समाजशास्त्र मंथन: 25 प्रश्न, 25 महारत!
तैयारी के इस नए सफर में आपका स्वागत है! क्या आप अपने समाजशास्त्रीय ज्ञान की गहराई को परखने के लिए तैयार हैं? आज का यह अभ्यास सत्र आपके लिए लाया है 25 चुनिंदा प्रश्न, जो आपके अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को और भी पैना करेंगे। आइए, अपनी समझ को चुनौती दें और सफलता की ओर एक कदम और बढ़ाएं!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: “सामाजिक तथ्य” (Social Facts) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की, जिसे उन्होंने बाहरी, बाध्यकारी और सामूहिक चेतना के रूप में परिभाषित किया?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एमिल दुर्खीम ने अपनी कृति “समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम” (The Rules of Sociological Method) में “सामाजिक तथ्य” की अवधारणा को पेश किया। उन्होंने इसे विचार, कार्य और अनुभव के ऐसे तरीकों के रूप में परिभाषित किया जो व्यक्ति के लिए बाहरी होते हैं और उस पर एक बाहरी दबाव डालते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम का मानना था कि समाजशास्त्र को सामाजिक तथ्यों का अध्ययन करना चाहिए, जैसे वे वस्तुएं हों। यह दृष्टिकोण प्रत्यक्षवाद (Positivism) पर आधारित था, जो सामाजिक घटनाओं को प्राकृतिक विज्ञानों की तरह अध्ययन करने पर जोर देता है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य ध्यान वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर था। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया (Social Action) और वर्स्टेहेन (Verstehen) जैसी अवधारणाओं पर जोर दिया, जो व्यक्तिपरक अर्थों को समझने पर केंद्रित थीं। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद का प्रतिपादन किया।
प्रश्न 2: मैत्रेयी कृष्णन द्वारा पुस्तक ‘द लॉजिक्स ऑफ पॉवर्टी’ में कौन सी सामाजिक-आर्थिक अवधारणा का विश्लेषण किया गया है, जो भारत में गरीबी की संरचनात्मक प्रकृति पर प्रकाश डालती है?
- अक्षयशीलता (Entitlement)
- पूंजीवाद का संकट
- भूमंडलीकरण का प्रभाव
- निर्धनता का सांस्कृतिककरण (Culturalization of Poverty)
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: मैत्रेयी कृष्णन की पुस्तक ‘द लॉजिक्स ऑफ पॉवर्टी’ (The Logics of Poverty) अमर्त्य सेन की ‘अक्षयशीलता’ (Entitlement) की अवधारणा का उपयोग करके भारत में गरीबी की व्याख्या करती है। यह अवधारणा बताती है कि लोगों के पास भोजन जैसी आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करने के साधन (जैसे क्रय शक्ति, उत्पादन, या अधिकार) न होने के कारण भुखमरी होती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: कृष्णन ने तर्क दिया कि भारत में गरीबी केवल आय की कमी नहीं है, बल्कि यह बाजार में भाग लेने या सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी संस्थाओं से लाभ प्राप्त करने में असमर्थता से भी जुड़ी है।
- गलत विकल्प: पूंजीवाद का संकट और भूमंडलीकरण के प्रभाव व्यापक आर्थिक सिद्धांत हैं, जबकि निर्धनता का सांस्कृतिककरण निर्धनता को व्यक्तिगत या सांस्कृतिक विफलताओं से जोड़ता है, जो कृष्णन के विश्लेषण के विपरीत है।
प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘सामाजिक क्रिया’ (Social Action) के महत्व पर जोर देता है और चाहता है कि समाजशास्त्र व्यक्तिपरक अर्थों को समझने के लिए ‘वर्स्टेहेन’ (Verstehen) पद्धति का उपयोग करे?
