भारतीय राजव्यवस्था की अचूक तैयारी: आज की चुनौती स्वीकारें!
नमस्ते! भारतीय लोकतंत्र के इस मजबूत आधार स्तंभ, यानी संविधान और राजव्यवस्था, को समझना हर प्रतियोगी परीक्षा के लिए अनिवार्य है। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं 25 चुनिंदा प्रश्न, जो आपकी वैचारिक स्पष्टता को परखेंगे और आपकी तैयारी को एक नई दिशा देंगे। आइए, देखें आप इन सवालों में कितना माहिर हैं!
भारतीय राजव्यवस्था और संविधान अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ शब्द किस संशोधन द्वारा जोड़ा गया?
- 42वां संशोधन अधिनियम, 1976
- 44वां संशोधन अधिनियम, 1978
- 52वां संशोधन अधिनियम, 1985
- 61वां संशोधन अधिनियम, 1989
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’ (Secular) और ‘अखंडता’ (Integrity) शब्दों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था। यह भारत को एक समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंड गणराज्य बनाने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था।
- संदर्भ और विस्तार: यह संशोधन इंदिरा गांधी सरकार के दौरान किया गया था और इसे ‘लघु संविधान’ भी कहा जाता है। इसने प्रस्तावना के स्वरूप को काफी हद तक बदल दिया, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती मामले (1973) में यह व्यवस्था दी थी कि प्रस्तावना संविधान का भाग है और इसमें संशोधन किया जा सकता है, लेकिन इसकी मूल संरचना को नहीं बदला जा सकता।
- गलत विकल्प: 44वां संशोधन (1978) संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर विधिक अधिकार बनाने और कुछ अन्य प्रावधानों से संबंधित था। 52वां संशोधन (1985) दलबदल विरोधी कानून (10वीं अनुसूची) से संबंधित है। 61वां संशोधन (1989) मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष करने से संबंधित है।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सा अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है?
- विधि के समक्ष समानता (Article 14)
- धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध (Article 15)
- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा (Article 21)
- भारत के किसी भी भाग में आने-जाने की स्वतंत्रता (Article 19(1)(d))
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 15, जो धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के विरुद्ध विभेद के प्रतिषेध की बात करता है, केवल भारतीय नागरिकों के लिए उपलब्ध है।
- संदर्भ और विस्तार: यह मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ इन आधारों पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। विदेशी नागरिक इस अधिकार के तहत सुरक्षा प्राप्त नहीं करते हैं।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों (नागरिकों और विदेशियों दोनों) के लिए उपलब्ध हैं। अनुच्छेद 19(1)(d) (भारत के किसी भी भाग में आने-जाने की स्वतंत्रता) भी केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है, लेकिन प्रश्न में विकल्प (b) एक अधिक विशिष्ट और विशिष्ट अधिकार है जो केवल नागरिकों के लिए है और यह अन्य विकल्पों की तुलना में ‘केवल’ वाले हिस्से को बेहतर ढंग से दर्शाता है, हालांकि 19(1)(d) भी केवल नागरिकों के लिए है। प्रश्न की भाषा के अनुसार, विभेद का प्रतिषेध (Article 15) केवल नागरिकों के लिए है। (ध्यान दें: Article 19 के अन्य उपबंध भी नागरिकों के लिए हैं)।
प्रश्न 3: भारत के राष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए चुनाव कितनी अवधि के भीतर अनिवार्य रूप से होना चाहिए?
- 6 महीने
- 1 वर्ष
- 2 वर्ष
- तत्काल
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संविधान के अनुच्छेद 62(2) के अनुसार, राष्ट्रपति की मृत्यु, त्यागपत्र या पद से हटाए जाने (महाभियोग) के कारण हुई पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने की तारीख से यथासंभव शीघ्र, किंतु 6 महीने की अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: इस अवधि के भीतर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को अपना पद ग्रहण करना होता है। यदि उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहे हैं, तो भी 6 महीने के भीतर नए राष्ट्रपति का चुनाव कराना अनिवार्य है।
- गलत विकल्प: 1 वर्ष या 2 वर्ष की कोई ऐसी अनिवार्य अवधि नहीं है। ‘तत्काल’ चुनाव का प्रावधान नहीं है, बल्कि ‘यथासंभव शीघ्र’ का उल्लेख है, जिसकी ऊपरी सीमा 6 महीने है।
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सी संसदीय समिति भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्टों की जांच करती है?
