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लोकतंत्र की परीक्षा: ‘वोट चोरी’ के आरोपों पर EC का खंडन और चुनाव प्रक्रिया की प्रामाणिकता

लोकतंत्र की परीक्षा: ‘वोट चोरी’ के आरोपों पर EC का खंडन और चुनाव प्रक्रिया की प्रामाणिकता

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता, राहुल गांधी द्वारा चुनाव प्रक्रिया में “वोट चोरी” के गंभीर आरोप लगाए गए, जिस पर भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इन आरोपों को “आधारहीन” करार दिया और उन्हें “नजरअंदाज” करने की सलाह दी। इस घटनाक्रम ने न केवल राजनीतिक गलियारों में हलचल मचाई है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की निष्पक्षता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर भी गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता को जन्म दिया है। यह मामला UPSC के उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सीधे तौर पर भारतीय शासन प्रणाली, चुनाव आयोग की भूमिका, चुनावी अखंडता और राजनीतिक विमर्श के मानकों से जुड़ा हुआ है।

यह ब्लॉग पोस्ट इस पूरे मुद्दे का गहराई से विश्लेषण करेगा, जिसमें ‘वोट चोरी’ जैसे आरोपों की प्रकृति, चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया, भारतीय चुनाव प्रणाली की मजबूती और कमजोरियां, और इस तरह के आरोपों का लोकतंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया जाएगा।

‘वोट चोरी’ के आरोपों की प्रकृति और संदर्भ

जब कोई प्रमुख राजनीतिक हस्ती चुनाव प्रक्रिया की अखंडता पर सवाल उठाती है, विशेष रूप से “वोट चोरी” जैसे गंभीर आरोप लगाकर, तो इसके निहितार्थ बहुत व्यापक होते हैं। ‘वोट चोरी’ एक ऐसा आरोप है जो सीधे तौर पर मतदाताओं की इच्छा को दबाने या चुनाव के परिणामों को अवैध रूप से बदलने का संकेत देता है। यह एक ऐसा शब्द है जो मतदाताओं के मन में संदेह, अविश्वास और निराशा पैदा कर सकता है।

आरोपों का स्रोत:
आमतौर पर, ऐसे आरोप तब लगाए जाते हैं जब किसी विशेष चुनाव में किसी दल को अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते, या जब उन्हें लगता है कि चुनाव प्रक्रिया में कोई अनियमितता हुई है। यह हार की निराशा, राजनीतिक लाभ के लिए जनता को लामबंद करने की रणनीति, या फिर वास्तव में प्रक्रिया में पाई गई खामियों को उजागर करने का प्रयास हो सकता है।

आरोपों का राजनीतिक प्रभाव:
ऐसे आरोप न केवल चुनावी हार के लिए एक बहाना बन सकते हैं, बल्कि वे मतदाताओं के विश्वास को भी कम कर सकते हैं। यदि जनता को यह विश्वास होने लगे कि उनके वोट की कोई कीमत नहीं है या चुनाव निष्पक्ष नहीं होते, तो यह लोकतांत्रिक भागीदारी को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है। यह मतदाता मतदान प्रतिशत को कम कर सकता है और अंततः लोकतंत्र को कमजोर कर सकता है।

चुनाव आयोग (ECI) की प्रतिक्रिया: “आधारहीन आरोप”

राहुल गांधी के “वोट चोरी” के आरोपों के जवाब में, चुनाव आयोग ने एक सशक्त और स्पष्ट प्रतिक्रिया दी। आयोग ने इन आरोपों को “आधारहीन” करार दिया और उन्हें “नजरअंदाज” करने की सलाह दी। यह प्रतिक्रिया कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

ECI की भूमिका और शक्तियां:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत, चुनाव आयोग भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का संचालन, निर्देशन और नियंत्रण करने के लिए जिम्मेदार है। इसकी भूमिका केवल चुनाव कराने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और सभी के लिए सुलभ हो। आयोग के पास चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता को लागू करने, राजनीतिक दलों को विनियमित करने और चुनावी कदाचार से निपटने की शक्तियां हैं।

आयोग का खंडन क्यों महत्वपूर्ण है:
जब चुनाव आयोग जैसे एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय द्वारा ऐसे आरोपों का खंडन किया जाता है, तो इसका मतलब है कि आयोग ने अपनी आंतरिक जाँच या उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर पाया है कि ये आरोप निराधार हैं। आयोग का यह कदम न केवल अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए, बल्कि जनता के मन से संदेह दूर करने और चुनावी प्रक्रिया में विश्वास बहाल करने के लिए भी आवश्यक है।

