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समाजशास्त्र का रण: अपनी अवधारणाओं को धार दें

समाजशास्त्र का रण: अपनी अवधारणाओं को धार दें

नमस्कार, समाजशास्त्रीय ज्ञान के योद्धाओं! आज एक बार फिर आपके लिए लेकर आए हैं समाजशास्त्र के गहन सिद्धांतों और अवधारणाओं को परखने का एक अनूठा अवसर। अपनी तैयारी को नई दिशा दें, अपनी वैचारिक स्पष्टता को निखारें और आगामी परीक्षाओं के लिए खुद को और भी सशक्त बनाएं। चुनौती स्वीकार है?

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।


प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Fact) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की, जिसे उन्होंने समाजशास्त्र की मुख्य विषय-वस्तु माना?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा दी। उन्होंने इसे इस प्रकार परिभाषित किया: “समाजशास्त्रीय अध्ययन का विषय सामाजिक तथ्य हैं। सामाजिक तथ्य हर वह तरीका है जिसमें समाज में कार्य करने, सोचने और अनुभव करने के लिए सामूहिक रूप से बाध्यकारी तरीके मौजूद हैं।”
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में इस अवधारणा को विस्तृत रूप से समझाया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य बाहरी, बाध्यकारी और सामूहिक चेतना से उत्पन्न होते हैं।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य ध्यान वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर था। मैक्स वेबर ने ‘सामाजिक क्रिया’ और ‘वर्स्टेहेन’ (Verstehen) पर जोर दिया, जो व्यक्तिपरक अर्थों को समझने पर केंद्रित है। हर्बर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद का विकास किया।

प्रश्न 2: मैक्स वेबर के अनुसार, शक्ति (Power) क्या है?

  1. एक व्यक्ति या समूह की दूसरों पर अपनी इच्छा थोपने की क्षमता, चाहे प्रतिरोध हो या न हो।
  2. दूसरों को उन आदेशों का पालन करने की संभावना, जो वे अन्यथा नहीं करते, की संभावना।
  3. साधन-संपन्नता और उत्पादन के साधनों का स्वामित्व।
  4. प्रतीकात्मक अंतःक्रिया के माध्यम से प्राप्त सामाजिक मान्यता।

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: मैक्स वेबर ने शक्ति को ‘किसी सामाजिक संबंध में किसी कर्ता की अपनी इच्छा को लागू करने की क्षमता, प्रतिरोध के बावजूद’ के रूप में परिभाषित किया। यह एक व्यापक अवधारणा है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने शक्ति को ‘प्रभुत्व’ (Domination) से अलग किया, जहाँ प्रभुत्व का अर्थ है आदेशों का पालन होने की संभावना, चाहे वह एक विशिष्ट प्रकार के आदेशों के लिए ही क्यों न हो। शक्ति बिना औचित्य के भी हो सकती है।
  • गलत विकल्प: (b) यह वेबर की ‘प्रभुत्व’ (Domination/Herrschaft) की परिभाषा है, न कि शक्ति की। (c) यह कार्ल मार्क्स के पूंजीवाद और वर्ग की अवधारणा से संबंधित है। (d) यह प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, विशेषकर जॉर्ज हर्बर्ट मीड की ओर इशारा करता है।

प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा इवान पावलोव के शास्त्रीय अनुबंधन (Classical Conditioning) से ली गई है और समाजशास्त्र में सीखा गया व्यवहार समझाने के लिए प्रयोग की जाती है?

  1. प्रतीकात्मक अंतःक्रिया (Symbolic Interaction)
  2. अनुकूलन (Adaptation)
  3. अभिज्ञान (Recognition)
  4. प्रबलन (Reinforcement)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: प्रबलन (Reinforcement) पावलोव के अनुबंधन सिद्धांत का एक मुख्य तत्व है, जहाँ एक क्रिया के बाद मिलने वाला सकारात्मक या नकारात्मक परिणाम उस क्रिया को दोहराने की संभावना को बढ़ाता है। समाजशास्त्र में, व्यवहार को सामाजिक सीखने के रूप में समझाने के लिए इस अवधारणा का उपयोग किया जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: व्यवहारवाद (Behaviorism) जैसे दृष्टिकोण, जो समाजशास्त्र के कुछ हिस्सों को प्रभावित करते हैं, सीखने की प्रक्रिया में प्रबलन के महत्व पर जोर देते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) प्रतीकात्मक अंतःक्रिया समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण है जो प्रतीकों के माध्यम से अर्थ निर्माण पर केंद्रित है। (b) अनुकूलन एक व्यापक जैविक और सामाजिक प्रक्रिया है। (c) अभिज्ञान पहचान या स्वीकृति को संदर्भित करता है।

प्रश्न 4: टी. पार्सन्स के ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ (Structural Functionalism) के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन सा एक समाज के लिए एक आवश्यक प्रकार्य (Function) नहीं है?

