समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अपनी अवधारणाओं को परखें!
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए समाजशास्त्र की अपनी समझ को और गहरा करने के लिए तैयार हो जाइए! आज के इस विशेष प्रश्नोत्तरी सत्र में, हम प्रमुख समाजशास्त्रीय सिद्धांतों, विचारकों और भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं से जुड़े 25 प्रश्नों के साथ आपके ज्ञान की परीक्षा लेंगे। तो चलिए, अपनी अवधारणाओं को परखें और अपने अध्ययन में एक नया आयाम जोड़ें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की, जिसमें कहा गया है कि सामाजिक तथ्य व्यक्ति से बाहर होते हैं और बाह्य दबाव डालते हैं?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- इमाइल दुर्खीम
- जी.एच. मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: इमाइल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा पेश की। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य वस्तुएं हैं जिन्हें अध्ययन के लिए समाजशास्त्र की वस्तुओं के रूप में लिया जाना चाहिए। ये व्यक्ति से बाहर होते हैं और उन पर बाह्य दबाव डालते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों को ‘चीजों’ के रूप में माना, जिन्हें अनुभवजन्य रूप से अध्ययन किया जाना चाहिए। उन्होंने सामाजिक तथ्यों को समझने के लिए प्राकृतिक विज्ञानों के तरीकों का उपयोग करने का सुझाव दिया।
- अincorrect विकल्प: कार्ल मार्क्स वर्ग संघर्ष पर केंद्रित थे, मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) और सामाजिक क्रिया पर जोर दिया, जबकि जी.एच. मीड ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) विकसित किया।
प्रश्न 2: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा दी गई ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा का तात्पर्य क्या है?
- उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों के रीति-रिवाजों को अपनाना
- निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाकर सामाजिक गतिशीलता प्राप्त करना
- पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से समाज में आए परिवर्तन
- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तकनीकी विकास
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतीकरण’ की अवधारणा को अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में प्रतिपादित किया। इसका अर्थ है कि निम्न जातियों या जनजातियों द्वारा उच्च, विशेष रूप से द्विज जातियों, के रीति-रिवाजों, कर्मकांडों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाना ताकि उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हो सके।
- संदर्भ और विस्तार: संस्कृतीकरण सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है, न कि संरचनात्मक गतिशीलता का। यह भारतीय समाज में जाति व्यवस्था के भीतर सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारक रहा है।
- अincorrect विकल्प: (a) गलत है क्योंकि यह उच्च से निम्न की ओर है, न कि निम्न से उच्च की ओर। (c) पश्चिमीकरण का अर्थ है पश्चिमी संस्कृति को अपनाना, और (d) आधुनिकीकरण एक व्यापक प्रक्रिया है।
प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा जॉन हावर्ड मॉर्गन (J.H. Morgan) से संबंधित है?
- सामाजिक पूंजी (Social Capital)
- सांस्कृतिक पूंजी (Cultural Capital)
- मानव पूंजी (Human Capital)
- सामूहिक चेतना (Collective Consciousness)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) ने ‘सांस्कृतिक पूंजी’ की अवधारणा विकसित की, लेकिन इसे आगे चलकर जॉन हावर्ड मॉर्गन ने शिक्षा के संदर्भ में और अधिक विस्तार से प्रयोग किया। हालाँकि, यदि प्रश्न सीधे तौर पर ऐसे किसी प्रमुख विचारक से जुड़ा है जो इस अवधारणा से अधिक जुड़ा हो, तो यह बॉर्डियू को अधिक सही ठहराएगा। लेकिन चूंकि विकल्प में बॉर्डियू नहीं है, और अक्सर शैक्षिक संदर्भ में मॉर्गन का नाम लिया जाता है, तो यह प्रश्न मॉर्गन पर लक्षित हो सकता है। (यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बॉर्डियू मुख्य प्रतिपादक हैं, लेकिन मॉर्गन ने भी इस पर काम किया है।) यदि प्रश्न को मॉर्गन के कार्य पर केंद्रित किया गया है, तो ‘सांस्कृतिक पूंजी’ सही उत्तर है। (एक वैकल्पिक दृष्टिकोण यह हो सकता है कि प्रश्नकर्ता का इरादा बॉर्डियू से था, लेकिन यहाँ बॉर्डियू विकल्प में नहीं है। इसलिए, हम मॉर्गन द्वारा विस्तार किए गए क्षेत्र को मानेंगे।)
- संदर्भ और विस्तार: सांस्कृतिक पूंजी से तात्पर्य शिक्षा, भाषा, ज्ञान, कौशल और योग्यता से है जो व्यक्ति को सामाजिक गतिशीलता में सहायता करती है।
- अincorrect विकल्प: (a) सामाजिक पूंजी रॉबर्ट पुटनम से जुड़ी है, (c) मानव पूंजी अर्थशास्त्रियों जैसे गैरी बेकर से जुड़ी है, और (d) सामूहिक चेतना दुर्खीम का एक प्रमुख विचार है।
प्रश्न 4: ‘गुटनिरपेक्षता’ (Non-alignment) को भारतीय समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से किस प्रकार समझा जा सकता है?
