संविधान का सार: दैनिक प्रश्नोत्तरी
नमस्कार, संवैधानिक योद्धाओं! आज आपके ज्ञान की गहराई को परखने और भारतीय लोकतंत्र की मजबूत नींव को समझने का दिन है। क्या आप अपने संवैधानिक ज्ञान को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए तैयार हैं? आइए, इन 25 चुनिंदा प्रश्नों के साथ अपनी तैयारी को धार दें और अपने आत्मविश्वास को चरम पर पहुंचाएं!
भारतीय राजनीति और संविधान अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा से संबंधित है, यदि देश की सुरक्षा को युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा हो?
- अनुच्छेद 352
- अनुच्छेद 356
- अनुच्छेद 360
- अनुच्छेद 365
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 352 भारतीय संविधान के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा से संबंधित है। यह तब लागू किया जा सकता है जब भारत की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण खतरा हो।
- संदर्भ और विस्तार: यह मूल रूप से ‘सशस्त्र विद्रोह’ के बजाय ‘आंतरिक अशांति’ का उल्लेख करता था, लेकिन 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा इसे ‘सशस्त्र विद्रोह’ से बदल दिया गया ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति शासन से संबंधित है, और अनुच्छेद 360 वित्तीय आपातकाल से। अनुच्छेद 365 उन स्थितियों से संबंधित है जहाँ राज्य केंद्र के निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है।
प्रश्न 2: ‘प्रस्तावना’ शब्द का प्रयोग संविधान के किस भाग में किया गया है?
- भारत सरकार अधिनियम, 1935
- कैबिनेट मिशन योजना, 1946
- संविधान सभा द्वारा पारित उद्देश्य संकल्प
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान की प्रस्तावना जवाहरलाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा में प्रस्तुत ‘उद्देश्य संकल्प’ (Objective Resolution) का ही संशोधित रूप है। संविधान सभा ने 22 जनवरी, 1947 को इसे अपनाया था।
- संदर्भ और विस्तार: उद्देश्य संकल्प में भारत को एक संप्रभु, स्वतंत्र गणराज्य घोषित करने और उसके भविष्य के शासन के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने की बात कही गई थी। प्रस्तावना इसी संकल्प का सार है।
- गलत विकल्प: भारत सरकार अधिनियम, 1935 और कैबिनेट मिशन योजना, 1946 ऐतिहासिक दस्तावेज थे जिन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में योगदान दिया, लेकिन ‘प्रस्तावना’ शब्द का सीधा प्रयोग इनमें नहीं हुआ था; यह उद्देश्य संकल्प से सीधे जुड़ा है।
प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सी रिट तब जारी की जाती है जब न्यायालय को लगता है कि कोई लोक पद किसी अयोग्य व्यक्ति द्वारा धारण किया जा रहा है?
- हैबियस कॉर्पस
- मेंडामस
- प्रोहिबिशन
- क्यू वारंटो
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘क्यू वारंटो’ (Quo Warranto) एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है ‘किस अधिकार द्वारा’। यह रिट तब जारी की जाती है जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे लोक पद पर अवैध रूप से कब्जा कर लेता है जो उसके पास नहीं होना चाहिए। न्यायालय उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार के तहत उस पद पर है। यह अनुच्छेद 32 (सर्वोच्च न्यायालय) और अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालय) के तहत आता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह मूल अधिकार को लागू करने के लिए या किसी अन्य कानूनी अधिकार के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक पद केवल योग्य व्यक्तियों द्वारा ही धारण किए जाएं।
- गलत विकल्प: ‘हैबियस कॉर्पस’ का अर्थ है ‘आपके पास शरीर हो’, जो अवैध हिरासत से व्यक्ति को मुक्त कराता है। ‘मेंडामस’ का अर्थ है ‘हम आदेश देते हैं’, जो किसी लोक प्राधिकारी को उसके कर्तव्य करने का आदेश देता है। ‘प्रोहिबिशन’ का अर्थ है ‘रोकना’, जो किसी निचली अदालत या निकाय को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने से रोकता है।
प्रश्न 4: भारतीय संविधान के किस संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया?
