UK की रिपोर्ट पर भारत का तीखा जवाब: आरोपों का खंडन, दुर्भावनापूर्ण साजिश का पर्दाफाश!
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, यूनाइटेड किंगडम (UK) की एक संसदीय समिति की रिपोर्ट ने भारत के आंतरिक मामलों, विशेषकर खालिस्तान समर्थक तत्वों से संबंधित मुद्दों पर कुछ गंभीर आरोप लगाए हैं। इन आरोपों के जवाब में, भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने एक जोरदार और स्पष्ट प्रतिक्रिया दी है, जिसमें रिपोर्ट को “बेबुनियाद” और “दुर्भावनापूर्ण” करार दिया गया है। यह घटनाक्रम भारत-यूके संबंधों, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति और अलगाववादी आंदोलनों के जटिल जाल को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। यह लेख इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं, भारत की प्रतिक्रिया, इसके निहितार्थों और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसके महत्व का गहन विश्लेषण करेगा।
UK संसदीय रिपोर्ट: क्या हैं आरोप?
ब्रिटिश संसद की एक विशेष समिति द्वारा जारी की गई यह रिपोर्ट, भारत में चल रहे कुछ संवेदनशील मुद्दों पर केंद्रित है। हालांकि रिपोर्ट के सभी विशिष्ट बिंदु सार्वजनिक डोमेन में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हो सकते हैं, लेकिन इसके प्रमुख आरोप मोटे तौर पर निम्नलिखित क्षेत्रों को छूते हैं:
- अलगाववादी आंदोलनों का समर्थन: रिपोर्ट में भारत में, विशेष रूप से पंजाब में, अलगाववादी आंदोलनों, जिनमें खालिस्तान की मांग भी शामिल है, को लेकर चिंताएं व्यक्त की गई हैं। यह आरोप लगाया गया है कि यूके में कुछ तत्व इन आंदोलनों का समर्थन करते हैं, जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए चिंता का विषय है।
- भारत का आंतरिक हस्तक्षेप: कुछ रिपोर्टों के अनुसार, समिति ने भारत के उन दावों पर भी सवाल उठाए हैं कि यूके में खालिस्तान समर्थक तत्व भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं। यह बिंदु विशेष रूप से विवादास्पद है क्योंकि भारत इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा मानता है।
- भारतीय प्रवासियों पर प्रभाव: रिपोर्ट में यूके में भारतीय प्रवासी समुदाय, विशेषकर सिख समुदाय के कुछ वर्गों पर इन आंदोलनों के कथित प्रभाव पर भी प्रकाश डाला गया है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि संसदीय रिपोर्टें अक्सर किसी देश की सरकार की आधिकारिक नीति नहीं होती हैं, बल्कि वे समितियों द्वारा स्वतंत्र रूप से तैयार किए गए विचार और सिफारिशें होती हैं। हालांकि, वे संबंधित देशों के साथ राजनयिक संबंधों पर निश्चित रूप से प्रभाव डाल सकती हैं।
भारत की प्रतिक्रिया: एक कड़ा संदेश
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। मंत्रालय ने न केवल आरोपों को सिरे से खारिज किया है, बल्कि उन्हें दुर्भावनापूर्ण इरादों से प्रेरित भी बताया है। MEA की प्रतिक्रिया के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- रिपोर्ट को खारिज करना: भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि रिपोर्ट में लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं और साक्ष्य पर आधारित नहीं हैं।
- दुर्भावनापूर्ण इरादे का आरोप: MEA ने रिपोर्ट के पीछे “दुर्भावनापूर्ण” इरादे का संकेत देते हुए कहा है कि यह भारत के खिलाफ एक एजेंडा चलाने का प्रयास है। यह आरोप अत्यंत गंभीर है और भारत-यूके संबंधों में तनाव का संकेत देता है।
- संप्रभुता का बचाव: भारत ने अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के अपने अधिकार पर जोर दिया है और किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करने का संकल्प दोहराया है।
- आंतरिक मामले: भारत ने स्पष्ट किया है कि ये मामले भारत के आंतरिक मामले हैं और किसी भी बाहरी व्याख्या या हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
- साक्ष्य का अभाव: मंत्रालय ने रिपोर्ट में प्रस्तुत तर्कों के पीछे साक्ष्य के अभाव की ओर भी इशारा किया है।
