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34 सेकंड में जमींदोज हुआ गांव: उत्तराखंड के धराली में बादल फटने का भीषण मंजर, जानिए क्या हुआ?

34 सेकंड में जमींदोज हुआ गांव: उत्तराखंड के धराली में बादल फटने का भीषण मंजर, जानिए क्या हुआ?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले के मोरी ब्लॉक में स्थित धराली गांव एक भयावह प्राकृतिक आपदा का शिकार हुआ। एक अत्यंत तीव्र और विनाशकारी बादल फटने की घटना ने पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया। पहाड़ से अचानक आई पानी और मलबे की लहर ने मात्र 34 सेकंड में दर्जनों घरों, होटलों और सड़कों को तबाह कर दिया। इस हादसे में अब तक 4 लोगों की मृत्यु की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 50 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं। यह घटना उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में चरम मौसम की घटनाओं और उनके बढ़ते प्रभाव की ओर एक गंभीर चेतावनी है।

यह ब्लॉग पोस्ट, UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, इस घटना के विभिन्न पहलुओं – जैसे कि बादल फटना क्या है, इसके कारण क्या हैं, उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में यह क्यों अधिक विनाशकारी होता है, इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम, और भविष्य की राह – पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

बादल फटना: प्रकृति का एक विनाशकारी रूप (Cloudburst: A Destructive Form of Nature)

बादल फटना (Cloudburst) क्या है?**
सरल शब्दों में, बादल फटना एक स्थानीयकृत, अत्यधिक तीव्र वर्षा की घटना है, जहाँ एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में बहुत कम समय (कुछ मिनट से लेकर एक घंटे तक) में बहुत अधिक मात्रा में वर्षा होती है। सामान्य तौर पर, जब एक घन किलोमीटर (km³) क्षेत्र में 100 मिलीमीटर (mm) से अधिक वर्षा 1 घंटे के भीतर गिरती है, तो उसे बादल फटना माना जाता है। यह मात्रा सामान्य मानसून वर्षा से कई गुना अधिक होती है।

यह कैसे होता है?**
बादल फटने की घटना के पीछे मुख्य रूप से वायुमंडलीय परिस्थितियाँ जिम्मेदार होती हैं:

  • अत्यधिक नमी वाले बादल: जब वायुमंडल में बड़ी मात्रा में जलवाष्प मौजूद होती है, तो बादल भारी हो जाते हैं।
  • स्थिर या धीमी गति से चलने वाले बादल: यदि हवा की गति बहुत कम हो या बादल किसी बाधा (जैसे पहाड़) के कारण रुक जाएं, तो वे पानी को जमा करते रहते हैं।
  • पहाड़ी बाधाएं: हिमालय जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में, जब ये भारी बादल पहाड़ों से टकराते हैं, तो उन्हें ऊपर की ओर धकेला जाता है। इस ऊर्ध्वाधर गति से हवा ठंडी होती है, जिससे जलवाष्प संघनित होकर बूंदों का निर्माण करती है। यदि परिस्थितियाँ अनुकूल हों, तो ये बूंदें इतनी बड़ी हो जाती हैं कि गुरुत्वाकर्षण उन्हें रोक नहीं पाता और वे एक साथ गिर जाती हैं, जिससे अचानक और अत्यधिक वर्षा होती है।
  • स्थानीय तापमान और दबाव: स्थानीय तापमान और दबाव में अचानक परिवर्तन भी बादल फटने में भूमिका निभा सकते हैं।

एक उपमा: सोचिए कि आप एक गुब्बारे में लगातार हवा भर रहे हैं। जब वह अपनी अधिकतम क्षमता से अधिक भर जाता है, तो वह फट जाता है। बादल फटना कुछ ऐसा ही है, जहाँ बादल अपनी जल धारण क्षमता से अधिक जलवाष्प जमा कर लेते हैं और फिर अचानक उसे छोड़ देते हैं।

उत्तराखंड और बादल फटने का संबंध (Uttarakhand and the Connection with Cloudbursts)

उत्तराखंड, अपने ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों, संकरी घाटियों और तीव्र ढलानों के कारण, बादल फटने की घटनाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। इसके कई कारण हैं:

  • भौगोलिक संरचना: हिमालय की खड़ी ढलानें और संकरी घाटियाँ पानी और मलबे के प्रवाह को और तीव्र कर देती हैं। जब बादल फटने से अचानक बड़ी मात्रा में पानी बहता है, तो यह मलबे (पत्थर, मिट्टी, पेड़) को साथ बहाकर लाता है, जिससे ‘फ्लैश फ्लड’ (अचानक बाढ़) और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • मौसम प्रणालियाँ: मानसून के दौरान, पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) और अन्य मौसमी प्रणालियाँ इस क्षेत्र में भारी वर्षा लाती हैं। जब ये प्रणालियाँ स्थानीय कारकों के साथ मिलती हैं, तो बादल फटने की संभावना बढ़ जाती है।
  • जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम का मिजाज बदल रहा है। चरम मौसम की घटनाएँ, जैसे भारी वर्षा और हीटवेव, अधिक सामान्य और तीव्र होती जा रही हैं। इसका सीधा असर उत्तराखंड जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर पड़ रहा है।
  • मानवीय गतिविधियाँ: अनियोजित शहरीकरण, वनों की कटाई, और सड़क निर्माण जैसी मानवीय गतिविधियाँ, विशेष रूप से संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में, मिट्टी को अस्थिर कर सकती हैं और भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।

“उत्तराखंड की नाजुक पारिस्थितिकी और तीव्र ढलानें इसे प्राकृतिक आपदाओं, विशेष रूप से बादल फटने और भूस्खलन के प्रति बेहद संवेदनशील बनाती हैं। जलवायु परिवर्तन इन जोखिमों को और बढ़ा रहा है।”

धराली का विनाश: एक विस्तृत विश्लेषण (Dharali’s Destruction: A Detailed Analysis)

धराली में हुई हालिया घटना कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि यह उन बढ़ते जोखिमों का एक ज्वलंत उदाहरण है जिनका सामना पहाड़ी राज्य कर रहे हैं।

  • घटना का क्रम:
    • पहाड़ पर स्थानीयकृत बादल फटा।
    • अचानक, विनाशकारी मात्रा में पानी और मलबा (मिट्टी, पत्थर, पेड़) नीचे गांव की ओर बहने लगा।
    • 34 सेकंड जैसे अत्यंत अल्प समय में, पानी और मलबे की बाढ़ ने घरों, होटलों और बुनियादी ढांचों को लील लिया।
    • कई लोग मलबे के नीचे दब गए या बह गए।
  • कारण:
    • तात्कालिक कारण: पहाड़ी क्षेत्र में एक तीव्र बादल फटने की घटना।
    • अंतर्निहित कारण:
      • क्षेत्र की भौगोलिक संवेदनशीलता।
      • संभावित रूप से, उस विशिष्ट दिन मौजूद असामान्य मौसम संबंधी स्थितियाँ।
      • जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि।
  • प्रभाव:
    • मानवीय क्षति: 4 मौतों की पुष्टि, 50 से अधिक लोग लापता। लापता लोगों के जीवित बचने की उम्मीद कम होती जा रही है।
    • आर्थिक क्षति: दर्जनों घर और कई होटल मलबे में दब गए, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ। सड़कों का बह जाना संचार और परिवहन को बाधित करता है।
    • पारिस्थितिक प्रभाव: भूस्खलन से स्थानीय वनस्पति और मिट्टी का क्षरण।
    • सामाजिक प्रभाव: परिवारों का उजड़ना, विस्थापन, और गहरे सदमे की स्थिति।

जोखिम और चुनौतियाँ (Risks and Challenges)

धराली जैसी घटनाओं से उत्पन्न होने वाले जोखिम और चुनौतियाँ बहुआयामी हैं:

  • बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता: जलवायु परिवर्तन के कारण, ऐसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ने की उम्मीद है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की सीमाएँ: पहाड़ी क्षेत्रों में, खासकर दूरदराज के इलाकों में, बादल फटने जैसी अचानक होने वाली घटनाओं के लिए सटीक और प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है।
  • खराब बुनियादी ढाँचा: पहाड़ी क्षेत्रों में अक्सर बुनियादी ढाँचा (सड़कें, पुल, संचार) कमजोर होता है, जो आपदा के समय बचाव और राहत कार्यों को बाधित करता है।
  • स्थानीय समुदायों की भेद्यता: पहाड़ी समुदायों की आजीविका अक्सर प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है, और ऐसी आपदाएँ उन्हें सीधे प्रभावित करती हैं।
  • पुनर्निर्माण और पुनर्वास: क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचे और घरों का पुनर्निर्माण एक महंगा और समय लेने वाला कार्य है, खासकर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में।
  • पर्यटन पर प्रभाव: ऐसी आपदाएँ क्षेत्र के पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं, जो कई पहाड़ी राज्यों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत है।

सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम और भविष्य की राह (Steps Being Taken by Government and The Way Forward)

ऐसी विनाशकारी घटनाओं से निपटने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सरकार और अन्य एजेंसियां ​​निम्नलिखित कदम उठा रही हैं या उठा सकती हैं:

  1. आपदा प्रबंधन:
    • त्वरित प्रतिक्रिया: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) जैसी टीमों को त्वरित प्रतिक्रिया और बचाव कार्यों के लिए तैनात करना।
    • राहत और पुनर्वास: प्रभावितों के लिए अस्थायी आश्रय, भोजन, चिकित्सा सहायता और दीर्घकालिक पुनर्वास की व्यवस्था करना।
    • पूर्व-चेतावनी प्रणाली: उन्नत मौसम निगरानी उपकरणों और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करना। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  2. जोखिम न्यूनीकरण:
    • शहरी नियोजन: पहाड़ी क्षेत्रों में अनियोजित निर्माण को रोकना और आपदा-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति न देना।
    • वन संरक्षण: वनों की कटाई को रोकना और वृक्षारोपण को बढ़ावा देना, क्योंकि वन भूस्खलन को रोकने में मदद करते हैं।
    • बुनियादी ढाँचे का सुदृढ़ीकरण: सड़कों, पुलों और इमारतों को भूकंप और बाढ़ प्रतिरोधी बनाने के लिए डिजाइन करना।
    • सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को आपदा जागरूकता, तैयारी और प्रतिक्रिया में प्रशिक्षित करना।
  3. जलवायु परिवर्तन का मुकाबला:
    • शमन (Mitigation): ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों में योगदान देना।
    • अनुकूलन (Adaptation): जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति लचीलापन बढ़ाने के लिए रणनीतियाँ विकसित करना, जैसे कि जल प्रबंधन में सुधार और कृषि पद्धतियों को बदलना।
  4. अनुसंधान और विकास:
    • बादल फटने जैसी घटनाओं के कारणों और भविष्यवाणी के तरीकों पर अधिक शोध को बढ़ावा देना।
    • पहाड़ी भूभाग के लिए विशेष इंजीनियरिंग और निर्माण तकनीकों का विकास।
  5. अंतर-एजेंसी समन्वय:
    • विभिन्न सरकारी विभागों, एजेंसियों, स्थानीय अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों के बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करना।

“आपदा को रोकने से बेहतर है कि हम उसके लिए तैयार रहें। प्रारंभिक चेतावनी, प्रभावी योजना और सामुदायिक सहभागिता पहाड़ी राज्यों में जीवन बचाने की कुंजी है।”

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)

यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है:

  • प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
    • भूगोल (Geography): बादल फटना, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, हिमालयी भूविज्ञान।
    • पर्यावरण (Environment): जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता।
    • आपदा प्रबंधन (Disaster Management): प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, राहत और पुनर्वास।
    • सामयिकी (Current Affairs): हालिया प्राकृतिक आपदाएँ और सरकारी प्रतिक्रियाएँ।
  • मुख्य परीक्षा (Mains):
    • GS-I (भूगोल): प्राकृतिक आपदाएँ और उनके निवारण के उपाय।
    • GS-III (पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी): जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, आपदा प्रबंधन की चुनौतियाँ और समाधान, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की भूमिका।
    • GS-II (शासन): आपदा प्रबंधन में सरकार की भूमिका, नीति निर्माण, अंतर-एजेंसी समन्वय।
    • निबंध (Essay): ‘जलवायु परिवर्तन और उसका प्रभाव’, ‘पहाड़ी राज्यों में सतत विकास और आपदा प्रबंधन’, ‘प्राकृतिक आपदाओं के सामाजिक-आर्थिक परिणाम’।

उम्मीदवारों को इस घटना के मूल कारणों, प्रभावों और सरकार द्वारा उठाए जा रहे या उठाए जा सकने वाले कदमों का विश्लेषण करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. बादल फटने (Cloudburst) की घटना को आम तौर पर कब परिभाषित किया जाता है?
a) 1 घंटे में 50 मिमी से अधिक वर्षा
b) 1 घंटे में 100 मिमी से अधिक वर्षा
c) 30 मिनट में 75 मिमी से अधिक वर्षा
d) 24 घंटे में 200 मिमी से अधिक वर्षा
उत्तर: b) 1 घंटे में 100 मिमी से अधिक वर्षा
व्याख्या: बादल फटने को आम तौर पर एक घंटे के भीतर 100 मिमी से अधिक वर्षा की स्थानीयकृत, अत्यधिक तीव्र घटना के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो एक घन किलोमीटर क्षेत्र में होती है।

