भारत के अनेक हिस्सों में भारी बारिश: क्या हैं इसके कारण और UPSC के लिए क्या हैं चुनौतियाँ?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** देश का मौसम अप्रत्याशित रूप से करवट ले रहा है। उत्तर-पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों और पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारत के तटीय और आंतरिक हिस्सों तक, और पूर्वोत्तर राज्यों में भी अगले तीन से चार दिनों में भारी से अति भारी वर्षा की चेतावनी जारी की गई है। यह मौसमी बदलाव न केवल आम जनजीवन को प्रभावित कर रहा है, बल्कि कृषि, अवसंरचना, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, यह विषय सिर्फ एक समाचार से कहीं अधिक है; यह भूमंडल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, शासन और अर्थव्यवस्था जैसे विषयों की व्यापक समझ का एक ज्वलंत उदाहरण है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस मौसमी घटना के पीछे के वैज्ञानिक कारणों, इसके संभावित प्रभावों, विभिन्न क्षेत्रों पर इसके विशिष्ट असर, सरकार द्वारा किए जा रहे उपायों और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसकी समग्र प्रासंगिकता का एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
1. मौसमी बदलाव का वैज्ञानिक आधार: क्यों हो रही है इतनी बारिश?
अचानक और तीव्र वर्षा के पीछे कई मौसम विज्ञान संबंधी कारक एक साथ काम कर रहे हैं। इस घटना को समझने के लिए, हमें भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून प्रणाली और अन्य क्षेत्रीय वायुमंडलीय घटनाओं की जटिलता को समझना होगा।
a) सक्रिय मानसून ट्रफ (Active Monsoon Trough):
मानसून के दौरान, एक निम्न दबाव की रेखा, जिसे मानसून ट्रफ कहा जाता है, हिमालय की तलहटी के पास स्थित होती है। जब यह ट्रफ अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण की ओर खिसकता है, तो यह उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में भारी वर्षा को प्रेरित करता है। इसके विपरीत, जब यह उत्तर की ओर बढ़ता है, तो हिमालयी क्षेत्र में वर्षा होती है। वर्तमान स्थिति में, ट्रफ की स्थिति में सक्रियता और उसका विशेष संरेखण उत्तर-पश्चिम भारत में भारी वर्षा का कारण बन रहा है।
b) निम्न दबाव क्षेत्र और पश्चिमी विक्षोभ (Low-Pressure Systems and Western Disturbances):
कभी-कभी, बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में बनने वाले निम्न दबाव क्षेत्र, मानसून ट्रफ के साथ मिलकर अधिक तीव्र वर्षा प्रणालियाँ बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances), जो भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाली पश्चिमी हवाएँ हैं, सर्दियों में उत्तर भारत को प्रभावित करती हैं। हालांकि, मानसून के मौसम में भी, उनके अवशेष या मध्य-अक्षांश विक्षोभ (mid-latitude disturbances) कभी-कभी मानसून धाराओं के साथ मिल जाते हैं, जिससे अप्रत्याशित और तीव्र वर्षा की घटनाएँ हो सकती हैं, खासकर उत्तर-पश्चिम भारत में।
c) नमी का प्रचुर स्रोत (Abundant Moisture Source):
दक्षिण भारत में, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में, अरब सागर और हिंद महासागर से आने वाली मानसूनी हवाएँ अत्यधिक नमी लाती हैं। जब यह नमीयुक्त हवाएं तट से टकराती हैं या किसी निम्न दबाव प्रणाली से मिलती हैं, तो यह तीव्र संवहनी (convective) वर्षा या लंबे समय तक चलने वाली बारिश का कारण बनती है।
d) पूर्वोत्तर में विशिष्ट स्थितियाँ (Specific Conditions in Northeast):
पूर्वोत्तर भारत में, मानसून धाराएं अक्सर ओरोग्राफिक (orographic) वर्षा का अनुभव करती हैं, जहाँ हवा पहाड़ से टकराकर ऊपर उठती है, ठंडी होती है और बारिश करती है। इसके अलावा, बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमी भरी हवाओं का संगम और स्थानीय स्थलाकृति (topography) भी यहाँ भारी वर्षा में योगदान करते हैं।
e) जलवायु परिवर्तन का प्रभाव (Impact of Climate Change):
वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन मौसमी घटनाओं को और अधिक चरम बना रहा है। वायुमंडल में अधिक गर्मी का मतलब है कि यह अधिक नमी धारण कर सकता है, जिससे वर्षा की घटनाएँ, जब वे होती हैं, तो अधिक तीव्र हो सकती हैं। यह अप्रत्याशित और भारी वर्षा की बढ़ती आवृत्ति में भी योगदान दे सकता है।
“जलवायु परिवर्तन हमें मौसम के मिजाज में अप्रत्याशित बदलाव दे रहा है। जो बारिश पहले सामान्य थी, वह अब बाढ़ ला सकती है।” – मौसम वैज्ञानिक।
2. भारत के विभिन्न हिस्सों पर विशिष्ट प्रभाव: कहाँ और कैसे?
