EC का ‘वोट चोरी’ पर राहुल गांधी को जवाब: चुनाव आयोग की शक्तियाँ और भारत में राजनीतिक संवाद
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान कथित तौर पर ‘वोट चोरी’ जैसे बयानों के मामले में भारतीय चुनाव आयोग (EC) ने संज्ञान लिया है। आयोग ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे बयानों को, जो ‘वोट चोरी’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, ‘नजरअंदाज’ करें और मामले की जांच करते समय इस पर अधिक ध्यान केंद्रित न करें। इस घटना ने भारत में चुनावी राजनीति, राजनीतिक दलों के भाषणों की स्वतंत्रता, चुनाव आयोग की भूमिका और शक्तियों, तथा आदर्श आचार संहिता (MCC) के प्रवर्तन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को फिर से चर्चा में ला दिया है। यह मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सीधे तौर पर भारतीय शासन, राजनीति, लोकतंत्र और संवैधानिक निकायों की कार्यप्रणाली से जुड़ा है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस घटना का विस्तृत विश्लेषण करेगा, जिसमें हम चुनाव आयोग की भूमिका, ‘वोट चोरी’ जैसे बयानों का अर्थ और प्रभाव, आदर्श आचार संहिता की बारीकियां, और इन सब के बीच राहुल गांधी जैसे नेताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रकाश डालेंगे। हम UPSC के दृष्टिकोण से इन मुद्दों की गहराई में जाएंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि परीक्षा में इससे संबंधित प्रश्न कैसे पूछे जा सकते हैं।
भारतीय चुनाव आयोग: एक प्रहरी की भूमिका
भारतीय चुनाव आयोग (EC) भारत के संविधान द्वारा स्थापित एक स्वायत्त निकाय है, जिसे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह केवल एक प्रशासनिक निकाय नहीं है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। EC के बारे में कुछ मुख्य बातें:
- स्थापना: 25 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने से एक दिन पहले।
- संरचना: एक मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और दो चुनाव आयुक्त (EC)।
- कार्य: राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद (लोकसभा और राज्यसभा) और राज्य विधानमंडलों के चुनावों का संचालन, पर्यवेक्षण और नियंत्रण करना।
- स्वायत्तता: अनुच्छेद 324 के तहत संविधान द्वारा सुनिश्चित की गई है, जो इसे राजनीतिक दबावों से मुक्त रखती है।
EC की भूमिका को अक्सर एक ‘प्रहरी’ (Watchdog) के रूप में वर्णित किया जाता है, जो चुनावी प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित करता है। इसकी शक्तियों में शामिल हैं:
- चुनाव अधिसूचना जारी करना।
- मतदाताओं की सूची तैयार करना और उसे अपडेट करना।
- चुनाव कराने के लिए एक कार्यक्रम तय करना।
- प्रचार के नियमों को लागू करना, जिसमें आदर्श आचार संहिता (MCC) भी शामिल है।
- चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के आचरण को विनियमित करना।
- चुनावों में कदाचार के पाए जाने पर चुनाव रद्द करना या उम्मीदवार को अयोग्य ठहराना।
‘वोट चोरी’ का बयान: अर्थ, प्रभाव और समस्या
राहुल गांधी द्वारा ‘वोट चोरी’ का बयान, चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से संबंधित हो या किसी अन्य संदर्भ में, चुनावी राजनीति में एक गंभीर आरोप माना जाता है। इस तरह के बयानों के कई निहितार्थ होते हैं:
- जनता के विश्वास को ठेस: यह सीधे तौर पर चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और उसमें जनता के विश्वास को कमजोर करता है। यदि जनता को यह विश्वास हो जाए कि उनके वोट ‘चुराए’ जा रहे हैं, तो वे मतदान करने के प्रति हतोत्साहित हो सकते हैं।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण: ऐसे बयान मतदाताओं को भावनात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं और राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकते हैं।
