Get free Notes

सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Click Here

पहलगाम हमला: पाकिस्तान जिम्मेदार? भारत की कूटनीतिक चुनौती और UN-US का नजरिया

पहलगाम हमला: पाकिस्तान जिम्मेदार? भारत की कूटनीतिक चुनौती और UN-US का नजरिया

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने एक बार फिर भारत को चिंता में डाल दिया है। इस घटना के बाद, वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने एक तीखा बयान दिया है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान को इस हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया है। उनका यह भी कहना है कि भारत, “छाती पीटकर” पाकिस्तान की भूमिका बता रहा है, लेकिन न तो संयुक्त राष्ट्र (UN) और न ही संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) इस पर विश्वास करने को तैयार हैं। यह बयान न केवल हमले की संवेदनशीलता को उजागर करता है, बल्कि भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कूटनीतिक चुनौतियों को भी रेखांकित करता है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए, यह घटना अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR), राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security), और भू-राजनीति (Geopolitics) जैसे महत्वपूर्ण जीएस-पेपर के लिए एक अत्यंत प्रासंगिक विषय है।

पहलगाम हमला: पृष्ठभूमि और घटनाक्रम (Pahalgam Attack: Background and Sequence of Events)

पहलगाम, कश्मीर घाटी का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है, जो पर्यटकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। ऐसे संवेदनशील और पर्यटन-केंद्रित क्षेत्र में आतंकवादी हमला होना, न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और लोगों की आजीविका पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इस विशेष हमले में, लक्षित समूह (जैसे सुरक्षाकर्मी या नागरिक) और हमलावरों के बारे में विस्तृत जानकारी सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हो सकती है, लेकिन अय्यर के बयान के संदर्भ में, मुख्य बिंदु पाकिस्तान की संभावित संलिप्तता और उस पर भारत के आरोपों की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता है।

भारत लंबे समय से पाकिस्तान पर आतंकवाद को प्रायोजित करने का आरोप लगाता रहा है। 2008 का मुंबई हमला, 2016 का उरी हमला, और 2019 का पुलवामा हमला ऐसे कुछ प्रमुख उदाहरण हैं, जहां भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों और वहां से मिले समर्थन का उल्लेख किया है। पहलगाम हमला इसी निरंतरता में एक और कड़ी है, जो भारत के इस स्टैंड को बल देता है कि सीमा पार से आतंकवाद एक गंभीर समस्या बनी हुई है।

मणिशंकर अय्यर का बयान: “छाती पीटकर कह रहे, पर कोई मानने को तैयार नहीं” (Manishankar Iyer’s Statement: “We are beating our chests, but no one is ready to believe”)

मणिशंकर अय्यर का यह बयान भारत की उस निराशा को दर्शाता है, जो उसे आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपेक्षित समर्थन न मिलने पर होती है। “छाती पीटना” एक ऐसी अभिव्यक्ति है जो अत्यधिक हताशा और असहायता को दर्शाती है, जब कोई अपने दावों को बार-बार दोहराता है लेकिन सुनने वाला या मानने वाला कोई नहीं होता।

इस बयान के निहितार्थ (Implications of the Statement):

  • भारत का आरोप: भारत, विशेष रूप से सुरक्षा एजेंसियां, अक्सर यह दावा करती हैं कि आतंकवादी हमलों के पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों का हाथ होता है, जिन्हें वहां की सरकार का समर्थन प्राप्त होता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का अविश्वास: अय्यर के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी, भारत के इन दावों को आसानी से स्वीकार नहीं करते। इसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • सबूत की कमी/गुणवत्ता: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी देश को दोषी ठहराने के लिए अकाट्य और ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है, जो अक्सर राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से नाजुक होते हैं।
    • भू-राजनीतिक हित: अमेरिका और अन्य प्रमुख शक्तियों के पाकिस्तान के साथ अपने हित जुड़े हो सकते हैं, जो उन्हें भारत के आरोपों को पूरी तरह से स्वीकार करने से रोक सकते हैं।
    • ” acreditation” की समस्या: कभी-कभी, किसी देश द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य को अन्य देश अपनी निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर खारिज कर सकते हैं।
    • “The Pakistan Card”: वैश्विक मंच पर, पाकिस्तान को एक “काउंटर-बैलेंसिंग” शक्ति के रूप में देखा जाता रहा है, जिससे उसके विरुद्ध कड़े कदम उठाने में हिचकिचाहट होती है।
  • कूटनीतिक चुनौती: यह स्थिति भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती पेश करती है। भारत को न केवल आतंकवाद को रोकना है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस खतरे की गंभीरता और उसके स्रोत के बारे में भी विश्वास दिलाना है।

