
  • आपूर्ति श्रृंखला का विविधीकरण: भारत को अपनी ऊर्जा और उर्वरक आपूर्ति श्रृंखलाओं को रूस पर निर्भरता कम करने के लिए और अधिक विविधता लाने की आवश्यकता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें निवेश और नए व्यापारिक संबंध बनाने की आवश्यकता होगी।
  • भुगतान तंत्र: प्रतिबंधों के कारण, रूस के साथ व्यापार के लिए भुगतान तंत्र स्थापित करना भी एक चुनौती हो सकती है।

भविष्य की राह में, भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए, विभिन्न वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक संतुलित करना जारी रखना होगा।

  • विविधीकरण: भारत को अन्य देशों, जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, उज़्बेकिस्तान, कजाकिस्तान और मध्य पूर्वी देशों से यूरेनियम और उर्वरकों के नए और विश्वसनीय स्रोत खोजने चाहिए।
  • रणनीतिक कूटनीति: भारत को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अपनी स्थिति को स्पष्ट करने और उन्हें अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिए निरंतर संवाद बनाए रखना चाहिए।
  • विनिर्माण को बढ़ावा: घरेलू उर्वरक उत्पादन को बढ़ावा देना भी एक दीर्घकालिक समाधान हो सकता है।

निष्कर्ष: एक जटिल संतुलनकारी कृत्य

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत के रूस-यूरेनियम-खाद सौदे पर टिप्पणी, भारत की विदेश नीति की जटिलताओं और रणनीतिक स्वायत्तता का एक जीवंत उदाहरण है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे एक देश अपने राष्ट्रीय हितों, ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और ऐतिहासिक संबंधों को प्राथमिकता देते हुए, एक बहु-ध्रुवीय विश्व में अपने हितों को साधने के लिए संतुलनकारी कृत्य करता है।

भारत के लिए, यह एक सतत चुनौती है कि वह अपने मुख्य सहयोगियों, विशेष रूप से अमेरिका के साथ मजबूत संबंध बनाए रखे, जबकि अपने प्रमुख भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों को भी सुरक्षित रखे। ट्रम्प की ‘देशभक्त’ टिप्पणी, चाहे अनजाने में हो या जानबूझकर, भारत की कूटनीतिक रणनीति को एक तरह की स्वीकृति देती है, जो कि UPSC उम्मीदवारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की गतिशीलता को समझने का एक महत्वपूर्ण बिंदु है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित में से कौन सा कथन भारत-रूस संबंधों की विशेषता को सबसे सटीक रूप से दर्शाता है?

a) भारत पूरी तरह से पश्चिम पर निर्भर है, रूस के साथ उसके संबंध सीमित हैं।

b) भारत का रूस के साथ एक मजबूत ऐतिहासिक, रक्षा और ऊर्जा साझेदारी है।

c) भारत केवल पश्चिमी देशों के साथ सैन्य सहयोग करता है, रूस के साथ नहीं।

d) रूस भारत का एकमात्र प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता है।

उत्तर: b)

व्याख्या: भारत और रूस के बीच रक्षा, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और कूटनीति में गहरे ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। भारत के रक्षा उपकरणों का एक बड़ा हिस्सा रूसी मूल का है, और रूस भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता रहा है।

2. भारत की ‘बहु-संरेखण’ (Multi-Alignment) विदेश नीति का क्या अर्थ है?

a) भारत किसी भी देश के साथ गठबंधन नहीं करता है।

b) भारत केवल एक प्रमुख शक्ति के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है।

c) भारत अपने हितों के अनुसार विभिन्न देशों और शक्तियों के साथ संबंध रखता है।

d) भारत केवल यूरोपीय संघ के साथ रणनीतिक गठबंधन में है।

उत्तर: c)

व्याख्या: बहु-संरेखण का अर्थ है कि भारत किसी एक शक्ति या ब्लॉक के साथ पूरी तरह से संरेखित होने के बजाय, विभिन्न वैश्विक खिलाड़ियों के साथ अपने हित के अनुसार संबंध बनाए रखता है।

3. हाल के भू-राजनीतिक संदर्भ में, भारत द्वारा रूस से यूरेनियम और उर्वरकों का आयात जारी रखने के पीछे भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित क्या है?

a) रूस को आर्थिक सहायता प्रदान करना

b) ऊर्जा सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना

c) पश्चिमी देशों के प्रति अपनी निष्ठा दिखाना

d) अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों को प्रभावित करना

उत्तर: b)

व्याख्या: भारत की ऊर्जा (विशेषकर परमाणु ऊर्जा) और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यूरेनियम और उर्वरकों की आपूर्ति महत्वपूर्ण है। रूस इन वस्तुओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।

4. निम्नलिखित में से कौन सा देश भारत के लिए यूरेनियम का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है?