- 42वां संशोधन, 1976
- 44वां संशोधन, 1978
- 73वां संशोधन, 1992
- 74वां संशोधन, 1992
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 ने भारतीय संविधान में भाग IX जोड़ा और एक नया अनुच्छेद 243 से 243-O तक जोड़ा। इस संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को एक संवैधानिक दर्जा दिया, जिससे वे स्व-शासन की इकाइयाँ बन गईं।
- संदर्भ और विस्तार: इसने पंचायतों के लिए तीन-स्तरीय संरचना (ग्राम पंचायत, मध्यवर्ती पंचायत, जिला परिषद), सीटों का आरक्षण, कार्यकाल, वित्तीय शक्तियाँ आदि निर्धारित कीं।
- गलत विकल्प: 42वें संशोधन ने प्रस्तावना में ‘समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, अखंडता’ शब्द जोड़े। 44वें संशोधन ने संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर कानूनी अधिकार बनाया। 74वें संशोधन ने शहरी स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं) को संवैधानिक दर्जा दिया।
प्रश्न 5: राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्तियों का उल्लेख संविधान के किस अनुच्छेद में है?
- अनुच्छेद 72
- अनुच्छेद 108
- अनुच्छेद 111
- अनुच्छेद 112
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को कुछ मामलों में क्षमा, लघुकरण, परिहार, या विराम देने की शक्ति प्रदान करता है, जैसे कि संघ के कानून के विरुद्ध अपराध, या मृत्युदंड, या सैन्य न्यायालयों द्वारा दी गई सज़ा।
- संदर्भ और विस्तार: यह शक्ति राष्ट्रपति को विवेकपूर्ण अधिकार देती है, लेकिन यह न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है यदि यह मनमाने ढंग से या अनुचित आधार पर प्रयोग की जाए। राष्ट्रपति विभिन्न प्रकार की क्षमादान शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं, जैसे पूर्ण क्षमा, लघुकरण, सज़ा को रोकना, या सज़ा की प्रकृति या अवधि बदलना।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 108 संयुक्त बैठक से संबंधित है, अनुच्छेद 111 राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों (विधेयकों पर अनुमति) से, और अनुच्छेद 112 वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) से।
प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा कथन मौलिक अधिकारों के संबंध में सही नहीं है?
- ये न्यायोचित (Justiciable) हैं।
- ये नागरिकों के लिए विशेषाधिकार हैं, राज्य के लिए नहीं।
- इन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
- ये केवल राज्य के विरुद्ध उपलब्ध हैं, निजी व्यक्तियों के विरुद्ध नहीं।
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: कथन (d) सही नहीं है। जबकि मौलिक अधिकार मुख्य रूप से राज्य के विरुद्ध लागू होते हैं (अनुच्छेद 12 के अनुसार ‘राज्य’ की परिभाषा), कुछ अधिकार, जैसे अनुच्छेद 15(2) और 17, निजी व्यक्तियों के विरुद्ध भी लागू होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मौलिक अधिकार न्यायोचित हैं (अनुच्छेद 32 और 226), जिसका अर्थ है कि उनके उल्लंघन पर न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। इन अधिकारों पर ‘उचित प्रतिबंध’ (reasonable restrictions) लगाए जा सकते हैं (जैसे अनुच्छेद 19)। ये अधिकार नागरिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं और राज्य की शक्ति को सीमित करते हैं।
- गलत विकल्प: कथन (a), (b), और (c) मौलिक अधिकारों के बारे में सही कथन हैं।
प्रश्न 7: धन विधेयक के संबंध में राज्यसभा के पास क्या शक्तियाँ हैं?
- यह धन विधेयक को अस्वीकार कर सकती है।
- यह धन विधेयक में संशोधन कर सकती है।
- यह धन विधेयक को 14 दिनों तक रोक सकती है।
- यह धन विधेयक पर वीटो कर सकती है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 109 के अनुसार, एक धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। राज्यसभा इसे अस्वीकार या संशोधित नहीं कर सकती। यह केवल 14 दिनों की अवधि के लिए इसे रोक सकती है। यदि 14 दिनों के भीतर राज्यसभा बिल वापस नहीं करती है, तो इसे दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: धन विधेयक का विशेष दर्जा लोकसभा को वित्तीय मामलों पर अधिक शक्ति देता है। राज्यसभा सुझाव दे सकती है, लेकिन वे लोकसभा के लिए बाध्यकारी नहीं होते।
- गलत विकल्प: राज्यसभा धन विधेयक को अस्वीकार, संशोधित या वीटो नहीं कर सकती है। वे केवल 14 दिनों तक रोक सकते हैं।
प्रश्न 8: भारत के संविधान के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘राज्य’ की परिभाषा के अंतर्गत आता है?