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की स्थिति (India’s Position on the International Stage)

भारत का आतंकवाद के खिलाफ युद्ध एक सतत संघर्ष रहा है, और पाकिस्तान को इस समस्या के स्रोत के रूप में इंगित करना भारत की विदेश नीति का एक मुख्य स्तंभ रहा है। UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) जैसे मंचों पर, भारत अक्सर जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जैसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करता रहा है, जिन्हें पाकिस्तान में सक्रिय माना जाता है।

भारत द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य और UN/USA की प्रतिक्रिया (Evidence Presented by India and the Reaction of UN/USA):

  • संयुक्त राष्ट्र (UN): संयुक्त राष्ट्र में, विशेष रूप से UNSC में, भारत अक्सर पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी समूहों के सरगनाओं को वैश्विक आतंकवादी घोषित करवाने और उन पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता रहा है। हालांकि, कुछ मामलों में (जैसे मसूद अजहर का मामला), पाकिस्तान ने चीन जैसे सहयोगियों की मदद से इन प्रयासों में बाधा डाली है। UNSC की कुछ समितियाँ (जैसे 1267 अल-कायदा प्रतिबंध समिति) आतंकवादी समूहों पर प्रतिबंध लगाती हैं, लेकिन इन पर कार्यवाई की गति और प्रभावशीलता अक्सर बहस का विषय रही है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): अमेरिका, आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में भारत का एक महत्वपूर्ण भागीदार रहा है, खासकर 9/11 के हमलों के बाद। हालाँकि, अमेरिका के अपने रणनीतिक हित भी रहे हैं, जिसने उसे पाकिस्तान के साथ संबंध बनाए रखने के लिए प्रेरित किया है। अफगानिस्तान में अपने सैन्य अभियानों के दौरान, अमेरिका ने पाकिस्तान को एक महत्वपूर्ण “गैर-नाटो सहयोगी” (Non-NATO Ally) के रूप में देखा, जिसने उसकी पाकिस्तान के प्रति नीति को प्रभावित किया। हालाँकि अमेरिका ने कई बार पाकिस्तान पर आतंकवाद को नियंत्रित करने का दबाव डाला है, लेकिन वह अक्सर “उसे पूरी तरह से अलग-थलग” करने से बचता रहा है, जब तक कि उसके अपने हित इससे सीधे तौर पर प्रभावित न हों।

निष्कर्ष: अय्यर का बयान इस कूटनीतिक दुविधा को दर्शाता है कि भारत के पास पाकिस्तान की भूमिका के बारे में “सबूत” हो सकते हैं, लेकिन उन सबूतों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर “मान्यता” दिलवाना एक कठिन प्रक्रिया है। यह केवल सबूत प्रस्तुत करने का मामला नहीं है, बल्कि भू-राजनीतिक समीकरणों, अंतरराष्ट्रीय कानून की व्याख्या, और विभिन्न देशों के अपने-अपने हितों का भी मामला है।

भारत के लिए कूटनीतिक चुनौतियाँ (Diplomatic Challenges for India)

पहलगाम हमले और उस पर अय्यर के बयान से उपजी स्थिति भारत के लिए कई महत्वपूर्ण कूटनीतिक चुनौतियाँ पेश करती है:

  1. विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करना: भारत को ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे जो न केवल प्रथम दृष्टया (prima facie) विश्वसनीय हों, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार भी अकाट्य हों। इसमें फोरेंसिक रिपोर्ट, संचार रिकॉर्ड, वित्तीय लेनदेन, और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान शामिल हो सकते हैं, जिन्हें गुप्त रखा जा सकता है ताकि आगे की जांच प्रभावित न हो।
  2. साक्ष्य की पारदर्शिता और सत्यापन: अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से पश्चिमी देश, अक्सर साक्ष्यों की पारदर्शिता और बाहरी सत्यापन पर जोर देते हैं। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्य स्वतंत्र रूप से सत्यापित किए जा सकें।
  3. भू-राजनीतिक गठबंधन बनाना: भारत को आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के लिए सक्रिय रूप से गठबंधन बनाना होगा। इसमें संयुक्त राष्ट्र, जी20, ब्रिक्स, और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर लगातार पैरवी करना शामिल है।
  4. पाकिस्तान को अलग-थलग करना: भारत का लक्ष्य पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना रहा है, खासकर उन देशों को जो पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं, जैसे कि चीन। इसके लिए, भारत को पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों के बारे में निरंतर और ठोस सबूतों के साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठानी होगी।
  5. “सबूतों की राजनीति” का मुकाबला: अक्सर, आतंकवाद के मुद्दे पर “सबूतों की राजनीति” खेली जाती है। पाकिस्तान भारत के दावों को खारिज करता है और भारत पर “सबूत पेश करने” का दबाव बनाता है, जबकि स्वयं अपनी संलिप्तता से इनकार करता है। भारत को इस दुष्चक्र से निकलना होगा।
  6. आतंकवाद विरोधी कानूनों का सुदृढ़ीकरण: भारत को अपने राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी कानूनों को मजबूत करना होगा और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप बनाना होगा, ताकि पाकिस्तान जैसे देशों पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाया जा सके।

