पहलगाम हमला: पाकिस्तान पर भारत का आरोप, UN और अमेरिका का मौन – कूटनीति की भूलभुलैया।
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक आतंकी हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना के बाद, भारत ने अपनी चिर-परिचित दृढ़ता से पाकिस्तान को इस हमले के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है। वरिष्ठ नेताओं द्वारा “छाती पीटकर” कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की संलिप्तता निर्विवाद है। लेकिन, चौंकाने वाली बात यह है कि भारत की इस स्पष्ट घोषणा के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र (UN) और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), इस आरोप को मानने या उस पर गंभीरता से प्रतिक्रिया देने में हिचकिचा रहे हैं। यह स्थिति भारत के लिए एक गंभीर कूटनीतिक चुनौती पेश करती है, जहाँ अपनी बात को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रभावी ढंग से स्थापित करना एक भूलभुलैया जैसा हो गया है।
पहलगाम हमला: घटना का विस्तृत विश्लेषण
पहलगाम, जिसे अक्सर ‘पृथ्वी पर स्वर्ग’ कहा जाता है, इस बार अपने आगंतुकों के लिए भय और अनिश्चितता का स्थल बन गया। इस हमले ने न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच अविश्वास की खाई को और गहरा कर दिया।
- घटना का स्वरूप: (यहाँ हमले के विशिष्ट विवरण, जैसे कि निशाना कौन था, कितने हताहत हुए, हमलावर कौन थे, आदि का उल्लेख करें, यदि उपलब्ध हो।)
- भारत का पक्ष: भारत सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने तुरंत इस हमले के पीछे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का हाथ होने का दावा किया। यह दावा खुफिया जानकारी, पिछली घटनाओं के पैटर्न और अक्सर पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद की प्रकृति पर आधारित होता है।
‘हम छाती पीटकर कह रहे हैं’: भारत की मुखरता और उसका महत्व
जब भारत का कोई नेता कहता है कि “हम छाती पीटकर कह रहे हैं,” तो यह केवल एक बयान नहीं होता। यह उस देश की हताशा, दृढ़ संकल्प और उस कूटनीतिक निराशा को दर्शाता है जब उसे लगता है कि उसकी सच्चाई को अनसुना किया जा रहा है।
- दृढ़ता का प्रदर्शन: यह भारत की उस नीति का हिस्सा है जो आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में कभी भी पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराने से पीछे नहीं हटती।
- घरेलू राजनीति पर प्रभाव: इस तरह के बयान घरेलू दर्शकों को संबोधित करते हैं, जहाँ सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह आतंकवाद के प्रति कठोर रुख अपनाए।
- अंतर्राष्ट्रीय मंच पर दबाव: इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर दबाव बनाना भी होता है कि वे पाकिस्तान के दोहरे मापदंडों को पहचानें।
“पहलगाम जैसे हमले भारत की संप्रभुता पर सीधा प्रहार हैं। ऐसे में, जब हम स्पष्ट रूप से दोषी की पहचान कर रहे हैं, और दुनिया उस पर यकीन नहीं करती, तो यह हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा विमर्श के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।”
दुनिया क्यों मानने को तैयार नहीं? अनसुनी सच्चाई की पड़ताल
यह वह बिंदु है जहाँ भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती खड़ी होती है। जब भारत किसी हमले में पाकिस्तान की जिम्मेदारी की बात करता है, तो अक्सर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से पश्चिमी देश, “सबूत” या “ठोस प्रमाण” की मांग करते हैं। पर ये “सबूत” किस रूप में और किस हद तक स्वीकार्य होते हैं, यह एक पेचीदा सवाल है।
- भू-राजनीतिक हित:
- अमेरिका और पाकिस्तान: ऐतिहासिक रूप से, अमेरिका ने पाकिस्तान को सामरिक साझेदार के रूप में देखा है, खासकर अफगानिस्तान में। भले ही यह साझेदारी अब बदल रही हो, अमेरिका अक्सर पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग करने से बचता है, क्योंकि उसे लगता है कि इससे क्षेत्र की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
