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समाजशास्त्र मंथन: अपनी अवधारणाओं को परखें!

समाजशास्त्र मंथन: अपनी अवधारणाओं को परखें!

अपने समाजशास्त्रीय ज्ञान को तेज करने के लिए तैयार हो जाइए! आज का दैनिक अभ्यास सत्र आपकी अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल की परीक्षा लेगा। आइए, इन चुनौतीपूर्ण प्रश्नों के साथ अपनी तैयारी को एक नया आयाम दें और समाजशास्त्र की गहराई में उतरें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) की अवधारणा को किसने प्रतिपादित किया, जिसे बाहरी, बाध्यकारी और सामूहिक चेतना का रूप माना जाता है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने इसे ‘हर प्रकार का व्यवहार, सोचने का तरीका, और महसूस करने का तरीका जो व्यक्ति पर बाहरी होता है और जिसमें एक बाध्यकारी शक्ति होती है’ के रूप में परिभाषित किया।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, सामाजिक तथ्य समाज की विशेषताएँ हैं, व्यक्तियों की नहीं, और इन्हें वस्तुओं के समान ही अध्ययन किया जाना चाहिए। यह समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद (positivism) का एक प्रमुख आधार है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य ध्यान वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर था। मैक्स वेबर ने ‘क्रिया’ (action) और उसके ‘अर्थ’ (meaning) को समझने पर बल दिया (‘Verstehen’)। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद का विचार प्रस्तुत किया।

प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक स्तरीकरण की एक ‘पदानुक्रमित’ (Hierarchical) व्यवस्था है, जहाँ सदस्यता जन्म से निर्धारित होती है और इसमें कठोर अंतर्विवाह (Endogamy) और व्यवसायिक प्रतिबंध शामिल होते हैं?

  1. वर्ग (Class)
  2. जाति (Caste)
  3. स्टेटस समूह (Status Group)
  4. प्रभुत्व (Dominance)

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: जाति व्यवस्था, विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में, सामाजिक स्तरीकरण का एक जन्म-आधारित, पदानुक्रमित रूप है। इसमें कठोर नियम होते हैं जैसे कि समान जाति में विवाह (अंतर्विवाह) और व्यवसायिक प्रतिबंध।
  • संदर्भ और विस्तार: एम.एन. श्रीनिवास जैसे समाजशास्त्रियों ने जाति व्यवस्था का विस्तार से अध्ययन किया है। यह व्यवस्था गतिशीलता (mobility) को अत्यंत सीमित करती है।
  • गलत विकल्प: वर्ग व्यवस्था में गतिशीलता की अधिक संभावना होती है और यह मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति पर आधारित होती है। स्टेटस समूह, जैसा कि वेबर ने परिभाषित किया, सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन शैली पर आधारित होते हैं, लेकिन ये हमेशा इतने कठोर नहीं होते। प्रभुत्व एक संबंध को दर्शाता है, न कि स्वयं स्तरीकरण की व्यवस्था को।

प्रश्न 3: ‘एलिनेशन’ (Alienation) या अलगाव की अवधारणा, जिसे विशेष रूप से पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिक के अपने श्रम, उत्पाद, साथी मनुष्यों और स्वयं से अलगाव के रूप में वर्णित किया गया है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. मैक्स वेबर
  3. जी.एच. मीड
  4. कार्ल मार्क्स

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवाद के तहत श्रमिकों द्वारा अनुभव किए जाने वाले अलगाव की चार मुख्य अभिव्यक्तियों का वर्णन किया: उत्पाद से अलगाव, उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव, स्वयं की प्रजाति-प्रकृति से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा मार्क्स के ‘इकोनॉमिक एंड फिलोसॉफिक मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ में प्रमुखता से मिलती है। मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी व्यवस्था श्रमिकों को उनके श्रम के फल और उनके मानवीय सार से वंचित करती है।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (anomie) की अवधारणा दी, जो सामाजिक मानदंडों के विघटन से उत्पन्न होती है। वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता (rationalization) के प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया। जी.एच. मीड ने ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (symbolic interactionism) के विकास में भूमिका निभाई और ‘स्व’ (self) के निर्माण की प्रक्रिया का विश्लेषण किया।

प्रश्न 4: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मुख्य सरोकार निम्न में से किस पर है?