  1. लक्ष्य-प्राप्ति (Goal Attainment)
  2. व्यवस्था-अनुरक्षण (Latency/Pattern Maintenance)
  3. समन्वय (Integration)
  4. विभेद (Differentiation)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: टैल्कॉट पार्सन्स ने समाज की चार बुनियादी कार्यात्मक आवश्यकताएं बताई हैं, जिन्हें AGIL प्रतिमान (Pattern) के रूप में जाना जाता है: अनुकूलन (Adaptation), लक्ष्य-प्राप्ति (Goal Attainment), एकीकरण (Integration), और गुप्तता/व्यवस्था-अनुरक्षण (Latency/Pattern Maintenance)। विभेद (Differentiation) समाज के विकास का एक परिणाम हो सकता है, लेकिन यह AGIL प्रतिमान में एक आवश्यक प्रकार्य के रूप में सूचीबद्ध नहीं है।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स का मानना था कि किसी भी जीवित प्रणाली (समाज सहित) को जीवित रहने के लिए इन चार प्रकार्यों को पूरा करना होगा।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) पार्सन्स के AGIL प्रतिमान के सीधे हिस्से हैं, जिन्हें समाज के अस्तित्व के लिए आवश्यक माना जाता है।

प्रश्न 5: समाजशास्त्र में ‘अभिज्ञा’ (Alienation) की अवधारणा को मुख्य रूप से किस विचारक से जोड़ा जाता है?

  1. मैक्स वेबर
  2. एमिल दुर्खीम
  3. कार्ल मार्क्स
  4. जी. एच. मीड

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के तहत श्रमिक की ‘अभिज्ञा’ की अवधारणा विकसित की। उनके अनुसार, श्रमिक अपने श्रम, उत्पादन, अपनी मानव प्रजाति-प्रकृति (species-being) और अन्य मनुष्यों से अलग-थलग महसूस करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने ‘पेरिस पांडुलिपियाँ’ (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844) में अभिज्ञा के चार मुख्य रूपों का वर्णन किया: उत्पादन से अभिज्ञा, उत्पादन की क्रिया से अभिज्ञा, अपनी प्रजाति-प्रकृति से अभिज्ञा, और अन्य मनुष्यों से अभिज्ञा।
  • गलत विकल्प: (a) वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतीकरण से जुड़ी अभिज्ञा पर कुछ विचार व्यक्त किए, लेकिन मार्क्स की तरह केंद्रीय नहीं। (b) दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। (d) मीड ने ‘स्व’ (Self) और सामाजिक अंतःक्रिया पर काम किया।

प्रश्न 6: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज के एकीकरण (Social Solidarity) के लिए ‘सावयवी एकता’ (Organic Solidarity) किस प्रकार के समाजों में पाई जाती है?

  1. आदिम और सरल समाजों में, जहाँ समानता अधिक होती है।
  2. पारंपरिक समाजों में, जहाँ धर्म प्रमुख भूमिका निभाता है।
  3. आधुनिक और औद्योगिक समाजों में, जहाँ श्रम विभाजन उच्च होता है।
  4. सभी प्रकार के समाजों में, अविभेदित रूप से।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: दुर्खीम ने ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ में सावयवी एकता को आधुनिक, जटिल समाजों से जोड़ा है, जहाँ श्रम का विभाजन (Division of Labour) बहुत अधिक होता है। लोग अपनी विशिष्ट भूमिकाओं और अंतर-निर्भरता के कारण एक-दूसरे से बंधे होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे मानव शरीर के अंग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: इसके विपरीत, उन्होंने ‘यांत्रिक एकता’ (Mechanical Solidarity) को सरल समाजों से जोड़ा, जहाँ लोग समान कार्यों और विश्वासों के कारण एकजुट होते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) यह यांत्रिक एकता का वर्णन है। (b) यह भी यांत्रिक एकता से जुड़ा है, जहाँ सामूहिक चेतना (Collective Consciousness) मजबूत होती है। (d) एकता के प्रकार समाज की जटिलता के आधार पर भिन्न होते हैं।

प्रश्न 7: भारतीय समाज में ‘प्रभुत्वशाली जाति’ (Dominant Caste) की अवधारणा किसने दी?