भारी वर्षा का प्रभाव पूरे देश में एक समान नहीं होगा। विभिन्न भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ इन प्रभावों की गंभीरता को निर्धारित करेंगी।
a) उत्तर-पश्चिम भारत (जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान):
- प्रभाव: अचानक बाढ़, विशेष रूप से नदियों और उनकी सहायक नदियों में। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन और कीचड़ धंसने का खतरा। निचले इलाकों में जल-जमाव। शहरी क्षेत्रों में जल निकासी व्यवस्था पर अत्यधिक दबाव। कृषि भूमि में जलभराव से फसलें खराब हो सकती हैं।
- UPSC प्रासंगिकता: आपदा प्रबंधन (NDRF, SDRF की भूमिका), भूस्खलन के लिए भेद्यता का आकलन, कृषि पर प्रभाव (रबी और खरीफ फसलें), शहरी नियोजन (जल निकासी), और पहाड़ी राज्यों की अर्थव्यवस्था पर असर।
b) दक्षिण भारत (जैसे केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना):
- प्रभाव: तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा से निचले इलाकों में जलभराव और संभवतः तटीय बाढ़। पश्चिमी घाट जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा। नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में जल स्तर का बढ़ना, जिससे निचले इलाकों के बांधों पर दबाव बढ़ सकता है। शहरीकृत क्षेत्रों में जल निकासी की समस्या। कृषि, विशेषकर धान और अन्य खरीफ फसलों पर प्रभाव।
- UPSC प्रासंगिकता: तटीय क्षेत्र प्रबंधन, जल संसाधन प्रबंधन (बांध संचालन, नदी जोड़ो परियोजनाएं), कृषि पद्धतियाँ, शहरी बाढ़, और दक्षिणी राज्यों की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव।
c) पूर्वोत्तर भारत (जैसे असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा):
- प्रभाव: इन क्षेत्रों में भारी वर्षा पहले से ही बाढ़ और भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील है। ब्रह्मपुत्र और बराक जैसी प्रमुख नदियाँ उफान पर आ सकती हैं, जिससे बड़े पैमाने पर बाढ़ आ सकती है। मेघालय और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भूस्खलन का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है। कनेक्टिविटी प्रभावित हो सकती है, जिससे राहत और बचाव कार्य में बाधा आ सकती है।
- UPSC प्रासंगिकता: नदी प्रबंधन (विशेषकर अंतर-राज्यीय नदियाँ), भूस्खलन भेद्यता, अवसंरचना का क्षरण, कनेक्टिविटी और पहाड़ी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की विशिष्ट चुनौतियाँ।
यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये क्षेत्र भौगोलिक रूप से जुड़े हुए हैं और कभी-कभी इन क्षेत्रों में एक साथ होने वाली वर्षा पूरे उपमहाद्वीप की जल व्यवस्था को प्रभावित करती है।
3. भारी वर्षा के संभावित प्रभाव: एक बहुआयामी विश्लेषण
भारी वर्षा केवल गीला करने से कहीं अधिक है; इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं:
a) मानव जीवन और संपत्ति का नुकसान:
- बाढ़, भूस्खलन, अचानक आने वाली बाढ़ (flash floods) और बिजली गिरने जैसी घटनाओं से लोगों की जान जा सकती है।
- घर, पुल, सड़कें, और अन्य बुनियादी ढाँचे क्षतिग्रस्त या नष्ट हो सकते हैं।
- जानवरों का जीवन भी खतरे में पड़ता है।
b) कृषि पर प्रभाव:
- फसलों का जलभराव से सड़ जाना।
- बीज बोने का समय बिगड़ना (sowing window)।
- कटाई के समय वर्षा से उपज की गुणवत्ता खराब होना।
- मिट्टी का कटाव (soil erosion)।
- पशुधन के लिए चारे की उपलब्धता में कमी।
c) अवसंरचना को क्षति:
- सड़कें, रेलवे लाइनें, पुल बह सकते हैं या क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, जिससे परिवहन और आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है।
- बिजली सबस्टेशन और ट्रांसमिशन लाइनें प्रभावित हो सकती हैं, जिससे बिजली की आपूर्ति बाधित हो सकती है।