  1. बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचनाएं और संस्थाएं
  2. समूहों के बीच शक्ति संबंध
  3. व्यक्तिगत स्तर पर अर्थ निर्माण और सामाजिक अंतःक्रिया
  4. सामाजिक परिवर्तन के व्यापक पैटर्न

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जॉर्ज हर्बर्ट मीड, हरबर्ट ब्लूमर और अन्य द्वारा विकसित, सामाजिक जीवन को व्यक्ति-से-व्यक्ति की अंतःक्रियाओं के रूप में देखता है, जहाँ व्यक्ति प्रतीकों (जैसे भाषा, इशारे) का उपयोग करके अर्थों का निर्माण और साझा करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: हरबर्ट ब्लूमर ने इस दृष्टिकोण के तीन मूल सिद्धांतों को रेखांकित किया: मनुष्य वस्तुओं को उन तरीकों से व्यवहार करते हैं जो वे उनके लिए रखते हैं; इन अर्थों का स्रोत वह सामाजिक अंतःक्रिया है जो वे एक-दूसरे के साथ करते हैं; और ये अर्थ व्याख्यात्मक प्रक्रिया के माध्यम से संशोधित होते हैं।
  • गलत विकल्प: बड़े पैमाने पर संरचनाओं का अध्ययन कार्यात्मकतावाद (functionalism) और संघर्ष सिद्धांत (conflict theory) में अधिक प्रमुख है। शक्ति संबंधों का विश्लेषण अक्सर मार्क्सवादी या शक्ति-आधारित सिद्धांतों में किया जाता है। सामाजिक परिवर्तन के पैटर्न संरचनात्मक दृष्टिकोणों से संबंधित हैं।

प्रश्न 5: निम्नांकित में से कौन सी भारत में ‘आधुनिकता’ (Modernity) से जुड़ी एक सामाजिक-राजनीतिक प्रक्रिया है, जो स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने और पारंपरिक संस्थाओं को पुनर्गठित करने पर केंद्रित रही?

  1. पश्चिमीकरण (Westernization)
  2. राष्ट्र-निर्माण (Nation-building)
  3. ग्राम स्वराज्य (Village self-rule)
  4. धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization)

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: राष्ट्र-निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है जो स्वतंत्रता के बाद किसी राष्ट्र की राष्ट्रीय पहचान, एकता और संप्रभुता को स्थापित करने और मजबूत करने पर केंद्रित होती है, जिसमें अक्सर पारंपरिक संस्थाओं को आधुनिक राज्य की मांगों के अनुरूप ढालना शामिल होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: भारत जैसे नव-स्वतंत्र राष्ट्रों के लिए, राष्ट्र-निर्माण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया रही है जिसमें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संस्थाओं का एकीकरण शामिल था।
  • गलत विकल्प: पश्चिमीकरण मुख्य रूप से पश्चिमी जीवन शैली, मूल्यों और प्रौद्योगिकी को अपनाने को संदर्भित करता है। ग्राम स्वराज्य (गाँधी का विचार) विकेन्द्रीकृत शासन पर केंद्रित है। धर्मनिरपेक्षीकरण धर्म और राज्य के अलगाव की प्रक्रिया है।

प्रश्न 6: ‘पैटर्न वेरिएबल’ (Pattern Variables) की अवधारणा, जो विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं के बीच भिन्नता को समझने में मदद करती है, किसने विकसित की?

  1. टैल्कॉट पार्सन्स
  2. रॉबर्ट के. मर्टन
  3. मैक्स वेबर
  4. ए.आर. रेडक्लिफ-ब्राउन

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: टैल्कॉट पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था के निर्माण और कार्यप्रणाली को समझाने के लिए ‘पैटर्न वेरिएबल’ की अवधारणा विकसित की। ये चर बताते हैं कि सामाजिक क्रियाएं कैसे निर्देशित होती हैं – जैसे कि किसी व्यक्ति को उसकी विशिष्ट भूमिका (specific) के आधार पर या उसकी व्यापक पहचान (diffuse) के आधार पर देखा जाए।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने पाँच मुख्य पैटर्न चर बताए: अभिभक्षण बनाम प्रदर्शन (Ascription vs. Achievement), फैलाव बनाम विशिष्टता (Diffusion vs. Specificity), भावनात्मकता बनाम असंवेदनशीलता (Emotionality vs. Neutrality), व्यक्तिगतता बनाम सार्वभौमिकता (Particularism vs. Universalism), और आंतरिक बनाम बाहरी अभिविन्यास (Internal vs. External Orientation)।
  • गलत विकल्प: रॉबर्ट के. मर्टन ने ‘मध्य-सीमा सिद्धांत’ (middle-range theory) और ‘प्रकट’ (manifest) व ‘अप्रकट’ (latent) कार्यों की अवधारणाएं दीं। वेबर ने शक्ति, अधिकार और नौकरशाही पर काम किया। रेडक्लिफ-ब्राउन संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (structural-functionalism) के समर्थक थे।

प्रश्न 7: ‘प्रकट कार्य’ (Manifest Functions) और ‘अप्रकट कार्य’ (Latent Functions) की अवधारणा, जो किसी सामाजिक संस्था के उद्देश्यपूर्ण और अनपेक्षित परिणामों के बीच अंतर करती है, किस समाजशास्त्री से संबंधित है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. रॉबर्ट के. मर्टन
  4. एमिल दुर्खीम