- यह केवल एक विदेश नीति है, जिसका समाजशास्त्र से कोई संबंध नहीं है।
- यह भारतीय समाज के भीतर औपनिवेशिक मानसिकता के उन्मूलन और एक स्वतंत्र पहचान के निर्माण की प्रक्रिया का प्रतीक है।
- यह जाति आधारित सामाजिक संरचना को मजबूत करने का एक तरीका है।
- यह धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने की एक योजना है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: यद्यपि गुटनिरपेक्षता मुख्य रूप से एक विदेश नीति है, भारतीय संदर्भ में इसे औपनिवेशिक शासन के बाद अपनी संप्रभुता और एक स्वतंत्र राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने के रूप में देखा जा सकता है। यह वैश्विक मंच पर भारत की स्वायत्त स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है, जो सामाजिक और सांस्कृतिक आत्म-निर्णय की भावना से जुड़ा है।
- संदर्भ और विस्तार: यह शीत युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आंदोलन था, जिसका उद्देश्य प्रमुख शक्ति गुटों से स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखना था। भारतीय समाजशास्त्रियों ने अक्सर इसे उपनिवेशवाद के बाद की दुनिया में राष्ट्र-निर्माण और पहचान निर्माण के व्यापक संदर्भ में विश्लेषित किया है।
- अincorrect विकल्प: (a) गलत है क्योंकि विदेश नीति सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संरचनाओं को प्रभावित करती है। (c) और (d) गुटनिरपेक्षता के प्राथमिक या सीधे समाजशास्त्रीय अर्थ से संबंधित नहीं हैं।
प्रश्न 5: मैक्स वेबर के अनुसार, ‘प्रोटेस्टेंट नीतिशास्त्र’ (Protestant Ethic) और ‘पूंजीवाद की आत्मा’ (Spirit of Capitalism) के बीच क्या संबंध है?
- प्रोटेस्टेंट धर्म ने पूंजीवाद के विकास को बाधित किया।
- पूंजीवाद ने प्रोटेस्टेंट धर्म को जन्म दिया।
- प्रोटेस्टेंट धर्म के कुछ सिद्धांत, विशेष रूप से कैल्विनवाद, ने लोगों को कड़ी मेहनत और धन संचय के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे पूंजीवाद का उदय हुआ।
- दोनों पूरी तरह से स्वतंत्र अवधारणाएं हैं जिनका कोई संबंध नहीं है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म’ में तर्क दिया कि कुछ प्रोटेस्टेंट संप्रदायों, विशेष रूप से जॉन कैल्विन के कर्मकांडों से प्रेरित, ने एक विशेष ‘कार्य नीति’ (work ethic) को बढ़ावा दिया। इस नीति ने व्यक्ति को यह विश्वास दिलाया कि कड़ी मेहनत, तपस्या और धन संचय ईश्वर की इच्छा का पालन करना है, जिससे आधुनिक पूंजीवाद के उदय के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनीं।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने इसे ऐतिहासिक विकास की एक व्याख्या के रूप में प्रस्तुत किया, यह दिखाने के लिए कि कैसे धार्मिक विचारों ने आर्थिक व्यवहार और संस्थाओं को आकार दिया।
- अincorrect विकल्प: (a) वेबर के सिद्धांत के विपरीत है। (b) यह तर्क के क्रम को उलट देता है। (d) यह वेबर के केंद्रीय तर्क को अस्वीकार करता है।
प्रश्न 6: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, ‘अनौपचारिकता’ (Informality) किस सामाजिक-आर्थिक घटना को संदर्भित करती है?