- अराजकता की संभावना: यदि बड़े पैमाने पर ऐसे आरोप लगाए जाएं और उनका कोई तथ्यात्मक आधार न हो, तो यह समाज में अशांति या अराजकता को जन्म दे सकता है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि चुनाव आयोग (EC) द्वारा ‘वोट चोरी’ जैसे बयानों को ‘नजरअंदाज’ करने का निर्देश, इस बात का संकेत नहीं है कि आयोग ऐसे बयानों को जायज ठहराता है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: भारत में, प्रत्येक नागरिक को, जिसमें राजनेता भी शामिल हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है (अनुच्छेद 19(1)(a))। हालाँकि, यह अधिकार पूर्ण नहीं है और ‘लोक व्यवस्था’, ‘शिष्टाचार’ या ‘नैतिकता’ के आधार पर उचित प्रतिबंधों के अधीन है।
- सबूत का अभाव: कई बार, इस तरह के आरोप बिना पुख्ता सबूतों के लगाए जाते हैं। EC एक अर्ध-न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है, और किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले उसे तथ्यों और सबूतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- EC की सीमाएं: EC के पास कुछ सीमाएं हैं। यह सीधे तौर पर राजनीतिक दलों या नेताओं के हर बयान को नियंत्रित नहीं कर सकता, जब तक कि वह आदर्श आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन न करे। EC आमतौर पर तब कार्रवाई करता है जब कोई बयान चुनाव प्रक्रिया को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला हो या लोक व्यवस्था को बिगाड़ने वाला हो।
आदर्श आचार संहिता (MCC): चुनाव प्रचार का ताना-बाना
आदर्श आचार संहिता (MCC) नियमों का एक समुच्चय है जिसका राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनावों के दौरान पालन करना होता है। यह एक कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज नहीं है, बल्कि EC द्वारा पार्टियों की सहमति से विकसित की गई है। MCC का मुख्य उद्देश्य एक निष्पक्ष खेल का मैदान प्रदान करना और यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से हों। MCC के प्रमुख प्रावधान:
- समान अवसर: सभी दलों को प्रचार के लिए समान अवसर मिलना चाहिए।
- भ्रष्टाचार पर रोक: वोट खरीदने या मतदाताओं को रिश्वत देने पर रोक।
- शांतिपूर्ण वातावरण: ऐसे बयान न देना जो विभिन्न समुदायों के बीच नफरत फैलाएं।
- सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न हो: सरकारी संसाधनों का उपयोग चुनावी लाभ के लिए न किया जाए।
- प्रचार की सामग्री: आपत्तिजनक या अनुचित सामग्री का प्रकाशन न करना।
‘वोट चोरी’ बयान और MCC का उल्लंघन?
चुनाव प्रचार के दौरान ‘वोट चोरी’ जैसे बयानों को MCC के तहत कई आधारों पर देखा जा सकता है:
- मतदाताओं को हतोत्साहित करना: यदि बयान का उद्देश्य मतदाताओं को यह विश्वास दिलाना है कि वोट डालना व्यर्थ है क्योंकि परिणाम पहले से ही तय हैं या उनमें हेरफेर किया जाएगा, तो यह MCC के अनुच्छेद VII (सामान्य आचरण) का उल्लंघन हो सकता है।
- प्रक्रिया पर अविश्वास: यह सीधे तौर पर चुनावी प्रक्रिया की अखंडता पर सवाल उठाता है, जो निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत के विरुद्ध हो सकता है।
- EC की निष्पक्षता पर सवाल: यदि बयान EC द्वारा आयोजित चुनावों पर अविश्वास जताता है, तो यह EC के कार्यों को बाधित करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा सकता है।
EC का निर्देश: बारीकियों को समझना
EC का यह कहना कि ‘वोट चोरी’ जैसे बयानों को ‘नजरअंदाज’ किया जाए, एक सूक्ष्म संदेश देता है। यह हो सकता है कि EC ऐसे बयानों को सीधे तौर पर ‘भड़काऊ’ या ‘आपत्तिजनक’ नहीं मान रहा हो, जब तक कि वे सीधे तौर पर हिंसा न भड़काएं या किसी विशिष्ट समुदाय को निशाना न बनाएं। हालांकि, यह EC की जिम्मेदारी को कम नहीं करता कि वह किसी भी ऐसे बयान का संज्ञान ले जो चुनावी प्रक्रिया की अखंडता या जनता के विश्वास को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
संभव है कि EC का यह निर्देश एक रणनीतिक कदम हो:
- तनाव कम करना: ऐसे बयान अक्सर चर्चा का केंद्र बन जाते हैं और राजनीतिक तनाव बढ़ाते हैं। EC शायद माहौल को शांत रखने की कोशिश कर रहा हो।
- सबूतों की मांग: EC शायद यह कहना चाह रहा हो कि ऐसे आरोपों को गंभीरता से लेने से पहले पुख्ता सबूत प्रस्तुत किए जाने चाहिए।
- EC के कार्यक्षेत्र की सीमा: EC को यह सुनिश्चित करना होता है कि उसके निर्देश कानूनी ढांचे के भीतर हों। बिना ठोस सबूत के किसी को सिर्फ बयान के लिए दंडित करना मुश्किल हो सकता है।