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: रॉबर्ट के. मर्टन ने ‘प्रकट कार्य’ (समाज द्वारा स्वीकार्य और इच्छित उद्देश्य) और ‘अप्रकट कार्य’ (अनपेक्षित, अनजाने या अव्यक्त परिणाम) के बीच अंतर किया। उन्होंने ‘अकार्य’ (dysfunctions) की अवधारणा भी प्रस्तुत की, जो सामाजिक व्यवस्था को अस्थिर करती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने इन अवधारणाओं का उपयोग समाज के विभिन्न पहलुओं, जैसे शिक्षा या धर्म, के कार्यों का अधिक सूक्ष्म विश्लेषण करने के लिए किया। उदाहरण के लिए, किसी विश्वविद्यालय का प्रकट कार्य शिक्षा प्रदान करना है, जबकि एक अप्रकट कार्य सामाजिक नेटवर्किंग के अवसर प्रदान करना हो सकता है।
  • गलत विकल्प: मार्क्स, वेबर और दुर्खीम इस विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग नहीं करते थे। मार्क्स ने सामाजिक संरचनाओं की आलोचनात्मक जांच की, वेबर ने सामाजिक क्रिया के अर्थ पर ध्यान केंद्रित किया, और दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता और एनोमी पर।

प्रश्न 8: भारत में ‘आदिवासी समाज’ (Tribal Society) के संदर्भ में, ‘अलगाव’ (Isolation) या ‘समेकन’ (Integration) की बहस से कौन सा प्रमुख विचारक जुड़ा रहा है, जिसने जनजातियों को भारतीय समाज के मुख्यधारा से जोड़ने की नीतियों पर विचार किया?

  1. जी.एस. घुरिये
  2. एल.पी. विद्यार्थी
  3. एन.के. बोस
  4. ए.आर. देसाई

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: जी.एस. घुरिये भारत में जनजातियों के अध्ययन से जुड़े एक प्रमुख समाजशास्त्री थे। उन्होंने जनजातियों की ‘राष्ट्र-राज्य के भीतर राज्य’ (state within a state) की स्थिति और उन्हें भारतीय समाज की मुख्यधारा में समेकित करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसे कभी-कभी ‘एकीकरण’ (integration) की बहस के रूप में देखा जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: घुरिये ने जनजातियों को ‘पिछड़े हिंदू’ (Backward Hindus) के रूप में भी वर्गीकृत किया, जो विवादास्पद रहा। उनकी दलील थी कि अलगावपूर्ण नीतियां उन्हें मुख्यधारा से दूर रखती हैं।
  • गलत विकल्प: एल.पी. विद्यार्थी ने भारतीय जनजातियों के अध्ययन में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए और ‘आदिवासी अध्ययनों’ (Tribal Studies) को व्यवस्थित करने का प्रयास किया। एन.के. बोस ने सांस्कृतिक परिवर्तन और अनुकूलन का अध्ययन किया। ए.आर. देसाई भारतीय राष्ट्रवाद और सामाजिक परिवर्तन के मार्क्सवादी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।

  • प्रश्न 9: ‘शहरीकरण’ (Urbanization) की प्रक्रिया को केवल जनसंख्या घनत्व में वृद्धि के रूप में देखने के बजाय, लुई वर्थ (Louis Wirth) ने इसे एक ‘जीवन शैली’ (Way of Life) के रूप में परिभाषित किया, जो निम्नलिखित में से किन विशेषताओं से जुड़ी है?

    1. विस्तृत सामाजिक संबंध और घनिष्ठता
    2. पारंपरिक मूल्यों और सामुदायिक भावना का मजबूत होना
    3. जनसंख्या का आकार, घनत्व और विषमजातीयता (Heterogeneity)
    4. धीमा सामाजिक परिवर्तन और सीमित भूमिका विशिष्टता

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: लुई वर्थ ने अपने प्रसिद्ध लेख ‘शहरीवाद एक जीवन शैली के रूप में’ (Urbanism as a Way of Life) में तर्क दिया कि बड़े पैमाने, उच्च घनत्व और विषमजातीयता के कारण शहरी जीवन व्यक्तिगतता, सामाजिक संबंधों की सतहीपन, भूमिका विशिष्टता और कमजोर सामुदायिक बंधन जैसी विशेषताओं से चिह्नित होता है।
    • संदर्भ और विस्तार: वर्थ के अनुसार, ये शहरी कारक ही शहरी जीवन शैली को ग्रामीण जीवन शैली से अलग करते हैं।
    • गलत विकल्प: विस्तृत संबंध, घनिष्ठता, पारंपरिक मूल्य और सामुदायिक भावनाएं ग्रामीण जीवन शैली या छोटे समुदायों की विशेषताएँ हैं। धीमी गति से सामाजिक परिवर्तन और सीमित भूमिका विशिष्टता भी शहरी जीवन की विशेषता नहीं हैं।

    प्रश्न 10: ‘संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकवाद’ (Structural-Functionalism) के अनुसार, समाज को विभिन्न परस्परसंबंधित भागों या ‘प्रकार्यों’ (Functions) से बना एक जटिल तंत्र माना जाता है, जो व्यवस्था को बनाए रखने में योगदान करते हैं। इस दृष्टिकोण के प्रमुख प्रस्तावक कौन थे?