- सार्वजनिक क्षेत्र के बढ़ते प्रभाव को
- बिना किसी नियम, विनियमन या कानूनी ढांचे के संचालित होने वाली आर्थिक गतिविधियों को
- सरकारी हस्तक्षेप की कमी को
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बढ़ती मांग को
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में, ‘अनौपचारिकता’ या ‘अनौपचारिक अर्थव्यवस्था’ (informal economy) उन आर्थिक गतिविधियों और क्षेत्रों को संदर्भित करती है जो सरकारी नियमों, करों और श्रम कानूनों से मुक्त होते हैं। इसमें बिना लाइसेंस के काम करना, बिना अनुबंध के रोजगार, या अवैध व्यापार शामिल हो सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: अनौपचारिकता विकासशील देशों में एक महत्वपूर्ण विषय है, जहाँ यह अक्सर आय सृजन और रोजगार का एक प्रमुख स्रोत होती है, लेकिन इसमें श्रमिकों के लिए कम सुरक्षा और सामाजिक लाभ भी होते हैं।
- अincorrect विकल्प: (a) अनौपचारिकता का संबंध अक्सर सरकारी क्षेत्र के बजाय निजी क्षेत्र से होता है। (c) और (d) अनौपचारिकता के परिणाम हो सकते हैं, लेकिन यह स्वयं इन घटनाओं को परिभाषित नहीं करता है।
प्रश्न 7: कौन सा विचारक ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा से जुड़ा है?
- विलियम एफ. ओगबर्न
- ए.एल. क्रॉबर
- रॉबर्ट रेडफील्ड
- राल्फ लिंटन
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम एफ. ओगबर्न (William F. Ogburn) ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘Social Change with Respect to Culture and Original Nature’ में ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा पेश की। यह तब होता है जब समाज के भौतिक संस्कृति (तकनीक, उपकरण) में तेजी से परिवर्तन होता है, जबकि अभौतिक संस्कृति (मान्यताएं, मूल्य, सामाजिक संस्थाएं, नैतिकता) धीरे-धीरे बदलती है, जिससे एक अंतर या विलंब उत्पन्न होता है।
- संदर्भ और विस्तार: ओगबर्न ने तर्क दिया कि अधिकांश सामाजिक समस्याएं इसी सांस्कृतिक विलंब के कारण उत्पन्न होती हैं, क्योंकि समाज नई प्रौद्योगिकियों के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थ होता है।
- अincorrect विकल्प: क्रॉबर, रेडफील्ड और लिंटन संस्कृति और समाजशास्त्र के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं से जुड़े हैं, लेकिन सांस्कृतिक विलंब का श्रेय मुख्य रूप से ओगबर्न को दिया जाता है।
प्रश्न 8: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख विचारक कौन हैं?
- ऑगस्ट कॉम्टे
- कार्ल मार्क्स
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- एच. स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का प्रमुख संस्थापक माना जाता है। उनके विचारों को उनके छात्रों, जैसे हर्बर्ट ब्लूमर (Herbert Blumer) ने संकलित और व्यवस्थित किया, जिन्होंने इस शब्द को गढ़ा भी।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत इस बात पर केंद्रित है कि व्यक्ति कैसे प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं और कैसे ये अंतःक्रियाएं आत्म (self) और समाज के निर्माण को आकार देती हैं।
- अincorrect विकल्प: कॉम्टे प्रत्यक्षवाद (Positivism) के संस्थापक हैं, मार्क्स संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) के, और स्पेंसर विकासवाद (Evolutionism) से जुड़े हैं।
प्रश्न 9: भारतीय संदर्भ में, ‘हरिजन’ (Harijan) शब्द किसने प्रचलित किया?
- डॉ. बी.आर. अम्बेडकर
- महात्मा गांधी
- ज्योतिबा फुले
- पेरियार ई.वी. रामासामी
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: महात्मा गांधी ने अछूत माने जाने वाले समुदायों को ‘हरिजन’ (अर्थात् ईश्वर के लोग) शब्द से संबोधित किया था, ताकि उनकी गरिमा को बढ़ाया जा सके और छुआछूत की निंदा की जा सके।
- संदर्भ और विस्तार: यह शब्द गांधीजी के सामाजिक सुधार एजेंडे का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य दलित समुदाय को समाज में एकीकृत करना और उनके प्रति पूर्वाग्रहों को समाप्त करना था। हालांकि, बाद में दलित समुदाय के कुछ लोगों ने इस शब्द को बाहरी थोपा हुआ माना और ‘दलित’ शब्द को अधिक पसंद किया।
- अincorrect विकल्प: डॉ. अम्बेडकर दलितों के अधिकारों के लिए लड़े और उन्हें ‘बहिष्कृत’ कहते थे। ज्योतिबा फुले ने ‘अछूतों’ के लिए ‘दलित’ शब्द का प्रयोग किया, और पेरियार ने भी जाति विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया।
प्रश्न 10: आर.के. मर्टन (R.K. Merton) ने ‘अनुकूलन’ (Adaptation) के संदर्भ में युवा अपराध के संबंध में कौन सी पाँच शैलियाँ (Modes of Adaptation) बताई हैं?
