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चुनावों में धांधली के आरोप: क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा है? EC का जवाब और आगे की राह

चुनावों में धांधली के आरोप: क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा है? EC का जवाब और आगे की राह

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में चुनावों में धांधली के आरोपों ने एक बार फिर देश भर में बहस छेड़ दी है। एक प्रमुख राजनीतिक दल के नेता ने स्पष्ट रूप से चुनाव अधिकारियों पर वोटों की चोरी का आरोप लगाया है, साथ ही चेतावनी दी है कि वे पीछे नहीं हटेंगे, भले ही अधिकारी सेवानिवृत्त हो जाएं। इस गंभीर आरोप के जवाब में, चुनाव आयोग (EC) ने जोर देकर कहा है कि अधिकारियों को ऐसे बयानों और धमकियों से विचलित नहीं होना चाहिए। यह घटनाक्रम न केवल चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे की विश्वसनीयता के लिए भी एक बड़ी चुनौती पेश करता है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम इस मुद्दे की गहराई से पड़ताल करेंगे, आरोपों के पीछे के कारणों, चुनाव आयोग की भूमिका, संभावित निहितार्थों और भविष्य की राह पर विचार करेंगे।

यह मुद्दा UPSC उम्मीदवारों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और अन्य प्रतिष्ठित सेवाओं के लिए तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सीधे तौर पर भारत के संविधान, शासन, चुनावी सुधारों, लोक प्रशासन और मौलिक अधिकारों जैसे जीएस-1, जीएस-2 और जीएस-4 के महत्वपूर्ण अनुभागों से जुड़ा हुआ है। चुनावों की अखंडता किसी भी लोकतंत्र की नींव होती है, और ऐसे आरोप उस नींव को हिला सकते हैं। इसलिए, इस मुद्दे की पूरी समझ उम्मीदवारों को न केवल परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद करेगी, बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक और संभावित प्रशासक के रूप में तैयार करेगी।

चुनावों में धांधली के आरोप: संदर्भ और विश्लेषण

जब कोई प्रमुख राजनीतिक हस्ती चुनाव अधिकारियों पर वोटों की चोरी जैसे गंभीर आरोप लगाती है, तो यह सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं रह जाता, बल्कि यह सीधे तौर पर चुनावी प्रक्रिया की वैधता और निष्पक्षता पर सवाल उठाता है। ऐसे आरोप, विशेष रूप से जब सार्वजनिक मंचों पर लगाए जाते हैं, जनता के विश्वास को डगमगा सकते हैं और राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकते हैं।

“लोकतंत्र में, चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता जनता के विश्वास की आधारशिला है। जब इस विश्वास पर सवाल उठता है, तो यह पूरे लोकतांत्रिक ताने-बाने को कमजोर करता है।”

आरोपों के संभावित कारण:

आमतौर पर, चुनावों में धांधली के आरोप कई कारणों से लगाए जा सकते हैं:

  • वास्तविक विसंगतियां: कभी-कभी, मतों की गिनती या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) के संचालन में वास्तविक खामियां या प्रक्रियात्मक त्रुटियां हो सकती हैं, जो पक्षपातपूर्ण धारणाओं को जन्म दे सकती हैं।
  • हार स्वीकार न करना: हारने वाले उम्मीदवार या दल अक्सर अपनी हार के कारणों को समझाने के लिए बाहरी कारकों, जैसे धांधली, को जिम्मेदार ठहराते हैं। यह राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है।
  • जनता को लामबंद करना: कुछ दल मतदाताओं में असंतोष और विरोध की भावना पैदा करने के लिए ऐसे आरोप लगा सकते हैं, ताकि भविष्य के चुनावों के लिए समर्थन जुटाया जा सके।
  • जनता के विश्वास को कम करना: यह एक गहरी राजनीतिक चाल हो सकती है जिसका उद्देश्य चुनावी संस्थाओं में जनता के विश्वास को कम करना हो, जिससे सत्ताधारी दल की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लगे।
  • प्रशासनिक जवाबदेही: यह चुनाव अधिकारियों को अधिक सतर्क और निष्पक्ष रहने के लिए एक प्रकार की चेतावनी के रूप में भी देखा जा सकता है।

“हम छोड़ेंगे नहीं, चाहे वे रिटायर हो जाएं” – इस बयान का निहितार्थ:

यह वाक्यांश न केवल आरोपों की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि एक दृढ़ संकल्प को भी व्यक्त करता है। इसका मतलब हो सकता है कि:

  • न्याय की मांग: आरोप लगाने वाले दल किसी भी कीमत पर अपने आरोपों की जांच करवाना चाहते हैं और यदि वे दोषी पाए जाते हैं तो संबंधित अधिकारियों को जवाबदेह ठहराना चाहते हैं, भले ही वे अपनी सेवाओं से सेवानिवृत्त हो जाएं।
  • दीर्घकालिक लड़ाई: यह एक संकेत हो सकता है कि वे इस मुद्दे को केवल वर्तमान चुनाव तक सीमित नहीं रखना चाहते, बल्कि चुनावी सुधारों की दिशा में एक लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं।
  • राजनीतिक दृढ़ता: यह एक राजनीतिक संदेश है कि वे अपने विरोधियों को आसानी से सफल नहीं होने देंगे और चुनावी निष्पक्षता के लिए अंत तक लड़ेंगे।

चुनाव आयोग (EC) की भूमिका और प्रतिक्रिया

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत, भारत का चुनाव आयोग भारत में सभी चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार एक स्वायत्त निकाय है। इसकी भूमिका निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करना है।

EC का बयान: “अफसर ऐसी धमकियों पर ध्यान न दें।”

चुनाव आयोग की यह प्रतिक्रिया कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • संस्थागत अखंडता की रक्षा: यह बयान चुनाव आयोग की अपनी अखंडता और उसके अधिकारियों की निष्पक्षता को बनाए रखने का एक प्रयास है। यह किसी भी बाहरी दबाव के आगे न झुकने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • अधिकारियों का मनोबल: ऐसे आरोपों और सार्वजनिक बयानों से चुनाव प्रक्रिया में लगे अधिकारियों का मनोबल गिर सकता है। EC का यह बयान उन्हें आश्वस्त करता है कि उनकी सेवा की रक्षा की जाएगी और वे बिना किसी डर के अपना काम कर सकते हैं।
  • जनता को संदेश: यह जनता को यह भी आश्वस्त करने का एक प्रयास है कि चुनाव प्रक्रिया एक मजबूत संस्था द्वारा संचालित होती है जो बाहरी दबावों से अप्रभावित रहती है।
  • कानूनी और नियामक ढांचा: EC इस आधार पर प्रतिक्रिया दे रहा है कि यदि कोई वास्तविक गड़बड़ी पाई जाती है, तो उसके लिए स्थापित कानूनी और नियामक प्रक्रियाएं हैं। सार्वजनिक मंचों पर धमकी देना या आरोप लगाना इन प्रक्रियाओं का स्थान नहीं ले सकता।

EC के सामने चुनौतियाँ:

  • विश्वास बहाली: जब आरोप लगते हैं, तो EC के लिए जनता का विश्वास बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। केवल बयान देना पर्याप्त नहीं है, बल्कि पारदर्शी और निष्पक्ष कार्रवाई के माध्यम से विश्वास फिर से जीतना पड़ता है।
  • राजनीतिक दबाव: विभिन्न राजनीतिक दलों से आने वाले दबाव का प्रबंधन करना EC के लिए हमेशा एक संवेदनशील कार्य रहा है।
  • प्रशासनिक निष्पक्षता: यह सुनिश्चित करना कि चुनाव प्रक्रिया में शामिल प्रत्येक अधिकारी निष्पक्ष रहे, एक बहुत बड़ी प्रशासनिक चुनौती है, खासकर जब लाखों लोग इसमें शामिल हों।
  • प्रौद्योगिकी पर निर्भरता: EVMs और वीवीपीएटी (VVPAT) जैसी प्रौद्योगिकियों की विश्वसनीयता पर उठने वाले सवालों का जवाब देना भी EC के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।

लोकतंत्र और चुनावी अखंडता: एक सहजीवी संबंध

किसी भी जीवंत लोकतंत्र की सफलता उसकी चुनावी प्रक्रिया की अखंडता पर बहुत अधिक निर्भर करती है। यदि नागरिक यह विश्वास नहीं करते कि उनके वोट की गिनती निष्पक्ष रूप से होगी, तो वे मतदान प्रक्रिया में भाग लेने के लिए हतोत्साहित हो सकते हैं।

लोकतंत्र की नींव:

  • जनता का प्रतिनिधित्व: चुनाव जनता को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अवसर देते हैं। यदि प्रक्रिया पक्षपाती है, तो चुने गए प्रतिनिधि वास्तव में जनता की इच्छा का प्रतिनिधित्व नहीं करते।
  • शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण: चुनाव शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण सुनिश्चित करते हैं। यदि चुनावों पर संदेह किया जाता है, तो यह अस्थिरता को जन्म दे सकता है।
  • जवाबदेही: नागरिक अपने प्रतिनिधियों को केवल तभी जवाबदेह ठहरा सकते हैं जब चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हों।
  • कानून का शासन: चुनावी निष्पक्षता कानून के शासन का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

चुनावों में धांधली के आरोप लोकतंत्र को कैसे प्रभावित कर सकते हैं:

  • मतदाता की उदासीनता: यदि मतदाता यह मानने लगते हैं कि उनके वोट मायने नहीं रखते, तो वे मतदान से दूर रह सकते हैं, जिससे चुनावी भागीदारी कम हो जाती है।
  • अविश्वास का माहौल: यह सरकार, संस्थाओं और चुनावी प्रणाली में व्यापक अविश्वास पैदा कर सकता है।
  • राजनीतिक अस्थिरता: यदि चुनावी परिणाम विवादास्पद हो जाते हैं, तो इससे विरोध प्रदर्शन, अशांति और राजनीतिक अस्थिरता हो सकती है।
  • लोकतांत्रिक संस्थानों का क्षरण: लगातार आरोपों से चुनाव आयोग जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं की वैधता पर सवाल उठ सकते हैं, जिससे उनका प्रभाव कम हो जाता है।

EVMs और चुनावी प्रक्रिया: चुनौतियाँ और सुधार

भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) के उपयोग ने चुनावी प्रक्रिया में क्रांति ला दी है, जिससे सटीकता और गति बढ़ी है। हालांकि, हाल के वर्षों में EVMs की अखंडता पर भी सवाल उठे हैं, खासकर कुछ राजनीतिक दलों द्वारा।

EVMs की कार्यप्रणाली:

EVMs में दो मुख्य भाग होते हैं: एक नियंत्रण इकाई (Control Unit) और एक मतदान इकाई (Ballot Unit)। मतदाता मतपत्र इकाई के माध्यम से अपना वोट डालता है, और यह वोट नियंत्रण इकाई में दर्ज हो जाता है। प्रत्येक EVM को एक अद्वितीय पहचान संख्या के साथ एक विशिष्ट मतदान केंद्र के लिए टैग किया जाता है।

EVMs पर उठाए गए मुख्य आरोप:

  • मतों में हेरफेर: सबसे आम आरोप यह है कि EVMs को हैक या टैम्पर किया जा सकता है ताकि मतों को एक विशेष उम्मीदवार की ओर मोड़ा जा सके।
  • असंगति: कुछ मामलों में, EVM के वोटों की गिनती और वीवीपैट (Voter Verifiable Paper Audit Trail) पर्चियों की गिनती के बीच विसंगतियों की शिकायतें आई हैं।
  • ईसी की पारदर्शिता: कुछ दल EVM की सुरक्षा, निर्माण और वितरण प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता की मांग करते हैं।

EC और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए कदम:

चुनाव आयोग ने EVM की सुरक्षा के लिए कई उपाय किए हैं, जैसे कि EVM को पहली बार उपयोग करने से पहले सील करना, मतदान से पहले मॉक पोल (mock poll) आयोजित करना, और वीवीपैट (VVPAT) प्रणाली को एकीकृत करना। वीवीपैट मतदाताओं को यह सत्यापित करने की अनुमति देता है कि उनका वोट सही उम्मीदवार को गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी EVM की विश्वसनीयता पर उठाए गए सवालों का संज्ञान लिया है और चुनाव आयोग को वीवीपैट पर्चियों की गिनती के प्रतिशत में वृद्धि करने जैसे निर्देश दिए हैं, ताकि चुनावी प्रक्रिया में और अधिक विश्वास पैदा हो सके।

आगे की राह:

  • वीवीपैट का पूर्ण मिलान: सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट पर्चियों का पूरी तरह से मिलान (random verification) करने से पारदर्शिता और विश्वास में काफी वृद्धि हो सकती है।
  • तकनीकी विशेषज्ञता: चुनावी प्रक्रियाओं में अधिक से अधिक तकनीकी विशेषज्ञों और निष्पक्ष ऑडिट फर्मों को शामिल किया जाना चाहिए।
  • सार्वजनिक जागरूकता: EVM की सुरक्षा और कार्यप्रणाली के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ानी चाहिए।
  • कानूनी ढांचे को मजबूत करना: चुनावी धांधली के आरोपों से निपटने के लिए कानूनी ढांचे को और मजबूत किया जाना चाहिए, जिसमें दोषी पाए जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान हो।

कानूनी और प्रक्रियात्मक पहलू

भारतीय चुनावी प्रणाली एक मजबूत कानूनी और प्रक्रियात्मक ढांचे पर आधारित है, जो निष्पक्षता सुनिश्चित करने का प्रयास करती है।

चुनाव संबंधी कानून:

  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (The Representation of the People Act, 1951): यह अधिनियम चुनावों के संचालन, उम्मीदवारों की योग्यता, चुनावी अपराधों और विवादों के निपटान से संबंधित है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC): चुनावी अपराधों, जैसे रिश्वतखोरी, धमकी, और धोखाधड़ी से संबंधित प्रावधान IPC में भी मौजूद हैं।

चुनाव अधिकारियों की जवाबदेही:

चुनाव आयोग के अधिकारी, चाहे वे किसी भी स्तर पर हों, अपनी निष्पक्षता और ईमानदारी के लिए जवाबदेह होते हैं। यदि वे किसी भी प्रकार की धांधली या पक्षपात में लिप्त पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें सेवा से बर्खास्तगी तक शामिल हो सकती है।

आरोपों का निवारण:

जब चुनावों में धांधली के आरोप लगाए जाते हैं, तो EC के पास इन आरोपों की जांच करने और तथ्यों का पता लगाने के लिए प्रक्रियाएं होती हैं। इसमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

  • शिकायत निवारण तंत्र: EC के पास सार्वजनिक और राजनीतिक दलों से प्राप्त शिकायतों को सुनने और उनका निवारण करने के लिए एक प्रणाली है।
  • जांच: यदि आरोप गंभीर होते हैं, तो EC द्वारा जांच की जा सकती है।
  • पुनर्मतदान: कुछ परिस्थितियों में, यदि यह पाया जाता है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से नहीं हुए थे, तो EC पुनर्मतदान का आदेश भी दे सकता है।
  • न्यायिक समीक्षा: चुनावी प्रक्रिया के दौरान या बाद में उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद को अदालतों द्वारा भी चुनौती दी जा सकती है।

“सेवानिवृत्ति के बाद भी कार्रवाई” का कानूनी आधार:

यदि चुनाव अधिकारियों द्वारा की गई कोई गलत या अवैध कार्रवाई सेवानिवृत्ति के बाद भी उजागर होती है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई के कई कानूनी आधार हो सकते हैं:

  • आपराधिक कार्यवाही: यदि कोई अपराध किया गया है, तो सेवानिवृत्ति के बाद भी भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक मामले दर्ज किए जा सकते हैं।
  • अनुशासनात्मक कार्रवाई (पूर्व पद पर): कुछ मामलों में, सेवा नियमों के अनुसार, सेवानिवृत्ति के बाद भी पूर्व सेवा के दौरान की गई गलतियों के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
  • नैतिक जिम्मेदारी: भले ही कानूनी कार्रवाई संभव न हो, नैतिक जिम्मेदारी का मुद्दा हमेशा बना रहता है।

निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आगे की राह

भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की निरंतरता अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए, भविष्य के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. चुनाव आयोग की स्वायत्तता और शक्तियाँ: EC की स्वायत्तता को और मजबूत किया जाना चाहिए, और उसे चुनावी प्रक्रिया में बाधा डालने या धांधली करने वालों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने के लिए और अधिक शक्तियाँ दी जानी चाहिए।
  2. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और निष्पक्षता लाई जानी चाहिए, ताकि नियुक्ति में राजनीतिक पक्षपात की गुंजाइश कम हो।
  3. प्रौद्योगिकी का बेहतर उपयोग: EVM और VVPAT के अलावा, चुनाव प्रक्रिया के अन्य पहलुओं, जैसे मतदाता सूची का अद्यतन, मतदान केंद्रों की निगरानी, ​​और वोटों की गिनती में भी नवीनतम तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए।
  4. जागरूकता अभियान: नागरिकों को उनके अधिकारों और चुनावी प्रक्रिया के महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
  5. प्रचार पर अंकुश: चुनाव के दौरान आचार संहिता का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए, जिसमें नेताओं द्वारा अमर्यादित बयानबाजी पर भी अंकुश लगाया जाए।
  6. मीडिया की भूमिका: मीडिया को भी निष्पक्षता और संतुलन बनाए रखते हुए चुनावी प्रक्रिया की रिपोर्टिंग करनी चाहिए, और निराधार आरोपों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।
  7. सिविल सोसाइटी की भागीदारी: नागरिक समाज संगठनों को चुनावी प्रक्रिया की निगरानी और सुधार में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