“नजरअंदाज करें” सलाह का अर्थ:
“नजरअंदाज करें” की सलाह यह दर्शाती है कि आयोग इन आरोपों को इतना महत्व नहीं देता कि वह विस्तृत जाँच में जाए, या फिर यह एक संकेत है कि इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना आरोपों पर सार्वजनिक बहस से बचना चाहिए ताकि अनर्गल विवाद न बढ़े। यह एक संकेत भी हो सकता है कि आयोग ने इन आरोपों के पीछे कोई ठोस सबूत नहीं पाया है।

भारतीय चुनाव प्रणाली की मजबूती और खामियां

भारत की चुनाव प्रणाली, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे जटिल चुनाव प्रणालियों में से एक माना जाता है, अपनी कई खूबियों के बावजूद कुछ चुनौतियों का सामना करती है।

मजबूतियां (Strengths):

  • स्वतंत्र चुनाव आयोग (Independent Election Commission): जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, ECI की स्वतंत्रता भारतीय लोकतंत्र की एक बड़ी ताकत है। यह राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर चुनाव संपन्न कराने में सक्षम है।
  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (EVMs): EVMs का उपयोग मैनुअल वोटिंग की तुलना में अधिक कुशल, तेज और धोखाधड़ी-रोधी माना जाता है। ये मानवीय त्रुटियों और धांधली की संभावना को कम करते हैं।
  • मतदाता पंजीकरण (Voter Registration): देशव्यापी मतदाता सूची का नियमित अद्यतन यह सुनिश्चित करता है कि योग्य नागरिक मतदान कर सकें।
  • निष्पक्षता के लिए कानूनी ढांचा (Legal Framework for Fairness): जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 जैसे कानून चुनावी प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं और अनियमितताओं से निपटने के लिए प्रावधान प्रदान करते हैं।
  • मतदाताओं की जागरूकता (Voter Awareness): ECI और नागरिक समाज संगठन मतदाताओं को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में शिक्षित करने के लिए लगातार प्रयास करते हैं।
  • मतगणना की पारदर्शिता (Transparency in Counting): मतगणना प्रक्रिया में एजेंटों की उपस्थिति और विस्तृत नियम यह सुनिश्चित करते हैं कि परिणाम निष्पक्ष हों।

खामियां और चुनौतियां (Weaknesses and Challenges):

  • EVMs पर संदेह: हालांकि EVMs को सुरक्षित माना जाता है, लेकिन कुछ राजनीतिक दल और नागरिक समाज समूह समय-समय पर उनकी हैकिंग या टैम्परिंग की संभावना पर सवाल उठाते रहे हैं। VVPAT (Voter Verifiable Paper Audit Trail) के माध्यम से मिलान प्रक्रिया कुछ हद तक इन चिंताओं को दूर करती है, लेकिन पूरी तरह से नहीं।
  • धनबल और बाहुबल का प्रयोग (Use of Money and Muscle Power): चुनावों में धनबल और बाहुबल का बढ़ता प्रयोग एक गंभीर चिंता का विषय है। यह मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है और निष्पक्षता को भंग कर सकता है।
  • भ्रामक प्रचार और फेक न्यूज़ (Misinformation and Fake News): सोशल मीडिया के युग में, भ्रामक प्रचार और फेक न्यूज़ तेजी से फैलते हैं, जो मतदाताओं की राय को विकृत कर सकते हैं।
  • मतदाता सूची में विसंगतियां (Discrepancies in Voter Lists): कभी-कभी मतदाता सूचियों में गलतियां, मृत मतदाताओं के नाम या अपात्र व्यक्तियों के नाम होने की शिकायतें आती हैं।
  • ‘रेड टेपिज्म’ और प्रक्रियात्मक देरी (Red Tapism and Procedural Delays): कुछ मामलों में, चुनाव संबंधी शिकायतें या प्रक्रियाएं लंबी और जटिल हो सकती हैं।
  • आदर्श आचार संहिता का प्रवर्तन (Enforcement of Model Code of Conduct): MCC एक राजनीतिक सहमति है, न कि कानून, और इसके उल्लंघन पर अक्सर ई.सी.आई. द्वारा केवल चेतावनी या मामूली प्रतिबंध ही लगाए जा सकते हैं।

‘वोट चोरी’ के आरोपों का लोकतंत्र पर प्रभाव

जब “वोट चोरी” जैसे आरोप लगाए जाते हैं, तो उनका सीधा असर लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पड़ता है:

  • जनता के विश्वास में कमी: यह सबसे गंभीर प्रभाव है। यदि मतदाता यह मानने लगें कि चुनाव निष्पक्ष नहीं हैं, तो वे मतदान करने से कतरा सकते हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर होती है।
  • राजनीतिक अस्थिरता: ऐसे आरोप राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर सकते हैं, खासकर यदि वे व्यापक रूप से स्वीकार किए जाते हैं।
  • लोकतांत्रिक संस्थानों की अवमानना: ये आरोप चुनाव आयोग जैसे स्वतंत्र संस्थानों की गरिमा और अधिकार को कम करते हैं।
  • विभाजनकारी विमर्श: ऐसे आरोप समाज में विभाजनकारी विमर्श को बढ़ावा दे सकते हैं, जहां राजनीतिक दल अपने समर्थकों को उकसाने के लिए झूठे दावों का सहारा लेते हैं।
  • विपक्षी दलों का मनोबल टूटना: अगर विरोधी दल यह मानते हैं कि चुनाव प्रक्रिया में ही गड़बड़ी है, तो उनकी हार का दोष उस प्रक्रिया पर मढ़ दिया जाता है, बजाय इसके कि वे अपनी कमजोरियों का विश्लेषण करें।

UPSC उम्मीदवारों के लिए विश्लेषण

UPSC परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए, यह मुद्दा कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है:

1. भारतीय राजव्यवस्था और शासन (Indian Polity and Governance):

  • संवैधानिक निकाय: चुनाव आयोग की संवैधानिक स्थिति, शक्तियां और सीमाएं।
  • चुनाव कानून: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और संबंधित नियम।
  • चुनावी सुधार: EVM, VVPAT, मतदाता सूची, आदर्श आचार संहिता, आदि से जुड़े सुधार।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया: मतदान, मतगणना, चुनाव लड़ने की पात्रता।

2. समसामयिक मामले (Current Affairs):

  • ECI की भूमिका: हालिया घटनाक्रमों के आलोक में ECI की भूमिका का विश्लेषण।
  • राजनीतिक विमर्श: नेताओं द्वारा उपयोग की जाने वाली भाषा और उसके प्रभाव।
  • सोशल मीडिया का प्रभाव: चुनावी विमर्श पर फेक न्यूज़ और एजेंडा सेटिंग का प्रभाव।

3. नैतिकता (Ethics):

  • राजनीतिक नेताओं की जिम्मेदारी: सार्वजनिक विमर्श में सत्यनिष्ठा और जिम्मेदारी।
  • सार्वजनिक संस्थानों में विश्वास: इस विश्वास को बनाए रखने या क्षीण करने वाले कारक।
  • चुनाव प्रचार में नैतिकता: अनुचित साधनों का प्रयोग।

4. निबंध (Essay) और उत्तर लेखन (Answer Writing):

यह विषय एक बेहतरीन निबंध का विषय या मुख्य परीक्षा के उत्तरों में उदाहरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए:

  • “भारतीय लोकतंत्र में चुनावी अखंडता: चुनौतियाँ और समाधान”
  • “लोकतंत्र की रक्षा में चुनाव आयोग की भूमिका”
  • “आरोप-प्रत्यारोप के युग में राजनीतिक विमर्श की गुणवत्ता”

भविष्य की राह: चुनावी अखंडता को मजबूत करना

भारत की चुनावी अखंडता को बनाए रखने और “वोट चोरी” जैसे आरोपों को कम करने के लिए, निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. EVM/VVPAT सुरक्षा में निरंतर सुधार: तकनीकी विशेषज्ञों और नागरिक समाज की चिंताओं को दूर करने के लिए EVM और VVPAT प्रणालियों में पारदर्शिता और सुरक्षा को और बढ़ाया जाना चाहिए। VVPAT पर्चियों के यादृच्छिक (random) और अधिक व्यापक मिलान की प्रक्रिया पर विचार किया जा सकता है।
  2. आदर्श आचार संहिता को कानूनी दर्जा: MCC को और अधिक मजबूत बनाने के लिए इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने पर विचार किया जा सकता है, ताकि उल्लंघनों पर कड़ी कार्रवाई हो सके।
  3. फेक न्यूज़ और हेट स्पीच पर लगाम: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फेक न्यूज़ और भड़काऊ भाषणों के प्रसार को रोकने के लिए सख्त नियम और प्रभावी प्रवर्तन तंत्र की आवश्यकता है। ECI को ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई करने के लिए और अधिक अधिकार दिए जा सकते हैं।
  4. धनबल पर नियंत्रण: चुनावी खर्च की सीमा को बढ़ाना और उसका प्रभावी ऑडिट सुनिश्चित करना, साथ ही काले धन के इस्तेमाल को रोकना।
  5. मतदाता शिक्षा और जागरूकता: मतदाताओं को चुनावी प्रक्रियाओं, EVMs, VVPATs और अपने अधिकारों के बारे में शिक्षित करना ताकि वे आरोपों का सामना करने में सक्षम हों।
  6. पारदर्शी डेटा एक्सेस: चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए डेटा (जैसे मतदाता सूची, मतदान प्रतिशत) को आम जनता के लिए आसानी से सुलभ बनाना ताकि विभिन्न हितधारक उसका विश्लेषण कर सकें।
  7. चुनाव आयोग की शक्तियों का सुदृढ़ीकरण: यदि आवश्यक हो, तो चुनाव आयोग को निष्पक्षता बनाए रखने और कदाचार से निपटने के लिए और अधिक अधिकार और संसाधन प्रदान किए जाने चाहिए।