- अनुपालन, नवाचार, अनुष्ठानवाद, पलायनवाद, विद्रोह
- अनुरूपता, नवीनता, परंपरावाद, पलायनवाद, क्रांति
- स्वीकृति, सृजन, रूढ़िवाद, त्याग, परिवर्तन
- सांस्कृतिक अनुरूपता, व्यक्तिगत विचलन, सामाजिक परिवर्तन, क्रांति, पलायन
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट के. मर्टन ने अपनी ‘तनाव सिद्धांत’ (Strain Theory) के तहत, सांस्कृतिक लक्ष्यों (जैसे धन) और वैध साधनों (जैसे कड़ी मेहनत) के बीच बेमेल होने पर समाज में विचलन (deviance) के पाँच रूप बताए: 1. अनुरूपता (Conformity – लक्ष्य और साधन दोनों स्वीकार), 2. नवाचार (Innovation – लक्ष्य स्वीकार, साधन अस्वीकार, जैसे अपराध), 3. अनुष्ठानवाद (Ritualism – साधन स्वीकार, लक्ष्य अस्वीकार, जैसे नौकरशाही), 4. पलायनवाद (Retreatism – लक्ष्य और साधन दोनों अस्वीकार, जैसे नशाखोरी), और 5. विद्रोह (Rebellion – लक्ष्य और साधन दोनों को नए से बदलना)।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन का सिद्धांत बताता है कि समाज द्वारा निर्धारित सांस्कृतिक लक्ष्यों और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्वीकृत साधनों के बीच अंतर व्यक्तियों को विचलित करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
- अincorrect विकल्प: अन्य विकल्प शब्दों के गलत संयोजन या मर्टन द्वारा उपयोग किए गए विशिष्ट शब्दों का उपयोग नहीं करते हैं।
प्रश्न 11: ‘संस्था’ (Institution) की समाजशास्त्रीय परिभाषा के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन सा एक सामाजिक संस्था नहीं है?
- विवाह
- परिवार
- राजनीतिक दल
- बाजार
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्र में, एक संस्था अपेक्षाकृत स्थिर, व्यापक रूप से स्वीकृत और टिकाऊ सामाजिक पैटर्न का एक समूह है जो किसी विशेष सामाजिक आवश्यकता को पूरा करता है। विवाह, परिवार और राजनीतिक दल सभी प्रमुख सामाजिक संस्थाएँ हैं जिनके अपने नियम, भूमिकाएँ और संरचनाएँ हैं। बाजार, हालांकि महत्वपूर्ण है, अक्सर संस्थाओं के एक सेट (जैसे अनुबंध कानून, संपत्ति अधिकार) के भीतर संचालित होने वाली एक गतिविधि या प्रणाली के रूप में देखा जाता है, न कि अपने आप में एक प्राथमिक संस्था के रूप में, जब तक कि इसे आर्थिक संस्था के रूप में व्यापक रूप से परिभाषित न किया जाए। हालांकि, इन विकल्पों में, बाजार को अन्य तीन की तुलना में कम ‘संस्थागत’ माना जा सकता है, जिनकी परिभाषाएँ अधिक स्थापित हैं। (यह प्रश्न थोड़ा विवादास्पद हो सकता है क्योंकि बाजार को भी एक संस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, लेकिन आमतौर पर परिवार, विवाह, धर्म, शिक्षा, सरकार को ‘प्रमुख सामाजिक संस्थाओं’ में गिना जाता है।)
- संदर्भ और विस्तार: संस्थाएं समाज की संरचना और कार्यप्रणाली की नींव होती हैं। वे सामाजिक व्यवहार के लिए एक ढांचा प्रदान करती हैं।
- अincorrect विकल्प: विवाह, परिवार और राजनीतिक दल समाज में विशिष्ट और स्थापित भूमिकाएं निभाते हैं और सामाजिक मानदंडों द्वारा शासित होते हैं, इसलिए वे स्पष्ट रूप से संस्थाएं हैं।
प्रश्न 12: aldea.com की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ग्रामीण समाज में कृषक आंदोलनों का प्राथमिक कारण क्या है?