  1. इरावती कर्वे
  2. एम.एन. श्रीनिवास
  3. जी.एस. घुरिये
  4. ए.आर. देसाई

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय गांवों के अपने अध्ययन के आधार पर ‘प्रभुत्वशाली जाति’ की अवधारणा विकसित की। प्रभुत्वशाली जाति वह जाति होती है जो गांव की कुल जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो, जो आर्थिक और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली हो, और जिसकी प्रतिष्ठा उच्च हो।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा श्रीनिवास की पुस्तक ‘India’s Villages’ और अन्य लेखों में पाई जाती है। यह दर्शाता है कि किसी गांव में जाति की स्थिति केवल पदानुक्रम पर आधारित नहीं होती, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक शक्ति पर भी निर्भर करती है।
  • गलत विकल्प: (a) इरावती कर्वे ने नातेदारी पर काम किया। (c) घुरिये ने जाति व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर लिखा, लेकिन प्रभुत्वशाली जाति की विशिष्ट अवधारणा श्रीनिवास की है। (d) देसाई मार्क्सवादी दृष्टिकोण से सामाजिक परिवर्तन पर केंद्रित थे।

प्रश्न 8: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की, जो सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में अमूर्त संस्कृति (Non-material Culture) के भौतिक संस्कृति (Material Culture) से पीछे रह जाने की स्थिति का वर्णन करती है?

  1. विलियम ग्राहम समनर
  2. एल्विन गोल्डनर
  3. विलियम ओगबर्न
  4. पीटर एल. बर्जर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: विलियम ओगबर्न ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘Social Change with Respect to Culture and Original Nature’ में ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा का विस्तार से वर्णन किया। उनका मानना था कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) तेजी से बदलती है, जबकि अमूर्त संस्कृति (जैसे कानून, नैतिकता, सामाजिक संस्थाएं) उस गति से नहीं बदल पाती, जिससे समाज में असंतुलन पैदा होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, इंटरनेट और सोशल मीडिया का तीव्र विकास (भौतिक संस्कृति) हमारे सामाजिक शिष्टाचार और गोपनीयता के कानूनों (अमूर्त संस्कृति) को अनुकूलित होने के लिए समय नहीं दे रहा है।
  • गलत विकल्प: (a) समनर ने ‘लोकप्रिय रूढ़ियाँ’ (Folkways) और ‘रूढ़ियाँ’ (Mores) की बात की। (b) गोल्डनर ने ‘प्रतिमान परिवर्तन’ (Pattern Maintenance) पर काम किया। (d) बर्जर ने ‘सामाजिक निर्माण’ (Social Construction) की अवधारणा पर काम किया।

प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सी समाजशास्त्रीय अनुसंधान पद्धति व्यक्तिपरक अर्थों और समझ (Verstehen) पर बल देती है?

  1. प्रत्यक्षवाद (Positivism)
  2. व्याख्यावाद (Interpretivism)
  3. व्यवहारवाद (Behaviorism)
  4. संरचनावाद (Structuralism)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: व्याख्यावाद (Interpretivism) या जिसे कभी-कभी ‘समझने वाला समाजशास्त्र’ (Understanding Sociology) भी कहा जाता है, व्यक्तिपरक अर्थों, अनुभवों और सामाजिक क्रियाओं के पीछे छिपे इरादों को समझने पर बल देता है। यह मैक्स वेबर के ‘वर्स्टेहेन’ (Verstehen) से बहुत प्रभावित है।
  • संदर्भ और विस्तार: इस पद्धति के समर्थक मानते हैं कि समाज को केवल बाहरी, अवलोकन योग्य व्यवहार के रूप में नहीं समझा जा सकता, बल्कि लोगों के अपने कार्यों को दिए जाने वाले अर्थों को भी समझना आवश्यक है।
  • गलत विकल्प: (a) प्रत्यक्षवाद प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों को समाजशास्त्र में लागू करने पर जोर देता है, जो वस्तुनिष्ठता पर केंद्रित है। (c) व्यवहारवाद मुख्य रूप से अवलोकन योग्य व्यवहार पर केंद्रित है। (d) संरचनावाद सामाजिक संरचनाओं और उनके संबंधों का विश्लेषण करता है।

प्रश्न 10: निम्न में से कौन सी भारतीय समाज की विशेषता नहीं है?

