उत्तरकाशी आपदा: 1750 की भागीरथी तबाही से सीख – भूस्खलन, झीलें और हमारा भविष्य
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में उत्तरकाशी क्षेत्र में हुई आपदाओं ने एक बार फिर हिमालयी क्षेत्र की नाजुकता और भूगर्भीय खतरों को उजागर किया है। यह घटना हमें इतिहास के पन्नों में दर्ज एक ऐसी ही भयावह त्रासदी की याद दिलाती है, जब 1750 में भागीरथी नदी में आए भूस्खलन ने न केवल तीन गांवों को निगल लिया, बल्कि एक विशाल झील का निर्माण भी कर दिया। यह ऐतिहासिक घटनाक्रम वर्तमान आपदाओं के संदर्भ में महत्वपूर्ण सबक प्रदान करता है, खासकर UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, जिन्हें भू-विज्ञान, आपदा प्रबंधन, पर्यावरण और समसामयिक मुद्दों पर अपनी समझ को गहरा करना होता है।
पृष्ठभूमि: 1750 की भागीरथी की ‘महा-जलप्रलय’ (Background: The 1750 ‘Great Deluge’ of Bhagirathi)
कल्पना कीजिए, 18वीं सदी का भारत। पहाड़ी जीवन की अपनी गति थी, लेकिन प्रकृति का प्रकोप किसी को नहीं बख्शता। वर्ष 1750, भागीरथी नदी घाटी का वह काला अध्याय जब एक विशाल भूस्खलन ने सब कुछ बदल दिया। इतिहास के झरोखों से झांकने पर पता चलता है कि:
- विनाशकारी भूस्खलन: एक बड़े पैमाने पर पहाड़ी का गिरना। यह घटना इतनी भीषण थी कि इसने भागीरथी नदी के प्राकृतिक प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया।
- तीन गांवों का समा जाना: नदी के रास्ते में आने वाले तीन बसे-बसाए गांव भूस्खलन के मलबे के नीचे दब गए, जिससे अनगिनत जानें गईं और उस क्षेत्र का पूरा परिदृश्य ही बदल गया।
- 14 किमी लंबी झील का निर्माण: नदी के अवरुद्ध होने से जल का जमाव शुरू हो गया, जिसने धीरे-धीरे एक विशाल झील का रूप ले लिया, जिसकी लंबाई लगभग 14 किलोमीटर बताई जाती है। यह ‘भू-निर्मित झील’ (GDM – Glacial Lake or Dammed Lake) कुछ समय तक एक भयानक परिदृश्य प्रस्तुत करती रही।
यह घटना उस समय के लिए एक अभूतपूर्व त्रासदी थी, जिसने लोगों को प्रकृति की शक्ति के प्रति एहसास कराया। हालांकि उस समय आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों का अभाव था, फिर भी मौखिक इतिहास और कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों ने इस घटना को जीवित रखा है।
वर्तमान आपदाएं और 1750 की घटना का संबंध (Current Disasters and the Connection to 1750 Event)
आज जब हम उत्तरकाशी और अन्य हिमालयी क्षेत्रों में लगातार भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी आपदाओं का सामना कर रहे हैं, तो 1750 की घटना हमें कई महत्वपूर्ण संकेत देती है:
- हिमालय की भू-गतिशीलता: हिमालय एक युवा पर्वत श्रृंखला है, जो अभी भी भूगर्भीय रूप से बहुत सक्रिय है। टेक्टोनिक प्लेटों की निरंतर गति, क्षरण और मौसम का प्रभाव इसे भूस्खलन और भूकंप के प्रति संवेदनशील बनाता है।
- मानवीय गतिविधियां: अनियोजित निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, वनों की कटाई और अत्यधिक पर्यटन जैसी मानवीय गतिविधियां अक्सर इन भूगर्भीय प्रक्रियाओं को तेज करती हैं। ये गतिविधियां ढलानों को अस्थिर करती हैं, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन हिमालयी क्षेत्र में विशेष रूप से तीव्र है। तापमान में वृद्धि से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे हिम झीलें (GLOFs – Glacial Lake Outburst Floods) बनने का खतरा बढ़ रहा है। साथ ही, चरम मौसमी घटनाओं (जैसे भारी वर्षा) की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि भी भूस्खलन और बाढ़ को बढ़ा रही है।