“भारत का विदेश मंत्रालय इस रिपोर्ट में लगाए गए निराधार और दुर्भावनापूर्ण आरोपों को सिरे से खारिज करता है। यह रिपोर्ट भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और देश की संप्रभुता को चुनौती देने का एक स्पष्ट प्रयास है।” – भारत के विदेश मंत्रालय का एक काल्पनिक उद्धरण।
यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है? (Why is it so Important?): भारत-यूके संबंध और भू-राजनीति
इस घटनाक्रम का महत्व केवल दो देशों के बीच एक राजनयिक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके व्यापक भू-राजनीतिक और आंतरिक सुरक्षा निहितार्थ हैं:
- भारत-यूके संबंध: भारत और यूके के बीच ऐतिहासिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध मजबूत हैं। ऐसे आरोप और उन पर भारत की तीखी प्रतिक्रिया दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग को कमजोर कर सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि ऐसे मुद्दे संवेदनशील कूटनीति के माध्यम से हल किए जाएं।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर छवि: संसदीय रिपोर्टें, भले ही गैर-सरकारी हों, एक देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित कर सकती हैं। भारत को अपनी स्थिति को प्रभावी ढंग से स्पष्ट करना होगा ताकि गलत धारणाएं न बनें।
- अलगाववाद की समस्या: भारत लंबे समय से विदेशी धरती पर अलगाववादी आंदोलनों के समर्थन से जूझ रहा है। खालिस्तान समर्थक आंदोलन एक संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा है। ऐसी रिपोर्टें इन आंदोलनों को बल दे सकती हैं और भारत को अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।
- समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग: भारत उन देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने का प्रयास कर रहा है जो कानून के शासन और संप्रभुता का सम्मान करते हैं। ऐसे आरोप इस प्रयास को जटिल बना सकते हैं।
जटिलताओं को समझना: क्यों UK की रिपोर्ट भारत के लिए चिंता का विषय है?
आइए, इस मामले की जटिलताओं को और गहराई से समझें। यह केवल एक रिपोर्ट नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई परतें हैं:
1. खालिस्तान आंदोलन: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
खालिस्तान आंदोलन 1947 में भारत के विभाजन के बाद से ही एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा रहा है। यह आंदोलन एक स्वतंत्र सिख राष्ट्र की स्थापना की मांग करता है, जिसमें मुख्य रूप से पंजाब राज्य शामिल होगा।
- उत्पत्ति: आंदोलन की जड़ें 1970 और 1980 के दशक के राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल से जुड़ी हैं, जब पंजाब में उग्रवाद चरम पर था।
- वर्तमान स्थिति: हालांकि 1980 के दशक के अंत तक उग्रवाद को काफी हद तक दबा दिया गया था, लेकिन विदेशों में, विशेषकर कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों में, अभी भी खालिस्तान समर्थक समूह सक्रिय हैं।
- उद्देश्य: ये समूह अक्सर भारत सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं और भारतीय प्रवासियों के बीच समर्थन जुटाने का प्रयास करते हैं।
2. संसदीय रिपोर्टों की प्रकृति: एक राजनयिक बारीकी
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ब्रिटेन की संसदीय समितियां स्वतंत्र निकाय होती हैं। वे किसी विशेष मुद्दे पर गहन शोध करती हैं और अपनी सरकार को सिफारिशें प्रस्तुत करती हैं।
- सरकारी नीति नहीं: एक संसदीय रिपोर्ट का मतलब यह नहीं है कि वह ब्रिटिश सरकार की आधिकारिक नीति है। हालांकि, वे सरकार को प्रभावित कर सकती हैं और निश्चित रूप से कूटनीतिक आदान-प्रदान का विषय बनती हैं।
- दबाव की रणनीति?: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी रिपोर्टें एक देश पर दबाव बनाने या अपनी घरेलू राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने का एक तरीका हो सकती हैं।
3. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएं
भारत के लिए, विदेशों में संचालित होने वाले अलगाववादी समूह गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएं पैदा करते हैं।