- लोक लेखा समिति
- प्राक्कलन समिति
- सरकारी उपक्रम समिति
- सभी उपर्युक्त
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee – PAC) भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्टों, विशेष रूप से विनियोग लेखा और वित्त लेखा पर विस्तार से जांच करती है। CAG द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टें संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के समक्ष रखी जाती हैं, जिन्हें बाद में लोक लेखा समिति को संदर्भित किया जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: PAC का मुख्य कार्य यह देखना है कि सार्वजनिक धन का व्यय उसी सीमा तक किया गया है जिस सीमा तक वह विधानमंडल द्वारा विनियोग अधिनियमों के अधीन विनियोग के लिए प्रदान किया गया था, और यह कि व्यय उस उद्देश्य के लिए किया गया था। यह समिति ‘जनता की गाढ़ी कमाई’ के रक्षक के रूप में जानी जाती है।
- गलत विकल्प: प्राक्कलन समिति (Estimates Committee) सरकारी व्यय की मितव्ययिता और कार्यक्षमता की जांच करती है, न कि CAG की रिपोर्टों की। सरकारी उपक्रम समिति (Committee on Public Undertakings – COPU) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कामकाज की जांच करती है।
प्रश्न 5: संविधान के किस अनुच्छेद के तहत राज्य के नीति-निदेशक तत्वों (DPSP) को न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं कराया जा सकता?
- अनुच्छेद 37
- अनुच्छेद 38
- अनुच्छेद 39
- अनुच्छेद 40
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संविधान का अनुच्छेद 37 स्पष्ट रूप से कहता है कि राज्य के नीति-निदेशक तत्व ‘वाद योग्य नहीं होंगे’ (shall not be enforceable by any court)।
- संदर्भ और विस्तार: हालांकि, यह अनुच्छेद यह भी कहता है कि ये सिद्धांत देश के शासन में मूलभूत हैं और राज्य का यह कर्तव्य होगा कि वह कानून बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करे। ये निर्देशक तत्व कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन्हें मौलिक अधिकारों की तरह सीधे न्यायालयों द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 38 राज्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए लोक कल्याण को बढ़ावा देने का निर्देश देता है। अनुच्छेद 39 कुछ विशिष्ट नीति-निदेशक सिद्धांतों की बात करता है। अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों के संगठन का निर्देश देता है। ये सभी डीपीएसपी के प्रावधान हैं, लेकिन अनुच्छेद 37 वह अनुच्छेद है जो उनकी गैर-प्रवर्तनीयता को बताता है।
प्रश्न 6: भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में ‘संघ सूची’ (Union List) में कितने विषय हैं?
- 97
- 66
- 47
- 100
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची तीन सूचियों (संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची) का प्रावधान करती है, जो विधायी शक्तियों के वितरण को दर्शाती हैं। वर्तमान में संघ सूची में 100 विषय हैं (मूलतः 97 थे, लेकिन संशोधनों के बाद संख्या बढ़ी है)। (नोट: कुछ स्रोत 100 बताते हैं, जबकि आधिकारिक तौर पर 97 मूल थे, और कुछ महत्वपूर्ण विषय जैसे GST से संबंधित मामले बाद में जोड़े गए हैं, जिससे संख्या बदल गई है। 100 सबसे हालिया स्वीकृत संख्या है)। यदि प्रश्न मूल संख्या पूछता तो 97 सही होता। लेकिन यदि वर्तमान संख्या पूछता है तो 100। परीक्षा के संदर्भ में, दोनों संख्याओं पर विचार किया जा सकता है, लेकिन अक्सर मूल संख्या पूछी जाती है या वर्तमान स्थिति। हाल के वर्षों में, 100 को अधिक स्वीकार्य माना गया है। (यह एक सामान्य भ्रमित करने वाला प्रश्न हो सकता है। यदि मूलतः 97 थे, और अब 100 हैं, तो प्रश्न की बारीकी महत्वपूर्ण है। हम 100 मानकर चल रहे हैं)।
- संदर्भ और विस्तार: संघ सूची में वे विषय शामिल हैं जिन पर संसद कानून बना सकती है। जैसे रक्षा, विदेश मामले, रेलवे, मुद्रा, नागरिकता आदि। राज्य सूची में राज्य विधानमंडल कानून बनाते हैं, और समवर्ती सूची में संसद और राज्य विधानमंडल दोनों कानून बना सकते हैं, लेकिन टकराव की स्थिति में संसद का कानून मान्य होता है।
- गलत विकल्प: 66 मूल रूप से राज्य सूची के विषय थे (अब 61 हैं)। 47 मूल रूप से समवर्ती सूची के विषय थे (अब 52 हैं)। 100 वर्तमान में संघ सूची के विषयों की संख्या है, जो मूल 97 से बढ़कर हुई है। (सटीकता के लिए: 2022 तक, संघ सूची में 100 विषय हैं, राज्य सूची में 61 और समवर्ती सूची में 52।)
प्रश्न 7: भारत में ‘नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक’ (CAG) का पद निम्नलिखित में से किसके द्वारा सृजित किया गया था?