- केवल संसद और राज्य विधानमंडल।
- सभी सार्वजनिक उपक्रम, जैसे बीएचईएल।
- किसी भी राज्य के विधानमंडल के अलावा, भारत की सरकार और संसद, प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल, और सभी स्थानीय प्राधिकारी या अन्य प्राधिकारी।
- केवल भारत की सरकार और संसद।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 12 के अनुसार, ‘राज्य’ की परिभाषा में भारत की सरकार और संसद, प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल, और सभी स्थानीय प्राधिकारी या अन्य प्राधिकारी शामिल हैं। ‘अन्य प्राधिकारी’ की व्याख्या में ऐसे संगठन भी शामिल किए जा सकते हैं जो सार्वजनिक कार्यों को करने के लिए स्थापित किए गए हैं और जिनमें सरकारी शक्ति का प्रयोग होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह परिभाषा मौलिक अधिकारों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि अधिकार राज्य की कार्रवाई के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों में ‘अन्य प्राधिकारी’ के दायरे को स्पष्ट किया है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b), और (d) ‘राज्य’ की परिभाषा को अपूर्ण या गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि इसमें स्थानीय निकाय और अन्य प्राधिकारी भी शामिल हैं।
प्रश्न 9: निम्नलिखित में से किस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि प्रस्तावना संविधान का एक अभिन्न अंग है?
- बेरूबारी संघ मामला (1960)
- केशवानंद भारती मामला (1973)
- मेनका गांधी मामला (1978)
- ए.के. गोपालन मामला (1950)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि प्रस्तावना संविधान का एक अभिन्न अंग है। इसने यह भी कहा कि प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन इसके मूल ढांचे (basic structure) को नहीं बदला जा सकता।
- संदर्भ और विस्तार: यह निर्णय भारतीय संवैधानिक कानून में एक मील का पत्थर था, जिसने संसद की संशोधन शक्ति की सीमाओं को स्थापित किया। बेरूबारी संघ मामले (1960) में, न्यायालय ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है।
- गलत विकल्प: बेरूबारी संघ मामले में प्रस्तावना को संविधान का हिस्सा नहीं माना गया था। मेनका गांधी मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है, और ए.के. गोपालन मामला निवारक निरोध से।
प्रश्न 10: भारतीय संविधान की कौन सी विशेषता अमेरिका के संविधान से नहीं ली गई है?
- मौलिक अधिकार
- न्यायिक पुनरावलोकन
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत
- उपराष्ट्रपति का पद
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy) भारतीय संविधान की एक अनूठी विशेषता है जो आयरलैंड के संविधान से प्रेरित है।
- संदर्भ और विस्तार: मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review), उपराष्ट्रपति का पद, और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया जैसी कई महत्वपूर्ण विशेषताएँ अमेरिकी संविधान से ली गई हैं।
- गलत विकल्प: मौलिक अधिकार (भाग III), न्यायिक पुनरावलोकन, उपराष्ट्रपति का पद (अनुच्छेद 63), और सर्वोच्च न्यायालय की सलाहकार अधिकारिता (अनुच्छेद 143) अमेरिकी संविधान से लिए गए हैं।
प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति करता है?
- भारत के राष्ट्रपति
- भारत के प्रधान मंत्री
- लोकसभा के अध्यक्ष
- भारत के मुख्य न्यायाधीश
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 148 के तहत की जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: CAG भारत के सभी वित्तीय लेखा-जोखा की जांच करता है और संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपता है। यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक धन का व्यय निर्धारित नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार हो।
- गलत विकल्प: प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति प्रक्रिया या CAG की नियुक्ति में प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती है।
प्रश्न 12: संसदीय प्रणाली में, ‘प्रश्नकाल’ के दौरान, कौन सा प्रश्न बिना पूर्व सूचना के पूछा जा सकता है?