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- ई.टी. हॉल
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया को समाजशास्त्र का केंद्रीय विषय माना। उनका मानना था कि समाजशास्त्र को इन क्रियाओं के पीछे छिपे व्यक्तिपरक अर्थों, प्रेरणाओं और इरादों को समझना चाहिए, जिसके लिए उन्होंने ‘वर्स्टेहेन’ (Verstehen) यानी ‘समझ’ की व्याख्यात्मक पद्धति का प्रस्ताव दिया।
- संदर्भ एवं विस्तार: वेबर की यह पद्धति दुर्खीम के प्रत्यक्षवादी दृष्टिकोण के विपरीत थी, जो सामाजिक तथ्यों को बाहरी और वस्तुनिष्ठ रूप में देखता था। वेबर ने ‘समाजशास्त्र की मूल बातें’ (Basic Concepts of Sociology) में इन विचारों को विकसित किया।
- गलत विकल्प: दुर्खीम सामाजिक तथ्यों के वस्तुनिष्ठ अध्ययन पर बल देते थे। मार्क्स वर्ग संघर्ष और आर्थिक व्यवस्था पर केंद्रित थे। ई.टी. हॉल सांस्कृतिक संचार और प्रॉक्सेमिक्स (proxemics) के अध्ययन के लिए जाने जाते हैं।
प्रश्न 4: आर.के. मर्टन द्वारा प्रस्तुत ‘स्पष्ट कार्य’ (Manifest Functions) और ‘अस्पष्ट कार्य’ (Latent Functions) की अवधारणाएँ किस प्रमुख समाजशास्त्रीय सिद्धांत से संबंधित हैं?
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
- लोक-पद्धति विज्ञान (Ethnomethodology)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: रॉबर्ट के. मर्टन, जो एक संरचनात्मक प्रकार्यवादी थे, ने समाज की विभिन्न संस्थाओं और सामाजिक व्यवहारों के ‘स्पष्ट कार्य’ (जानबूझकर और पहचाने जाने वाले परिणाम) और ‘अस्पष्ट कार्य’ (अनपेक्षित और अक्सर अनजाने परिणाम) के बीच अंतर किया।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा प्रकार्यवाद को अधिक परिष्कृत बनाती है, जो केवल सामाजिक व्यवस्था के स्पष्ट लाभों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अनपेक्षित परिणामों की भी जांच करती है। उन्होंने यह विचार अपनी पुस्तक ‘सोशल थ्योरी एंड सोशल स्ट्रक्चर’ (Social Theory and Social Structure) में प्रस्तुत किया।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत सामाजिक असमानता और शक्ति पर केंद्रित है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म स्तर पर अंतःक्रियाओं और प्रतीकों के अर्थों पर जोर देता है। लोक-पद्धति विज्ञान रोजमर्रा की बातचीत में सामाजिक व्यवस्था के निर्माण का अध्ययन करता है।
प्रश्न 5: भारत में जाति व्यवस्था को समझने के लिए एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्करण’ (Sanskritization) की अवधारणा का क्या अर्थ है?
- दलितों द्वारा उच्च जातियों के आर्थिक रूप से उन्नत होना।
- निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों के अनुष्ठानों, प्रथाओं और जीवन शैली को अपनाना ताकि सामाजिक पदानुक्रम में ऊपर उठा जा सके।
- औद्योगीकरण के कारण पारंपरिक जाति व्यवस्था का विघटन।
- शहरीकरण के कारण पारिवारिक संरचनाओं में परिवर्तन।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्करण’ (Sanskritization) की अवधारणा को अपनी पुस्तक ‘ Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में प्रस्तुत किया। इसका अर्थ है कि निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों की प्रथाओं, कर्मकांडों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाना, ताकि वे सामाजिक पदानुक्रम में अपनी स्थिति सुधार सकें।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह एक सांस्कृतिक गतिशीलता (cultural mobility) का रूप है, जहाँ एक समूह अपने सामाजिक दर्जे को बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक अनुकरण करता है। यह एक धीमी और क्रमिक प्रक्रिया है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प (a), (c), और (d) क्रमशः आर्थिक उन्नति, औद्योगीकरण के प्रभाव और शहरीकरण के प्रत्यक्ष परिणाम हैं, न कि एम.एन. श्रीनिवास द्वारा परिभाषित संस्करण की प्रक्रिया।
प्रश्न 6: जॉर्ज हर्बर्ट मीड का ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) का द्वंद्व, जो आत्म (Self) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, किस समाजशास्त्रीय उपागम से जुड़ा है?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- संघर्ष सिद्धांत
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- उत्तर-आधुनिकतावाद
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) के प्रमुख संस्थापकों में से एक माना जाता है। उन्होंने ‘मैं’ (I) को क्रिया का तत्काल, अव्यवस्थित और रचनात्मक पहलू माना, जो व्यक्ति की अनूठी प्रतिक्रिया है, जबकि ‘मुझे’ (Me) को सामाजिक ‘अन्य’ (generalized other) द्वारा आत्मसात किए गए सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व माना। आत्म का विकास इन दोनों के बीच एक सतत संवाद से होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: मीड ने अपनी मरणोपरांत प्रकाशित पुस्तक ‘माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी’ (Mind, Self and Society) में इन विचारों को विस्तृत रूप से समझाया। यह उपागम व्यक्तिगत पहचान और सामाजिक अंतःक्रियाओं को महत्वपूर्ण मानता है।
- गलत विकल्प: संरचनात्मक प्रकार्यवाद और संघर्ष सिद्धांत समाज को वृहत स्तर पर देखते हैं, जबकि उत्तर-आधुनिकतावाद शक्ति, विखंडन और आख्यानों पर ध्यान केंद्रित करता है।
प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सी भारतीय समाज की एक विशिष्ट विशेषता है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है और व्यावसायिक, सामाजिक और अनुष्ठानिक स्थिति को निर्धारित करती है?