    1. कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स
    2. मैक्स वेबर और जॉर्ज सिमेल
    3. एमिल दुर्खीम और ए.आर. रेडक्लिफ-ब्राउन
    4. सिगमंड फ्रायड और पैट्रिक गेडेस

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: एमिल दुर्खीम (विशेषकर सामाजिक एकजुटता पर उनके काम में) और ए.आर. रेडक्लिफ-ब्राउन (मानव विज्ञान में) संरचनात्मक-प्रकार्यवाद के महत्वपूर्ण संस्थापक थे। पार्सन्स और मर्टन ने बाद में इस ढांचे को विकसित किया।
    • संदर्भ और विस्तार: प्रकार्यवाद समाज को एक जैविक प्रणाली के रूप में देखता है, जहाँ प्रत्येक अंग (सामाजिक संस्था) एक विशिष्ट कार्य करता है जो पूरे जीव (समाज) के अस्तित्व और स्थिरता के लिए आवश्यक है।
    • गलत विकल्प: मार्क्स और एंगेल्स संघर्ष सिद्धांत के प्रस्तावक थे। वेबर और सिमेल ने सामाजिक क्रिया, संबंध और स्वरूपों पर ध्यान केंद्रित किया। फ्रायड मनोवैज्ञानिक सिद्धांत से संबंधित हैं।

    प्रश्न 11: ‘समाजिकरण’ (Socialization) की प्रक्रिया के संबंध में, ‘द्वितीयक सामाजिकरण’ (Secondary Socialization) आमतौर पर कब और कहाँ होता है?

    1. बचपन में परिवार के भीतर
    2. प्रौढ़ावस्था में कार्यस्थल और साथियों के समूहों में
    3. गर्भावस्था के दौरान माँ के गर्भ में
    4. किशोरावस्था में स्कूल और मीडिया के माध्यम से

    उत्तर: (d)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: प्राथमिक सामाजिकरण मुख्य रूप से बचपन में परिवार द्वारा होता है। द्वितीयक सामाजिकरण तब होता है जब व्यक्ति बड़ा हो जाता है और परिवार के बाहर की संस्थाओं, जैसे स्कूल, सहकर्मी समूह, मीडिया और कार्यस्थल के संपर्क में आता है, जहाँ वह विशेष भूमिकाओं और अपेक्षाओं को सीखता है। प्रश्न के विकल्पों में किशोरावस्था का स्कूल और मीडिया सबसे उपयुक्त उदाहरण हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: द्वितीयक सामाजिकरण व्यक्ति को समाज के विशेष उप-समूहों के अनुरूप व्यवहार करना सिखाता है।
    • गलत विकल्प: (a) प्राथमिक समाजीकरण है। (b) प्रौढ़ावस्था में होने वाला समाजीकरण भी द्वितीयक या तृतीयक हो सकता है, लेकिन प्रश्न का मुख्य जोर उस बिंदु पर है जहाँ यह परिवार के बाहर शुरू होता है। (c) गर्भाधान से समाजीकरण का कोई संबंध नहीं है।

    प्रश्न 12: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो बताती है कि समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे मूल्य, कानून, रीति-रिवाज) की तुलना में तेजी से बदलती है, किसने प्रस्तुत की?

    1. विलियम ग्राहम समनर
    2. विलियम एफ. ओगबर्न
    3. एल्बियन स्मॉल
    4. एडवर्ड सैपिर

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: विलियम एफ. ओगबर्न ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘सोशियोलॉजी एंड मॉडर्न सोसाइटी’ में ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा पेश की। उन्होंने तर्क दिया कि प्रौद्योगिकी और भौतिक संस्कृति में परिवर्तन की दर अक्सर सामाजिक, वैचारिक और संस्थागत प्रतिक्रिया की दर से तेज होती है, जिससे सामाजिक तनाव और समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, मोबाइल फोन और इंटरनेट जैसी प्रौद्योगिकियों का आविष्कार बहुत तेजी से हुआ, लेकिन उनके उपयोग से संबंधित सामाजिक मानदंड, गोपनीयता कानून और नैतिक दिशानिर्देश विकसित होने में अधिक समय लगा।
    • गलत विकल्प: विलियम ग्राहम समनर ‘लोकप्रिय प्रथाओं’ (Folkways) और ‘रूढ़ियों’ (Mores) के बीच अंतर के लिए जाने जाते हैं। एल्बियन स्मॉल शिकागो स्कूल ऑफ सोशियोलॉजी के संस्थापक थे। एडवर्ड सैपिर ने भाषा और संस्कृति के संबंध पर काम किया (सैपिर-वोर्फ परिकल्पना)।