- अल्पकालिक सूचना प्रश्न
- तारांकित प्रश्न
- अतारांकित प्रश्न
- कोई भी प्रश्न
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संसदीय प्रक्रिया में, ‘तारांकित प्रश्न’ (Starred Questions) वे होते हैं जिनका सदस्य मौखिक उत्तर चाहता है और जिनका उत्तर प्रश्न पुस्तिका में एक तारांकन (*) द्वारा चिन्हित किया जाता है। इन प्रश्नों के लिए न्यूनतम 10 दिनों की पूर्व सूचना आवश्यक होती है, लेकिन स्पीकर की अनुमति से कम समय में भी पूछा जा सकता है। हालांकि, बिना पूर्व सूचना के पूछे जाने वाले प्रश्न ‘शून्य काल’ (Zero Hour) के दौरान उठाये जाते हैं, जहाँ तारांकित और अतारांकित दोनों प्रकार के प्रश्न बिना पूर्व सूचना के उठाए जा सकते हैं, लेकिन यह प्रश्नकाल के बारे में है। प्रश्नकाल में, बिना पूर्व सूचना के केवल ‘पूरक प्रश्न’ (supplementary questions) पूछे जा सकते हैं, जो तारांकित प्रश्न के उत्तर पर आधारित होते हैं। लेकिन प्रश्न सीधे ‘बिना पूर्व सूचना के पूछे जाने वाले प्रश्न’ के बारे में है। शून्य काल (Zero Hour) के प्रश्न बिना पूर्व सूचना के उठाए जा सकते हैं। प्रश्नकाल में, तारांकित प्रश्न मौखिक उत्तर के लिए होते हैं, और शून्य काल में पूछे जाने वाले प्रश्न बिना पूर्व सूचना के हो सकते हैं। प्रश्नकाल के भीतर, तारांकित प्रश्न पहले आते हैं। यदि प्रश्नकाल के दौरान बिना पूर्व सूचना के प्रश्न पूछने की बात करें तो यह शून्य काल का हिस्सा होगा, जो प्रश्नकाल के तुरंत बाद आता है। लेकिन दिए गए विकल्पों में, तारांकित प्रश्न मौखिक उत्तर के लिए होते हैं और उन पर पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं। शून्य काल के प्रश्न किसी भी विषय पर हो सकते हैं। संसदीय अभ्यास में, ‘शून्य काल’ के दौरान प्रश्न बिना पूर्व सूचना के उठाए जाते हैं। यदि प्रश्नकाल के दौरान की बात करें, तो यह थोड़ा पेचीदा है। सामान्य नियम के तहत, तारांकित प्रश्न के लिए 10 दिन की सूचना चाहिए, लेकिन ‘तत्काल महत्व’ के प्रश्नों को स्पीकर की अनुमति से कम समय में पूछा जा सकता है। पर ‘बिना पूर्व सूचना’ वाले प्रश्न सीधे शून्य काल से जुड़े हैं। प्रश्न की भाषा थोड़ी भ्रामक है। संसदीय अभ्यास में, शून्यकाल वह समय है जब सदस्य बिना पूर्व-निर्धारित सूचना के कोई भी मामला उठा सकते हैं। प्रश्नकाल में, केवल तारांकित प्रश्नों पर पूरक प्रश्न पूछे जाते हैं। यदि हम प्रश्नकाल के संदर्भ में प्रश्न पूछने की बात करें, तो सबसे निकटतम विकल्प होगा तारांकित प्रश्न, क्योंकि उन पर पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं, जो अप्रत्याशित होते हैं। लेकिन सीधे ‘बिना पूर्व सूचना’ के प्रश्न ‘शून्य काल’ से संबंधित हैं। विकल्पों को देखते हुए, यदि प्रश्नकाल के दौरान (या उसके तुरंत बाद, शून्य काल में) बिना पूर्व सूचना के प्रश्न उठाने की बात हो, तो यह शून्य काल के लिए अधिक प्रासंगिक है। लेकिन विकल्प में शून्य काल नहीं है। तारांकित प्रश्न मौखिक उत्तर के लिए होते हैं और उन पर पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं, जो एक तरह से अनियोजित होते हैं। इसलिए, इसे सबसे निकटतम माना जा सकता है।
पुनर्विचार: भारतीय संसदीय प्रक्रिया के अनुसार, प्रश्नकाल में तारांकित प्रश्न (Starred Questions) मौखिक उत्तर के लिए होते हैं और इनके जवाब पर संबंधित सदस्य पूरक प्रश्न (supplementary questions) पूछ सकते हैं, जिनके लिए कोई पूर्व सूचना आवश्यक नहीं होती। अतारांकित प्रश्न (Unstarred Questions) लिखित उत्तर के लिए होते हैं और उन पर कोई पूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता। अल्पकालिक सूचना प्रश्न (Short Notice Questions) 10 दिनों से कम की सूचना पर पूछे जाते हैं। शून्य काल (Zero Hour) वह समय है जब कोई भी सदस्य बिना पूर्व सूचना के महत्वपूर्ण सार्वजनिक मामलों को उठा सकता है। प्रश्न में ‘प्रश्नकाल’ का उल्लेख है, और ‘बिना पूर्व सूचना के पूछा जा सकता है’ का अर्थ सीधे तौर पर तारांकित प्रश्न पर पूछे जाने वाले पूरक प्रश्नों या शून्यकाल के प्रश्नों से है। चूँकि शून्यकाल विकल्प में नहीं है, और तारांकित प्रश्न के उत्तर पर पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं, जो बिना पूर्व सूचना के होते हैं, इसलिए ‘तारांकित प्रश्न’ सबसे उपयुक्त उत्तर है, भले ही यह प्रश्नकाल के ‘मुख्य’ भाग से संबंधित हो।
अंतिम उत्तर (पुनर्विचार के बाद): (b) तारांकित प्रश्न
- संदर्भ और विस्तार: तारांकित प्रश्नों के उत्तर मौखिक रूप से दिए जाते हैं, और इसके बाद प्रश्न पूछने वाले सदस्य द्वारा पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं। यह संसदीय बहस और सूचना प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।
- गलत विकल्प: अतारांकित प्रश्नों का लिखित उत्तर मिलता है और उन पर पूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते। अल्पकालिक सूचना प्रश्नों के लिए एक निश्चित छोटी अवधि की पूर्व सूचना आवश्यक होती है।
प्रश्न 13: भारत में निम्नलिखित में से कौन सी पंचायती राज व्यवस्था की एक विशेषता है?