- वर्ण व्यवस्था
- वंशानुक्रम (Patriarchy)
- सामंतवाद
- वर्ग व्यवस्था
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: वर्ण व्यवस्था, यद्यपि जाति व्यवस्था का सैद्धांतिक आधार है, प्राचीन काल से भारतीय समाज में सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख रूप रही है। यह जन्म पर आधारित होती है और व्यक्ति के व्यवसाय, सामाजिक स्थिति और अनुष्ठानिक शुद्धता को निर्धारित करती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: आधुनिक भारत में जाति व्यवस्था अधिक जटिल हो गई है, लेकिन वर्ण व्यवस्था का प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। यह व्यवस्था ऋग्वेद के ‘पुरुष सूक्त’ में वर्णित है।
- गलत विकल्प: वंशानुक्रम (Patriarchy) पितृसत्तात्मक समाज की संरचना है, न कि विशेष रूप से भारतीय समाज की विशेषता। सामंतवाद एक विशिष्ट ऐतिहासिक आर्थिक व्यवस्था है, और वर्ग व्यवस्था आधुनिक समाज का लक्षण है, जो मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति पर आधारित है।
प्रश्न 8: ‘पवित्र’ (Sacred) और ‘अपवित्र’ (Profane) के बीच द्वंद्व की पहचान और उनकी व्याख्या, विशेष रूप से आदिम समाजों में धर्म के उद्भव को समझने के लिए, किस समाजशास्त्री के कार्य का केंद्रीय विषय है?
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- सिगमंड फ्रायड
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एमिल दुर्खीम ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक ‘द एलिमेन्टरी फॉर्म्स ऑफ द रिलीजियस लाइफ’ (The Elementary Forms of Religious Life) में ‘पवित्र’ और ‘अपवित्र’ के बीच अंतर को धर्म की सार्वभौमिक विशेषता माना। उन्होंने तर्क दिया कि समाज अपनी सामूहिक ऊर्जा और एकता को ‘पवित्र’ के रूप में देखता है, जो अनुष्ठानों के माध्यम से व्यक्त होती है, जबकि ‘अपवित्र’ रोजमर्रा की सामान्य चीजों को संदर्भित करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम के लिए, धर्म सामाजिक एकता का एक रूप है, न कि अलौकिक का। यह सामाजिक एकजुटता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने प्रोटेस्टेंट नैतिकता और पूंजीवाद के बीच संबंध का अध्ययन किया। कार्ल मार्क्स ने धर्म को ‘जनता के लिए अफीम’ कहा। सिगमंड फ्रायड ने धर्म को मनोवैज्ञानिक विकृति के रूप में देखा।
प्रश्न 9: पी.वी. नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण के बाद भारतीय समाज में किस प्रकार के परिवर्तन देखे गए?
