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20 सेकंड का प्रलय: उत्तरकाशी में खीरगंगा का कहर, हिमालयी आपदाओं पर गंभीर सवाल!

20 सेकंड का प्रलय: उत्तरकाशी में खीरगंगा का कहर, हिमालयी आपदाओं पर गंभीर सवाल!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में खीरगंगा नदी में आए अचानक उफान ने तबाही का ऐसा मंजर पेश किया, जिसने 20 सेकंड के भीतर एक संपन्न बाजार, होटल, घरों और यहाँ तक कि ऐतिहासिक कल्प केदार मंदिर को भी अपने आगोश में ले लिया। यह भयावह घटना न केवल स्थानीय लोगों के लिए एक दुःस्वप्न बन गई, बल्कि इसने एक बार फिर हिमालयी क्षेत्र की भेद्यता और अनियंत्रित विकास के खतरों पर प्रकाश डाला है। यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए आपदा प्रबंधन, पर्यावरण, भूगोल और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का एक गहन अवसर प्रदान करती है।

उत्तराखंड: एक नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र (Uttarakhand: A Fragile Ecosystem)

उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ के नाम से जाना जाता है, अपनी आश्चर्यजनक प्राकृतिक सुंदरता और ऊँचे हिमालयी शिखरों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन इसी सुंदरता के पीछे एक गंभीर सच्चाई छिपी है: यह क्षेत्र भूवैज्ञानिक रूप से अत्यधिक अस्थिर है। हिमालय अभी भी बन रहा है, और टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल, तीव्र ढलान, घने जंगल और अप्रत्याशित मौसमी पैटर्न इसे प्राकृतिक आपदाओं, विशेष रूप से बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ के प्रति अतिसंवेदनशील बनाते हैं।

खीरगंगा जैसी नदियाँ, जो अक्सर शांत और मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती हैं, अचानक भारी वर्षा या ग्लेशियरों के पिघलने से उग्र हो सकती हैं। इस बार, उत्तरकाशी में जो हुआ, वह इसी नाजुक संतुलन का एक क्रूर अनुस्मारक था।

खीरगंगा की तबाही: क्या हुआ और कैसे? (The Havoc of Kheerganga: What Happened and How?)

उत्तरकाशी के पास, मनेरी भाली बांध के ऊपरी क्षेत्र में, अचानक और अत्यधिक वर्षा ने खीरगंगा नदी में भारी मात्रा में पानी भर दिया। यह कोई सामान्य बारिश नहीं थी; यह एक ‘बादल फटना’ (Cloudburst) था – एक ऐसी घटना जहाँ कम समय में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है।

बादल फटना क्या है?
बादल फटना एक स्थानीयकृत, अल्पकालिक और तीव्र वर्षा की घटना है। इसमें प्रति घंटे 100 मिमी (या 10 सेमी) से अधिक वर्षा हो सकती है। यह आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में होता है जहाँ हवा के अचानक ऊपर उठने (orographic lift) से बादल बनते हैं और जल्दी से संतृप्त हो जाते हैं। जब संतृप्ति बिंदु पार हो जाता है, तो भारी मात्रा में पानी एक साथ गिरता है, जिससे अचानक बाढ़ और विनाश होता है।

घटना का क्रम:
* अचानक उफान: बादल फटने के कारण खीरगंगा में पानी का स्तर अत्यंत तेजी से बढ़ा।
* 20 सेकंड में विनाश: प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, नदी ने मात्र 20 सेकंड में अपने किनारों को तोड़ दिया।
* बाजार तबाह: नदी के रास्ते में आने वाला स्थानीय बाजार पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। दुकानें, उनमें रखा सामान, सब कुछ बह गया।
* होटल और घर जमींदोज: नदी के किनारे बने होटल और स्थानीय लोगों के घर भी इस जल प्रलय की भेंट चढ़ गए। कई इमारतें ताश के पत्तों की तरह ढह गईं।
* ऐतिहासिक कल्प केदार मंदिर बहा: क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल, कल्प केदार मंदिर, भी नदी के बहाव में बह गया, जो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्षति का प्रतीक है।

इस घटना ने मानव निर्मित संरचनाओं की कमजोरी और प्रकृति की अदम्य शक्ति को उजागर किया।

आपदा के पीछे के कारण: एक बहुआयामी विश्लेषण (Causes Behind the Disaster: A Multidimensional Analysis)

उत्तरकाशी में हुई यह तबाही केवल एक आकस्मिक बादल फटना नहीं थी, बल्कि इसके पीछे कई जटिल कारक जिम्मेदार हो सकते हैं:

  1. जलवायु परिवर्तन (Climate Change):

    बढ़ता वैश्विक तापमान हिमालयी ग्लेशियरों को पिघला रहा है और मौसम के पैटर्न को बदल रहा है। इससे अत्यधिक वर्षा की घटनाओं (बादल फटना) और अचानक बाढ़ की आवृत्ति बढ़ रही है। मौसम का अप्रत्याशित व्यवहार, जैसे कि एक स्थान पर लंबे समय तक बारिश का रुकना और फिर अचानक भारी मात्रा में गिरना, जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष परिणाम हो सकता है।

    “जलवायु परिवर्तन केवल भविष्य का खतरा नहीं है, बल्कि यह हमारे सामने एक वर्तमान वास्तविकता है, जो उत्तराखंड जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अपनी विनाशकारी उपस्थिति दर्ज करा रही है।”

  2. अनियंत्रित निर्माण और वनों की कटाई (Uncontrolled Construction and Deforestation):

    पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए, हिमालयी क्षेत्रों में अक्सर नदियों के किनारे या संवेदनशील ढलानों पर अनियोजित निर्माण किया जाता है। ऐसी इमारतों को नदी के बढ़ते जल स्तर या भूस्खलन के प्रभाव को झेलने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया होता। इसके अलावा, वनों की कटाई मिट्टी को बांधे रखने वाली जड़ों को कमजोर करती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। जब भारी बारिश होती है, तो कंक्रीट के जंगल और वीरान ढलान मिलकर तबाही को न्यौता देते हैं।

  3. भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता (Geological Vulnerability):

    जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, हिमालयी क्षेत्र अपनी युवा उम्र के कारण स्वाभाविक रूप से अस्थिर है। फॉल्ट लाइनें (fault lines), तीव्र ढलानें और भूकंपीय गतिविधियाँ यहाँ आम हैं। यह क्षेत्र ‘हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट’ (HFT) जैसे प्रमुख भूवैज्ञानिक दोषों के करीब स्थित है, जो इसे भूकंप और भूस्खलन के प्रति संवेदनशील बनाता है।

  4. अपर्याप्त पूर्व-चेतावनी प्रणाली (Inadequate Early Warning Systems):

    हालांकि भारत ने आपदा पूर्व-चेतावनी प्रणालियों में सुधार किया है, लेकिन ऐसे दूरस्थ और पहाड़ी इलाकों में जहां बादल फटने की घटनाएँ हो सकती हैं, प्रभावी और तत्काल चेतावनी प्रणाली की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। यदि समय पर सटीक चेतावनी मिल जाती, तो शायद हताहतों की संख्या और संपत्ति का नुकसान कम किया जा सकता था।

  5. नदी के किनारों का अतिक्रमण (Encroachment of River Banks):

    आर्थिक गतिविधियों और आवास की बढ़ती मांग के कारण, लोग अक्सर नदियों के प्राकृतिक बाढ़ क्षेत्रों (flood plains) में निर्माण करते हैं। जब नदियाँ अपने प्राकृतिक मार्ग पर फैलती हैं, तो ये अतिक्रमित क्षेत्र सबसे पहले प्रभावित होते हैं।

आपदा के परिणाम और प्रभाव (Consequences and Impacts of the Disaster)

खीरगंगा की यह तबाही केवल भौतिक क्षति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव हैं:

1. मानव जीवन की क्षति और विस्थापन (Loss of Human Life and Displacement):

हालांकि इस विशिष्ट घटना में हताहतों की संख्या की पुष्टि अभी भी की जा रही है, लेकिन इस तरह की आपदाओं में अक्सर जान-माल का भारी नुकसान होता है। जो लोग बच जाते हैं, उन्हें अपना घर और आजीविका छिन जाने के कारण विस्थापित होना पड़ता है। यह एक गंभीर मानवीय संकट पैदा करता है।

2. आर्थिक प्रभाव (Economic Impact):

  • पर्यटन और आजीविका का नुकसान: उत्तरकाशी जैसे क्षेत्र पर्यटन पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। इस घटना से पर्यटन आधारभूत संरचना (होटल, सड़कें) नष्ट हो गई है, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका पर सीधा असर पड़ा है।
  • पुनर्निर्माण की लागत: क्षतिग्रस्त इमारतों, सड़कों और पुलों के पुनर्निर्माण के लिए भारी वित्तीय निवेश की आवश्यकता होगी, जो राज्य के संसाधनों पर बोझ डालेगा।
  • कृषि पर प्रभाव: यदि आसपास की कृषि भूमि बाढ़ या भूस्खलन से प्रभावित हुई है, तो इसका दीर्घकालिक कृषि उत्पादन पर भी असर पड़ेगा।

