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जिस दिन हटा था अनुच्छेद 370, उस दिन जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे सत्यपाल मलिक: निधन पर विशेष

जिस दिन हटा था अनुच्छेद 370, उस दिन जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे सत्यपाल मलिक: निधन पर विशेष

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**

भारतीय राजनीति के क्षितिज पर एक जाना-पहचाना चेहरा, पूर्व केंद्रीय मंत्री और चार राज्यों के राज्यपाल रह चुके श्री सत्यपाल मलिक का हाल ही में निधन हो गया। उनके निधन की खबर के साथ ही वे फिर से सुर्खियों में आ गए, विशेषकर जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल के तौर पर। मलिक का कार्यकाल कई मायनों में ऐतिहासिक रहा, और खास बात यह है कि उनके कार्यकाल के दौरान ही, 5 अगस्त 2019 को, भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का अभूतपूर्व निर्णय लिया था। यह संयोग ही था कि यह ऐतिहासिक घटना उसी दिन हुई जब वे राज्य के राज्यपाल थे, जिसने उनके कार्यकाल को भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय बना दिया। यह ब्लॉग पोस्ट श्री मलिक के जीवन, उनके राजनीतिक सफर, राज्यपाल के रूप में उनकी भूमिका, और विशेष रूप से अनुच्छेद 370 के हटने के दौरान उनकी स्थिति का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए एक महत्वपूर्ण समसामयिक और ऐतिहासिक संदर्भ प्रदान करेगा।

सत्यपाल मलिक: एक राजनीतिक यात्रा का अवलोकन (Satyapal Malik: An Overview of a Political Journey)

श्री सत्यपाल मलिक का राजनीतिक जीवन दशकों तक फैला रहा, जो एक जमीनी कार्यकर्ता से शुरू होकर राष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान तक पहुंचा। उनका जन्म 1946 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। छात्र राजनीति से अपना करियर शुरू करने वाले मलिक ने अपने तीखे तेवर और मुखर आवाज़ के लिए जल्द ही पहचान बना ली।

  • शुरुआती जीवन और छात्र राजनीति: मलिक ने मेरठ विश्वविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। यह वह दौर था जब देश में छात्र आंदोलन अपने चरम पर थे, और उन्होंने इन आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई।
  • विधानसभा और लोकसभा सदस्यता: उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानमंडल के सदस्य के रूप में अपने राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाया। बाद में, उन्होंने भारतीय संसद में भी अपनी सेवाएं दीं, एक लोकसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए।
  • केंद्रीय मंत्री: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एक प्रमुख नेता के तौर पर, मलिक ने केंद्र सरकार में मंत्री के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने संसदीय कार्य मंत्री और पर्यटन मंत्री जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभाला, जहाँ उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमताओं का प्रदर्शन किया।

उनकी राजनीतिक यात्रा का यह महत्वपूर्ण चरण उन्हें भारतीय जनमानस में एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित करता रहा, जो जमीनी हकीकत से जुड़े थे और नीतियों को ज़मीनी स्तर तक पहुंचाने में विश्वास रखते थे।

राज्यपाल के रूप में मलिक: चार राज्यों का अनुभव (Malik as Governor: Experience Across Four States)

श्री सत्यपाल मलिक का राज्यपाल का कार्यकाल विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा क्योंकि उन्होंने भारत के चार अलग-अलग राज्यों में इस संवैधानिक पद को संभाला: बिहार, ओडिशा, मेघालय और अंततः जम्मू-कश्मीर। एक ही व्यक्ति का इतने विविध राज्यों में राज्यपाल के रूप में कार्य करना भारतीय राजनीति में एक दुर्लभ घटना है और यह उनके अनुभव और नेतृत्व की बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।

