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चुनाव अधिकारियों पर राहुल के गंभीर आरोप: क्या निष्पक्षता दांव पर है? EC की प्रतिक्रिया।

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**

हाल ही में, भारतीय राजनीति में एक ऐसी घटना ने सुर्खियां बटोरीं जिसने सीधे तौर पर देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सबसे अहम स्तंभ – स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव – की नींव पर सवाल खड़े कर दिए। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए सीधे तौर पर चुनाव अधिकारियों पर ‘वोटों की चोरी’ का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक वे (चुनाव अधिकारी) रिटायर नहीं हो जाते, तब तक उनका पीछा नहीं छोड़ेंगे। इस गंभीर आरोप के जवाब में, चुनाव आयोग (EC) ने एक बयान जारी कर कहा कि अधिकारियों को ऐसी धमकियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और उन्हें अपना काम निष्पक्षता से करते रहना चाहिए। यह घटना न केवल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी, बल्कि इसने देश भर के नागरिकों और विशेष रूप से UPSC उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रक्रिया की अखंडता, संस्थागत स्वायत्तता और राजनीतिक बयानों के प्रभाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहराई से सोचने का अवसर प्रदान किया है।

यह ब्लॉग पोस्ट, UPSC के दृष्टिकोण से, इस पूरे मुद्दे का एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेगा। हम समझेंगे कि ये आरोप क्यों लगे, चुनाव आयोग की क्या भूमिका है, इस तरह के बयानों का लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है, और भविष्य में निष्पक्ष चुनावों को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है।

चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता: भारतीय लोकतंत्र का आधार

भारत का संविधान, अनुच्छेद 324 के तहत, चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) को संसद, राज्य विधानसभाओं और देश के राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है। चुनाव आयोग की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष, स्वतंत्र और स्वतंत्र हो, ताकि हर नागरिक का वोट सुरक्षित रहे और लोकतांत्रिक जनादेश का सही प्रतिबिंब हो।

एक निष्पक्ष चुनाव प्रणाली का अर्थ है:

  • सभी के लिए समान अवसर: राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को प्रचार के लिए समान अवसर मिलना चाहिए।
  • मतदाताओं की स्वतंत्रता: मतदाताओं को बिना किसी भय या दबाव के अपना वोट डालने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  • मतों की सुरक्षा: मतदान की प्रक्रिया, मतों की गिनती और परिणामों की घोषणा पूरी तरह से पारदर्शी और सुरक्षित होनी चाहिए।
  • प्रशासनिक निष्पक्षता: चुनाव कराने वाले अधिकारी, चाहे वे स्थायी सरकारी कर्मचारी हों या अस्थायी नियुक्त, उन्हें पूरी तरह से निष्पक्ष रहना चाहिए और किसी भी राजनीतिक दल की ओर झुकाव नहीं रखना चाहिए।

जब चुनाव अधिकारियों पर ‘वोटों की चोरी’ जैसे गंभीर आरोप लगते हैं, तो यह सीधे तौर पर इन मूलभूत सिद्धांतों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

राहुल गांधी के आरोप: संदर्भ और निहितार्थ

श्री राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोप, राजनीतिक रूप से, काफी गंभीर हैं। ‘वोटों की चोरी’ का तात्पर्य केवल ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में हेरफेर से नहीं है, बल्कि यह पूरी चुनाव मशीनरी पर अविश्वास को दर्शाता है। इसमें ये बातें शामिल हो सकती हैं:

  • मतदाताओं को रोकने का प्रयास: विशेष समुदायों या क्षेत्रों के मतदाताओं को मतदान से रोकना।
  • मतदान में गड़बड़ी: फर्जी मतदान, या मतदाताओं की सूची में अनियमितताएं।
  • मतगणना में धांधली: वोटों की गिनती में हेरफेर या गलत परिणाम घोषित करना।
  • चुनाव अधिकारियों का पक्षपाती व्यवहार: चुनाव प्रचार के दौरान या मतदान के दिन अधिकारियों द्वारा किसी विशेष दल का पक्ष लेना।

“हम छोड़ेंगे नहीं, चाहे वे रिटायर हो जाएं” – यह वक्तव्य केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे दृढ़ संकल्प को दर्शाता है कि यदि अनियमितताएं हुई हैं, तो वे उन अधिकारियों को बख्शेंगे नहीं, चाहे वे किसी भी पद पर हों या सेवानिवृत्त हो जाएं। यह चुनावी न्याय की मांग का एक मजबूत संकेत है।

आरोपों के पीछे की संभावित वजहें:

यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐसे आरोप अचानक नहीं लगते। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:

  1. पारदर्शिता की कमी (असर): भले ही चुनाव प्रक्रिया में कई सुरक्षा उपाय हों, लेकिन आम जनता या राजनीतिक दलों को हमेशा सभी स्तरों पर पूर्ण पारदर्शिता का अहसास नहीं हो पाता।
  2. ईवीएम पर चिंताएं: वर्षों से, कुछ राजनीतिक दल और नागरिक ईवीएम की सुरक्षा और हैकिंग की संभावना पर चिंता व्यक्त करते रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने बार-बार इन चिंताओं को दूर किया है, फिर भी यह एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है।
  3. चुनाव प्रचार के दौरान बाधाएं: यह संभव है कि चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस या उसके समर्थकों को किसी विशेष क्षेत्र में प्रचार करने में चुनाव अधिकारियों से कथित रूप से बाधाओं का सामना करना पड़ा हो।
  4. मतदाताओं से जुड़ाव: कई बार, ऐसे आरोप मतदाताओं के बीच असंतोष को व्यक्त करने या उन्हें चुनाव के प्रति अधिक जागरूक करने का एक तरीका भी हो सकते हैं।

चुनाव आयोग का जवाब: “अफसर ऐसी धमकियों पर ध्यान न दें”

चुनाव आयोग का यह बयान, “अफसर ऐसी धमकियों पर ध्यान न दें”, दो मुख्य बातों को इंगित करता है:

  • स्वायत्तता और गरिमा का संरक्षण: आयोग अपने अधिकारियों की निष्पक्षता और गरिमा को बनाए रखना चाहता है। ऐसे आरोप, चाहे वे किसी भी स्तर पर हों, अधिकारियों के मनोबल को प्रभावित कर सकते हैं। आयोग यह संदेश देना चाहता है कि उसके अधिकारी भय या दबाव में काम नहीं करते।
  • सतर्कता और निरंतरता: आयोग यह भी चाहता है कि उसके अधिकारी किसी भी बाहरी दबाव या राजनीतिक बयानों से विचलित हुए बिना, संविधान द्वारा उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारियों को निर्वाह करते रहें।

चुनाव आयोग की भूमिका और शक्तियां:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत, चुनाव आयोग के पास निम्नलिखित व्यापक शक्तियां हैं:

  • चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण: इसमें मतदाता सूची तैयार करना, चुनाव की तारीखों की घोषणा करना, चुनाव प्रचार के नियम बनाना और लागू करना, और मतदान तथा मतगणना की पूरी प्रक्रिया को निष्पक्ष रूप से संपन्न कराना शामिल है।
  • आचार संहिता लागू करना: आयोग राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए चुनाव आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू करता है, ताकि चुनाव प्रचार निष्पक्ष रहे।
  • अधिकारियों को निर्देश देना: आयोग केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों को चुनाव के संबंध में निर्देश दे सकता है, और जरूरत पड़ने पर, वे आयोग के अधीन काम करते हैं।
  • चुनाव रद्द करना या स्थगित करना: यदि किसी क्षेत्र में चुनाव प्रक्रिया में गंभीर गड़बड़ी पाई जाती है, तो आयोग वहां चुनाव रद्द कर सकता है या स्थगित कर सकता है।

उपमा: यदि भारत के लोकतंत्र को एक भव्य भवन मानें, तो चुनाव प्रक्रिया उसकी नींव है, और चुनाव आयोग वह मजबूत ढांचा है जो यह सुनिश्चित करता है कि नींव समय के साथ मजबूत बनी रहे और किसी भी बाहरी आंधी-तूफान से अप्रभावित रहे। जब नींव पर सवाल उठता है, तो पूरे ढांचे की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ जाती हैं।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर इस तरह के बयानों का प्रभाव

जब एक प्रमुख राष्ट्रीय नेता चुनाव अधिकारियों पर ऐसे गंभीर आरोप लगाता है, तो इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं:

  • जनता का अविश्वास: इससे आम जनता के मन में चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह पैदा हो सकता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए चिंताजनक है जो राजनीतिक रूप से कम जागरूक हैं या जिन्हें चुनाव प्रणाली की जटिलताओं की पूरी जानकारी नहीं है।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: यह आरोप राजनीतिक दलों के बीच टकराव को बढ़ा सकता है, जिससे देश के लिए आवश्यक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस बाधित हो सकती है।
  • चुनावों की वैधता पर प्रश्न: यदि नागरिकों का विश्वास कम हो जाता है, तो वे चुनाव के परिणामों को स्वीकार करने में हिचकिचा सकते हैं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है।
  • चुनाव अधिकारियों का मनोबल: लगातार आलोचना या व्यक्तिगत हमलों का सामना करने वाले अधिकारियों का मनोबल गिर सकता है, जो उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है।