2. निम्नलिखित में से कौन सा कारक उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने को अधिक विनाशकारी बनाता है?
1. तीव्र ढलानें
2. संकीर्ण घाटियाँ
3. अस्थिर भूविज्ञान
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
a) केवल 1
b) 1 और 2
c) 2 और 3
d) 1, 2 और 3
उत्तर: d) 1, 2 और 3
व्याख्या: तीव्र ढलानें, संकीर्ण घाटियाँ और अस्थिर भूविज्ञान मलबे और पानी के प्रवाह को तेज करते हैं, जिससे बादल फटने की घटनाएं अधिक विनाशकारी हो जाती हैं।

3. **’फ्लैश फ्लड’ (Flash Flood) से क्या तात्पर्य है?**
a) नदियों में धीरे-धीरे आने वाली बाढ़
b) अचानक और तीव्र गति से आने वाली बाढ़
c) तटीय क्षेत्रों में ज्वारीय लहरों से आने वाली बाढ़
d) मानसून के कारण होने वाली लंबी अवधि की बाढ़
उत्तर: b) अचानक और तीव्र गति से आने वाली बाढ़
व्याख्या: फ्लैश फ्लड, अक्सर बादल फटने या तीव्र वर्षा के कारण, अत्यंत कम समय में अचानक और विनाशकारी रूप से आती हैं।

4. **पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) का भारत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
a) उत्तर भारत में ग्रीष्मकालीन वर्षा
b) उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों के दौरान वर्षा और हिमपात
c) दक्षिण भारत में मानसून को मजबूत करना
d) पूर्वी भारत में उष्णकटिबंधीय तूफान लाना
उत्तर: b) उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों के दौरान वर्षा और हिमपात
व्याख्या: पश्चिमी विक्षोभ, जो भूमध्य सागर से उत्पन्न होते हैं, सर्दियों के महीनों के दौरान उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा और हिमपात का कारण बनते हैं।

5. **आपदा प्रबंधन के संदर्भ में, ‘शमन’ (Mitigation) का क्या अर्थ है?
a) आपदा के बाद राहत प्रदान करना
b) आपदा के प्रभावों को कम करने के लिए उपाय करना
c) आपदा के बारे में लोगों को चेतावनी देना
d) आपदा से प्रभावित क्षेत्रों का पुनर्निर्माण करना
उत्तर: b) आपदा के प्रभावों को कम करने के लिए उपाय करना
व्याख्या: शमन का तात्पर्य आपदा के जोखिमों और प्रभावों को कम करने के लिए दीर्घकालिक उपाय करना है, जैसे कि बेहतर निर्माण विधियाँ या वनीकरण।

6. **निम्नलिखित में से कौन सी एजेंसी भारत में आपदा प्रबंधन के लिए नोडल एजेंसी है?**
a) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
b) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
c) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
d) गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs)
उत्तर: b) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
व्याख्या: NDMA भारत में आपदा प्रबंधन के लिए सर्वोच्च वैधानिक निकाय है। हालांकि, गृह मंत्रालय नीति निर्माण और समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और NDRF एक प्रतिक्रिया बल है।

7. **जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओं की प्रवृत्ति के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
a) ऐसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता कम हो रही है।
b) ऐसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।
c) केवल वर्षा की तीव्रता बढ़ रही है, आवृत्ति नहीं।
d) केवल तापमान बढ़ रहा है, वर्षा पैटर्न अप्रभावित है।
उत्तर: b) ऐसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख परिणाम चरम मौसम की घटनाओं, जैसे भारी वर्षा, लू, और सूखे की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि है।

8. **हिमालयी क्षेत्रों में वनों की कटाई के संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं?**
1. भूस्खलन का खतरा बढ़ना
2. बाढ़ का खतरा बढ़ना
3. मिट्टी का क्षरण
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
a) केवल 1
b) 1 और 2
c) 2 और 3
d) 1, 2 और 3
उत्तर: d) 1, 2 और 3
व्याख्या: वन, विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में, मिट्टी को बांधे रखने, पानी के बहाव को नियंत्रित करने और भूस्खलन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों की कटाई से इन सभी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