“राज्यपाल राज्य का संवैधानिक मुखिया होता है, लेकिन उसकी भूमिका केवल रबर स्टैंप की नहीं हो सकती। उसे संविधान की मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए, राज्य के हितों की रक्षा करनी होती है, खासकर जब केंद्र और राज्य के बीच या राज्य के भीतर कोई महत्वपूर्ण मुद्दा हो।” – (यह एक काल्पनिक उद्धरण है जो राज्यपाल की भूमिका को दर्शाता है, सत्यपाल मलिक के वास्तविक उद्धरण के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है।)

आइए देखें उन्होंने किन राज्यों में राज्यपाल का पद संभाला और उस दौरान क्या महत्वपूर्ण रहा:

1. बिहार (2017-2018)

बिहार के राज्यपाल के रूप में, मलिक ने राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के दौर को देखा। उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेषकर उस समय जब प्रदेश में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे थे। उन्होंने संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित किया और राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने में प्रशासन को मार्गदर्शन दिया।

2. ओडिशा (2018)

इसके बाद, मलिक को ओडिशा का राज्यपाल नियुक्त किया गया। हालाँकि उनका कार्यकाल यहाँ अपेक्षाकृत छोटा रहा, लेकिन उन्होंने राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। इस दौरान, ओडिशा राष्ट्रीय आपदाओं जैसे चक्रवात ‘फ़ानी’ के प्रभाव से उबरने की कोशिश कर रहा था, और राज्यपाल के रूप में उन्होंने राहत और पुनर्वास कार्यों के महत्व पर जोर दिया।

3. मेघालय (2018-2020)

मेघालय में राज्यपाल के रूप में, सत्यपाल मलिक ने पूर्वोत्तर भारत के एक ऐसे राज्य की सेवा की, जिसकी अपनी विशिष्ट राजनीतिक और सामाजिक गतिशीलता थी। यहाँ उन्होंने विभिन्न समुदायों के बीच सामंजस्य बनाए रखने और राज्य के संवैधानिक तंत्र को सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

4. जम्मू-कश्मीर (2018-2019)

यह कार्यकाल श्री मलिक के लिए सबसे अधिक चर्चा और ऐतिहासिक महत्व का रहा। 23 अगस्त 2018 से 23 अगस्त 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में, उन्होंने एक ऐसे क्षेत्र का नेतृत्व किया जो गहन राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा था।

  • राज्यपाल शासन: उनके कार्यकाल की शुरुआत जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन (Governor’s Rule) से हुई, जो बाद में राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) में परिवर्तित हुआ। यह उस समय की राजनीतिक अनिश्चितता को दर्शाता है।
  • अनुच्छेद 370 का निरस्त होना: सबसे महत्वपूर्ण घटना 5 अगस्त 2019 को हुई, जब केंद्र सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को प्रभावी ढंग से निरस्त कर दिया, जिससे जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हो गया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख – में विभाजित कर दिया गया। उस समय सत्यपाल मलिक ही जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे।
  • भूमिका और बयान: अनुच्छेद 370 के हटने के बाद, मलिक ने अपनी प्रतिक्रियाओं और बयानों के लिए भी सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने इस फैसले के महत्व और इसके भविष्य के प्रभावों पर अपने विचार व्यक्त किए। उनके कुछ बयान, जो राज्य के विशेष दर्जे के हटने के बाद की स्थिति पर थे, काफी चर्चा में रहे।

इन चार राज्यों में राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल ने उन्हें विभिन्न प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों से अवगत कराया, जो उन्हें एक अनुभवी और बहुआयामी नेता बनाते हैं।

अनुच्छेद 370: एक ऐतिहासिक संदर्भ (Article 370: A Historical Context)

श्री सत्यपाल मलिक के जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के साथ अविभाज्य रूप से जोड़ा जाता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि अनुच्छेद 370 क्या था और इसे क्यों निरस्त किया गया।

अनुच्छेद 370 क्या था?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, 1954 में लागू हुआ था और इसने जम्मू और कश्मीर राज्य को भारत के अन्य राज्यों की तुलना में एक विशेष स्वायत्त दर्जा प्रदान किया था। इसके तहत:

  • जम्मू और कश्मीर का अपना अलग संविधान था।
  • राज्य का अपना ध्वज था।
  • रक्षा, विदेश मामले और संचार को छोड़कर, अन्य सभी विषयों पर भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानून राज्य में लागू करने के लिए राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होती थी।
  • राज्य के निवासियों को विशेष अधिकार प्राप्त थे, जैसे कि स्थायी निवास का अधिकार, जिसके कारण अन्य राज्यों के नागरिक वहां संपत्ति नहीं खरीद सकते थे या स्थायी रूप से बस नहीं सकते थे।

इस अनुच्छेद को भारतीय संविधान में एक ‘अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान’ के रूप में शामिल किया गया था।

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कारण (सरकारी पक्ष):

केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के पीछे कई तर्क दिए:

  • राष्ट्रीय एकीकरण: सरकार का मानना था कि यह अनुच्छेद भारत के पूर्ण एकीकरण में बाधा डाल रहा था और अलगाववाद को बढ़ावा देता था।
  • स्थानीय हित: यह तर्क दिया गया कि अनुच्छेद 370 ने जम्मू और कश्मीर के आम नागरिकों, विशेष रूप से वंचित वर्गों को विकास और अवसरों से वंचित रखा था।
  • आतंकवाद और उग्रवाद: सरकार ने संकेत दिया कि विशेष दर्जे ने आतंकवाद और उग्रवाद को बढ़ावा देने में अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई।
  • समान अधिकार: अनुच्छेद 370 के कारण, भारत के अन्य राज्यों के नागरिकों को जम्मू और कश्मीर में भूमि खरीदने या नौकरी पाने का अधिकार नहीं था, जो समानता के सिद्धांत के विरुद्ध था।
  • कश्मीरी पंडितों का विस्थापन: 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के बड़े पैमाने पर विस्थापन को भी इस विशेष दर्जे के परिणामों से जोड़ा गया।

निरस्त करने की प्रक्रिया:

5 अगस्त 2019 को, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को लागू करने की एक अधिसूचना जारी की। इसे संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – द्वारा भारी बहुमत से पारित किया गया। इस प्रक्रिया में, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 भी पारित किया गया, जिसने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया।

“अनुच्छेद 370 को हटाना भारतीय संघ के पुनर्निर्माण का एक निर्णायक क्षण था। इसने जम्मू और कश्मीर को मुख्यधारा के विकास और राष्ट्रीय चेतना से जोड़ा।” – (यह एक सामान्य वक्तव्य है जो सरकार के तर्क को दर्शाता है।)

सत्यपाल मलिक की भूमिका और उनके कार्यकाल के निहितार्थ (Satyapal Malik’s Role and Implications of His Tenure)

जब अनुच्छेद 370 निरस्त किया गया, तब सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे। उनकी भूमिका इस प्रकार थी:

  • संवैधानिक मशीनरी का प्रमुख: संवैधानिक रूप से, राज्यपाल राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करता है। मलिक ने अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से संबंधित राष्ट्रपति की घोषणाओं और उसके बाद के पुनर्गठन को सुगम बनाया।
  • सरकार के निर्णयों का क्रियान्वयन: राज्यपाल के रूप में, मलिक का कर्तव्य था कि वे केंद्र सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों को राज्य में लागू करें। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के संबंध में, यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी थी कि सभी संवैधानिक और प्रशासनिक कदम उठाए जाएं।
  • जनता को आश्वासन: इस बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक बदलाव के दौरान, राज्यपाल के रूप में मलिक का काम जनता को विश्वास दिलाना, शांति और व्यवस्था बनाए रखना और राज्य के भविष्य के बारे में सकारात्मक संदेश देना भी था।
  • विवाद और आलोचना: हालांकि, मलिक ने बाद में अपने कुछ बयानों में यह भी संकेत दिया कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के निर्णय में उनकी भूमिका सीमित थी और यह निर्णय मुख्य रूप से दिल्ली से लिया गया था। उन्होंने कुछ सार्वजनिक मंचों पर यह भी कहा कि उन्हें इस निर्णय की प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी या उन्हें इसके परिणाम की भयावहता का एहसास नहीं था। उनके कुछ बयान, विशेष रूप से अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य में सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति और स्थानीय राजनीतिक नेताओं की नजरबंदी पर, काफी चर्चा और बहस का विषय बने।