- संचार टावर और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को नुकसान हो सकता है।
d) स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ:
- बाढ़ के पानी से जल-जनित रोगों (जैसे हैजा, टाइफाइड, डायरिया) का खतरा बढ़ जाता है।
- मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों (जैसे मलेरिया, डेंगू) के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बन सकती हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जैसे स्ट्रेस और एंग्जायटी।
e) अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- कृषि उत्पादन में कमी से खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
- बुनियादी ढाँचे की मरम्मत और पुनर्निर्माण पर भारी सरकारी व्यय।
- पर्यटन और अन्य व्यावसायिक गतिविधियाँ बाधित हो सकती हैं।
- लंबे समय में, बार-बार होने वाली ऐसी घटनाएँ आर्थिक विकास को धीमा कर सकती हैं।
f) पर्यावरण पर प्रभाव:
- नदियों में गाद (silt) का बढ़ना।
- जल निकायों का प्रदूषण।
- वनस्पतियों और वन्यजीवों का आवास नष्ट होना।
4. तैयारी और प्रतिक्रिया: सरकार और नागरिक की भूमिका
इस तरह की मौसमी आपदाओं का सामना करने के लिए एक बहु-स्तरीय तैयारी और प्रतिक्रिया तंत्र की आवश्यकता होती है।
a) पूर्व-चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems):
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) जैसी एजेंसियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे उपग्रह डेटा, रडार और अन्य मौसम संबंधी उपकरणों का उपयोग करके पूर्वानुमान जारी करते हैं। इन चेतावनियों को प्रभावी ढंग से जमीनी स्तर तक पहुँचाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
b) आपदा प्रबंधन ढाँचा:
भारत में एक सुस्थापित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन एजेंसियाँ हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) को बचाव और राहत कार्यों के लिए तैनात किया जाता है।
c) अवसंरचना की मजबूती:
बाढ़-रोधी दीवारों का निर्माण, जल निकासी प्रणालियों में सुधार, भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में स्थिरिकरण के उपाय, और मजबूत पुलों का निर्माण जैसी अवसंरचनात्मक परियोजनाएँ दीर्घकालिक समाधान का हिस्सा हैं।
d) जन जागरूकता और क्षमता निर्माण:
नागरिकों को संभावित खतरों, सुरक्षित स्थानों पर जाने के तरीके, और आपातकालीन किट तैयार रखने के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। स्थानीय समुदायों को आपदा प्रतिक्रिया में प्रशिक्षित करना भी महत्वपूर्ण है।
e) अंतर-एजेंसी समन्वय (Inter-Agency Coordination):
गृह मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय जैसे विभिन्न सरकारी विभागों के बीच प्रभावी समन्वय महत्वपूर्ण है।
“तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति – आपदा प्रबंधन के ये तीन स्तंभ सुनिश्चित करते हैं कि हम चुनौतियों का सामना कर सकें और उनसे उबर सकें।” – NDMA दिशानिर्देश।
5. UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एक व्यापक मार्गदर्शिका
यह मौसमी घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए महत्वपूर्ण है:
a) प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
- भूगोल: मानसून, पश्चिमी विक्षोभ, जलवायु कारक, भारतीय नदियाँ, भूस्खलन प्रवण क्षेत्र।
- पर्यावरण: जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव, जैव विविधता।
- आधुनिक इतिहास: ऐतिहासिक बाढ़ या सूखा जिसने अर्थव्यवस्था या समाज को प्रभावित किया हो।
- अर्थव्यवस्था: कृषि पर प्रभाव, मुद्रास्फीति, बुनियादी ढाँचे का नुकसान।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी: मौसम पूर्वानुमान तकनीक, उपग्रह, रडार।
b) मुख्य परीक्षा (Mains):
