भारत पर ब्रिटिश रिपोर्ट: भारत की ‘राष्ट्र-पार दमन’ की निंदा, क्या है पूरा मामला?
चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में, यूनाइटेड किंगडम (UK) द्वारा भारत के खिलाफ ‘राष्ट्र-पार दमन’ (Transnational Repression) के आरोपों वाली एक रिपोर्ट को भारतीय केंद्र सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है। सरकार ने इस रिपोर्ट को “संदिग्ध” (dubious) बताते हुए इसकी मंशा पर सवाल उठाए हैं। यह घटना भारत की विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करती है, जो UPSC परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब एक ब्रिटिश थिंक टैंक, जैकेट फाउंडेशन (Jagged Foundation) ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत सरकार पर विदेशों में अपने आलोचकों या असंतुष्टों का दमन करने का आरोप लगाया गया। इस रिपोर्ट ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को प्रभावित करने की कोशिश की और इस पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया ने कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी।
यह ब्लॉग पोस्ट इस मामले की गहराई से पड़ताल करेगा, जिसमें ‘राष्ट्र-पार दमन’ की अवधारणा, ब्रिटिश रिपोर्ट के मुख्य बिंदु, भारत सरकार की प्रतिक्रिया, इसके निहितार्थ, अंतर्राष्ट्रीय कानून, और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से संबंधित विभिन्न आयामों का विश्लेषण शामिल होगा।
राष्ट्र-पार दमन (Transnational Repression) क्या है?
‘राष्ट्र-पार दमन’ एक जटिल और चिंताजनक अंतर्राष्ट्रीय घटना है। यह किसी राष्ट्र की सरकार या उसके एजेंटों द्वारा अपने देश की सीमाओं के बाहर, विदेशी धरती पर, उन व्यक्तियों या समूहों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाइयों को संदर्भित करता है, जो सरकार के विचारों से असहमत हैं, उसकी आलोचना करते हैं, या उसके खिलाफ मुखर हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं, जैसे:
- साइबर-हमले और ऑनलाइन उत्पीड़न: सोशल मीडिया या अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से लक्षित व्यक्तियों को धमकी देना, परेशान करना या उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना।
- निगरानी और जासूसी: विदेशी भूमि पर व्यक्तियों की गतिविधियों पर गुप्त रूप से नज़र रखना।
- धमकी और भयभीत करना: व्यक्तियों को चुप कराने या उन्हें देश लौटने के लिए मजबूर करने हेतु धमकियाँ देना।
- अपहरण और जबरन वापसी: व्यक्तियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध उनके गृह देशों में जबरन वापस ले जाना।
- कानूनी कार्रवाई और प्रत्यर्पण का दुरुपयोग: विदेशी देशों में उन व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी या प्रत्यर्पण प्रक्रियाओं का दुरुपयोग करना जिन्हें सरकार अपने लिए खतरा मानती है।
- हत्या या शारीरिक नुकसान पहुंचाना: चरम मामलों में, लक्षित व्यक्तियों को शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाना या उनकी हत्या करना।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि राष्ट्र-पार दमन किसी विशेष विचारधारा या शासन प्रणाली तक सीमित नहीं है। विभिन्न देश, विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों के साथ, अतीत या वर्तमान में ऐसी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना या किसी विशेष एजेंडे को आगे बढ़ाना हो सकता है, लेकिन यह अक्सर मानवाधिकारों और संप्रभुता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
सरल शब्दों में: कल्पना कीजिए कि एक छात्र को स्कूल में किसी शिक्षक या सहपाठी से डर लगता है और वह स्कूल के बाहर भी उस डर से बचा नहीं रह पाता। राष्ट्र-पार दमन भी कुछ ऐसा ही है, जहाँ सरकारें अपने देश के बाहर भी अपने विरोधियों को चैन से नहीं रहने देतीं।
ब्रिटिश रिपोर्ट के मुख्य बिंदु और भारत का खंडन
जैकेट फाउंडेशन की रिपोर्ट, जिसे भारतीय सरकार ने “संदिग्ध” बताया है, में भारत पर विदेशी भूमि पर अपने असंतुष्टों को निशाना बनाने का आरोप लगाया गया था। रिपोर्ट के मुख्य बिंदु संभवतः इन चिंताओं पर केंद्रित थे:
- लक्ष्यीकरण: रिपोर्ट में उन विशिष्ट व्यक्तियों या समूहों का उल्लेख किया गया होगा जिन्हें कथित तौर पर निशाना बनाया गया था।
- साक्ष्य: रिपोर्ट में इन आरोपों का समर्थन करने के लिए कुछ प्रकार के साक्ष्य (जैसे प्रत्यक्षदर्शी खाते, डिजिटल डेटा, या अन्य जाँचें) प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया होगा।
- पद्धतियाँ: रिपोर्ट ने उन तरीकों का वर्णन किया होगा जिनका उपयोग कथित तौर पर दमन के लिए किया गया था, जैसे साइबर-हमले, निगरानी, या धमकी।
इसके जवाब में, भारत सरकार ने बेहद तीखी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने रिपोर्ट को **”निराधार, भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण”** करार दिया। भारत सरकार का कहना है कि:
- रिपोर्ट की मंशा पर सवाल: भारत का मानना है कि रिपोर्ट को भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने और “भारत-विरोधी” (anti-India) एजेंडे को बढ़ावा देने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।
- साक्ष्य का अभाव: सरकार ने रिपोर्ट में प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों की विश्वसनीयता और पर्याप्तता पर संदेह व्यक्त किया है।
- राजनीतिक पूर्वाग्रह: भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि ऐसी रिपोर्टें अक्सर राजनीतिक पूर्वाग्रहों से प्रेरित होती हैं और ये अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को बिगाड़ने का काम करती हैं।
- आतंकवाद और अलगाववाद का मुकाबला: भारत ने यह भी रेखांकित किया है कि देश अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और उन ताकतों का मुकाबला करेगा जो भारत की संप्रभुता और अखंडता को कमजोर करने का प्रयास करती हैं, लेकिन यह काम अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संप्रभुता के सिद्धांतों के दायरे में किया जाएगा।
यह एक कूटनीतिक जुबानी जंग है। एक तरफ UK की रिपोर्ट भारत पर गंभीर आरोप लगा रही है, वहीं दूसरी ओर भारत सरकार इन आरोपों को झूठा और भारत को बदनाम करने की साजिश बता रही है। इस तरह की बयानबाजी अक्सर दोनों देशों के बीच तनाव पैदा करती है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध और राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव
इस तरह की रिपोर्टें और उन पर प्रतिक्रियाएँ अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को कई तरह से प्रभावित करती हैं:
- विश्वास और सहयोग में कमी: जब एक देश दूसरे पर ऐसे आरोप लगाता है, तो इससे दोनों देशों के बीच विश्वास कम हो सकता है, जिससे सहयोग के रास्ते बंद हो सकते हैं।
- “भारत-विरोधी” भावना का उदय: इस तरह की रिपोर्टें उन तत्वों को बढ़ावा दे सकती हैं जो भारत के खिलाफ काम करना चाहते हैं, जिससे विदेशों में भारतीय समुदाय और हितों के लिए खतरा बढ़ सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बहस: यह मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मंचों और कूटनीतिक वार्ताओं में उठाया जा सकता है, जिससे भारत पर अतिरिक्त दबाव आ सकता है।
- सुरक्षा चिंताएँ: राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से, भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि विदेशों में अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करे और उन व्यक्तियों या संगठनों पर नज़र रखे जो भारत के खिलाफ गतिविधियों में लिप्त हैं। हालाँकि, यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि ऐसे कार्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के दायरे में हों।
- कूटनीतिक संतुलन: भारत को ऐसे मामलों में एक नाजुक संतुलन बनाना पड़ता है। उसे अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी होती है, लेकिन साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अपनी छवि और प्रतिष्ठा को भी बनाए रखना होता है।
अंतर्राष्ट्रीय कानून और राष्ट्र-पार दमन
राष्ट्र-पार दमन अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है। अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुख्य सिद्धांत जो यहाँ प्रासंगिक हैं, वे हैं:
- राष्ट्रीय संप्रभुता: प्रत्येक राष्ट्र को अपनी सीमाओं के भीतर संप्रभु अधिकार प्राप्त है, और कोई भी अन्य देश या उसकी एजेंसियां दूसरे देश की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं कर सकतीं।
- गैर-हस्तक्षेप का सिद्धांत: राज्यों को दूसरे राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
- मानवाधिकार: अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून व्यक्तियों को उत्पीड़न, मनमानी गिरफ्तारी और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन से बचाता है, भले ही वे अपने देश की सीमाओं के बाहर हों।
- कानूनी सहायता और प्रत्यर्पण: आपराधिक मामलों में सहयोग अक्सर द्विपक्षीय संधियों और प्रत्यर्पण समझौतों के माध्यम से होता है। इन प्रक्रियाओं का दुरुपयोग अंतर्राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था को कमजोर करता है।
जब कोई देश राष्ट्र-पार दमन में लिप्त होता है, तो वह इन सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकता है। उदाहरण के लिए, किसी अन्य देश में किसी व्यक्ति का अपहरण या उसकी हत्या करना उसकी संप्रभुता का घोर उल्लंघन है और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत एक गंभीर अपराध है।
समझने की बात: अंतर्राष्ट्रीय कानून ‘बाउंड्री’ की तरह काम करते हैं। राष्ट्र-पार दमन इन बाउंड्री को पार करने जैसा है, और ऐसा करना अक्सर नियमों का उल्लंघन होता है। भारत का यह कहना कि ऐसे आरोप “संदिग्ध” हैं, यह दर्शाता है कि वह इन आरोपों को अंतर्राष्ट्रीय कानून के नजरिए से भी देख रहा है।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
यह विषय UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, खासकर **अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR), राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security), शासन (Governance), और नैतिकता (Ethics)** जैसे पेपरों के लिए।
1. अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations – GS Paper II)
- भारत के विदेश संबंध: यह भारत के यूके के साथ संबंधों को प्रभावित करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून और संगठन: राष्ट्र-पार दमन से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और सिद्धांतों को समझना।
- वैश्विक शासन: राष्ट्र-पार दमन के मुद्दे पर वैश्विक प्रतिक्रिया और सहयोग की आवश्यकता।
- सूचना युद्ध और दुष्प्रचार: किस तरह रिपोर्टें या दुष्प्रचार किसी देश की छवि को प्रभावित कर सकते हैं।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security – GS Paper III)
- सीमा पार चुनौतियाँ: राष्ट्र-पार दमन को एक प्रकार की सीमा पार चुनौती के रूप में देखा जा सकता है।
- आंतरिक सुरक्षा: विदेशों में होने वाली कार्रवाइयों का भारत की आंतरिक सुरक्षा पर अप्रत्यक्ष प्रभाव।
- साइबर सुरक्षा: राष्ट्र-पार दमन में साइबर साधनों का बढ़ता उपयोग।
- खुफिया तंत्र: राष्ट्र-पार गतिविधियों का पता लगाने और उनका मुकाबला करने के लिए खुफिया एजेंसियों की भूमिका।
3. शासन (Governance – GS Paper II)
- सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप: सरकार की प्रतिक्रिया और नीतियां।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर देशों की जवाबदेही।
- नागरिक समाज की भूमिका: थिंक टैंक और NGOs की रिपोर्टों का प्रभाव।
4. नैतिकता (Ethics – GS Paper IV)
- सत्यनिष्ठा और ईमानदारी: रिपोर्टों की सत्यता का मूल्यांकन।
- जवाबदेही: सरकार की कार्रवाइयों की जवाबदेही।
- सार्वजनिक हित: राष्ट्रीय हित और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन।
- मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता: किसी भी कार्रवाई में मानवाधिकारों का सम्मान।
पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons of India’s Stance)
भारत सरकार के खंडन के पक्ष और विपक्ष दोनों हो सकते हैं:
पक्ष (Pros of India’s Stance):
- राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा: यह भारत की संप्रभुता और स्वतंत्रता की रक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- “भारत-विरोधी” एजेंडे का मुकाबला: यह उन ताकतों को एक स्पष्ट संदेश देता है जो भारत को बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं।