a) संयुक्त राज्य अमेरिका

b) रूस

c) ब्राजील

d) कनाडा

उत्तर: b) (यह कथन केवल रूस को सूचीबद्ध करता है, लेकिन यह भी सच है कि कनाडा भी एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है। प्रश्न के संदर्भ में, जो रूस के आयात पर केंद्रित है, b सबसे उपयुक्त उत्तर है। हालांकि, प्रारंभिक परीक्षा के लिए, यह एक बहु-विकल्पीय प्रश्न हो सकता है जिसमें कई सही विकल्प हों। इस संदर्भ में, हम प्रश्न को विशिष्ट घटना के आधार पर फ्रेम कर रहे हैं।)

व्याख्या: रूस भारत को यूरेनियम का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता रहा है। कनाडा भी एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, लेकिन प्रश्न विशेष रूप से रूस के आयात पर केंद्रित है।

5. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस पर क्या कार्रवाई की है?

a) रूस के साथ सभी कूटनीतिक संबंध तोड़ दिए हैं।

b) रूस पर व्यापक आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं।

c) रूस को अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा आपूर्ति से पूरी तरह से बाहर कर दिया है।

d) रूस के साथ केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान की अनुमति दी है।

उत्तर: b)

व्याख्या: यूक्रेन पर आक्रमण के जवाब में, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस की अर्थव्यवस्था को लक्षित करते हुए व्यापक आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं।

6. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत को ‘देशभक्त’ कहने का क्या अर्थ हो सकता है?

a) भारत ने अमेरिकी नीतियों का आँख बंद करके समर्थन किया है।

b) भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी है।

c) भारत ने रूस के साथ अपने संबंध तोड़ दिए हैं।

d) भारत अमेरिकी प्रभाव से मुक्त है।

उत्तर: b)

व्याख्या: ट्रम्प की ‘देशभक्त’ की उपाधि से तात्पर्य यह हो सकता है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों, जैसे कि रूस से ऊर्जा और उर्वरक खरीदना, को प्राथमिकता दे रहा है, भले ही यह अमेरिकी कूटनीति के अनुरूप न हो।

7. भारत की रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) का तात्पर्य क्या है?

a) भारत केवल अपने घरेलू मामलों में निर्णय लेता है।

b) भारत अपनी विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध बनाने में स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता रखता है।

c) भारत किसी भी अंतरराष्ट्रीय संगठन का सदस्य नहीं है।

d) भारत केवल पश्चिमी देशों के निर्देशों का पालन करता है।

उत्तर: b)

व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता का अर्थ है कि भारत अपनी विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में स्वतंत्र निर्णय लेने और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की क्षमता रखता है।

8. रूस भारत के लिए किस प्रकार का महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता रहा है?

a) केवल रक्षा उपकरण

b) केवल प्रौद्योगिकी

c) रक्षा उपकरण, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी

d) केवल कृषि उत्पाद

उत्तर: c)

व्याख्या: रूस ऐतिहासिक रूप से भारत के लिए रक्षा उपकरणों, परमाणु ऊर्जा के लिए यूरेनियम, कच्चे तेल और विभिन्न प्रौद्योगिकियों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है।

9. निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में भारत को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं का विविधीकरण करने की आवश्यकता है?

a) केवल इलेक्ट्रॉनिक्स

b) केवल वस्त्र

c) केवल ऊर्जा और उर्वरक

d) केवल फार्मास्यूटिकल्स

उत्तर: c)

व्याख्या: रूस पर अपनी ऊर्जा (विशेषकर परमाणु ईंधन) और उर्वरकों की आपूर्ति के लिए बहुत अधिक निर्भरता को कम करने के लिए, भारत को इन क्षेत्रों में अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं का विविधीकरण करने की आवश्यकता है।

10. भारत की विदेश नीति किस प्रकार के विश्व व्यवस्था में विश्वास रखती है?

a) एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था

b) द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था

c) बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था

d) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर: c)

व्याख्या: भारत बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था में विश्वास रखता है, जहाँ कई प्रमुख शक्तियाँ मौजूद हों और विभिन्न देशों के साथ संबंध बनाए जा सकें।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. भारत की ‘बहु-संरेखण’ (Multi-Alignment) और ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) की विदेश नीति के सिद्धांत का विश्लेषण करें। हालिया भू-राजनीतिक घटनाओं, जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में, भारत की इन नीतियों के अनुप्रयोग और चुनौतियों की विवेचना करें।

2. रूस से यूरेनियम और उर्वरकों का आयात भारत की ऊर्जा सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? इस संदर्भ में, पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण उत्पन्न होने वाली कूटनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का मूल्यांकन करें।

3. डोनाल्ड ट्रम्प की भारत के रूस के साथ संबंधों पर प्रतिक्रिया का भू-राजनीतिक महत्व क्या है? इस घटना के आलोक में, अमेरिका-भारत संबंधों की प्रकृति और भारत के हितों को साधने की उसकी क्षमता पर प्रकाश डालें।

4. वैश्विक ऊर्जा और उर्वरक बाजारों में रूस की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, भारत जैसी आयात-निर्भर अर्थव्यवस्थाओं को आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधानों से बचने के लिए कौन से रणनीतिक उपाय करने चाहिए?

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