रूस से तेल खरीद: भारत का रुख, ट्रंप का बयान और भू-राजनीतिक समीकरणों का पूरा विश्लेषण
चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीद जारी रखने पर अप्रत्यक्ष रूप से टिप्पणी की थी, जिसके बाद यह सवाल खड़ा हो गया था कि क्या भारत अपनी रूसी तेल आयात नीति में कोई बदलाव करेगा। इस संदर्भ में, भारतीय अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि रूस से तेल खरीदना बंद करने की ऐसी कोई खबर नहीं है। यह बयान भू-राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को गहराई से प्रभावित करता है।
यह घटनाक्रम भारत की विदेश नीति, विशेष रूप से ऊर्जा कूटनीति की जटिलताओं को उजागर करता है। आइए, इस पूरे मुद्दे का गहन विश्लेषण करें, जिसमें हम भारत के रुख, ट्रंप के बयान के निहितार्थ, रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव, और इन सबके बीच भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने की रणनीतियों को समझेंगे।
पृष्ठभूमि: रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक ऊर्जा बाजार का संकट
फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से, वैश्विक ऊर्जा बाजारों में अभूतपूर्व उथल-पुथल मची हुई है। रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस उत्पादकों में से एक है, और उसके ऊर्जा निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों या स्वेच्छा से की गई कटौती का सीधा असर वैश्विक कीमतों पर पड़ा है। पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए, जिसमें उसके ऊर्जा निर्यात को सीमित करने के प्रयास भी शामिल थे।
इसके जवाब में, कई देशों ने रूस से तेल आयात को कम या बंद कर दिया। हालांकि, भारत जैसे कुछ देशों ने, जिनकी अपनी ऊर्जा सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं, रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदना जारी रखा। यह निर्णय भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंदी और बढ़ती ऊर्जा लागत के प्रभाव से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
भारत का रुख: ऊर्जा सुरक्षा सर्वोपरि
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और अपनी लगभग 80% तेल आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है। ऐसे में, ऊर्जा सुरक्षा भारत के लिए एक राष्ट्रीय प्राथमिकता है। जब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक तेल की कीमतें आसमान छूने लगीं, तो भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गई।
इस संकट के समय, रूस ने भारतीय कंपनियों को रियायती दरों पर कच्चा तेल (Crude Oil) खरीदने का अवसर प्रदान किया। भारत की तेल कंपनियों, जैसे कि इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOCL), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL), और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL), ने इस अवसर का लाभ उठाया। इसके कई प्रमुख कारण थे:
- लागत प्रभावशीलता: रूस से खरीदे गए तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क (जैसे ब्रेंट क्रूड) से काफी कम थी, जिससे भारतीय कंपनियों और उपभोक्ताओं को सीधा आर्थिक लाभ मिला।
- आपूर्ति की निरंतरता: पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं से आपूर्ति में अनिश्चितता के माहौल में, रूस ने एक विश्वसनीय (यद्यपि विवादास्पद) आपूर्ति मार्ग प्रदान किया।
- आयात बिल में कमी: रियायती तेल ने भारत के विशाल आयात बिल को कम करने में मदद की, जिससे देश के चालू खाते के घाटे (Current Account Deficit) को नियंत्रित करने में सहायता मिली।
- विविधीकरण: किसी एक आपूर्तिकर्ता पर अत्यधिक निर्भरता से बचने के लिए, तेल स्रोतों का विविधीकरण भारत की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
भारतीय अधिकारियों का यह कहना कि “रूस से तेल खरीदना बंद करने की कोई खबर नहीं है,” इस बात को पुष्ट करता है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखने के लिए वर्तमान नीति पर कायम है। यह केवल आर्थिक लाभ की बात नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक निर्णय है जो भारत को वैश्विक ऊर्जा बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत करने में मदद करता है।
