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पहाड़ों का कहर: उत्तराखंड में बादल फटने से गाँव तबाह, हताहतों की संख्या बढ़ी

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, उत्तराखंड राज्य ने एक विनाशकारी बादल फटने की घटना का अनुभव किया, जिसने एक पूरे गाँव को अपनी चपेट में ले लिया। इस प्राकृतिक आपदा के कारण कई लोगों की मृत्यु हो गई है और कई अन्य लापता हैं। यह घटना न केवल स्थानीय समुदाय के लिए बल्कि देश के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय है, जो हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती जलवायु संबंधी घटनाओं और उनसे निपटने की हमारी तैयारियों पर सवाल उठाती है।

उत्तराखंड, अपनी सुंदर घाटियों और ऊँचे पहाड़ों के लिए जाना जाता है, लेकिन यह अक्सर चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित होता रहता है। बादल फटना, अचानक और अत्यधिक वर्षा की एक स्थानीयकृत घटना, यहाँ के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र और घनी आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्रों में विशेष रूप से विनाशकारी साबित हो सकती है। इस विशेष घटना में, भारी मात्रा में पानी और मलबा तेजी से नीचे की ओर बहते हुए, अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को बहा ले गया, जिसमें एक पूरा गाँव भी शामिल था।

यह त्रासदी हमें याद दिलाती है कि बदलता मौसम पैटर्न और मानवीय गतिविधियाँ कैसे इन प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा सकती हैं। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए, इस घटना का विश्लेषण केवल एक समाचार बुलेटिन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, शासन और सामाजिक-आर्थिक विकास जैसे महत्वपूर्ण विषयों से जुड़ा हुआ है।

उत्तराखंड में बादल फटना: एक विस्तृत विश्लेषण

बादल फटना क्या है? (What is Cloudburst?):**

बादल फटना एक ऐसी अत्यंत तीव्र और स्थानीयकृत वर्षा घटना है जहाँ कम समय में (आमतौर पर कुछ घंटों के भीतर) असामान्य रूप से भारी मात्रा में वर्षा होती है। इसकी परिभाषित विशेषता यह है कि यह एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में होती है, और वर्षा की दर 100 मिमी प्रति घंटा से अधिक हो सकती है। यह घटना अक्सर पहाड़ी इलाकों में, जहाँ की ढलान तीव्र होती है, अधिक विनाशकारी होती है क्योंकि पानी तेजी से नीचे की ओर बहता है और अपने साथ मलबा, पत्थर और मिट्टी ले आता है।

उत्तराखंड और बादल फटना: एक अंतर्निहित संबंध (Uttarakhand and Cloudburst: An Inherent Connection):**

  • भौगोलिक स्थिति: उत्तराखंड हिमालयी क्षेत्र का हिस्सा है, जो अपनी युवा और अस्थिर भूवैज्ञानिक संरचनाओं के लिए जाना जाता है। यहाँ की तीव्र ढलानें, संकरी घाटियाँ और नदियाँ जल के तेजी से प्रवाह के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाती हैं।
  • जलवायु: मानसून के मौसम के दौरान, नमी से लदे बादल जब पहाड़ों से टकराते हैं, तो वे अचानक अपनी नमी छोड़ सकते हैं, जिससे बादल फटने की संभावना बढ़ जाती है।
  • मौसम का मिजाज: पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) और अन्य मौसमी प्रणालियाँ भी अनपेक्षित और तीव्र वर्षा का कारण बन सकती हैं, जो बादल फटने की घटनाओं में योगदान करती हैं।

घटना का प्रभाव (Impact of the Event):

  • जनहानि और लापता: सबसे दुखद परिणाम मानव जीवन की हानि है। वर्तमान घटना में, कई लोगों की मृत्यु हुई है और कई अभी भी लापता हैं, जो परिवारों को अपूरणीय क्षति पहुँचाता है।
  • गाँवों का विनाश: एक पूरा गाँव मलबे और पानी के बहाव में बह गया, जिससे दशकों की मेहनत और बस्तियाँ रातोंरात नष्ट हो गईं। घरों, बुनियादी ढाँचे (सड़कें, पुल) और कृषि भूमि का भारी नुकसान हुआ है।
  • आर्थिक क्षति: स्थानीय अर्थव्यवस्था, जो काफी हद तक कृषि और पर्यटन पर निर्भर करती है, बुरी तरह प्रभावित हुई है। खोई हुई संपत्ति, कृषि भूमि और पुनर्निर्माण की लागत बहुत अधिक होने की उम्मीद है।
  • पारिस्थितिक प्रभाव: बड़े पैमाने पर भूस्खलन, पेड़ों का उखड़ना और नदी प्रणालियों में परिवर्तन से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।