निष्कर्ष:

चुनावों में धांधली के आरोप लगाना एक गंभीर मामला है जो सीधे तौर पर हमारे लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को चुनौती देता है। जबकि राजनीतिक दलों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने का अधिकार है, यह महत्वपूर्ण है कि वे जिम्मेदार तरीके से करें और स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं का सम्मान करें। चुनाव आयोग का यह कहना कि अधिकारियों को ऐसे बयानों से विचलित नहीं होना चाहिए, संस्थागत गरिमा और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। भविष्य में, हमें न केवल चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए, बल्कि जनता के मन में उस निष्पक्षता के प्रति विश्वास को भी बहाल करने के लिए मिलकर काम करना होगा। यह एक साझा जिम्मेदारी है – सरकार, चुनाव आयोग, राजनीतिक दल और सबसे महत्वपूर्ण, हम सभी नागरिक।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग को भारत में सभी चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है?

    (a) अनुच्छेद 320

    (b) अनुच्छेद 324

    (c) अनुच्छेद 326

    (d) अनुच्छेद 356

    उत्तर: (b) अनुच्छेद 324

    व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारत के चुनाव आयोग को चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है।
  2. प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है?

    1. भारत का चुनाव आयोग

    2. सर्वोच्च न्यायालय

    3. संसद

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    (a) केवल 1

    (b) 1 और 2

    (c) 1 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b) 1 और 2

    व्याख्या: चुनाव आयोग मुख्य रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय चुनावी प्रक्रियाओं की समीक्षा कर सकता है और संसद चुनावी कानूनों को अधिनियमित करती है।
  3. प्रश्न 3: भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. EVM का उपयोग पहली बार 1982 में केरल विधानसभा चुनावों में किया गया था।

    2. EVM में दो मुख्य भाग होते हैं: नियंत्रण इकाई और मतदान इकाई।

    3. वीवीपैट (VVPAT) मतदाताओं को यह सत्यापित करने की अनुमति देता है कि उनका वोट सही उम्मीदवार को गया है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?

    (a) केवल 1

    (b) 1 और 2

    (c) 2 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (d) 1, 2 और 3

    व्याख्या: तीनों कथन EVM और VVPAT के संबंध में सही हैं।
  4. प्रश्न 4: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    (a) भारतीय दंड संहिता में संशोधन करना।

    (b) चुनावों का संचालन, उम्मीदवारों की योग्यता और चुनावी अपराधों से संबंधित प्रावधान निर्धारित करना।

    (c) संसद और राज्य विधानमंडलों की संरचना को परिभाषित करना।

    (d) चुनाव आयोग की शक्तियों का विस्तार करना।

    उत्तर: (b) चुनावों का संचालन, उम्मीदवारों की योग्यता और चुनावी अपराधों से संबंधित प्रावधान निर्धारित करना।

    व्याख्या: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 भारतीय चुनावी प्रणाली का एक मूलभूत कानून है।
  5. प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सा कथन भारतीय चुनाव प्रणाली में विश्वास बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है?