राहुल गांधी की ओर से बचाव: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
राहुल गांधी और उनकी पार्टी के लिए, ऐसे बयानों का बचाव अक्सर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत किया जाता है। वे तर्क दे सकते हैं कि:
- लोकतांत्रिक संवाद: आलोचना और बहस किसी भी लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं। सरकार या संस्थानों की आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए।
- EVM पर चिंताएं: वे EVM की कार्यप्रणाली या सुरक्षा को लेकर अपनी पार्टी द्वारा उठाई गई चिंताओं को व्यक्त कर रहे होंगे।
- जवाबी आरोप: वे सत्ताधारी दल द्वारा किए जा रहे कथित चुनावी अनुचित लाभों का जवाब दे रहे होंगे।
यहाँ द्वंद्व इस बात पर है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। एक ओर, राजनेताओं को नीतियों, सरकार और यहां तक कि चुनावी प्रणाली की आलोचना करने की अनुमति होनी चाहिए। दूसरी ओर, उनके बयानों को इस तरह से नहीं होना चाहिए कि वे जनता के विश्वास को ही समाप्त कर दें या मतदाताओं को भ्रमित करें।
UPSC के लिए प्रासंगिकता: शासन, राजनीति और संवैधानिक मुद्दे
यह पूरा प्रकरण UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न पहलुओं को छूता है:
- भारतीय राजव्यवस्था (Governance): चुनाव आयोग की संरचना, कार्य, शक्तियां और सीमाएं। आदर्श आचार संहिता का प्रवर्तन।
- भारतीय राजनीति (Indian Politics): राजनीतिक दलों का आचरण, चुनावी अभियान की रणनीति, राजनीतिक संवाद का स्तर।
- मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) और उस पर उचित प्रतिबंध।
- शासन में नैतिकता (Ethics in Governance): राजनेताओं द्वारा जिम्मेदार भाषा का प्रयोग, जनता के विश्वास का महत्व।
- समसामयिक मामले (Current Affairs): हाल की घटनाओं का विश्लेषण और उनके व्यापक निहितार्थ।
EC की शक्तियों पर बहस: पर्याप्त या अपर्याप्त?
EC को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर कार्रवाई करने की शक्तियां प्राप्त हैं, जिनमें चेतावनी जारी करना, सार्वजनिक रूप से निंदा करना, चुनाव प्रचार से प्रतिबंधित करना (कुछ समय के लिए), या यहां तक कि कुछ मामलों में उम्मीदवार को अयोग्य ठहराना भी शामिल है। हालांकि, इन शक्तियों के प्रयोग में EC को अक्सर आलोचना का सामना करना पड़ता है:
- देर से कार्रवाई: कई बार EC की कार्रवाई तब होती है जब नुकसान पहले ही हो चुका होता है।
- कठोरता में कमी: आलोचक अक्सर EC पर राजनेताओं के खिलाफ पर्याप्त कठोर कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हैं, खासकर जब सत्ताधारी दल के नेता कानूनों का उल्लंघन करते हैं।
- कानूनी अंतरालों का लाभ उठाना: राजनेता अक्सर EC के नियमों के ‘अंतरालों’ का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं।
यह घटनाEC के लिए एक दुविधा प्रस्तुत करती है: यदि वह ‘वोट चोरी’ जैसे बयानों पर कार्रवाई करता है, तो उस पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का आरोप लग सकता है। यदि वह कार्रवाई नहीं करता है, तो उस पर चुनावी प्रक्रिया की अखंडता की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लग सकता है।
भविष्य की राह: एक संतुलित दृष्टिकोण
इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
- स्पष्ट दिशानिर्देश: EC को ‘गलत सूचना’ (misinformation) और ‘भ्रामक सूचना’ (disinformation) के संबंध में अपने दिशानिर्देशों को और स्पष्ट करना चाहिए, खासकर चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को प्रभावित करने वाले बयानों के मामले में।
- त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र: EC को ऐसे उल्लंघनों पर तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिए एक मजबूत तंत्र विकसित करना चाहिए।
- सार्वजनिक जागरूकता: मतदाताओं को चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता और सत्यता के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है, ताकि वे ऐसे बयानों से आसानी से गुमराह न हों।