  1. अखंडित असंबद्धता (Segmental Division)
  2. पदानुक्रम (Hierarchy)
  3. शुचिता और अशुचिता (Purity and Pollution)
  4. बहुलतावाद (Pluralism)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: भारतीय समाज की पारंपरिक विशेषताओं में अखंडित असंबद्धता (जाति व्यवस्था का विभाजन), पदानुक्रम (जातियों का ऊँचा-नीचा क्रम), और शुचिता व अशुचिता के विचार (जो अंतःक्रिया और खान-पान के नियमों को नियंत्रित करते हैं) शामिल हैं। बहुलतावाद (Pluralism) का अर्थ विभिन्न संस्कृतियों का सह-अस्तित्व है, जो भारतीय समाज में मौजूद तो है, लेकिन यह उपर्युक्त विशेषताओं के विपरीत या कम से कम उनके साथ एक जटिल संबंध रखता है, न कि उनकी मुख्य विशेषता के रूप में।
  • संदर्भ और विस्तार: जी.एस. घुरिये जैसे समाजशास्त्रियों ने इन विशेषताओं पर प्रकाश डाला है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) ये सभी भारतीय समाज, विशेषकर जाति व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ मानी जाती हैं।

प्रश्न 11: ‘आधुनिकता’ (Modernity) की समाजशास्त्रीय समझ के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा एक प्रमुख तत्व नहीं है?

  1. तर्कसंगतीकरण (Rationalization)
  2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Outlook)
  3. व्यक्तिवाद (Individualism)
  4. सामूहिकता (Collectivism)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: आधुनिकता को आम तौर पर तर्कसंगतीकरण (जैसे मैक्स वेबर का विचार), वैज्ञानिक दृष्टिकोण, धर्मनिरपेक्षता (Secularization), व्यक्तिवाद, और राष्ट्र-राज्य के उदय जैसी प्रवृत्तियों से जोड़ा जाता है। सामूहिकता (Collectivism) पारंपरिक या साम्यवादी समाजों की विशेषता अधिक मानी जाती है, न कि आधुनिकता की।
  • संदर्भ और विस्तार: आधुनिकता अक्सर परंपरा से अलगाव और व्यक्तिगत स्वायत्तता पर जोर देती है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) ये सभी आधुनिकता के प्रमुख तत्व हैं।

प्रश्न 12: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) से तात्पर्य है:

  1. समाज में व्यक्तियों के बीच अनौपचारिक संबंध।
  2. समाज में संसाधनों और शक्ति के असमान वितरण के आधार पर समूहों का पदानुक्रमित विभाजन।
  3. सांस्कृतिक मूल्यों और मानदंडों का समूह।
  4. सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन करने वाले व्यवहार।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सामाजिक स्तरीकरण समाज को उन स्तरों या परतों में विभाजित करने की एक प्रणाली है जहाँ विभिन्न समूहों को आय, धन, शक्ति, प्रतिष्ठा और विशेषाधिकारों तक असमान पहुँच प्राप्त होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: जाति, वर्ग, लिंग और नस्ल जैसे कारक सामाजिक स्तरीकरण के मुख्य आधार हो सकते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) यह सामाजिक संबंधों या नेटवर्किंग से संबंधित है। (c) यह संस्कृति की परिभाषा है। (d) यह विचलन (Deviance) की परिभाषा है।

प्रश्न 13: निम्नलिखित में से किस भारतीय समाजशास्त्री ने ‘आदिवासियों का भारतीयकरण’ (Indianization of Tribals) की प्रक्रिया का उल्लेख किया है?

  1. एन.के. बोस
  2. डॉ. बी.आर. अंबेडकर
  3. एम.एन. श्रीनिवास
  4. ल. कृष्ण अय्यर

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: एन.के. बोस (N.K. Bose) ने आदिवासी समुदायों के मुख्यधारा के हिंदू समाज में समाहित होने या ‘भारतीयकृत’ होने की प्रक्रिया का विस्तृत अध्ययन किया और इस पर लिखा। उन्होंने आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच सांस्कृतिक अंतःक्रिया और समावेशन के तरीकों का विश्लेषण किया।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने यह भी बताया कि कैसे आदिवासी अपनी विशिष्ट पहचान खोकर हिंदू सामाजिक संरचना में निचले स्तर पर एकीकृत हो जाते हैं।
  • गलत विकल्प: (b) अंबेडकर ने जाति और दलितों की मुक्ति पर अधिक ध्यान केंद्रित किया, यद्यपि उन्होंने आदिवासी मुद्दों पर भी बात की। (c) श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण पर जोर दिया। (d) ल. कृष्ण अय्यर एक मानवविज्ञानी थे जिन्होंने कुछ आदिवासी समुदायों पर काम किया।

प्रश्न 14: ‘सामाजिक संस्था’ (Social Institution) के संदर्भ में, परिवार को किस श्रेणी में रखा जा सकता है?