डोनाल्ड ट्रंप का बयान: निहितार्थ और भू-राजनीतिक दबाव
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान, यद्यपि प्रत्यक्ष नहीं, भारत की रूस से तेल खरीद की नीति पर एक संकेत था। ट्रंप ने, जैसा कि वे अक्सर करते हैं, अमेरिकी ऊर्जा नीति और वैश्विक ऊर्जा बाजार पर अप्रत्यक्ष रूप से टिप्पणी की। ऐसे बयानों के कई निहितार्थ हो सकते हैं:
- अमेरिकी ऊर्जा हितों को बढ़ावा: ट्रंप का बयान अमेरिकी ऊर्जा उत्पादकों के हितों से प्रेरित हो सकता है। यदि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, तो वह पश्चिमी देशों (जो रूस से तेल आयात कम कर रहे हैं) से तेल खरीदने के लिए अधिक इच्छुक होगा, जिससे अमेरिकी ऊर्जा निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
- भू-राजनीतिक दबाव: यह बयान भारत पर रूस के साथ अपने संबंधों को कम करने के लिए एक अप्रत्यक्ष दबाव के रूप में देखा जा सकता है। पश्चिमी देश, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस पर उसके यूक्रेन आक्रमण के लिए दबाव बनाने हेतु उसे आर्थिक और राजनीतिक रूप से अलग-थलग करने का प्रयास कर रहे हैं।
- “भारत-अमेरिका” संबंधों में जटिलता: भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत है, लेकिन ऊर्जा और रूस के साथ भारत के संबंधों जैसे मुद्दों पर कभी-कभी मतभेद देखे जाते हैं। ट्रंप का बयान इस जटिलता को और बढ़ा सकता है।
- “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडा: ट्रंप का “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडा अक्सर अमेरिकी आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों को प्राथमिकता देता है। उनके बयान को इसी व्यापक एजेंडे के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ट्रंप अब अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं हैं, लेकिन उनके बयानों का अमेरिकी राजनीतिक विमर्श पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। साथ ही, यह वैश्विक मंच पर विभिन्न देशों की नीतियों पर चर्चा को भी प्रेरित करता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: एक व्यापक परिप्रेक्ष्य
रूस-यूक्रेन युद्ध ने न केवल ऊर्जा बाजारों को, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। भारत पर इसके कई आयामों से प्रभाव पड़े हैं:
- ऊर्जा कीमतें: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि ने भारत के आयात बिल को बढ़ाया है। इससे पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि हुई है, जिसका सीधा असर आम जनता पर पड़ता है।
- मुद्रास्फीति: ऊर्जा लागत में वृद्धि, परिवहन लागत में वृद्धि का कारण बनती है, जो बदले में खाद्य पदार्थों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को भी बढ़ाती है। इससे समग्र मुद्रास्फीति (Inflation) बढ़ी है।
- व्यापार घाटा: तेल आयात बिल में वृद्धि के कारण भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) बढ़ा है।
- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान: युद्ध के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भी व्यवधान आया है, जिससे कई वस्तुओं की उपलब्धता और लागत प्रभावित हुई है।
- खाद्य सुरक्षा: यूक्रेन और रूस, गेहूं और उर्वरकों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं। युद्ध के कारण इन उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति प्रभावित हुई है, जिससे भारत की खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र पर भी असर पड़ा है।
ऐसे परिदृश्य में, रूस से रियायती तेल खरीदना भारत के लिए एक बचाव (Hedge) के रूप में कार्य करता है, जो इन नकारात्मक प्रभावों को कुछ हद तक कम करता है।
भारत की ऊर्जा कूटनीति: एक बहुआयामी रणनीति
भारत की ऊर्जा कूटनीति (Energy Diplomacy) केवल रूस से तेल खरीदने तक सीमित नहीं है। यह एक बहुआयामी रणनीति है जिसमें कई देश और विभिन्न प्रकार के ऊर्जा स्रोत शामिल हैं:
- आपूर्तिकर्ता देशों का विविधीकरण: भारत अपनी तेल आपूर्ति के लिए मध्य पूर्व (सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, इराक), अफ्रीका (नाइजीरिया, अंगोला), और अमेरिका जैसे देशों पर भी निर्भर है। रूस से खरीद जारी रखते हुए भी, भारत अन्य स्रोतों से भी आयात सुनिश्चित करता है।