1750 की घटना एक प्राकृतिक घटना थी, लेकिन आज हम जिन आपदाओं का सामना कर रहे हैं, उनमें प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मानवीय हस्तक्षेप भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
भूस्खलन और हिमनद झीलें: एक विस्तृत विश्लेषण (Landslides and Glacial Lakes: A Detailed Analysis)
UPSC की तैयारी के लिए इन दोनों भूगर्भीय घटनाओं को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भूस्खलन (Landslides)
भूस्खलन, जिसे ‘पहाड़ी दरार’ या ‘लैंडस्लिप’ के नाम से भी जाना जाता है, गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में चट्टान, मिट्टी या मलबे के ढलान से नीचे की ओर खिसकने की प्रक्रिया है।
भूस्खलन के कारण (Causes of Landslides):
- प्राकृतिक कारण:
- भारी वर्षा: मिट्टी में पानी का रिसाव, वजन बढ़ाता है और कणों के बीच बंधन को कमजोर करता है।
- भूकंप: कंपन से अस्थिर ढलानें ढह सकती हैं।
- ज्वालामुखी विस्फोट: लावा और राख भूस्खलन को ट्रिगर कर सकते हैं।
- नदी या समुद्र का कटाव: ढलान के आधार को कमजोर करता है।
- हिमपात का पिघलना: तेजी से पिघलने वाला पानी मिट्टी को संतृप्त कर सकता है।
- मानवीय कारण:
- वनों की कटाई: पेड़ की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं।
- अनियोजित निर्माण: सड़कों, इमारतों और अन्य संरचनाओं के लिए ढलानों में कटाई।
- कृषि पद्धतियां: सीढ़ीदार खेतों का अनुचित निर्माण।
- पानी का जमाव: सिंचाई या अन्य उद्देश्यों के लिए पानी का अनियंत्रित जमाव।
भूस्खलन के प्रकार (Types of Landslides):
- रॉक फॉल (Rock Fall): चट्टानों का स्वतंत्र रूप से गिरना।
- स्लंप (Slump): मिट्टी या चट्टान का एक बड़े पैमाने पर, धीमी गति से नीचे की ओर खिसकना, जिसमें एक अवतल सतह (concave surface) बनती है।
- टू-फ्लो (Debris Flow/Mudflow): पानी के साथ मिश्रित मिट्टी, कीचड़ और मलबे का तेजी से बहना। 1750 की घटना में संभवतः यह एक बड़ा तत्व था।
- स्लाइड (Slide): चट्टान या मिट्टी का एक पूर्व-निर्धारित सतह पर नीचे की ओर खिसकना।
भूस्खलन के प्रभाव (Impacts of Landslides):
- जनहानि और संपत्ति की हानि।
- सड़कों और बुनियादी ढांचे का विनाश।
- बाढ़ और मलबे के प्रवाह के कारण जलमार्गों का अवरोध।
- पर्यावरणीय क्षति, जैसे वनों का नष्ट होना।
- विस्थापन और आर्थिक नुकसान।
हिमनद झीलें (Glacial Lakes)
हिमनद झीलें वे झीलें होती हैं जो हिमनदों (glaciers) के पिघलने से बनती हैं। ये अक्सर ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों या हिमनदों के अग्रभाग (terminus) के पास पाई जाती हैं।
हिमनद झीलों के प्रकार (Types of Glacial Lakes):
- आउटवॉश झीलें (Outwash Lakes): हिमनदों से निकलने वाले मलबे (outwash) द्वारा अवरुद्ध होने से बनती हैं।
- मोरैनी झीलें (Moraine-dammed Lakes): हिमनदों द्वारा जमा की गई बजरी और मिट्टी (moraines) द्वारा अवरुद्ध होने से बनती हैं। 1750 की भागीरथी घटना में संभवतः नदी के मलबे ने एक अस्थायी बांध बनाया, जिससे झील बनी, जो एक प्रकार की moraine-dammed lake (या debris-dammed lake) का उदाहरण हो सकती है।
- हिमनद-आधारित झीलें (Ice-contact Lakes): पिघलते हुए हिमनद के संपर्क में बनने वाली झीलें।
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs)
यह वह घटना है जब हिमनद झील का बांध (जो अक्सर बर्फ, चट्टान या तलछट का होता है) अचानक टूट जाता है, जिससे झील का सारा पानी अचानक बाहर निकल जाता है। यह एक विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है।
- GLOFs के कारण:
- बांध का क्षरण: प्राकृतिक कटाव से बांध कमजोर हो सकता है।
- भूस्खलन: झील के पास भूस्खलन बांध को बाधित कर सकता है।
- भूकंप: कंपन बांध को तोड़ सकता है।
- बर्फ का पिघलना: झील के ऊपर बर्फ का दबाव या पिघलना।
- ओवर-टॉपिंग: झील का जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर चला जाना।
- GLOFs के प्रभाव:
- नीचे की ओर शहरों और गांवों का विनाश।
- पुलों, सड़कों और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान।
- जलमार्गों में गाद और मलबा जमा होना।
- जैव विविधता का नुकसान।
“हिमालय की सक्रिय भू-रचना, अनियोजित विकास और जलवायु परिवर्तन का बढ़ता प्रभाव, इन नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों को निरंतर खतरे में डालता है। 1750 की उत्तरकाशी की घटना हमें एक गंभीर चेतावनी देती है।”
आपदा प्रबंधन: हिमालयी संदर्भ (Disaster Management: The Himalayan Context)
हिमालयी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है। 1750 की घटना और वर्तमान आपदाओं के आलोक में, एक प्रभावी आपदा प्रबंधन रणनीति में निम्नलिखित तत्व शामिल होने चाहिए:
1. जोखिम मूल्यांकन और निगरानी (Risk Assessment and Monitoring)
- भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण: संभावित भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की पहचान करना।
- ग्लेशियर निगरानी: हिमनदों के पिघलने की दर और हिमनद झीलों के विस्तार की निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी और ड्रोन का उपयोग।
- भूकंपीय निगरानी: भूकंपीय गतिविधियों पर नज़र रखना।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS): भूस्खलन और GLOFs के लिए प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना।
2. शमन और रोकथाम (Mitigation and Prevention)
- टिकाऊ भूमि उपयोग योजना: निर्माण और विकास के लिए सुरक्षित क्षेत्रों की पहचान करना और संवेदनशील क्षेत्रों में विकास को प्रतिबंधित करना।
- वनरोपण और पुनर्वनीकरण: ढलानों को स्थिर करने और कटाव को रोकने के लिए।
- इंजीनियरिंग उपाय: भूस्खलन रोकने के लिए रिटेनिंग वॉल (retaining walls), ढलान स्थिरीकरण (slope stabilization) और जल निकासी नियंत्रण (drainage control) जैसी संरचनाओं का निर्माण।
- पर्यावरणीय नियमों का सख्त प्रवर्तन: वनों की कटाई और अनियोजित निर्माण पर अंकुश लगाना।
3. तैयारी और प्रतिक्रिया (Preparedness and Response)
- सामुदायिक जागरूकता और प्रशिक्षण: स्थानीय समुदायों को खतरों और आपातकालीन प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करना।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना: स्पष्ट भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के साथ एक विस्तृत प्रतिक्रिया योजना बनाना।
- बचाव और राहत दल: प्रशिक्षित बचाव और राहत टीमों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- लॉजिस्टिक्स और संसाधन: आपातकालीन आपूर्ति, आश्रय और चिकित्सा सहायता की व्यवस्था।
4. पुनर्वास और पुनरुद्धार (Rehabilitation and Recovery)
- स्थायी पुनर्वास: प्रभावित समुदायों के लिए सुरक्षित स्थानों पर आवास और आजीविका की व्यवस्था करना।
- बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण: महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का सुरक्षित और टिकाऊ तरीके से पुनर्निर्माण।
- मनोवैज्ञानिक सहायता: आपदा पीड़ितों को भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना।
UPSC के लिए प्रासंगिकता: क्यों महत्वपूर्ण है यह विषय? (Relevance for UPSC: Why is this Topic Important?)