  1. आर्थिक संस्था
  2. राजनीतिक संस्था
  3. सामाजिक नियंत्रण की संस्था
  4. विवाह और प्रजनन से संबंधित प्राथमिक संस्था

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: परिवार को मुख्य रूप से विवाह, नातेदारी और प्रजनन से संबंधित एक प्राथमिक सामाजिक संस्था के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो समाज के अस्तित्व और निरंतरता के लिए आवश्यक है। यह सामाजिक नियंत्रण, समाजीकरण और भावनात्मक समर्थन जैसे अन्य कार्य भी करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: समाजशास्त्र में, परिवार, विवाह, नातेदारी, धर्म, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति को प्रमुख सामाजिक संस्थाओं के रूप में अध्ययन किया जाता है।
  • गलत विकल्प: परिवार आर्थिक (जैसे उत्पादन और उपभोग) या राजनीतिक (जैसे सत्ता हस्तांतरण) कार्य भी कर सकता है, लेकिन इसकी प्राथमिक और परिभाषित भूमिका विवाह और प्रजनन से जुड़ी है। ‘सामाजिक नियंत्रण की संस्था’ भी इसका एक कार्य है, लेकिन यह इसकी मुख्य श्रेणी नहीं है।

प्रश्न 15: ‘समाजशास्त्रीय कल्पना’ (Sociological Imagination) की अवधारणा किसने दी, जो व्यक्तिगत समस्याओं को सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ में देखने की क्षमता को दर्शाती है?

  1. सी. राइट मिल्स
  2. ए.आर. रेडक्लिफ-ब्राउन
  3. इरविंग गॉफमैन
  4. सिगमंड फ्रायड

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सी. राइट मिल्स ने 1959 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘The Sociological Imagination’ में इस अवधारणा का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि समाजशास्त्रीय कल्पना हमें व्यक्तिगत अनुभवों (Troubles) को व्यापक सामाजिक संरचनाओं और इतिहास (Issues) से जोड़ने में मदद करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, बेरोजगारी एक व्यक्तिगत समस्या (Trouble) लग सकती है, लेकिन जब बड़े पैमाने पर बेरोजगारी होती है, तो यह एक सामाजिक मुद्दा (Issue) बन जाती है जो आर्थिक मंदी या नीतिगत विफलताओं से जुड़ी होती है।
  • गलत विकल्प: (b) रेडक्लिफ-ब्राउन संरचनात्मक प्रकार्यवाद और मानव विज्ञान से जुड़े थे। (c) गॉफमैन ने ‘नाटकशास्त्र’ (Dramaturgy) का सिद्धांत दिया। (d) फ्रायड मनोविज्ञान के संस्थापक थे।

प्रश्न 16: निम्न में से कौन सा संबंध ‘विचलित व्यवहार’ (Deviant Behavior) के ‘लेबलिंग सिद्धांत’ (Labeling Theory) के अनुरूप है?

  1. लोगों के व्यवहार को उनके बचपन के अनुभवों द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  2. कुछ व्यवहार स्वाभाविक रूप से बुरे होते हैं और उन्हें समाज द्वारा दंडित किया जाना चाहिए।
  3. समाज द्वारा कुछ लोगों या कार्यों को ‘विचलित’ के रूप में लेबल किया जाता है, जिससे उनकी पहचान बनती है।
  4. विचलित व्यवहार सामाजिक मानदंडों और मूल्यों से विचलन का परिणाम है।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: लेबलिंग सिद्धांत (जैसे हॉवर्ड बेकर द्वारा विकसित) बताता है कि विचलन को किसी क्रिया के अंतर्निहित गुणों से अधिक, समाज के सदस्यों द्वारा उस क्रिया या व्यक्ति पर लगाए गए लेबल से परिभाषित किया जाता है। जब किसी व्यक्ति को ‘अपराधी’ या ‘नशेड़ी’ जैसे लेबल दिए जाते हैं, तो वे उस लेबल के अनुसार व्यवहार करना शुरू कर सकते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत विचलन को एक सामाजिक निर्माण (Social Construction) के रूप में देखता है।
  • गलत विकल्प: (a) यह मनोविश्लेषणात्मक या सामाजिक-मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों से संबंधित है। (b) यह विचलन पर एक पारंपरिक या ‘नियम-आधारित’ दृष्टिकोण है। (d) यह विचलन का एक सामान्य परिभाषा है, न कि लेबलिंग सिद्धांत की विशिष्ट व्याख्या।