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: सरकार घरेलू तेल और गैस उत्पादन को बढ़ाने के लिए भी प्रयास कर रही है, हालांकि यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है।
- नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर: भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास पर भी तेजी से काम कर रहा है। यह न केवल आयात पर निर्भरता कम करता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मदद करता है।
- ऊर्जा दक्षता: ऊर्जा की खपत को कम करने और दक्षता बढ़ाने के उपाय भी भारत की ऊर्जा कूटनीति का हिस्सा हैं।
रूस से तेल खरीदना, इस व्यापक रणनीति का एक हिस्सा है, जो वर्तमान वैश्विक ऊर्जा संकट के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गया है।
पक्ष और विपक्ष: रूस से तेल खरीद के विभिन्न दृष्टिकोण
रूस से तेल खरीदना भारत के लिए एक जटिल निर्णय है, जिसके अपने पक्ष और विपक्ष हैं:
पक्ष (Pros):
- आर्थिक लाभ: रियायती दरें भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय राहत प्रदान करती हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा: यह भारत की ऊर्जा आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करता है, खासकर वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच।
- आयात बिल में कमी: यह देश के चालू खाते के घाटे को प्रबंधित करने में मदद करता है।
- रणनीतिक स्वायत्तता: यह भारत को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के बारे में स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता देता है, भले ही अन्य देश दबाव डालें।
विपक्ष (Cons):
- अंतर्राष्ट्रीय आलोचना: कुछ पश्चिमी देश और संगठन भारत की नीति की आलोचना कर सकते हैं, जो रूस के युद्ध प्रयासों में अप्रत्यक्ष रूप से योगदान कर सकती है।
- प्रतिबंधों का जोखिम: यद्यपि भारत सीधे तौर पर प्रतिबंधों के दायरे में नहीं आया है, फिर भी भविष्य में वित्तीय लेनदेन या शिपिंग से संबंधित अप्रत्यक्ष प्रतिबंधों का खतरा बना रह सकता है।
- नैतिक दुविधा: रूस के यूक्रेन पर आक्रमण को देखते हुए, कुछ लोगों के लिए नैतिक दुविधा उत्पन्न हो सकती है कि वे उस देश से तेल खरीद रहे हैं जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर रहा है।
- रूस पर निर्भरता का बढ़ना: हालांकि भारत विविधीकरण पर जोर देता है, लेकिन एक बड़े स्रोत से रियायती खरीद से कुछ हद तक निर्भरता बढ़ सकती है।
यह कहना उचित होगा कि भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी है, और वर्तमान वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में, रूस से तेल खरीदना भारत के लिए एक व्यावहारिक (Pragmatic) निर्णय है।
चुनौतियाँ और आगे की राह
भारत को रूस से तेल खरीद जारी रखने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- वित्तीय तंत्र: अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण, रूस के साथ व्यापार के लिए भुगतान तंत्र (Payment Mechanisms) एक चुनौती पेश कर सकता है। रुपये-रूबल व्यापार या अन्य वैकल्पिक तंत्रों पर विचार किया जा रहा है।
- शिपिंग और बीमा: पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण, रूस से तेल ले जाने वाले जहाजों के लिए बीमा और शिपिंग प्राप्त करना अधिक कठिन और महंगा हो सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय दबाव: भारत को अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख सहयोगियों से भू-राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
- तेल की गुणवत्ता और रसद: रूस से आयातित तेल की गुणवत्ता और समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करना भी एक रसद (Logistics) चुनौती है।
आगे की राह में, भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए इन चुनौतियों का सामना करना होगा:
- ऊर्जा स्रोतों का निरंतर विविधीकरण: विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से तेल और गैस के नए स्रोतों की तलाश जारी रखना।
- नवीकरणीय ऊर्जा में तेजी: स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में निवेश और उत्पादन बढ़ाना, जो लंबी अवधि में आयात पर निर्भरता कम करेगा।