यह विषय जीएस-I (भूगोल), जीएस-II (शासन, सरकार की नीतियाँ), जीएस-III (पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी) और निबंध के लिए प्रासंगिक है।
- GS-I (भूगोल): भारतीय मानसून की संरचना, वर्षा पैटर्न, भूस्खलन और बाढ़ की भौगोलिक स्थितियाँ।
- GS-II (शासन): आपदा प्रबंधन के लिए भारत का ढाँचा, NDMA, NDRF की भूमिका, विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया।
- GS-III (पर्यावरण): जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाएँ, पर्यावरण पर बाढ़ और भूस्खलन के प्रभाव, सतत विकास और जलवायु अनुकूलन।
- GS-III (अर्थव्यवस्था): कृषि पर मौसमी अनिश्चितताओं का प्रभाव, अवसंरचना का महत्व, आपदाओं के आर्थिक लागत, बीमा क्षेत्र।
- GS-III (आपदा प्रबंधन): भारत में आपदा प्रबंधन की चुनौतियाँ और अवसर, पूर्व-चेतावनी प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण, जोखिम न्यूनीकरण (Risk Mitigation)।
- निबंध: “जलवायु परिवर्तन और उसके परिणाम,” “भारत में आपदा प्रबंधन: चुनौतियाँ और आगे की राह,” “कृषि और भारतीय अर्थव्यवस्था पर मौसम का प्रभाव।”
c) रणनीति:
- भूगोल: मानचित्रों के साथ क्षेत्रों, नदियों और पहाड़ी श्रृंखलाओं की पहचान करें।
- नीति: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) जैसे सरकारी दस्तावेज़ों का अध्ययन करें।
- विश्लेषण: केवल घटनाओं का वर्णन न करें, बल्कि उनके कारणों, प्रभावों और समाधानों का विश्लेषण करें। विभिन्न हितधारकों (सरकार, नागरिक, अंतर्राष्ट्रीय संगठन) की भूमिका पर प्रकाश डालें।
- डेटा: प्रासंगिक सरकारी रिपोर्टों, IMD आँकड़ों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (जैसे IPCC) की रिपोर्टों से डेटा का उपयोग करें।
- केस स्टडी: पिछली बड़ी बाढ़ों या भूस्खलनों (जैसे केदारनाथ, चेन्नई बाढ़) का अध्ययन करें ताकि सीखा जा सके।
6. आगे की राह: लचीलापन और अनुकूलन (Resilience and Adaptation)
केवल प्रतिक्रिया करना पर्याप्त नहीं है; हमें भविष्य के लिए तैयार रहना होगा।
- जलवायु अनुकूलन (Climate Adaptation): ऐसी फसलें विकसित करना जो अत्यधिक वर्षा या सूखे का सामना कर सकें, जल-संचयन संरचनाओं में सुधार, और तटीय सुरक्षा उपायों को बढ़ाना।
- बुनियादी ढाँचे का पुनर्मूल्यांकन: यह सुनिश्चित करना कि अवसंरचनाएँ न केवल वर्तमान मौसम पैटर्न के लिए, बल्कि भविष्य में चरम घटनाओं के लिए भी डिज़ाइन की गई हों।
- अंतःविषय दृष्टिकोण (Interdisciplinary Approach): भूविज्ञान, जल विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और इंजीनियरिंग को एकीकृत करके समाधान खोजना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जलवायु परिवर्तन से निपटने और आपदा प्रतिक्रिया में ज्ञान और संसाधनों का आदान-प्रदान।
निष्कर्ष
भारत के अनेक हिस्सों में भारी वर्षा की वर्तमान घटना हमें याद दिलाती है कि हम प्रकृति की शक्ति से कितने जुड़े हुए हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह विषय न केवल एक समसामयिक घटना है, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों को समझने का एक अवसर भी है। भूमंडलीय, स्थानीय, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं को एकीकृत करके, हम न केवल इन चुनौतियों का सामना कर सकते हैं, बल्कि एक अधिक लचीला और टिकाऊ भविष्य का निर्माण भी कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए, इस विषय को एक केस स्टडी के रूप में लें जो दिखाता है कि कैसे विभिन्न सरकारी विभाग और एजेंसियाँ मिलकर काम करती हैं (या उन्हें करना चाहिए) ताकि देश के नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित किया जा सके।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. प्रश्न: भारतीय मानसून को सक्रिय करने में ‘मानसून ट्रफ’ की क्या भूमिका है?