केस स्टडी (काल्पनिक): कल्पना कीजिए कि एक स्कूल में परीक्षा हो रही है। यदि स्कूल का प्रिंसिपल (चुनाव आयोग) यह कहते हैं कि परीक्षा हॉल में बैठे शिक्षक (चुनाव अधिकारी) निष्पक्ष हैं और किसी भी प्रकार की नकल नहीं होने देंगे, और फिर एक छात्र (राहुल गांधी) यह आरोप लगाए कि शिक्षक ही कॉपी चुरा रहे हैं, तो न केवल छात्रों का परीक्षा के प्रति विश्वास कम होगा, बल्कि शिक्षकों का मनोबल भी गिरेगा। यदि प्रिंसिपल फिर कहें कि शिक्षकों को ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, तो यह एक जटिल स्थिति बन जाती है जहाँ प्रिंसिपल को न केवल शिक्षकों की निष्पक्षता का आश्वासन देना होगा, बल्कि छात्रों के विश्वास को भी बहाल करना होगा।

निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने की चुनौतियाँ और भविष्य की राह

राहुल गांधी के आरोपों और चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने की चुनौतियों को फिर से उजागर किया है। इन चुनौतियों से निपटने और भविष्य में विश्वास बहाली के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

1. पारदर्शिता बढ़ाना:

  • ईवीएम की भेद्यता (Vulnerability) पर अधिक खुलापन: हालांकि ईवीएम को सुरक्षित माना जाता है, फिर भी उनकी हैकिंग-प्रूफ (hacking-proof) प्रकृति को प्रदर्शित करने के लिए नियमित रूप से और अधिक सार्वजनिक प्रदर्शन (demonstrations) किए जाने चाहिए।
  • मतगणना प्रक्रिया में सुधार: मतगणना की हर छोटी-बड़ी प्रक्रिया में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • ईवीएम-वीवीपैट मिलान: वीवीपैट (Voter Verifiable Paper Audit Trail) पर्चियों के साथ ईवीएम के मिलान (counting of VVPAT slips) का दायरा बढ़ाया जा सकता है, जिससे सटीकता पर भरोसा बढ़े।

2. चुनावी सुधार:

  • चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया: चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और सर्व-समावेशी (all-inclusive) बनाने के तरीकों पर विचार किया जा सकता है।
  • अधिकारियों का प्रशिक्षण: चुनाव अधिकारियों को नवीनतम तकनीकों, निष्पक्षता के महत्व और किसी भी प्रकार के दबाव का सामना करने के बारे में निरंतर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  • आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों पर अंकुश: हालांकि यह सीधे तौर पर चुनाव अधिकारियों से संबंधित नहीं है, लेकिन यह चुनावी प्रक्रिया की समग्र पवित्रता को प्रभावित करता है।

3. राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी:

  • सबूत-आधारित आरोप: राजनीतिक दलों को बिना ठोस सबूत के चुनाव प्रक्रिया या अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाने से बचना चाहिए। यदि कोई अनियमितता है, तो उसे स्थापित तंत्र के माध्यम से उठाना चाहिए।
  • चुनाव आयोग का सम्मान: राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग को एक स्वायत्त संस्था के रूप में सम्मान देना चाहिए और उसके निर्देशों का पालन करना चाहिए, भले ही वे उससे असहमत हों।

4. जन जागरूकता और शिक्षा:

  • मतदाता शिक्षा: नागरिकों को चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न चरणों, ईवीएम की कार्यप्रणाली और चुनाव आयोग की भूमिका के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
  • सोशल मीडिया पर निगरानी: झूठी सूचनाओं और दुष्प्रचार को रोकने के लिए चुनाव आयोग को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, जो अक्सर जनता के विश्वास को कम करते हैं।

5. स्वतंत्र जाँच:

  • यदि कोई गंभीर आरोप लगाया जाता है, तो चुनाव आयोग को निष्पक्ष जाँच का आश्वासन देना चाहिए और जांच के निष्कर्षों को सार्वजनिक रूप से साझा करना चाहिए ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके।

UPSC के लिए प्रासंगिकता: यह मुद्दा सीधे तौर पर भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) और शासन (Governance) के महत्वपूर्ण पहलुओं से जुड़ा है। इसमें शामिल हैं:

  • संवैधानिक निकाय: चुनाव आयोग की संरचना, शक्तियां और कार्य।
  • लोकतांत्रिक संस्थाएं: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा, और लोकलुभावनवाद (Populism) का प्रभाव।
  • चुनावी सुधार: वर्तमान चुनावी प्रणाली की कमियां और सुधार के उपाय।
  • मीडिया और राजनीति: राजनीतिक बयानों का जनमत और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर प्रभाव।

निष्कर्ष

राहुल गांधी द्वारा चुनाव अधिकारियों पर लगाए गए ‘वोटों की चोरी’ के आरोप और चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया, भारतीय लोकतंत्र के समक्ष एक महत्वपूर्ण चुनौती को रेखांकित करती है। यह चुनौती केवल राजनीतिक बयानबाजी की नहीं, बल्कि देश की चुनावी प्रणाली में जनता के विश्वास की है। चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की निष्पक्षता और स्वायत्तता सर्वोपरि है, लेकिन जनता का विश्वास तभी बना रहता है जब प्रक्रिया पारदर्शी, सुलभ और निर्दोष लगे।

यह आवश्यक है कि सभी हितधारक – राजनीतिक दल, चुनाव आयोग और आम नागरिक – मिलकर काम करें ताकि भारत की चुनावी प्रक्रिया की गरिमा और निष्पक्षता सदैव अक्षुण्ण बनी रहे। जब तक जनता को अपनी वोट की शक्ति पर पूरा भरोसा नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर सकता। आयोग को जहां अपने अधिकारियों की रक्षा करनी है, वहीं जनता के संदेहों को दूर करने के लिए सक्रिय कदम उठाने होंगे। यह एक नाजुक संतुलन है, लेकिन भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग की स्थापना और उसके कार्यों का प्रावधान करता है?
(a) अनुच्छेद 315
(b) अनुच्छेद 324
(c) अनुच्छेद 352
(d) अनुच्छेद 370
उत्तर: (b) अनुच्छेद 324
व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारतीय संविधान में चुनाव आयोग की स्थापना, उसकी शक्तियों और कार्यों से संबंधित है।

2. निम्नलिखित में से कौन सा कथन चुनाव आयोग (ECI) के संबंध में सत्य है?
1. यह एक संवैधानिक निकाय है।
2. यह केवल संसद के चुनावों के लिए जिम्मेदार है।
3. इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं।
4. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (b) केवल 1, 3 और 4
व्याख्या: चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है (अनुच्छेद 324)। इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। वर्तमान में, इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं। यह केवल संसद के नहीं, बल्कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए भी जिम्मेदार है।

3. ‘वोटों की चोरी’ के आरोप का अर्थ निम्नलिखित में से किस से नहीं हो सकता है?
(a) मतदाताओं को मतदान से रोकना
(b) मतदान में धांधली करना
(c) चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों को समान अवसर प्रदान करना
(d) मतगणना में हेरफेर करना
उत्तर: (c) चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों को समान अवसर प्रदान करना
व्याख्या: ‘वोटों की चोरी’ का तात्पर्य चुनावी प्रक्रिया में अनैतिक या अवैध हस्तक्षेप से है, जैसे मतदाताओं को रोकना, फर्जी मतदान, या मतगणना में हेरफेर। राजनीतिक दलों को समान अवसर प्रदान करना निष्पक्ष चुनाव का प्रतीक है, चोरी का नहीं।

4. चुनाव आयोग द्वारा लागू की जाने वाली ‘आचार संहिता’ (Model Code of Conduct) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
(a) चुनाव प्रक्रिया में तेजी लाना
(b) राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए निष्पक्ष और समान अवसर सुनिश्चित करना
(c) मतदाताओं को मतदान करने के लिए प्रोत्साहित करना
(d) चुनाव के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखना
उत्तर: (b) राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए निष्पक्ष और समान अवसर सुनिश्चित करना
व्याख्या: आचार संहिता का उद्देश्य चुनाव प्रचार के दौरान सत्ता के दुरुपयोग को रोकना, सरकारी मशीनरी के उपयोग पर अंकुश लगाना और सभी दलों को एक समान मंच प्रदान करना है।