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में “दोषी” को पहचानने की जटिलता (Complexity of Identifying the “Culprit” in the Fight Against Terrorism)

यह समझना महत्वपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर किसी देश को आतंकवादी गतिविधियों के लिए “दोषी” ठहराना एक जटिल प्रक्रिया है, जो केवल एक हमले के बाद संभव नहीं होती। इसमें कई कारक शामिल होते हैं:

  • सबूत का बोझ (Burden of Proof): आरोप लगाने वाले पर ही सबूत पेश करने का बोझ होता है।
  • निष्पक्षता का दावा (Claim of Impartiality): आरोप लगाने वाले देश की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं।
  • साक्ष्य की स्वीकार्यता (Admissibility of Evidence): अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत साक्ष्य की स्वीकार्यता के अपने नियम हैं।
  • कूटनीतिक संबंध (Diplomatic Relations): देशों के बीच मौजूदा कूटनीतिक संबंध और संधियाँ भी प्रभावित करती हैं कि कौन से कदम उठाए जा सकते हैं।
  • “Dual Use” तकनीक का डर: कुछ देश, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर इस्तेमाल की जाने वाली निगरानी या खुफिया जानकारी का दुरुपयोग होने के डर से भी जानकारी साझा करने में हिचकिचाते हैं।

उदाहरण के लिए, जब भारत पाकिस्तान से मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के प्रत्यर्पण की मांग करता है, तो पाकिस्तान या तो इनकार कर देता है या यह कहता है कि भारत ने पर्याप्त सबूत नहीं दिए हैं। इसी तरह, जब भारत किसी हमले में पाकिस्तान की भूमिका का दावा करता है, तो पाकिस्तान इसे “भारत का आंतरिक मामला” या “गलत आरोप” कहकर खारिज कर देता है।

उदाहरण: 2008 के मुंबई हमलों के बाद, भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ महत्वपूर्ण सबूत पेश किए थे। UNSC ने उस समय लश्कर-ए-तैयबा पर प्रतिबंध लगाए थे, लेकिन पाकिस्तान ने इन प्रतिबंधों को प्रभावी ढंग से लागू करने में आनाकानी की। यही स्थिति कई अन्य हमलों में भी देखी गई है।

आगे की राह: भारत की रणनीति (Way Forward: India’s Strategy)

पहलगाम हमले के संदर्भ में, भारत को अपनी कूटनीतिक और सुरक्षा रणनीतियों को और मजबूत करने की आवश्यकता है:

  • सबूत संग्रह और प्रकटीकरण में सुधार: राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, उच्च गुणवत्ता वाले सबूत एकत्र करने और उन्हें इस तरह से प्रस्तुत करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि वे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्वीकार्य हों।
  • “कथा” का निर्माण (Narrative Building): भारत को अपनी “कथा” (narrative) को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए, जिसमें वह पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के शिकार के रूप में खुद को प्रस्तुत करे। इसमें मीडिया, थिंक टैंक और अकादमिक संस्थानों का उपयोग शामिल है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना: संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य प्रमुख देशों के साथ आतंकवाद विरोधी सहयोग को और गहरा किया जाना चाहिए। इसमें खुफिया जानकारी साझा करना, संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास और आतंकवादी वित्तपोषण पर लगाम लगाना शामिल है।
  • “सॉफ्ट पावर” का प्रयोग: भारत को अपनी सांस्कृतिक और मानवीय कूटनीति का उपयोग करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास जीतना चाहिए।
  • आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ बनाना: सबसे महत्वपूर्ण, भारत को अपनी आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे हमलों को रोका जा सके। इसमें सीमा प्रबंधन, खुफिया तंत्र को मजबूत करना और आतंकवाद के प्रति शून्य-सहिष्णुता की नीति अपनाना शामिल है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति: आतंकवाद के मुद्दे पर एक सुसंगत और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष (Conclusion)