    प्रश्न 13: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जिसे अत्यधिक सामाजिक परिवर्तन, अनिश्चितता और व्यक्तिगत नियंत्रण के नुकसान की स्थिति में सामाजिक मानदंडों के विघटन से जोड़ा जाता है, किस क्लासिक समाजशास्त्री से जुड़ी है?

    1. मैक्स वेबर
    2. कार्ल मार्क्स
    3. एमिल दुर्खीम
    4. हरबर्ट स्पेंसर

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ की अवधारणा को सामाजिक विघटन और अनिश्चितता के एक महत्वपूर्ण परिणाम के रूप में पहचाना। उनकी पुस्तक ‘द डिवीजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ में, उन्होंने बताया कि जब समाज में एकीकृत करने वाले मानदंड कमजोर पड़ जाते हैं, तो व्यक्ति दिशाहीन महसूस कर सकता है।
    • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने आत्महत्या के विभिन्न रूपों का विश्लेषण करते समय भी एनोमी की भूमिका पर प्रकाश डाला, खासकर ‘एनोमिक आत्महत्या’ (anomic suicide) के संबंध में।
    • गलत विकल्प: वेबर ने शक्ति, अधिकार और तर्कसंगतता पर ध्यान केंद्रित किया। मार्क्स का मुख्य जोर वर्ग संघर्ष और अलगाव पर था। स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद का समर्थन किया।

    प्रश्न 14: भारत में ‘धार्मिक पुनरुत्थानवाद’ (Religious Revivalism) के संदर्भ में, किस समाजशास्त्री ने भारतीय समाज में धर्म की बदलती भूमिका और धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization) की बहस पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए?

    1. एम.एन. श्रीनिवास
    2. टी.के. उमन
    3. अमिताभ कुंडू
    4. इरावती कर्वे

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: टी.के. उमन भारतीय समाज में धर्म, आधुनिकता और धर्मनिरपेक्षीकरण के अध्ययन से जुड़े प्रमुख समाजशास्त्रियों में से हैं। उन्होंने भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षीकरण की जटिलताओं और धार्मिक पुनरुत्थानवाद जैसी घटनाओं का विश्लेषण किया है।
    • संदर्भ और विस्तार: उमन ने तर्क दिया है कि भारत में धर्मनिरपेक्षीकरण पश्चिमी मॉडल से भिन्न हो सकता है, जहाँ धर्म और आधुनिकता सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।
    • गलत विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास संस्कृतिकरण और दक्षिण भारत के कोर्गों पर अपने कार्य के लिए जाने जाते हैं। इरावती कर्वे ने नातेदारी (kinship) और भारत के भौगोलिक क्षेत्रों का अध्ययन किया। अमिताभ कुंडू मुख्य रूप से शहरीकरण और जनसांख्यिकी पर काम करते हैं।

    प्रश्न 15: ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) का मुख्य सरोकार क्या है?

    1. व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं का अध्ययन
    2. समाज में ज्ञान के उत्पादन, वितरण और प्रभाव का अध्ययन
    3. संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं की न्यूरोलॉजिकल व्याख्या
    4. प्राकृतिक विज्ञानों के नियमों का सामाजिकरण

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: ज्ञान के समाजशास्त्र का मुख्य उद्देश्य यह जांचना है कि सामाजिक परिस्थितियाँ (जैसे वर्ग, धर्म, शिक्षा) कैसे प्रभावित करती हैं कि क्या जाना जाता है, कौन जानता है, और क्या सत्य माना जाता है। यह कार्ल मैनहाइम जैसे विचारकों से जुड़ा है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह क्षेत्र इस बात की पड़ताल करता है कि ज्ञान केवल वस्तुनिष्ठ सत्य नहीं है, बल्कि सामाजिक रूप से निर्मित है और अक्सर सत्तात्मक संबंधों से जुड़ा होता है।
    • गलत विकल्प: (a) और (c) मनोविज्ञान या तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र हैं। (d) प्राकृतिक विज्ञान के सामाजिकरण की बात करता है, जो ज्ञान के समाजशास्त्र से भिन्न है, जो ज्ञान की सामाजिक प्रकृति पर केंद्रित है।

    प्रश्न 16: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जिसे सामाजिक नेटवर्क, संबंधों और विश्वास के माध्यम से प्राप्त लाभ के रूप में परिभाषित किया जाता है, किन प्रमुख समाजशास्त्रियों से जुड़ी है?