- उपभोक्तावाद में वृद्धि और सांस्कृतिक पश्चिमीकरण।
- कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता में वृद्धि।
- शहरी आबादी में गिरावट।
- पारंपरिक पंचायतों का सशक्तिकरण।
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: 1991 के आर्थिक उदारीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को खोला, जिससे विदेशी निवेश बढ़ा, बाजार का विस्तार हुआ और उपभोक्ता वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ी। इसके परिणामस्वरूप, ‘उपभोक्तावाद’ (Consumerism) में तीव्र वृद्धि हुई और पश्चिमी जीवन शैली, उत्पादों और मीडिया के प्रभाव से ‘सांस्कृतिक पश्चिमीकरण’ (Cultural Westernization) की प्रक्रिया तेज हुई।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह परिवर्तन भारतीय समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव डालता है, जिसमें मूल्य, आकांक्षाएं और जीवन शैली शामिल हैं।
- गलत विकल्प: आर्थिक उदारीकरण ने कृषि क्षेत्र में कुछ सुधार किए लेकिन आत्मनिर्भरता में प्रत्यक्ष वृद्धि उपभोक्तावाद जितनी प्रमुख नहीं थी। शहरी आबादी में वृद्धि हुई, गिरावट नहीं। पारंपरिक पंचायतों का सशक्तीकरण उदारीकरण का प्रत्यक्ष परिणाम नहीं था, बल्कि यह अन्य राजनीतिक और सामाजिक प्रक्रियाओं से जुड़ा था।
प्रश्न 10: निम्नांकित में से कौन सा पद ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) के लिए उपयुक्त है?
- व्यक्तियों के बीच होने वाली व्यक्तिगत बातचीत।
- समाज के स्थिर और व्यवस्थित पैटर्न, जिसमें संस्थाएं, भूमिकाएं और पद शामिल हैं।
- किसी विशेष समूह की सामूहिक चेतना।
- समाज में परिवर्तन लाने वाली क्रांतिकारी शक्तियाँ।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: सामाजिक संरचना समाज के बड़े, अपेक्षाकृत स्थिर और स्थायी पैटर्नों को संदर्भित करती है। इसमें सामाजिक संस्थाएं (जैसे परिवार, शिक्षा, सरकार), सामाजिक भूमिकाएं (जैसे माता-पिता, शिक्षक, नागरिक) और सामाजिक पद (जैसे राजा, मजदूर, छात्र) शामिल हैं, जो व्यक्तियों के बीच संबंधों और अंतःक्रियाओं को आकार देते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: संरचनात्मक प्रकार्यवादी जैसे दुर्खीम और पार्सन्स सामाजिक संरचना के महत्व पर जोर देते हैं, क्योंकि यह सामाजिक व्यवस्था और स्थिरता को बनाए रखने में मदद करती है।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत बातचीत सूक्ष्म समाजशास्त्र का हिस्सा है। (c) सामूहिक चेतना दुर्खीम का एक अलग सिद्धांत है। (d) क्रांतिकारी शक्तियाँ सामाजिक परिवर्तन से जुड़ी हैं, न कि स्थिर संरचना से।
प्रश्न 11: ‘वर्ग संघर्ष’ (Class Struggle) की अवधारणा, जिसे इतिहास की प्रेरक शक्ति के रूप में देखा गया, किस समाजशास्त्री के सिद्धांत का मूल तत्व है?
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- ऑगस्ट कॉम्ते
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism) के सिद्धांत में ‘वर्ग संघर्ष’ केंद्रीय अवधारणा है। उनका मानना था कि उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण को लेकर शोषक वर्ग (बुर्जुआ) और शोषित वर्ग (सर्वहारा) के बीच निरंतर संघर्ष ही समाज के विकास का मुख्य चालक है, जो अंततः साम्यवाद की ओर ले जाएगा।
- संदर्भ एवं विस्तार: मार्क्स ने अपनी सबसे प्रसिद्ध कृति ‘दास कैपिटल’ (Das Kapital) और ‘कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’ (The Communist Manifesto) में इन विचारों का विस्तार से वर्णन किया।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने वर्ग, स्थिति (Status) और शक्ति (Party) के आधार पर स्तरीकरण की बहुआयामी अवधारणा दी। दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता और श्रम विभाजन पर ध्यान केंद्रित किया। ऑगस्ट कॉम्ते को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है, जिन्होंने प्रत्यक्षवाद का विकास किया।
प्रश्न 12: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) के अध्ययन में, ‘भेदभाव’ (Discrimination) से आपका क्या तात्पर्य है?