- संसद द्वारा एक अधिनियम द्वारा
- संविधान द्वारा
- राष्ट्रपति के एक कार्यकारी आदेश द्वारा
- उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) एक संवैधानिक पद है, जिसका प्रावधान भारतीय संविधान के भाग V, अध्याय V में अनुच्छेद 148 के तहत किया गया है।
- संदर्भ और विस्तार: CAG भारत सरकार और राज्य सरकारों के खातों का लेखा-परीक्षण करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक धन का व्यय कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से हो। यह भारत सरकार का मुख्य लेखा परीक्षक है और संसद के प्रति जवाबदेह होता है।
- गलत विकल्प: यह पद किसी साधारण संसदीय अधिनियम या कार्यकारी आदेश से सृजित नहीं हुआ है, बल्कि सीधे संविधान में इसका उल्लेख है।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता भारतीय संविधान को ‘अन्यायपूर्ण’ (Quasi-federal) बनाती है?
- लिखित संविधान
- एकल नागरिकता
- सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श क्षेत्राधिकार
- संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन (सातवीं अनुसूची में सूचियों के माध्यम से) भारतीय संविधान की संघीय (Federal) प्रकृति का आधार है। हालाँकि, कुछ ऐसे तत्व भी हैं जो इसे पूर्ण संघीय प्रणाली से अलग करते हैं, जैसे कि मजबूत केंद्र, एकल नागरिकता, एकल न्यायपालिका, एकल निर्वाचन आयोग आदि। इन विशेषताओं के कारण, भारतीय संविधान को अक्सर ‘अर्ध-संघीय’ (Quasi-federal) या ‘संघ की ओर झुका हुआ एकात्मक’ (Unitary with a federal bias) कहा जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: एक पूर्ण संघीय प्रणाली में, राज्यों को केंद्र के समान दर्जा प्राप्त होता है और अक्सर राज्यों के पास केंद्र से अधिक स्वायत्तता होती है। भारत में, केंद्र सरकार की शक्तियां राज्यों की तुलना में अधिक हैं, जो इसे ‘अर्ध-संघीय’ बनाती है।
- गलत विकल्प: लिखित संविधान और सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श क्षेत्राधिकार (अनुच्छेद 143) संघीय और एकात्मक दोनों प्रणालियों में पाए जा सकते हैं। एकल नागरिकता (अनुच्छेद 5) और एकल न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय) एकात्मक विशेषताएँ हैं, जो भारतीय संविधान को पूरी तरह से संघीय होने से रोकती हैं। लेकिन शक्तियों का विभाजन ही वह मुख्य विशेषता है जो इसे संघीय बनाती है, जबकि अन्य एकात्मक तत्व इसे ‘अर्ध-संघीय’ बनाते हैं। प्रश्न ‘अन्यायपूर्ण’ (Quasi-federal) का कारण पूछ रहा है, जो शक्ति विभाजन के कारण संघीय होने के बावजूद, केंद्र की प्रधानता से आता है। यहाँ ‘संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन’ वह तत्व है जो इसे संघीय ढांचे में लाता है, और फिर उस ढांचे के भीतर अन्य एकात्मक तत्व इसे ‘अर्ध-संघीय’ बनाते हैं। यह एक जटिल प्रश्न है; ‘अर्ध-संघीय’ शब्द का प्रयोग अक्सर केंद्र की ओर झुकाव के कारण होता है। इसलिए, शक्तियों का विभाजन (जो संघीय प्रकृति देता है) वह आधार है जिस पर ‘अर्ध-संघीय’ होने का तर्क टिका है।
प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सा मौलिक अधिकार केवल नागरिकों को उपलब्ध है?
- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21)
- भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15)
- कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 15, जो धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव के प्रतिषेध की गारंटी देता है, केवल भारतीय नागरिकों के लिए है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अधिकार नागरिकों को राज्य के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है कि राज्य उनके साथ इन आधारों पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। विदेशी नागरिक इस सुरक्षा के दायरे में नहीं आते हैं।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) सभी व्यक्तियों (नागरिकों और विदेशियों) के लिए उपलब्ध हैं। अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) भी सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध है, न कि केवल नागरिकों के लिए।
प्रश्न 10: भारतीय संविधान में ‘राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांत’ (DPSP) किस देश के संविधान से प्रेरित हैं?
- ब्रिटेन
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- आयरलैंड
- कनाडा
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान के भाग IV में उल्लिखित राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांत आयरलैंड के संविधान से प्रेरित हैं।
- संदर्भ और विस्तार: आयरलैंड के संविधान में इन सिद्धांतों को ‘निर्देश’ (Directives) कहा जाता है। ये सिद्धांत भारतीय संविधान निर्माताओं का उद्देश्य एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था, जिसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की प्राप्ति हो।
- गलत विकल्प: ब्रिटेन से संसदीय प्रणाली, विधि का शासन, द्विसदनीय व्यवस्था आदि लिए गए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका से मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, उपराष्ट्रपति का पद आदि लिए गए हैं। कनाडा से संघीय व्यवस्था, अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र में निहित होना आदि लिए गए हैं।
प्रश्न 11: केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति कौन करता है?
- भारत के राष्ट्रपति
- प्रधानमंत्री
- गृह मंत्रालय
- संसदीय समिति
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) का गठन सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में किया गया था। इसके मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा, प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (प्रधानमंत्री द्वारा नामित) की बनी समिति की सिफारिश पर की जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: CIC सूचना के अधिकार के तहत नागरिकों को जानकारी प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी ढाँचा प्रदान करता है। इसके सदस्य सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से नियुक्त किए जाते हैं।
- गलत विकल्प: हालांकि नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री शामिल होते हैं, अंतिम नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। गृह मंत्रालय या कोई संसदीय समिति सीधे तौर पर नियुक्त नहीं करती।
प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन भारतीय संसद का अंग नहीं है?
- राष्ट्रपति
- उपराष्ट्रपति
- लोकसभा
- राज्यसभा
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संसद का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 79 में है, जिसके अनुसार संसद में राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: राष्ट्रपति, यद्यपि संसद का सदस्य नहीं होता, फिर भी वह संसद का एक अभिन्न अंग है क्योंकि वह विधायी प्रक्रिया का एक अनिवार्य हिस्सा है (जैसे, विधेयक को अधिनियम बनाने के लिए उसकी सहमति आवश्यक है)। लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद) संसद के दो सदन हैं। उपराष्ट्रपति, हालांकि वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है, वह संसद का अंग नहीं है।
- गलत विकल्प: राष्ट्रपति (अनुच्छेद 52, 79), लोकसभा (अनुच्छेद 79, 81) और राज्यसभा (अनुच्छेद 79, 80) सभी संसद के अंग हैं। उपराष्ट्रपति (अनुच्छेद 63, 64, 89) राज्यसभा का सभापति होता है, लेकिन वह स्वयं संसद का अंग नहीं है।
प्रश्न 13: भारतीय संविधान के किस संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया?
- 73वां संशोधन अधिनियम, 1992
- 74वां संशोधन अधिनियम, 1992
- 64वां संशोधन अधिनियम, 1989
- 65वां संशोधन अधिनियम, 1990
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने भारतीय संविधान में भाग IX जोड़ा, जिसमें अनुच्छेद 243 से 243-O तक पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। इसके साथ ही संविधान में 11वीं अनुसूची भी जोड़ी गई।
- संदर्भ और विस्तार: इस संशोधन का उद्देश्य पंचायती राज संस्थाओं को अधिक शक्तियाँ और स्वायत्तता प्रदान करना था, ताकि वे प्रभावी स्व-शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य कर सकें। यह ग्रामीण स्थानीय स्व-शासन को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
- गलत विकल्प: 74वां संशोधन अधिनियम, 1992 शहरी स्थानीय निकायों (नगरपालिकाएं, नगर पंचायतें आदि) से संबंधित है। 64वें और 65वें संशोधन पंचायती राज से संबंधित थे लेकिन वे पारित नहीं हो सके थे।
प्रश्न 14: आपातकालीन उपबंध भारतीय संविधान के किस भाग में दिए गए हैं?