निष्कर्ष

“वोट चोरी” जैसे आरोप, भले ही चुनाव आयोग द्वारा “आधारहीन” करार दिए गए हों, लेकिन वे भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए एक चेतावनी संकेत हैं। वे हमें चुनावी प्रक्रिया की अखंडता, संस्थानों में जनता के विश्वास और राजनीतिक विमर्श की गुणवत्ता पर लगातार विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं। चुनाव आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन सभी हितधारकों – राजनीतिक दलों, मीडिया, नागरिक समाज और स्वयं मतदाताओं – को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत का लोकतंत्र अपनी मूल भावना के अनुरूप, निष्पक्ष, स्वतंत्र और पारदर्शी बना रहे। किसी भी आरोप को मात्र “आधारहीन” कहकर खारिज करने के बजाय, पारदर्शी प्रक्रियाएं और साक्ष्य-आधारित स्पष्टीकरण जनता के विश्वास को और मजबूत करेंगे।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग की स्थापना और उसके कार्यों का वर्णन करता है?

    a) अनुच्छेद 315

    b) अनुच्छेद 324

    c) अनुच्छेद 280

    d) अनुच्छेद 343

    उत्तर: b) अनुच्छेद 324

    व्याख्या: अनुच्छेद 324 (1) भारत में एक चुनाव आयोग की स्थापना की बात करता है।
  2. प्रश्न 2: चुनाव आयोग (ECI) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह एक संवैधानिक निकाय है।
    2. यह भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और संसद और राज्य विधानमंडलों के चुनावों का संचालन करता है।
    3. इसके सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
    4. यह अपने सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष निर्धारित करता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन से सत्य हैं?

    a) केवल 1, 2 और 3

    b) केवल 1, 3 और 4

    c) केवल 2, 3 और 4

    d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: a) केवल 1, 2 और 3

    व्याख्या: मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है, न कि 60 वर्ष।

  3. प्रश्न 3: ‘वोट चोरी’ के आरोपों पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    a) राजनीतिक बहस में शामिल होना

    b) चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास को बनाए रखना

    c) आरोपों की सत्यता की जांच करना

    d) विपक्षी दलों को शांत करना

    उत्तर: b) चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास को बनाए रखना

    व्याख्या: ऐसे आरोप लोकतंत्र के लिए खतरा हैं, इसलिए आयोग का उद्देश्य विश्वास बनाए रखना है।
  4. प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा भारतीय चुनाव प्रणाली की एक प्रमुख मजबूती है?

    a) सीमित मतदाता सूची

    b) स्वतंत्र चुनाव आयोग

    c) धीमी मतगणना प्रक्रिया

    d) धनबल का अनियंत्रित प्रयोग

    उत्तर: b) स्वतंत्र चुनाव आयोग

    व्याख्या: ECI की स्वतंत्रता भारतीय चुनाव प्रणाली की आधारशिला है।
  5. प्रश्न 5: EVM (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के संदर्भ में VVPAT का पूरा नाम क्या है?

    a) Voter Verified Paper Audit Trail

    b) Voter Verifiable Paper Audit Trail

    c) Vote Verified Paper Audit Trail

    d) Voter Verifiable Paper Accu Trail

    उत्तर: b) Voter Verifiable Paper Audit Trail

    व्याख्या: VVPAT मतदाता को सत्यापित करने की सुविधा देता है कि उसने किसे वोट दिया है।
  6. प्रश्न 6: आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित है।
    2. यह चुनाव आयोग द्वारा लागू किया जाता है।
    3. इसका उल्लंघन करने पर चुनाव आयोग द्वारा सजा का प्रावधान है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन से असत्य हैं?