- आत्मविश्वास का प्रदर्शन: सरकार का खंडन भारत के बढ़ते आत्मविश्वास और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखने की क्षमता को दर्शाता है।
- सच्चाई की खोज: यह सरकार के रुख को दर्शाता है कि वे निराधार आरोपों को स्वीकार नहीं करेंगे और साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण का पालन करेंगे।
विपक्ष (Cons of India’s Stance):
- कूटनीतिक तनाव: तीखी प्रतिक्रिया से यूके के साथ संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं।
- संदिग्धता का आरोप: यदि रिपोर्ट में कुछ भी सत्यता होती, तो सरकार का खंडन उन वास्तविक चिंताओं को दबा सकता है।
- धारणा का प्रबंधन: कुछ देशों या अंतर्राष्ट्रीय समूहों द्वारा भारत की छवि को नकारात्मक रूप से देखा जा सकता है, भले ही आरोप निराधार हों।
- सबूत पेश करने की चुनौती: भारत को खुद को निर्दोष साबित करने के लिए या आरोपों का खंडन करने के लिए सबूत पेश करने पड़ सकते हैं।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह
इस मामले से उत्पन्न होने वाली मुख्य चुनौतियाँ हैं:
- सबूतों का सत्यापन: किसी भी राष्ट्र-पार दमन के आरोपों की सत्यता का सत्यापन करना अत्यंत कठिन होता है, क्योंकि इसमें गुप्त अभियान शामिल होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का अभाव: राष्ट्र-पार दमन से लड़ने के लिए देशों के बीच मजबूत सहयोग की आवश्यकता है, जो अक्सर भू-राजनीतिक तनावों के कारण बाधित होता है।
- गलत सूचना का प्रसार: इस तरह की रिपोर्टें गलत सूचनाओं को बढ़ावा दे सकती हैं, जिससे सार्वजनिक धारणा प्रभावित होती है।
- लोकतंत्र का संरक्षण: यह सुनिश्चित करना कि सरकारें अपने नागरिकों की सुरक्षा के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन न करें, जबकि साथ ही देश के भीतर और बाहर असहमति के लिए जगह बनी रहे।
भविष्य की राह में शामिल होना चाहिए:
- पारदर्शी संचार: भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ अपने कार्यों के बारे में पारदर्शी रूप से संवाद करना चाहिए और किसी भी गलतफहमी को दूर करना चाहिए।
- कानूनी ढांचे को मजबूत करना: अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और अपने राष्ट्रीय कानूनों को इस तरह से मजबूत करना ताकि राष्ट्र-पार दमन जैसी गतिविधियों को प्रभावी ढंग से रोका जा सके।
- कूटनीतिक संवाद: यूके जैसे देशों के साथ कूटनीतिक संवाद जारी रखना, चिंताओं को व्यक्त करना और गलतफहमियों को दूर करना।
- सबूत-आधारित प्रतिक्रिया: भविष्य में ऐसे आरोपों का सामना करने पर, केवल खंडन करने के बजाय, ठोस और विश्वसनीय सबूतों के साथ जवाब देना।
- मानवाधिकारों का सम्मान: राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर भी, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का सम्मान सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष
ब्रिटिश रिपोर्ट और उस पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया ‘राष्ट्र-पार दमन’ के जटिल मुद्दे को प्रकाश में लाती है। यह भारत की विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति उसकी प्रतिबद्धता के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इस मामले का विश्लेषण न केवल वर्तमान घटनाओं की समझ प्रदान करता है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, राष्ट्रीय सुरक्षा और शासन के व्यापक सिद्धांतों में भी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
भारत का रुख यह दर्शाता है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन साथ ही वह उन रिपोर्टों को भी स्वीकार नहीं करेगा जो “संदिग्ध” या “भारत-विरोधी” एजेंडे से प्रेरित लगती हैं। इस तरह के मुद्दों का सामना करते समय, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, पारदर्शी संचार और मानवाधिकारों के प्रति सम्मान आवश्यक हैं।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: ‘राष्ट्र-पार दमन’ (Transnational Repression) की अवधारणा से क्या तात्पर्य है?