- भाग XIII
- भाग XIV
- भाग XVIII
- भाग XX
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान का भाग XVIII (अनुच्छेद 352 से 360) आपातकालीन उपबंधों से संबंधित है।
- संदर्भ और विस्तार: इस भाग में तीन प्रकार के आपातकालों का वर्णन है: राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352), राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता (राष्ट्रपति शासन) (अनुच्छेद 356), और वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)। इन उपबंधों का उद्देश्य देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को बनाए रखना तथा सामान्य प्रशासन को सुचारू रूप से चलाना है।
- गलत विकल्प: भाग XIII में भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम का उल्लेख है। भाग XIV में संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं (जैसे UPSC, PSCs) वर्णित हैं। भाग XX में संविधान के संशोधन (अनुच्छेद 368) का उल्लेख है।
प्रश्न 15: भारत के महान्यायवादी (Attorney General of India) की नियुक्ति कौन करता है?
- भारत के राष्ट्रपति
- भारत के मुख्य न्यायाधीश
- प्रधानमंत्री
- कानून मंत्री
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत का महान्यायवादी, जो भारत सरकार का मुख्य विधि अधिकारी होता है, की नियुक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 76(1) के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: महान्यायवादी को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, जो योग्यता प्राप्त उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के योग्य हो। महान्यायवादी भारत सरकार को महत्वपूर्ण कानूनी मामलों पर सलाह देता है और राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत (at the pleasure of the President) पद धारण करता है।
- गलत विकल्प: भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री या कानून मंत्री की भूमिका नियुक्ति में प्रत्यक्ष रूप से नहीं होती है, यद्यपि राष्ट्रपति इन पदों पर बैठे व्यक्तियों की सलाह ले सकते हैं।
प्रश्न 16: भारतीय संविधान के अनुसार, ‘अस्पृश्यता’ का उन्मूलन किस मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है?
- समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अस्पृश्यता का उन्मूलन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत आता है, जो ‘समानता के अधिकार’ (भाग III) का एक हिस्सा है।
- संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 17 स्पष्ट रूप से कहता है कि ‘अस्पृश्यता’ समाप्त कर दी गई है और इसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध है। अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी भी अक्षमता को लागू करना भारतीय कानून के तहत दंडनीय होगा। यह सामाजिक समानता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 19-22 स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित हैं। अनुच्छेद 23-24 शोषण के विरुद्ध अधिकार से संबंधित हैं। अनुच्छेद 25-28 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित हैं।
प्रश्न 17: किस अनुच्छेद के तहत संसद विधि द्वारा लोक नियोजन के मामलों में निवास के आधार पर कुछ शर्तों को अधिरोपित कर सकती है?
- अनुच्छेद 15(1)
- अनुच्छेद 16(1)
- अनुच्छेद 16(2)
- अनुच्छेद 16(3)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संविधान का अनुच्छेद 16(3) यह प्रावधान करता है कि संसद, विधि द्वारा, किसी राज्य या किसी क्षेत्र की सरकार के लिए या उसके किसी स्थानीय प्राधिकारी के संबंध में, लोक नियोजन के मामलों में कुछ पदों के लिए उस राज्य या क्षेत्र का ‘निवास’ संबंधी कोई शर्त अधिरोपित कर सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अनुच्छेद अनुच्छेद 16(2) में वर्णित भेदभाव के सामान्य नियम (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्मस्थान या निवास) का एक अपवाद है। इसका उद्देश्य ऐसे राज्यों में जहां विशेष आवश्यकताएं हो सकती हैं, स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करना है।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 15(1) धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है। अनुच्छेद 16(1) लोक नियोजन के मामलों में अवसर की समानता की गारंटी देता है। अनुच्छेद 16(2) धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्मस्थान या निवास के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करने की बात कहता है, जिसका अपवाद 16(3) है।
प्रश्न 18: निम्नलिखित में से किस आयोग ने केंद्र-राज्य संबंधों में सुधार की सिफारिशें की हैं?