(a) यह भूमध्य सागर से आने वाली ठंडी हवाओं का मार्ग है।
(b) यह हिमालय की तलहटी के पास स्थित एक निम्न दबाव की रेखा है जो वर्षा पैटर्न को प्रभावित करती है।
(c) यह बंगाल की खाड़ी में बनने वाला एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात है।
(d) यह दक्षिण भारत में अरब सागर से नमी लाने वाली हवाएँ हैं।
उत्तर: (b)
व्याख्या: मानसून ट्रफ एक निम्न दबाव का क्षेत्र है जो हिमालय के समानांतर चलता है। इसकी स्थिति और तीव्रता भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा के वितरण को निर्धारित करती है।
2. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी घटना उत्तर-पश्चिम भारत में अप्रत्याशित और तीव्र वर्षा का कारण बन सकती है, खासकर मानसून के मौसम में?
(a) केवल दक्षिण-पश्चिम मानसून धाराओं का प्रभाव।
(b) केवल बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दबाव क्षेत्र।
(c) मानसून ट्रफ का सक्रिय होना और पश्चिमी विक्षोभ के अवशेषों का मेल।
(d) अरब सागर में बनने वाले चक्रवातों का प्रभाव।
उत्तर: (c)
व्याख्या: मानसून ट्रफ की सक्रियता और पश्चिमी विक्षोभ (जो आमतौर पर सर्दियों में होते हैं, लेकिन मानसून में भी प्रभाव डाल सकते हैं) का मेल उत्तर-पश्चिम भारत में अप्रत्याशित वर्षा का कारण बन सकता है।
3. प्रश्न: ‘ओरोग्राफिक वर्षा’ (Orographic Rainfall) का सबसे अच्छा उदाहरण कहाँ देखा जा सकता है?
(a) थार मरुस्थल
(b) पूर्वी घाट
(c) मेघालय का पठार
(d) दक्कन का पठार
उत्तर: (c)
व्याख्या: मेघालय का पठार, जहाँ हवाएँ खासी और गारो पहाड़ियों से टकराकर ऊपर उठती हैं और भारी वर्षा करती हैं, ओरोग्राफिक वर्षा का एक प्रमुख उदाहरण है।
4. प्रश्न: भारी वर्षा के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य नहीं है?
(a) यह कृषि उत्पादन को बढ़ा सकता है यदि वर्षा सही समय पर हो और अत्यधिक न हो।
(b) यह जल-जनित रोगों जैसे हैजा के प्रसार का कारण बन सकता है।
(c) यह भूस्खलन और अचानक बाढ़ का जोखिम बढ़ाता है।
(d) यह शहरी क्षेत्रों में जल निकासी प्रणालियों को कम प्रभावित करता है।
उत्तर: (d)
व्याख्या: भारी वर्षा अक्सर शहरी क्षेत्रों में जल निकासी प्रणालियों पर अत्यधिक दबाव डालती है, जिससे जल-जमाव और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।
5. प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का गठन किस अधिनियम के तहत किया गया है?
(a) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
(b) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
(c) भारतीय दंड संहिता, 1860
(d) जल प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम, 1974
उत्तर: (b)
व्याख्या: NDMA का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत किया गया था।
6. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा भूस्खलन के लिए अधिक संवेदनशील क्षेत्र है?