- कृषि पद्धतियों में आधुनिकीकरण की कमी
- भूमि सुधारों की धीमी गति और कृषि उत्पादों के लिए उचित मूल्य न मिलना
- शहरीकरण का बढ़ता प्रभाव
- जाति आधारित भेदभाव में वृद्धि
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: aldea.com या इस तरह के स्रोत (यदि यह एक वास्तविक विश्लेषणात्मक स्रोत है) आमतौर पर भारत में कृषक आंदोलनों के पीछे भूमि सुधारों की अपर्याप्तता, किसानों को उनके श्रम का उचित मूल्य न मिलना, ऋणग्रस्तता और बाजारीकरण के नकारात्मक प्रभाव जैसे मुद्दों को उजागर करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: भारत में कृषक आंदोलन ऐतिहासिक रूप से कृषि से संबंधित आर्थिक और सामाजिक अन्याय के खिलाफ रहे हैं। १९वीं और २०वीं सदी के किसान विद्रोहों से लेकर आधुनिक किसान विरोधों तक, यह मुख्य रूप से भूमि, ऋण, बाजार और सरकारी नीतियों से संबंधित रहा है।
- अincorrect विकल्प: (a) कृषक आंदोलनों का कारण तो हो सकता है, पर प्राथमिक नहीं। (c) शहरीकरण एक प्रभाव है, कारण नहीं। (d) जाति एक महत्वपूर्ण कारक हो सकती है, लेकिन सीधे कृषक आंदोलनों का ‘प्राथमिक’ कारण नहीं माना जाता जब तक कि वह विशेष रूप से भूमि से जुड़ा न हो।
प्रश्न 13: ‘शक्ति’ (Power) की अवधारणा को ‘सत्ता’ (Authority) से अलग करते हुए, मैक्स वेबर ने सत्ता के कितने प्रकार बताए?
- दो
- तीन
- चार
- पांच
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने तीन प्रकार की सत्ता (Authority) बताई हैं: 1. करिश्माई सत्ता (Charismatic Authority), 2. पारंपरिक सत्ता (Traditional Authority), और 3. वैध-तर्कसंगत सत्ता (Legal-Rational Authority)। उन्होंने शक्ति (Power) को किसी भी बाधा को दूर करने और किसी की इच्छा को लागू करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया, जबकि सत्ता को शक्ति के रूप में परिभाषित किया जिसे वैध माना जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर का यह वर्गीकरण राजनीतिक समाजशास्त्र और संगठन सिद्धांत में बहुत प्रभावशाली रहा है।
- अincorrect विकल्प: वेबर के वर्गीकरण में ये तीन ही प्रकार शामिल हैं।
प्रश्न 14: कौन सी समाजशास्त्रीय पद्धति ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) पर जोर देती है, जो यह मानती है कि किसी संस्कृति के विश्वासों और प्रथाओं को उस संस्कृति के भीतर के सदस्यों के दृष्टिकोण से समझा जाना चाहिए?
- प्रत्यक्षवाद (Positivism)
- व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Interpretive Sociology)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: व्याख्यात्मक समाजशास्त्र, विशेष रूप से मैक्स वेबर के ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) से प्रभावित, सांस्कृतिक सापेक्षवाद को महत्व देता है। यह दृष्टिकोण अन्य संस्कृतियों को बाहरी मानदंडों के बजाय उनकी अपनी आंतरिक तर्कसंगतता और संदर्भ में समझने का प्रयास करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रत्यक्षवाद के विपरीत है, जो वस्तुनिष्ठता और सामान्यीकरण पर जोर देता है। सांस्कृतिक सापेक्षवाद सामाजिक मानवशास्त्र में भी एक महत्वपूर्ण अवधारणा है।
- अincorrect विकल्प: प्रत्यक्षवाद वस्तुनिष्ठता पर जोर देता है। संरचनात्मक प्रकार्यवाद सामाजिक व्यवस्था और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करता है। संघर्ष सिद्धांत शक्ति और संघर्ष पर जोर देता है, जो सापेक्षवाद की व्याख्यात्मक प्रकृति से भिन्न हो सकता है।
प्रश्न 15: भारतीय समाज में ‘प्रजाति’ (Race) से अधिक महत्वपूर्ण ‘जाति’ (Caste) के प्रभुत्व का वर्णन किस समाजशास्त्री ने किया?
- इरावती कर्वे
- जी.एस. घुरिये
- एम.एन. श्रीनिवास
- योगेंद्र सिंह
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: इरावती कर्वे (Irawati Karve) ने भारत में जाति और प्रजाति के बीच संबंध का अध्ययन किया और अपने कार्य ‘The Brahmin Kin-Groups of India’ और अन्य लेखों में तर्क दिया कि भारतीय समाज में जाति व्यवस्था, प्रजाति के प्रभाव से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रही है। उन्होंने शारीरिक विशेषताओं की तुलना में सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों को जाति निर्धारण में अधिक प्रमुख माना।
- संदर्भ और विस्तार: कर्वे ने भारतीय समाज को एक जटिल अंतःक्रिया के रूप में देखा जहाँ प्रजातिगत भिन्नताएँ मौजूद थीं, लेकिन जाति की संरचनात्मक कठोरता और सामाजिक-सांस्कृतिक नियम अधिक प्रभावी थे।
- अincorrect विकल्प: घुरिये जाति को एक संस्था के रूप में विश्लेषित करते हैं, श्रीनिवास संस्कृतीकरण पर काम करते हैं, और योगेंद्र सिंह आधुनिकीकरण और सामाजिक परिवर्तन पर। यद्यपि वे सभी जाति का अध्ययन करते हैं, कर्वे ने विशेष रूप से प्रजाति बनाम जाति के प्रभुत्व पर प्रकाश डाला।
प्रश्न 16: ‘बीमारी का सामाजिक निर्माण’ (Social Construction of Illness) के दृष्टिकोण के अनुसार, बीमारी केवल एक जैविक घटना नहीं है, बल्कि इसमें निम्नलिखित में से कौन सा पहलू शामिल है?