- धन जुटाना: ये समूह विदेशी धरती से धन जुटाते हैं, जिसका उपयोग प्रचार, गतिविधियों और कभी-कभी भारत में अशांति फैलाने के लिए किया जा सकता है।
- भर्ती: वे युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और भर्ती करने का भी प्रयास करते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय संप्रभुता का उल्लंघन: जब कोई देश दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले समूहों को पनाह देता है या उनका समर्थन करता है, तो यह अंतर्राष्ट्रीय संप्रभुता के सिद्धांतों का उल्लंघन माना जाता है।
तुलनात्मक विश्लेषण: भारत का दृष्टिकोण बनाम UK की रिपोर्ट का दृष्टिकोण
आइए, दोनों पक्षों के दृष्टिकोणों की तुलना करें:
भारत का दृष्टिकोण:
- अलगाववादी आंदोलनों को भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा मानता है।
- ऐसे आंदोलनों को विदेशों से मिलने वाले समर्थन को आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखता है।
- इस बात पर जोर देता है कि ऐसे मुद्दे राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित हैं और इन्हें सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
- यूके जैसे देशों से अपेक्षा करता है कि वे ऐसे समूहों को अपनी धरती पर सक्रिय होने से रोकें।
UK की रिपोर्ट का दृष्टिकोण (आरोपों के आधार पर):
- भारत के आंतरिक मामलों, विशेष रूप से अलगाववादी प्रवृत्तियों पर चिंता व्यक्त करता है।
- यह भी सवाल उठा सकता है कि क्या भारत इन मुद्दों को “दुर्भावनापूर्ण” इरादे से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठा रहा है।
- कभी-कभी, ऐसे आरोप उन देशों में नागरिक स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संभावित सीमाओं की ओर इशारा कर सकते हैं, जहां ये आंदोलन सक्रिय हैं।
यह स्पष्ट है कि दोनों के दृष्टिकोणों में एक मौलिक अंतर है। भारत इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता का मामला मानता है, जबकि रिपोर्ट (यदि आरोप सत्य हैं) इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या राजनीतिक असंतोष के रूप में देखने का प्रयास कर सकती है, जो कि भारत की स्थिति से बिल्कुल अलग है।
चुनौतियाँ और आगे की राह
इस स्थिति में भारत के सामने कई चुनौतियाँ हैं:
- कूटनीतिक संतुलन: भारत को यूके के साथ अपने राजनयिक संबंधों को बनाए रखते हुए अपनी चिंताओं को मजबूती से उठाना होगा।
- सार्वजनिक कूटनीति: भारत को अपनी स्थिति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से उन देशों में जहां ये आंदोलन सक्रिय हैं, प्रभावी ढंग से संप्रेषित करने की आवश्यकता है।
- सबूत-आधारित तर्क: भारत को हमेशा अपने आरोपों के समर्थन में ठोस सबूत प्रस्तुत करने होंगे ताकि उसकी बातों को विश्वसनीयता मिले।
- घरेलू एकता: भारत को आंतरिक रूप से भी इन मुद्दों पर एकता बनाए रखनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बाहरी तत्व देश को विभाजित न कर सके।
आगे की राह:
- उच्च-स्तरीय संवाद: भारत को यूके सरकार के साथ उच्च-स्तरीय संवाद के माध्यम से इस मामले को उठाना चाहिए और अपनी चिंताओं को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए।
- साक्ष्य साझा करना: यदि भारत के पास यूके में अलगाववादी गतिविधियों के बारे में ठोस सबूत हैं, तो उन्हें यूके के साथ साझा किया जाना चाहिए।
- पारस्परिक सहयोग: दोनों देशों को आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए।
- प्रचार का मुकाबला: भारत को इन अलगाववादी समूहों द्वारा फैलाए जा रहे दुष्प्रचार और गलत सूचनाओं का मुकाबला करने के लिए प्रभावी संचार रणनीतियों का उपयोग करना चाहिए।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
यह घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR) और विदेश नीति के लिए प्रासंगिक है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा और समसामयिक मुद्दों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
- प्रारंभिक परीक्षा (Prelims): समसामयिक घटनाओं, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (जैसे ब्रिटिश संसद), राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे, और भारत के पड़ोसी देशों/प्रमुख शक्तियों के साथ संबंध।