पहलगाम हमला और उस पर मणिशंकर अय्यर का बयान, भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक गंभीर कूटनीतिक चुनौती को दर्शाता है। “छाती पीटकर” अपनी बात कहने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास जीतना एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है। यह केवल सबूत पेश करने का मामला नहीं है, बल्कि भू-राजनीतिक दांव-पेंच, देशों के अपने हित, और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विश्वास अर्जित करने का भी मामला है। भारत को अपनी साक्ष्य-आधारित कूटनीति को मजबूत करना होगा, प्रभावी “कथा” का निर्माण करना होगा, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को गहरा करना होगा, ताकि आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में वह अपेक्षित समर्थन प्राप्त कर सके और दुनिया को पाकिस्तान की भूमिका के बारे में विश्वास दिला सके। यह एक लंबी और कठिन लड़ाई है, जिसके लिए निरंतर प्रयास और रणनीतिक सूझबूझ की आवश्यकता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. पहलगाम हमले के संदर्भ में, मणिशंकर अय्यर के बयान का मुख्य भाव क्या था?
(a) पाकिस्तान की आतंकवाद में संलिप्तता पर भारत का आरोप।
(b) UN और अमेरिका द्वारा भारत के आरोपों को स्वीकार न करना।
(c) दोनों (a) और (b)।
(d) कश्मीर की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करना।

उत्तर: (c)
व्याख्या: अय्यर के बयान में पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराने का सीधा आरोप और अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा उस पर विश्वास न करने की निराशा, दोनों शामिल थे।

2. भारत द्वारा आतंकवाद के स्रोत के रूप में पाकिस्तान को इंगित करने के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सी वैश्विक संस्था भारत के लिए महत्वपूर्ण है?
(a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
(b) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
(c) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC)
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)

उत्तर: (c)
व्याख्या: UNSC अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है, और भारत अक्सर आतंकवाद के मुद्दे पर इसके मंच का उपयोग करता है।

3. “गैर-नाटो सहयोगी” (Non-NATO Ally) का दर्जा किस देश को प्राप्त है, जिसका भारत के साथ जटिल संबंध रहा है, विशेषकर आतंकवाद के मुद्दे पर?
(a) ईरान
(b) पाकिस्तान
(c) अफगानिस्तान
(d) सऊदी अरब

उत्तर: (b)
व्याख्या: संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान को “गैर-नाटो सहयोगी” का दर्जा दिया है, जिसने उसकी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की भूमिका को लेकर उसकी नीति को प्रभावित किया है।

4. आतंकवादी संगठनों के सरगनाओं पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने और उनकी गतिविधियों को रोकने के लिए भारत UNSC की किस समिति पर अक्सर निर्भर करता है?
(a) UNSC सुधार समिति
(b) 1267 अल-कायदा प्रतिबंध समिति
(c) अंतरराष्ट्रीय न्याय समिति
(d) आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC)

उत्तर: (b)
व्याख्या: 1267 समिति (और अब 1988 तालिबान प्रतिबंध समिति) का उपयोग आतंकवादी समूहों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए किया जाता है।

5. अंतरराष्ट्रीय मंच पर किसी देश पर आतंकवादी गतिविधियों का आरोप लगाने के लिए, “सबूत का बोझ” (Burden of Proof) आम तौर पर किस पर होता है?
(a) आरोप लगाने वाले देश पर
(b) जिस पर आरोप लगाया गया है, उस देश पर
(c) संयुक्त राष्ट्र पर
(d) किसी स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण पर

उत्तर: (a)
व्याख्या: अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत, आरोप लगाने वाले पक्ष को ही आरोप को साबित करने के लिए सबूत पेश करने होते हैं।

6. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. भारत, पाकिस्तान पर आतंकवाद को प्रायोजित करने का आरोप लगाता रहा है।
2. अमेरिका के पाकिस्तान के साथ अपने रणनीतिक हित जुड़े हुए हैं।
3. UN सुरक्षा परिषद पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों पर प्रतिबंध लगाने में अक्सर प्रभावी रही है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)
व्याख्या: जबकि भारत पाकिस्तान पर आरोप लगाता है और अमेरिका के हित जुड़े हैं, UNSC की प्रभावशीलता आतंकवाद के मुद्दे पर अक्सर बहस का विषय रही है, और पाकिस्तान ने कुछ प्रतिबंधों में बाधा भी डाली है।

7. “छाती पीटकर” अभिव्यक्ति का प्रयोग किस स्थिति को दर्शाता है?
(a) अत्यधिक खुशी और उल्लास
(b) घोर निराशा और हताशा, जब बार-बार कहने पर भी बात न मानी जाए
(c) राजनीतिक विरोध प्रदर्शन
(d) सामाजिक एकजुटता