- केवल व्यक्तिगत शारीरिक अनुभव
- सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ जो यह निर्धारित करते हैं कि क्या बीमारी है और इसे कैसे अनुभव किया जाता है
- वैज्ञानिक और चिकित्सा अनुसंधान पर पूर्ण निर्भरता
- बीमार व्यक्ति की भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘बीमारी का सामाजिक निर्माण’ का दृष्टिकोण मानता है कि बीमारी को केवल जैविक या पैथोलॉजिकल इकाई के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसके बजाय, यह समाज द्वारा परिभाषित, अनुभव की गई और उससे निपटी जाने वाली एक सामाजिक अवधारणा है। समाज तय करता है कि कौन सी स्थितियाँ बीमारी मानी जाती हैं, कौन बीमार है, और उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: इस दृष्टिकोण में, बीमारी अक्सर सामाजिक वर्गों, लिंग, नैतिकता और शक्ति संबंधों से जुड़ी होती है। उदाहरण के लिए, जो चीजें अतीत में सामान्य मानी जाती थीं (जैसे शराब की लत) उन्हें अब बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- अincorrect विकल्प: (a) बहुत संकीर्ण है। (c) केवल एक पहलू है, पूरा नहीं। (d) केवल एक परिणाम है, निर्माण का कारण नहीं।
प्रश्न 17: इमाइल दुर्खीम के अनुसार, आधुनिक समाजों में ‘सावयवी एकता’ (Organic Solidarity) किस पर आधारित होती है?
- धार्मिक विश्वासों की समानता
- सामूहिक विवेक की प्रबलता
- श्रम का विभाजन और परस्पर निर्भरता
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘The Division of Labour in Society’ में दो प्रकार की सामाजिक एकजुटता का वर्णन किया है: यांत्रिक एकता (Mechanical Solidarity) जो पारंपरिक समाजों में समानता पर आधारित थी, और सावयवी एकता (Organic Solidarity) जो आधुनिक, जटिल समाजों में श्रम के विभाजन के कारण उत्पन्न होने वाली परस्पर निर्भरता पर आधारित है।
- संदर्भ और विस्तार: जैसे-जैसे समाज अधिक विशिष्ट होता जाता है, लोग एक-दूसरे पर अपनी विशेष भूमिकाओं और कौशलों के लिए अधिक निर्भर हो जाते हैं, जिससे एक मजबूत सामाजिक बंधन बनता है, ठीक वैसे ही जैसे मानव शरीर के विभिन्न अंग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।
- अincorrect विकल्प: (a) और (b) यांत्रिक एकता के लक्षण हैं। (d) व्यक्तिगत स्वतंत्रता सावयवी एकता का परिणाम हो सकती है, लेकिन इसका आधार नहीं।
प्रश्न 18: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जो नेटवर्कों, सामाजिक संबंधों, विश्वास और सहयोग के माध्यम से प्राप्त लाभों को संदर्भित करती है, मुख्य रूप से किससे जुड़ी है?
- जे.एस. मिल
- रॉबर्ट पुटनम
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam) को आधुनिक समाजशास्त्र में ‘सामाजिक पूंजी’ की अवधारणा को लोकप्रिय बनाने और व्यवस्थित करने का श्रेय दिया जाता है, विशेष रूप से नागरिक समाज और लोकतंत्र पर उनके काम के माध्यम से। उन्होंने सामाजिक नेटवर्क और उनसे उत्पन्न होने वाले आपसी सहयोग के मूल्य पर जोर दिया।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक पूंजी उन संसाधनों को संदर्भित करती है जो व्यक्तियों या समूहों को उनके सामाजिक नेटवर्क के माध्यम से प्राप्त होते हैं, जैसे कि जानकारी, समर्थन या अवसरों तक पहुँच।
- अincorrect विकल्प: जे.एस. मिल उपयोगितावाद (Utilitarianism) से जुड़े हैं, वेबर नौकरशाही और सत्ता पर, और दुर्खीम सामाजिक एकता पर।
प्रश्न 19: भारत में ‘भूमि की संरचना’ (Structure of Landholding) के अध्ययन में, निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्री ने ‘भू-स्वामी’ (Landlord) और ‘भूमिहीन मजदूर’ (Landless Labourer) के बीच संबंध का विश्लेषण किया?