- यूरोप और अन्य देश: यूरोपीय देश भी अपने व्यापारिक और कूटनीतिक हितों को देखते हुए किसी भी देश के खिलाफ कठोर कदम उठाने से पहले बहुत सोच-समझकर निर्णय लेते हैं।
- सबूतों की स्वीकार्यता:
- “क्रेडिबल एविडेंस” की परिभाषा: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, “क्रेडिबल एविडेंस” की परिभाषा अक्सर राजनीतिक रूप से प्रभावित होती है। भारत द्वारा प्रस्तुत किए गए खुफिया इनपुट और प्रत्यक्ष सबूतों को कभी-कभी “अप्रत्यक्ष” या “निष्कर्षों पर आधारित” कहकर खारिज कर दिया जाता है।
- पाकिस्तान का अपना नैरेटिव: पाकिस्तान प्रभावी ढंग से अपने “आतंकवाद से पीड़ित” होने के नैरेटिव को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत करता है, और भारत पर “आतंक को प्रायोजित” करने का आरोप लगाता है, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा होती है।
- कूटनीतिक संतुलन: कई देश भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहते हैं। इसलिए, वे किसी भी एक पक्ष का खुलकर समर्थन करने से कतराते हैं, जिससे वे अक्सर “निष्पक्ष” दिखने की कोशिश करते हैं, भले ही इसका मतलब भारत के आरोपों को अनसुना करना हो।
- आतंकवाद के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण में भिन्नता: यद्यपि आतंकवाद को व्यापक रूप से निंदनीय माना जाता है, फिर भी कुछ देश “अच्छे आतंकवाद” और “बुरे आतंकवाद” के बीच सूक्ष्म अंतर करने की कोशिश करते हैं, खासकर जब यह उनके राष्ट्रीय हितों से जुड़ा हो।
UN और अमेरिका का रुख: एक जटिल समीकरण
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका, अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के दो सबसे प्रभावशाली स्तंभ हैं। जब वे भारत के दावों पर संदेह व्यक्त करते हैं या चुप्पी साध लेते हैं, तो इसके गहरे मायने होते हैं।
संयुक्त राष्ट्र (UN) का रवैया:
- सुरक्षा परिषद की भूमिका: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यों (P5) के वीटो अधिकार के कारण, किसी भी देश के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करना बहुत कठिन होता है, खासकर अगर किसी स्थायी सदस्य का हित प्रभावित हो रहा हो।
- निष्पक्षता का आग्रह: UN अक्सर “निष्पक्षता” का राग अलापता है और दोनों पक्षों से संयम बरतने और बातचीत का आग्रह करता है, भले ही एक पक्ष स्पष्ट रूप से आक्रामक या दोषी हो।
- रिपोर्टिंग और जांच: UN की अपनी जांच एजेंसियां होती हैं, लेकिन उनकी पहुंच और निष्कर्ष अक्सर राजनीतिक सहमति पर निर्भर करते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) का दृष्टिकोण:
- सामरिक साझेदारी: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, अमेरिका के लिए पाकिस्तान का सामरिक महत्व (जैसे अफगानिस्तान में लॉजिस्टिक्स, आईएसआई के साथ संबंध) उसे पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से रोकता रहा है।
- सबूतों की कठोर मांग: अमेरिका, विशेष रूप से हाल के वर्षों में, किसी भी देश पर आरोप लगाने से पहले “मजबूत, क्रेडिबल एविडेंस” की मांग पर जोर देता है। यह भारत के लिए एक चुनौती है, क्योंकि खुफिया जानकारी या प्रत्यक्ष सबूतों को अक्सर एकतरफा माना जाता है।
- द्विपक्षीय संबंध: अमेरिका भारत के साथ भी मजबूत संबंध बनाए रखना चाहता है, और वह भारत-पाकिस्तान के बीच सीधे समाधान की अपेक्षा करता है, बजाय इसके कि वह खुद को मध्यस्थ के रूप में पूरी तरह से पेश करे।
भारत के लिए कूटनीतिक चुनौतियाँ और आगे की राह
पहलगाम जैसे हमलों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का यह रूख भारत के लिए कई कूटनीतिक चुनौतियाँ खड़ी करता है। इन चुनौतियों से पार पाने के लिए भारत को एक बहुआयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।
चुनौतियाँ:
- अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता का संकट: बार-बार आरोप लगाने के बावजूद जब समर्थन नहीं मिलता, तो अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की बातों की विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है।
- पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने में विफलता: यदि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय दबाव नहीं बनाता, तो पाकिस्तान ऐसे कृत्यों को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित हो सकता है।
- रणनीतिक स्वायत्तता पर प्रभाव: भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रभावी समाधान खोजने में दूसरों पर निर्भरता का सामना करना पड़ सकता है।
आगे की राह (Future Course of Action):
- सबूतों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना:
- “सबूत” को परिभाषित करना: भारत को यह तय करना होगा कि वह किस तरह के सबूतों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने प्रस्तुत करेगा और उन्हें कैसे “क्रेडिबल” साबित करेगा। इसमें प्रत्यक्षदर्शी गवाह, संचार इंटरसेप्ट, या फोरेंसिक साक्ष्य शामिल हो सकते हैं, जिन्हें सार्वजनिक डोमेन में स्वीकार्य तरीके से पेश किया जाए।
- “शैडो-डिफेंस” से बचें: पाकिस्तान के खिलाफ रक्षात्मक होने के बजाय, भारत को सक्रिय रूप से अपने मामले को प्रस्तुत करना चाहिए।
- कूटनीतिक पैरवी को तेज करना:
- पर्दे के पीछे की कूटनीति: सार्वजनिक बयानों के अलावा, भारत को द्विपक्षीय बैठकों, संयुक्त राष्ट्र के मंचों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पाकिस्तान की भूमिका पर लगातार दबाव बनाना चाहिए।
- गठबंधन का निर्माण: उन देशों के साथ मजबूत संबंध बनाना जो पाकिस्तान के आतंकवाद को प्रायोजित करने के इतिहास से पीड़ित हैं या जो भारत के विचारों से सहमत हैं।
- सूचना युद्ध (Information Warfare) पर जोर:
- नैरेटिव को नियंत्रित करना: भारत को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में अपने पक्ष को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए और पाकिस्तान के दुष्प्रचार का मुकाबला करना चाहिए।
- डिजिटल डिप्लोमेसी: सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग करके सीधे अंतर्राष्ट्रीय जनता से जुड़ना।
- सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना:
- आंतरिक सुरक्षा: यह सुनिश्चित करना कि पहलगाम जैसे हमले दोबारा न हों, आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करके और खुफिया तंत्र को बेहतर बनाकर।
- जवाबी कार्रवाई की क्षमता: स्पष्ट रूप से संकेत देना कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा।
- आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहयोग:
- कानूनी ढाँचे: अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों का उपयोग करके पाकिस्तान पर दबाव बनाना, जैसे कि FATF (Financial Action Task Force) की सिफारिशों का अनुपालन।
- ‘एक्सट्रैडिशन ट्रीटीज’ का प्रभावी उपयोग: यदि संभव हो तो, भारत को प्रत्यर्पण संधियों का उपयोग करके आतंकवादियों को वापस लाने का प्रयास करना चाहिए।
निष्कर्ष: कूटनीति की भूलभुलैया में भारत
पहलगाम हमला भारत के लिए एक दर्दनाक घटना है, लेकिन इससे भी अधिक परेशान करने वाला वह अंतर्राष्ट्रीय उदासीनता है जो अक्सर ऐसे मामलों में सामने आती है। जब भारत “छाती पीटकर” पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराता है, तो इसका मतलब है कि हमारे पास ठोस कारण हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से UN और अमेरिका, को इन दावों की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए और यदि वे सत्य पाए जाते हैं, तो पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने में संकोच नहीं करना चाहिए।
यह एक जटिल भू-राजनीतिक खेल है जहाँ हित, रणनीतिक गणनाएँ और राष्ट्रीय पूर्वाग्रह निर्णय लेते हैं। भारत को इस भूलभुलैया से निकलने के लिए अपनी कूटनीतिक रणनीति को और अधिक पैना, पारदर्शी और प्रभावी बनाना होगा। केवल तभी हम यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि हमारी आवाज़ सुनी जाए और हमारी सच्चाई को स्वीकार किया जाए, न कि केवल एक और अनदेखी की गई चीख के रूप में छोड़ दिया जाए।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. **निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:**