यह विषय UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है:
- प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
- भूगोल: भू-आकृति विज्ञान (geomorphology), भूकंप, भूस्खलन, हिमनद।
- पर्यावरण: जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी तंत्र, आपदा प्रबंधन।
- समसामयिक मामले: हाल की आपदाएं, सरकारी नीतियां।
- मुख्य परीक्षा (Mains):
- GS-I (भूगोल): भूकंपीय और भू-आकृति विज्ञान की व्याख्या, प्राकृतिक आपदाओं का वितरण।
- GS-III (पर्यावरण): पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, आपदा प्रबंधन।
- GS-II (शासन): सरकारी नीतियों और योजनाओं का प्रबंधन, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका।
- निबंध (Essay): आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, सतत विकास।
1750 की घटना हमें यह समझने में मदद करती है कि भले ही आज तकनीक उन्नत हो गई हो, लेकिन प्रकृति के मूलभूत नियम वही हैं। हिमालयी क्षेत्र की नाजुकता को देखते हुए, एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण के साथ आपदा प्रबंधन की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।
चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and The Way Forward)
हिमालयी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की राह में कई चुनौतियाँ हैं:
- भौगोलिक दुर्गमता: दूरस्थ और दुर्गम इलाके बचाव कार्यों और निगरानी को कठिन बनाते हैं।
- सीमित संसाधन: पर्याप्त धन, प्रशिक्षित जनशक्ति और आधुनिक तकनीक का अभाव।
- मानवीय हस्तक्षेप: अनियोजित विकास और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन।
- जागरूकता की कमी: स्थानीय समुदायों में जोखिमों और सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता का अभाव।
- अंतर-विभागीय समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों और एजेंसियों के बीच प्रभावी समन्वय की कमी।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग: नवीनतम तकनीक जैसे रिमोट सेंसिंग, GIS, AI और मशीन लर्निंग का उपयोग करके जोखिमों का बेहतर मूल्यांकन और भविष्यवाणी करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: समान चुनौतियों का सामना कर रहे अन्य देशों के साथ ज्ञान, अनुभव और प्रौद्योगिकी साझा करना।
- ‘बिल्डिंग बैक बेटर’ (Building Back Better) सिद्धांत: आपदा के बाद पुनर्निर्माण करते समय, पिछली गलतियों से सीखते हुए अधिक लचीला और टिकाऊ ढांचा तैयार करना।
- नीति निर्माण में स्थानीय भागीदारी: ऐसी नीतियों का निर्माण करना जो स्थानीय समुदायों की आवश्यकताओं और ज्ञान को ध्यान में रखें।
- पर्यावरण-अनुकूल विकास: ऐसे विकास मॉडल अपनाना जो पर्यावरण की रक्षा करें और भविष्य की आपदाओं के जोखिम को कम करें।
1750 की भागीरथी की तबाही हमें यह सिखाती है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर चलना ही एकमात्र रास्ता है। यह हमें अतीत से सीखने, वर्तमान की चुनौतियों का सामना करने और भविष्य के लिए तैयार रहने का आह्वान करती है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इस विषय की गहरी समझ न केवल परीक्षा में सफलता के लिए, बल्कि भविष्य में जिम्मेदार नागरिक और प्रशासक बनने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा कारक भूस्खलन के लिए जिम्मेदार प्राकृतिक कारणों में से एक नहीं है?
(a) भारी वर्षा
(b) भूकंप
(c) वनों की कटाई
(d) नदी का कटाव
उत्तर: (c)
व्याख्या: वनों की कटाई भूस्खलन का एक मानवीय कारण है, प्राकृतिक नहीं। - प्रश्न: 1750 में भागीरथी नदी में हुई आपदा का मुख्य कारण क्या था?
(a) अचानक बाढ़
(b) एक बड़ा भूस्खलन
(c) हिमनद का फटना
(d) हिमस्खलन
उत्तर: (b)
व्याख्या: ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, एक बड़े भूस्खलन ने नदी के प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया था। - प्रश्न: GLOF का पूर्ण रूप क्या है?
(a) Glacier Lake Origin Flood
(b) Glacial Lake Outburst Flood
(c) Ground Level Outfall Flood
(d) Global Landslide Observation Forum
उत्तर: (b)
व्याख्या: GLOF का मतलब Glacial Lake Outburst Flood है, जो हिमनद झील के अचानक फटने से होने वाली बाढ़ है। - प्रश्न: हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाने वाला मानवीय कारक कौन सा है?
(a) तीव्र पवन गति
(b) अनियोजित शहरीकरण
(c) ज्वालामुखी गतिविधि
(d) सूर्य की तीव्र किरणें
उत्तर: (b)
व्याख्या: अनियोजित शहरीकरण और निर्माण अक्सर ढलानों को अस्थिर कर देते हैं, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। - प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा भूस्खलन के प्रकार का उदाहरण है?