- प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (1966)
- सरकारी आयोग (1983)
- पुंछी आयोग (2007)
- उपर्युक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: केंद्र-राज्य संबंधों की जांच और सुधार के लिए समय-समय पर विभिन्न आयोगों का गठन किया गया है। प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (1966), सरकारी आयोग (1983) और पुंछी आयोग (2007) सभी ने केंद्र-राज्य संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया और महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं।
- संदर्भ और विस्तार: सरकारी आयोग (अध्यक्ष: न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारी) ने केंद्र को अधिक शक्तियाँ देने की सिफारिश करते हुए भी राज्यों की स्वायत्तता के लिए कई सुझाव दिए। पुंछी आयोग ने भी केंद्र-राज्य संबंधों के विभिन्न आयामों पर अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें अधिक सहकारी संघवाद की वकालत की गई। प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी प्रशासनिक सुधारों के साथ-साथ केंद्र-राज्य संबंधों पर भी विचार किया था।
- गलत विकल्प: चूंकि तीनों आयोगों ने केंद्र-राज्य संबंधों पर काम किया है, इसलिए ‘उपर्युक्त सभी’ सही उत्तर है।
प्रश्न 19: भारत का संविधान ‘बंधुआ मजदूरी’ (Bonded Labour) को प्रतिबंधित करता है, यह किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा?
- समानता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ के तहत मनुष्यों के दुर्व्यापार और बंधुआ मजदूरी (forced labour) का प्रतिषेध करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अनुच्छेद किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी, बंधुआ मजदूरी कराने से रोकता है। यह मानव गरिमा की रक्षा करने और सभी व्यक्तियों को एक स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए है।
- गलत विकल्प: समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18) अन्य प्रकार की समानता की बात करता है। स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22) व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करता है। संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए है, जबकि बंधुआ मजदूरी का उन्मूलन अपने आप में एक मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
प्रश्न 20: राष्ट्रपति द्वारा किसी विधेयक को उस पर अपनी सहमति देने या रोकने के अलावा, एक ‘पॉकेट वीटो’ (Pocket Veto) के रूप में कब प्रयोग किया जा सकता है?
- जब विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत किया जाता है और वह उस पर कोई कार्रवाई नहीं करता
- जब विधेयक किसी राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किया जाता है
- जब विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद पुनर्विचार के लिए लौटाया जाता है
- जब विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को रद्द करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 के अनुसार, राष्ट्रपति के पास किसी विधेयक पर अपनी सहमति देने, सहमति रोकने, या विधेयक को पुनर्विचार के लिए (यदि वह धन विधेयक नहीं है) वापस भेजने की शक्ति है। ‘पॉकेट वीटो’ तब प्रयोग होता है जब राष्ट्रपति विधेयक को अनिश्चित काल के लिए अपने पास रख लेते हैं, यानी वह न तो अपनी सहमति देते हैं, न ही मना करते हैं, और न ही पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर विचार करने के लिए असीमित समय देता है। इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण 1986 में भारतीय डाक संशोधन विधेयक (Indian Post Office Amendment Bill) पर राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा प्रयोग किया गया पॉकेट वीटो है।
- गलत विकल्प: विकल्प (b) और (d) प्रासंगिक नहीं हैं। विकल्प (c) पुनर्विचार के लिए विधेयक लौटाने की बात करता है, न कि पॉकेट वीटो की।
प्रश्न 21: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संसद को यह अधिकार है कि वह नागरिकता के संबंध में कानून बनाए?
- अनुच्छेद 9
- अनुच्छेद 10
- अनुच्छेद 11
- अनुच्छेद 12
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संविधान का अनुच्छेद 11 स्पष्ट रूप से संसद को नागरिकता के संबंध में विधि द्वारा उपबंध करने की शक्ति प्रदान करता है।
- संदर्भ और विस्तार: इसी अनुच्छेद के तहत संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 पारित किया, जिसमें भारत की नागरिकता अर्जित करने और समाप्त करने के बारे में प्रावधान किए गए हैं। यह अनुच्छेद नागरिकता से संबंधित मामलों में संसद की विधायी शक्ति को स्थापित करता है।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 9 कहता है कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर लेता है, तो वह भारत का नागरिक नहीं रहेगा। अनुच्छेद 10 नागरिकता के अधिकार के बने रहने की बात करता है। अनुच्छेद 12 ‘राज्य’ की परिभाषा देता है।
प्रश्न 22: राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांतों का उद्देश्य क्या है?
- नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करना
- सरकार के लिए कुछ सकारात्मक दायित्व निर्धारित करना
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखना
- संसद की संप्रभुता को सीमित करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांतों (DPSP) का मुख्य उद्देश्य भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाना है। ये सिद्धांत सरकार के लिए कुछ सकारात्मक दायित्व निर्धारित करते हैं, जिन्हें उसे देश के शासन में लागू करना होता है, जैसे कि सामाजिक, आर्थिक न्याय को बढ़ावा देना और जीवन स्तर को ऊंचा उठाना (अनुच्छेद 38)।
- संदर्भ और विस्तार: हालांकि ये न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं (अनुच्छेद 37), ये शासन के लिए मूलभूत हैं और राज्य का कर्तव्य है कि वह इन्हें लागू करे। इनका लक्ष्य सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।
- गलत विकल्प: मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करना मौलिक अधिकारों का उद्देश्य है, डीपीएसपी का नहीं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संसद की संप्रभुता अलग-अलग संवैधानिक सिद्धांत हैं।
प्रश्न 23: निम्नलिखित में से कौन सा पद ‘संवैधानिक निकाय’ (Constitutional Body) नहीं है?
- चुनाव आयोग (Election Commission)
- संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत का चुनाव आयोग (अनुच्छेद 324), संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) (अनुच्छेद 315) और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) (अनुच्छेद 148) भारतीय संविधान द्वारा स्थापित ‘संवैधानिक निकाय’ हैं, क्योंकि इनके प्रावधान सीधे संविधान में उल्लिखित हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) एक ‘सांविधिक निकाय’ (Statutory Body) है, जिसका गठन संसद द्वारा पारित एक अधिनियम (मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993) द्वारा किया गया है।
- संदर्भ और विस्तार: संवैधानिक निकाय वे होते हैं जिनका उल्लेख संविधान में होता है, जबकि सांविधिक निकाय वे होते हैं जिनका गठन संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित अधिनियमों द्वारा किया जाता है।
- गलत विकल्प: चुनाव आयोग, UPSC और CAG संवैधानिक निकाय हैं। NHRC संवैधानिक निकाय नहीं है, बल्कि सांविधिक निकाय है।
प्रश्न 24: राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) की उद्घोषणा का संसद द्वारा कितने समय के भीतर अनुमोदन किया जाना आवश्यक है?
- एक माह
- दो माह
- तीन माह
- छह माह
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 352(3) के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा को, यदि वह लागू रहती है, तो उद्घोषणा की तारीख से दो माह की अवधि के भीतर दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
- संदर्भ और विस्तार: यदि उद्घोषणा उस दो माह की अवधि के भीतर अनुमोदित नहीं होती है, तो वह उस अवधि की समाप्ति पर अप्रवर्तनीय हो जाती है। यदि उद्घोषणा तब की जाती है जब लोकसभा का विघटन हो गया हो या विघटन की अवधि में हो, तो उद्घोषणा प्रभावी रहेगी जब तक कि विघटन के बाद पुनर्गठित हुई लोकसभा की पहली बैठक की तारीख से एक माह का अवसान न हो जाए, बशर्ते कि इस अवधि के अवसान से पहले राज्यसभा द्वारा उसका अनुमोदन हो चुका हो।
- गलत विकल्प: एक माह, तीन माह या छह माह की कोई ऐसी अवधि नहीं है। अनुसमर्थन के लिए दो माह की अवधि निर्धारित है।
प्रश्न 25: कौन सा मौलिक अधिकार ‘संविधान की आत्मा’ (Soul of the Constitution) कहलाता है?
- समानता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने संविधान के अनुच्छेद 32 को, जो ‘संवैधानिक उपचारों का अधिकार’ (Right to Constitutional Remedies) प्रदान करता है, ‘संविधान की आत्मा और हृदय’ कहा था।
- संदर्भ और विस्तार: यह अधिकार नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) या उच्च न्यायालयों (अनुच्छेद 226) जाने का अधिकार देता है। यह वह अधिकार है जो अन्य सभी मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाता है, क्योंकि यदि इनका उल्लंघन होता है, तो नागरिक न्याय के लिए अपील कर सकते हैं।
- गलत विकल्प: अन्य मौलिक अधिकार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे स्वयं इस अधिकार के बिना उतने प्रभावी नहीं रह पाते। समानता, स्वतंत्रता या शोषण के विरुद्ध अधिकार स्वयं मौलिक अधिकार हैं, जबकि संवैधानिक उपचारों का अधिकार इन अधिकारों की रक्षा के लिए है।