3. सांस्कृतिक और धार्मिक क्षति (Cultural and Religious Damage):

कल्प केदार मंदिर का बह जाना एक बड़ी सांस्कृतिक और धार्मिक क्षति है। ऐसे मंदिर न केवल पूजा स्थल होते हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए पहचान और परंपरा के प्रतीक भी होते हैं। उनके पुनर्निर्माण में सदियाँ लग सकती हैं और वह पुरानी गरिमा वापस मिलना मुश्किल हो सकता है।

4. पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impact):

  • भू-आकृति में बदलाव: नदी के उग्र रूप ने स्थानीय भू-आकृति को बदल दिया है।
  • वनस्पतियों और जीवों का नुकसान: बाढ़ के कारण स्थानीय वनस्पति और वन्यजीवों को भी नुकसान पहुँचता है।
  • गाद का जमाव: भूस्खलन के कारण भारी मात्रा में गाद (silt) नदियों में जमा हो जाती है, जिससे नदी का मार्ग बदल सकता है और भविष्य में अन्य क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।

UPSC के लिए प्रासंगिकता: आपदा प्रबंधन और नीति निर्माण (Relevance for UPSC: Disaster Management and Policy Making)

यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी है, विशेष रूप से:

1. भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy):

  • कृषि और ग्रामीण विकास: पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि की भेद्यता।
  • बुनियादी ढाँचा: परिवहन और आवास का महत्व और उन्हें आपदाओं से कैसे सुरक्षित रखें।

2. भूगोल (Geography):

  • भौतिक भूगोल: बादल फटना, भूस्खलन, नदी प्रणालियाँ, हिमालयी भूविज्ञान।
  • मानव भूगोल: जनसंख्या वितरण, बस्तियों का स्थान, मानव-पर्यावरण अंतःक्रिया।

3. पर्यावरण (Environment):

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण: वनों की कटाई और अनियोजित विकास के परिणाम।

4. शासन (Governance):

  • आपदा प्रबंधन: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) की भूमिका।
  • नीति निर्माण: हिमालयी क्षेत्रों के लिए टिकाऊ विकास नीतियाँ, भवन कोड, पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) का प्रवर्तन।
  • अंतर-एजेंसी समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों और स्थानीय प्रशासन के बीच समन्वय।

5. सामाजिक मुद्दे (Social Issues):

  • विस्थापन और पुनर्वास: आपदा पीड़ितों का पुनर्वास।
  • सामुदायिक भेद्यता: कमजोर समूहों पर आपदाओं का असमान प्रभाव।

आगे की राह: सबक और समाधान (The Way Forward: Lessons and Solutions)

उत्तरकाशी की तबाही हमें महत्वपूर्ण सबक सिखाती है। भविष्य में ऐसी घटनाओं के विनाशकारी प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित कदमों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है:

  1. मजबूत पूर्व-चेतावनी प्रणाली:

    पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में मौसम की निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को उन्नत करना। स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित करना ताकि वे चेतावनियों को समझ सकें और उन पर कार्रवाई कर सकें।

  2. कठोर भवन निर्माण कोड:

    हिमालयी क्षेत्रों में निर्माण के लिए सख्त और भूकंपरोधी (seismic-resistant) तथा बाढ़-प्रतिरोधी (flood-resilient) भवन कोड लागू करना और उनका कड़ाई से पालन करवाना।

  3. टिकाऊ भूमि उपयोग योजना (Sustainable Land Use Planning):

    नदियों के किनारों और भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण पर रोक लगाना। पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करना और उनके संरक्षण के लिए नीतियाँ बनाना।

  4. वनीकरण और संरक्षण:

    वन आवरण को बढ़ाना, विशेष रूप से संवेदनशील ढलानों पर, ताकि मिट्टी का कटाव रोका जा सके और भूस्खलन के जोखिम को कम किया जा सके।

  5. आपदा-प्रतिकूल बुनियादी ढाँचा:

    सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढाँचों को इस तरह से डिज़ाइन करना कि वे भारी बारिश और बाढ़ का सामना कर सकें।

  6. समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन:

    स्थानीय समुदायों को आपदा तैयारियों, बचाव कार्यों और प्रारंभिक प्रतिक्रिया में शामिल करना। उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान करना।

  7. अनुसंधान और विकास:

    हिमालयी क्षेत्रों की विशिष्ट भूवैज्ञानिक और जलवायु संबंधी कमजोरियों पर और अधिक शोध करना ताकि बेहतर प्रबंधन रणनीतियाँ विकसित की जा सकें।

  8. जागरूकता अभियान:

    स्थानीय आबादी और पर्यटकों के बीच प्रकृति की शक्ति और प्राकृतिक आपदाओं से बचने के तरीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।

“भविष्य की पीढ़ियों के लिए, हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाना सीखना होगा, न कि उसके खिलाफ जाना।”

उत्तरकाशी में खीरगंगा का कहर एक दुखद घटना है, लेकिन यह हमें एक गंभीर अवसर भी देती है कि हम अपनी नीतियों, विकास मॉडल और प्रकृति के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करें। हिमालय की नाजुकता को समझना और उसका सम्मान करना ही हमारी आगे की राह होगी।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी घटना ‘बादल फटना’ (Cloudburst) का सबसे सटीक वर्णन करती है?
(a) किसी नदी में अचानक जलस्तर का बढ़ना।
(b) बहुत कम समय में अत्यधिक मात्रा में वर्षा का होना।
(c) ग्लेशियरों के पिघलने से होने वाली बाढ़।
(d) मानसून के दौरान सामान्य से अधिक बारिश।
उत्तर: (b)
व्याख्या: बादल फटना एक स्थानीयकृत, अल्पकालिक और तीव्र वर्षा की घटना है जहाँ प्रति घंटे 100 मिमी से अधिक वर्षा हो सकती है।

2. प्रश्न: उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील क्यों हैं?
1. यह क्षेत्र भूवैज्ञानिक रूप से युवा और अस्थिर है।
2. तीव्र ढलान और घने जंगल।
3. जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न में बदलाव।
4. मानवजनित गतिविधियों, जैसे अनियोजित निर्माण।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: हिमालयी क्षेत्र की भूवैज्ञानिक अस्थिरता, भौगोलिक विशेषताएँ, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और मानवजनित गतिविधियाँ सभी इसे आपदाओं के प्रति संवेदनशील बनाती हैं।

3. प्रश्न: उत्तरकाशी की हालिया घटना में खीरगंगा नदी में अचानक उफान का एक प्रमुख कारण कौन सी वायुमंडलीय घटना मानी जाती है?
(a) प्रति चक्रवात (Anticyclone)
(b) समशीतोष्ण चक्रवात (Temperate Cyclone)
(c) बादल फटना (Cloudburst)
(d) जेट स्ट्रीम (Jet Stream)
उत्तर: (c)
व्याख्या: घटना के वर्णन के अनुसार, अत्यधिक वर्षा की तीव्र स्थानीयकृत घटना ‘बादल फटना’ थी।

4. प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का गठन किस अधिनियम के तहत किया गया था?
(a) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
(b) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
(c) भारतीय वन अधिनियम, 1927
(d) राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956
उत्तर: (b)
व्याख्या: NDMA का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत किया गया था।

5. प्रश्न: हिमालयी क्षेत्र में वनों की कटाई (Deforestation) के निम्नलिखित में से कौन से परिणाम हो सकते हैं?
1. भूस्खलन की दर में वृद्धि।
2. मिट्टी के कटाव में वृद्धि।
3. जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव।
4. स्थानीय वर्षा पैटर्न में बदलाव।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: वनों की कटाई मिट्टी को बांधे रखने वाली जड़ों को कमजोर करती है, जिससे भूस्खलन और मिट्टी का कटाव बढ़ता है। इससे जलीय जीवन और स्थानीय वर्षा पैटर्न पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

6. प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) से अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
2. हिमालयी क्षेत्र भूवैज्ञानिक रूप से युवा और सक्रिय हैं।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सत्य है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (c)
व्याख्या: दोनों कथन सत्य हैं। जलवायु परिवर्तन चरम मौसम की घटनाओं को बढ़ा रहा है, और हिमालय भूवैज्ञानिक रूप से एक सक्रिय और युवा पर्वत श्रृंखला है।

7. प्रश्न: उत्तरकाशी घटना के संदर्भ में, ‘नदी के किनारों का अतिक्रमण’ (Encroachment of River Banks) से क्या तात्पर्य है?
(a) नदी के पानी का अन्य नदियों में मोड़ दिया जाना।
(b) नदियों के प्राकृतिक बाढ़ क्षेत्रों में निर्माण करना।
(c) नदियों पर बांधों का निर्माण।
(d) नदी तटों पर वृक्षारोपण।
उत्तर: (b)
व्याख्या: नदी के किनारों का अतिक्रमण का अर्थ है कि मनुष्य नदियों के प्राकृतिक रूप से फैलने वाले क्षेत्रों (flood plains) में निर्माण कार्य कर रहा है।