(a) सुनामी
(b) चक्रवात
(c) रॉक फॉल
(d) तूफान
उत्तर: (c)
व्याख्या: रॉक फॉल (चट्टानों का गिरना) भूस्खलन का एक प्रकार है। - प्रश्न: ‘हिमनद झील’ (Glacial Lake) शब्द किससे संबंधित है?
(a) समुद्र के नीचे बनने वाली झीलें
(b) रेगिस्तानी क्षेत्रों में जलभराव
(c) हिमनदों के पिघलने से बनने वाली झीलें
(d) ज्वालामुखी विस्फोट से बनने वाले क्रेटर झीलें
उत्तर: (c)
व्याख्या: हिमनद झीलें हिमनदों के पिघलने से बनती हैं। - प्रश्न: हिमालयी भू-भाग की मुख्य विशेषता क्या है?
(a) भूगर्भीय रूप से स्थिर
(b) भूगर्भीय रूप से बहुत सक्रिय
(c) ज्वालामुखी रूप से निष्क्रिय
(d) बहुत कम वर्षा वाला क्षेत्र
उत्तर: (b)
व्याख्या: हिमालय एक युवा और टेक्टोनिक रूप से सक्रिय पर्वत श्रृंखला है। - प्रश्न: भूस्खलन के शमन (mitigation) के लिए निम्नलिखित में से कौन सा उपाय सबसे प्रभावी हो सकता है?
(a) अधिक पेड़ काटना
(b) ढलानों पर निर्माण को प्रोत्साहित करना
(c) ढलान स्थिरीकरण तकनीकों का उपयोग
(d) सड़कों को और चौड़ा करना
उत्तर: (c)
व्याख्या: ढलान स्थिरीकरण तकनीकें भूस्खलन के जोखिम को कम करने में मदद करती हैं। - प्रश्न: 1750 में भागीरथी नदी में भूस्खलन के कारण बनी झील की अनुमानित लंबाई कितनी थी?
(a) 5 किमी
(b) 10 किमी
(c) 14 किमी
(d) 20 किमी
उत्तर: (c)
व्याख्या: ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, झील लगभग 14 किलोमीटर लंबी थी। - प्रश्न: जलवायु परिवर्तन का हिमालयी झीलों पर क्या प्रभाव पड़ने की संभावना है?
(a) झीलों का सिकुड़ना
(b) GLOFs (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) का खतरा बढ़ना
(c) जल का स्तर कम होना
(d) झीलें पूरी तरह से जम जाना
उत्तर: (b)
व्याख्या: तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं, जिससे बड़ी और अस्थिर झीलें बनती हैं, जो GLOFs का खतरा बढ़ाती हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: 1750 में भागीरथी नदी में हुई आपदा का विश्लेषण करते हुए, हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन और हिमनद झीलों (Glacial Lakes) से उत्पन्न होने वाले खतरों की व्याख्या करें। आधुनिक आपदा प्रबंधन रणनीतियों के संदर्भ में, ऐसे खतरों को कम करने के लिए वर्तमान में अपनाई जा रही शमन (mitigation) और निवारण (prevention) तकनीकों का समालोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: जलवायु परिवर्तन, अनियोजित विकास और भू-वैज्ञानिक सक्रियता के अंतर्संबंध को स्पष्ट करते हुए, हिमालयी क्षेत्र को “आपदा-प्रवण क्षेत्र” क्यों माना जाता है? ऐसे क्षेत्रों में प्रभावी आपदा प्रबंधन के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण के महत्व पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOFs) क्या हैं और ये भारत में, विशेषकर हिमालयी राज्यों में, किस प्रकार की चुनौतियों पेश करते हैं? GLOFs से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों (Early Warning Systems) की भूमिका और उनकी प्रभावशीलता का परीक्षण करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: “प्राकृतिक आपदाएं केवल प्रकृति का प्रकोप नहीं हैं, बल्कि अक्सर मानवीय निर्णयों का परिणाम होती हैं।” इस कथन के आलोक में, 1750 की उत्तरकाशी आपदा और हाल की हिमालयी आपदाओं का उदाहरण देते हुए, सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों को आपदा प्रबंधन में एकीकृत करने की आवश्यकता पर चर्चा करें। (150 शब्द, 10 अंक)