प्रश्न 17: ‘नृवंशविज्ञान’ (Ethnography) समाजशास्त्रीय अनुसंधान की एक विधि है, जो मुख्य रूप से ________ पर आधारित है?

  1. सांख्यिकीय विश्लेषण
  2. सर्वेक्षण और प्रश्नावली
  3. गहन क्षेत्र कार्य और सहभागी अवलोकन
  4. दस्तावेजों का विश्लेषण

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: नृवंशविज्ञान (Ethnography) एक गुणात्मक (Qualitative) अनुसंधान विधि है जिसमें शोधकर्ता एक विशेष समूह या समुदाय के जीवन में स्वयं को डुबो देते हैं, उनके दैनिक जीवन का अवलोकन करते हैं, उनसे बातचीत करते हैं और उनके व्यवहार, विश्वासों तथा संस्कृति को गहराई से समझने का प्रयास करते हैं। इसमें सहभागी अवलोकन (Participant Observation) एक प्रमुख तकनीक है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह विधि मानवविज्ञानी और समाजशास्त्रियों द्वारा विविध संस्कृतियों और सामाजिक समूहों का अध्ययन करने के लिए व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।
  • गलत विकल्प: (a) सांख्यिकीय विश्लेषण मात्रात्मक (Quantitative) अनुसंधान का हिस्सा है। (b) सर्वेक्षण और प्रश्नावली भी मात्रात्मक या मिश्रित विधियों का हिस्सा हैं। (d) दस्तावेजों का विश्लेषण एक अलग शोध विधि है।

प्रश्न 18: जॉर्ज हर्बर्ट मीड के अनुसार, ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) के बीच द्वंद्व ________ को समझने के लिए महत्वपूर्ण है?

  1. सामाजिक संरचना
  2. राजनीतिक शक्ति
  3. ‘स्व’ (Self) का विकास
  4. आर्थिक असमानता

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के प्रमुख विचारकों में से एक, ने ‘स्व’ (Self) के विकास को दो भागों में बांटा: ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me)। ‘मैं’ क्रियात्मक, तात्कालिक और अप्रत्याशित प्रतिक्रियाओं का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि ‘मुझे’ सामाजिक रूप से सीखे गए दृष्टिकोणों, अपेक्षाओं और समाज द्वारा आंतरिक किए गए ‘अन्य’ (Generalized Other) का प्रतिनिधित्व करता है। इन दोनों के बीच की बातचीत से ‘स्व’ का निर्माण होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत बताता है कि व्यक्ति समाज के साथ अंतःक्रिया के माध्यम से अपना ‘स्व’ विकसित करता है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (d) ये समाजशास्त्र की अन्य महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं, लेकिन मीड का यह विशेष योगदान ‘स्व’ के विकास से संबंधित है।

प्रश्न 19: निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता ‘जर्मन आइडियलिज्म’ और ‘मार्क्सवाद’ दोनों से प्रभावित समाजशास्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो ऐतिहासिक विकास को ‘संघर्ष’ के माध्यम से आगे बढ़ते हुए देखते हैं?

  1. संरचनात्मक प्रकार्यवाद
  2. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
  3. द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism)
  4. व्यवहारवाद

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, कार्ल मार्क्स के सिद्धांत का मूल है, जो हेगेल के द्वंद्वात्मकता (Dialectics) के विचार को भौतिकवाद (Materialism) से जोड़ता है। यह मानता है कि इतिहास उत्पादन के साधनों और वर्गों के बीच संघर्ष से प्रेरित होता है, जो अंततः सामाजिक परिवर्तन की ओर ले जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह मार्क्सवादी समाजशास्त्र का आधार है।
  • गलत विकल्प: (a) संरचनात्मक प्रकार्यवाद स्थिरता और व्यवस्था पर जोर देता है, न कि संघर्ष पर। (b) प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्ति-स्तरीय अर्थ निर्माण पर केंद्रित है। (d) व्यवहारवाद सामाजिक क्रियाओं की व्याख्या व्यवहार के अवलोकन योग्य पैटर्नों से करता है।

प्रश्न 20: ‘गुमनामी’ (Anonymity) समाजशास्त्रीय रूप से महत्वपूर्ण है, खासकर ________ के संदर्भ में?