8. प्रश्न: उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में इको-टूरिज्म (Eco-tourism) और सतत विकास (Sustainable Development) के बीच संतुलन बनाना क्यों महत्वपूर्ण है?
(a) ताकि केवल पर्यटन से आर्थिक लाभ मिल सके।
(b) ताकि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना आर्थिक विकास हो सके।
(c) ताकि जनसंख्या को पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सके।
(d) ताकि सभी प्रकार के निर्माण की अनुमति मिल सके।
उत्तर: (b)
व्याख्या: इको-टूरिज्म और सतत विकास का उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा करते हुए आजीविका और आर्थिक अवसरों का सृजन करना है, जो उत्तराखंड जैसे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।

9. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में आपदा प्रबंधन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती है?
(a) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
(b) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
(c) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
(d) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)
उत्तर: (b)
व्याख्या: NDMA भारत में आपदा प्रबंधन के लिए सर्वोच्च वैधानिक निकाय है।

10. प्रश्न: खीरगंगा जैसी घटनाओं में, ‘गाद’ (Silt) का जमाव भविष्य के लिए किस प्रकार की समस्या पैदा कर सकता है?
(a) नदी के जल की गुणवत्ता में सुधार।
(b) नदी के मार्ग में परिवर्तन और बाढ़ का बढ़ा हुआ खतरा।
(c) जल विद्युत उत्पादन में वृद्धि।
(d) जल निकायों में ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि।
उत्तर: (b)
व्याख्या: भूस्खलन से आई गाद नदियों के जलमार्गों को अवरुद्ध कर सकती है, जिससे नदी का मार्ग बदल सकता है और बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. प्रश्न: “उत्तराखंड में हालिया बादल फटने की घटनाओं का विश्लेषण करें और बताएं कि कैसे जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित विकास और भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता जैसी अंतर्संबंधित कारक इन आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा रहे हैं।” (250 शब्द)
(संकेत: अपने उत्तर में बादल फटने की परिभाषा, हिमालयी क्षेत्र की भेद्यता, जलवायु परिवर्तन के लिंक (जैसे, पैटर्न में बदलाव, ग्लेशियर पिघलना), अनियोजित निर्माण (नदी किनारे, ढलानों पर), वनों की कटाई, और भूकंपीय गतिविधि पर चर्चा करें। उदाहरण के तौर पर उत्तरकाशी घटना का उल्लेख करें।)

2. प्रश्न: “हिमालयी क्षेत्रों के लिए एक प्रभावी और टिकाऊ आपदा प्रबंधन रणनीति के निर्माण में स्थानीय समुदायों की भागीदारी के महत्व पर प्रकाश डालिए। उत्तरकाशी की घटना से सीखे गए सबकों को शामिल करते हुए, सुझाव दें कि ऐसी रणनीतियों को कैसे मजबूत किया जा सकता है।” (250 शब्द)
(संकेत: समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन (CBDRM) की अवधारणा, स्थानीय ज्ञान का महत्व, पूर्व-चेतावनी प्रणाली में समुदाय की भूमिका, बचाव और राहत कार्यों में भागीदारी। उत्तरकाशी में स्थानीय लोगों द्वारा दी गई जानकारी या उनके अनुभव का उल्लेख। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन फ्रेमवर्क के साथ इसे कैसे एकीकृत किया जाए, इस पर सुझाव।)

3. प्रश्न: “जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने में भारत की भेद्यता को देखते हुए, पहाड़ी राज्यों जैसे उत्तराखंड के लिए एक ‘आपदा-प्रतिकूल’ (Disaster-Resilient) बुनियादी ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता का विश्लेषण करें। इस संबंध में प्रमुख चुनौतियाँ और संभावित समाधान क्या हैं?” (250 शब्द)
(संकेत: ‘आपदा-प्रतिकूल बुनियादी ढाँचा’ का अर्थ समझाएं (जैसे, भूकंपरोधी, बाढ़-प्रतिरोधी)। पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण की विशिष्ट चुनौतियाँ (जैसे, दुर्गम इलाके, लागत)। सड़क, पुल, आवास, जल आपूर्ति और बिजली ग्रिड को मजबूत बनाने के उपाय। सरकारी नीतियों, निर्माण कोडों के प्रवर्तन और वित्तीय बाधाओं पर चर्चा करें।)

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