    1. चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता।

    2. चुनाव अधिकारियों की निष्पक्षता।

    3. राजनीतिक दलों द्वारा आचार संहिता का पालन।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    (a) केवल 1

    (b) 1 और 2

    (c) 1, 2 और 3

    (d) केवल 3

    उत्तर: (c) 1, 2 और 3

    व्याख्या: तीनों ही कारक भारतीय चुनावी प्रणाली में विश्वास के लिए आवश्यक हैं।
  6. प्रश्न 6: चुनाव आयोग द्वारा ‘डेथ वार्निंग’ (death warning) या ‘धमकी’ के रूप में माने जाने वाले बयान पर उसकी प्रतिक्रिया का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    (a) आरोपों की सच्चाई की स्वीकारोक्ति।

    (b) अधिकारियों के मनोबल को बनाए रखना और संस्थागत अखंडता की रक्षा करना।

    (c) राजनीतिक विवाद में पक्ष लेना।

    (d) न्यायिक जांच की मांग करना।

    उत्तर: (b) अधिकारियों के मनोबल को बनाए रखना और संस्थागत अखंडता की रक्षा करना।

    व्याख्या: EC का बयान अपनी संस्था की रक्षा और कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने का प्रयास है।
  7. प्रश्न 7: भारतीय लोकतंत्र में चुनावी अखंडता को सबसे अधिक किससे खतरा हो सकता है?

    (a) मतदाताओं द्वारा वीवीपैट का उपयोग।

    (b) सार्वजनिक मंचों पर चुनावों में धांधली के निराधार आरोप।

    (c) चुनाव अधिकारियों द्वारा मॉक पोल आयोजित करना।

    (d) EVM की नई तकनीक का विकास।

    उत्तर: (b) सार्वजनिक मंचों पर चुनावों में धांधली के निराधार आरोप।

    व्याख्या: निराधार आरोप जनता के विश्वास को कम करते हैं, जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
  8. प्रश्न 8: यदि कोई चुनाव अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद भी अपने कार्यकाल के दौरान किए गए किसी अपराध के लिए दोषी पाया जाता है, तो निम्नलिखित में से किस प्रकार की कार्रवाई संभव है?

    1. आपराधिक मुकदमा।

    2. पूर्व सेवा के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई।

    3. सार्वजनिक निंदा।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    (a) केवल 1

    (b) 1 और 2

    (c) 1 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b) 1 और 2

    व्याख्या: आपराधिक मुकदमा और कुछ प्रकार की अनुशासनात्मक कार्रवाई संभव है, हालांकि सार्वजनिक निंदा कानूनी कार्रवाई का हिस्सा नहीं है।
  9. प्रश्न 9: भारत में चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा उपाय सबसे प्रभावी होगा?

    (a) EVM मशीनों को पूरी तरह से हटाना।

    (b) वीवीपैट पर्चियों के यादृच्छिक (random) मिलान में वृद्धि करना।

    (c) राजनीतिक दलों पर प्रचार खर्च की सीमा बढ़ाना।

    (d) चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र को सीमित करना।

    उत्तर: (b) वीवीपैट पर्चियों के यादृच्छिक (random) मिलान में वृद्धि करना।

    व्याख्या: वीवीपैट मिलान से EVM की कार्यप्रणाली की प्रत्यक्ष पुष्टि होती है।
  10. प्रश्न 10: “चुनाव अधिकारी वोटों की चोरी कर रहे हैं” जैसे आरोप का सबसे सीधा प्रभाव क्या हो सकता है?

    (a) मतदान प्रतिशत में वृद्धि।

    (b) चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा में वृद्धि।

    (c) नागरिकों के बीच चुनावी प्रक्रिया के प्रति अविश्वास।

    (d) सभी राजनीतिक दलों की जीत।

    उत्तर: (c) नागरिकों के बीच चुनावी प्रक्रिया के प्रति अविश्वास।

    व्याख्या: ऐसे आरोप सीधे तौर पर जनता के विश्वास को कम करते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने में चुनाव आयोग की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। चुनावी प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखने के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों पर चर्चा करें, विशेष रूप से जब चुनावों में धांधली के आरोप लगाए जाते हैं। (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न 2: “लोकतंत्र की अखंडता चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता में निहित है।” इस कथन के आलोक में, भारत में EVM और VVPAT की विश्वसनीयता पर उठे सवालों और उन्हें संबोधित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदमों का विश्लेषण करें। (250 शब्द, 15 अंक)
  3. प्रश्न 3: राजनीतिक नेताओं द्वारा सार्वजनिक मंचों पर चुनाव अधिकारियों या चुनावी प्रक्रिया के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों का विश्लेषण करें। ऐसे आरोप भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं और इन पर नियंत्रण के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? (250 शब्द, 15 अंक)
  4. प्रश्न 4: भारत में चुनावी सुधारों के संदर्भ में, चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता को बढ़ाने के लिए नागरिक समाज की भूमिका की विवेचना करें। (150 शब्द, 10 अंक)

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