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)

श्री सत्यपाल मलिक का निधन और विशेष रूप से उनके जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल, UPSC परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए कई महत्वपूर्ण विषयों को कवर करता है:

1. समसामयिक मामले (Current Affairs)

राज्यों के राज्यपालों का पद, केंद्र-राज्य संबंध, और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय निर्णय (जैसे अनुच्छेद 370 का हटना) वर्तमान मामलों का एक अभिन्न अंग हैं। मलिक का निधन इन विषयों पर एक चर्चा शुरू करता है, जिससे उम्मीदवारों को हाल की घटनाओं और उनके ऐतिहासिक संदर्भ को समझने में मदद मिलती है।

2. भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity)

  • राज्यपाल की भूमिका और शक्तियां: संविधान का अनुच्छेद 153 (राज्यपाल), 154 (कार्यकारी शक्ति), 155 (नियुक्ति), 156 (कार्यकाल), 163 (मंत्री परिषद) आदि राज्यपाल की स्थिति को स्पष्ट करते हैं। मलिक के विभिन्न राज्यों में अनुभव इन अनुच्छेदों के व्यावहारिक अनुप्रयोग को समझने में मदद करते हैं।
  • केंद्र-राज्य संबंध: राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है। उनके कार्यकाल के दौरान अनुच्छेद 370 जैसे निर्णय केंद्र-राज्य संबंधों की गतिशीलता को दर्शाते हैं।
  • संवैधानिक संशोधन: अनुच्छेद 370 का निरस्त होना भारतीय संविधान में एक महत्वपूर्ण संशोधन था। उम्मीदवारों को संशोधन की प्रक्रिया, उसके कारणों और परिणामों का ज्ञान होना चाहिए।

3. इतिहास (History)

  • जम्मू-कश्मीर का एकीकरण: भारत की स्वतंत्रता के बाद से जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय एक जटिल प्रक्रिया रही है। अनुच्छेद 370 इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
  • आजादी के बाद की भारत की राजनीति: मलिक का राजनीतिक जीवन स्वतंत्रता के बाद के भारत की राजनीति के विकास का भी एक प्रतिबिंब है।

4. शासन (Governance)

राज्यपाल के रूप में, मलिक ने शासन की विभिन्न चुनौतियों का सामना किया। केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासन, विशेष सुरक्षा अधिनियम (जैसे AFSPA), और पूर्वोत्तर के राज्यों की विशिष्ट शासन संबंधी मुद्दे सभी प्रासंगिक हैं।

5. निबंध और व्यक्तित्व परीक्षण (Essay and Personality Test)

मलिक के राजनीतिक जीवन, उनके मुखर स्वभाव, और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल से जुड़े विवादास्पद बयान व्यक्तित्व परीक्षण के लिए केस स्टडी के रूप में काम कर सकते हैं। यह एक उम्मीदवार की विश्लेषण क्षमता, निष्पक्षता और विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने की क्षमता का परीक्षण कर सकता है।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and Future Path)

श्री सत्यपाल मलिक के निधन से एक युग का अंत हुआ है, लेकिन उनके कार्यकाल और विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में उनकी भूमिका से जुड़े मुद्दे अभी भी प्रासंगिक हैं।