    1. पियरे बॉर्डियू और रॉबर्ट पुटनम
    2. टैल्कॉट पार्सन्स और नील स्मेल्सर
    3. अल्बर्ट बंडुरा और जूलियन रोटर
    4. जॉन केनेथ गैलब्रेथ और मिल्टन फ्रीडमैन

    उत्तर: (a)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: पियरे बॉर्डियू (फ्रांस) और रॉबर्ट पुटनम (अमेरिका) को सामाजिक पूंजी की अवधारणा को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है। बॉर्डियू ने इसे सामाजिक संबंधों के अपने पूल से उत्पन्न होने वाले संसाधनों के रूप में देखा, जबकि पुटनम ने नागरिक जुड़ाव के महत्व पर जोर दिया।
    • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक पूंजी व्यक्तियों या समूहों को उनके सामाजिक संबंधों से प्राप्त होने वाली पहुंच और अवसरों को बढ़ाती है।
    • गलत विकल्प: पार्सन्स और स्मेल्सर कार्यात्मकतावाद से संबंधित हैं। बंडुरा और रोटर सामाजिक-संज्ञानात्मक सिद्धांत (social-cognitive theory) से जुड़े हैं। गैलब्रेथ और फ्रीडमैन अर्थशास्त्री हैं।

    प्रश्न 17: भारत में ‘जाति व्यवस्था’ (Caste System) के अध्ययन में, ‘संसकृतिकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया का वर्णन किसने किया, जिसमें निम्न जातियाँ उच्च जातियों की प्रथाओं, अनुष्ठानों और मान्यताओं को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने का प्रयास करती हैं?

    1. ई.वी. रामासामी पेरियार
    2. एम.एन. श्रीनिवास
    3. ए.एल. बस्सम
    4. राम मनोहर लोहिया

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: मैसूर के कुर्गों पर अपने गहन नृवंशविज्ञान (ethnographic) अध्ययन के दौरान, एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संसकृतिकरण’ की अवधारणा विकसित की। यह वह प्रक्रिया है जहाँ निम्न जाति की जातियाँ अपनी स्थिति बढ़ाने के लिए उच्च, अक्सर द्विज (twice-born) जातियों के आचरण, अनुष्ठान और धार्मिक विश्वासों का अनुकरण करती हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह एक प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता है, जो सामाजिक गतिशीलता का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
    • गलत विकल्प: पेरियार एक द्रविड़ आंदोलन के नेता थे जिन्होंने जाति-विरोधी सुधारों की वकालत की। बससम प्राचीन भारतीय इतिहासकार थे। लोहिया समाजवादी नेता और विचारक थे।

    प्रश्न 18: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ के अनुसार, ‘स्व’ (Self) का विकास कैसे होता है?

    1. यह पूरी तरह से जैविक रूप से निर्धारित होता है।
    2. यह समाज के साथ अंतःक्रिया के माध्यम से, प्रतीकों और भूमिकाओं को अपनाकर विकसित होता है।
    3. यह किसी व्यक्ति के जन्मजात गुणों से उत्पन्न होता है।
    4. यह केवल बाहरी दबावों और पुरस्कारों का परिणाम है।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड के अनुसार, ‘स्व’ (Self) जन्म से नहीं बल्कि सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से विकसित होता है। व्यक्ति दूसरों की प्रतिक्रियाओं को देखकर और ‘अन्य’ (the Other) की भूमिका को अपनाकर (taking the role of the other) अपने बारे में एक विचार विकसित करते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘खेल’ (play) और ‘खेल’ (game) के चरणों का वर्णन किया, जहाँ बच्चा पहले महत्वपूर्ण ‘अन्य’ (जैसे माता-पिता) की भूमिकाओं को अपनाता है, और फिर ‘सामान्यीकृत अन्य’ (generalized other) की भूमिका को, जो समाज की समग्र अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
    • गलत विकल्प: (a), (c) और (d) सभी अंतःक्रियावाद के सामाजिक निर्माणवादी दृष्टिकोण के विरुद्ध हैं।

    प्रश्न 19: ‘लोकप्रिय प्रथाएं’ (Folkways) और ‘रूढ़ियाँ’ (Mores) के बीच अंतर को स्पष्ट करने वाले समाजशास्त्री कौन हैं?