UPSC के दृष्टिकोण से विश्लेषण (Analysis from UPSC Perspective)

यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न पहलुओं को छूती है:

1. भूगोल (Geography)

  • भौतिक भूगोल: हिमालयी भूविज्ञान, युवा पर्वत श्रृंखलाएँ, सक्रिय विवर्तनिक क्षेत्र, ढलान की तीव्रता, जल निकासी पैटर्न।
  • जलवायु विज्ञान: मानसून, पश्चिमी विक्षोभ, तीव्र वर्षा के कारक, आर्द्रता, वायुमंडलीय दबाव।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: बादल फटना, भूस्खलन, बाढ़, हिमनदी झील का फटना (GLOF) – इन सभी के बीच संबंध और अंतर।

उपमा: सोचिए कि पहाड़ एक विशाल ढलान वाली छत की तरह हैं। जब बादल (पानी के बड़े थैले) अचानक फटते हैं, तो पानी बहुत तेजी से नीचे गिरता है, जैसे छत से पानी बहता है, लेकिन यहाँ यह अपने साथ सब कुछ बहा ले जाता है।

2. पर्यावरण (Environment)

  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि।
  • पारिस्थितिकी तंत्र की संवेदनशीलता: हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र अपनी नाजुक प्रकृति के कारण जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के प्रति अधिक संवेदनशील है।
  • वनों की कटाई और विकास: अनियोजित विकास, सड़कों का निर्माण और वनों की कटाई भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा सकती है।

केस स्टडी: चमोली भूस्खलन (2021), केदारनाथ बाढ़ (2013) जैसी पिछली घटनाएँ हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षरण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाती हैं।

3. आपदा प्रबंधन (Disaster Management)

  • जोखिम मूल्यांकन और शमन: संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, इंजीनियरिंग उपाय (जैसे तटबंध, वर्षा जल निकासी)।
  • प्रतिक्रिया और राहत: तत्काल बचाव अभियान, चिकित्सा सहायता, आश्रय, भोजन और पानी की आपूर्ति।
  • पुनर्वास और पुनर्निर्माण: प्रभावित समुदायों का पुनर्वास, आजीविका की बहाली, टिकाऊ पुनर्निर्माण।
  • नीति और कानून: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005, राज्य आपदा प्रबंधन योजनाएँ।

चुनौतियाँ: दुर्गम इलाके, संचार की कमी, सीमित संसाधन, त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता, विस्थापित आबादी का प्रबंधन।

4. शासन और नीति (Governance and Policy)

  • अंतर-एजेंसी समन्वय: राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय एजेंसियों के बीच प्रभावी समन्वय।
  • योजना और विकास: पहाड़ी क्षेत्रों में सतत विकास मॉडल, जो पर्यावरण और स्थानीय आबादी की भेद्यता को ध्यान में रखते हैं।
  • जागरूकता और क्षमता निर्माण: स्थानीय समुदायों को खतरों के बारे में शिक्षित करना और उन्हें प्रतिक्रिया के लिए प्रशिक्षित करना।
  • वित्तीय आवंटन: आपदा तैयारियों और प्रतिक्रिया के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करना।

5. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव (Socio-Economic Impact)

  • आजीविका: कृषि, पशुपालन, छोटे व्यवसाय और पर्यटन पर निर्भर समुदायों का जीवन।
  • विस्थापन: परिवारों का जबरन विस्थापन और नई बस्तियों की स्थापना।
  • मानसिक स्वास्थ्य: पीड़ितों और बचे लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव।
  • सामुदायिक लचीलापन: आपदा के बाद सामाजिक ताने-बाने और सामुदायिक जुड़ाव का महत्व।

भविष्य की राह: सीखने और आगे बढ़ने के लिए (The Way Forward: Learning and Moving Ahead)

इस त्रासदी से सीखते हुए, हमें भविष्य के लिए एक मजबूत रणनीति बनाने की आवश्यकता है:

  1. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को मजबूत करना: बादल फटने की घटनाओं का पता लगाने और चेतावनी देने के लिए अधिक उन्नत रडार और उपग्रह-आधारित प्रणालियों में निवेश करना।
  2. भूमि उपयोग योजना: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में निर्माण और विकास को विनियमित करना, और संवेदनशील क्षेत्रों में विकास को हतोत्साहित करना।
  3. पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील विकास: पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को अपनाना।
  4. सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन में सक्रिय रूप से शामिल करना।
  5. क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: बचाव कर्मियों और स्थानीय आबादी के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
  6. अनुकूली अवसंरचना: ऐसी अवसंरचना का निर्माण करना जो प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने में अधिक सक्षम हो।
  7. जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक कार्रवाई: उत्सर्जन को कम करने और वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों में योगदान देना।

यह घटना एक स्पष्ट संकेत है कि हमें जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में अधिक सक्रिय और एकीकृत होने की आवश्यकता है। जब तक हम इन अंतर्निहित भेद्यताओं को संबोधित नहीं करते, तब तक पहाड़ केवल सुंदरता का स्रोत नहीं रहेंगे, बल्कि अनिश्चितता और खतरे का भी स्रोत बने रहेंगे। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इन मुद्दों की गहरी समझ विकसित करना न केवल परीक्षा पास करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य में प्रभावी नीति-निर्माता और प्रशासक बनने के लिए भी आवश्यक है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित में से कौन सी भौगोलिक विशेषताएँ उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं को अधिक विनाशकारी बनाती हैं?
A. संकीर्ण घाटियाँ और तीव्र ढलानें
B. घने जंगल और उपजाऊ मिट्टी
C. समतल भूभाग और चौड़ी नदियाँ
D. ऊँचे ग्लेशियर और बर्फ से ढकी चोटियाँ
उत्तर: A
व्याख्या: संकीर्ण घाटियाँ पानी और मलबे के प्रवाह को केंद्रित करती हैं, जबकि तीव्र ढलानें इसे अत्यधिक गति प्रदान करती हैं, जिससे बादल फटने का प्रभाव विनाशकारी हो जाता है।

2. बादल फटने की घटना के संदर्भ में, ‘100 मिमी प्रति घंटा’ का आँकड़ा क्या दर्शाता है?
A. हवा की गति
B. वर्षा की तीव्रता
C. भूस्खलन की दर
D. तापमान में वृद्धि
उत्तर: B
व्याख्या: 100 मिमी प्रति घंटा एक मापक है जो यह बताता है कि एक घंटे में कितनी वर्षा हुई है, और यह बादल फटने की तीव्र प्रकृति का सूचक है।

3. उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं को बढ़ाने में कौन सा मौसमी तंत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है?
A. दक्षिण-पश्चिम मानसून
B. लौटता हुआ मानसून
C. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances)
D. एल नीनो (El Niño)
उत्तर: C
व्याख्या: पश्चिमी विक्षोभ, जो भूमध्य सागर से उत्पन्न होते हैं, अक्सर उत्तर भारत में अप्रत्याशित और तीव्र वर्षा का कारण बनते हैं, खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में।

4. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. NDMA आपदाओं के लिए नीति निर्माण करता है।
2. NDMA राहत और पुनर्वास कार्यों का सीधे तौर पर कार्यान्वयन करता है।
3. NDMA प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के विकास और प्रसार की निगरानी करता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
A. केवल 1
B. 1 और 3
C. 2 और 3
D. 1, 2 और 3
उत्तर: B
व्याख्या: NDMA नीति निर्माण और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यह सीधे राहत और पुनर्वास का कार्यान्वयन नहीं करता; यह कार्य अक्सर राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।

5. हिमालयी क्षेत्रों में वनों की कटाई और अनियोजित विकास का सबसे संभावित परिणाम क्या है?
A. बाढ़ का खतरा कम होना
B. भूस्खलन का जोखिम बढ़ना
C. जल स्रोतों की वृद्धि
D. मिट्टी का क्षरण कम होना
उत्तर: B
व्याख्या: पेड़ मिट्टी को पकड़ कर रखते हैं और ढलानों को स्थिर करते हैं। इनकी अनुपस्थिति में, भारी वर्षा के दौरान भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