  1. पारिवारिक संबंधों में
  2. धार्मिक अनुष्ठानों में
  3. बड़े शहरों में सामाजिक अलगाव और प्राथमिक संबंधों के क्षरण में
  4. शैक्षिक संस्थानों में

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: गुमनामी (Anonymity) बड़े शहरों की एक विशिष्ट विशेषता है, जहाँ व्यक्ति अक्सर एक-दूसरे को नहीं जानते और उनके बीच गहन, व्यक्तिगत संबंध नहीं होते। यह अक्सर सामाजिक अलगाव (Social Isolation) और प्राथमिक संबंधों (Primary Relationships) के क्षरण से जुड़ा होता है, जैसा कि फर्डीनेंड टोनीज ने ‘गेमेन्शाफ्ट’ (Gemeinschaft) और ‘गेशेल्सशाफ्ट’ (Gesellschaft) में वर्णन किया है।
  • संदर्भ और विस्तार: गुमनामी लोगों को कम सामाजिक दबाव या जवाबदेही महसूस करा सकती है, लेकिन यह अलगाव की भावना को भी बढ़ा सकती है।
  • गलत विकल्प: (a) परिवार में आमतौर पर गुमनामी नहीं होती। (b) धार्मिक अनुष्ठानों में अक्सर सामूहिक पहचान पर जोर दिया जाता है। (d) शैक्षिक संस्थानों में भी अक्सर व्यक्तिगत पहचान और संबंध बनते हैं।

प्रश्न 21: ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का सिद्धांत क्या सिखाता है?

  1. सभी संस्कृतियाँ समान रूप से विकसित होती हैं।
  2. किसी संस्कृति को उसके अपने संदर्भ में समझा जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी मानक से आंका जाना चाहिए।
  3. पश्चिमी संस्कृति सभी संस्कृतियों से श्रेष्ठ है।
  4. संस्कृति का समाज की आर्थिक संरचना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सांस्कृतिक सापेक्षवाद एक सिद्धांत है जो कहता है कि किसी व्यक्ति की मान्यताओं, मूल्यों और प्रथाओं को उस व्यक्ति की अपनी संस्कृति के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। यह किसी संस्कृति को नैतिक या सामाजिक रूप से बेहतर या बदतर के रूप में आंके बिना उसके अपने मानकों के अनुसार मूल्यांकन करने का आह्वान करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह नृजातीयतावाद (Ethnocentrism) के विपरीत है, जो अपनी संस्कृति को दूसरों से श्रेष्ठ मानता है।
  • गलत विकल्प: (a) यह विकासवाद का एक रूप है, न कि सापेक्षवाद। (c) यह नृजातीयतावाद का उदाहरण है। (d) यह सांस्कृतिक निर्धारणवाद (Cultural Determinism) के विचार को खारिज करता है।

प्रश्न 22: निम्नलिखित में से कौन सा भारतीय जाति व्यवस्था के बारे में जीएस घुरिये के विचारों से सबसे अधिक मेल खाता है?

  1. जाति व्यवस्था एक लचीली व्यवस्था है जो आधुनिकता के साथ समाप्त हो जाएगी।
  2. जाति व्यवस्था सामाजिक गतिशीलता को सीमित करती है और पदानुक्रम, निषेध और व्यावसायिक प्रतिबंधों पर आधारित है।
  3. जाति व्यवस्था केवल एक सामाजिक वर्ग व्यवस्था है।
  4. जाति व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य विवाह को नियंत्रित करना है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: जीएस घुरिये, भारतीय जाति व्यवस्था के प्रमुख अध्ययनों में से एक, ने इसे एक ऐसी व्यवस्था के रूप में वर्णित किया जो उच्च स्तर का पदानुक्रम, अंतर-जातीय अलगाव (निषेध), और प्रतिबंधों (विशेष रूप से भोजन, सामाजिक मेलजोल और विवाह के संबंध में) द्वारा चिह्नित है, और यह सामाजिक गतिशीलता को अत्यंत सीमित करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: घुरिये की पुस्तक ‘Caste and Race in India’ (1932) में इस पर विस्तार से चर्चा की गई है।
  • गलत विकल्प: (a) घुरिये ने जाति की दृढ़ता पर बल दिया। (c) घुरिये ने इसे वर्ग से अधिक व्यापक और जटिल माना। (d) विवाह नियंत्रण एक महत्वपूर्ण पहलू था, लेकिन यह जाति व्यवस्था का एकमात्र या पूर्ण उद्देश्य नहीं था।

  • प्रश्न 23: ‘ग्राम समुदाय’ (Village Community) की भारतीय समाज में पारंपरिक भूमिका के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?