- किसी समूह के सदस्यों को एक समान व्यवहार से वंचित करना।
- किसी समूह के बारे में पूर्व-धारणाएँ या पक्षपात।
- किसी समूह के सदस्यों के बारे में नकारात्मक विचार रखना।
- किसी समूह की सांस्कृतिक प्रथाओं का सम्मान करना।
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: भेदभाव (Discrimination) किसी व्यक्ति या समूह के साथ उनके किसी विशिष्ट लक्षण (जैसे जाति, लिंग, धर्म) के आधार पर अनुचित या पक्षपाती व्यवहार करना है, जिससे उन्हें समान अवसरों या संसाधनों से वंचित किया जाता है। यह अक्सर पूर्वाग्रह (Prejudice) का परिणाम होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: सामाजिक स्तरीकरण के संदर्भ में, भेदभाव सामाजिक असमानताओं को बनाए रखने और मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- गलत विकल्प: (b) पूर्वाग्रह (Prejudice) विचार से संबंधित है, न कि व्यवहार से। (c) भी पूर्वाग्रह का ही रूप है। (d) सम्मान करना भेदभाव का विपरीत है।
प्रश्न 13: एल. कोज़र (L. Coser) के अनुसार, समाज में संघर्ष के क्या कार्य होते हैं?
- हमेशा सामाजिक व्यवस्था को कमजोर करना और विघटनकारी होना।
- समूह की एकजुटता बढ़ाना, सामाजिक परिवर्तन लाना और समूह की सीमाओं को स्पष्ट करना।
- केवल व्यक्तियों के बीच व्यक्तिगत शत्रुता पैदा करना।
- सामाजिक संस्थाओं को पूरी तरह से नष्ट कर देना।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: लुईस कोज़र ने अपनी पुस्तक ‘द फंक्शन ऑफ सोशल कॉन्फ्लिक्ट’ (The Functions of Social Conflict) में तर्क दिया कि संघर्ष हमेशा नकारात्मक या विघटनकारी नहीं होता। इसके विपरीत, यह समूहों के बीच एकता बढ़ा सकता है, पहचान को स्पष्ट कर सकता है, और सामाजिक परिवर्तन के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: कोज़र का दृष्टिकोण जी. सिमेल (G. Simmel) के कार्यों से प्रभावित था, जिन्होंने संघर्ष को सामाजिक अंतःक्रिया के एक रूप के रूप में देखा जिसके अपने कार्य थे।
- गलत विकल्प: कोज़र का विश्लेषण संघर्ष को केवल नकारात्मक भूमिका में देखने से इनकार करता है, इसलिए (a), (c), और (d) गलत हैं।
प्रश्न 14: एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार, ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की प्रक्रिया क्या है?
- भारतीयों द्वारा पश्चिमी देशों में जाकर बसना।
- भारतीय समाज में पश्चिमी जीवन शैली, विचारों, मूल्यों और संस्थाओं का समावेश।
- भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार।
- भारतीय संस्कृति का यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘पश्चिमीकरण’ को एक व्यापक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया, जिसके तहत भारतीय समाज ने ब्रिटिश शासन के दौरान और उसके बाद पश्चिमी जीवन शैली, विचारों, मूल्यों, प्रौद्योगिकी और संस्थाओं (जैसे शिक्षा, कानून, प्रशासन) को विभिन्न डिग्री में अपनाया।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह संस्करण से भिन्न है क्योंकि यह बाहरी प्रभाव के कारण होता है, न कि आंतरिक सामाजिक पदानुक्रम को ऊपर चढ़ने की इच्छा से।
- गलत विकल्प: (a) केवल प्रवासन को संदर्भित करता है। (c) पश्चिमीकरण का एक पहलू है, लेकिन पूरी अवधारणा नहीं। (d) सांस्कृतिक अनुवाद का एक हिस्सा है, लेकिन यह स्वयं पश्चिमीकरण नहीं है।
प्रश्न 15: ‘अनाचार’ (Incest) का निषेध, जो लगभग सभी समाजों में पाया जाता है, को इरावती कर्वे ने परिवार और नातेदारी के अध्ययन में किस रूप में व्याख्यायित किया?