6. निम्नलिखित में से कौन सी घटना, बादल फटने के समान, एक हिमनदी (ग्लेशियर) से जुड़ी हो सकती है?
A. हिमस्खलन (Avalanche)
B. हिमनदी झील का फटना (Glacial Lake Outburst Flood – GLOF)
C. हिम तूफान (Blizzard)
D. हिमनदी क्षरण (Glacial Erosion)
उत्तर: B
व्याख्या: GLOF तब होता है जब हिमनदी के अंत में बनी झील का बांध टूट जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में पानी और मलबा तेजी से निकलता है, जो बादल फटने के समान विनाशकारी हो सकता है।

7. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के मुख्य उद्देश्यों में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल है?
A. केवल प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन
B. केवल मानव-निर्मित आपदाओं का प्रबंधन
C. आपदाओं के प्रभावी प्रबंधन के लिए ढाँचा तैयार करना
D. केवल अंतर्राष्ट्रीय आपदा सहायता का समन्वय
उत्तर: C
व्याख्या: यह अधिनियम प्राकृतिक और मानव-निर्मित दोनों तरह की आपदाओं के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें रोकथाम, शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया, पुनर्वास और पुनर्निर्माण शामिल हैं।

8. किसी समुदाय के ‘लचीलेपन’ (Resilience) को बढ़ाने का क्या अर्थ है?
A. केवल आपदा से जल्दी उबरना
B. केवल जोखिमों को कम करना
C. आपदाओं का सामना करने, अनुकूलन करने और उनसे उबरने की क्षमता
D. केवल प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना
उत्तर: C
व्याख्या: लचीलापन एक बहुआयामी अवधारणा है जिसमें जोखिमों से निपटने, प्रतिकूल परिस्थितियों में अनुकूलन करने और झटके से मजबूत होकर उभरने की क्षमता शामिल है।

9. उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्रों में अनियोजित विकास का एक संभावित परिणाम क्या हो सकता है जो स्थानीय आजीविका को प्रभावित करे?
A. पर्यटन स्थलों की संख्या में वृद्धि
B. कृषि भूमि का नुकसान और जल स्रोतों में कमी
C. स्थानीय हस्तशिल्प का पुनरुद्धार
D. वन उत्पादों की उपलब्धता में वृद्धि
उत्तर: B
व्याख्या: अवसंरचना परियोजनाओं (जैसे सड़कें, बांध) के लिए निर्माण और भूमि उपयोग परिवर्तन से उपजाऊ कृषि भूमि का क्षरण हो सकता है और जल निकासी पैटर्न में बदलाव से जल स्रोतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

10. जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि को रोकने के लिए सबसे प्रभावी अल्पकालिक उपाय क्या हो सकता है?
A. जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध
B. प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और सार्वजनिक जागरूकता अभियान
C. सभी तटीय क्षेत्रों को ऊँची दीवारों से सुरक्षित करना
D. केवल अंतर्राष्ट्रीय सौर ऊर्जा समझौतों पर हस्ताक्षर करना
उत्तर: B
व्याख्या: जबकि सभी विकल्प महत्वपूर्ण हैं, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और जागरूकता अभियान तत्काल सबसे प्रभावी अल्पकालिक उपाय हैं जो मानव हानि और संपत्ति के नुकसान को कम करने में मदद कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. उत्तराखंड में हाल ही में हुई विनाशकारी बादल फटने की घटना का विश्लेषण करें, जिसमें इसके भौगोलिक, पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक कारणों पर प्रकाश डाला गया हो। भविष्य में ऐसी आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए आपकी क्या रणनीति होगी? (लगभग 250 शब्द)
2. “हिमालयी क्षेत्र अपनी नाजुक पारिस्थितिकी और मानव बस्तियों की भेद्यता के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।” इस कथन की विवेचना करें, और उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं के संदर्भ में भारत के आपदा प्रबंधन तंत्र की प्रभावशीलता पर टिप्पणी करें। (लगभग 150 शब्द)
3. बादल फटने जैसी चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इस दृष्टिकोण में प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, भूमि उपयोग योजना, सामुदायिक भागीदारी और टिकाऊ विकास को कैसे एकीकृत किया जा सकता है? (लगभग 250 शब्द)
4. आपदा प्रबंधन में ‘लचीलापन’ (Resilience) की अवधारणा का क्या महत्व है? उत्तराखंड में ऐसी आपदाओं से प्रभावित समुदायों के लचीलेपन को बढ़ाने के लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों का सुझाव दें। (लगभग 150 शब्द)

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