1. पहलगाम में हालिया हमला भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक चिंता का विषय है।
2. भारत ने हमले के लिए पाकिस्तान को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है।
3. संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने भारत के दावों का तुरंत समर्थन किया है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b) 1 और 2
व्याख्या: कथन 1 और 2 सीधे समाचार के संदर्भ से सत्य हैं। कथन 3 गलत है क्योंकि समाचार के अनुसार, UN और अमेरिका भारत के दावों को मानने में हिचकिचा रहे हैं।
2. ** when भारत ‘छाती पीटकर’ किसी घटना के लिए किसी देश को जिम्मेदार ठहराता है, तो इसका क्या निहितार्थ हो सकता है?**
(a) भारत के पास निर्णायक सबूत हैं।
(b) भारत की घरेलू राजनीतिक स्थिति मजबूत है।
(c) भारत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से शीघ्र कार्रवाई की अपेक्षा करता है।
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: यह कथन भारत की दृढ़ता, सबूतों पर विश्वास और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर दबाव बनाने की कोशिश को दर्शाता है।
3. **अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से पश्चिमी देश, अक्सर भारत के पाकिस्तान पर लगे आरोपों को तुरंत स्वीकार करने से क्यों कतराते हैं?**
(a) वे पाकिस्तान के साथ अपने रणनीतिक हित साधते हैं।
(b) उन्हें भारत द्वारा प्रस्तुत “सबूतों” की स्वीकार्यता पर संदेह होता है।
(c) वे क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए संतुलन चाहते हैं।
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: यह प्रश्न समाचार में उल्लिखित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के रुख के पीछे के कारणों को दर्शाता है।
4. **संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?**
(a) UNSC के सभी सदस्य किसी भी देश के खिलाफ समान रूप से कार्रवाई कर सकते हैं।
(b) P5 देशों के पास वीटो शक्ति होती है, जो कार्रवाई को रोक सकती है।
(c) UNSC की कार्रवाइयाँ हमेशा भारत के दावों का पूरी तरह से समर्थन करती हैं।
(d) UNSC सीधे तौर पर पाकिस्तान पर आतंकी गतिविधियों को रोकने का आदेश दे सकता है।
उत्तर: (b) P5 देशों के पास वीटो शक्ति होती है, जो कार्रवाई को रोक सकती है।
व्याख्या: UNSC की कार्यप्रणाली के संदर्भ में यह कथन सत्य है, जो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कार्रवाई की जटिलताओं को बताता है।
5. **अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को “सामरिक साझेदार” माने जाने का भारत के कूटनीतिक प्रयासों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?**
(a) अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ भारत के आरोपों का हमेशा समर्थन करता है।
(b) अमेरिका पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग करने से बच सकता है।
(c) अमेरिका भारत की सुरक्षा चिंताओं को अनदेखा कर देता है।
(d) अमेरिका केवल द्विपक्षीय वार्ता का समर्थन करता है।
उत्तर: (b) अमेरिका पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग करने से बच सकता है।
व्याख्या: यह कथन अमेरिका-पाकिस्तान के जटिल संबंधों और इसके प्रभाव को उजागर करता है।
6. **निम्नलिखित में से कौन सा “क्रेडिबल एविडेंस” (विश्वसनीय प्रमाण) के अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता के संदर्भ में एक संभावित चुनौती है?**
(a) “सबूत” की परिभाषा अक्सर राजनीतिक रूप से प्रभावित होती है।
(b) भारत द्वारा प्रस्तुत सभी सबूतों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तुरंत स्वीकार कर लेता है।
(c) पाकिस्तान के खिलाफ किसी भी सबूत को अप्रमाणिक माना जाता है।
(d) UN की जांच एजेंसियां हमेशा स्वतंत्र होती हैं।
उत्तर: (a) “सबूत” की परिभाषा अक्सर राजनीतिक रूप से प्रभावित होती है।
व्याख्या: यह कथन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सबूतों की व्याख्या की जटिलता को दर्शाता है।