- आर.सी. दत्ता
- डेविड हार्डिमेन
- ए.आर. देसाई
- रामकृष्ण मुखर्जी
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ए.आर. देसाई (A.R. Desai) ने अपनी पुस्तक ‘Rural Sociology in India’ और अन्य कार्यों में भारत में कृषि संबंधों, विशेष रूप से सामंतवाद, औपनिवेशिक नीतियों और भूमि सुधारों के प्रभाव का गहन विश्लेषण किया। उन्होंने भू-स्वामित्व संरचनाओं और भूमिहीन श्रमिकों की स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया।
- संदर्भ और विस्तार: देसाई ने भारतीय ग्रामीण समाज को वर्ग संबंधों के चश्मे से देखा, जहाँ भू-स्वामी और भूमिहीन मजदूरों के बीच शोषणकारी संबंध थे।
- अincorrect विकल्प: आर.सी. दत्ता ने ब्रिटिश राज में भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्लेषण किया। डेविड हार्डिमेन ने किसानों के विरोधों का अध्ययन किया। रामकृष्ण मुखर्जी ने भी भारतीय ग्रामीण समाज पर महत्वपूर्ण कार्य किया, लेकिन भू-स्वामी-मजदूर संबंध का विश्लेषण देसाई के काम का एक केंद्रीय विषय रहा है।
प्रश्न 20: ‘संस्कृति का प्रसार’ (Diffusion of Culture) की अवधारणा का क्या अर्थ है?
- संस्कृति का विकास केवल एक ही स्थान पर होना
- एक संस्कृति के तत्वों का दूसरी संस्कृति में फैलना
- संस्कृति का अत्यधिक रूढ़िवादी हो जाना
- सांस्कृतिक परिवर्तन का बाहरी कारकों द्वारा प्रतिरोध
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सांस्कृतिक प्रसार (Cultural Diffusion) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सांस्कृतिक तत्व, जैसे विचार, नवाचार, प्रौद्योगिकियाँ, कला, या जीवन शैली, एक समाज या संस्कृति से दूसरे समाज या संस्कृति में फैलते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सांस्कृतिक परिवर्तन का एक प्रमुख चालक है और इसके माध्यम से ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों में संस्कृतियाँ एक-दूसरे से प्रभावित होती हैं।
- अincorrect विकल्प: (a) सांस्कृतिक प्रसार के विपरीत है। (c) अत्यधिक रूढ़िवाद प्रसार को रोकता है। (d) यह प्रसार के विपरीत एक प्रतिक्रिया है।
प्रश्न 21: ‘आधुनिकता’ (Modernity) की अवधारणा को समाजशास्त्रीय रूप से कैसे परिभाषित किया जाता है?
- यह केवल पश्चिमी देशों की जीवन शैली को अपनाने की प्रक्रिया है।
- यह पारंपरिक समाजों से दूर, तर्कसंगतता, औद्योगिकीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण और व्यक्तिवाद पर आधारित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों का एक जटिल समूह है।
- यह प्रौद्योगिकी के उपयोग तक ही सीमित है।
- यह सामाजिक असमानताओं को दूर करने का अंतिम चरण है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: आधुनिकता एक व्यापक अवधारणा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद पश्चिमी समाजों में हुए बड़े पैमाने पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को दर्शाती है। इसके मुख्य लक्षणों में तर्कसंगतता, नौकरशाही, धर्मनिरपेक्षीकरण, व्यक्तिवाद, मानवीकरण और राष्ट्रीयता शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: समाजशास्त्री आधुनिकता का अध्ययन विभिन्न दृष्टिकोणों से करते हैं, जैसे कि यह एक प्रक्रिया है, एक युग है, या एक विश्वदृष्टि है।
- अincorrect विकल्प: (a) बहुत संकीर्ण और केवल पश्चिमीकरण को दर्शाता है। (c) प्रौद्योगिकी आधुनिकता का एक घटक है, लेकिन यह केवल उस तक सीमित नहीं है। (d) आधुनिकता अक्सर सामाजिक असमानताओं को बढ़ा सकती है, उन्हें दूर नहीं करती।
प्रश्न 22: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) से आप क्या समझते हैं?