- रणनीतिक भंडार: भविष्य की आपूर्ति में किसी भी व्यवधान से निपटने के लिए कच्चे तेल के रणनीतिक भंडार (Strategic Petroleum Reserves) को बढ़ाना।
- ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाना: ऊर्जा की खपत को कम करने और दक्षता में सुधार के लिए उन्नत तकनीकों को बढ़ावा देना।
- कूटनीतिक पैंतरेबाजी: विभिन्न देशों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखना और ऊर्जा व्यापार से संबंधित चिंताओं को दूर करना।
निष्कर्ष
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान के बीच भारतीय अधिकारियों का यह स्पष्टीकरण कि रूस से तेल खरीदना बंद करने की कोई खबर नहीं है, भारत की दृढ़ और व्यावहारिक ऊर्जा कूटनीति को दर्शाता है। वैश्विक ऊर्जा बाजार की अनिश्चितताओं और रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव को देखते हुए, भारत के लिए अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सर्वोपरि रखना एक राष्ट्रीय अनिवार्यता है।
रूस से रियायती तेल की खरीद भारत को आर्थिक स्थिरता प्रदान करती है, लेकिन इसके साथ भू-राजनीतिक चुनौतियां और अंतर्राष्ट्रीय आलोचनाएं भी जुड़ी हुई हैं। भारत का लक्ष्य इन जटिलताओं को संतुलित करना, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना और साथ ही वैश्विक व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को भी ध्यान में रखना है।
भविष्य में, भारत की ऊर्जा सुरक्षा न केवल विभिन्न स्रोतों से तेल और गैस की खरीद पर निर्भर करेगी, बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा में उसके निवेश, ऊर्जा दक्षता और मजबूत कूटनीतिक पैंतरेबाजी पर भी निर्भर करेगी। यह वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य भारत की ऊर्जा स्वायत्तता और कूटनीतिक क्षमता की परीक्षा ले रहा है, और भारत इस परीक्षा में अपने तरीके से उत्तीर्ण होने का प्रयास कर रहा है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
I. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है।
II. भारत अपनी लगभग 80% तेल आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है।
III. रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस उत्पादकों में से एक है।
सही कथन चुनें:
a) I और II केवल
b) II और III केवल
c) I और III केवल
d) I, II और III
उत्तर: d) I, II और III
व्याख्या: तीनों कथन तथ्यात्मक रूप से सही हैं और भारत की ऊर्जा निर्भरता और रूस के वैश्विक ऊर्जा बाजार में महत्व को दर्शाते हैं।
2. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक ऊर्जा बाजारों में सबसे प्रमुख प्रभाव क्या देखा गया?
a) तेल की कीमतों में गिरावट
b) तेल की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि
c) तेल की आपूर्ति में वृद्धि
d) तेल की खरीद में आसानी
उत्तर: b) तेल की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि
व्याख्या: रूस पर प्रतिबंधों और आपूर्ति में व्यवधान के कारण वैश्विक तेल की कीमतें तेजी से बढ़ीं।
3. भारत रूस से रियायती दरों पर तेल क्यों खरीद रहा है?
a) केवल राजनीतिक कारणों से
b) ऊर्जा सुरक्षा और लागत प्रभावशीलता के लिए
c) अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण
d) रूस पर ऋण चुकाने के लिए
उत्तर: b) ऊर्जा सुरक्षा और लागत प्रभावशीलता के लिए
व्याख्या: भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखने और आयात लागत को कम करने के लिए रियायती तेल खरीद रहा है।
4. निम्नलिखित में से कौन सी भारतीय तेल कंपनियां रूस से तेल आयात करने में शामिल हैं?
a) रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL)
b) ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ONGC)
c) इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL)
d) गेल (इंडिया) लिमिटेड
उत्तर: c) इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL)
व्याख्या: IOCL, BPCL, और HPCL प्रमुख सरकारी तेल कंपनियां हैं जो रूस से तेल खरीद रही हैं। RIL और ONGC भी तेल क्षेत्र में हैं, लेकिन IOCL मुख्य आयातकों में से है।
5. “चालू खाता घाटा” (Current Account Deficit) क्या दर्शाता है?