- यह एक त्रि-स्तरीय प्रणाली है (ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तर पर)।
- यह राज्य द्वारा नियंत्रित है।
- इनमें महिलाओं के लिए कोई आरक्षण नहीं है।
- इनमें निर्वाचित सदस्यों के बजाय मनोनीत सदस्य होते हैं।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के अनुसार, अधिकांश राज्यों के लिए, पंचायती राज की एक त्रि-स्तरीय प्रणाली का प्रावधान है: ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर), पंचायत समिति या मध्यवर्ती स्तर (ब्लॉक/तालुका स्तर), और जिला परिषद (जिला स्तर)।
- संदर्भ और विस्तार: हालांकि, जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से कम है, उनके लिए मध्यवर्ती स्तर का गठन वैकल्पिक है। अनुच्छेद 243D में पंचायतों में सीटों के आरक्षण का प्रावधान है, जिसमें महिलाओं के लिए कम से कम एक-तिहाई सीटें आरक्षित हैं।
- गलत विकल्प: पंचायती राज संस्थाएँ राज्य सरकार के नियंत्रण में होने के बजाय स्व-शासन की संस्थाएँ हैं। महिलाओं के लिए आरक्षण (कम से कम 1/3) एक महत्वपूर्ण विशेषता है, और सदस्य निर्वाचित होते हैं, मनोनीत नहीं।
प्रश्न 14: निम्नलिखित में से कौन भारत में ‘आर्थिक नियोजन’ से संबंधित है?
- संघ सूची
- राज्य सूची
- समवर्ती सूची
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: आर्थिक और सामाजिक नियोजन समवर्ती सूची (Concurrent List) की प्रविष्टि 20 में आता है, जिसका अर्थ है कि इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास है।
- संदर्भ और विस्तार: भारत ने नियोजन के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया है, और पंचवर्षीय योजनाएँ (अब नीति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित) इसका मुख्य साधन रही हैं। चूंकि नियोजन एक व्यापक विषय है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय और राज्य स्तर पर कार्यान्वयन शामिल है, इसलिए इसे समवर्ती सूची में रखा गया है।
- गलत विकल्प: संघ सूची में राष्ट्रीय महत्व के विषय होते हैं, और राज्य सूची में राज्य स्तर के विषय। नियोजन दोनों के समन्वय से जुड़ा है।
प्रश्न 15: निम्नलिखित में से कौन सी रिट तब जारी की जाती है जब न्यायालय को लगता है कि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है?
- मेंडामस
- प्रोहिबिशन
- हैबियस कॉर्पस
- क्यू वारंटो
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘हैबियस कॉर्पस’ (Habeas Corpus) एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है ‘आपके पास शरीर हो’। यह एक परमादेश है जो किसी भी हिरासत में रखे गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश देता है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया हो। यह अनुच्छेद 32 (सर्वोच्च न्यायालय) और अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालय) के तहत आता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली साधन है। यदि हिरासत अवैध पाई जाती है, तो न्यायालय व्यक्ति को तुरंत रिहा करने का आदेश दे सकता है।
- गलत विकल्प: ‘मेंडामस’ किसी प्राधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश देता है। ‘प्रोहिबिशन’ किसी निचली अदालत या निकाय को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने से रोकता है। ‘क्यू वारंटो’ किसी व्यक्ति को अवैध रूप से धारण किए गए पद से हटाने का आदेश देता है।
प्रश्न 16: भारत के प्रधान मंत्री की नियुक्ति कौन करता है?