- केवल एक सामाजिक परंपरा।
- सामाजिक व्यवस्था और सहयोग को बढ़ावा देने वाली एक आवश्यकता।
- प्राकृतिक यौन प्रवृत्ति का दमन।
- जैविक रूप से हानिकारक आनुवंशिक परिणामों को रोकना।
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: इरावती कर्वे, एक प्रमुख मानवविज्ञानी और समाजशास्त्री, ने अपने कार्यों, विशेष रूप से ‘किनशिप ऑर्गनाइजेशन इन इंडिया’ (Kinship Organisation in India) में, अनाचार (Incest) निषेध की व्याख्या मुख्य रूप से जैविक कारणों से की। उनका तर्क था कि यह प्रथा आनुवंशिक विकृतियों को रोकने और परिवार के सदस्यों के बीच यौन भ्रम से बचने के लिए विकसित हुई।
- संदर्भ एवं विस्तार: अन्य समाजशास्त्रियों ने इसे सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने, व्यापक सामाजिक गठबंधन बनाने या परिवार के भीतर भूमिकाओं को स्पष्ट रखने के लिए भी महत्वपूर्ण माना है।
- गलत विकल्प: यद्यपि यह एक सामाजिक परंपरा है, लेकिन इसकी गहराई जैविक और सामाजिक कारणों में निहित है। (a) बहुत सतही व्याख्या है। (b) सामाजिक व्यवस्था का एक परिणाम हो सकता है, लेकिन कर्वे का मुख्य तर्क जैविक था। (c) यह लेस्ली व्हाइट जैसे कुछ विचारकों का दृष्टिकोण रहा है, लेकिन कर्वे का नहीं।
प्रश्न 16: ‘सत्ता’ (Authority) को ‘वैध शक्ति’ (Legitimate Power) के रूप में परिभाषित करने वाले समाजशास्त्री कौन थे, जिन्होंने तीन आदर्श प्रकार के सत्ता (पारंपरिक, करिश्माई, कानूनी-तर्कसंगत) का वर्णन किया?
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- टोल्कोट पार्सन्स
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: मैक्स वेबर ने सत्ता (Authority) को शक्ति (Power) के उस रूप के रूप में परिभाषित किया जिसे लोग वैध मानते हैं। उन्होंने सत्ता के तीन मुख्य आदर्श प्रकारों का वर्णन किया: पारंपरिक सत्ता (जो परंपरा और रीति-रिवाजों पर आधारित है), करिश्माई सत्ता (जो किसी व्यक्ति के असाधारण गुणों पर आधारित है), और कानूनी-तर्कसंगत सत्ता (जो नियमों, कानूनों और पद पर आधारित है)।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह वर्गीकरण आधुनिक समाज के राजनीतिक और संगठनात्मक संरचनाओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने सामाजिक व्यवस्था और एकजुटता पर ध्यान केंद्रित किया। मार्क्स ने शक्ति को वर्ग नियंत्रण से जोड़ा। पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था और प्रकार्यवाद पर काम किया।
प्रश्न 17: भारत में ‘दलित’ (Dalit) शब्द का प्रयोग किस सामाजिक वर्ग के लिए किया जाता है?
- उच्च जातियों के पारंपरिक विद्वान।
- दलित आंदोलन से जुड़े वे लोग जो ऐतिहासिक रूप से अस्पृश्यता और भेदभाव के शिकार रहे हैं।
- शहरी गरीब आबादी।
- भूमिहीन कृषि मजदूर।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: ‘दलित’ शब्द संस्कृत के ‘दल’ (दलित) से आया है, जिसका अर्थ है ‘कुचला हुआ’ या ‘तोड़ा हुआ’। यह उन सामाजिक समूहों को संदर्भित करता है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से अस्पृश्यता (Untouchability) का शिकार होना पड़ा और जो जाति पदानुक्रम में सबसे नीचे थे। यह शब्द दलितों द्वारा अपनाया गया है ताकि वे अपनी ऐतिहासिक पीड़ा और पहचान को व्यक्त कर सकें और अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह शब्द ‘अस्पृश्य’ (Untouchables) या ‘हारिजनों’ (Harijans) जैसे पूर्व शब्दों की तुलना में अधिक आत्म-सम्मान और राजनीतिक सार्थकता रखता है।
- गलत विकल्प: (a), (c), और (d) अन्य सामाजिक समूहों को संदर्भित करते हैं, जो दलितों के ऐतिहासिक अनुभव से भिन्न हैं, हालांकि उनमें से कुछ समूह दलितों के समान कष्टों का अनुभव कर सकते हैं।
प्रश्न 18: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जिसे सामाजिक मानदंडों के कमजोर पड़ने या अनुपस्थिति से उत्पन्न विघटनकारी स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है, किसने विकसित की?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- रॉबर्ट ई. पार्क
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा का उपयोग तब किया जब समाज के सदस्यों के बीच साझा मूल्यों और मानदंडों की कमी हो जाती है, जिससे वे दिशाहीन और अनियंत्रित महसूस करते हैं। यह स्थिति विशेष रूप से तीव्र सामाजिक परिवर्तन या संकट के समय देखी जाती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तकों ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ (The Division of Labour in Society) और ‘सुसाइड’ (Suicide) में इस अवधारणा पर विस्तार से चर्चा की है, खासकर आत्महत्या के विभिन्न प्रकारों को समझाने में।