- मुख्य परीक्षा (Mains):
- GS-II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध: भारत के द्विपक्षीय संबंध (भारत-यूके), भू-राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा, और भारत की विदेश नीति।
- GS-III: आंतरिक सुरक्षा: राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती देने वाले कारक, सीमा पार आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद।
- GS-III: अर्थव्यवस्था: (प्रत्यक्ष रूप से नहीं, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक संबंधों पर प्रभाव)।
निष्कर्ष
यूके संसदीय रिपोर्ट और उस पर भारत की तीखी प्रतिक्रिया अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की जटिलताओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व का एक ज्वलंत उदाहरण है। भारत का रुख स्पष्ट है: वह अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और किसी भी ऐसे हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा जो देश की एकता को कमजोर करने का प्रयास करता हो। यह मामला भारत-यूके संबंधों के भविष्य पर निश्चित रूप से प्रकाश डालेगा और यह भी तय करेगा कि ऐसे मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कैसे निपटा जाए। UPSC उम्मीदवारों को इस घटनाक्रम को राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के व्यापक संदर्भ में समझना चाहिए।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. प्रश्न: हाल ही में किस देश की संसदीय समिति की रिपोर्ट ने भारत के आंतरिक मामलों, विशेषकर खालिस्तान समर्थक तत्वों से संबंधित मुद्दों पर आरोप लगाए हैं?
(a) कनाडा
(b) ऑस्ट्रेलिया
(c) यूनाइटेड किंगडम (UK)
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)
उत्तर: (c) यूनाइटेड किंगडम (UK)
व्याख्या: रिपोर्ट यूनाइटेड किंगडम (UK) की संसदीय समिति द्वारा जारी की गई थी।
2. प्रश्न: भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने UK संसदीय रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों को किस रूप में वर्णित किया है?
(a) तथ्यात्मक रूप से सही लेकिन अतिरंजित
(b) बेबुनियाद और दुर्भावनापूर्ण
(c) आंशिक रूप से सही और विचारणीय
(d) कूटनीतिक रूप से संवेदनशील
उत्तर: (b) बेबुनियाद और दुर्भावनापूर्ण
व्याख्या: MEA ने रिपोर्ट को “बेबुनियाद” और “दुर्भावनापूर्ण” करार दिया है।
3. प्रश्न: खालिस्तान की मांग किस भारतीय राज्य से मुख्य रूप से जुड़ी हुई है?
(a) हरियाणा
(b) पंजाब
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) राजस्थान
उत्तर: (b) पंजाब
व्याख्या: खालिस्तान की मांग मुख्य रूप से पंजाब राज्य के संबंध में रही है।
4. प्रश्न: विदेश मंत्रालय (MEA) के अनुसार, UK संसदीय रिपोर्ट का उद्देश्य क्या हो सकता है?
(a) भारत की आर्थिक नीतियों की प्रशंसा करना
(b) भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना
(c) द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना
(d) सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुगम बनाना
उत्तर: (b) भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना
व्याख्या: MEA ने रिपोर्ट को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का प्रयास बताया है।
5. प्रश्न: संसदीय रिपोर्टें, आमतौर पर:
(a) सीधे तौर पर उस देश की सरकार की आधिकारिक नीति होती हैं।
(b) उस देश की सरकार की आधिकारिक नीति नहीं होतीं, बल्कि समितियां विचार प्रस्तुत करती हैं।
(c) केवल विरोधी दलों द्वारा जारी की जाती हैं।
(d) अंतर्राष्ट्रीय संधियों का एक हिस्सा होती हैं।
उत्तर: (b) उस देश की सरकार की आधिकारिक नीति नहीं होतीं, बल्कि समितियां विचार प्रस्तुत करती हैं।
व्याख्या: संसदीय रिपोर्टें अक्सर स्वतंत्र समितियों द्वारा तैयार की जाती हैं और सरकार की नीति को सीधे प्रतिबिंबित नहीं करतीं, लेकिन उसे प्रभावित कर सकती हैं।
6. प्रश्न: भारत द्वारा UK संसदीय रिपोर्ट को “दुर्भावनापूर्ण” कहने का क्या निहितार्थ हो सकता है?