- भारत के राष्ट्रपति
- भारत के उपराष्ट्रपति
- लोकसभा के अध्यक्ष
- राज्यसभा के बहुमत दल के नेता
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 75(1) के अनुसार, प्रधान मंत्री की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: हालांकि, राष्ट्रपति उस व्यक्ति को प्रधान मंत्री नियुक्त करते हैं जो लोकसभा में बहुमत दल का नेता हो, या जिसे लोकसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त हो। यदि कोई स्पष्ट बहुमत न हो, तो राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन नव नियुक्त प्रधान मंत्री को निश्चित अवधि के भीतर सदन में बहुमत साबित करना होता है।
- गलत विकल्प: उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के नेता की नियुक्ति या उनकी राय प्रधान मंत्री की नियुक्ति को प्रभावित नहीं करती है।
प्रश्न 17: किस मौलिक अधिकार को डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने ‘संविधान की आत्मा और हृदय’ कहा है?
- समानता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार (Right to Constitutional Remedies), जो अनुच्छेद 32 के तहत आता है, को ‘संविधान की आत्मा और हृदय’ कहा था।
- संदर्भ और विस्तार: यह अधिकार नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में सीधे सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) या उच्च न्यायालयों (अनुच्छेद 226) में जाने का अधिकार देता है। इसके बिना, अन्य सभी मौलिक अधिकार अर्थहीन हो जाएंगे क्योंकि उनके उल्लंघन को चुनौती देने का कोई साधन नहीं होगा।
- गलत विकल्प: समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18), स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22), और शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24) महत्वपूर्ण अधिकार हैं, लेकिन अम्बेडकर के अनुसार अनुच्छेद 32 सबसे महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 18: निम्नलिखित में से कौन भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा?
- वह व्यक्ति जिसने स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता ग्रहण कर ली हो।
- वह व्यक्ति जो विदेशी राज्य का नागरिक है और जिसके माता-पिता में से कोई भी भारत में जन्मा हो।
- वह व्यक्ति जो भारत के राज्यक्षेत्र में पैदा हुआ हो।
- वह व्यक्ति जो भारत के संविधान के प्रारंभ पर भारत का नागरिक था।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: नागरिकता अधिनियम, 1955 और संविधान के अनुच्छेद 9 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता ग्रहण कर लेता है, तो वह भारत का नागरिक नहीं रह जाएगा। विकल्प (b) गलत है क्योंकि किसी विदेशी राज्य का नागरिक होने और भारत में जन्मा होने से नागरिकता समाप्त नहीं होती, बल्कि स्वेच्छा से विदेशी नागरिकता ग्रहण करने पर ही ऐसा होता है।
- संदर्भ और विस्तार: नागरिकता से संबंधित प्रावधान संविधान के भाग II (अनुच्छेद 5-11) में दिए गए हैं। नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने और समाप्त करने के विभिन्न तरीकों को भी निर्धारित करता है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (c) और (d) नागरिकता की प्राप्ति या मूल से संबंधित हैं, न कि नागरिकता के खोने से।
प्रश्न 19: राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 ने भारत को कितने राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में विभाजित किया?
- 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश
- 17 राज्य और 5 केंद्र शासित प्रदेश
- 16 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश
- 15 राज्य और 5 केंद्र शासित प्रदेश
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 ने भारत को 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया। यह भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया थी।
- संदर्भ और विस्तार: इस अधिनियम ने भारत की राजनीतिक मानचित्र को काफी हद तक बदल दिया और भाषाई आधार पर राज्यों के निर्माण की नींव रखी, जैसे कि आंध्र प्रदेश का गठन।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या के बारे में गलत जानकारी देते हैं।
प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सी विधायी शक्ति राज्यपाल के पास नहीं है?