7. **भारत को अपनी कूटनीतिक पैरवी को तेज करने के लिए क्या करना चाहिए?**
1. अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में अपने पक्ष को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना।
2. उन देशों के साथ मजबूत संबंध बनाना जो भारत के विचारों से सहमत हैं।
3. केवल सार्वजनिक बयानों पर निर्भर रहना।
सही कूट का चयन करें:
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b) 1 और 2
व्याख्या: प्रभावी पैरवी के लिए सक्रिय कूटनीति और गठबंधन निर्माण आवश्यक है, न कि केवल सार्वजनिक बयान।
8. **”सूचना युद्ध” (Information Warfare) के संदर्भ में, भारत के लिए क्या महत्वपूर्ण है?**
(a) पाकिस्तान के दुष्प्रचार का मुकाबला करना।
(b) अंतर्राष्ट्रीय जनता से सीधे जुड़ना।
(c) अपने मामले को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना।
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: सूचना युद्ध में नैरेटिव पर नियंत्रण, प्रत्यक्ष संचार और प्रभावी प्रस्तुति शामिल है।
9. **FATF (Financial Action Task Force) जैसी संस्थाओं का उपयोग पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए कैसे किया जा सकता है?**
(a) FATF केवल मनी लॉन्ड्रिंग पर ध्यान केंद्रित करता है।
(b) FATF की सिफारिशों का अनुपालन न करने पर पाकिस्तान को वित्तीय सहायता मिल सकती है।
(c) FATF की सिफारिशों का अनुपालन न करने पर पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट या ग्रे-लिस्ट किया जा सकता है।
(d) FATF की कार्रवाइयाँ विशुद्ध रूप से राजनीतिक होती हैं।
उत्तर: (c) FATF की सिफारिशों का अनुपालन न करने पर पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट या ग्रे-लिस्ट किया जा सकता है।
व्याख्या: FATF एक वित्तीय कार्रवाई बल है जो आतंकवाद के वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए काम करता है, और इसके नियमों का उल्लंघन करने वाले देशों को दंडित किया जा सकता है।
10. **पहलगाम हमले के संदर्भ में, भारत के लिए “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) का क्या अर्थ हो सकता है?**
(a) अपनी सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर रहना।
(b) अपनी सुरक्षा के लिए प्रभावी समाधान खोजने में दूसरों पर निर्भरता कम करना।
(c) अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के बिना कार्य करना।
(d) केवल राजनयिक समाधान खोजना।
उत्तर: (b) अपनी सुरक्षा के लिए प्रभावी समाधान खोजने में दूसरों पर निर्भरता कम करना।
व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता का अर्थ है कि राष्ट्र अपने हित में स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकता है और कार्रवाई कर सकता है, जिसमें सुरक्षा मामले भी शामिल हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. पहलगाम हमले के संदर्भ में, भारत द्वारा पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय (विशेष रूप से UN और USA) के संशयवादी रुख के पीछे के भू-राजनीतिक और कूटनीतिक कारणों का विश्लेषण करें। इस स्थिति में भारत के लिए प्रभावी कूटनीतिक रणनीति क्या होनी चाहिए? (250 शब्द, 15 अंक)
2. **”सबूतों की स्वीकार्यता” और “राष्ट्रीय हित” के बीच अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में कैसे टकराव होता है? पहलगाम हमले जैसे मामलों में भारत के दावों पर UN और अमेरिका के रुख को इस संदर्भ में समझाइए। (250 शब्द, 15 अंक)
3. **भारत द्वारा “छाती पीटकर” पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराना, उसकी घरेलू और विदेश नीति के किन पहलुओं को दर्शाता है? इस मुखरता के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर क्या प्रभाव पड़ते हैं और भारत अपनी कूटनीतिक चुनौतियों का सामना कैसे कर सकता है? (200 शब्द, 10 अंक)
4. **आतंकवाद के वित्तपोषण और प्रायोजन के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालते हुए, पहलगाम जैसे हमलों के जवाब में भारत को अपनी कूटनीतिक और सुरक्षा रणनीतियों को कैसे मजबूत करना चाहिए? (150 शब्द, 10 अंक)