    1. एमिल दुर्खीम
    2. विलियम ग्राहम समनर
    3. मैक्स वेबर
    4. इमाइल डुरेन

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: विलियम ग्राहम समनर ने अपनी पुस्तक ‘फोल्कवेज’ (1906) में, ‘लोकप्रिय प्रथाओं’ (Folkways) को समाज के मानदंडों के रूप में परिभाषित किया, जिनके उल्लंघन पर मामूली सामाजिक अस्वीकृति होती है, और ‘रूढ़ियों’ (Mores) को ऐसे मानदंडों के रूप में परिभाषित किया, जिनके उल्लंघन को अनैतिक या हानिकारक माना जाता है और जिस पर गंभीर सामाजिक प्रतिक्रिया होती है।
    • संदर्भ और विस्तार: लोकप्रिय प्रथाएं दैनिक जीवन के रीति-रिवाज हैं (जैसे सार्वजनिक स्थानों पर शिष्टाचार), जबकि रूढ़ियां नैतिक महत्व रखती हैं (जैसे चोरी या हत्या के विरुद्ध नियम)।
    • गलत विकल्प: दुर्खीम सामाजिक तथ्यों पर केंद्रित थे, वेबर ने सामाजिक क्रिया पर, और डुरेन (यहाँ संभवतः दुर्खीम का गलत उल्लेख है) ने एकजुटता पर।

    प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक संस्था का कार्य ‘समाज में ज्ञान और मूल्यों का प्रसारण’ है?

    1. परिवार
    2. राज्य
    3. शिक्षा (Education)
    4. अर्थव्यवस्था

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: शिक्षा प्रणाली का एक प्राथमिक कार्य समाज में पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्ञान, कौशल, सामाजिक मूल्यों, विश्वासों और व्यवहार के मानदंडों का औपचारिक प्रसारण करना है।
    • संदर्भ और विस्तार: शिक्षा न केवल अकादमिक ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि सामाजिकरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे व्यक्ति समाज का एक कार्यात्मक सदस्य बन सके।
    • गलत विकल्प: परिवार प्राथमिक समाजीकरण करता है, लेकिन शिक्षा का दायरा व्यापक होता है। राज्य कानून और व्यवस्था बनाए रखता है। अर्थव्यवस्था वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और वितरण करती है।

    प्रश्न 21: ‘संरचनात्मक हिंसा’ (Structural Violence) की अवधारणा, जो प्रत्यक्ष शारीरिक हिंसा से भिन्न है और सामाजिक संरचनाओं या संस्थानों में निहित पूर्वाग्रहों, असमानताओं और अन्याय के कारण होने वाली क्षति या हानि को संदर्भित करती है, किससे जुड़ी है?

    1. हनाह एरेंड्ट
    2. जोहान गैल्टुंग
    3. मिशेल फूको
    4. जुरगेन हैबरमास

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: जोहान गैल्टुंग, एक नॉर्वेजियन समाजशास्त्री, ने ‘संरचनात्मक हिंसा’ की अवधारणा विकसित की। उनके अनुसार, यह हिंसा तब होती है जब सामाजिक संरचनाएं लोगों को उनकी पूरी क्षमता तक पहुँचने से रोकती हैं, भले ही इसमें कोई स्पष्ट हमलावर न हो।
    • संदर्भ और विस्तार: गरीबी, असमानता, भेदभाव और संसाधनों तक पहुंच की कमी संरचनात्मक हिंसा के उदाहरण हैं।
    • गलत विकल्प: हनाह एरेंड्ट ने ‘बुराई की सादगी’ (banality of evil) पर लिखा। फूको ने शक्ति, ज्ञान और प्रवचन (discourse) का विश्लेषण किया। हैबरमास ने ‘सार्वजनिक क्षेत्र’ (public sphere) और ‘संचार क्रिया’ (communicative action) पर काम किया।

    प्रश्न 22: भारत में ‘पंचायत राज’ संस्थाओं को मजबूत करने का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

    1. केंद्रीकृत शासन को बढ़ावा देना
    2. जनजातीय समुदायों का अलगाव
    3. स्थानीय स्तर पर ग्रामीण स्वशासन और सशक्तिकरण
    4. शहरी विकास को गति देना

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: भारत में पंचायत राज संस्थाएं (जैसे ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद) ग्रामीण स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने, निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने और स्थानीय स्तर पर विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित की गई हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर इसे और मजबूत किया।
    • गलत विकल्प: इसका उद्देश्य केंद्रीकरण के बजाय विकेंद्रीकरण है। यह अलगाव को नहीं, बल्कि एकीकरण और विकास को बढ़ावा देता है, और इसका मुख्य ध्यान ग्रामीण क्षेत्रों पर है, न कि शहरी विकास पर।

    प्रश्न 23: ‘सामाजिक विघटन’ (Social Disorganization) का सिद्धांत, जो शहरी अपराध और विचलन (deviance) के पैटर्न की व्याख्या करने के लिए प्रयोग किया गया था, शिकागो स्कूल के समाजशास्त्रियों द्वारा विकसित किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार, शहरीकरण और आप्रवासन (immigration) से अक्सर क्या होता है?

