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11 साल बाद भी केदारनाथ का दर्द: लापता हजार+, 702 की अन पहचानी दास्तान

11 साल बाद भी केदारनाथ का दर्द: लापता हजार+, 702 की अन पहचानी दास्तान

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
भारत की पवित्र भूमि, उत्तराखंड के देवभूमि केदारनाथ, 2013 की विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन की त्रासदी से अभी भी पूरी तरह उबर नहीं पाई है। हाल ही में, इस भयावह आपदा के 11 साल बाद, उस त्रासदी से जुड़े कंकालों की खोज का काम दोबारा शुरू किया गया है। यह न केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई है, बल्कि उन हजारों परिवारों के लिए एक अनवरत पीड़ा का प्रतीक है जिनके प्रियजन आज भी लापता हैं। 2013 की उस प्रलयंकारी घटना में, हजारों लोग अपनी जान गंवा बैठे थे, और आज भी 1000 से अधिक लोग लापता माने जाते हैं, जिनमें से 702 की पहचान आज तक नहीं हो पाई है। यह स्थिति हमें उस आपदा की भयावहता और उसके मानवीय परिणामों की याद दिलाती है, और यह सवाल उठाती है कि ऐसी आपदाओं से सबक लेकर हम भविष्य के लिए कितने तैयार हैं।

यह ब्लॉग पोस्ट 2013 केदारनाथ आपदा के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डालेगा, जिसमें आपदा का पैमाना, लापता लोगों की स्थिति, कंकाल की खोज की जटिलताएं, पहचान की चुनौतियाँ, प्रशासनिक और सरकारी प्रतिक्रिया, और भविष्य के लिए आवश्यक सबक शामिल हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह विषय न केवल समसामयिक घटनाओं की समझ प्रदान करता है, बल्कि आपदा प्रबंधन, सामाजिक न्याय, पर्यावरण, और शासन जैसे महत्वपूर्ण जीएस पेपरों के लिए प्रासंगिक अंतर्दृष्टि भी देता है।

2013 केदारनाथ आपदा: एक विनाशकारी पृष्ठभूमि (2013 Kedarnath Disaster: A Devastating Background)

जून 2013 में, उत्तराखंड में अभूतपूर्व मूसलाधार बारिश ने भयानक बाढ़ और भूस्खलन को जन्म दिया, जिसने मुख्य रूप से केदारनाथ और उसके आसपास के क्षेत्रों को तबाह कर दिया। यह एक ‘क्लाउड बर्स्ट’ (अचानक भारी वर्षा) और उसके बाद हुई घटनाओं की एक श्रृंखला थी जिसने हजारों जानें लील लीं। मंदाकिनी नदी, जो अपने शांत स्वभाव के लिए जानी जाती थी, उग्र रूप धारण कर लिया और अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को बहा ले गई।

“यह कोई साधारण बारिश नहीं थी; यह आसमान से बरसता हुआ कहर था जिसने जमीन को चीर दिया।”

विशेष रूप से केदारनाथ मंदिर के आसपास के क्षेत्र, जो तीर्थयात्रियों से भरे हुए थे, सबसे अधिक प्रभावित हुए। भारी मात्रा में मलबा, कीचड़ और पानी ने पूरा क्षेत्र ढक लिया। लाखों तीर्थयात्री, स्थानीय निवासी और श्रमिक इस आपदा में फंस गए। सड़कों, पुलों और संचार लाइनों के नष्ट होने से बचाव और राहत कार्य अत्यधिक कठिन हो गया।

आपदा का पैमाना (Scale of the Disaster):

  • हताहतों की संख्या: आधिकारिक तौर पर हताहतों की संख्या हजारों में बताई गई, लेकिन कई अनुमानों के अनुसार यह आंकड़ा 4000 से 6000 के बीच हो सकता है।
  • लापता लोग: आपदा के तुरंत बाद, हजारों लोगों के लापता होने की सूचना मिली। कई लोग भूस्खलन में दब गए, नदी में बह गए, या भारी मात्रा में मलबा गिरने से मारे गए।
  • आर्थिक और भौतिक क्षति: केदारनाथ मंदिर परिसर, आसपास के बुनियादी ढांचे, होटल, गेस्ट हाउस, दुकानें और सड़कें पूरी तरह से नष्ट हो गईं। राज्य को अरबों रुपये का भारी नुकसान हुआ।
  • विस्थापित लोग: हजारों लोग बेघर हो गए और उन्हें अस्थायी आश्रयों में ले जाया गया।