- लोगों का भौगोलिक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना।
- समाज में व्यक्तियों या समूहों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन।
- सामाजिक व्यवस्था में व्यक्तियों की भूमिकाओं में बदलाव।
- सांस्कृतिक प्रथाओं का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरण।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक गतिशीलता का तात्पर्य व्यक्तियों या सामाजिक समूहों की एक सामाजिक स्तरीकरण प्रणाली के भीतर एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाने से है। यह ऊपर की ओर (ऊँची स्थिति), नीचे की ओर (निम्न स्थिति), या क्षैतिज (समान स्तर पर) हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक गतिशीलता समाज में अवसर की समानता का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
- अincorrect विकल्प: (a) प्रवासन (Migration) कहलाता है। (c) भूमिका परिवर्तन (Role Change) या सामाजिक परिवर्तन (Social Change) से संबंधित है। (d) यह सामाजिक संरचना का हिस्सा है, गतिशीलता का नहीं।
प्रश्न 23: ‘गिल्ड’ (Guild) की अवधारणा किस प्रकार के सामाजिक संगठन से संबंधित है?
- आधुनिक निगम
- मध्यकालीन शिल्प संघ
- आदिम समाजों के कबीले
- ग्रामीण सहकारी समितियाँ
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: गिल्ड (Guild) एक मध्यकालीन व्यापार या शिल्प संघ था, जिसमें एक विशेष व्यवसाय या उद्योग के कारीगरों और व्यापारियों का एक समूह शामिल होता था। ये गिल्ड उत्पादन, गुणवत्ता नियंत्रण, मूल्य निर्धारण और सदस्यों के प्रशिक्षण को विनियमित करते थे।
- संदर्भ और विस्तार: गिल्ड का उद्देश्य अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करना और प्रतिस्पर्धा को नियंत्रित करना था। यह समाजशास्त्रीय रूप से व्यावसायिक संगठन और आर्थिक संस्थाओं के अध्ययन में महत्वपूर्ण है।
- अincorrect विकल्प: आधुनिक निगम, कबीले और सहकारी समितियाँ अलग-अलग प्रकार के सामाजिक-आर्थिक संगठन हैं।
प्रश्न 24: ‘सभ्यता’ (Civilization) की अवधारणा पर किस प्रमुख समाजशास्त्री ने कार्य किया है, जिसने तर्क दिया कि सभ्यता अक्सर तनाव और असंतोष का स्रोत होती है?
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- सिगमंड फ्रायड
- मैक्स वेबर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) ने अपनी पुस्तक ‘Civilization and Its Discontents’ (सभ्यता और उसके विरोध) में तर्क दिया कि सभ्यता, अपनी संरचनाओं और नियमों के माध्यम से, मनुष्य की सहज इच्छाओं (जैसे कामुकता और आक्रामकता) को दबाती है। यह दमन समाज में असंतोष, अपराध बोध और आंतरिक संघर्ष का कारण बनता है।
- संदर्भ और विस्तार: फ्रायड के इस विचार ने समाजशास्त्रीय मनोविश्लेषण (Sociological Psychoanalysis) को प्रभावित किया, जो समाज को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणों का उपयोग करता है।
- अincorrect विकल्प: दुर्खीम ने सामाजिक व्यवस्था पर, मार्क्स ने वर्ग संघर्ष पर, और वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता पर ध्यान केंद्रित किया। फ्रायड का जोर मनुष्य की मनोवैज्ञानिक स्थिति और सभ्यता के बीच तनाव पर था।
प्रश्न 25: भारत में ‘आदिवासी समाज’ (Tribal Society) के अध्ययन में, निम्नलिखित में से किस शब्द का प्रयोग अक्सर उनकी पहचान और विशिष्टता को बनाए रखने के लिए किया जाता है?
- अलगाव (Alienation)
- एकीकरण (Integration)
- पलायनवाद (Retreatism)
- अनुकूलन (Adaptation)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘एकीकरण’ (Integration) शब्द का प्रयोग अक्सर भारतीय संदर्भ में आदिवासियों के बारे में सरकारी नीतियों और समाजशास्त्रीय चर्चाओं में किया जाता रहा है। इसका तात्पर्य उन्हें मुख्यधारा के समाज में शामिल करना, या समाज की मुख्यधारा के साथ उनके संबंधों को मजबूत करना है। हालाँकि, इसकी आलोचना भी हुई है क्योंकि यह उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को मिटा सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह शब्द भारत सरकार की ‘एकीकरण’ की नीति से जुड़ा है, जिसका उद्देश्य आदिवासियों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाना था, जबकि उनकी संस्कृति को भी बनाए रखना था।
- अincorrect विकल्प: अलगाव (Alienation) एक नकारात्मक स्थिति है। पलायनवाद (Retreatism) विचलन की एक शैली है। अनुकूलन (Adaptation) एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन ‘एकीकरण’ विशेष रूप से आदिवासी पहचान और समाजशास्त्रीय चर्चाओं से जुड़ा एक प्रमुख शब्द रहा है।