    1. यह एक स्व-पर्याप्त (self-sufficient) इकाई थी।
    2. यह अपनी आंतरिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए मुख्य रूप से पंचायत पर निर्भर था।
    3. इसमें श्रम का विभाजन पाया जाता था।
    4. आधुनिकता और शहरीकरण के आगमन के साथ यह पूरी तरह से अप्रासंगिक हो गया है।

    उत्तर: (d)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: यद्यपि ग्राम समुदाय पारंपरिक रूप से स्व-पर्याप्त, आंतरिक रूप से विभाजित श्रम वाली इकाई थी जो अपनी व्यवस्था के लिए पंचायत पर निर्भर करती थी, यह आधुनिकता और शहरीकरण के बावजूद पूरी तरह से अप्रासंगिक नहीं हुआ है। इसने स्वरूप बदला है, लेकिन इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है।
  • संदर्भ और विस्तार: चार्ल्स मेटकाफ जैसे शुरुआती औपनिवेशिक प्रशासकों ने भारतीय ग्राम समुदायों को ‘छोटे गणराज्य’ कहा था।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) ये सभी पारंपरिक ग्राम समुदाय की विशेषताएं हैं। (d) यह कथन गलत है क्योंकि ग्राम समुदाय आज भी भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, भले ही उसमें बदलाव आया हो।

  • प्रश्न 24: ‘औद्योगीकरण’ (Industrialization) का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?

    1. ग्रामीण जीवनशैली का महत्व बढ़ता है।
    2. श्रम विभाजन और विशेषज्ञता कम होती है।
    3. पारंपरिक, कृषि-आधारित समाजों का स्थान औद्योगिक, शहरी समाजों द्वारा लिया जाता है।
    4. पारिवारिक संरचनाएं और अधिक विस्तृत (joint) हो जाती हैं।

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो उत्पादन के तरीकों को हस्तशिल्प और कृषि से बदलकर बड़े पैमाने पर मशीनीकृत कारखानों में ले जाती है। इसके परिणामस्वरूप, ग्रामीण जीवन का महत्व कम होता है, श्रम विभाजन और विशेषज्ञता बढ़ती है, और लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे शहरीकरण को बढ़ावा मिलता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सामाजिक संरचना, जीवनशैली, मूल्यों और संस्थानों में व्यापक परिवर्तन लाता है।
  • गलत विकल्प: (a) औद्योगीकरण से शहरीकरण बढ़ता है, ग्रामीण जीवन का महत्व घटता है। (b) औद्योगीकरण श्रम विभाजन और विशेषज्ञता को बढ़ाता है। (d) औद्योगीकरण अक्सर विस्तारित (joint) पारिवारिक संरचनाओं को संकुचित (nuclear) परिवारों में बदल देता है।

  • प्रश्न 25: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा का अर्थ है:

    1. किसी व्यक्ति की आर्थिक संपत्ति।
    2. समाज में लोगों के बीच मौजूद संबंधों, नेटवर्क और विश्वास से प्राप्त होने वाले लाभ।
    3. किसी व्यक्ति की शिक्षा और कौशल।
    4. सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सामाजिक पूंजी, पियरे बॉर्डियु जैसे समाजशास्त्रियों द्वारा विकसित, उन लाभों को संदर्भित करती है जो व्यक्तियों या समूहों को उनके सामाजिक नेटवर्क (जैसे रिश्ते, संपर्क, समूह सदस्यता) और विश्वास से प्राप्त होते हैं। यह साझा नेटवर्क और सामान्य समझ के माध्यम से सामूहिक कार्रवाई को सुगम बनाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, नौकरी खोजने के लिए किसी मित्र की सिफारिश या किसी समुदाय में साझा समस्याओं को हल करने के लिए एक साथ काम करना सामाजिक पूंजी के उपयोग को दर्शाता है।
  • गलत विकल्प: (a) यह वित्तीय पूंजी है। (c) यह मानवीय पूंजी है। (d) यह सरकारी सहायता या सामाजिक सुरक्षा है।

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