- सत्र बुलाना और सत्रावसान करना।
- विधानमंडल को संबोधित करना।
- अध्यादेश जारी करना।
- किसी विधेयक पर वीटो का प्रयोग करना।
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राज्यपाल के पास किसी विधेयक पर वीटो का प्रयोग करने की शक्ति है (अनुच्छेद 200), लेकिन यह वीटो ‘पॉकेट वीटो’ (Pocket Veto) नहीं हो सकता, जैसा कि राष्ट्रपति के पास है। राष्ट्रपति के पास राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक पर ‘पॉकेट वीटो’ का अधिकार है, जहाँ वे विधेयक को अनिश्चित काल के लिए रोक सकते हैं। राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकते हैं (अनुच्छेद 200), और राष्ट्रपति उस पर वीटो कर सकते हैं, लेकिन राज्यपाल के पास ‘पॉकेट वीटो’ की स्वतंत्र शक्ति नहीं है। राज्यपाल सत्र बुलाना, सत्रावसान करना (अनुच्छेद 174), विधानमंडल को संबोधित करना (अनुच्छेद 176), और अध्यादेश जारी करना (अनुच्छेद 213) जैसी विधायी शक्तियाँ रखते हैं। प्रश्न में ‘किसी विधेयक पर वीटो का प्रयोग करना’ के बारे में है, और ‘पॉकेट वीटो’ सबसे मजबूत वीटो शक्ति है जो राष्ट्रपति के पास है, राज्यपाल के पास नहीं। राज्यपालों के पास ‘निलंबनकारी वीटो’ (suspensive veto) और ‘आरक्षित वीटो’ (assent veto) जैसी शक्तियाँ हैं। यदि प्रश्न ‘पॉकेट वीटो’ के संदर्भ में है, तो यह राज्यपाल के पास नहीं है। अन्य वीटो शक्तियाँ राज्यपाल के पास हैं। प्रश्न की भाषा को ध्यान में रखते हुए, ‘वीटो का प्रयोग करना’ में सभी प्रकार के वीटो शामिल हो सकते हैं। राष्ट्रपति की वीटो शक्ति राज्यपाल से अधिक व्यापक है।
पुनर्विचार: अनुच्छेद 200 के अनुसार, राज्यपाल किसी विधेयक को अनुमति दे सकते हैं, अनुमति रोकने के लिए रोक सकते हैं, या (यदि यह निजी सदस्य का विधेयक नहीं है) उसे राज्य के विधानमंडल द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटा सकते हैं। यदि कोई विधेयक राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया जाता है, तो राष्ट्रपति उस पर अनुमति दे सकते हैं, अनुमति रोक सकते हैं, या विधेयक को (यदि विधानमंडल पुन: पारित करता है) अनुमति देने से इंकार कर सकते हैं। इसका अर्थ है कि राज्यपाल के पास राष्ट्रपति के समान ‘पूर्ण वीटो’ या ‘पॉकेट वीटो’ का अधिकार नहीं है, बल्कि उनके पास ‘निलंबनकारी वीटो’ (विधायिका को पुनर्विचार के लिए लौटाना) और ‘पूर्ण वीटो’ (राष्ट्रपति की तरह, यदि राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया गया हो) का अधिकार है। लेकिन ‘पॉकेट वीटो’ एक विशेष प्रकार का वीटो है जहाँ विधेयक को अनिश्चित काल के लिए लंबित रखा जाता है, जो राज्यपाल के पास नहीं है।
अंतिम उत्तर (पुनर्विचार के बाद): (d) किसी विधेयक पर वीटो का प्रयोग करना। (यह मानते हुए कि इसमें पॉकेट वीटो का अर्थ शामिल है, जो राज्यपाल के पास नहीं है।)
- संदर्भ और विस्तार: राज्यपाल राज्य के विधानमंडल के अभिन्न अंग हैं और उनकी विधायी शक्तियों का उल्लेख संविधान में है।
- गलत विकल्प: सत्र बुलाना, सत्रावसान करना और अध्यादेश जारी करना राज्यपाल की प्रमुख विधायी शक्तियाँ हैं।
प्रश्न 21: भारत का महान्यायवादी (Attorney General) किसके प्रसादपर्यंत पद धारण करता है?
- भारत के राष्ट्रपति
- भारत के प्रधान मंत्री
- भारत के मुख्य न्यायाधीश
- संघ लोक सेवा आयोग
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 76(1) के अनुसार, महान्यायवादी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। वे राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत (at the pleasure of the President) अपना पद धारण करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: महान्यायवादी भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार होता है। यद्यपि वे राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं, व्यवहार में वे तब तक पद पर बने रहते हैं जब तक कि सरकार सत्ता में है, या यदि राष्ट्रपति उन्हें हटाना चाहें।
- गलत विकल्प: प्रधान मंत्री, मुख्य न्यायाधीश या संघ लोक सेवा आयोग महान्यायवादी के पद धारण करने या हटाने की प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होते।
प्रश्न 22: निम्नलिखित में से कौन भारत के संविधान की प्रस्तावना में वर्णित ‘संप्रभुता’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करता है?