लापता लोगों का अनसुलझा रहस्य (The Unresolved Mystery of the Missing)

आपदा के 11 साल बीत जाने के बाद भी, 2013 की केदारनाथ त्रासदी का एक सबसे मार्मिक और अनसुलझा पहलू लापता लोगों का आंकड़ा है। जैसा कि समाचार रिपोर्टों में बताया गया है, 1000 से अधिक लोग अभी भी लापता माने जाते हैं। इसमें वे सभी शामिल हैं जिनकी पहचान नहीं हो पाई है, जिन्हें कभी नहीं मिला, या जिनके बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है।

702 की आज तक पहचान क्यों नहीं? (Why are 702 Unidentified to Date?):

यह आंकड़ा विशेष रूप से परेशान करने वाला है। 702 ऐसे कंकाल या मानव अवशेष पाए गए हैं जिनकी पहचान आज तक नहीं हो पाई है। इसके कई कारण हैं:

  • अत्यधिक विनाश: आपदा की भयावहता इतनी अधिक थी कि कई शव बुरी तरह क्षत-विक्षत हो गए थे या भारी मात्रा में मलबे के नीचे दब गए थे, जिससे उन्हें खोजना और निकालना अत्यंत कठिन हो गया था।
  • प्राकृतिक तत्व: समय के साथ, बारिश, मिट्टी और अन्य प्राकृतिक तत्वों ने अवशेषों को और भी क्षीण कर दिया, जिससे डीएनए या अन्य पहचान योग्य विशेषताओं का पता लगाना मुश्किल हो गया।
  • सीमित शुरुआती संसाधन: प्रारंभिक बचाव और राहत अभियानों में मुख्य ध्यान जीवित लोगों को बचाने और मलबे को हटाने पर था। डीएनए नमूनों को व्यवस्थित रूप से एकत्र करने और संरक्षित करने की प्रक्रिया शुरू में उतनी सुव्यवस्थित नहीं थी जितनी आज होती है।
  • परिवारों की पहुँच: कई लापता लोगों के परिवार भी आपदा में फंस गए थे या उनकी पहुँच भी सीमित थी, जिससे उनकी ओर से पहचान के लिए आगे आना मुश्किल हो गया था।
  • तकनीकी सीमाएँ: 2013 में, डीएनए विश्लेषण तकनीकें आज की तुलना में कम उन्नत थीं, और बड़ी संख्या में नमूनों को संसाधित करना एक बड़ी चुनौती थी।

इन 702 अज्ञात अवशेषों का मतलब है कि 702 परिवार अभी भी अपने प्रियजनों की तलाश में हैं, अनिश्चितता और दुःख में जी रहे हैं। यह उन परिवारों के लिए न्याय की एक अनवरत पुकार है जो अपने अपनों को एक अंतिम विदाई भी नहीं दे पाए।

कंकालों की खोज का दोबारा आगाज़: उद्देश्य और महत्व (Resumption of Skeleton Search: Objectives and Significance)

हाल ही में कंकालों की खोज के काम को फिर से शुरू करना इस अनसुलझे मुद्दे को संबोधित करने का एक प्रयास है। यह कदम कई महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करता है:

  • मानवीय गरिमा: लापता व्यक्तियों को पहचानना, भले ही वे जीवित न हों, उनके प्रति मानवीय गरिमा और सम्मान का तकाजा है। यह उन परिवारों को कुछ समापन (closure) प्रदान करता है जो वर्षों से अनिश्चितता में जी रहे हैं।
  • न्याय और जवाबदेही: पीड़ितों की पहचान से यह पता लगाने में मदद मिल सकती है कि वास्तव में क्या हुआ था, और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।
  • ऐतिहासिक रिकॉर्ड: इन अवशेषों का उचित रिकॉर्ड भविष्य के शोधकर्ताओं और इतिहासकारें के लिए महत्वपूर्ण होगा, जो आपदाओं के मानवीय और सामाजिक प्रभाव को समझने में मदद करेंगे।
  • प्रशासनिक प्रतिबद्धता: इस खोज को फिर से शुरू करना सरकार की अपनी नागरिकों के प्रति जिम्मेदारी को दर्शाता है, भले ही समय कितना भी बीत गया हो।

खोज की चुनौतियाँ (Challenges of the Search):

यह कार्य अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। इसमें शामिल हैं:

  • भौगोलिक जटिलता: केदारनाथ का पहाड़ी इलाका अत्यंत दुर्गम है। भूस्खलन और बाढ़ ने परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया है, जिससे खोज करना कठिन हो गया है।
  • समय का प्रभाव: 11 साल बीत जाने का मतलब है कि अवशेषों की स्थिति अत्यंत नाजुक हो सकती है, और डीएनए निष्कर्षण अत्यंत जटिल।
  • संसाधन: ऐसी खोज के लिए उन्नत तकनीक, प्रशिक्षित कर्मियों और पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है।
  • गोपनीयता और संवेदनशीलता: इस प्रक्रिया में परिवारों की गोपनीयता और उनकी भावनाओं का विशेष ध्यान रखना होता है।

प्रशासनिक और सरकारी प्रतिक्रिया (Administrative and Governmental Response)

आपदा के बाद से, सरकार और विभिन्न एजेंसियों ने राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिए कई कदम उठाए हैं। हालांकि, लापता लोगों की पहचान का मुद्दा एक सतत चुनौती रहा है।

क्या किया गया है? (What has been done?):

  • शुरुआती बचाव अभियान: भारतीय सेना, वायु सेना, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), और अन्य एजेंसियों ने बड़े पैमाने पर बचाव अभियान चलाया।
  • अस्थायी शिविर और सहायता: प्रभावित लोगों के लिए भोजन, पानी, आश्रय और चिकित्सा सहायता प्रदान की गई।
  • पुनर्निर्माण के प्रयास: केदारनाथ मंदिर और आसपास के बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण किया गया है, जो आपदा के बाद एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
  • लापता लोगों का डेटाबेस: शुरू में लापता लोगों का एक डेटाबेस बनाने का प्रयास किया गया था, लेकिन अपूर्णता एक बड़ी समस्या रही।

वर्तमान प्रयास (Current Efforts):

कंकाल की खोज को फिर से शुरू करने का निर्णय इस दिशा में एक और कदम है। इसमें शामिल हो सकते हैं:

  • डीएनए डेटाबेस: लापता लोगों के परिवारों से डीएनएन नमूने एकत्र करना और पाए गए अवशेषों से मिलान करना।
  • विशेषज्ञों की नियुक्ति: फोरेंसिक विशेषज्ञों, पुरातत्वविदों और भूवैज्ञानिकों की टीमों को लगाया जाना।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) जैसी तकनीकों का उपयोग छिपे हुए अवशेषों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है।

आपदा प्रबंधन और भविष्य के लिए सबक (Disaster Management and Lessons for the Future)

2013 केदारनाथ आपदा भारत में आपदा प्रबंधन की प्रणालियों की कमजोरियों को उजागर करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस त्रासदी से सीखे गए सबक भविष्य में ऐसी त्रासदियों के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण हैं।

आपदा के कारण (Causes of the Disaster):

  • जलवायु परिवर्तन: अत्यधिक वर्षा और अचानक मौसम परिवर्तन के पीछे जलवायु परिवर्तन को एक प्रमुख कारक माना जाता है।
  • अनियोजित शहरीकरण और निर्माण: संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में बिना उचित योजना और विनियमन के निर्माण कार्य।
  • पर्यावरणीय क्षरण: वनों की कटाई, ढलानों पर निर्माण, और नदी तल पर अतिक्रमण ने भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाया।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की कमी: मौसम की गंभीरता का प्रारंभिक पूर्वानुमान और चेतावनी देने वाली प्रणालियां पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं थीं।
  • पर्यटन और तीर्थयात्रा का अनियंत्रित प्रवाह: तीर्थयात्रा के चरम मौसमों में भारी भीड़, जो बचाव कार्यों में बाधा बनी।

भविष्य के लिए आवश्यक सुधार (Necessary Improvements for the Future):

  1. मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: मौसम विज्ञान विभाग, इसरो और स्थानीय अधिकारियों के बीच बेहतर समन्वय से एक प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना।
  2. जोखिम-आधारित भू-स्थानिक योजना: संवेदनशील क्षेत्रों की मैपिंग, जोखिम मूल्यांकन और निर्माण गतिविधियों के लिए सख्त नियम।
  3. पर्यावरण संरक्षण: वनों का संरक्षण, नदी तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण रोकना, और टिकाऊ पर्यटन को बढ़ावा देना।
  4. प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: स्थानीय समुदायों और आपदा प्रतिक्रिया टीमों को नियमित प्रशिक्षण देना।
  5. आपदा-लचीला बुनियादी ढाँचा: पुलों, सड़कों और इमारतों का निर्माण इस तरह से करना कि वे चरम मौसम की घटनाओं का सामना कर सकें।
  6. सूचना प्रबंधन और संचार: आपदा के दौरान प्रभावी संचार और डेटा प्रबंधन के लिए मजबूत प्रणालियाँ।
  7. पारदर्शी और उत्तरदायी शासन: आपदा प्रतिक्रिया और पुनर्निर्माण में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना।