(a) एक देश की सरकार द्वारा अपने ही देश के भीतर असंतुष्टों का दमन।
(b) एक देश की सरकार द्वारा अपने देश की सीमाओं के बाहर, विदेशी धरती पर, अपने विरोधियों का उत्पीड़न।
(c) अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा सदस्य देशों पर लगाया जाने वाला प्रतिबंध।
(d) एक देश का दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप।
उत्तर: (b)
व्याख्या: राष्ट्र-पार दमन किसी राष्ट्र की सरकार द्वारा विदेशी भूमि पर अपने आलोचकों या विरोधियों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाइयों को संदर्भित करता है। - प्रश्न 2: हाल ही में किस देश द्वारा भारत पर ‘राष्ट्र-पार दमन’ का आरोप लगाने वाली रिपोर्ट जारी की गई थी?
(a) संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)
(b) यूनाइटेड किंगडम (UK)
(c) कनाडा
(d) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर: (b)
व्याख्या: यूनाइटेड किंगडम (UK) के एक थिंक टैंक, जैकेट फाउंडेशन (Jagged Foundation) ने ऐसी रिपोर्ट जारी की थी। - प्रश्न 3: भारतीय केंद्र सरकार ने ब्रिटिश रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों को क्या कहकर खारिज किया है?
(a) तथ्यात्मक रूप से सही
(b) अतिरंजित
(c) संदिग्ध और निराधार(d) प्रशंसा के योग्य
उत्तर: (c)
व्याख्या: भारत सरकार ने रिपोर्ट को “संदिग्ध” (dubious) और निराधार बताया है।- प्रश्न 4: राष्ट्र-पार दमन में निम्नलिखित में से कौन सी गतिविधि शामिल हो सकती है?
1. साइबर-हमले
2. जबरन वापसी (Extradition) का दुरुपयोग
3. ऑनलाइन निगरानी
4. स्थानीय विरोध प्रदर्शनों का दमन
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) 1, 2 और 3
(b) 2, 3 और 4
(c) 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (a)
व्याख्या: राष्ट्र-पार दमन विशेष रूप से देश की सीमाओं के बाहर की गतिविधियों को संदर्भित करता है, इसलिए ‘स्थानीय विरोध प्रदर्शनों का दमन’ इसमें शामिल नहीं है।- प्रश्न 5: राष्ट्र-पार दमन अंतर्राष्ट्रीय कानून के किन सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकता है?
(a) राष्ट्रीय संप्रभुता
(b) गैर-हस्तक्षेप का सिद्धांत
(c) मानवाधिकार
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: राष्ट्र-पार दमन राष्ट्रीय संप्रभुता, गैर-हस्तक्षेप और मानवाधिकारों जैसे मुख्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।- प्रश्न 6: इस मामले में भारत सरकार की प्रतिक्रिया का मुख्य उद्देश्य क्या था?