(a) भारत रिपोर्ट की सामग्री से सहमत है।
(b) भारत रिपोर्ट के पीछे भारत विरोधी एजेंडा देखता है।
(c) भारत रिपोर्ट को नजरअंदाज कर रहा है।
(d) भारत रिपोर्ट को केवल एक मामूली चिंता मानता है।
उत्तर: (b) भारत रिपोर्ट के पीछे भारत विरोधी एजेंडा देखता है।
व्याख्या: “दुर्भावनापूर्ण” शब्द का प्रयोग भारत के इरादे पर सवाल उठाने और एक नकारात्मक एजेंडे का संकेत देने के लिए किया गया है।
7. प्रश्न: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से, विदेशों में सक्रिय अलगाववादी समूहों के बारे में मुख्य चिंता क्या है?
(a) वे भारत की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देते हैं।
(b) वे विदेशी मुद्रा को आकर्षित करते हैं।
(c) वे धन जुटा सकते हैं, भर्ती कर सकते हैं और भारत में अशांति फैलाने का प्रयास कर सकते हैं।
(d) वे अंतरराष्ट्रीय शांति बनाए रखने में मदद करते हैं।
उत्तर: (c) वे धन जुटा सकते हैं, भर्ती कर सकते हैं और भारत में अशांति फैलाने का प्रयास कर सकते हैं।
व्याख्या: ऐसे समूह भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं।
8. प्रश्न: भारत-यूके संबंधों के संदर्भ में, ऐसी रिपोर्टें क्या कर सकती हैं?
(a) संबंधों को मजबूत कर सकती हैं।
(b) संबंधों को स्थिर रख सकती हैं।
(c) संबंधों में तनाव पैदा कर सकती हैं।
(d) संबंधों को अप्रभावित छोड़ सकती हैं।
उत्तर: (c) संबंधों में तनाव पैदा कर सकती हैं।
व्याख्या: आरोपों और तीखी प्रतिक्रिया से दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग प्रभावित हो सकता है।
9. प्रश्न: भारत का विदेश मंत्रालय (MEA) किस अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत पर जोर देता है जब वह आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप पर प्रतिक्रिया करता है?
(a) राज्यों की गैर-हस्तक्षेप की नीति
(b) राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता
(c) बहुपक्षीय कूटनीति
(d) सॉफ्ट पावर का उपयोग
उत्तर: (b) राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता
व्याख्या: भारत हमेशा अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के अधिकार पर जोर देता है।
10. प्रश्न: UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए, यह घटना किस GS पेपर के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक है?
(a) GS-I: इतिहास, भूगोल और समाज
(b) GS-II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध और शासन
(c) GS-III: अर्थव्यवस्था और पर्यावरण
(d) GS-IV: नैतिकता, अखंडता और योग्यता
उत्तर: (b) GS-II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध और शासन
व्याख्या: यह मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय संबंध (भारत-यूके संबंध, विदेश नीति) और शासन (राष्ट्रीय सुरक्षा) से संबंधित है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. प्रश्न: UK की संसदीय रिपोर्ट में भारत पर लगाए गए आरोपों और भारत की प्रतिक्रिया का विश्लेषण करें। इस मामले में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के निहितार्थों पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
2. प्रश्न: “विदेशों में अलगाववादी आंदोलनों को मिलने वाला समर्थन, मेजबान देश की संप्रभुता का उल्लंघन करता है और भारत जैसे देशों के लिए गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएं पैदा करता है।” इस कथन के आलोक में, भारत-यूके संबंधों के संदर्भ में हालिया घटनाक्रम का मूल्यांकन करें। (150 शब्द, 10 अंक)
3. प्रश्न: संसदीय रिपोर्टें, यद्यपि हमेशा सरकारी नीति का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं, फिर भी अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में कैसे भूमिका निभा सकती हैं? भारत के दृष्टिकोण से, UK की हालिया रिपोर्ट के आलोक में इस प्रश्न की व्याख्या करें। (150 शब्द, 10 अंक)
4. प्रश्न: भारत अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए किन कूटनीतिक और सुरक्षा उपायों को अपना सकता है, जब विदेशों में स्थित समूह देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का प्रयास करते हैं? (250 शब्द, 15 अंक)