(a) थार मरुस्थल के शुष्क क्षेत्र
(b) अरावली रेंज के शिवालिक क्षेत्र
(c) पश्चिमी घाट और हिमालयी क्षेत्र
(d) पूर्वी घाट के तटीय मैदान
उत्तर: (c)
व्याख्या: तीव्र ढलान, भारी वर्षा और भूगर्भीय अस्थिरता के कारण पश्चिमी घाट और हिमालयी क्षेत्र भूस्खलन के लिए अत्यधिक संवेदनशील हैं।
7. प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के कारण, ऐसी आशंका जताई जाती है कि भविष्य में:
(a) वर्षा की घटनाएँ कम तीव्र होंगी।
(b) मौसमी घटनाएँ अधिक चरम और अप्रत्याशित होंगी।
(c) मानसून की भविष्यवाणी अधिक आसान हो जाएगी।
(d) भूस्खलन का खतरा कम हो जाएगा।
उत्तर: (b)
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन के कारण, वायुमंडल अधिक नमी धारण कर सकता है, जिससे वर्षा की घटनाएँ अधिक तीव्र हो सकती हैं, और अन्य मौसमी घटनाएँ अधिक चरम और अप्रत्याशित हो सकती हैं।
8. प्रश्न: भारत में भारी वर्षा से जुड़े जल-जनित रोगों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. बाढ़ का दूषित पानी पीने से हैजा और टाइफाइड फैल सकता है।
2. जल-जमाव से मच्छरों के प्रजनन को बढ़ावा मिलता है, जिससे मलेरिया और डेंगू का खतरा बढ़ता है।
3. उच्च आर्द्रता और गर्मी से फंगल संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: भारी वर्षा से जल-जमाव और जल निकायों का दूषित होना आम बात है, जिससे जल-जनित और मच्छर जनित दोनों बीमारियाँ बढ़ जाती हैं। हालांकि, उच्च आर्द्रता और गर्मी फंगल संक्रमण के खतरे को कम नहीं करती, बल्कि बढ़ा सकती है।
9. प्रश्न: ‘आपदा प्रबंधन के तीन स्तंभ’ में निम्नलिखित में से क्या शामिल नहीं है?
(a) तैयारी (Preparedness)
(b) प्रतिक्रिया (Response)
(c) पुनर्प्राप्ति (Recovery)
(d) प्रतिकार (Retaliation)
उत्तर: (d)
व्याख्या: आपदा प्रबंधन के मुख्य स्तंभ तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति हैं। प्रतिकार (Retaliation) इस संदर्भ में प्रासंगिक नहीं है।
10. प्रश्न: ‘मानसूनी ट्रफ’ (Monsoon Trough) का दक्षिण की ओर खिसकना आमतौर पर किस क्षेत्र में भारी वर्षा से जुड़ा होता है?
(a) पूर्वोत्तर भारत
(b) दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्र
(c) उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र
(d) पश्चिमी घाट
उत्तर: (c)
व्याख्या: जब मानसून ट्रफ सामान्य स्थिति से दक्षिण की ओर खिसकता है, तो यह उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में भारी वर्षा को प्रेरित करता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. प्रश्न: भारत के विभिन्न क्षेत्रों (उत्तर-पश्चिम, दक्षिण और पूर्वोत्तर) में भारी वर्षा की वर्तमान घटना के पीछे के मौसम विज्ञान संबंधी कारकों का विश्लेषण करें। इसके मानव जीवन, कृषि और अवसंरचना पर पड़ने वाले बहुआयामी प्रभावों की विवेचना करें और इन चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)
2. प्रश्न: जलवायु परिवर्तन कैसे भारत में चरम मौसमी घटनाओं (जैसे भारी वर्षा, बाढ़, भूस्खलन) की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा रहा है? राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर अनुकूलन (Adaptation) और शमन (Mitigation) रणनीतियों की चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
3. प्रश्न: भारत में आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिए ‘तैयारी’ (Preparedness) और ‘जोखिम न्यूनीकरण’ (Risk Reduction) के महत्व पर प्रकाश डालें। भारी वर्षा और भूस्खलन जैसी घटनाओं से निपटने के लिए अवसंरचनात्मक और गैर-अवसंरचनात्मक उपायों के उदाहरण दें। (150 शब्द, 10 अंक)
4. प्रश्न: भारी वर्षा से उत्पन्न बाढ़ की स्थिति में, विभिन्न सरकारी एजेंसियों (जैसे IMD, NDRF, SDRF, सेना, स्थानीय प्रशासन) के बीच प्रभावी समन्वय की क्या आवश्यकता है? पिछली घटनाओं से सीखे गए पाठों के आधार पर, आप इस समन्वय को और कैसे बेहतर बना सकते हैं? (150 शब्द, 10 अंक)