- गलत विकल्प: मार्क्स ने अलगाव (Alienation) पर ध्यान केंद्रित किया। वेबर ने वर्स्टेहेन पर। रॉबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल से जुड़े थे और शहरी समाजशास्त्र पर काम करते थे।
प्रश्न 19: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का अर्थ है:
- यह मानना कि अपनी संस्कृति दूसरों से श्रेष्ठ है।
- यह मानना कि सभी संस्कृतियाँ समान रूप से महत्वपूर्ण हैं और उनका मूल्यांकन उनके अपने संदर्भ में किया जाना चाहिए।
- यह मानना कि केवल पश्चिमी संस्कृति ही प्रगतिशील है।
- यह मानना कि संस्कृतियाँ कभी भी बदल नहीं सकतीं।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही होने का कारण: सांस्कृतिक सापेक्षवाद एक दृष्टिकोण है जो मानता है कि किसी भी संस्कृति को उसकी अपनी मान्यताओं, मूल्यों और प्रथाओं के संदर्भ में समझा और मूल्यांकित किया जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी, अक्सर अपनी ही संस्कृति के मानकों के आधार पर। यह सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान सिखाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह मानवशास्त्र (Anthropology) में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, लेकिन समाजशास्त्र में भी इसका व्यापक प्रयोग होता है ताकि पूर्वाग्रहों से बचा जा सके।
- गलत विकल्प: (a) आत्म-श्रेष्ठतावाद (Ethnocentrism) है। (c) प्रगतिशील संस्कृति के बारे में एक रूढ़िवादी विचार है। (d) संस्कृतियाँ निरंतर परिवर्तनशील होती हैं।
प्रश्न 20: टी. पार्सन्स (T. Parsons) द्वारा प्रस्तुत ‘ए.जी.ई.एल. (AGIL) प्रतिमान’ (AGIL Paradigm) किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत का हिस्सा है और यह समाज की किन प्रमुख समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है?
- संघर्ष सिद्धांत, सामाजिक असमानता।
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, व्यक्तिगत पहचान।
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद, सामाजिक व्यवस्था की चार मूलभूत आवश्यकताएं (अनुकूलन, लक्ष्य प्राप्ति, एकीकरण, अव्यवस्था-प्रसुप्ति)।
- लोक-पद्धति विज्ञान, रोजमर्रा की बातचीत।
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 21: भारत में ‘किरादारी’ (Tenantry) और ‘जमींदारी’ (Zamindari) प्रथाओं का संबंध मुख्य रूप से किस सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र से है?
- शहरी नियोजन
- ग्रामीण भूमि स्वामित्व और कृषि संबंध
- औद्योगिक उत्पादन
- शिक्षा प्रणाली
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 22: ‘प्रतीक’ (Symbols) को सामाजिक अंतःक्रिया और अर्थ निर्माण के आधार के रूप में पहचानने वाला समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण कौन सा है?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- संघर्ष सिद्धांत
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- सांख्यिकीय समाजशास्त्र
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 23: भारतीय समाज में ‘पैट्रियार्की’ (Patriarchy) या पितृसत्ता का अर्थ क्या है?
- समाज में महिलाओं का प्रभुत्व।
- समाज में पुरुषों का प्रभुत्व, जिसमें वे प्रमुख शक्ति रखते हैं और महिलाओं को अधीन मानते हैं।
- पारंपरिक परिवार की व्यवस्था।
- समाज में मातृवंश का प्रचलन।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 24: निम्नलिखित में से कौन सा शब्द समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘जनसांख्यिकीय डेटा’ (Demographic Data) का उदाहरण है?
- जनसंख्या की मृत्यु दर।
- उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों की संख्या।
- किसी विशेष क्षेत्र की जनसंख्या घनत्व।
- (a) और (c) दोनों।
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 25: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, जिसे मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था के तहत श्रमिकों के अपने श्रम, उत्पाद, सहकर्मियों और स्वयं से बिछुड़ जाने की स्थिति के रूप में वर्णित किया, किस समाजशास्त्री के विचारों का केंद्र बिंदु है?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- ए. एच. सैलिब्स
उत्तर: (c)
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