- राजनेताओं की जिम्मेदारी: राजनेताओं को यह समझना होगा कि उनकी भाषा का जनता पर गहरा प्रभाव पड़ता है और उन्हें जिम्मेदार तरीके से बोलना चाहिए।
- कानूनी सुधार: आदर्श आचार संहिता को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए उसमें कुछ कानूनी आधार जोड़ने पर विचार किया जा सकता है, ताकि EC के आदेशों का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
निष्कर्ष: लोकतंत्र में संवाद और विवेक
चुनाव आयोग और राजनेताओं के बीच यह तनातनी भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। यह हमें याद दिलाता है कि चुनावी प्रक्रिया केवल मतदान की औपचारिकता नहीं है, बल्कि जनता के विश्वास, राजनीतिक संवाद की गुणवत्ता और संवैधानिक संस्थानों की अखंडता पर आधारित है। राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ जैसे बयान, भले ही EC द्वारा ‘नजरअंदाज’ किए जाने के निर्देश मिले हों, इस बात पर गंभीर बहस की मांग करते हैं कि कैसे हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाए रखते हुए अपनी चुनावी प्रक्रियाओं की पवित्रता की रक्षा कर सकते हैं। UPSC के उम्मीदवारों के लिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये मुद्दे न केवल राजनेताओं के बीच की राजनीतिक लड़ाई हैं, बल्कि वे शासन, कानून और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों से जुड़े हुए हैं। EC की भूमिका, चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, हमारे लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिए अपरिहार्य है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. भारतीय चुनाव आयोग (EC) संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित एक स्वायत्त निकाय है।
2. EC राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद और राज्य विधानमंडलों के चुनावों का संचालन करता है।
3. EC के सदस्यों की नियुक्ति सीधे तौर पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: EC एक स्वायत्त निकाय है (अनुच्छेद 324)। यह राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद और राज्य विधानमंडलों के चुनावों की देखरेख करता है। EC के सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है, न कि सीधे तौर पर। - प्रश्न 2: भारतीय चुनाव आयोग (EC) द्वारा आदर्श आचार संहिता (MCC) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
(a) MCC कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
(b) MCC का उद्देश्य निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है।
(c) MCC राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के आचरण को विनियमित करता है।
(d) EC MCC के उल्लंघन पर कार्रवाई कर सकता है।
उत्तर: (a)
व्याख्या: MCC कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, यह EC द्वारा पार्टियों की सहमति से विकसित नियमों का एक समुच्चय है। EC के पास इसके उल्लंघन पर कार्रवाई करने की शक्ति है। - प्रश्न 3: अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत भारत में नागरिकों को निम्नलिखित में से कौन सा अधिकार प्राप्त है?
(a) बिना हथियार के शांतिपूर्वक इकट्ठा होने का अधिकार।
(b) धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार।
(c) बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।
(d) भारत में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता का अधिकार।
उत्तर: (c)
व्याख्या: अनुच्छेद 19(1)(a) भारत के नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। - प्रश्न 4: ‘वोट चोरी’ जैसे बयान चुनावी प्रक्रिया के संदर्भ में निम्नलिखित में से किस पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं?
1. मतदाताओं का विश्वास
2. राजनीतिक ध्रुवीकरण
3. चुनाव आयोग की निष्पक्षता
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: ‘वोट चोरी’ जैसे बयान मतदाताओं के विश्वास को कमजोर कर सकते हैं, राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ा सकते हैं और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े कर सकते हैं। - प्रश्न 5: भारतीय चुनाव आयोग (EC) निम्नलिखित में से किस पर संज्ञान लेता है?
1. आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन।
2. मतदाता सूचियों का निर्माण।
3. राजनीतिक दलों का पंजीकरण।
4. चुनाव परिणाम घोषित करना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: EC आदर्श आचार संहिता लागू करता है, मतदाता सूचियां तैयार करता है, राजनीतिक दलों का पंजीकरण करता है, और चुनाव परिणाम घोषित करता है। - प्रश्न 6: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. चुनाव आयोग (EC) के सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
2. EC के सदस्यों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान संरक्षण प्राप्त है।
3. EC को हटाने की प्रक्रिया महाभियोग के समान है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: EC के सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उनके कार्यकाल और हटाने की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान ही सुनिश्चित की गई है, जो उनकी स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण है। - प्रश्न 7: “प्रहरी” (Watchdog) की भूमिका भारतीय लोकतंत्र में आमतौर पर निम्नलिखित में से किस निकाय से जुड़ी है?
(a) नीति आयोग (NITI Aayog)
(b) भारतीय चुनाव आयोग (EC)
(c) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
(d) लोकपाल (Lokpal)
उत्तर: (b)
व्याख्या: चुनाव आयोग को चुनावी प्रक्रिया की निगरानी और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के कारण अक्सर “प्रहरी” (Watchdog) के रूप में देखा जाता है। CAG वित्तीय निगरानी और लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्य करता है। - प्रश्न 8: आदर्श आचार संहिता (MCC) निम्नलिखित में से किस सिद्धांत पर आधारित है?
1. समान अवसर।
2. सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना।
3. समुदायों के बीच नफरत फैलाने से बचना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: MCC का उद्देश्य सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर देना, सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग को रोकना और किसी भी समुदाय के बीच नफरत फैलाने वाले भाषणों को रोकना है। - प्रश्न 9: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है और इस पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
2. EC किसी भी राजनेता के हर बयान पर तुरंत कार्रवाई करने के लिए बाध्य है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (a)
व्याख्या: भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध हैं। EC सभी बयानों पर तुरंत कार्रवाई करने के बजाय साक्ष्य और प्रासंगिकता के आधार पर निर्णय लेता है। - प्रश्न 10: ‘गलत सूचना’ (Misinformation) और ‘भ्रामक सूचना’ (Disinformation) के बीच मुख्य अंतर क्या है?
(a) गलत सूचना जानबूझकर फैलाई जाती है, जबकि भ्रामक सूचना अनजाने में।
(b) गलत सूचना का उद्देश्य नुकसान पहुंचाना होता है, जबकि भ्रामक सूचना का नहीं।
(c) गलत सूचना हमेशा झूठी होती है, जबकि भ्रामक सूचना सच भी हो सकती है।
(d) गलत सूचना का संबंध केवल व्यक्तिगत बातों से है, जबकि भ्रामक सूचना का सार्वजनिक महत्व होता है।
उत्तर: (a)
व्याख्या: ‘गलत सूचना’ (Misinformation) अनजाने में झूठी जानकारी साझा करना है, जबकि ‘भ्रामक सूचना’ (Disinformation) जानबूझकर गलत जानकारी फैलाना है, जिसका उद्देश्य अक्सर किसी को धोखा देना या नुकसान पहुंचाना होता है।मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: भारतीय चुनाव आयोग (EC) की शक्तियों और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें, विशेष रूप से आदर्श आचार संहिता (MCC) के प्रवर्तन के संदर्भ में। क्या EC को राजनीतिक भाषणों को विनियमित करने के लिए अधिक अधिकार दिए जाने चाहिए? (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 2: “लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और चुनावी निष्पक्षता के बीच संतुलन बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।” इस कथन के आलोक में, ‘वोट चोरी’ जैसे बयानों के प्रभाव और चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया पर चर्चा करें। (लगभग 150 शब्द)
- प्रश्न 3: आदर्श आचार संहिता (MCC) भारतीय चुनावों में एक नैतिक प्रहरी के रूप में कैसे कार्य करती है? MCC के उल्लंघन के उदाहरणों और EC द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की प्रभावशीलता पर अपने विचार प्रस्तुत करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 4: समकालीन भारतीय राजनीति में ‘भ्रामक सूचना’ (Disinformation) का प्रसार चुनावी परिणामों और लोकतांत्रिक संस्थानों पर क्या प्रभाव डालता है? चुनाव आयोग और सरकार इस चुनौती से कैसे निपट सकते हैं? (लगभग 250 शब्द)