9. **किसी क्षेत्र के लिए ‘आपदा भेद्यता’ (Disaster Vulnerability) से क्या तात्पर्य है?**
a) किसी क्षेत्र की प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता
b) किसी क्षेत्र की आपदाओं के प्रति अतिसंवेदनशील होने और उनसे होने वाले नुकसान को झेलने की क्षमता
c) किसी क्षेत्र में आपदाओं की आवृत्ति
d) आपदाओं के लिए सरकार की प्रतिक्रिया क्षमता
उत्तर: b) किसी क्षेत्र की आपदाओं के प्रति अतिसंवेदनशील होने और उनसे होने वाले नुकसान को झेलने की क्षमता
व्याख्या: भेद्यता किसी समुदाय या क्षेत्र की उस क्षमता को दर्शाती है जिसके द्वारा वह किसी आपदा से प्रभावित हो सकता है या उसके प्रभावों से उबर नहीं सकता।

10. **भारत में आपदा पूर्व-चेतावनी प्रणालियों (Early Warning Systems) को बेहतर बनाने में निम्नलिखित में से कौन सी तकनीक महत्वपूर्ण हो सकती है?
1. रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट इमेजिंग
2. भू-स्थानिक सूचना प्रणाली (GIS)
3. मौसम रडार और सेंसर नेटवर्क
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
a) केवल 1
b) 1 और 2
c) 2 और 3
d) 1, 2 और 3
उत्तर: d) 1, 2 और 3
व्याख्या: ये सभी प्रौद्योगिकियाँ मौसम के पैटर्न की निगरानी, ​​खतरों की पहचान करने और समय पर चेतावनी जारी करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. **उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में बादल फटने की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के पीछे जलवायु परिवर्तन और स्थानीय भौगोलिक कारकों की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। इस प्रकार की आपदाओं के प्रबंधन के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण का प्रस्ताव दीजिए।**
*(विश्लेषण करें कि कैसे जलवायु परिवर्तन (जैसे, बढ़ी हुई नमी, तीव्र संवहन) और स्थानीय कारक (जैसे, खड़ी ढलानें, संकरी घाटियाँ, वन की कमी) बादल फटने को अधिक गंभीर बनाते हैं। फिर, एक बहु-आयामी दृष्टिकोण का प्रस्ताव करें जिसमें शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्वास के तत्व शामिल हों, जिसमें प्रौद्योगिकी, सामुदायिक सहभागिता और नीतिगत सुधार पर जोर दिया जाए।)*

2. **आपदा प्रबंधन के चार स्तंभों (शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति/पुनर्निर्माण) की व्याख्या करें और उदाहरण सहित बताएं कि भारत, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में, बादल फटने जैसी आपदाओं के लिए इन स्तंभों को कैसे मजबूत कर सकता है।**
*(प्रत्येक स्तंभ को परिभाषित करें और उदाहरण दें। फिर, बादल फटने के संदर्भ में, भारत में मौजूदा उपायों का उल्लेख करें और सुधार के क्षेत्रों का सुझाव दें, जैसे शमन के लिए बेहतर भूमि उपयोग योजना, तैयारी के लिए मजबूत पूर्व-चेतावनी प्रणाली, त्वरित प्रतिक्रिया के लिए बेहतर लॉजिस्टिक्स, और पुनर्प्राप्ति के लिए टिकाऊ पुनर्निर्माण तकनीकें।)*

3. **भारत में, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में, प्राकृतिक आपदाओं के प्रति समुदायों की भेद्यता (vulnerability) को कम करने में स्थानीय समुदायों की भागीदारी और सशक्तिकरण का महत्व बताएं। धराली जैसी घटनाओं के आलोक में, इस दिशा में उठाए जाने वाले कदमों का सुझाव दें।**
*(भेद्यता की अवधारणा और इसके कारणों (जैसे, सामाजिक-आर्थिक, भौतिक, संस्थागत) को समझाएं। इसके बाद, बताएं कि कैसे स्थानीय समुदाय आपदा प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं (जैसे, पारंपरिक ज्ञान, स्थानीय निगरानी, ​​जागरूकता अभियान)। धराली के संदर्भ में, स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करने, उनकी चिंताओं को सुनने और आपदा योजना में उन्हें शामिल करने के तरीके सुझाएं।)*

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