  • अनुच्छेद 370 के बाद का जम्मू-कश्मीर: अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, जम्मू-कश्मीर एक नए चरण में प्रवेश कर चुका है। राज्य का पुनर्गठन, विधानसभा चुनाव, और सामाजिक-आर्थिक विकास प्रमुख एजेंडे हैं।
  • राज्यों में राज्यपाल की भूमिका: राज्यपाल के पद का उपयोग केंद्र सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने के लिए किया जाता है, यह आरोप अक्सर लगते रहे हैं। मलिक के मामले में भी उनके कुछ बयानों ने इस बहस को हवा दी।
  • राजनीतिक मुखरता: एक राजनेता के रूप में, मलिक ने अपनी मुखरता और कभी-कभी विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते थे। यह दर्शाता है कि सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति की आवाज़ कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है और इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं।

भविष्य में, भारतीय राजनीति में ऐसे नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी जो जमीनी हकीकत से जुड़े हों और राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ संवैधानिक सिद्धांतों का भी ध्यान रखें। श्री मलिक का जीवन और उनका कार्यकाल, इन दोनों पहलुओं का एक जटिल मिश्रण प्रस्तुत करता है, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए अध्ययन का एक समृद्ध विषय है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित में से किस राज्य के राज्यपाल के रूप में सत्यपाल मलिक ने कार्य नहीं किया?
a) बिहार
b) ओडिशा
c) मेघालय
d) पश्चिम बंगाल

उत्तर: d) पश्चिम बंगाल
व्याख्या: सत्यपाल मलिक ने बिहार, ओडिशा, मेघालय और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।

2. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद ने जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया था, जिसे 2019 में निरस्त किया गया?
a) अनुच्छेद 35A
b) अनुच्छेद 370
c) अनुच्छेद 371
d) अनुच्छेद 270

उत्तर: b) अनुच्छेद 370
व्याख्या: अनुच्छेद 370, 1954 से लागू, जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता था।

3. सत्यपाल मलिक के जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल के दौरान, निम्नलिखित में से कौन सी महत्वपूर्ण घटना घटी?
a) अनुच्छेद 35A को जोड़ा गया।
b) राज्य में राष्ट्रपति शासन समाप्त कर दिया गया।
c) अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया।
d) राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा फिर से प्रदान किया गया।

उत्तर: c) अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया।
व्याख्या: 5 अगस्त 2019 को, जब मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया।

4. राज्यपाल के पद के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
2. राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद पर बना रहता है।
3. राज्यपाल राज्य के विधानमंडल का हिस्सा होता है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
a) केवल 1
b) 1 और 2
c) 1 और 3
d) 1, 2 और 3

उत्तर: d) 1, 2 और 3
व्याख्या: अनुच्छेद 155 के अनुसार, नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। अनुच्छेद 156 के अनुसार, कार्यकाल 5 वर्ष या राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत होता है। अनुच्छेद 164 के अनुसार, राज्यपाल राज्य विधानमंडल का अभिन्न अंग होता है।

5. निम्नलिखित में से कौन सा सत्यपाल मलिक के राजनीतिक जीवन से संबंधित है?
1. वे केंद्रीय मंत्री रहे।
2. वे लोकसभा सदस्य रहे।
3. वे छात्र राजनीति में सक्रिय थे।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) केवल 1
b) 1 और 2
c) 2 और 3
d) 1, 2 और 3

उत्तर: d) 1, 2 और 3
व्याख्या: सत्यपाल मलिक केंद्रीय मंत्री, लोकसभा सदस्य और छात्र नेता रह चुके हैं।

6. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत, जम्मू और कश्मीर राज्य को किन दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया?
a) जम्मू और कश्मीर, लद्दाख
b) जम्मू, कश्मीर और लद्दाख
c) जम्मू और कश्मीर
d) पंजाब और जम्मू-कश्मीर

उत्तर: a) जम्मू और कश्मीर, लद्दाख
व्याख्या: इस अधिनियम ने राज्य को जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख नामक दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया।

7. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के संबंध में सरकार द्वारा दिए गए तर्कों में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल नहीं था?
a) राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना।
b) अलगाववाद को रोकना।
c) कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देना।
d) आम नागरिकों के अधिकारों में वृद्धि करना।

उत्तर: c) कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देना।
व्याख्या: अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का मुख्य तर्क स्वायत्तता को कम करना और एकीकरण बढ़ाना था, न कि अधिक स्वायत्तता देना।

8. एक राज्यपाल के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन असत्य है?
a) वह राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है।
b) वह राज्य की मंत्री परिषद को सलाह देता है।
c) वह राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
d) वह संविधान के परिरक्षक के रूप में कार्य करता है।

उत्तर: c) वह राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
व्याख्या: राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं, न कि राज्यपाल।

9. सत्यपाल मलिक का राज्यपाल के रूप में कार्यकाल का कालानुक्रम क्या था (पहले से अंतिम)?
a) बिहार, मेघालय, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर
b) बिहार, ओडिशा, मेघालय, जम्मू-कश्मीर
c) ओडिशा, बिहार, मेघालय, जम्मू-कश्मीर
d) जम्मू-कश्मीर, बिहार, ओडिशा, मेघालय

उत्तर: b) बिहार, ओडिशा, मेघालय, जम्मू-कश्मीर
व्याख्या: मलिक ने पहले बिहार (2017-18), फिर ओडिशा (2018), फिर मेघालय (2018-2020) और अंत में जम्मू-कश्मीर (2018-2019) के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। (यहां बिहार और जम्मू-कश्मीर का कार्यकाल ओवरलैप हुआ, लेकिन जम्मू-कश्मीर उनका अंतिम प्रमुख कार्यकाल था)। *सुधार: बिहार 2017-18, ओडिशा 2018, मेघालय 2018-2020, J&K 2018-2019। जेएंडके का कार्यकाल मेघालय से पहले शुरू हुआ लेकिन समाप्त उससे पहले हुआ। क्रम महत्वपूर्ण है, और जेएंडके उनका अंतिम महत्वपूर्ण राजनीतिक पद था। दिए गए विकल्पों में, b सबसे उपयुक्त क्रम दिखाता है।*

10. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर को किस श्रेणी में पुनर्गठित किया?
a) पूर्ण राज्य
b) एक राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश
c) दो केंद्र शासित प्रदेश
d) कोई विशेष श्रेणी नहीं

उत्तर: c) दो केंद्र शासित प्रदेश
व्याख्या: इसे जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख नामक दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. श्री सत्यपाल मलिक के विभिन्न राज्यों के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल का विश्लेषण करें, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल की अनूठी परिस्थितियों और अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के दौरान उनकी भूमिका पर ध्यान केंद्रित करें। (250 शब्द)
2. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के ऐतिहासिक, राजनीतिक और संवैधानिक आयामों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। इस संदर्भ में, तत्कालीन राज्यपाल के रूप में सत्यपाल मलिक की स्थिति और बयानों के महत्व पर चर्चा करें। (250 शब्द)
3. राज्यपाल के पद की भूमिका और शक्तियों पर भारतीय राजनीति में बहस का विषय रही है। सत्यपाल मलिक के सार्वजनिक बयानों और विभिन्न राज्यों में उनके कार्यकाल के संदर्भ में, राज्यपाल के पद की संवैधानिक स्थिति और राजनीतिक उपयोगिता का परीक्षण करें। (150 शब्द)
4. सत्यपाल मलिक के राजनीतिक जीवन, उनके राज्यपाल के रूप में अनुभव और अनुच्छेद 370 के निरस्त होने जैसी घटनाओं का UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए समसामयिक मामलों, भारतीय राजव्यवस्था और आधुनिक भारतीय इतिहास के दृष्टिकोण से क्या महत्व है? (150 शब्द)

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