a) देश के निर्यात और आयात के बीच का अंतर
b) देश के राजस्व और व्यय के बीच का अंतर
c) देश के उत्पादन और उपभोग के बीच का अंतर
d) देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि
उत्तर: a) देश के निर्यात और आयात के बीच का अंतर
व्याख्या: चालू खाता घाटा तब होता है जब देश का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है। आयात बिल में वृद्धि से यह घाटा बढ़ता है।
6. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों का एक संभावित निहितार्थ क्या हो सकता है?
a) भारत को रूस के साथ संबंध मजबूत करने के लिए प्रोत्साहन
b) भारत पर रूस से तेल खरीद कम करने का अप्रत्यक्ष दबाव
c) अमेरिकी तेल निर्यात में कमी
d) वैश्विक तेल कीमतों में स्थिरता
उत्तर: b) भारत पर रूस से तेल खरीद कम करने का अप्रत्यक्ष दबाव
व्याख्या: ट्रंप के बयान अक्सर अमेरिकी हितों को बढ़ावा देते हैं और अन्य देशों पर अपनी नीतियों को बदलने के लिए अप्रत्यक्ष दबाव बना सकते हैं।
7. भारत की ऊर्जा कूटनीति का मुख्य स्तंभ क्या है?
a) केवल रूस से तेल खरीदना
b) केवल घरेलू उत्पादन पर निर्भरता
c) आपूर्तिकर्ता देशों का विविधीकरण और नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर
d) केवल अमेरिका से तेल आयात
उत्तर: c) आपूर्तिकर्ता देशों का विविधीकरण और नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर
व्याख्या: भारत की ऊर्जा कूटनीति बहुआयामी है, जिसमें विभिन्न स्रोतों से आयात और स्वच्छ ऊर्जा का विकास शामिल है।
8. रूस-यूक्रेन युद्ध का भारत के खाद्य सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा?
a) खाद्य कीमतों में कमी
b) गेहूं और उर्वरकों की वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान
c) कृषि उत्पादन में वृद्धि
d) निर्यात में वृद्धि
उत्तर: b) गेहूं और उर्वरकों की वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान
व्याख्या: रूस और यूक्रेन गेहूं और उर्वरकों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं, और युद्ध ने उनकी वैश्विक आपूर्ति को प्रभावित किया है।
9. निम्नलिखित में से कौन सा भू-राजनीतिक कारक भारत की रूस से तेल खरीद नीति को प्रभावित कर सकता है?
a) रूस के साथ भारत के मजबूत सांस्कृतिक संबंध
b) भारत पर अमेरिका और यूरोपीय संघ का दबाव
c) भारत की बढ़ती जनसंख्या
d) भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम
उत्तर: b) भारत पर अमेरिका और यूरोपीय संघ का दबाव
व्याख्या: पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने के लिए भारत पर दबाव बना सकते हैं।
10. भारत अपनी ऊर्जा दक्षता को बेहतर बनाने के लिए क्या कदम उठा सकता है?
a) अधिक जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके
b) ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाकर
c) ऊर्जा की खपत को बढ़ाकर
d) नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को कम करके
उत्तर: b) ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाकर
व्याख्या: ऊर्जा दक्षता का मतलब है कम ऊर्जा का उपयोग करके समान या बेहतर परिणाम प्राप्त करना।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में, भारत द्वारा रूस से तेल की खरीद जारी रखने के आर्थिक, सामरिक और भू-राजनीतिक निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखने में इस नीति की भूमिका पर प्रकाश डालें।
2. वैश्विक ऊर्जा बाजार में भारत की स्थिति को देखते हुए, रूस से तेल आयात पर निर्भरता को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत की बहुआयामी कूटनीति (रणनीतिक तेल भंडार, नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता) का विस्तार से वर्णन करें।
3. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेताओं के बयानों का भारत की विदेश नीति, विशेषकर ऊर्जा कूटनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है? ऐसे दबावों का सामना करते हुए भारत अपने राष्ट्रीय हितों को कैसे संतुलित कर सकता है?
4. रूस से तेल खरीद, पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के परिप्रेक्ष्य में, भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले समग्र प्रभाव का विश्लेषण करें। इस संदर्भ में, मुद्रास्फीति और व्यापार घाटे जैसे मैक्रो-आर्थिक संकेतकों पर इसके प्रभाव पर विशेष ध्यान दें।