(a) अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समर्थन मांगना।
(b) यूके के साथ राजनयिक संबंध तोड़ना।
(c) “भारत-विरोधी” एजेंडे का मुकाबला करना और राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की रक्षा करना।
(d) रिपोर्ट के आरोपों की स्वतंत्र जांच की मांग करना।
उत्तर: (c)
व्याख्या: सरकार ने रिपोर्ट को “संदिग्ध” बताकर भारत की प्रतिष्ठा को बचाने और “भारत-विरोधी” एजेंडे का मुकाबला करने की कोशिश की।- प्रश्न 7: UPSC परीक्षा के किन पेपरों के लिए यह विषय प्रासंगिक है?
(a) अंतर्राष्ट्रीय संबंध
(b) राष्ट्रीय सुरक्षा
(c) शासन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: यह विषय अंतर्राष्ट्रीय संबंध, राष्ट्रीय सुरक्षा, शासन और नैतिकता जैसे विभिन्न पेपरों से संबंधित है।- प्रश्न 8: राष्ट्र-पार दमन के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग क्यों महत्वपूर्ण है?
(a) क्योंकि यह एक जटिल और गुप्त प्रकृति का अपराध है।
(b) क्योंकि इसके लिए बहु-राष्ट्रीय प्रयासों की आवश्यकता होती है।
(c) क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों दोनों से जुड़ा है।
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: राष्ट्र-पार दमन की जटिलता, बहु-राष्ट्रीय प्रकृति और सुरक्षा व मानवाधिकारों से जुड़ाव इसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनाते हैं।- प्रश्न 9: “संदिग्ध” (dubious) शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया था?
(a) रिपोर्ट की विश्वसनीयता और मंशा पर संदेह व्यक्त करने हेतु।
(b) रिपोर्ट में प्रस्तुत डेटा की सटीकता के बारे में।
(c) रिपोर्ट के प्रकाशन के तरीके पर।
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर: (a)
व्याख्या: भारतीय सरकार ने रिपोर्ट को “संदिग्ध” कहकर उसकी विश्वसनीयता और उसे “भारत-विरोधी” एजेंडे के तहत प्रस्तुत किए जाने की मंशा पर संदेह व्यक्त किया।- प्रश्न 10: किस देश की सरकार ने हाल ही में एक रिपोर्ट को “संदिग्ध” बताते हुए भारत के खिलाफ लगाए गए राष्ट्र-पार दमन के आरोपों को खारिज किया है?
(a) संयुक्त राज्य अमेरिका
(b) यूनाइटेड किंगडम
(c) कनाडा
(d) फ्रांस
उत्तर: (b)
व्याख्या: यूनाइटेड किंगडम (UK) की रिपोर्ट पर भारत सरकार ने प्रतिक्रिया दी।मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: ‘राष्ट्र-पार दमन’ (Transnational Repression) की अवधारणा की विस्तार से व्याख्या करें। वर्तमान समय में इसके बढ़ते प्रचलन के कारणों और अंतर्राष्ट्रीय कानून पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करें। (15 अंक, 250 शब्द)
- प्रश्न 2: हालिया यूके रिपोर्ट के संदर्भ में, भारत सरकार की प्रतिक्रिया का मूल्यांकन करें। इस घटना का भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और राष्ट्रीय सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)
- प्रश्न 3: राष्ट्र-पार दमन से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की क्या भूमिका है? भारत को इस मुद्दे पर अपनी कूटनीतिक रणनीति को कैसे मजबूत करना चाहिए, विशेष रूप से उन देशों के साथ जिनके साथ उसके संबंध संवेदनशील हैं? (15 अंक, 250 शब्द)
- प्रश्न 4: राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं मानवाधिकारों के संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करना राष्ट्रों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। राष्ट्र-पार दमन के मुद्दे के आलोक में इस संतुलन को कैसे प्राप्त किया जा सकता है, इस पर अपने विचार प्रस्तुत करें। (15 अंक, 250 शब्द)
- प्रश्न 4: राष्ट्र-पार दमन में निम्नलिखित में से कौन सी गतिविधि शामिल हो सकती है?