उत्तर: (b)
व्याख्या: यह अभिव्यक्ति उस स्थिति का वर्णन करती है जब कोई व्यक्ति अपनी बात मनवाने के लिए बेचैन हो लेकिन उसे सफलता न मिले।

8. आतंकवाद के खिलाफ भारत की कूटनीतिक रणनीति में कौन सा तत्व महत्वपूर्ण है?
(a) केवल घरेलू सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना
(b) अंतरराष्ट्रीय समुदाय को विश्वास में लेना और समर्थन जुटाना
(c) आतंकवाद को “पाकिस्तान का आंतरिक मामला” घोषित करना
(d) आतंकवाद के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंचों से बचना

उत्तर: (b)
व्याख्या: भारत की रणनीति में अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन महत्वपूर्ण है ताकि पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सके।

9. पहलगाम जैसे पर्यटन स्थलों पर आतंकवादी हमले का क्या प्रभाव पड़ सकता है?
(a) केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल।
(b) स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव।
(c) राजनीतिक अस्थिरता में वृद्धि।
(d) उपरोक्त सभी।

उत्तर: (d)
व्याख्या: ऐसे हमले सभी उपरोक्त प्रभावों को जन्म दे सकते हैं।

10. आतंकवादी गतिविधियों के लिए एक देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “दोषी” ठहराने में कौन सा कारक न्यूनतम भूमिका निभाता है?
(a) अकाट्य सबूतों की उपलब्धता
(b) संबंधित देश के अपने भू-राजनीतिक हित
(c) अंतरराष्ट्रीय कानून की व्याख्या
(d) पीड़ित देश की “कथा” (narrative) को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना

उत्तर: (d)
व्याख्या: जबकि “कथा” महत्वपूर्ण है, सबसे कम भूमिका “कम से कम” वाली नहीं, बल्कि सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अन्य कारक (a, b, c) निर्णायक होते हैं। प्रश्न में “न्यूनतम भूमिका” पूछा गया है, और इस संदर्भ में, (d) की भूमिका अन्य (a, b, c) की तुलना में कम निर्णायक हो सकती है, क्योंकि भू-राजनीति और सबूतों की स्वीकार्यता अक्सर हावी हो जाती है। हालांकि, यह प्रश्न थोड़ा विवादास्पद हो सकता है। अधिक सटीक रूप से, (a) सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उसके बाद (b) और (c)। (d) का महत्व बढ़ रहा है, लेकिन शायद अभी भी (a) जितना प्रत्यक्ष नहीं। इस संदर्भ में, हम (d) को चुन सकते हैं क्योंकि यह प्रत्यक्ष और ठोस नहीं है। (यदि प्रश्न “सबसे महत्वपूर्ण भूमिका” पूछता तो उत्तर (a) होता)।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “आतंकवाद के खिलाफ भारत का संघर्ष केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला नहीं है, बल्कि एक जटिल भू-राजनीतिक और कूटनीतिक चुनौती है।” पहलगाम हमले के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें, जिसमें संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे प्रमुख वैश्विक खिलाड़ियों की प्रतिक्रिया पर भी प्रकाश डाला गया हो।
(This question requires an analysis of India’s position, the role of international bodies, and the challenges in gaining global consensus on terrorism, especially in the context of Pakistan.)

2. भारत अक्सर पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार ठहराता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से UN और USA, से अपेक्षित समर्थन जुटाने में चुनौतियों का सामना करता है। उन प्रमुख बाधाओं का विश्लेषण करें जो भारत की आतंकवाद विरोधी कूटनीति को प्रभावित करती हैं और इस संदर्भ में “सबूतों की राजनीति” (politics of evidence) की भूमिका पर चर्चा करें।
(This question focuses on the diplomatic challenges, the “burden of proof”, and how geopolitical interests can impede international cooperation against terrorism.)

3. पहलगाम जैसे हमलों पर मणिशंकर अय्यर के बयान को भारत की उस निराशा के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है जब उसके आतंकवाद संबंधी दावों को वैश्विक स्तर पर तुरंत स्वीकार नहीं किया जाता। ऐसी स्थिति में, आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय विश्वास और समर्थन हासिल करने के लिए भारत को अपनी साक्ष्य-आधारित कूटनीति और कथा-निर्माण (narrative building) रणनीतियों को कैसे मजबूत करना चाहिए?
(This question asks for suggestions on how India can improve its diplomatic efforts, evidence presentation, and narrative building to gain international support against terrorism.)

Leave a Comment