5. वीवीपैट (VVPAT) का पूर्ण रूप क्या है?
(a) Voter Verification Paper Audit Trail
(b) Voter Verifiable Paper Audit Trail
(c) Verified Voter Paper Audit Trail
(d) Vote Verification Paper Audit Trail
उत्तर: (b) Voter Verifiable Paper Audit Trail
व्याख्या: VVPAT वह मशीन है जो मतदाता को यह सत्यापित करने की अनुमति देती है कि उसका वोट किसे पड़ा है, और एक पर्ची प्रिंट करती है जिसे एक सीलबंद मतपेटी में डाला जाता है।

6. यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन नहीं करता है, तो चुनाव आयोग के पास क्या अधिकार हैं?
1. उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करना
2. उस दल को चुनाव लड़ने से रोकना
3. मतदान रद्द करना
4. संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करना
(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: चुनाव आयोग के पास ऐसे कई अधिकार हैं, जिनमें उल्लंघन के आधार पर उम्मीदवार या दल के खिलाफ कार्रवाई करना, या मतदान रद्द करना शामिल है।

7. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में चुनाव आयोग की स्वायत्तता (autonomy) का महत्व क्यों है?
(a) यह केवल नौकरशाही दक्षता सुनिश्चित करता है।
(b) यह सरकार की नीतियों को लागू करने में मदद करता है।
(c) यह निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करता है, जो लोकतंत्र की नींव है।
(d) यह वित्तीय प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है।
उत्तर: (c) यह निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करता है, जो लोकतंत्र की नींव है।
व्याख्या: स्वायत्तता सुनिश्चित करती है कि चुनाव आयोग किसी भी राजनीतिक प्रभाव या दबाव से मुक्त होकर अपने कर्तव्यों का पालन कर सके, जिससे चुनावों की निष्पक्षता बनी रहे।

8. निम्नलिखित में से कौन सा कथन चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता (transparency) से संबंधित है?
1. मतदाता सूची का सार्वजनिक प्रकाशन
2. मतगणना की प्रक्रिया में राजनीतिक प्रतिनिधियों की उपस्थिति
3. ईवीएम की हैकिंग-प्रूफ (hacking-proof) प्रकृति का प्रदर्शन
4. चुनाव खर्चों की निगरानी
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: ये सभी उपाय चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाते हैं और जनता के विश्वास को बढ़ाते हैं।

9. जब एक प्रमुख नेता ‘वोटों की चोरी’ का आरोप लगाता है, तो इसका जनता के विश्वास पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
(a) जनता का चुनाव प्रणाली पर विश्वास बढ़ सकता है।
(b) जनता का चुनाव प्रणाली पर विश्वास कम हो सकता है।
(c) जनता का विश्वास अप्रभावित रहता है।
(d) जनता केवल चुनाव आयोग पर अधिक विश्वास करने लगती है।
उत्तर: (b) जनता का चुनाव प्रणाली पर विश्वास कम हो सकता है।
व्याख्या: ऐसे आरोप, यदि बिना पुख्ता सबूत के लगाए जाएं, तो जनता के मन में संदेह पैदा कर सकते हैं, जिससे पूरी प्रणाली पर अविश्वास बढ़ सकता है।

10. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 किससे संबंधित है?
(a) वित्तीय आपातकाल
(b) चुनाव आयोग
(c) नागरिकता
(d) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग
उत्तर: (b) चुनाव आयोग
व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारतीय संविधान का वह अनुच्छेद है जो भारत के चुनाव आयोग की स्थापना, शक्तियों और कार्यों से संबंधित है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. भारतीय चुनावी प्रणाली में चुनाव आयोग की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। ‘वोटों की चोरी’ जैसे आरोप, चुनाव आयोग के अधिकारियों की निष्पक्षता पर प्रश्न उठाते हैं। इन आरोपों से निपटने और चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग को किन उपायों पर जोर देना चाहिए? (250 शब्द, 15 अंक)
2. राजनीतिक बयानों और चुनावी आरोपों का लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संस्थाओं की विश्वसनीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है? हालिया उदाहरणों के आलोक में, भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों और संभावित सुधारों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)
3. भारत में चुनावी सुधारों की आवश्यकता क्यों महसूस की जाती है? प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा लगाए जाने वाले गंभीर आरोपों और चुनाव आयोग जैसी स्वायत्त संस्थाओं की प्रतिक्रिया के संदर्भ में, चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए तीन विशिष्ट सुधारों का प्रस्ताव दें। (150 शब्द, 10 अंक)
4. “चुनाव आयोग की स्वायत्तता भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।” इस कथन के आलोक में, चुनाव आयोग की शक्तियों, सीमाओं और हाल के घटनाक्रमों के आलोक में इसकी स्वायत्तता पर पड़े संभावित प्रभावों का विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)

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