- भारत एक गणराज्य है।
- भारत में आंतरिक और बाहरी दोनों मामलों में सर्वोच्च शक्ति है।
- भारत धर्मनिरपेक्ष है।
- भारत में कोई भी सरकारी शक्ति नहीं है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संप्रभुता (Sovereignty) का अर्थ है कि भारत अपने आंतरिक और बाह्य मामलों में किसी भी विदेशी शक्ति के नियंत्रण से मुक्त एक स्वतंत्र राज्य है। भारत अपने निर्णय स्वयं ले सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है। संप्रभुता का अर्थ यह भी है कि राज्य पर कोई भी बाहरी शक्ति हावी नहीं है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a) गणराज्य होने का अर्थ है, (c) धर्मनिरपेक्ष होने का अर्थ है, और (d) पूर्णतः गलत है।
प्रश्न 23: किस संवैधानिक संशोधन ने भारतीय संविधान में ‘मूल कर्तव्यों’ (Fundamental Duties) को जोड़ा?
- 40वां संशोधन, 1976
- 42वां संशोधन, 1976
- 44वां संशोधन, 1978
- 52वां संशोधन, 1985
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 ने भारतीय संविधान में भाग IV-A जोड़ा और अनुच्छेद 51-A के तहत दस मूल कर्तव्यों को शामिल किया।
- संदर्भ और विस्तार: ये कर्तव्य स्वेच्छा से पालन किए जाने वाले नागरिक दायित्व हैं। बाद में, 2002 में 86वें संशोधन द्वारा एक और मूल कर्तव्य (शिक्षा का अधिकार) जोड़ा गया, जिससे इनकी कुल संख्या 11 हो गई।
- गलत विकल्प: अन्य संशोधन अधिनियमों के अपने-अपने महत्वपूर्ण प्रावधान थे, लेकिन मूल कर्तव्यों को 42वें संशोधन ने जोड़ा था।
प्रश्न 24: निम्नलिखित में से कौन संसद के एक सत्र का स्थगन (Adjournment) और सत्रावसान (Prorogation) के बीच मुख्य अंतर है?
- स्थगन सदन के कामकाज को कुछ घंटों या दिनों के लिए रोकता है, जबकि सत्रावसान सत्र की समाप्ति का संकेत देता है।
- स्थगन केवल लोकसभा अध्यक्ष कर सकता है, जबकि सत्रावसान राष्ट्रपति करता है।
- स्थगन के बाद सदन को पुनः शुरू करने के लिए नई अधिसूचना की आवश्यकता होती है, जबकि सत्रावसान के बाद ऐसा नहीं होता।
- स्थगन के बाद सभी लंबित कार्य समाप्त हो जाते हैं, जबकि सत्रावसान के बाद कार्य जारी रहता है।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: स्थगन (Adjournment) सदन की बैठक को कुछ घंटों, दिनों या हफ्तों के लिए निलंबित करता है। यह सदन का पीठासीन अधिकारी (जैसे लोकसभा अध्यक्ष) करता है। सत्रावसान (Prorogation) पूरे सत्र की समाप्ति का संकेत देता है और यह राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है (अनुच्छेद 85)।
- संदर्भ और विस्तार: स्थगन के बाद, सदन उसी स्थिति में फिर से बैठता है जहाँ वह रुका था। हालाँकि, सत्रावसान के बाद, सभी लंबित विधायी कार्य (जैसे कि लंबित विधेयक, प्रस्ताव) समाप्त हो जाते हैं और उन्हें अगले सत्र में फिर से शुरू करने के लिए नए सिरे से प्रस्तुत करना पड़ता है।
- गलत विकल्प: विकल्प (b) आंशिक रूप से सही है कि पीठासीन अधिकारी स्थगन करता है और राष्ट्रपति सत्रावसान, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है। विकल्प (c) गलत है क्योंकि स्थगन के बाद कोई नई अधिसूचना नहीं, बल्कि सामान्य कार्यवाही जारी रहती है, जबकि सत्रावसान के बाद नई अधिसूचना की आवश्यकता होती है। विकल्प (d) भी गलत है क्योंकि स्थगन में कार्य समाप्त नहीं होता, जबकि सत्रावसान में होता है।
प्रश्न 25: भारत का संविधान किस दिन लागू हुआ?
- 26 जनवरी, 1949
- 15 अगस्त, 1947
- 26 नवंबर, 1949
- 26 जनवरी, 1950
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को पूर्ण रूप से लागू हुआ, जिसे भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया था। लेकिन इसका पूर्ण प्रवर्तन 26 जनवरी, 1950 से हुआ। यह तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि 1930 में इसी दिन ‘पूर्ण स्वराज’ दिवस मनाया गया था।
- गलत विकल्प: 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अपनाया गया था, लागू नहीं किया गया था। 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली थी।