“जब हम केदारनाथ की त्रासदी से सीखते हैं, तो हम न केवल खोए हुए जीवन को याद करते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि भविष्य ऐसे दुखों का गवाह न बने।”

निष्कर्ष (Conclusion)

2013 केदारनाथ आपदा भारत के लिए एक काला अध्याय है, जिसका दुख और अनसुलझे प्रश्न आज भी हमारे साथ हैं। लापता लोगों की खोज का फिर से शुरू होना, विशेष रूप से 702 अज्ञात अवशेषों की पहचान की आवश्यकता, इस बात का प्रतीक है कि कैसे प्रकृति की शक्ति मानव जीवन पर भारी पड़ सकती है और कैसे कुछ घाव समय के साथ भी नहीं भरते। यह उन परिवारों के लिए आशा की एक किरण है जो अभी भी अपने प्रियजनों की तलाश में हैं, और सरकार की ओर से एक पुन: प्रतिबद्धता है कि किसी को पीछे नहीं छोड़ा जाएगा।

UPSC उम्मीदवारों के लिए, केदारनाथ आपदा एक केस स्टडी है जो आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, शहरी नियोजन की विफलताएं, और मानवीय गरिमा के महत्व जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालती है। इस घटना के विश्लेषण से न केवल समसामयिक ज्ञान बढ़ता है, बल्कि यह नीति निर्माण और सार्वजनिक सेवा में कार्य करने वालों के लिए गहरी अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है। हमें उम्मीद है कि इन प्रयासों से कुछ परिवारों को शांति मिलेगी और भविष्य में भारत ऐसी त्रासदियों के लिए बेहतर ढंग से तैयार होगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. 2013 की केदारनाथ आपदा मुख्य रूप से किस प्रकार की प्राकृतिक घटना से संबंधित थी?
(a) भूकंप
(b) ज्वालामुखी विस्फोट
(c) बाढ़ और भूस्खलन
(d) सुनामी
उत्तर: (c)
व्याख्या: 2013 केदारनाथ आपदा मुख्य रूप से अत्यधिक वर्षा के कारण आई बाढ़ और उससे हुए भयावह भूस्खलनों से संबंधित थी।

2. 2013 की केदारनाथ त्रासदी में, लगभग कितने लोग लापता माने जाते हैं?
(a) 500 से कम
(b) लगभग 1000
(c) 2000 से अधिक
(d) 100 से कम
उत्तर: (b)
व्याख्या: समाचार रिपोर्टों के अनुसार, 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद 1000 से अधिक लोग लापता माने जाते हैं।

3. हाल ही में खबरों के अनुसार, 2013 केदारनाथ आपदा से संबंधित कितने मानव अवशेषों की पहचान आज तक नहीं हो पाई है?
(a) 100
(b) 350
(c) 702
(d) 1200
उत्तर: (c)
व्याख्या: हालिया रिपोर्टों में बताया गया है कि 702 मानव अवशेषों की पहचान आज तक नहीं हो पाई है।

4. उत्तराखंड में 2013 की विनाशकारी बाढ़ का मुख्य कारण क्या था?
(a) सामान्य मानसून की कमी
(b) अचानक और अत्यधिक मूसलाधार बारिश
(c) टिहरी बांध का टूटना
(d) नदियों का सूख जाना
उत्तर: (b)
व्याख्या: अचानक और अत्यधिक मूसलाधार बारिश (क्लाउड बर्स्ट) को 2013 की उत्तराखंड की बाढ़ और भूस्खलन का मुख्य कारण माना जाता है।

5. आपदा प्रबंधन के संदर्भ में, 2013 केदारनाथ त्रासदी ने भारत की किन कमजोरियों को उजागर किया?
(a) केवल प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली
(b) केवल आपातकालीन प्रतिक्रिया क्षमता
(c) प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, प्रतिक्रिया, पुनर्निर्माण और अनियोजित विकास
(d) केवल पुनर्निर्माण के प्रयास
उत्तर: (c)
व्याख्या: इस आपदा ने प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की कमी, आपातकालीन प्रतिक्रिया, प्रभावी पुनर्निर्माण और पहाड़ी क्षेत्रों में अनियोजित विकास जैसी विभिन्न कमजोरियों को उजागर किया।