    1. पारंपरिक सामुदायिक नियंत्रण मजबूत होते हैं।
    2. सामाजिक नियंत्रण के कमजोर होने के कारण विचलन बढ़ता है।
    3. नैतिक मूल्यों में वृद्धि होती है।
    4. सामाजिक एकजुटता और घनिष्ठता बढ़ती है।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: सामाजिक विघटन सिद्धांतकारों (जैसे थॉमस और ज़्नानीकी, क्लिफर्ड शॉ और हेनरी मैके) का तर्क था कि उच्च आप्रवासन, जनसंख्या कारोबार और आर्थिक परिवर्तन वाले शहरी क्षेत्रों में, पारंपरिक सामाजिक बंधन और नियंत्रण कमजोर पड़ जाते हैं, जिससे अपराध और विचलन के लिए अधिक अवसर पैदा होते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत शिकागो शहर के विभिन्न पड़ोसों के अध्ययनों पर आधारित था।
    • गलत विकल्प: शहरीकरण और आप्रवासन अक्सर पारंपरिक नियंत्रण को कमजोर करते हैं, बढ़ाते नहीं। यह नैतिक वृद्धि या घनिष्ठता का कारण नहीं बनता, बल्कि इसके विपरीत होता है।

    प्रश्न 24: ‘जाति’ (Caste) और ‘वर्ग’ (Class) के बीच संबंध पर विचार करते हुए, कई भारतीय समाजशास्त्रियों ने तर्क दिया है कि भारत में वर्ग अक्सर जाति द्वारा प्रभावित और संशोधित होता है। इसे आप किस रूप में सबसे अच्छी तरह समझ सकते हैं?

    1. जाति व्यवस्था पूरी तरह से समाप्त हो गई है और अब वर्ग ही एकमात्र महत्वपूर्ण कारक है।
    2. वर्ग और जाति पूरी तरह से स्वतंत्र हैं और एक-दूसरे को प्रभावित नहीं करते।
    3. भारत में आर्थिक वर्ग संरचना पर जाति की व्यवस्था और सामाजिक गतिशीलता का गहरा प्रभाव है।
    4. जाति व्यवस्था केवल एक धार्मिक अवधारणा है जिसका अर्थव्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है।

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: भारतीय समाज के कई समाजशास्त्रियों ने पाया है कि जाति, एक पूर्व-पूंजीवादी और जन्म-आधारित स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में, आधुनिक वर्ग संरचनाओं के निर्माण और संचालन को गहराई से प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, कुछ जातियों का ऐतिहासिक रूप से कुछ व्यवसायों से जुड़ाव या संपत्ति के स्वामित्व में उनके लाभ ने उनकी वर्तमान आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह तर्क दिया जाता है कि जबकि वर्ग मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति पर आधारित है, भारत में जाति अक्सर आर्थिक असमानताओं को बनाए रखने और सामाजिक गतिशीलता को सीमित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • गलत विकल्प: (a) और (b) भारतीय समाज की जटिलता को नजरअंदाज करते हैं। (d) यह एक अति सरलीकरण है; जाति के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव व्यापक रहे हैं।

    प्रश्न 25: ‘अनुसंधान की विधि’ (Methodology) के संदर्भ में, ‘गुणात्मक अनुसंधान’ (Qualitative Research) का प्राथमिक उद्देश्य क्या होता है?

    1. बड़े डेटा सेट से सांख्यिकीय रुझानों की पहचान करना।
    2. किसी घटना की गहराई से समझ, अर्थ और संदर्भ प्राप्त करना।
    3. जनसंख्या के बड़े नमूने से सामान्यीकरण (generalization) करना।
    4. कारण-और-प्रभाव संबंधों को सटीक रूप से मापना।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: गुणात्मक अनुसंधान (जैसे साक्षात्कार, अवलोकन, केस स्टडी) का लक्ष्य घटनाओं के पीछे के ‘क्यों’ और ‘कैसे’ को समझना है, जिसमें लोगों के अनुभव, धारणाएं और व्यवहार के अर्थ शामिल हैं। यह व्यापक सामान्यीकरण के बजाय गहराई और अंतर्दृष्टि पर केंद्रित होता है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह शोधकर्ता को विषय की दुनिया में गहराई से उतरने और समृद्ध, वर्णनात्मक डेटा एकत्र करने की अनुमति देता है।
    • गलत विकल्प: (a), (c) और (d) मात्रात्मक अनुसंधान (quantitative research) के मुख्य उद्देश्य हैं, जहाँ संख्यात्मक डेटा और सांख्यिकीय विश्लेषण का उपयोग किया जाता है।

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