    a) केवल 1 और 3

    b) केवल 1 और 2

    c) केवल 2 और 3

    d) 1, 2 और 3

    उत्तर: a) केवल 1 और 3

    व्याख्या: MCC संविधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है, यह एक राजनीतिक सहमति है। इसके उल्लंघन पर आयोग द्वारा चेतावनी या अन्य प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, लेकिन सीधी सजा का कानूनी प्रावधान नहीं है।

  7. प्रश्न 7: ‘मतदान की गरिमा’ को बनाए रखने में निम्नलिखित में से कौन सा कारक सबसे कम सहायक है?

    a) मतदाता शिक्षा

    b) स्वतंत्र चुनाव आयोग

    c) भ्रामक प्रचार और फेक न्यूज़

    d) EVM और VVPAT का प्रयोग

    उत्तर: c) भ्रामक प्रचार और फेक न्यूज़

    व्याख्या: भ्रामक प्रचार मतदाताओं को भ्रमित कर सकता है और मतदान की गरिमा को कम कर सकता है।
  8. प्रश्न 8: चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति निम्नलिखित में से किस स्थिति में किसी सदस्य को संसद या राज्य विधानमंडल से अयोग्य घोषित कर सकते हैं?

    a) दल-बदल के आधार पर

    b) वित्तीय अनियमितताओं के आधार पर

    c) देशद्रोह के आरोप पर

    d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: a) दल-बदल के आधार पर

    व्याख्या: दसवीं अनुसूची के तहत दल-बदल के आधार पर अयोग्यता के संबंध में ECI सलाह देता है।
  9. प्रश्न 9: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के किस अनुभाग के तहत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है?

    a) धारा 6

    b) धारा 4

    c) धारा 3

    d) धारा 2

    उत्तर: c) धारा 3

    व्याख्या: धारा 3 संसद के लिए चुनाव के लिए योग्यता निर्धारित करती है, जिसमें न्यूनतम आयु 25 वर्ष है।
  10. प्रश्न 10: यदि किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने चुनावी वादों को पूरा नहीं किया जाता है, तो क्या यह ‘वोट चोरी’ का मामला बनता है?

    a) हाँ, क्योंकि मतदाताओं से धोखा हुआ है।

    b) नहीं, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वादे कभी पूरे करने का इरादा ही नहीं था और चुनाव प्रक्रिया को ही बाधित किया गया हो।

    c) यह एक व्यक्तिगत मामला है, न कि चुनावी प्रक्रिया का।

    d) यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है।

    उत्तर: b) नहीं, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वादे कभी पूरे करने का इरादा ही नहीं था और चुनाव प्रक्रिया को ही बाधित किया गया हो।

    व्याख्या: चुनावी वादे पूरे न करना राजनीतिक असफलता हो सकती है, लेकिन यह सीधे तौर पर ‘वोट चोरी’ या चुनावी प्रक्रिया में धांधली नहीं है, जब तक कि इसे स्थापित करने के लिए कोई ठोस सबूत न हो।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: भारतीय चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और स्वायत्तता सुनिश्चित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों का विश्लेषण करें। इसके अतिरिक्त, वर्तमान परिदृश्य में इसकी प्रभावशीलता और चुनावी अखंडता बनाए रखने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न 2: ‘वोट चोरी’ जैसे आरोप, भले ही चुनाव आयोग द्वारा खारिज कर दिए गए हों, भारतीय लोकतंत्र में चुनावी विश्वास को कैसे प्रभावित करते हैं? ऐसे आरोपों से निपटने और चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए उठाए जाने वाले सुधारात्मक उपायों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
  3. प्रश्न 3: भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल्स (VVPATs) के उपयोग के लाभों और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। क्या ये तकनीकें चुनावी धांधली की संभावना को कम करती हैं, या वे स्वयं संदेहों को जन्म देती हैं? (150 शब्द, 10 अंक)
  4. प्रश्न 4: समसामयिक भारत में, चुनाव प्रचार के दौरान फेक न्यूज़ और हेट स्पीच के प्रसार का चुनावी विमर्श और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है? ऐसे अनर्गल प्रचार को रोकने के लिए चुनाव आयोग और सरकार की भूमिका पर टिप्पणी करें। (150 शब्द, 10 अंक)

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