6. केदारनाथ किस नदी के किनारे स्थित है?
(a) गंगा
(b) अलकनंदा
(c) मंदाकिनी
(d) यमुना
उत्तर: (c)
व्याख्या: केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है, जो 2013 की बाढ़ में उग्र हो गई थी।

7. “क्लाउड बर्स्ट” (Cloud Burst) का क्या अर्थ है?
(a) बहुत कम समय में बहुत भारी बारिश होना
(b) पहाड़ों पर बादल का जम जाना
(c) बिजली कड़कने के साथ बारिश होना
(d) सूखा पड़ने पर बादलों का न दिखना
उत्तर: (a)
व्याख्या: क्लाउड बर्स्ट का अर्थ है बहुत कम समय (कुछ घंटों) में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होना, जो अक्सर पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों में देखी जाती है।

8. आपदा के बाद, उत्तराखंड में बचाव और राहत कार्यों में किस राष्ट्रीय एजेंसी ने प्रमुख भूमिका निभाई?
(a) भारतीय तटरक्षक बल (Indian Coast Guard)
(b) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
(c) सीमा सुरक्षा बल (BSF)
(d) केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF)
उत्तर: (b)
व्याख्या: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) ने 2013 की केदारनाथ आपदा सहित विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं में बचाव और राहत कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

9. 2013 की केदारनाथ आपदा के संदर्भ में, “लापता” (missing) का क्या अर्थ है?
(a) वे लोग जो केवल अपने घर से दूर थे
(b) वे लोग जिनकी आपदा के बाद कोई जानकारी नहीं मिली
(c) वे लोग जो अस्थायी रूप से विस्थापित हुए थे
(d) वे लोग जो बाद में स्वयं लौट आए
उत्तर: (b)
व्याख्या: आपदा के संदर्भ में “लापता” का अर्थ है वे व्यक्ति जिनका आपदा के बाद कोई संपर्क या जानकारी नहीं मिली और जिनकी पहचान या ठिकाना ज्ञात नहीं है।

10. आपदा-लचीले (disaster-resilient) बुनियादी ढांचे का निर्माण किस सिद्धांत पर आधारित होता है?
(a) लागत को न्यूनतम रखना
(b) भविष्य की संभावित आपदाओं का सामना करने की क्षमता
(c) सौंदर्यशास्त्र पर अधिक ध्यान देना
(d) केवल अस्थायी समाधान प्रदान करना
उत्तर: (b)
व्याख्या: आपदा-लचीले बुनियादी ढांचे का निर्माण इस तरह से किया जाता है कि वह भविष्य में होने वाली संभावित प्राकृतिक आपदाओं (जैसे बाढ़, भूस्खलन, भूकंप) के प्रभावों को झेल सके और कार्यशील रहे।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. 2013 की केदारनाथ आपदा ने भारत में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में किन गंभीर कमियों को उजागर किया? इसके आलोक में, भविष्य में ऐसी विनाशकारी घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाए जाने वाले ठोस उपायों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (लगभग 250 शब्द)
*(यह प्रश्न आपदा प्रबंधन की वर्तमान प्रणाली की कमजोरियों और उन्हें दूर करने के लिए आवश्यक सुधारों पर केंद्रित है।)*

2. जलवायु परिवर्तन को 2013 की केदारनाथ आपदा जैसी चरम मौसम की घटनाओं के लिए एक प्रमुख कारक माना जाता है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को देखते हुए, भारत को हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटन और तीर्थयात्रा के सतत प्रबंधन के लिए क्या रणनीतियाँ अपनानी चाहिए? (लगभग 200 शब्द)
*(यह प्रश्न जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण-पर्यटन के संतुलन पर केंद्रित है।)*

3. 2013 केदारनाथ त्रासदी में लापता हुए हजारों व्यक्तियों और उनकी पहचान की अनवरत चुनौती, सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा के मुद्दों को उठाती है। इस समस्या के दीर्घकालिक समाधान और प्रभावित परिवारों को भावनात्मक और कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण पर चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)
*(यह प्रश्न लापता व्यक्तियों के मुद्दे को सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा के लेंस से देखता है, और समाधान के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की मांग करता है।)*

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